फैजाबाद। सांप्रदायिक ताप को ठंडा करने की लगातार चल रही कोशिशों के बीच रामनगरी से सटा मुमताजनगर गांव सौहार्द के कमल खिला रहा है। मशहूर कवि स्वर्गीय रफीक सादानी की कर्मभूमि रहे मुमताजनगर गांव के ठेठ देसी अंदाज में रहने वाले लोगों का मिजाज सांप्रदायिक सौहार्द का संदेश दे रहा है। गांव में रामलीला आयोजित करने वाली श्रीरामलीला रामायण समिति के अध्यक्ष डॉ. माजिद अली हैं। इनका परिवार 50 वर्षों से रामलीला से जुड़ा है। खुद माजिद 35 वर्षों से कमेटी के अध्यक्ष पद पर हैं।
इस बार मुमताजनगर में रामलीला का 51वां वर्ष है। यहां रामलीला की शुरुआत 50 वर्ष पूर्व पॉलीटेक्निक के शिक्षक रहे जगदीश प्रसाद शर्मा ने स्थानीय निवासी जुगुल किशोर शर्मा, रामचंद्र तिवारी, राम दयाल व डॉ. वाजिद अली, हिदायत अली, अशरफ अली आदि के साथ की थी। इनमें डॉ. वाजिद अली मौजूदा अध्यक्ष डॉ. माजिद के पिता थे।
शुरुआती दो-तीन वर्षों तक कमेटी में उपप्रधान रहने के बाद डॉ. वाजिद अली करीब 18 वर्षों तक अध्यक्ष के पद पर रहे। अब उनके पुत्र माजिद इस पद पर कायम हैं। वह रामलीला आयोजन के लिए न केवल प्रशासनिक अधिकारियों के साथ होने वाली बैठकों में शामिल होते हैं, बल्कि छोटी से छोटी जरूरतों की चिता करते हैं।
खास बात यह है कि मुमताजनगर में नब्बे के उस दौर में भी माजिद रामलीला का आयोजन करते रहे जब अयोध्या हिदुत्व की सियासी कड़ाही में छनती सधुक्कड़ी सियासत का केंद्र थी। माजिद कहते हैं कि उपासना पद्धतियां अलग-अलग हो सकती हैं, लेकिन ईश्वर तो एक ही है। फिर सभी धर्मों का संदेश प्रेम ही तो है। मौजूदा दौर में उठे विवादों को वह राजनीति की देन करार देते हुए स्व. रफीक सादानी की ही कविता गुनगुनाते हैं, ‘मंदिर-मस्जिद बनै न बिगड़ै, सोन चिरइया फंसी रहै.. भाड़ मा जाए देश कै जनता, आपन कुर्सी बची रहै…।’
मुस्लिम युवा निभाते हैं किरदार
मुमताजनगर की रामलीला की सबसे खास बात यह है कि मंचन में सभी किरदार स्थानीय युवा ही निभाते हैं। इसमें हिदू के साथ मुस्लिम युवा भी भूमिकाएं करते हैं। डॉ. माजिद के मुताबिक रामलीला में एकलाख, शाहिद, नियाज, रियाज, जाबिर अली, नफीस ऐसे युवा हैं, जो अलग-अलग किरदार निभाते हैं। यहां युवाओं में किरदारों को निभाने की होड़ रहती है।
मुस्लिम पर्वों में हिदू करते हैं भागीदारी
मुमताज नगर गांव के सिर्फ मुस्लिम ही नहीं बल्कि हिदू भी सौहार्द की मुहिम में पीछे नहीं हैं। रामलीला, होली, दीपावली, जन्माष्टमी समेत दूसरे पर्वों पर जहां मुस्लिम भागीदारी करते हैं, वहीं ईद, बकरीद समेत दूसरे मुस्लिम त्योहारों पर हिदू शिरकत करते हैं।
साभार- http://naidunia.jagran.com/ से