मुझे गर्व है कि मैंने भारतीय विद्या भवन, मुंबई से प्रबंधन की डिग्री प्राप्त की है . इस डिग्री की विशेषता यह थी कि हमारे पाठ्यक्रम में व्यवसाय के साथ ही भारतीय संस्कृति का भी एक पेपर था . भवन में व्यावसायिक चीजें पढ़ाने के साथ ही भारतीय संस्कृति , नैतिक मूल्यों को पढ़ाने का सिलसिला एक अरसे से चल रहा है भवन ने भारतीय संस्कृति के प्रचार और प्रसार में बेहद महत्वपूर्ण भूमिका अदा की है और भवन का लन्दन केंद्र यहाँ बसे भारतीय मूल के लोगों को भारत की समावेशी सांस्कृतिक से जोड़े रखने में बड़ी भूमिका अदा कर रहा है .
कल भवन की ओर से भारत के स्वतंत्रता दिवस के उपलक्ष्य में एक बड़ा कार्यक्रम आयोजित किया गया जिसमें भारतीय मूल के लब्ध प्रतिष्ठित लोगों के साथ ही भवन के चेयरमैन सुभानु सक्सेना, ब्रिटेन में भारत के उच्चायुक्त म.मा. विक्रम दोराइस्वामी और मेरे करीबी मित्र लार्ड राज लुंबा भी उपस्थित थे . कार्यक्रम का संचालन केंद्र निदेशक डॉ. एम नंदकुमारा ने किया जिन्हें हाल ही में ब्रिटिश सरकार ने उनके संस्कृति के क्षेत्र में असाधारण योगदान के लिए एमबीई के अलंकरण से सम्मानित किया है.
भारत में थोड़ा अटपटा लगेगा कि भारत के स्वतंत्रता दिवस से 13 दिन पूर्व ही इसका आयोजन कर लिया गया , लेकिन भवन में भारतीय कला , नृत्य और संस्कृति से संबंधित जो पाठ्यक्रम संचालित किए जाते हैं उन में अगस्त के दूसरे सप्ताह से ग्रीष्म अवकाश रहता है और सारे विद्यार्थी छुट्टी मनाने चले जाते हैं इसलिए भवन में लम्बे समय से भारत के स्वतंत्रता दिवस के आयोजन को अगस्त के प्रथम सप्ताह में ही मना लेते हैं . लन्दन में बसे भारतीय मूल के लोगों का इस आयोजन को ले कर कितना उत्साह रहता है इसका अंदाज़ा इस बात से लगाया जा सकता है कि माउंटबेटन आडिटोरियम हाउस फुल था , जिन्हें बैठने की जगह नहीं मिली वे खड़े हो कर ही नृत्य संगीत का आनंद उठा रहे थे.
इस अवसर पर अपने उद्धबोधन में उच्चायुक्त म.मा. विक्रम दोराइस्वामी ने भारत की सामासिक संस्कृति के महत्व को रेखांकित किया और साथ ही देश के मज़बूत लोकतंत्र को उसकी ताक़त बताया , उन्होंने देश में न्याय पालिका जैसे लोकतंत्र के स्तंभों के स्वतंत्र होने की भी चर्चा की.
कत्थक, भरतनाट्यम् की प्रस्तुति और देशभक्ति से भरे गीत “सारे जहां से अच्छा” , “एकल चलो रे” आदि ने एक बार फिर से आज़ादी के जज़्बे को जगा दिया.