कश्मीर में आतंकी घटनायें फिर बढ़ रही हैं।आंकड़े देते हुए या तुलना करते हुए हम लाख कहें कि इन घटनाओं में कमी आयी है मगर सच्चाई यह है कि कश्मीर अभी भी आतंकवाद से मुक्त नहीं हुआ है।आये दिन हमारे सुरक्षाकर्मियों की बेशकीमती जाने चली जाती हैं, सर्च ऑपरेशन चलता है, मुठभेड़ में मारे गए हमारे वीर सैनिकों की तस्वीरें मीडिया में दिखाई जाती है आदि-आदि। कुछ दिनों की बहसबाज़ी या वक्तव्यबाज़ी के बाद बात आयी-गयी हो जाती है।
समय आ गया है कि सरकार आतंकवाद के इस नासूर को जड़ से ख़त्म करने के लिए रक्षा-विषेशज्ञों के साथ मिल-बैठकर कोई आक्रमाक कार्ययोजना बनाये ताकि हमेशा के लिए इस रोग से निजात पाया जाय।
वैसे, कश्मीर का आम आदमी शान्ति चाहता है,उसने बहुत कष्ट झेले हैं, वह सुख-चैन से जीना चाहता है और मुख्य-धारा के साथ कदम से कदम मिलाकर आगे बढ़ना चाहता है। मगर घाटी में ऐसे चंद देश-दुश्मन अब भी मौजूद हैं जो पड़ौसी देश की शह पर घाटी का माहौल खराब करने पर तुले हुए हैं। ऐसे तत्वों को चिन्हित कर उन्हें नष्ट करने की सख्त ज़रूरत है।सीमा पार से आतंकियों की घुसपैठ को रोकने के लिए भी आधुनिकतम उपायों को अमल में लाने की परमावश्यकता है।
एक बात और। टीवी पर डिबेट अच्छे अथवा समाजोपयोगी विषयों पर होने चाहिए ताकि दर्शकों को कुछ सीखने को मिले।आतंकवाद पर डिबेट चलाने और कुख्यात आतंकवादियों के चित्र दिखाने का मतलब है इस दुष्कर्म/प्रवृत्ति को मान्यता देना या ‘ग्लोरिफय’ करना ।आतंकवाद समाज के लिये एक अभिशाप है।इस अभिशाप पर चर्चा करना स्वस्थ मानव-मूल्यों की अवमानना करने के बराबर है।