नई दिल्ली। दिसम्बर का महीना शुरू हुआ और तापमान में गिरावट के साथ दिल्ली की गुलाबी शाम ठंड की गिरफ्त में घिर पड़ी हैं। ऐसे में तरह तरह के रंगा-रंग कार्यक्रम दिल्लीवासियों व कला के शौकीनों को मौका प्रदान कर रहे हैं अपनी ही तरह से मौसम के मिज़ाज का लुत्फ उठाने का। ऐसे ही विभिन्न रंगों के बीच रविवार की शाम इंडिया हैबीटेट सेंटर में मौसिकी की एक महफिल सजी की तालियों की गड़गड़ाहट और वाह-वाही का समां रोके नहीं रूका।
मौका था गैर-सरकारी संगठन साक्षी द्वारा अपनी अध्यक्ष डाॅ. मृदुला टंडन के नेतृत्व में सजी एक शाम ‘सोच से साज़-ओ-आवाज़’ का, जहां सोच, साज़ व आवाज़ का बखूबी ताल-मेल देखने सुनने को मिला और यहां उपस्थित हर श्रोता शायराना रंग में डूबा नज़र आया।
ग़ज़ल क्षेत्र में दिग्गजों की आवाज़ को साज़ प्रदान कर चुके जाने-माने गीतकार व शायर फरहत शहज़ाद व देश-विदेश में अपने गायन से वाह-वाही लूट चुके शकील अहमद ने मंच पर अपने कला-कौशल का बखूबी परिचय दिया और कुछ अनसुने नगमों, नज़्मों व ग़ज़लों को श्रोताओं तक पहुंचाया।
कार्यक्रम की शुरूआत पारम्परिक दीप के साथ हुई जिसके बाद मंच संभाला फरहत शहजाद ने। उनकी शेर-ओ-शायरी, ग़ज़ल का अंदाज व बोल ने कहीं प्रेमी-प्रेमिका के अद्भुत रिश्ते को उजागर किया तो कहीं जीवन के पहलुओं से श्रोताओं का अभिभूत किया। मिलना-बिछड़ना, खोना-पाना, रूठना-मनाना, उनको सताने और प्यार जताने का अंदाज बस छाता ही चला गया कि जहां विराम लगाने की कोशिश उन्होंने की वहीं बस एक ओर! की फरमाइश ने मंच छोड़ने ही नहीं दिया शहजाद को। शहजाद द्वारा प्रस्तुत शेरो-शायरी में कुछ चुनिंदा ग़ज़लें व शेर थे.. ‘आगे सफर था और पीछे हमसफर था! रूकते तो सफर छूट जाता और चलते तो हमसफर छूट जाता..’, ‘बस यही दो मसले जिंदगीभर ना हल हुए! ना नींद पूरी हुई, ना ख्वाब मुकम्मल हुए..’, ‘वक़्त ने कहा.. काश थोड़ा और सब्र होता… सब्र ने कहा काश थोड़ा और वक़्त होता..’, ‘‘हुनर सड़कों पर तमाशा करता है और किस्मत महलों में राज़ करती है..’’।
दिलकश अंदाज व रूमानी अंजाम तक पहुंचाने के बाद फरहत शहजाद ने मंच की बागडोर दी शकील अहमद साहब को, जिन्होंने अपने साथी कलाकारों, अनीस खान, अलिम खान और शौकत हुसैन के साथ ताल से ताल मिलाकर अपने सशक्त अंदाज में श्रोताओं को अंदाज़-ए-ग़ज़ल से सरोबोर किया। शकील अहमद द्वारा प्रस्तुत ग़ज़लों में ‘तुम्हारे साथ भी तन्हा हूं तुम न समझोगे…’, ‘बेसबब ही जो ये शरमा सा गया है कोई…’, ‘मेरे मिजाज की आवारगी पे मरती है…’, ‘जैसे मेरे ख्याल..’, ‘खुशियों के लिए..’, ’जरा सा आप से बाहर से निकलकर देखो तो..’, ‘फैसला तुमको भूल जाने का…’ आदि शामिल थीं। जहां शहजाद के कलाम को शकील के अंदाज ने बखूबी महकाया।
कार्यक्रम के दौरान फरहत शहजाद ने अपनी बहुप्रतिक्षित पुस्तक जो कि उन्होंने अपने व मेहंदी हसन साहब के रिश्ते को समर्पित की है के विमोचन की जानकारी भी दी और कुछ चुनिंदा पल साझा किये।
कार्यक्रम की आयोजक डाॅ. मृदुला टंडन ने कहा शायरी और ग़ज़ल के माध्यम से समाज को आईना दिखाया जा सकता है। आज हमारे समाज में खासकर युवा पीढ़ी को जरूरत है अपनी तहजीब सुनने समझने और जानने की। ऐसे कार्यक्रम के माध्यम से हमारा प्रयास है कि जो खज़ाना हमारे पास है जो आज की तेज-तर्रार जि़ंदगी में खोती जा रही है, उसकी खूबसूरती को दिखाना व समझाना बेहद जरूरी है। गंगा-जमुनी तहजीब जो पूरे संसार में प्रख्यात है उसका प्रचार प्रसार बहुत जरूरी है। मुझे खुशी है कि हमारे इस प्रयास में फरहत शहज़ाद जैसा सशक्त कलाकार भी अपने कौशल के द्वारा इस खुशबू को फैलाने हेतु हमसे जुड़ा है।
मौके पर मौजूद संगीत सरताज, सूफी गायन में अपनी पहचान कायम करने वाली श्रीमति रीता गांगुली ने दोनों ही कलाकारों की भूरि-भूरि प्रशंसा करते हुए कहा कि, बेहद खूबसूरत आवाज़ है इनकी और प्रस्तुतिकरण का अंदाज कायल करता है। हमें बहुत अच्छा लग रहा है यहां आकर। डाॅ. मृदुला टंडन का प्रयास सराहनीय है।
अधिक जानकारी हेतु सम्पर्क करें; शैलेश नेवटिया – 9716549754