Sunday, November 24, 2024
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राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 का महत्व

राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 मनुष्य के निर्माण की बात करती हैं। यह नीति औपनिवेशिक मानसिकता का प्रबल प्रतिकार करती हैं और भारतीय चेतना का पोषण करती है। यह नीति राष्ट्रभक्त भारतीय मनुष्य का निर्माण करती है। मनुष्य का निर्माण दीर्घकालिक प्रक्रिया है जिसका घटक स्वयं मनुष्य ही है। शिक्षा का मौलिक उपादेयता गुणात्मक जीवन का निर्माण करना है। शिक्षा जीविका (रोजी-रोटी) के लिए तैयार करती हैं और व्यक्ति के उत्तरदाई व्यक्तित्व का निर्माण करती है। शिक्षा जीविका के लिए तैयार करती है और शिक्षा मनुष्य का उद्धार करती है। उद्धार का होना अर्थात जो नीचे जा रहा है उसे ऊपर उठाना। समाज के प्रत्येक वर्ग का गुणात्मक उन्नयन ही शिक्षा का मौलिक उद्देश्य है।शिक्षा सभी प्रकार के बंधनों से मुक्ति का उपक्रम है अर्थात सामाजिक बंधनों से मुक्ति, भौतिक बंधनों से मुक्ति और राजनीतिक बंधनों से मुक्ति।

राष्ट्रभक्ति भारतीयता के प्रति होने पर ईश्वरत्व की इच्छा होती है।शिक्षा व्यक्ति निर्माण में वंशानुगत एवं पर्यावरणीय तत्वों को बढ़ाकर राष्ट्र-राज्य के प्रति आस्था एवं निष्ठा का विवेकी प्रत्यय उत्पन्न करती है।अंग्रेजी सरकार ऐसे व्यक्तियों का निर्माण करना चाहती थी, जिनमें भारतीयता, भारत के प्रति आस्था और भारतीय मूल्य में गहरी आस्था ना उत्पन्न हो सके।राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 में सांस्कृतिक विरासत और वैज्ञानिक ज्ञान के प्रति गंभीर प्रयास किया गया है।

हम सभी भारतीयों को बंकिमचंद्र चटर्जी जी, स्वामी विवेकानंद जी, मालवीय जी, महात्मा गांधी जी, संपूर्णानंद जी, आचार्य नरेंद्र जी, पंडित दीनदयाल उपाध्याय जी, गुरु गोलवरकर जी,आशुतोष मुखर्जी जी, श्यामा प्रसाद मुखर्जी जी,डॉक्टर राधाकृष्णन जी और दौलत सिंह कोठारी जी के साहित्य का गहन अध्ययन, चिंतन और मनन करते हैं तो इन आचार्यों के साहित्य में भारतीयता के प्रति दिशा के साथ शिक्षा के लिए व्यापक दृष्टिकोण प्राप्त होता है और शिक्षा के लिए भारतीय विकल्प प्रदान किया है। उनके अध्ययन की उपादेयता है कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 21वीं सदी के भारत को सशक्त बनाना चाहती है।वर्तमान शिक्षा नीति में स्वीकृति है कि व्यक्ति के विचार और उसके विवेक का विकास जीवन पर्यंत चलता रहता है। हमारी शिक्षा व्यवस्था ऐसा होना चाहिए कि व्यक्ति के व्यक्तित्व का विकास सर्वांगीण हो।

प्राचीन काल से भारत विश्व समुदाय के लिए ज्ञान का आकर्षण रहा है। प्राचीन काल से भारत ने ज्ञान के प्रत्यय के आधार पर ही वैश्विक नेतृत्व किया है। धर्म (आस्था), ज्ञान (मेधा) और विज्ञान (तार्किक प्रत्यय) के मामले में भारत सर्वाधिक समृद्धशाली देश रहा है। भारतीयों के बुद्धि का वैश्विक स्तर पर समृद्धशाली ऐतिहासिक महत्व रही है। अंग्रेजों के कुटिल सोच और राजनीतिक चालबाजी के कारण शिक्षा तक सभी की पहुंच दुरूह होता गया जिसका परिणाम यह हुआ की निरक्षरों की संख्या बढ़ गई। इस अपकंचन को दूर करने में नई शिक्षा नीति-2020 की भूमिका उल्लेखनीय है।खोज आधारित दृष्टि से ही भारत विश्व गुरु बना था तथा भारत के इसी वैभव को पुनर्स्थापित करने के लिए राष्ट्रीय शिक्षा नीति की प्रासंगिकता बढ़ गई है।

राष्ट्रीय शिक्षा नीति- 2020 में शारीरिक, मानसिक, बौद्धिक एवं आत्मिक क्षमताओं के विकास की व्यवस्था की गई है। शिक्षा के प्रति अनुमान, तर्क, निर्णय, विवेक, तुलना, धारणा, स्मृति और भाषा के लिए विकास हेतु विभिन्न व्यवस्थाएं स्थापित किया गया है। भारतीय मूल्य पर आधारित शिक्षा प्रणाली समकालीन समय की मांग है, क्योंकि भारतीय गुलामी, सामाजिक कुरीतियों और धार्मिक अंधविश्वासों में जकड़े हुए थे। तत्कालीन शिक्षा देश को अपनी चपेट में ले लिया था और वैज्ञानिक चिंतन को बहुत कमजोर कर दिया था। इन सामाजिक बुराइयों ने हमारी राष्ट्रीय एकता पर प्रहार किया और समाज का एक वर्ग निरंतर भारतीय संस्कृति और आध्यात्मिकता से दूर होता जा रहा था। आर्य समाज के संस्थापकों ने वेदों की तार्किक और वैज्ञानिक व्याख्या किए और रूढ़ियों पर प्रहार किया।

(लेखक प्रांत प्रचार प्रमुख, गंगा समग्र,राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ और राजनीतिक विश्लेषक हैं)

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