जी हां! एक इंसान का स्थानांतरण, क्योंकि मैने सिर्फ अब तक अफसरों के स्थानांतरण ही देखे थे। लेकिन, झांसी के जिलाधिकारी श्री अनुराग यादव का स्थानांतरण हुआ तो लगा कि आज एक अच्छे इंसान का स्थानांतरण हो गया। प्रशासनिक सेवा में आने के बाद लोग अफसर तो बन जाते हैं और इंसानी कर्तव्य भूल जाते हैं, लेकिन बतौर झांसी जिलाधिकारी श्री अनुराग यादव ने वह कर दिखाया जो शायद देश के दूसरे जिलाधिकारी नहीं कर सके।
दिल्ली के जेएनयू से पढ़कर निकले आईएएस अनुराग यादव ने उत्तर प्रदेश में जरूरत मंदों की लीग से हटकर मदद की तो बुन्देलखण्ड के किसानों का दर्द समझते हुए एक ऐसी ऐतिहासिक इबारत भी लिखी जो खुदकुशी करने वाले किसान परिवारों के लिए उम्मीद की नई रौशनी में बदल गई। उन्होंने जता दिया कि जो अफसर बनकर नहीं हो सकता वह इंसान बनकर तो किया ही जा सकता है। तंगहाली में मौत को गले लगाते अन्नदाताओं के परिवार के आंसू पौंछने का जिम्मा उन्होंने अपनी धर्मपत्नी व आकांक्षा समिति की अध्यक्ष प्रीति चौधरी को सौंपा। दोनों ने ही मिलकर अपने निजी संपर्कों से पैसा जुटाकर झांसी जिले में खुदकुशी करने वाले व सदमे से मरने वाले किसान परिवारों की विधिवाओं व उनके परिजनों को एक एक लाख रुपए की एफडी प्रदान कर आर्थिक मदद की।
जिले के करीब 52 किसान परिवारों को 60 लाख रुपए से भी अधिक आर्थिक मदद कर एक नई मिसाल कायम कर दी। यह कोई मामूली मदद नहीं थी, बल्कि दूसरे जिलों के अफसरों को आइना दिखाती एक नजीर थी। इस मदद ने किसान मुखिया की मौत के बाद गुरबत में जी रहे उसके बेबस परिवार के सपनों को जीने की एक नई दिशा देने का काम किया। कई गरीब किसानों की बेटियों की शादी के लिए भी पैसों का इंतजाम करा दिया।
इसके अलावा भी कई और एतिहासिक कार्यों को अंजाम देने वाले जिलाधिकारी श्री अनुराग यादव की कार्यशैली को मैं सलाम करता हूं। बेशक प्रमोशन होने के बाद आपका स्थानांतरण हुआ है, लेकिन झांसी में रहकर आपने जो किया है, वह कम नहीं है। झांसी आपको नहीं भूलेगा। इस क्षेत्र को आपकी और जरूरतथी। पूरा बुन्देलखण्ड आज सूखे की पीड़ा से जूझ रहा है। किसान खुदकुशी कर रहा है और इन बदहाल हालातों में बुन्देलखण्ड को एक अदद अनुराग यादव चाहिए…!