आज सभी लोगों को पैसा कमाने के बारे में पढ़ाया और समझाया जाता है।लेकिन यह नही बताया जाता पैसा पैदा होता कैसे है।
सरकार,व्यापारी ,किसान,जनता सब कर्ज में है तो सवाल उठता है यह कर्ज दिया किसने ओर इतना सारा कर्ज देने के लिए पैसा आया कहाँ से।
मतलब सभी लोग बैंको के कर्ज में है।हम आगे पढ़ेगें कि बैंकों के बारे में लोगों की क्या क्या ग़लतफ़हमी हैं।
सब लोगों को, बैंक से उधार या लोन या फिर क्रेडिट कार्ड उपयोग करने की प्रणाली नहीं पता होने के कारण 3 तरह की गलतफहमी है
पहली ग़लतफ़हमी ये की बैंक आपको उधार में असली रूपया पैसा दे रहा है ।
दूसरी ग़लतफ़हमी ये की बैंक किसी दूसरे व्यक्ति का पैसा आपको उधार या लोन दे रहा है । किसी दूसरे के पास ज्यादा पैसे थे उसने सोचा कि बैंक में रख देता हूँ ताकी थोडा़ बहुत ब्याज मिल जाये । और वो पैसे आपको लोन या उधार में मिल गये ।
तीसरी ग़लतफ़हमी ये है कि बैंक अपनी मेहनत की कमाई में से कुछ पैसा आपको उधार देता है ।
सच्चाई का इन तीन बातों से कोई लेना देना है ही नहीं । अगर आप पूरी सच्चाई जानना चाहते तो पूरी कहानी पढे़ ।
(1) भूतकाल
कहानी शुरू होती है कई सालो पहले जब सोने और चाँदी के सिक्के चलते थे । तक बैंकिंग सिस्टम नही था । सिर्फ अर्थ-शास्त्र था । आज अर्थ-शास्त्र को बैंकिंग सिस्टम और शेयर बाजार ने पूरी तरह से हथिया लिया है । ये सब कैसे हुआ ये जानते है ।
पहले सोने और चाँदी के सिक्के चलने लगे । जब सोने और चाँदी के सिक्के चलते थे तब बैंकर लोगो ने योजना बनाई और इस योजना के चलते उन्होने लोगो से बोला कि आप अपना सोना चाँदी हमारे पास रखो हम उसकी हिफाजत करेंगे । जब भी कोई सोना चाँदी बैंकर के पास रखता तो उसको रसीद के तौर पर एक “पेपर रसीद” मिल जाती थी । ये पेपर रसीद ही शुरूआती पेपर नोट थे । बैंकर लोगों को रसीद बनाना आसान था बजाय कि सोना खोदने की और लोगो को भी इन कागज के नोट को मार्केट में उपयोग करना आसान था ।
तब जितना सोना होता था उतनी ही रसीद होती थी । फिर बैंकर लोगो को अर्थव्यवस्था में कब्जा जमाने को पहला कदम मिला, उन लोगो ने उधार देना चालू कर दिया ।
जो लोग बचत करते थे उसी सोने में से ही किसी दूसरे को उधार (लोन) मिलता था । इस तरह बैंकर लोगो को पहली बार इतिहास में अर्थशास्त्र को अपनी मर्जी से मोड़ने का पहला प्रावधान मिला । क्योंकि वो उधार दे सकते थे इसका सबके बडा़ फायदा अमीर और बहुत अमीर लोगों को हुआ, क्योंकि अमीरों को बडी़ पूँजी आसानी से मिल गई जिससे उन्होंने बडे़ बडे़ कारखाने लगाये और वो अमीर होते चले गये क्योंकि पैसे से पैसे बनाना बहुत आसान होता है । गरीब को भी लोन मिलता था उससे कोई फायदा नही था ग़रीबों को ।
अब देखते हैं दूसरे कदम को, जिससे बैंकर लोगो ने अर्थव्यवस्था पर पूरी तरह से कब्जा जमाने कि चाल चली ।
एक दिन बैंकर को लालच आया और ये सोचा की वो उतना ही उधार दे सकता है जितना कि उसके पास सोना होता है । अगर ऐसा हो जाये कि वो उस सोने के नाम की नोट देना चालू कर दे जो उसकी तिजोरी में है ही नहीं तो कैसे रहेगा । ये था दूसरा प्रावधान जिससे काफी सारी ऐसी बैंक नोट बनाये गये जिसके समानांतर कोई सोना था ही नहीं।
लोगों को इस लूट के बारे में पता ही नहीं चल पाया, क्योंकि लोग अब सोने के सिक्को में लेनदेन करते ही नही थे , वो तो कागज के नोट से ही लेनदेन करते थे । और सारे लोग एक साथ मिलकर अपना सोना बैंक से निकलवाते नही थे । मान लो अगर सारे लोग अपना सोना बैंक से निकलवाने पहुँच जाये तो बैंक तो लुट जायेगी क्योंकि उसने जितने नोट (रसीद ) बाँट रखी है उतना सोना तो है ही नही बैंक में ।
इस दूसरे कदम के चलते दुनिया के अमीर लोग महाअमीर हो गये क्योंकि अब वो बैंक में रखे सोने के बराबर लोन लेने तक सीमित नही थे, बैंक असली सोने से कई गुणा ज्यादा की रसीदे (नोट) देकर इन अमीर को बडे़ बडे़ लोन सस्ती ब्याज दरों पर देती थी । इस पैसे से इन अमीरों ने बडे़ बडे़ कारखाने लगाये ।
इसके कारण गरीब और ज्यादा गरीब हो गया । कैसे ? अरे भाई मान लो 100 लोग है हर एक के पास 1 किलो सोना है । पूरी अर्थव्य्वस्था है 100 किलो सोने की और हर एक व्यक्ति का मार्केट में रूतबा 1% का है। अब बैंकर लोगो ने 500 किलो की रसीद बना दी है और 400 किलो की रसीद 2 अमीर लोगों को दे दी । यानी जिस आदमी में का रूतबा 1%का था वो अब 0.2% हो गया । यानी बिना किसी मेहनत से बैंक की कृपा से 2 अमीर बंदे 1% के 40.2% पहुँच गये (40 गुणा बढ़त) और बाकी लोग 1% से 0.1% पर लुढ़क गये (5 गुणा निचे) ।
जो गरीब और अमीर के बीच खाई है उसका मुख्य कारण बैंकिंग सिस्टम ही है ।
इन दोनो कदमों के बाद बडते है तीसरे कदम की ओर ।
तीसरे कदम में ये हुआ कि सरकार ने पुराने बैंक खतम कर दिये और सोने चाँदी के सिक्को की जगह पेपर नोट (कागज के नोट) को ही मुख्य करंसी मान लिया । नये बैंक बने जो इस पेपर नोट को रखते थे ।
फिर पेपर नोट चलने लगे । जब पेपर नोट थे तब बैंकर लोगो ने योजना बनाई और इस योजना के चलते उन्होंने लोगो से बोला कि आप अपना पेपर नोट हमारे पास रखो हम उसकी हिफाजत करेंगे । जब भी कोई पेपर नोट बैंकर के पास रखता तो उसको रसीद के तौर पर एक “बैंक पासबुक, चेक और एटीम कार्ड” मिल जाती था । ये रसीद ही शुरूआती “बैंक मनी” थे ।
बैंकर लोगो को “बैंक पासबुक, चेक और एटीम कार्ड” बनाना आसान था बजाय कि नोट छापने की और लोगो को भी इन “बैंक पासबुक, चेक और एटीम कार्ड” को मार्केट में उपयोग करना आसान था ।
तब जितना “पेपर मनी” होता था उतनी ही “बैंक मनी” (यानी डिजीटल मनी) होती थी ।
फिर बैंकर लोगो को अर्थव्यवस्था में कब्जा जमाने को चौथा कदम मिला, उन लोगो ने उधार देना चालू कर दिया ।
जो लोग बचत करते थे उसी पैसे में से ही किसी दूसरे को उधार (लोन) मिलता था । इस तरह बैंकर लोगो को फिर से अर्थशास्त्र को अपनी मर्जी से मोड़ने का प्रावधान मिला । क्योंकि वो उधार दे सकते थे इसका सबसे बड़ा फायदा अमीर और बहुत अमीर लोगों को हुआ क्योंकि अमीरों को बडी़ पूँजी आसानी से मिल गई जिससे उन्होने बडे़ बडे़ कारखाने लगाये और वो अमीर होते चले गये क्योंकि पैसे से पैसे बनाना बहुत आसान होता है । गरीब को भी लोन मिलता था उससे कोई फायदा नही था गरीबो को ।
चलो चलते है पाँचवे कदम पर जिससे बैंकर लोगो ने अर्थव्यवस्था पर पूरी तरह से कब्जा जमाने के चाल चली ।
एक दिन बैंकर को लालच आया और ये सोचा कि वो उतना ही उधार दे सकता है जितना कि उसके पास पेपर नोट होता है । अगर ऐसा हो जाये की वो उस रूपये के नाम की “डिजिटल मनी (चेक, लोन)” देना चालू कर दे जो उसकी तिजोरी में है ही नहीं तो कैसे रहेगा । ये था पाँचवा कदम जिससे काफी सारी ऐसी बैंक मनी बनाये गये जिसके समानांतर कोई रूपया था ही नहीं।
लोगों को इस लूट के बारे में पता ही नही चल पाया क्योंकि लोग अब पेपर नोट में लेनदेन करते ही नही थे , वो तो “चेक, डेबिट कार्ड , क्रेडिट कार्ड और इंटरनेट बैंकिग” से ही लेनदेन करते थे । और सारे लोग एक साथ मिलकर अपना नोट बैंक से निकलवाते नही थे । मान लो अगर सारे लोग अपना पैसा बैंक से निकलवाने पहुँच जाये तो बैंक तो लुट जायेगी क्योंकि उसने जितने डिजिटल मनी बाँट रखी है उतने कागज के नोट तो है ही नही बैंक में ।
(2) वर्तमान
आज महानगरों में रहने वाले लोगों की सेलेरी एटीएम कार्ड के अंदर आती है और कार्ड से ही खर्च हो जाती है । दिल्ली वालो को बस सब्जी और आटो वाले के लिये ही पेपर नोट की जरूरत पड़ती है ।
इस पाँचवे कदम के के चलते दुनिया के महाअमीर लोग और भी महामहाअमीर हो गये क्योंकि अब वो बैंक में रखे नोट के बराबर लोन लेने तक सीमित नही थे, बैंक इनको असली नोट से कई गुना ज्यादा की बैंक मनी देकर इन अमीर को बडे़ बडे़ लोन सस्ती ब्याज दरों पर देने लगी । इस पैसे से इन अमीरों ने बडे़ बडे़ कारखाने लगाये ।
इसके कारण गरीब और गरीब हो गया । कैसे ? वो तो ऊपर बताया ही है । जो गरीब और अमीर के बीच खाई है उसका मुख्य कारण बैंकिंग सिस्टम ही है ।
अब चलते है हमारे असली सवाल की ओर ।
पहली ग़लतफ़हमी ये की बैंक आपका उधार में असली रूपया पैसा दे रहा है ।
दूसरी ग़लतफ़हमी ये की बैंक किसी दूसरे बंदे का पैसा आपको उधार या लोन दे रहा है । किसी दूसरे के पास ज्यादा पैसे थे उसने सोचा कि बैंक में रख देता हूँ ताकी थोडा़ बहुत ब्याज मिल जाये । और वो पैसे आपको लोन या उधार में मिल गये ।
तीसरी ग़लतफ़हमी ये है कि बैंक अपनी मेहनत की कमाई में से कुछ पैसा आपको उधार देता है ।
ये तीनों बाते गलत है, मै बताता हूँ कि असलियत में क्या होता है। माना आपको 2000 रूपये के कैमरे की जरूरत है और आप किसी शोप पर क़ेडिट कार्ड उपयोग करते हो तो बैंक आपको कोई असली रूपया नही देता है । वो आपके खाते में लिख देगा -2000 (माइनस 2 हजार) और दुकान वाले के खाते में लिख देगा +2000 ! चाहे आप लोन लो या किसी भी प्रकार का उधार, बैंक वाले आपको असली के नोट नही देते है वो आपको डिजिटल मनी देते है जिसका कोई अस्तित्व ही नहीं है ।
आज हमारी अर्थव्यवस्था में 5% नकद है और बाकी 95% डिजिटल मनी है जो की हमारे बैंको ने मनमाने तरीके से मार्केट मे डाली है। ये सारा पैसा कम्प्यूटर में ही अस्तित्व रखाता है । हमको पैसा कमाने में बहुत मेहनत लगती है लेकिन बैंक वाले बटन दबा कर मनचाही ”बैंक मनी” अमीर लोगो को धंधे खोलने के नाम पर दे देती है जिसको हमे वापस कमाने के लिये इन कंपनीयों के अंदर काम करना पड़ता है ।
आपको जानकर आश्चर्य होगा की ये सब एक प्रणाली के अंतर्गत होता है जिसको नाम दिया गया है – ”Fractional Reserve System” !
(4) Fractional Reserve System
दुनिया के सारे देशों में एक केंद्रीय बैंक होता है । जैसे यूके में बैंक ओफ इंग्लैंड है, भारत में आरबीआई है अमेरीका में फेडरल बैेक है ।
ये केंद्रीय बैंक अपने अधीन बैंको के साथ ही Fractional Reserve System को चलाते हैं।
हम एक लोकतांत्रिक देश में रहते है पर बैंकिंग सिस्टम और उसकी प्रणाली में कोई लोकतंत्र नही है । FRS में जो भी नया पैसा बैंक पैदा करती है वो सारा पैसा उधार के रूप में पैदा होता है और उधार चुकाने पर खतम हो जाता है ।
FRS को समझना बहुत आसान है । मान लो रामू ने 100 रूपये (पेपर नोट) बैंक ने जमा किये । तो बैंक उसमें से 5 रूपये रख लेती है बाकी 95 (डिजिटल मनी) वो किसी को लोन वो श्याम को देती है । श्याम इस लोन से मीरा से सामान लेता है, मीरा बैंक में ही 95 लाकर जमा कर देती है ।
मीरा ने जो पैसे बैंक में डाले वो बैंक के ही थे जिसे हम बैंक मनी बोलते है, दिक्कत यहाँ से चालू होती है जब बैंक इस 95 को भी नई जमा पूँजी मान लेती है और फिर से इसे लोन के लिये आगे कर देती है । इस बार बैंक 95 में से 4.25 अपने पास रख लेती है और बाकी के 90.75 रूपये फिर से लोन देती है । इस प्रकार बैंक ने दो बार लोन देकर 100 रूपये के 100 + 95 + 90.75 = 285.75 रूपये दिखा दिये । बार बार इसी चक्र को बरा बार चलाया जाये तो होते है 2000 रूपये ।
इस प्रकार जब भी बैंक में 100 असली पैसा जमा होने पर बैंक 2000 रूपया बना देती है । 1900 रूपया उधार के रूप में बनाया गया है । ये 1900 रूपया डीजीटल मनी है जो बैंक अपनी मनमानी तरीके से बाँटती है ।
भारत की सारी जनता उधार को कभी भी नही चुका सकती क्योंकि उधार ब्याज के साथ चुकाना पड़ता है और सारी जनता को ब्याज के साथ चुकाने के लिये जितनी डिजिटल मनी है उससे ज्यादा मनी लानी पडे़गी । फिर से नई मनी (रूपया) बनाना पडे़गा । बैंक नया रूपया उधार के रूप में ही बनाता है तो ये कभी उधार चुकने वाला नहीं है ।
आसानी से समझने के लिये पूरी दुनिया को एक गाँव मान ले, और सोने के सिक्कों को रूपया । अब मान लो पूरी दुनिया का सोना 100 किलो ही है जो सारा का सारा उधार के रूप में बँट गया तो पूरी जनता को 110 किलो सोना लौटाना पडे़गा जो की संभव ही नहीं है ।
जैसा कि मैने बताया की जब भी बैंक नया लोन देते हैं वो डिजिटल मनी के रूप में नया पैसा पैदा करता है, इसके अलावा एक सच ये भी है की जब लोन चुकाया जाता है तो अर्थव्यवस्था से खतम भी होता है । अगर भारत की जनता किसी जादू से लोन चुका दे तो भारत की 95% पूँजी खतम हो जायेगी ।
इसी बैंकींग सिस्टम ने ही अमीरों को महाअमीर और गरीबों को महागरीब बना दिया है । बडे हुये हाउसिंग प्राईज का जिम्मेदार भी यही सिस्टम है ।
(3)भविष्य
अब धीरे धीरे हमारा सिस्टम आखरी और छठे कदम की ओर जा रहा है । इस सिस्टम में जिस तरीके से सोने चाँदी के सिक्के गायब कर दिये गये उसी तरीके से पेपर नोट भी गायब कर दिये जायेंगे । हमें एक कैशलेश (cashless) समाज की ओर धकेला जा रहा है । जहाँ पर अमीरों और गरीबों के बीच की खाई कभी नही भर पायेगी । सारी अर्थव्यवस्था की नकेल बैंकर माफिया लोग के हाथ में रहेगी।
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