Friday, April 26, 2024
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सीसीपी से जुड़ी चीनी तकनीकी कंपनियों का भारत में घुसपैठ की कोशिश; मुक़ाबले की चुनौती?

चीन की बड़ी तकनीकी कंपनियां दुनिया की सबसे बड़ी और सबसे इनोवेटिव कंपनियों में से एक हैं. तेज़ गति से इनकी बढ़त ने दुनिया भर में लोगों को हैरान कर दिया है. उभरते हुए बाज़ार में इनकी मौजूदगी ने विकासशील देशों को अत्याधुनिक तकनीक हासिल करने और दुनिया के साथ बेहतर संपर्क स्थापित करने में मदद की है, लेकिन इसकी एक क़ीमत भी इन देशों को चुकानी पड़ी है. चीन की बड़ी तकनीकी कंपनियों और चीन की कम्युनिस्ट पार्टी (सीसीपी) के बीच नज़दीकी काम-काजी संबंध को कई देशों के द्वारा राष्ट्रीय सुरक्षा को ख़तरे के तौर पर देखा जाता है. ये तकनीकी कंपनियां सीसीपी के सामरिक और भू-राजनीतिक हितों की सेवा करने में पर्याप्त रूप से सक्षम हैं. सीसीपी किस हद तक साइबर स्पेस के क्षेत्र में अपना नियंत्रण कायम करना चाहती है, इसका सबूत साइबर एडमिनिस्ट्रेशन ऑफ़ चाइना (सीएसी) के आधिकारिक बयान से मिलता है. सीएसी के मुताबिक़ साइबर स्पेस में सीसीपी के विचार हमेशा सबसे मज़बूत आवाज़ होनी चाहिए और इंटरनेट गवर्नेंस में चीन के सुझाव पर अंतर्राष्ट्रीय सर्वसम्मति बननी चाहिए. इसे “अलीबाबा, टेनसेंट, बाइडू, हुआवै जैसी इंटरनेट कंपनियों के वैश्विक असर” को बढ़ाकर हासिल किया जा सकता है.

सीसीपी के संविधान के अनुसार किसी भी कारोबार, जहां तीन या उससे ज़्यादा पूर्णकालिक पार्टी कार्यकर्ता हैं, उसके लिए ये ज़रूरी है कि वो पार्टी का एक संगठन बनाए और पार्टी गतिविधियों की मंज़ूरी दे. बड़ी तकनीकी कंपनियां इस नियम के मामले में अपवाद नहीं हैं. वास्तव में इन कंपनियों में सबसे ज़्यादा आंतरिक सीसीपी कमेटी हैं जिनका मक़सद पार्टी को लेकर वफ़ादारी को बढ़ाना है. हुआवै में 300 पार्टी शाखाएं हैं जबकि अलीबाबा में 200 और टेनसेंट में क़रीब 100. इसके अलावा अलीबाबा के जैक मा, बाइडू के रॉबिन लो, टेनसेंट के पोनी मा और शाओमी के ली जुन सीसीपी के सदस्य हैं.

चीन की बड़ी तकनीकी कंपनियों और सीसीपी के बीच एक-दूसरे पर निर्भरता का संबंध है. सीसीपी ने इन कंपनियों को पूंजी मुहैया कराया, शुरुआती दिनों में इन्हें सरकारी ठेके दिलाए, विदेशी कंपनियों से मुक़ाबले को ख़त्म करने के लिए विदेशी कंपनियों पर पाबंदी लगाई

चीन की बड़ी तकनीकी कंपनियों और सीसीपी के बीच एक-दूसरे पर निर्भरता का संबंध है. सीसीपी ने इन कंपनियों को पूंजी मुहैया कराया, शुरुआती दिनों में इन्हें सरकारी ठेके दिलाए, विदेशी कंपनियों से मुक़ाबले को ख़त्म करने के लिए विदेशी कंपनियों पर पाबंदी लगाई या उन पर शर्तें थोपी, उन्हें आगे बढ़ने में मदद की और अब इसलिए इन कंपनियों के लिए समय है कि वो पार्टी के सामरिक लक्ष्यों से ख़ुद को जोड़कर उस एहसान का कर्ज़ चुकाएं. बड़ी तकनीकी कंपनियों और सीसीपी के आपस में इस तरह मिलने-जुलने की जड़ में है राष्ट्रपति शी जिनपिंग के द्वारा शुरू किया गया प्रमुख कार्यक्रम “सैन्य नागरिक मेल (मिलिट्री सिविल फ्यूज़न या एमसीएफ)”. एमसीएफ का मक़सद 2049 तक चीन को तकनीकी तौर पर आधुनिक सैन्य शक्ति के रूप में विकसित करना है. इसके लिए चीन के सरकारी रिसर्च संस्थानों, व्यावसायिक कंपनियों, सैन्य और औद्योगिक सुरक्षा के सेक्टर के बीच दूरी को कम करके मदद करना है. एमसीएफ की रणनीति को लागू करना न सिर्फ़ देसी तकनीक बल्कि चीन के बाहर की दोहरे उपयोग की महत्वपूर्ण तकनीक हासिल करने पर भी निर्भर है. बाहर की तकनीक हासिल करने के लिए क़ानूनी या ग़ैर-क़ानूनी तरीक़े, जिनमें साइबर चोरी, जासूसी और ग़लत ढंग से विदेशी कंपनियों को ख़रीदना, शामिल हैं. इसलिए इन बड़ी तकनीकी कंपनियों की भूमिका डाटा, तकनीकी और स्टार्टअप्स को हासिल करने में और भी महत्वपूर्ण हो जाती है.

चीन के राष्ट्रीय खुफ़िया क़ानून 2017 के मुताबिक़ चीन की कंपनियों को सरकार के साथ डाटा साझा करना क़ानूनन ज़रूरी है. क़ानून में ये भी कहा गया है कि “राष्ट्रीय खुफ़िया काम-काज में समर्थन, सहायता और सहयोग करने वाले व्यक्तियों और संगठनों की सुरक्षा सरकार करेगी.”

सीसीपी के द्वारा “पुनर्शिक्षा” कैंप में वीगर मुसलमानों पर हुआवै की निगरानी और फेस डिटेक्शन सिस्टम के इस्तेमाल की कई ख़बरें हैं. वास्तव में हुआवै ने एक फेस डिटेक्शन सॉफ्टवेयर विकसित किया है जो ज़ुल्म के शिकार इस अल्पसंख्यक समूह की जातीयता के आधार पर किसी सदस्य की पहचान करने पर प्रशासन को सतर्क कर देगा.

सीसीपी निगरानी के लिए बड़ी तकनीकी कंपनियों का इस्तेमाल न सिर्फ़ चीन में कर रहा है बल्कि विदेशों में भी. इथियोपिया में हुआवै के ज़रिए अफ्रीकी यूनियन के मुख्यालय में निगरानी और डाटा चोरी की ख़बरें हैं. हुआवै के द्वारा ये और दूसरी दुर्भावनापूर्ण गतिविधियों ने अमेरिका और दूसरे देशों में हुआवै के 5जी उपकरणों को पहले ही काली सूची में डाल दिया है.

इसी तरह टेनसेंट के स्वामित्व वाले वीचैट के मैसेज पर भी निगरानी रखी जाती है और सीसीपी के मानक के ख़िलाफ़ होने पर अक्सर वीचैट के मैसेज को डिलीट भी कर दिया जाता है भले ही वो चीन के बाहर क्यों न किए गए हों. कनाडा वेनझाऊ सोसायटी पर पहले ही वीचैट ऐप के ज़रिए कनाडा के चुनाव में दखल देने का आरोप लग चुका है.

चीन न सिर्फ़ इन बड़ी तकनीकी कंपनियों के इस्तेमाल के ज़रिए दुनिया पर नज़र रखता है बल्कि निगरानी उपकरणों के इस्तेमाल के द्वारा भी. इसका एक अच्छा उदाहरण माइक्रोचिप के इस्तेमाल के द्वारा कई अमेरिकी कंपनियों में घुसपैठ है.

चीन न सिर्फ़ इन बड़ी तकनीकी कंपनियों के इस्तेमाल के ज़रिए दुनिया पर नज़र रखता है बल्कि निगरानी उपकरणों के इस्तेमाल के द्वारा भी. इसका एक अच्छा उदाहरण माइक्रोचिप के इस्तेमाल के द्वारा कई अमेरिकी कंपनियों में घुसपैठ है. इनमें से कई अमेरिकी कंपनियां सरकारी रक्षा ठेके में शामिल थीं. सुपर माइक्रो कंप्यूटर्स इनकॉरपोरेशन सैन होज़े आधारित एक कंपनी है जो सर्वर के मदरबोर्ड के पुर्जे जोड़ती है जिसका इस्तेमाल अमेज़न, एप्पल, एलीमेंटल, इत्यादि जैसी कई कंपनियां करती हैं. सुपर माइक्रो कंप्यूटर्स चीन में अलग-अलग कंपनियों को उत्पादन का काम देती है. मदरबोर्ड सर्वर का ऑडिट करते समय ये पाया गया कि उनमें एक माइक्रोचिप लगाकर गड़बड़ी की गई है. माइक्रोचिप का डिज़ाइन और उत्पादन संभवत: चीन की सैन्य यूनिट के द्वारा किया गया था और इसका आकार लगभग किसी पेंसिल की नोक के बराबर था. माइक्रोचिप में किसी हमले के लिए नेटवर्क, मेमोरी और प्रोसेसिंग की क्षमता थी और इन्हें चीन में उत्पादन के दौरान सर्वर में जोड़ा गया था और उसके बाद अमेरिका भेजा गया था. चीन के द्वारा अमेरिकी कंपनियों पर चालाकी से किया गया ये हमला बेहद आधुनिक हार्डवेयर हमलों में से एक था.

भारत भी चीन की सरकार के द्वारा प्रायोजित हैकर्स और बड़ी तकनीकी कंपनियों के साइबर हमलों, डाटा चोरी और औद्योगिक जासूसी से बचा हुआ नहीं है. एक ताज़ा खुफ़िया रिपोर्ट के मुताबिक़ चीन की सरकार के द्वारा एक सुनियोजित योजना में अलीबाबा के कम-से-कम 72 क्लाउड सर्वर भारतीय डाटा को चीन भेज रहे थे. ये जानकारी उस वक़्त आई है जब चीन के द्वारा पीएम नरेंद्र मोदी समेत 10,000 महत्वपूर्ण हस्तियों पर निगरानी की ख़बर है. पिछले महीने ही चीन की सरकार के समर्थित हैकर्स ने भारत बायोटेक और सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया के सर्वर में घुसपैठ करके भारत की कोविड-19 वैक्सीन निर्माताओं की बौद्धिक संपदा चुराने को कोशिश की. ये ख़बर भी है कि चीन की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) की यूनिट 61938, एपीटी22 समूह ने परमाणु ऊर्जा प्लांट, वित्तीय संस्थानों, रेलवे और बैंकिंग समेत महत्वपूर्ण भारतीय इंफ्रास्ट्रक्चर को निशाना बनाया. ये सूची लंबी है लेकिन एक तथ्य बरकरार है कि जिन तकनीकी कंपनियों की शुरुआत चीन में हुई है या जिन कंपनियों पर बड़ा नियंत्रण चीन का है, उन पर भरोसा नहीं किया जा सकता है. चीन की कंपनियां लगातार सीसीपी और पीएलए के संपर्क में हैं और उन्हें अनुरोध के मुताबिक़ जानकारी मुहैया कराती हैं.

जैसा कि इन दिनों कहा जाता है डाटा तेल की तरह क़ीमती है और चीन की कंपनियां वहां की सरकार के आदेश पर काम करने में लगी हुई हैं. सराहनीय ढंग से भारतीय सरकार ने वीचैट, पबजी (टेनसेंट), यूसी ब्राउज़र (अलीबाबा) और टिकटॉक (बाइटडांस) समेत चीन के 267 ऐप पर पाबंदी लगा दी. ये ऐप डाटा हासिल करने में लगे हुए थे और भारत की संप्रभुता और अखंडता के लिए ख़तरा बन गए थे. भारत ने कुछ समय पहले हुआवै पर भी 5जी ट्रायल में हिस्सा लेने पर पाबंदी लगा दी. लेकिन ये कंपनियां दूसरे रास्तों का इस्तेमाल कर भारत में आने की कोशिश कर रही हैं. पिछले दिनों पबजी मोबाइल को बैटलग्राउंड्स मोबाइल इंडिया के नाम से फिर से शुरू करने का ऐलान किया गया. क्राफ्टऑन नाम की जो कंपनी इसे भारत में ला रही है, उसमें टेनसेंट दूसरी सबसे बड़ी हिस्सेदार है.

भारत ने कुछ समय पहले हुआवै पर भी 5जी ट्रायल में हिस्सा लेने पर पाबंदी लगा दी. लेकिन ये कंपनियां दूसरे रास्तों का इस्तेमाल कर भारत में आने की कोशिश कर रही हैं.

चीन से डिजिटल ख़तरा सिर्फ़ इन ऐप के रूप में नहीं है बल्कि भारतीय स्टार्टअप्स में चीन के निवेश के विस्तार के आधार पर भी ख़तरा मंडरा रहा है. भारतीय स्टार्टअप्स में चीन की कंपनियों का निवेश 4 अरब डॉलर तक है. 30 यूनिकॉर्न (1 अरब डॉलर वैल्यूएशन वाली कंपनियां) में से 18 में चीन की कंपनियों का निवेश है. भारतीय स्टार्टअप बाज़ार में चीन की कंपनियों का भारी निवेश भारतीय कंपनियों की वित्तीय स्वतंत्रता के लिए ख़तरा है. कुछ समय पहले भारत ने उन देशों की कंपनियों के लिए निवेश का ऑटोमैटिक रूट बंद कर दिया जिनके साथ भारत की ज़मीनी सीमा लगती है. इसके बाद भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड इस बात की तहक़ीक़ात कर रहा है कि क्या एंट ग्रुप (अलीबाबा की वित्तीय शाखा) का पेटीएम पर कोई ‘नियंत्रण’ है. ये स्वागत योग्य क़दम है क्योंकि चीन की कंपनियों के द्वारा भारतीय स्टार्टअप्स को ग़लत तरीक़े से हासिल करने की बात सब जानते हैं.

भारत के क़दम के बाद भारतीय स्टार्टअप्स ने अपने निवेश के विकल्पों को अलग-अलग किया है और अब इनमें जापान, अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया और मिलते-जुलते विचारों वाले देशों का निवेश हो रहा है. इसी तरह भारतीय निवेशकों ने भी हालात की गंभीरता को देखते हुए अब अलग-अलग भारतीय स्टार्टअप्स में निवेश करना शुरू किया है. हमें ‘आत्मनिर्भरता’ की ज़रूरत है ख़ासतौर पर उन स्टार्टअप्स में जो महत्वपूर्ण दोहरे उपयोग की तकनीक के क्षेत्र में काम कर रहे हैं. भारतीय स्टार्टअप्स को फंड मुहैया कराकर और नियमों और कर के ढांचे को आसान बनाकर उन्हें बढ़ावा देने से स्टार्टअप्स के फलने-फूलने के लिए मज़बूत आधार को बनाने में मदद मिलेगी. इनोवेशन के लिए एक अच्छा माहौल, ज़्यादा रिसर्च और सरकार की तरफ़ से विकास का अनुदान, नई और उभरती तकनीक जैसे आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, क्वॉन्टम कम्प्यूटिंग, इत्यादि के लिए एक दीर्घकालीन राष्ट्रीय नीति की सरकार से ज़रूरत है ताकि चीन की बड़ी तकनीकी कंपनियों और सीसीपी के डिजिटल हमले के ख़तरे से बचाया जा सके. हमें ये समझने की ज़रूरत है कि सामरिक और महत्वपूर्ण तकनीक खुले बाज़ार से उभर कर आएगी जबकि अतीत में सैन्य तकनीक ऑर्डनेंस फैक्ट्री और रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (डीआरडीओ) का अधिकार क्षेत्र था. हमें, एक देश के रूप में, निश्चित रूप से होशियार और पर्याप्त दूरदर्शी होना चाहिए जिससे कि इन तकनीकों के शुरुआती दौर में इनका इस्तेमाल किया जा सके और उन्हें विकसित कर हम किसी भी दुश्मन से ‘आत्मनिर्भरता’ की रक्षा कर सकें.

चित्र Getty के सौजन्य से
साभार https://www.orfonline.org/hindi/ से

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