Saturday, April 27, 2024
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दरमानी लाल के रिंगाल से बनी डिज़ायनों का जलवा

उम्र के जिस पडाव पर अमूमन लोग घरों की चाहरदीवारी तक सीमित होकर रह जाते हैं वहीं सीमांत जनपद चमोली की बंड पट्टी के किरूली गांव निवासी 63 वर्षीय दरमानी लाल जी इस उम्र में हस्तशिल्प कला को नयी पहचान दिलाने की मुहिम में जुटे हुए हैं। वे विगत 40 सालों से रिंगाल के विभिन्न उत्पादों को आकार दे रहें हैं। रिंगाल के बने कलमदान, लैंप सेड, चाय ट्रे, नमकीन ट्रे, डस्टबिन, फूलदान, टोकरी, टोपी, स्ट्रैं सहित विभिन्न उत्पादों को इनके द्वारा आकार दिया गया है। आज इनके द्वारा बनाए गए उत्पादों का हर कोई मुरीद हैं। कई जगह ये रिंगाल हस्तशिल्प के मास्टर ट्रेनर के रूप में लोगों को ट्रेनिंग दे चुके हैं।

उत्तराखंड में वर्तमान में करीब 50 हजार से अधिक हस्तशिल्पि हैं जो अपने हुनर से हस्तशिल्प कला को संजो कर रखें हुयें है। ये हस्तशिल्पि रिंगाल, बांस, नेटल फाइबर, ऐपण, काष्ठ शिल्प और लकड़ी पर बेहतरीन कलाकरी के जरिए उत्पाद तैयार करते आ रहें हैं। लेकिन बाजार में मांग की कमी, ज्यादा समय और कम मेहनताना मिलने की वजह से युवा पीढ़ी अपनी पुश्तैनी व्यवसाय को आजीविका का साधन बनाने में दिलचस्पी कम ले रही है। परिणामस्वरूप आज हस्तशिल्प कला दम तोडती और हांफती नजर आ रही है।

चमोली जनपद के कुलिंग, छिमटा, पज्याणा, पिंडवाली, डांडा, मज्याणी, बूंगा, सुतोल, कनोल, मसोली, टंगणी, बेमरू, किरूली गांव हस्तशिल्पियों की खान है। इन गांवों के लोगों की आजीविका का मुख्य साधन हस्तशिल्प है। किरूली गांव के 63 वर्षीय दरमानी लाल विगत 40 सालों से रिंगाल का कार्य करते आ रहें हैं। बकौल दरमानी लाल जी रिंगाल की टोकरी और अन्य उत्पादों की जगह अब प्लास्टिक नें ले ली है। पहाडो में पलायन की वजह और गांव में खेती की तरफ लोगों का रूझान खत्म हो गया है जिससे रिंगाल के उत्पादों की मांग घट गयी है। परिणामस्वरूप आज हस्तशिल्प व्यवसाय पर भी संकट गहरा गया है। जिस कारण अब हस्तशिल्प कला से परिवार का भरण पोषण करना बेहद कठिन हो गया है। लोगों को मजबूरन हस्तशिल्प की जगह रोजगार के अन्य विकल्प ढूंढने पड रहे हैं।

वहीं अपने पिताजी दरमानी लाल जी के साथ रिंगाल के उत्पादों को तैयार कर रहे राजेन्द्र कहते हैं कि अंतरराष्ट्रीय बाजार में रिंगाल के उत्पादों की भारी मांग है परंतु हस्तशिल्पियों की तस्वीर नहीं बदल पाई है। जबकि हस्तशिल्प रोजगार का बड़ा साधन साबित हो सकता है। यदि हस्तशिल्प उद्योग और हस्तशिल्पियों को बढ़ावा और प्रोत्साहन मिले तो पहाड़ की तस्वीर बदल सकती है। बाजार की मांग के अनुरूप हमें नये लुक और डिजाइन पर फोकस करना होगा। पीपलकोटी की आगाज फैडरेशन जरूर इस दिशा में हस्तशिल्पियो को समय समय पर प्रशिक्षित करती रहती है।

वास्तव में देखा जाए तो हमारी बेजोड हस्तशिल्प कला और इनको बनाने वाले हुनरमंदो का कोई शानी नहीं है। आवश्यकता है ऐसे हस्तशिल्पियों को प्रोत्साहित करने और बाजार उपलब्ध कराने की। 20 दिसम्बर से 26 दिसम्बर के मध्य आयोजित होने वाले बंड विकास मेले में आपको दरमानी लाल जी और उनके पुत्र राजेन्द्र के बनाये रिंगाल के उत्पादों को देखने और खरीदने का अवसर मिलेगा। अगर आपको इनके बनाये रिंगाल के उत्पाद पसंद हैं तो आप इनसे सम्पर्क कर सीधे फोन पर डिमान्ड भी दे सकते हैं।
राजेंद्र 87550 49411

संस्कार परिवार देहरादून द्वारा चलाए गए स्वरोजगार और रिवर्स पलायन अभियान के अंतर्गत आध्यात्मिक गुरु आचार्य विपिन जोशी उनको सम्मानित करने जल्दी ही उनके गांव जाएंगे।
आपके आसपास भी अगर इस प्रकार की प्रतिभाएं हैं जो कुछ प्रेरणा दायक कार्य कर रही है तो आप निम्न नंबरों पर उसका विवरण व्हाट्सएप करें।
9149304654
9412053749

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