माता कई मायनों में हम सबकी माता है”।
परिवार समाज और राज्य के प्राथमिक आवश्यक इकाई होता है ,परिवार में संस्कार का उन्नयन उन्हें आदर्श व्यक्तित्व का निर्माण करता है ।व्यक्ति ,संगठन और व्यक्तित्व का निर्माण संयमित व सांस्कृतिक अवयवों से होता है ;व्यक्तित्व का प्रबल शील अवयव चरित्र है, जिस देश(राज्य) व राष्ट्र – राज्य के मजबूती का आधार उन्नत व अनुशासित चरित होता है। नागरिक समाज सब व्यक्ति के उपादेयता के कारण होता है, नागरिक समाज का निर्माण सामूहिक कार्य के द्वारा होता है; क्योंकि समाज में आवेश और भावनाएं होती हैं ।
राष्ट्रवादी विचारधारा, उदारवादी विचारधारा और गांधीवादी विचारधारा की उपादेयता त्याग ,समर्पण और सेवाभाव के द्वारा ही हुआ है ; क्योंकि इन तत्वों की उपस्थिति व्यक्ति को सफल व सक्षम बनाती है। नागरिक समाज का आवश्यक तत्व आत्मीयता एवं परस्पर सामंजस्य की अवस्था है, आत्मीयता से व्यक्ति में अपनापन व अपनत्व का भाव उत्पन्न होता है, जिससे वह सकारात्मक ऊर्जा एवं सकारात्मक कार्य योजना के लिए उर्जित होता है। भारतवर्ष का सनातन संस्कृति एवं सांस्कृतिक पुनर्जागरण का मौलिक उद्देश्य मानवता की सेवा, मानवता के परस्पर सामंजस्य का भाव उत्पन्न करना है । वही समाज और संस्कृति सफलता को प्राप्त करने में फलीभूत हुई हैं जिनमें आत्मीयता व परस्पर सामंजस्य के तत्व निहित रहे है। जो महान आध्यात्मिक संत व व्यक्तित्व अपने अल्प काल में समाज में राष्ट्रीय चेतना का संवाहक बने उनमें चारित्रिक सौंदर्य (काम, क्रोध, मद एवं लोभ पर विजय प्राप्त करने की क्षमता थी) व आत्मीयता (जाति – छुआछूत एवं उच्च – नीच के दुराग्रह से मुक्त रहें हैं।
जिस समाज में सद्भावना व सत्कर्म का भाव पाया जाता है वह समाज व्यक्ति को परिवार से जोड़ता है। 1789 की फ्रांसीसी क्रांति का आधारभूत तत्व समानता, स्वतंत्रता एवं बंधुत्व का अवयव था अर्थात सभी व्यक्ति समान है । भारत का संविधान(भू – भागकी सर्वोच्च विधि व ईश्वर /नियति का पदार्पण है) ने सभी व्यक्तियों को समान माना है ;अर्थात किसी व्यक्ति को उसके धर्म, जाति ,लिंग रंग और समुदाय के आधार पर विभेद नहीं किया जा सकता है। संविधान सामाजिक, राजनीतिक एवं आर्थिक समानता प्रदान करता है जिससे समाज में सामाजिक सौहार्द एवंआत्मीय एकाकार का भाव उत्पन्न हो सके ।इन सदप्रयासों से समाज और राष्ट्र का कल्याण होता है ।आदर्श परिवार बनाने के लिए सबके प्रति स्नेह, त्याग ,समर्पण और सहयोग का भाव होना चाहिए ।वैज्ञानिक तथ्यों से भी स्पष्ट हुआ है कि जिस व्यक्ति के भीतर सब के प्रति स्नेह ,सबके प्रति त्याग,सबके प्रति समरसता एवं सहयोग के भाव होते है,उनमें खुशी के हार्मोन का निर्माण होता है जिससे व्यक्ति की सकरात्मकता बढ़ती जाती है।
उपयोगिता वादी एवं सुखवादी अवधारणा के आधार पर भी सिद्ध हुआ है कि अधिकतम व्यक्तियों का अधिकतम सुख में सर्वोत्तम लोक कल्याण है ;एवं अधिकतम सुख की साधना मानवीय कल्याण का आधार है ।
सबको जोड़ कर एवं मिलकर के रहने से समाज और राष्ट्र की शक्ति में वृद्धि होती है ।खंडित समाज व खंडित व्यक्ति एक स्वस्थ समाज और राष्ट्र का निर्माण नहीं सकते है ।समाज व्यक्तियों का वृहद रूप है। व्यक्तियों के उत्तम सोच एवं उत्तम प्रत्यय उत्तम एवं परिपूर्ण समाज का निर्माण करता है। दूसरे के विकास एवं समृद्धि में खुशी महसूस करने व मानवता के प्रति शुभ एवं ऊर्जावान प्रस्तुति होता है ।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ(आरएसएस) ने संपूर्ण संसार को एक परिवार माना है ;इसलिए G- 20 का ध्येय वाक्य ” वसुधैव कुटुंबकम” है ।पूरा संसार एक परिवार है ।उदारीकरण, निजीकरण एवं वैश्वीकरण(LPG) के धारणा में भी संपूर्ण संसार को सीमा बिहिन परिवार माना जा रहा है ,सेवा और तपस्या नि:स्वार्थ भाव से किया जाए ,वही मानव सेवा है। आध्यात्मिक स्तर पर भी कहा गया है कि ईश्वरीय सेवा ही मानव सेवा है अर्थात जनसेवा प्रभु सेवा है। साधन की पवित्रता साध्य की पवित्रता को प्रमाणित करती है।
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