Monday, September 16, 2024
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फ़ैशन को मिली समावेशी पहचान!

सौमिता बसु (बाएं) ने अपनी मां अमिता (मध्य में) के साथ मिलकर ज़येनिका इनक्लूसिव फ़ैशन की शुरुआत की, जिससे कि विक्लांगता और स्वास्‍थ्य चुनौतियों से जूझ रहे लोगों को उनकी ज़रूरत के मुताबिक पोशाकों के विकल्प दिए जा सकें। (फोटोग्राफ साभारः दिगंता गोगोई, सौमिता बसु)

सौमिता बसु समस्याओं को सुलझाने में यकीन करती हैं। सोरियाटिक गठिया के कारण उन्होंने 80 प्रतिशत तक अपनी चलने-फिरने की क्षमता को खो दिया था। उन्होंने पाया कि इस तरह की दीर्घकालिक स्वास्थ्य समस्या और गतिशीलता संबंधी परेशानी लोगों के लिए कई तरह की चुनौतियों को पैदा करती है और उनके पास कपड़ों के मामले में बहुत सीमित विकल्प होते मौजूद होते हैं।

बसु ने विक्लांग लोगों या स्वास्थ्य चुनौतियों से जूझ रहे लोगों को अनुकूलित और सुविधानुसार विकल्प देने के लिए अपनी मां अमिता के साथ मिलकर ज़येनिका इनक्लूसिव फैशन की शुरुआत की। बसु अमेरिकी दूतावास नई दिल्ली के 13 वें नेक्सस स्टार्ट-अप हब के समूह का हिस्सा थीं। ज़येनिका को शुरू करने से पहले उन्होंने 18 वर्षों तक एक अंतरराष्ट्रीय विकास से जुड़ी कर्मी और पत्रकार के रूप में काम किया।

बसु का कहना है, ‘‘मुझे अपनी उम्र के तीसरे दशक की शुरुआत में ही कई तरह की शारीरिक चुनौतियों ने घेर लिया, जिसके कारण मेरे लिए दूसरों की मदद के साथ भी बिना दर्द के कपड़े पहनना नामुमकिन सा हो गया। इस सूरत में मैंने अपने शरीर के लिहाज से विशेष रूप से तैयार किए गए कपड़ों की तलाश शुरू कर दी। लेकिन ऐसे कपड़े कहीं भी नहीं थे। यही वह कारण था जिसके कारण मैं इस कमी को पाटने के लिए प्रेरित हुई।’’

ज़येनिका की उत्पाद शृंखला में, उदाहरण के लिए, पुरुषों और महिलाओं के लिए ऐसे पतलून शामिल हैं, जिनमें बांधने-खोलने की आसान व्यवस्था होती है और ये देखने में अच्छे और आरामदायक भी होते हैं, फिर चाहे कोई खड़ा हो या फिर व्हील चेयर पर हो। बसु के अनुसार, ‘‘हमारे उत्पाद शरीर की बनावट और उसकी विशिष्ट जरूरतों के अनुसार डिजाइन और अनुकूलित किए गए हैं जिसके कारण बिना किसी दर्द के तेजी के साथ कपड़ों को पहना जा सकता है। वे आपके शरीर को अपने में फिट करने की दृष्टि से डिज़ाइन किए गए हैं।’’ ज़येनिका के कपड़े पूरे भारत में सप्लाई के लिए ऑनलाइन उपलब्ध हैं।

बसु स्पष्ट करती हैं, ‘‘हम पुरानी बीमारियो से पीडि़त लोगों, विक्लांगों और बुजुर्गों के लिए विभिन्न तरह के कैजुअल और फॉर्मल कपड़े तैयार करने पर ध्यान दे रहे हैं। यह उन लोगों के लिए भी है जिन्हें अस्थायी तौर पर विशेष देखभाल की ज़रूरत पड़ जाती है- जैसे कैंसर के इलाज के दौरान, किसी ऑपरेशन के बाद या फिर हड्डी टूटने के बाद की स्थिति जैसी किसी स्थिति में।’’

वह बताती हैं कि ग्राहकों से मिली प्रतिक्रिया बेहद उत्साहित करने वाली हैं। ‘‘उन्होंने प्रतिक्रियाएं दी हैं कि विक्लांगता या स्वास्थ्य संबंधी चुनौतियों का सामना करने वाले लोगों की अक्सर न दिखने वाली परेशानियों की स्थिति को ध्यान में रखते हुए कोई ब्रांड सोच भी रहा है, यह देख कर अच्छा लगता है।’’ इस तरह की आबादी के लिए अक्सर कपड़ों के विकल्प में कार्यात्मकता और अच्छा दिखने की चाहत पर ध्यान नहीं दिया जाता।

एक घटना को साझा करते हुए बसु कहती हैं, ‘‘26 वर्षीय एक युवती ने हमें लिखा कि वह हमारे कपड़े पहनने के बाद स्टाइलिश महसूस करती हैं। और उन्हें इस बात की चिंता नहीं सताती कि घर से बाहर रहने पर वह कैसे शौचालयों का इस्तेमाल कर पाएंगी। इनके कारण उन्हें स्वतंत्र रूप से खाने-पीने की आजादी मिली है। यह सब व्हीलचेयर इस्तेमाल करने वाले लोगों की ज़रूरतों के मुताबिक बने कपड़ों के कारण संभव हो पाया।’’

बसु का कहना है कि, उन्हें नेक्सस का प्रशिक्षण कार्यक्रम बहुत मददगार लगा। वह कहती हैं, ‘‘नेटवर्किंग और मदद से उनके स्टार्ट-अप के लिए हरके चीज़ संभव हो सकी।’’

चुनौतियां फिर भी रह जाती हैं। बसु स्पष्ट करती हैं, ‘‘यह एक बड़ी विडंबना है, जो लोगों को सक्रिय रूप से जुड़ने और अवसरों का लाभ उठाने से रोकती है….अकेले भारत में ही लाखों लाख लोग शारीरिक चुनौतियों से जूझ रहे हैं। लेकिन उनके जीवन की गुणवत्ता को काफी हद तक सुधारा जा सकता है।’’ ज़येनिका के काम और मां-बेटी की टीम के अथक प्रयासों को धन्यवाद दिया जाना चाहिए कि सुधार का यह काम बदस्तूर जारी है।

(ट्रेवर लॉरेंस जॉकिम्स, न्यू यॉर्क यूनिवर्सिटी में लेखन, साहित्य और समकालीन संस्कृति पढ़ाती हैं )

साभार -https://spanmag.com/hi से

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