बात करीब २ साल पहले की है | नवरात्रि का पहला दिन था | छुट्टियों में कॉलेज से घर आ रहा था | आगरा रेलवे स्टेशन से ऑटो किया ट्रांसपोर्ट नगर तक | शुरुवात में तो सब कुछ ठीक था पर जैसे ही हम कचहरी पहुंचे ड्राईवर ने ऑटो रोक दिया | वैसे तो आगरा अपना घर है | पुरे MG रोड पर शायद ही एसी कोई जगह होगी जहाँ जरूरत के वक्त मदद न मिल पाए | पर तमिलनाडु एक्सप्रेस आगरा ४ बजे पहुँचती है | उस समय थोडा सा अँधेरा होता है | तो मेरा डरना स्वाभाविक था |
मैं कुछ कर पाता इससे पहले ड्राइवर ऑटो से उतरा और वहां चौराहे पर लगी हुई भारत माता की प्रतिमा पर फूल चढ़ाने लगा | प्रसाद चढ़ाकर उसने प्रतिमा की परिक्रमा की और वापस सर नवाकर वापस आ गया | थोडा प्रसाद खुद खाया थोडा मुझे दिया | मैं पहले तो थोडा डरा हुआ था | पर अब आश्चर्यचकित था | मैंने उस भाई से पूछा “ भाई आज नवरात्रि है आप मंदिर भी जा सकते थे | यहाँ आपने पूजा क्यों की ? ये तो भारतमाता हैं दुर्गा मैया थोड़े न हैं | इनकी पूजा क्यों ?”
बाई गॉड क्या दार्शनिकों वाला जबाब दिया उसने मुझे | उसने कहा कि “भैया ये आप क्या कह रहे हो ये तो अपनी भारतमाता है | इसकी जमीं पे अन्न उगता है जो हम लोग खाते हैं | इसी जमीन के अन्दर से पानी निकलता है जो हमारी प्यास बुझाता है | इसी पर हम चलते हैं इसी पर हम रहते हैं इसी पर हम सोते हैं | ये तो अपनी सबसे बड़ी माँ है | सबसे पहले पूजा का अधिकार इसी का है | अपनी दुर्गा मैया तो यही भारत माता है भाई | ”
मैंने राष्ट्रवाद पर भारतमाता की अवधारणा पर बड़े बड़े लेखको के व्याख्यान सुने हैं | पर जिन सरल शब्दों में उस ऑटो वाले ने मुझे भारत माता के बारे में बताया मैं हतप्रभ था | बड़े बड़े ज्ञानियों के लम्बे लम्बे भाषण मुझे उसके भोले शब्दों के आगे मुझे बौने लगे | आज जब कभी भी मैं नवरात्रि माँ की पूजा करता हूँ मुझे वो ऑटोवाला और उसकी भारतमाता की पूजा याद आती है | उसका नाम संजय था | अगर आपको कहीं मिले तो उन्हें भारत माता की जय कहना |