नई दिल्ली। �गैर सरकारी संगठन कारितास इंडिया ने साथी गैर सरकारी संगठन चेतनालय के साथ मिलकर पोप4प्लेनेट अभियान की शुरूआत की है। पोप4प्लेनेट कार्यक्रम की शुरूआत और द पोप एनसायक्लिकल का स्वागत करने हेतु, भाई वीर सिंह मार्ग स्थित चेतनालय में एक कार्यक्रम का आयोजन किया गया जहां संगठन के भागीदारों, सदस्यों आदि ने एक शांति मार्च निकाला और वृक्षारोपण कार्यक्रम के माध्यम से पर्यावरण बचाने का संदेश दिया।
मौके पर कारितास इंडिया के उपनिदेशक फादर पाॅल मूंजली ने बताया कि एन्सायक्लिकल में एक पूरा अध्याय ‘पारिस्थितिक संकट’ पर ‘प्रदूषण का उल्लेख’ करने को समर्पित है। पोप4प्लेनेट अभियान इस मुद्दे का पूरा समर्थन करता है। उन्होंने बताया कि आने वाले महीनों में, कारितास इंडिया भारत में नेटवर्क की चिंताओं और पोप के पत्र में वर्णित सम्भावनाओं को बढ़ाने के लिए कई अन्य संगठनों के साथ हाथ मिलायेगा।
कारितास इंडिया के कार्यकारी निदेशक फादर फ्रेडरिक डिसूजा ने कहा कि अभियान भले ही कोई धर्म शुरू करे लेकिन यह सार्वभौमिक है। एन्सायक्लिकल एक सार्वभौमिक एजेंडे पर पर्यावरण न्याय को सम्बोधित करता है और सभी लोगों के लिए खुला है।�
पोप4प्लेनेट अभियान, 4-5 वर्ष की अवधि में कम से कम एक मिलियन पौधे लगाने की योजना रखता है। एक मिलियन पेड़ कम से कम 2.6के.जी. मिलियन किलो कार्बन डाई आॅक्साइड से लड़ने के लिए पर्याप्त स्वच्छ वायु का उत्पादन कर सकती है।
‘पोप फाॅर प्लेनेट’ अभियान एक मानव परिवार निर्माण के लिए कारितास महासभा विषय 2019 पर कार्य करेगा। जिसे बनाए रखने के लिए कोपेनहेगन में जलवायु परिवर्तन पर प्रस्तावित यूनाइटेड नेशनल फ्रेमवर्क कन्वेंशन (यूएनएफसीसीसी) के अनुरूप धरती के नीचे 2 डिग्री सेल्सियस तापमान बनाये रखने में वनीकरण गतिविधियों (विभिन्न प्रजातियों के 1 लाख पेड़) पर विशिष ध्यान केन्द्रित करेगी।
लोगों में चर्च के प्रति मार्गदर्शन बढ़ाने के उच्चतम स्तरीय द पपल एन्साइक्लीकल, जिसे कल वेटिकन सिटी में जारी किया गया है जहां परम पूज्य पाॅप फ्रांसिस, ‘अपने समान घर की देखभाल’ और असमानता, जो कि जलवायु परिवर्तन और गरीबी जैसी समस्याओं को बढ़ावा देती है को समाप्त करने का नैतिक आह्वान किया है। यह पहला ही अवसर था जहां पहली ही बार उच्च स्तरीय पपल टीचिंग को विशेष रूप से पारिस्थितिकी (इकोलाॅजी) के लिए समर्पित किया गया है।
वर्तमान में, कारितास इंडिया पहले से ही अनुकूली खेती प्रथाओं के एक प्रमुख मेजबान हैं और यूरोपीय संघ समर्थित परियोजना में बांग्लादेश, भारत और नेपाल (सैफ-बिन) को मजबूत बनाने के अनुकूली खेती में कदम बढ़ा चुके हैं।
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