Wednesday, May 8, 2024
spot_img
Homeमीडिया की दुनिया सेमाँ-बाप और बच्चे किसी अस्पताल में नहीं यातना गृह में थे

माँ-बाप और बच्चे किसी अस्पताल में नहीं यातना गृह में थे

गोरखपुर के बीआरडी मेडिकल कॉलेज और अस्पताल में जिन माता-पिता के बच्चों ने उनके सामने दम तोड़ दिया उनका कहना है कि उन्हें डॉक्टरों के सामने घंटों गिड़गिड़ाना पड़ा कि चलकर हमारे बच्चो को देख लें। इन अभिभावकों के अनुसार उन्हें दवाइयों, रूई और ग्लूकोज इंजेक्शन का इंतजाम खुद करना पड़ा। अभिभावकों ने बताया कि जब तक उनके बच्चे जीवित थे वो उनके लिए खून का इंतजाम करने के लिए दौड़ रहे थे और जब वो नहीं रहे तो उनके मृत्यु प्रमाणपत्र और पोस्ट-मार्टम के लिए भागना पड़ा।

30 वर्षीय किसान ब्रह्मदेव के जुड़वा बच्चे बीआरडी अस्पताल में भर्ती थे। सात अगस्त को उन्होंने पहली बार ध्या दिया कि अस्पताल के नवजात बच्चों के आईसीयू के बाहर ऑक्सीजन का स्तर बताने वाले इंडीकेटर में उसकी मात्रा कम दिख रही है। ब्रह्मदेव ने इंडियन एक्सप्रेस को बताया, “ऑक्सीजन के तीन स्तर होते हैं- सामान्य, ज्यादा और कम। सात अगस्त को इंडीकेटर में ऑक्सीजन कम दिखा रहा था।” ब्रह्मदेव और उनकी पत्नी सुमन चार दिन पहले ही अपने जुड़वा बेटे-बेटी को अस्पताल में लेकर आए थे। 10 अगस्त को उनके दोनों नवजात बच्चे नहीं रहे। ब्रह्मदेव के अनुसार आठ अगस्त को उन्हें अहसास हो गया था कि कुछ गड़बड़ है। अस्पातल का स्टाफ जिन बच्चों को साँस लेने में तकलीफ हो रही थी उन्हें “एम्बु बैग” की मदद से साँस दे रहा था।

ब्रह्मदेव ने बताया, “अगले ही दिन चार बच्चों की मौत हो गई थी।” ब्रह्मदेव कहते हैं, “कोई भी मां-बाप कोई सवाल नहीं पूछ सकते थे। कोई आईसीयू के अंदर नहीं जा सकता था। हम बाहर खड़ा चुपचाप अपने बच्चों की पीड़ा देखते रहे।” ब्रह्मदेव के अनुसार उन्होंने अस्पताल के नर्सिंग स्टाफ से ऑक्सीजन का स्तर कम होने की शिकायत की लेकिन उनकी बात अनसुनी कर दी गयी। ब्रह्मदेव बताते हैं कि उस दिन तक कुछ बच्चों को ग्लूकोज भी चढ़ाया जा रहा था।

गोरखपुर के बीआरडी अस्पताल में ज्यादातर बच्चों को इंसेफलाइटिस की वजह से भर्ती कराया गया था।

ब्रह्मदेव बताते हैं, “आठ और नौ अगस्त को उन्होंने मुझसे 30 एमएल और 40 एमएल खून लाने के लिए कहा। मैंने ब्लड बैंक जाकर अपना खून देकर बच्चों के लिए खून लिया। मैंने तब भी पूछा कि क्या हुआ लेकिन उन्होंने कोई जवाब नहीं दिया।” ब्रह्मदेव के अनुसार नौ अगस्त को रात आठ बजे उन्हें बताया गया कि उनका बेटा नहीं रहा। उन्होंने उसका शव दिया और उसे ले जाने के लिए कहा। ब्रह्मदेव कहते हैं, “मुझे किसी ने नहीं बताया कि उसकी मौत किस वजह से हुई। मुझे अहसास था कि कुछ गलत हुआ है।” उस दिन अस्पताल में नौ बच्चों की मौत हुई थी जिनमें से छह आईसीयू में भर्ती थे।

ब्रह्मदेव और सुमन की मुश्किल अभी खत्म नहीं हुई थी। बेटे की मौत के बाद वो बेबस अपनी बेटी को मौत से जूझते देखते रहे। ब्रह्मदेव बताते हैं, “स्टाफ एम्बू बैग इस्तेमाल कर रहा था। तब तक सिलिंडर खत्म हो चुके थे। मैंने उसके मुंह से खून निकलते देखा। पूरे एनआईसीयू में केवल एक नर्स और एक डॉक्टर थे।” 10 अगस्त को सुबह 6.30 बजे ब्रह्मदेव की बच्ची को मृत घोषित कर दिया गया। ब्रह्मदेव के अनुसार उनके पास प्राइवेट अस्पताल में अपने बच्चों को भर्ती कराने के लिए सात हजार रुपये नहीं थे इसलिए वो उन्हें बीआरडी मेडिकल कॉलेज लाए थे। ब्रह्मदेव को बीआरडी अस्पताल में किसी भी तरह की मुफ्त दवाएं नहीं मिलीं। वो कहते हैं, “उनके पास रूई और सीरींज जैसी चीजें भी नहीं थीं। वो हमेशा मुझे ये सब लाने को कहते थे। मैंने कैल्शियम, ग्लूकोज के इंजेक्शन भी खरीदे।”

साभार-इंडियन एक्सप्रेस से

image_print

एक निवेदन

ये साईट भारतीय जीवन मूल्यों और संस्कृति को समर्पित है। हिंदी के विद्वान लेखक अपने शोधपूर्ण लेखों से इसे समृध्द करते हैं। जिन विषयों पर देश का मैन लाईन मीडिया मौन रहता है, हम उन मुद्दों को देश के सामने लाते हैं। इस साईट के संचालन में हमारा कोई आर्थिक व कारोबारी आधार नहीं है। ये साईट भारतीयता की सोच रखने वाले स्नेही जनों के सहयोग से चल रही है। यदि आप अपनी ओर से कोई सहयोग देना चाहें तो आपका स्वागत है। आपका छोटा सा सहयोग भी हमें इस साईट को और समृध्द करने और भारतीय जीवन मूल्यों को प्रचारित-प्रसारित करने के लिए प्रेरित करेगा।

RELATED ARTICLES
- Advertisment -spot_img

लोकप्रिय

उपभोक्ता मंच

- Advertisment -spot_img

वार त्यौहार