भारतीय संस्कृति एवं सभ्यता के आदर्शों को व्यवहारिक जीवन में मूर्तिमान करने वाले व्यक्तित्व को श्री राम जी कहा जाता है। श्री राम जी त्याग, सत्य, राष्ट्र के प्रति आस्था और निष्ठा और अपने सपनों को साकार करने के लिए अथक एवं अहरनीस परिश्रम करने वाले व्यक्तित्व है। श्री राम जी की जन्मस्थली जिसको धरती का बैकुंठ, त्रेता की अवधपुरी, ऐतिहासिक रूप से साकेत ,कोसल और अयोध्या के नाम से प्रसिद्ध है, जो सरयू नदी के किनारे पर अवस्थित है । भारत में धर्म शब्द की विराटता और व्यापकता अतिबृहद है कि इसको आम शब्दों में परिभाषित करना दुःसाध्य / दुरूह है। मौलिक आशय में धर्म उचित(Decoisune /rightiousness) हैं।धर्म विग्रह श्री राम, धर्म प्राण श्री राम देश के इतिहास ,भूगोल, सभ्यता और संस्कृति में निहित जीवन को मर्यादा पुरुषोत्तम अपने कृत्यों से अभिव्यक्त करते हैं।
इस संसार में राम जी आदर्श रूप में मूर्तिमान, धर्म के विग्रह और अपने सच्चरित्र और पराक्रम की प्रकृति के कारण पूजनीय है, उनकी विशिष्टता को परंपरा में महिमा मंडित करने और आने वाली पीढ़ी को सन्मार्ग पर चलने की प्रेरणा देने में बहुतेरी प्रासंगिक योगदान है। श्री राम अपने विवेकी प्रज्ञा, आध्यात्मिक चरित्र, परमार्थ सेवा की भावना और वासनाओं (काम,क्रोध, मद और लोभ पर नियंत्रण के कारण) स्थितप्रज्ञ (सुख और दुख में एक समान होना) है। इस संसार में विवेक के प्रत्यक्ष प्रतिमान रहे हैं। श्री राम जी विवेकी व्यक्तित्व के प्रतीक है, क्योंकि जो वचन दिए उसका पालन किए।राम धर्म की धुरी पर घूमते हैं, वे सर्वज्ञ हैं,वे धर्म के व्याख्याता है। वे धर्म से विरत /हटते नहीं, वे धर्म को जीते हैं। राम धर्म का अवतार है, इस धरती पर साक्षात शरीर लेकर अवतार लिया है और लोक चेतना में गहराई से बैठ गए। जब-जब इस राष्ट्र-राज्य (संकुचित शब्दों में देश) में संकट आता है, राम का चरित्र इस देश के लोगों का मार्गदर्शन, दिशाप्रबोधकऔर मार्गसंकेतक बन जाता है।
एक लोक कल्याणकारी,लोकशुभेच्छ, प्रजा हितैषी और राज्य के समस्त और अलौकिक गुणों/शीलों से श्री राम जी संपन्न थे। उनके विषय में कैकई ने कहा था कि राम श्रेष्ठ ही नहीं,बल्कि सर्वश्रेष्ठ है। सर्व समर्थ है, उनमें अवध राज्य के उत्तराधिकारी के समस्त गुण अंतर्निहित है। इस संसार के लोगों को राम का जीवन पसंद आ गया, राम का जीवन आत्मा(शरीर/भौतिकी पर बुद्धि/विवेक का नियंत्रण) को आनंदित कर दिया, राम एक आदर्श चारित्रिक श्रेष्ठता वाले व्यक्तित्व हैं, जो लोगों के हृदय में स्थापित हो गए हैं। प्रत्येक व्यक्ति राम के वचन, व्यवहार और चरित्र का अनुकरण करके अपने कर्तव्य में लगा है। सभी व्यक्तियों, सभी परिवारों और समस्त संगठनों में श्री राम अवतरित हो गए हैं।
श्री राम जी इस देश की अंतरात्मा में गहराई से व्याप्त है ।श्री राम के व्यक्तित्व का मनोरम पक्ष है कि वह दूसरों का दोष ( अवगुण) नहीं देखते हैं। महर्षि वाल्मीकि जी का कहना है कि राम का दृष्टिकोण दोष (कमी) देखने का नहीं है। रावण की मृत्यु के पश्चात भी श्री राम जी उनकी प्रशंसा करते हैं और अपने सौमित्र /भ्राता लक्ष्मण जी को रावण से ज्ञान की सीख/शिक्षा लेने के लिए निर्देशित करते हैं। महर्षि वाल्मीकि जी कहते हैं कि श्री राम जी सदैव प्रिय बोलते हैं, मधुर भाषी है, प्रिय भाषी है, मधुर बोलते हैं, विनम्रता से बोलते हैं। वन गमन के दौरान भी राम जी के मन में सुरक्षा की जिम्मेदारी अपने ऊपर लेने का चिंता का भाव है। राम जी के मन में सुरक्षा का भाव परिवार के बड़े पुत्र होने के नाते (तत्कालीन त्रेता युग में सैलिक प्रथा) हैं ।श्री राम जी पर किसी ने सूक्ष्म उपकार किया है तो उसके लिए कृतज्ञ है। जो लाख अपराध को क्षमा करके एक उपकार को स्मरण रखते हैं, उनका नाम “श्री राम जी” है। श्री राम जी कहते हैं कि जो शरणागत हो गया, उसकी रक्षा कीजिए,उसकी रक्षा अपने प्राणों की तरह करना चाहिए। जो चौखट पर जाकर क्षमा मांगता है ,जो भयभीत होकर आया है उसको अपने प्राण की तरह संभाल कर रखिए ,उसकी सुरक्षा कीजिए। राम जी ने लंका विजय के पश्चात लंका में प्रवेश नहीं किया, बल्कि शासन विभीषण को दे दिया। श्री राम जी वचन के पक्के/शाश्वत हैं। राम जी ने अपने राजा(तत्कालीन पिता) से वचन दिया था कि 14 वर्ष वन में रहूंगा, वचन निभाया। वह वन में रहने के कारण कभी भी किसी राजधानी या नगर में प्रवेश नहीं किए। विभीषण जी का राज्याभिषेक लक्ष्मण जी ने करवाया था।
महर्षि/ब्रह्मर्षि(आदि रामायण लिखने के कारण) वाल्मीकि जी कहते हैं कि राम जी शोक(दुःख का परम अवस्था)में प्रवेश नहीं करते, राम जी एक ऐसा चरित्र है, ऐसे मर्यादा है, ऐसा जीवन है, जो न विपदा में अशांत होते हैं और नहीं शोक(दुःख की परम अवस्था) में प्रवेश करते हैं। राम जी में लोकतांत्रिक तत्व है अर्थात सहमति, सामूहिक जिम्मेदारी और अपनों के प्रति राजनीतिक आभार। राम जी के व्यक्तित्व में रामत्व का गुण है। राम जी इतने बड़े अन्वेषक हैं कि वह कहते हैं कि भरत जी को तीनों लोकों का शासन दे दिया जाए तो भी भरत जी को सत्ता/वैधिक शक्ति का लोभ नहीं हो सकता।