उत्तराखंड की तीर्थ और योगनगरी ऋषिकेश सतयुग से ही ऋषि-मुनियों की तपोस्थली रही है. यहां स्थित प्राचीन श्री भरत मंदिर में रैभ्य ऋषि और सोम ऋषि ने भगवान विष्णु का ध्यान करते हुए तपस्या की थी. भगवान नारायण ने उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर उन्हें दर्शन दिए थे।ऋषिकेश को “ स्वर्ग की जगह” के नाम से भी जाना जाता है।चंद्रभागा और गंगा के संगम पर हरिद्वार से 24 किलोमीटर की ऊंचाई पर स्थित एक आध्यात्मिक शहर है।
हृषिकेश मूल शब्द “हृषि” और “ईश” मिलकर “हृषि+ईश, हृषिकेश” बनाते हैं; “हृषिक” का अर्थ है “इंद्रियाँ” और “ईश” का अर्थ है “स्वामी” या “भगवान”।इसलिए इस शब्द का अर्थ है जिसने महारत हासिल कर ली है रैभ्य ऋषि ने अपनी इंद्रियों पर विजय प्राप्त की और भगवान विष्णु को प्राप्त किया। इसलिए इस स्थान को हृषिकेश के नाम से जाना जाता है। यह माना जाता है कि “ऋषिकेश” के नाम से भगवान रैभ्य ऋषि द्वारा कठिन तपस्या से प्रकट हुए थे और अब से इस जगह का नाम व्युत्पन्न हुआ है।किंवदंती के अनुसार, रावण ने रावण की हत्या के लिए तपस्या करने के लिए ऋषि वशिष्ठ की सलाह पर आया। लंका के राजा यहां कई प्राचीन मंदिर और आश्रम हैं जो तीर्थयात्रियों को आध्यात्मिक सांत्वना देते हैं।
त्रिवेणी घाट: गढ़वाल, उत्तरांचल में हिमालय पर्वतों के तल में बसे ऋषिकेश में त्रिवेणी घाट प्रमुख पर्यटन स्थलों में से है। ऋषिकेश में त्रिवेणी घाट प्रमुख स्नानागार घाट है जहाँ प्रात:काल में अनेक श्रद्धालु पवित्र गंगा नदी में डुबकी लगाते हैं।कहा जाता है कि त्रिवेणी घाट पर हिन्दू धर्म की तीन प्रमुख नदियों गंगा,चंद्रभागा और अदृश्य सरस्वती के संगम पर बसा हुआ है त्रिवेणी घाट से ही गंगा नदी दायीं ओर मुड़ जाती है।
त्रिवेणी घाट के एक छोर पर शिवजी की जटा से निकलती गंगा की मनोहर प्रतिमा है तो दूसरी ओर अर्जुन को गीता ज्ञान देते हुए श्री कृष्ण की मनोहारी विशाल मूर्ति और एक विशाल गंगा माता का मन्दिर हैं।घाट पर चलते हुए जब दूसरी ओर की सीढ़ियाँ उतरते हैं तब यहाँ से गंगा के सुंदर रूप के दर्शन होते हैं।
शाम को त्रिवेणी घाट पर भव्य आरती होती है और गंगा में दीप छोड़े जाते हैं, उस समय घाट पर काफ़ी भीड़ होती है।ऋषिकेश का त्रिवेणी घाट अपने आप में विशेष महत्त्व रखता है. हिमालय से गंगा और सरस्वती के आने के बाद यह देश का पहला ऐसा स्थान है, जहां पर त्रिवेणी संगम है. यहां इस स्थान पर देश-विदेश से श्रद्धालु स्नान करने और दान, पुण्य, कर्मकांड करने आते हैं. इस स्थान की पौराणिक मान्यता है कि यहां स्नान करने से पुण्य की प्राप्ति होती है. इस स्थान पर पितरों का पिंडदान करने से उन्हें मोक्ष की प्राप्ति होती है. साथ ही श्राद्ध तर्पण करने से उन्हें स्वर्ग में स्थान प्राप्त होता है. इस स्थान पर तीनों प्रमुख पवित्र नदियों का अद्भुत संगम होता है.
रामायण और महाभारत के अनुसार ऐसा कहा जाता है कि भगवान श्री कृष्ण ने इस पवित्र स्थान का दौरा किया था। इस तीर्थ घाट पर भक्तगण अपने पितरों की शांति के लिए पिंड श्राद्ध की पूजा का पाठ भी कराते हैं। पास में ही है गंगा माता का मंदिर भी स्थित है। बाल्मीकि भगवान का एक आधुनिक मंदिर भी यहां स्थित है।
(लेखक अध्यात्मिक, सांस्कृतिक व ऐतिहासिक विषयों पर शोधपूर्ण लेख लिखते हैं)