Sunday, April 28, 2024
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अयोध्या सांस्कृतिक क्षेत्र की नदियां

भारतीय सनातन परम्परा में सप्त नगरियों का यह श्लोक विश्व विश्रुत है। इस श्लोक से इन नगरों का महत्व और स्पष्ट हो जाता है।
अयोध्या मथुरा माया काशी कांची अवंतिका।
पुरी द्वारावती चैव सप्तैता मोक्ष दायिकाः॥
ये सात शहर अलग-अलग देवी-देवताओं से संबंधित हैं। अयोध्या श्रीराम से संबंधित है। मथुरा और द्वारिका का संबंध श्रीकृष्ण से है। वाराणसी और उज्जैन शिवजी के तीर्थ हैं। हरिद्वार विष्णुजी और कांचीपुरम माता पार्वती से संबंधित है। रामायण में बताया गया है कि अयोध्या राजा मनु द्वारा बसाई गई थी। यह नगर सरयू नदी के किनारे बसा हुआ है।  यहां आज भी हिन्दू, बौद्ध, इस्लाम, जैन धर्म से जुड़ी निशानियां दिखाई देती हैं।

अयोध्या की महत्ता के बारे में पूर्वी उत्तर प्रदेश के जनसाधारण में निम्न कहावतें प्रचलित है-
गंगा बड़ी गोदावरी  तीरथ बड़ो प्रयाग,
सबसे बड़ी अयोध्या नगरी जहँ राम लियो अवतार।
अयोध्या की सांस्कृतिक सीमा के 84 कोस की परिधि को सरयू मुख्य नदी रूप में अभिसिंचित करती ही है। साथ ही सरयू की अनेक सहायक नदियां जैसे वाशिष्ठी(,गोमती), घर्घर घाघरा महानद , सरयू, कुटिला मनोरमा,तमसा छोटी सरजू,वेदश्रुति बिसुही नदी,तिलोदकी गंगा’ तिलैया, कल्याणी, राम रेखा शारदा, सेती, बबई, अचिरावती /राप्ती,इरावती,छोटी गंडक और झरही आदि डेढ़ दर्जन अस्तित्व वाली और कुछ लुप्तप्राय नदियां भी इस भूभाग में अपनी खुशबू और शीतलता से आह्लादित और पाप शमन का काम करती रहती है।

1-
आदिगंगा गोमती नदी/ वसिष्ठी नदी :-
पौराणिक कथाओं के अनुसार ऐसा माना जाता है कि वनवास से लौटते समय प्रभु श्रीराम ने अयोध्या में प्रवेश से पहले सई नदी को पार कर गोमती में स्नान किया था। गोस्वामी तुलसीदास ने रामचरित मानस में भी इस बात का उल्लेख किया है कि सई उतर गोमती नहाए, चौथे दिवस अवधपुर आए। रामायण काल से जुड़े होने की वजह से गोमती नदी का इतिहास और ज्यादा दिलचस्प हो जाता है और इसे अवध की पवित्र नदियों में से एक बनाता है।

गोमती नदी नदी का उद्गम स्थान माधव तांडा, पीलीभीत में स्थित गोमत ताल से होता है, यही कारण है कि पीलीभीत को गोमती के जन्मस्थान के रूप में भी जाना जाता है। गोमती नदी पवित्र एवं प्राचीन भारतीय नदियों में से एक है जो मुख्य रूप से उत्तर प्रदेश में प्रवाहित गोमती पीलीभीत, माधोटांडा के गोमत ताल से उद्गमित होकर लगभग 960 किमी का लंबा सफ़र तय करते हुए अनंतोग्त्वा वाराणसी के कैथ क्षेत्र में मार्कंडेय महादेव मंदिर के सामने गंगा नदी में जाकर मिल जाती है।

पुराणों के अनुसार गोमती ब्रह्मर्षि वशिष्ठ की पुत्री हैं तथा एकादशी को इस नदी में स्नान करने से संपूर्ण पाप धुल जाते हैं। हिन्दू ग्रन्थ श्रीमद्भागवत गीता के अनुसार गोमती भारत की उन पवित्र नदियों में से है जो मोक्ष प्राप्ति का मार्ग हैं। पौराणिक मान्यता ये भी है कि रावण वध के पश्चात “ब्रह्महत्या” के पाप से मुक्ति पाने के लिये भगवान श्री राम ने भी अपने गुरु महर्षि वशिष्ठ के आदेशानुसार इसी पवित्र पावन आदि-गंगा गोमती नदी में स्नान किया था एवं अपने धनुष को भी यहीं पर धोया था और स्वयं को ब्राह्मण की हत्या के पाप से मुक्त किया था, आज यह स्थान सुल्तानपुर जिले की लम्भुआ तहसील में स्थित है एवं धोपाप नाम से सुविख्यात है। लोगों का मानना है कि जो भी व्यक्ति गंगा दशहरा के अवसर पर यहाँ स्नान करता है, उसके सभी पाप आदिगंगा गोमती नदी में धुल जाते हैं। सम्पूर्ण अवध क्षेत्र में गोमती तट पर स्थित “धोपाप” के महत्व को कुछ इस तरह से समझाया गया है:

घर्घर घाघरा महानद :-
तंत्रशास्त्र के विश्वकोश ‘रुद्रयामल’ के अनुसार-
यस्या: पश्चिमतो नद: प्रवहति ब्रह्मात्मजो घर्घर:।
सामीप्यं न जहाति यत्र सरयू: पुण्या नदी सर्वदा।।घर्घर करता हुआ महानद के कारण इसे घाघरा कहा जाता है। घाघरा नद को सरयूजी का बड़ा भाई कहा गया है, घाघरा अपनी बहन सरयू की रक्षा में तत्पर रहता है। घाघरा नदी, गोगरा, घाघरा, नेपाली कौरियाला, गंगा नदी की प्रमुख बाएं किनारे की सहायक नदी भी है। यह दक्षिणी तिब्बत स्वायत्त क्षेत्र, चीन के उच्च हिमालय में करनाली नदी के रूप में उभरती है और नेपाल के माध्यम से दक्षिण-पूर्व में बहती है। शिवालिक रेंज में दक्षिण की ओर काटते हुए यह दो शाखाओं में विभाजित हो जाती है जो भारतीय सीमा के दक्षिण में फिर से जुड़ती हैं और घाघरा को नया रूप देती है। यह उत्तर प्रदेश और बिहार राज्यों के माध्यम से दक्षिण-पूर्व में बहती है और 600 मील दूरी मापने के  बाद छपरा के नीचे गंगा में प्रवेश करती है।

घाघरा नदी दक्षिणी तिब्बत के ऊंचे पर्वत शिखरों से निकलती है जबकि सरयू का उद्गम स्थल बहराइच या लखीमपुर खीरी जिले के खैरीगढ़ रियासत की राजधानी रही सिंगाही के जंगल की झील से भी कहा जाता है। घाघरा और सरयू का संगम बाराबंकी के चौका घाट में होता है। चौका घाट में दोनों नदी एक होकर बलिया में गंगा में मिल जाती है।

पतित पावनी सरयू नदी :-सरयू नदी का उल्लेख ऋग्वेद में मिलता है और रामायण के अनुसार सरयू नदी अयोध्या शहर के पास बहती है । भगवान विष्णु के सातवें अवतार भगवान राम का जन्म अयोध्या में हुआ था। यह माना जाता है कि यहपवित्र नदी शहर की अशुद्धियों और पापों को धोती है। पुराणों में वर्णित है कि सरयू नदी से भगवान विष्णु के उत्सव प्रकट होते हैं। आनंद रामायण में उल्लेख है कि प्राचीन काल में शंखासुर दैत्य / मधु कैटभ ने वेद को चुराकर समुद्र में डाल दिया था । तब भगवान विष्णु ने मत्स्य रूप में धारण कर दैत्य का वध किया था और ब्रह्मा को वेदों में अपना वास्तविक स्वरूप धारण कराया था। उस समय हर्ष के कारण भगवान विष्णु की आंखों से प्रेमाश्रु टपक पड़े थे। ब्रह्मा ने उस प्रेमाश्रु को मानसरोवर में डाल कर उसे सुरक्षित कर लिया। इस जल को महापराक्रमी वैवस्वत महाराज ने मानसरोवर से बाहर तक बाण के प्रभाव से प्रकट किया। यह भी उल्लेख मिलता है कि ऋषि वशिष्ठ की तपस्या से सरयू का प्रादुर्भाव हुआ है। जिस प्रकार गंगा नदी को भगीरथ धरती पर लाए थे। उसी प्रकार सरयू नदी को भी धरती पर लाया गया था।राजा मनु के पुत्र इक्ष्वाकु हुए जिन्होंने अपने गुरु वशिष्ठ से अयोध्या में सरोवर निर्माण की बात कही। जिसके बाद वशिष्ठ ऋषि ने अपने पिता ब्रम्हा से सरयू के अवतरण की प्रार्थना किया था ।ब्रम्हा जी ने अपने कमंडल से ही सरयू का अवतरण कराया। इस प्रकार  भगवान विष्णु की मानस पुत्री सरयू नदी को धरती पर लाने का श्रेय ब्रह्मर्षि वशिष्ठ को ही जाता है । सरयू नदी का नाम सुनते ही मन राम की नगरी में अनायास ही पहुंच जाता है।

जन्मभूमि मम पुरी सुहावनि,
उत्तर दिसि बह सरजू पावनि।

नेपाल से डोरीगंज (बलिया) तक कुल सरयू की लंबाई- 1080 किमी है। इनमे यह नेपाल में 507 किमी व भारत में 573 किमी तक विस्तारित है। इसकी लंबाई बस्ती में 80 किमी, गोरखपुर में 77 किमी है।
भौगोलिक दृष्टि से देखा जाए तो सरयू नदी वास्तव में शारदा नदी की ही एक सहायक नदी है। यह नदी उत्तराखंड में शारदा नदी से अलग होकर उत्तर प्रदेश की भूमि के माध्यम से अपना प्रवाह जारी रखती है। यह गंगा नदी की सात सहायक नदियों में से एक है और इतनी पवित्र मानी जाती है कि यह मानव जाति की पापों को धो देती है। कवि रामधारी सिंह दिनकर ने कहा है –
वह मृतकों को मात्र पार उतारती,
यह जीवितों को यहीं से तारती।

शिव और पार्वती मां भी इसे लाने का प्रयास किए -स्कंद पुराण में वर्णित कथा अनुसार एक समय मार्कंडेय नाम के ऋषि नील पर्वत पर तपस्या कर रहे थे और ब्रह्मर्षि वशिष्ठ देवलोक से विष्णु की मानस पुत्री सरयू को लेकर आ रहे थे। लेकिन तपस्या में लीन मार्कंडेय ऋषि के कारण सरयू नदी को आगे बढ़ने का रास्ता नहीं मिल रहा था। इस पर ब्रह्माजी और ब्रह्मर्षि वशिष्ठ ने शिवजी को अपनी व्यथा सुनाई और संकट को दूर करने का निवेदन किया। इस पर आदिदेव महादेव ने तब बाघ का रूप धारण किया और माता पार्वती ने गाय का रूप धारण किया। मां पार्वती गाय के रूप में पास ही घास चरने लगीं। तभी वहां बाघ के रूप में पहुंचे महादेव ने गर्जना की, भयंकर दहाड़ सुनकर गाय डर के कारण जोर-जोर से रंभाने लगी। इससे मार्कंडेय ऋषि की समाधि भंग हो गई। जैसे ही मार्कंडेय ऋषि गाय को बचाने को दौड़े तो सरयू नदी आगे बढ़ने का रास्ता मिल गया। भगवान शिव ने जिस स्थान पर शेर का रूप धारण किया था। बाद में उस स्थान का नाम व्याघ्रेश्वर तथा बागेश्वर पड़ा और यहां भगवान शिव के बागनाथ मंदिर की स्थापना की गई।

वरस्रोत और सरयू से मिलने वाली कुटिला/ टेढ़ी नदी :-बहराइच के चित्तौड़ झील से निकलकर अयोध्या के सरयू नदी में मिलने वाली यह नदी टेढ़े मेढे़ रास्ते से हो कर गुजरती है। इसी लिए इसे टेढ़ी नदी कहा जाता है। इस नदी को कुटिला गंगा के नाम से भी जाना जाता है।  इसका उद्गम से चंदवतपुर घाट तक लगभग 130 किमी  है। आगे बढ़कर अयोध्या के निकट कपिल ग्राम मंहगूपुर /लोलपुर तक जाकर यह नदी सरयू नदी में मिलती है। यह स्थान श्री कपिल मुनि मंदिर के नाम से नवाबगंज के समीप महंगूपुर गांव में प्रसिद्ध है। कपिल मुनि को भी भगवान विष्णु के 24 अवतारों में से एक माना जाता है। यहां सरयू और कुटिला नामक दो नदियों का संगम स्थल है।
कुटिला वरस्रोत नदी का संग चौघडिय़ा घाट के नाम से भी जाना जाता है। यह स्थान स्वप्नेश्वरी देवी से पूरब दिशा में वरस्रोत नाला में स्थित है।  पहले यहां वरस्रोत और कुटिला (टेढ़ी नदी) का संगम था लेकिन अब यहां पर टेढ़ी नदी ही प्रवाहित होती हैं। यहां पर हनुमान जी का एक मंदिर भी है। इस संगम स्थान पर स्नान करने से समस्त पापों का नाश होता है। मान्यता है कि कार्तिक मास की पूर्णिमा तिथि को यहां पर श्रद्धापूर्वक स्नान-दान से समस्त दुष्कर्मों का नाश होता है और देवलोक की प्राप्ति होती है।

मनोरमा नदी :-मखौड़ा के आस पास कोई नदी नहीं थी। यज्ञ के समय मनोरमा नदी का अवतरण कराया गया था। गोण्डा जिला मुख्यालय से 19 किमी. की दूरी पर इटिया थोक नामक जगह स्थित है। यहां उद्दालक ऋषि का आश्रम मनोरमा मंदिर तथा तिर्रे नामक एक विशाल सरोवर है। इस स्थान की उत्पत्ति महाभारत के शल्य पर्व में वर्णित है। उद्दालक द्वारा यज्ञ का अनुष्ठान करके सरस्वती नदी को मनोरमा के रूप में यहीं प्रकट किया था। तिर्रे तालाब के पास उन्होंने अपने नख से एक रेखा खीचंकर गंगा का आहवान किया तो गंगा सरस्वती ( मनोरमा ) नदी के रूप में अवतरित हुई थीं। जिस मख स्थान पर राजा दशरथ ने यज्ञ किया था, उसी से स्पर्शित मनोरमा नाम की नदी बहती है। इस नदी का वर्णन महाभारत में भी मिलता है। 84कोसी परिक्रमा करने वाले श्रद्धालु मनोरमा का जल शिरोधार्य कर परिक्रमा की शुरुआत करते हैं।

तमसा नदी  छोटी सरजू:-तमसा का उल्लेख वाल्मीकीय रामायण में अयोध्या के निकट बहने वाली छोटी नदी के रूप में हुआ है। यह अम्बेडकर नगर से निकलकर आज़मगढ़, मऊनाथ भंजन (मऊ) होते हुए बलिया जिले में गंगा में मिलती है। इसकी लम्बाई 89 कि०मी० है। वन गमन के दौरान भगवान राम ने प्रथम रात्रि इसी नदी के तट पर गुजारी। अयोध्या जिला के मवई कस्बा के निकट जिस लखनी पुर गांव से तमसा का प्रादुर्भाव हुआ, वह अयोध्या जिला में होने के साथ 84कोसी परिक्रमा का प्रमुख पड़ाव भी है।वर्तमान में यह तमसा नदी अयोध्या (जिला फैजाबाद) से लगभग 12 मील दक्षिण में बहती हुई लगभग 36 मील के बाद अकबरपुर के पास बिसवी नदी से मिलती है तथा इसके बाद संयुक्त नदी का नाम टौंस हो जाता है, जो कि तमसा का ही अपभ्रंश माना गया है । यह टौंस नदी आजमगढ़, मऊ जिले में बहती हुई बलिया के पश्चिम में गंगा में मिल जाती है।

वेदश्रुति बिसुही नदी :-सरयू से वेदश्रुति तक अयोध्या फैली हुई थी । वह वेद- श्रुति अयोध्या से 24 मील की दूरी पर होनी चाहिये । इसे आजकल विसुई कहते और यह सुलतानपुर जिले से निकल कर आजकल भी अयोध्या जिले की सीमा बनाती हुई इलाहाबाद-फैजाबाद रेलवे लाइन को खुजरहट स्टेशन से दो मील की दूरी पर काटती हुई अकबरपुर के पास मड़हा से मिल जाती है और वहाँ से इसे टोंस ( तमसा) कहते हैं। रामनगरी की 84कोसी परिक्रमा की परिधि गोमती नदी स्पर्श करती है।

तिलोदकी गंगा /तिलैया नदी:-अयोध्या में बहने वाली गंगा ‘तिलोदकी गंगा’ थी, जिसकी बाबत पौराणिक मान्यता है ।महारानी कैकेयी राजा दशरथ से विवाह के बाद जब अयोध्या आई तो उनके पिता अष्टपति ने विशेष प्रकार के घोड़े भेजे थे । राजा राम ने सिंधु देश के घोड़ों के पानी पीने के लिए दूसरी सिंधु नदी और दूसरे समुद्र की भांति इस नदी का निर्माण कराया था।
इन घोड़ों को पीने के लिए उनके अनुकूल जल अयोध्या में नहीं था,इसलिए कश्मीर से गंगा नदी अयोध्या लाई गई l इस गंगा का पानी काले तिल के रंग के होने के नाते इनका इस नदी का नाम तिलोदकी गंगा पड़ा l

1905 के फैजाबाद गजेटियर में इसका जिक्र तत्कालीन फैजाबाद जिले के मंगलसी नामक स्थान से निकलने वाली छोटी नदी के रूप में किया गया है, जिसे तिलई या तिलंग कहा जाता था और जो अयोध्या के पूर्व में सरयू की मुख्य धारा में मिलकर मंगलसी के पूर्व और हवेली अवध के पश्चिम से होकर बहा करती थी। रामनगरी में ही सीताकुंड के करीब तिलोदकी और सरयू का संगम पवित्र स्थल के रूप में प्रतिष्ठित रहा है। प्रत्येक वर्ष भाद्र माह की अमावस्या को यहां स्नान के लिए बड़ी संख्या में श्रद्धालु आते रहे। अतिक्रमण के चलते गत चार-पांच दशक के दौरान तिलोदकी लुप्त हो गईं। राजस्व अभिलेखों में तिलोदकी का बेसिन अभी भी दर्ज है। पौराणिक तिलोदकी गंगा (तिलैया) नदी दो तहसील सदर और तीन ब्लॉकों सोहावल, मसौधा और पूरा बाजार से होते हुए अपनी लगभग 47 किमी. की यात्रा पूरी करती है। इसके बाद यह सरयू में मिल जाती हैं।
संभेदा तीर्थ को ‘तिलोदकी’ के रूप में जाना जाता है, जहां पानी भी काले तिल का रंग होता है और काले तिल के साथ ‘पितृत्रय’ के लिए उपयोग किया जाता है।  भाद्रपद कृष्ण अमावस्या पर त्रयस्थ पित्रों के कष्टों को दूर करने में मदद करते हैं और उनके सात के पाप नारायण की पूजा से जल जाते हैं। रुद्रयामल ग्रंथ,स्कंद पुराण में तिलोदकी गंगा का उल्लेख है जो कश्मीर से गुप्त रूप से अयोध्या आई हैं l ये अधिकांश स्थानों पर गुप्त हैं जबकि अयोध्या में 50 किलोमीटर के दायरे में इनका कहीं वजूद मिलता है तो कहीं गुप्त रहती है। प्रतीक रूप में मणि पर्वत, यज्ञवेदी के पास पौराणिक रूप से मुखर होने के अतिरिक्त इसकी सूक्ष्म उपस्थिति को इन दोनों ही स्थानों पर एक लम्बी पतली सूख चुकी धारा के रूप में आसानी से देखा जा सकता है. इसका विस्तार क्षेत्र अयोध्या के पंचकोसी परिक्रमा मार्ग से चौदह कोसी परिक्रमा मार्ग की ओर जाने पर इसी मार्ग के समानांतर मिलता है, जो पूरी तरह खेतों में बदल चुका है और नदी तो क्या छोटे तालाब के रूप में भी दिखाई नहीं देता.तिलोदकि नदी को लगभग भरकर क़ब्ज़ा किया जा चुका है

कल्याणी नदी:–कल्याणी स्थानीय मूल की एक छोटी नदी है। यह अपनी सहायक नदियों के साथ बहते हुये जिले के अधिकांश केंद्रीय भू-भाग को सम्मिलित करती है। कल्याणी वर्षा ऋतु के दौरान कहर पैदा करती है ओर  जिले का काफी हिस्सा बाढ़ ग्रस्त हो जाता है, हालांकि ग्रीष्म काल में नदी के कुछ हिस्सों में शायद ही पानी रहता हो। यह वर्ष की अधिकांश अवधि के लिए पानी का एक महत्वपूर्ण स्रोत है, तथा कई स्थानों के तटों पर अवसादन की स्थिति है।बाराबंकी और सीतापुर के बॉर्डर से निकलकर अयोध्या तक जाने वाली 173 किलोमीटर लंबी कल्याणी नदी इस इलाके में दम तोड़ चुकी थी, लेकिन बाराबंकी प्रशासन ने पहले पायलट प्रोजेक्ट के जरिए इसका कायाकल्प कर दिया. अब पूरे नदी के प्रवाह को पुनर्जीवित करने की कोशिश हो रही है.

रामरेखा नदी :-यह तीर्थस्थल बस्ती जिले में के छावनी क्षेत्र के अमोढ़ा गांव में स्थित है। यहां श्रीराम जी का मंदिर और भगवान शिव का शिवलिंग स्थापित है। रामरेखा नदी इसी मंदिर से सटकर प्रवाहित होती है। यहां पहुंचकर स्थल की ऊर्जा को महसूस किया जा सकता है। ग्रंथों में कहा गया है कि जनकपुर में विवाह के पश्चात शुद्ध लग्न में गुरु वशिष्ठ की आज्ञा से अयोध्या के लोग बारात वापसी में निकले थे। यात्रा में शामिल लोगों ने इसी स्थान पर विश्राम किया। गुरूदेव की आज्ञा से यहीं पर उनकी प्यास शांत करने के लिए श्रीरामचंद्र जी ने अपने धनुष से एक रेखा खींच दी थी। उस स्थान से जो दिव्य जल प्रवाहित हुआ उसी का नाम रामरेखा नदी के नमाम पर रामरेखा तीर्थ के नाम से प्रसिद्ध हुआ। 84 कोसी परिक्रमा का यह प्रथम विश्राम स्थान है।

शारदा नदी:-काली नदी, जिसे महाकाली, कालीगंगा या शारदा के नाम से भी जाना जाता है। काली नदी सरयू नदी की सबसे बड़ी सहायक नदी है।काली नदी की कुल लंबाई 460 किमी है। पश्चिमी काली नदी उत्तर प्रदेश के सहारनुपर जिले में शिवालिक से 25 किमी दक्षिण से निकलकर दक्षिण- पश्चिम तथा दक्षिण की ओर सहारनपुर तथा मुजफ्फरनगर जिलों में बहती है। मेरठ जिले की उत्तरी सीमा पर यह हिंडन नदी में समा जाती हैं। इस नदी का उद्गम उत्तराखण्ड राज्य के पिथौरागढ़ जिले में वृहद्तर हिमालय में 5000 मीटर की ऊँचाई पर स्थित कालापानी नामक स्थान से होता है, और लिपु-लीख दर्रे के निकट भारत और तिब्बत की सीमा पर स्थित काली माता के एक मंदिर से इसे अपना नाम मिलता है। अपने ऊपरी मार्ग पर यह नदी नेपाल के साथ भारत की निरंतर पूर्वी सीमा बनाती है, जहां इसे महाकाली कहा जाता है। यह नदी उत्तराखण्ड और उत्तर प्रदेश के मैदानी क्षेत्रों में पहुँचने पर शारदा नदी के नाम से भी जानी जाती है।

सेती नदी :-यह नदी नेपाल में बहने वाली एक नदी है। यह कर्णाली नदी (घाघरा नदी) की एक उपनदी है। कर्णाली स्वयं गंगा नदी की उपनदी है। यह हिमालय के अपि और नम्पा पर्वतों की हिमानियों से उत्पन्न होती है। यह पहले दक्षिणपूर्व दिशा में बहती है और फिर मुड़कर दक्षिणपश्चिम दिशा में बहने लगती है। डोटी ज़िले में यह बुढीगंगा नदी से संगम करती है और फिर इनकी संयुक्त धारा (जो सेती कहलाती है) कर्णाली नदी में विलय हो जाती है।

बाबई नदी :- मध्य-पश्चिमी नेपाल की आंतरिक तराई डांग घाटी से डिफ़ॉल्ट है और पूरी तरह से इसमें से निकलना है । दंग महाभारत श्रेणी और इसी नाम के जिलों में शिवालिक पर्वतों के बीच एक शत्रुतापूर्ण घाटी है।

राप्ती/अचिरावती नदी :-अचिरावती राप्ती नदी का प्राचीन नाम हैं। अचिरावती को अचिरवती नदी और अजिरावती नदी के नाम से भी जाना जाता था। राप्ती नदी  या पश्चिम राप्ती नदी नेपाल के मध्य-पश्चिमाञ्चल विकास क्षेत्र और भारत के उत्तर प्रदेश राज्य में बहने वाली एक नदी है। यह घाघरा नदी (कर्णाली नदी) की एक उपनदी है, जो स्वयं गंगा नदी की एक उप नदी है। राप्ती नदी मध्य नेपाल के दक्षिणी भाग की निचली पर्वतश्रेणियों में प्यूथान नगर के उत्तर से निकलती है।

गंगा के मैदान में उतरने से पूर्व यह कुछ दूर तक शिवालिक पर्वत के समांतर पश्चिम दिशा में बहती है और मैदानी भाग में पूर्व एवं दक्षिण-दक्षिण-पूर्व दिशाओं में प्रवाहित होकर बरहज नगर (जिला देवरिया, उत्तर प्रदेश) के समीप घाघरा नदी से मिलती है। यह उत्तर प्रदेश के बहराइच, श्रावस्ती, बलरामपुर, सिद्धार्थनगर एवं गोरखपुर जिलों के धान एवं गन्ना उत्पादक क्षेत्रों के मध्य से होकर बहती है बाँसी, डुमरियागंज एवं गोरखपुर इस नदी पर स्थित मुख्य नगर हैं। इसकी सहायक नदियों में मुख्यत: उत्तर के तराई प्रदेश से निकलने वाली छोटी छोटी अनेक नदियाँ हैं। नदी की कुल लंबाई 600 किलोमीटर है। यह गोरखपुर से नीचे की ओर बड़ी नौकाओं द्वारा नौगम्य है।

इरावती नदी :-इरावती नदी नदी का नाम संस्कृत शब्द इरावती या ऐरावत से आया है। हिन्दू पौराणिक कथाओं के अनुसार इरावती एक पवित्र नदी एवम एक देवी का नाम है और एरावत उनके पुत्र का नाम था जो कि देवराज इन्द्र के वाहन थे। उत्तरी बर्मा में स्थित एनमाइ एवम माली नदी का संगम इरावती नदी का उद्गम स्थान है। अंडमान सागर से 290 किलोमीटर पुर्व यह नदी एक विशाल डेल्टा का निर्माण करती है। इस डेल्टा के पश्चिमी एवम पूर्वी सीमा क्रमशः पाथेन(बासेन) एवम यांगोन नदी बनाती है।

छोटी गंडक नदी:-छोटी गण्डक एक नदी है जो नेपाल से निकलकर भारत के उत्तर प्रदेश में प्रवेश करती है। यहाँ यह महराज गंज, कुशीनगर, देवरिया जनपदों में बहती हुई अन्ततः घाघरा में मिल जाती है।

झरही नदी :-झरही  घाघरा की सहायक नदी है। झरही नदी के उद्भव स्थल के बारे में मतैक्य नहीं है। कोई इसे करम झनी ताल से निकला बताता है, तो कोई इसे नारायणी या बांसी नदी का छाड़न बताता है। पडरौना के खिरकिया स्थान से और कुछ पहले से पूर्णत : अस्तित्व में आती यह नदी प्रतापपुर के पास खनुआ नदी में जाकर मिलती है।

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