Friday, May 10, 2024
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फ़िल्म “श्री रामायण कथा” का टीजर पोस्टर जारी

अंजली अरोड़ा अब अभिषेक सिंह के डायरेक्शन में बन रही फिल्म “श्री रामायण कथा” में  सीता के किरदार में नज़र आएंगी। अभिषेक सिंह के डायरेक्शन में बन रही फिल्म श्री रामायण कथा अगले साल 2025 में सिल्वर स्क्रीन पर आने के लिए तैयार है।

इसके टीज़र पोस्टर में सबसे आगे, हनुमान का शक्तिशाली चेहरा नजर आता है, उनकी अभिव्यक्ति शक्ति और भक्ति से गूंजती है। हनुमान के माथे पर भगवान राम का पवित्र नाम अंकित है, जो उनकी अटूट निष्ठा और समर्पण का प्रतीक है। यह राम और हनुमान के बीच के गहरे बंधन की ओर इशारा करता है, जो महाकाव्य के आध्यात्मिक और भावनात्मक पहलुओं में गहराई से उतरने वाली कथा के लिए एक स्वर निर्धारित करता है।

निर्देशक अभिषेक सिंह के इस प्रोजेक्ट के सिनेमैटोग्राफर कुणाल कदम हैं। देव व आशीष ने बेहतरीन संगीत दिया है। श्री रामायण कथा 2025 में स्क्रीन पर आने वाली है, जो एक लाजवाब सिनेमाई अनुभव का वादा करती है।

महोबिया फ़िल्म प्रोडक्शन प्राइवेट लिमिटेड के बैनर तले बन रही इस फ़िल्म का निर्माण प्रकाश महोबिया और संजय बुंदेला ने किया है। फ़िल्म के लेखक सचिन कुमार सिंह हैं और अभिषेक सिंह ने निर्देशित किया है।
Ashwani Shukla
Altair Media
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वनमानुष ने घाव ठीक कर सबको चौंकाया

इंडोनेशिया के एक नेशनल पार्क में 35 साल के राकुस नाम के एक ओरैंगुटान के चेहरे पर चोट लग गई थी. इसके बाद वनमानुष ने जो कुछ भी किया, उसे देखकर शोधकर्ता भी दंग रह गए. सोशल मीडिया पर इसका वीडियो भी वायरल हुआ है.

दुनिया में बहुत से जंगली जानवर हैं, जो चोट लगने या बीमार पड़ने पर इंसानों की तरह अपना इलाज करते हैं. लेकिन घावों को ठीक करने के लिए वे पौधों का दवा के रूप में भी इस्तेमाल करते हैं, इसके बारे में कोई पुख्ता जानकारी नहीं थी. लेकिन इंडोनेशिया के एक नेशनल पार्क में ओरैंगुटान यानि वनमानुष ने जो कुछ भी किया, उसने वैज्ञानिकों को हैरान कर दिया है.

इंडोनेशिया के सुमात्रा में शोधकर्ता उस वक्त दंग रह गए, जब उन्होंने गुनुंग लेउसर नेशनल पार्क में एक 35 वर्षीय नर ओरैंगुटान को जड़ी-बूटियों से घाव का इलाज करते हुए पाया. घटना जून, 2022 की है. लेकिन वैज्ञानिकों ने अब जाकर यह चौंकाने वाली जानकारी साझा की है. शोधकर्ताओं के अनुसार, यह किसी जंगली जानवर द्वारा घाव का इलाज करने के लिए पौधे का उपयोग करने का पहला ज्ञात मामला है.

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लोकसभा चुनावों में धराशायी विपक्ष के टूलकिट आधारित मुद्दे !

स्वतंत्रता के बाद भारत में अभी तक जितने भी लोकसभा या विधानसभा चुनाव संपन्न हुए हैं उनमें पहली बार कांग्रेस के नेतृत्व में बना गठबंधन हर दृष्टि से कमजोर नजर आ रहा है । जब से लोकसभा चुनावों के लिए कांग्रेस व इंडी गठबंधन के नेताओं ने प्रचार आरम्भ  किया है तभी से कांग्रेस नेता राहुल गांधी व उनके प्रवक्ता मीडिया एजेंसियों व टीवी चैनलो पर बैठकर केवल एक ही बहस कर रहे हैं कि अगर मोदी जी तीसरी बार 400 सीटों के साथ  प्रधानमंत्री बन जाते हैं तो फिर भाजपा संविधान को फाड़ कर फेंक देगी, दोबारा चुनाव नहीं होंगे क्योंकि इनके पास कोई मुद्दा नहीं है मोदी जी को घेरने का। इसके अतिरिक्त मोदी जी और अमित शाह के ए.आई. द्वारा बनाए गए डीप फेक वीडियो या फिर सम्पादित/ डॉक्टर्ड वीडियो को आधार बनाकर झूठ फैला रहे हैं ।
पिछले दिनों अमित शाह के ऐसे ही एक वीडिओ के साथ आरक्षण के सम्बन्ध में दुष्प्रचार किया गया हालांकि अब  इस पर दिल्ली पुलिस ने कार्यवही आरम्भ कर दी है और कई लोग गिरफ्तार किए जा चुके हैं । उधर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी इस फर्जी वीडियो प्रकरण को कोअपने पक्ष में मोड़कर मुद्दा बनाने मे कुछ हद तक सफलता प्राप्त कर ली है साथ ही वे संविधान और आरक्षण के नाम पर विगत 70 साल में पिछली सरकारों ने जो किया उसे भी बेनकाब  कर रहे हैं।
वर्ष 2014 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भाजपा सरकार आने के बाद से ही राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के खिलाफ आरक्षण विरोधी होने का दावा कर अभियान चलाया जा रहा है। बिहार में 2015 के विधानसभा चुनावों में  नितीश कुमार और लालू यादव के बीच गबठबंधन हुआ था तब इन दलों ने पांचजन्य साप्ताहिक में प्रकाशित एक साक्षात्कार के आधार पर  संघ के खिलाफ विषवमन किया था। बसपा नेत्री मायावती ने एक पुस्तिका प्रकाशित करवा के घर घर तक बंटवाई थी और बताया गया था कि संघ किस प्रकार से आरक्षण विरोधी है।
अब समय बदल चुका है यह 2024 की बदली हुई भाजपा और संघ है जो दुष्प्रचार के प्रति पूरी तरह सतर्क और सशक्त है। इस बार कांग्रेस नेताओं का यह दांव जमीनी धरातल पर नहीं उतर पा रहा है क्योंकि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ.मोहन भागवत ने कहा कि संघ हमेशा संविधान सम्मत आरक्षण का पक्षधर रहा है।संघ का मानना है कि जब तक सामाजिक भेदभाव रहेगा या आरक्षण देने के कारण बने रहेंगे तब तक आरक्षण जारी रहे।संघ प्रमुख ने कहा कि उन्होंने एक वीडियो के बारे में सुना है जिसमें कहा गया है कि संघ आरक्षण के खिलाफ है। संघ आरक्षण का कभी विरोधी नहीं रहा है किंतु यह उसके खिलाफ विमर्श स्थापित किया जा रहा है क्योंकि कांग्रेस को लगता है कि संघ व भाजपा को आरक्षण व संविधान  विरोधी साबित कर वह चुनावी किला फतह कर सकती है।
राहुल गांधी आजकल भाजपा को संविधान विरोधी साबित करने में  दिन-रात एक किये हुए है जबकि वास्तविकता यह है कि अगर आज आम नागरिक अपने संविधान को जान रहा है, पढ़ राहा है और उसके अनुरूप आचरण करना चाह रहा है और उसके पीछे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के प्रयास ही हैं क्योंक अब हर वर्ष 26 नवंबर को संविधान दिवस मनाया जा रहा है। भारतीय संविधान को अब वेबसाइट पर आसानी से पढ़ा जा सकता है। नए संसद भवन के उद्घाटन और सेंगोल स्थापना के अवसर पर सदन के सदस्यों को भी संविधान की मूल प्रति दी गई ।
कांग्रेस जो आज संविधान – संविधान का राग अलाप रही है संविधान का सत्यानाश कांग्रेस ने ही किया था। श्रीमती इंदिरा गांधी ने अपनी सत्ता बचाने के लिए संविधान में मूल भूत परिवर्तन करके उसमें धर्मनिरपेक्ष और समाजवादी जैसे शब्द जोड़कर उसकी आत्मा ही नष्ट कर दी, आपातकाल लगाकर अपनी विकृत तानाशाही मानसिकता का परिचय दिया और मनमर्जी से विपक्षी दलों की प्रदेश सरकारों को गिराया ।
कांग्रेस के कार्यकाल में संविधान एक परिवार का बंधक हो गया था व एक धर्म विशेष का तुष्टीकरण कर रहा था।  इसी प्रकार कांग्रेस अयोध्या में प्रभु राम की जन्मभूमि और उस पर बन रहे भव्य मंदिर के प्रति भी नकारात्मक रही है।जन जन के आराध्य प्रभु राम को काल्पनिक कहने वाली कांग्रेस ने पहले तो मुद्दे को भटकाने, लटकाने, अटकाने के लिए जी जान लगा दी फिर भी असफल रहने पर अपने मुस्लिम तुष्टीकरण को मजबूती प्रदान कनने के लिए प्राण प्रतिष्ठा समारोह का बहिष्कार किया। उसके बाद राहुल गांधी व विपक्ष के नेता जनसभाओं में बयान देने लगे  कि राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा समारोह में दलित आदिवासी होने के कारण राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को नहीं बुलाया गया। यह भी बयान दिए जाने लग गये कि प्राण प्रतिष्ठा समारोह में केवल और केवल बड़े उद्योगपति और  बड़े घरानो के लोग ही उपस्थित रहे आम जनता को कोई भाव नहीं दिया गया। पिछले दिनों
राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू के अयोध्या में रामलला के दर्शन करके ने राहुल गांधी के इस झूठ का करारा उत्तर दे दिया। राम मंदिर के गर्भगृह में राष्ट्रपति की उपस्थिति ने कांग्रेस नेता के आरोप को बुरी तरह से धो डाला।राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने गर्भगृह में पहुंचकर रामलला का विधिवत पूजन किया। आराध्य को निकट से देखकर राष्ट्रपति बहुत भावुक दिखीं और उन्होंने सोशल मीडिया पर अपने अनुभव भी साझा किए।
इस बीच  श्रीराम जन्मभूमि तीर्थक्षेत्र ट्रस्ट के महासचिव चंपत राय ने बयान जारी कर राहुल गांधी के सभी आरोपों को मिथ्या बताया।  महासचिव चंपत राय ने बताया कि राहुल गांधी को स्मरण कराना चाहूंगा कि राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू एवं पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद द्वय को रामलला के मूल विग्रह की प्राण प्रतिष्ठा के अवसर पर आमंत्रित किया गया था।
उन्होंने बताया कि इस अवसर पर अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अन्य पिछड़ा वर्ग समाज से जुड़े हुए संत, महापुरुष गृहस्थजन औेर जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में यश प्राप्त करने वाले भारत का गौरव बढ़ाने वाले लोगों को भी आमंत्रित किया गया था। मंदिर में सेवारत श्रमिक और अल्पसंख्यक समुदाय के लोग भी कार्यक्रम में उपस्थित रहे।  राहुल गांधी अपनी जनसभाओं  मे यह आरोप भी लगा रहे हैं  कि वहां कोई गरीब, महिला, किसान युवा दर्शन नहीं करने गया अब यह भी झूठ हो गया है क्योंकि अब तक दो करोड़ से अधिक लोग राम मंदिर के दर्शन कर चुके हैं और इसमें समाज के सभी वर्गो की आम जनता ही शमिल है किंतु राहुल के पदचिन्हों पर चलने वाले कांग्रेस के प्रवक्ता अभी भी बाज नहीं आ रहे हैं और अयोध्या मंदिर व दर्शन कार्यक्रम को इवेंट बताकर उसका अपमान कर रहे हैं।
इसके अलावा कांग्रेस और विपक्ष बार -बार ईवीएम मसहीनों पर ही संदेह पैदा कर रहा है किंतु ईवीएम यह दावा अब सुप्रीम कोर्ट में भी खारिज हो चुका है। पहले दो चरणों में कम मतदान का हवाला देकर विरोधी दलों ने सोशल मीडिया पर हल्ला मचाना प्रारम्भ कर दिया कि कम मतदान का मतलब है मोदी जी हार गये, हार गये। किंतु जब चार दिन बाद चुनाव आयोग ने मतदान प्रतिशत के अंतिम आंकड़े सार्वजनिक किये तो विपक्ष एक बार फिर ईवीएम और चुनाव आयोग पर संदेह करने लग गया। विपक्षी दलों  के नेता सोशल मीडिया पर आकर ईवीएम -ईवीएम करने लगे और कहा कि चुनाव आयेग ने खेल कर दिया- खेल कर दिया।
इसी राजनैतिक गहमा गहमी के बीच एस्ट्राजेनेका आक्सफोर्ड की कोरोना वैक्सीन कोविडशील्ड को लेकर विपक्ष ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की छवि को खराब करने का अभियान प्रारम्भ कर दिया । इस आभासी मुद्दे को टूलकिट के नए टूल के रूप में सोशल मीडिया के विभिन्न प्लेटफार्मो पर उठाया जा रहा है । कोविडशील्ड के प्रकरण में जनहित याचिका दायर करने वाले दलाल भी सक्रिय हो गये हैं और सुप्रीम कोर्ट पहुंच  गये हैं जबकि वास्तविकत यह है कि कोविडशील्ड से नुकसान बहुत ही कम हुआ है जबकि लाभ अधिक हुआ है। कोविडशील्ड को लेकर उठ रहे सभी विवाद पूरी तरह से भ्रामक खबरो पर आधारित हैं।  विशेषज्ञों का मत है कि हर वैक्सीन के साइड इफैक्ट होते ही हैं। वह वैक्सीन लगाने के 21 दिन या एक महीने के भीतर ही हो सकता था। कोविड काल में दो वर्ष पूर्व लगे इस वैक्सीन से कोई नुकसान नहीं अपितु लाभ ही हुआ है।
अभी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लातूर की जनसभा में कहा कि 2014 के पहले एक समय था जब खबर आती थी कि, “सड़क पर पड़ी कोई भी लावारिस वस्तु को आप लोग न छुएं यह बम हो सकता है किंतु अब एक ऐसी खबरें आनी बंद हो गयी है” ठीक उसके अगले ही दिन सुबह -सुबह दिल्ली के स्कूलों को बम से उड़ाने की धमकी आती है और विरोधी दल आनंदमग्न  होकर उस पर अपनी विकृत राजनीति प्रारम्भ कर देते हैं किंतु बाद में वह फर्जी अफवाह निकलती है हालांकि प्रकरण की अभी जांच चल रही है और हो सकता है कि यह विपक्ष की ही करतूत रही हो । कुछ ऐसी ही विकृत राजनीति कर्नाटक के एक सैक्स स्कैंडल को लेकर देखने को मिल रही है विरोधी दल उसमें भी भाजपा की छवि खराब करने का प्रयास  कर रहे थे। कर्नाटक का सैक्स स्कैंडल कांग्रेस के शासनकाल में ही हुआ है।  इसमें यह भी महत्वपूर्ण है कि कर्नाटक में कांग्रेस के अपने ही नेता की बेटी के साथ लव जिहाद की बर्बर घटना होने जाने के बाद कांग्रेस तुष्टीकरण के कारन मौन रही और जब  भाजपा ने इसका विरोध किया, परिवार के साथ आगे बढ़ी तो सेक्स स्कैंडल को लेकर हल्ला मचा दिया गया।
आज की भाजपा अब 2014 के पहले वाली भाजपा नहीं रही कि उसे झूठे नैरेटिव चलाकर डराया, धमकाया या हराया जा सकता है। अब भजपा नेता हर बात के लिए सतर्क रहते हैं । गुजरात के एक सांसद रूपाला के बयान के बाद नैरेटिव चलाया गया कि राजपूत और क्षत्रिय भाजपा से नाराज हो गये हैं किंतु गुजरात में मोदी व भाजपा नेताओं की जनसभाओं में जैसी भीड़ आ रही है उससे लग रहा है कि राजपूत व क्षत्रियों की भाजपा से नाराजगी का नैरेटिव भी छिन्न भिन्न हो चुका है।
प्रेषक – मृत्युंजय दीक्षित
फोन नं- 9198571540
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रवीन्द्रनाथ टैगोर की 163वीं जयंती पर “गीतांजली विमर्श” कार्यक्रम

कोटा / रवीन्द्रनाथ टैगोर की 163वीं जयंती पर मगलवार को राजकीय सार्वजनिक मण्डल पुस्तकालय कोटा मे पाठक संवाद कार्यक्रम का आयोजन किया गया। स्वागत करते हुए  संभागीय पुस्तकालयध्यक्ष डॉ दीपक कुमार श्रीवास्तव ने बताया की 1913 में रवीन्द्रनाथ टैगोर साहित्य में नोबेल पुरस्कार पाने वाले पहले नॉन-यूरोपियन और पहले भारतीय थे। टैगोर को नोबेल पुरस्कार उनकी सबसे प्रसिद्ध कविता संग्रह गीतांजलि के लिए दिया गया था। वह एक कवि, लेखक, नाटककार, संगीतकार, दार्शनिक, समाज सुधारक थे।
उन्होंने कहा कि रविंद्र नाथ टैगोर के विचार आज भी प्रासंगिक हैं।
अध्यक्षता कर रहे पूर्व मुख्य कार्यकारी अधिकारी, फेदरलाईट डेवेलेपर्स इण्डिया राजू गुप्ता ने कहा कि रवीन्द्रनाथ टैगोर को 1915 में नाइट हुड की उपाधि से सम्मानित किया गया था। लेकिन उन्होंने वर्ष 1919 में अमृतसर (जलियांवाला बाग) नरसंहार के विरोध में ये सम्मान अंग्रेजों को वापस लौटाया दिया था।
मुख्य अतिथि पूर्व उप मुख्य अभियंता तापीय परियोजना बिगुल जैन ने कहा कि “गुरुदेव का मानना था कि अध्ययन के लिए प्रकृति का सानिध्य ही सबसे बेहतर है. उनकी यही सोच 1901 में उन्हें शांति निकेतन ले आई। उन्होंने खुले वातावरण में पेड़ों के नीचे शिक्षा देनी शुरू की। रवींद्रनाथ टैगोर के पिता ने 1863 में एक आश्रम की स्थापना की थी, जिसे बाद रवींद्रनाथ टैगोर ने शांतिनिकेतन में बदला।
मुख्य वक्ता प्रेरक उदबोधक चन्द्रशेखर सिंह ने कहा कि जो यह जानते हुए भी वृक्ष लगाता है कि वह उनकी छाया में कभी नहीं बैठ पाएगा, उसने जीवन का अर्थ समझना शुरू कर दिया है। इसका अर्थ यह है कि हमें दरिद्र नारायण (मानव समाज) की सेवा करनी चाहिए।
विशिष्ट अतिथि डॉ. शशि जैन राष्ट्रीय अध्यक्ष समरस साहित्य सृजन संस्थान भारत ने कहा कि सफलता का अर्थ है आत्म-समर्पण, जो हमें अपने काम में पूरी तरह से लगे रहने की क्षमता देता है। कार्यक्रम का शुभारंभ अतिथियों द्वारा गुरुदेव रवीन्द्रनाथ एवं माँ शारदे की तस्वीर पर माल्यार्पण एवं दीप प्रज्ज्वलन के साथ किया गया । कार्यक्रम में वाचनालय के करीब 40 पाठक मौजूद रहे।
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स्वरोजगार से बदलेगा जीवन

बेरोजगारी अनेक समस्याओं की जड़ है। बेरोजगार युवा मानसिक तनाव की चपेट में आ जाते हैं। बहुत से युवा हताशा में नशे की लत के आदी बन जाते हैं। अकसर युवा भटक भी जाते हैं। कई बार वे आपराधिक दलदल में फंस जाते हैं। इसके कारण उनका जीवन तो नष्ट होता ही है, साथ ही परिवार की प्रतिष्ठा पर भी दुष्प्रभाव पड़ता है। बेरोजगार युवकों द्वारा आत्महत्या करने के समाचार भी सुनने को मिलते रहते हैं।

बरोजगारी के कारण

देश में बेरोजगारी के अनेक कारण हैं। इनमें निरंतर बढ़ती जनसंख्या प्रमुख है। इसके अतिरिक्त घटती कृषि भूमि, कुटीर उद्योंगों का निरंतर समाप्त होना, युवाओं का अपने पैतृक कार्यों से मोहभंग होना तथा राजकीय नौकरी पाने की इच्छा आदि भी बेरोजगारी में वृद्धि होने के कारण हैं। यदि हम स्वतंत्रता से पूर्व के परिदृश्य पर दृष्टि डालें, तो उस समय लोग स्वरोगार में ही लगे थे। किन्तु  स्वतंत्रता के पश्चात् जिस गति से जनसंख्या में वृद्धि हुई, उससे तीव्र गति से रोजगार में गिरावट आई। शिक्षा प्राप्त करने का उद्देश्य केवल राजकीय नौकरी प्राप्त करना हो गया। जिस गति से जनसंख्या में वृद्धि हुई उस गति से रोजगार के अवसर सृजित नहीं हुए। परिणामस्वरूप बेरोजगारी की समस्या दिन- प्रतिदिन बढ़ने लगी।

युवाओं को प्रशिक्षण

नि:संदेह जीवनयापन के लिए रोजगार अत्यंत आवश्यक है। रोजगार प्राप्त करने के लिए कुशल होना अति आवश्यक है। बेरोजगारी के साथ-साथ अकुशलता भी एक चुनौती बनी हुई है। जो युवा कुशल हैं, उन्हें कहीं न कहीं रोजगार मिल जाता है। किन्तु जो युवा अकुशल हैं, उन्हें रोजगार प्राप्त करने के लिए अनेक कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने युवाओं की इस समस्या को समझा। इसलिए उन्होंने युवाओं को कुशल करने के लिए दीन दयाल उपाध्याय ग्रामीण कौशल्य योजना प्रारंभ की। उन्होंने 25 सितंबर 2014 को इसका शुभारंभ किया था।

इस योजना का उद्देश्य गरीब ग्रामीण युवाओं को नौकरियों में नियमित रूप से न्यूनतम पारिश्रमिक के समान या उससे अधिक मासिक पारिश्रमिक प्रदान करना है। यह योजना ग्रामीण विकास मंत्रालय द्वारा ग्रामीण आजीविका को बढ़ावा देने के लिए की क्रियान्वित की जा रही है। यह आजीविका प्रदान करने तथा निर्धनता कम करने का एक अभियान है, जो राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन का एक भाग है। इससे ऐसे गरीब ग्रामीण युवा लाभान्वित हो रहे हैं, जो कुशल होना चाहते हैं। इसकी संरचना प्रधानमंत्री के अभियान ‘मेक इन इंडिया’ के लिए एक प्रमुख योगदानकर्ता के रूप में की गई है।

रोजगार के अवसर

भारतीय जनता पार्टी द्वारा जारी लोकसभा चुनाव 2024 के घोषणा पत्र ‘भाजपा का संकल्प मोदी की गारंटी 2024’ में कहा गया है कि पिछले दस वर्षों में 25 करोड़ लोग गरीबी से बाहर निकले हैं तथा 14 करोड़ से अधिक युवाओं को प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना के अंतर्गत कौशल प्रशिक्षण से कुशल बनाया गया है। भारत को दुनिया के तीसरे सबसे बड़े स्टार्टअप इको सिस्टम के रूप में स्थापित किया गया है। प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने वादा किया है कि वे स्टार्टअप का और अधिक विस्तार टियर-2 और टियर-3 शहरों में करेंगे। इसके अतिरिक्त देश को पर्यटन और सर्विसेज का वैश्विक केंद्र बनाएंगे, जिससे पूरे देश में रोजगार के अवसर सृजित होंगे।

स्वरोजगार की महत्ता

स्वरोजगार का जीवन में महत्वपूर्ण स्थान है। ऐसे अनेक मामले देखने में आए हैं, जब उच्च पदों पर आसीन व्यक्तियों ने अपनी नौकरी से त्याग पत्र देकर अपना व्यवसाय प्रारंभ किया। नौकरी में सीमित आय होती है, जबकि व्यवसाय के माध्यम से व्यक्ति अपार संपत्ति अर्जित कर सकता है। देश के अनेक लोग व्यवसाय के माध्यम से ही निर्धनता से निकलकर धनवान बने हैं।

वास्तव में स्वरोजगार से जहां एक ओर बेरोजगार युवा को रोजगार मिलता है, वहीं दूसरी ओर उसके परिवार के अन्य सदस्यों को भी रोजगार प्राप्त होता है। इससे उन्हें नियमित रूप से काम मिलता है। उनका रोजगार स्थायी होता है, तो इससे उनकी आर्थिक स्थिति भी सुदृढ़ होती है। इससे निर्धनता कम करने में भी सहायता मिलती है।

वास्तव में निर्धनों को आर्थिक अवसरों की अत्यंत आवश्यकता है। इसलिए उनके कार्य क्षमताओं को विकसित करने के संबंध में भी अपार अवसर हैं। देश के जनसांख्यिकीय अधिशेष को एक लाभांश में विकसित करने के लिए सामाजिक एकजुटता के साथ ही मजबूत संस्थानों के एक नेटवर्क का होना अति आवश्यक है। भारतीय और वैश्विक नियोक्ता के लिए ग्रामीण निर्धनों को वांछनीय बनाने के लिए कौशल्य के वितरण के लिए गुणवत्ता और मानक सर्वोपरि हैं। इस योजना के अंतर्गत कई कार्य किए जाते हैं, जिनमें  कौशल्य एवं नियोजन, अवसर पर समुदाय के भीतर जागरूकता पैदा करना, निर्धन ग्रामीण युवाओं की पहचान करना, परिक्षण व कार्य में रुचि रखने वाले ग्रामीण युवाओं को एकत्रित करना, युवाओं और उनके माता-पिता की काउंसिलिंग तथा योग्यता के आधार पर उनका चयन करना, रोजगार के अवसर को बढ़ाने के लिए ज्ञान, उद्योगों से जुड़े कौशल और मनोदृष्टि प्रदान करना, ऐसी नौकरियां प्रदान करना, जिनका सत्यापन स्वतंत्र जांच करने की विधियों से किया जा सके और जो न्यूनतम पारिश्रमिक से अधिक भुगतान करती हों आदि सम्मिलित है। यह नियुक्ति के बाद कार्यरत व्यक्ति को स्थिरता के लिए सहायक भी है।

दीन दयाल उपाध्याय ग्रामीण कौशल्य योजना युवाओं को प्रशिक्षण देगी, जिससे उनके करियर में प्रगति होगी। युवाओं का विकास होगा। बेरोजगारी के कारण होने वाले पलायन में कमी आएगी। यह राज्यों को कौशल्य परियोजनाओं का पूर्ण स्वामित्व लेने के लिए सक्षम बनाती है। इस योजना के कई विशेष घटक हैं। इसके अंतर्गत सामाजिक रूप से वंचित समूह के अनिवार्य कवरेज द्वारा उम्मीदवारों का पूर्ण सामाजिक समावेश सुनिश्चित किया जाता है। धन का 50 प्रतिशत अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों, 15 प्रतिशत अल्पसंख्यकों के लिए और तीन प्रतिशत विकलांग व्यक्तियों के लिए निर्धारित करने का प्रावधान है। उम्मीदवारों में एक तिहाई संख्या महिलाओं की होनी चाहिए।

इस योजना के अंतर्गत एक त्रिस्तरीय कार्यान्वयन प्रतिरूप है। नीति निर्माण, तकनीकी सहायता और सरलीकरण एजेंसी के रूप में दीन दयाल उपाध्याय ग्रामीण कौशल्य योजना राष्ट्रीय यूनिट ग्रामीण विकास मंत्रालय में कार्य करती है। यह योजना के राज्य मिशन कार्यान्वयन को समर्थन प्रदान करती है और परियोजना की कार्यान्वयन एजेंसियां कौशल्य और नियोजन परियोजनाओं के माध्यम से कार्यक्रम को लागू करती है।

यह योजना बाजार की मांग के समाधान के लिए नियोजन से जुड़ी कौशल्य परियोजनाओं के लिए 25,696 रुपये से लेकर एक लाख रुपये प्रति व्यक्ति तक की वित्तीय सहायता प्रदान करती है, जो परियोजना की अवधि और परियोजना के आवासीय या गैर आवासीय होने पर निर्भर करता है। योजना तीन महीने से लेकर 12 महीने तक के प्रशिक्षण अवधि की परियोजनाओं को वित्तीय सहायता प्रदान करती है। इस योजना के अंतर्गत अनुदान के घटक दीन दयाल उपाध्याय ग्रामीण कौशल्य योजना 250 से अधिक व्यापार क्षेत्रों जैसे खुदरा, आतिथ्य, स्वास्थ्य, निर्माण, मोटर वाहन, चमड़ा, विद्युत, पाइप लाइन, रत्न और आभूषण आदि को अनुदान प्रदान करता है। इसका एकमात्र अधिदेश है कि कौशल प्रशिक्षण मांग आधारित होना चाहिए और कम से कम 75 प्रतिशत प्रशिक्षुओं की नियुक्ति होनी चाहिए।

ऐसे में कुशल युवकों के लिए रोजगार के द्वार खुल जाएंगे। इस योजना का प्रचार-प्रसार भी होना चाहिए, ताकि अधिक से अधिक युवा इसका लाभ उठा सकें।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का कहना है कि विकसित भारत के निर्माण के जिस संकल्प को लेकर हम आगे बढ़ रहे हैं, युवा उसके महत्वपूर्ण स्तंभ हैं। हमारा दृष्टिकोण ऐसा विकसित भारत बनाना है जहां प्रत्येक युवा अपने श्रम एवं कौशल क्षमता का पूरा उपयोग कर सके। हम युवाओं को सीखते हुए कमाने के अवसर देने के लिए एनईपी के अंतर्गत एकीकृत शिक्षा प्रणाली विकसित करेंगे। हम युवाओं को एनईपी और अन्य योजनाओं के माध्यम से गुणवत्तापूर्ण शिक्षा, विश्व स्तरीय खेल सुविधाएं, रोजगार और उद्यमिता के अवसरों की गारंटी देते हैं।

(लेखक- राजनीतिक विश्लेषक है )

Dr.Sourabh Malviya

Associate Professor

Deptt. of Journalism $ Mass Communication

University of Lucknow- UP

मो. 8750820740

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स्त्री की सार्थक भूमिका तलाश करता डॉ.क्षमा चतुर्वेदी सृजन

महिला सशक्तिकरण के दौर में जब की हर क्षेत्र में महिलाएं पुरुषों के कंधे से कंधा मिला कर ऊंचाइयां छू रही हैं एसे में भी सदियों पुरानी सामाजिक परम्पराओं में महिलाें की स्थित में कोई विशेष परिवर्तन नहीं हुआ है। हम अपने आप को कितना भी आधुनिक और प्रगतिशील कहें परंतु सदियों पुरानी सामाजिक रूढ़ियां और मान्यताएं आज भी अपनी जड़ें जमाए हैं। दहेज, बाल विवाह, कन्या हत्या, अंधविश्वास, नारी अत्याचार, लिंग भेद, नशा कर पत्नी को मरना पीटना आदि आज के प्रगतिशील समाज की सच्चाई है । पहले जहां बालिका के जन्म को हेय दृष्टि से देख उन्हें मारने के कई तरीके थे उससे भी आगे बढ़ कर अब तो भ्रूण परीक्षण के नाम पर कोख में ही मार दिया जाता है। यह कड़वा सच्च महिला सशक्तिकरण के प्रयासों की परतें उधेड़ने को पर्याप्त है।
आज की दुनिया में भी जहां टी.वी. पर आधुनिक टैक्नोलॉजी, फैशन और नई औरत की सूचना मिलती है, वहीं ज्योतिषियों, तांत्रिकों और बाबाओं की भीड़ भी नजर आती है। अंधविश्वास आज भी गहरी पैठ जमाए हुए हैं। समाज में परिवर्तन इन्हीं कारणों से कठिन संघर्ष के बाद धीमी गति से होता है। पहले मानसिकता में परिवर्तन आता है, फिर व्यवहार में। अपने जीवन में और साहित्य में इस परिवर्तन को महसूस कर कथाकार डॉ.क्षमा चतुर्वेदी ने अपनी कहानियों तथा उपन्यासों में इस परिवर्तन को अभिव्यक्ति देने का प्रयास  किया है।
 सकारात्मकता का स्पंदन सामाजिक सरोकारों के प्रति जागरूक करता है। इनका अधिकांश कथा लेखन स्त्री की स्त्री होने की पहचान, उसकी अस्मिता तथा स्वाभिमान से जुडा़ है। परन्तु जिस रूप में स्त्री विमर्श को ध्वनित किया जा रहा है, इनका रचना कर्म उससे कहीं बाहर रहकर स्त्री की सार्थक भूमिका तलाश करता दिखाई देता है।
एक साक्षात्कार में इन्होंने बताया कि   आज स्त्री विमर्श एक लोकप्रिय विषय हो गया है। दरअसल इसके पीछे स्त्री के सुख-दुख, उसकी आत्मनिर्भरता और उसके अस्तित्व के बुनियादी सवाल नहीं है, वरन किस प्रकार वह अमेरिकन या यूरोपियन औरत की भांति एक उत्तेजक सैक्स सिम्बल बन सकती है इसकी अधिक चर्चा है। स्त्री को किस प्रकार उसकी निजी शख्शियत उसके मातृत्व, उसकी पारिवारिक पृष्ठभूमि और उसकी सांस्कृतिक गरिमा से छीनकर एक बिकाऊ कमोडिटी में बदल दिया जाय इसकी अधिक चिंता है। देखते ही देखते गत 25 वर्षों में साहित्य का परिदृश्य बदल सा गया है।
नारी विमर्श को लेकर जो महिला कथाकार या कहानियां चर्चित होने लगी हैं, उनकी पहली विशेषता यही हो गई है कि किस प्रकार कहानी में स्त्री देह अपने तन-मन के गोपनीय रहस्यों को पुरूष पाठकों के लिए किस सीमा तक अनावृत करती चली जाए । आज भारत की सामान्य औरत की समस्या औरत के भीतर औरत होने की समस्या है। वह अपने स्त्री होने की दैहिक और मानसिक कमजोरियों को समझकर उससे बाहर निकलने की अनवरत जिजीविषा में संलग्न है। यहां औरत की मुक्ति उसकी देह में ढलकर एक बिकाऊ कमोडिटी बनकर अधिक से अधिक अनावृत होते जाने में नहीं है। भारतीय परिदृश्य में हजार वर्ष पहले भी स्त्री सामान्य सुविधाओं को पाने के लिए अपनी देह को बेचती आ रही है। परन्तु तब उसकी देह का उतना महिमा मंडन नहीं था, आज फिल्म जगत हो या छोटे पर्दे का टेलीविजन या इंटरनेट हो, नारी विमर्श के लिए जिस स्त्री देह को परोसा जा रहा है, वह उसका सम्मान नहीं है। लगता है जैसे कि पैसा कमाना ही जीवन का सबसे बड़ा मूल्य बन गया है।
महिला जगत की अपनी समस्याएं हैं, चाहे निरक्षर खेतीहर मजदूर स्त्री की समस्या हो या कामकाजी महिला, या फिर स्कूल जाती छोटी लड़की हो या वृद्ध महिला, एक पूरी औरत को उसके दैहिक, मानसिक और सामाजिक परिदृश्य में लिखने वाली महिला कथाकारों की संख्या बहुत बढ़ी है, वे इन समस्याओं से जूझती हैं और लिख रहीं हैं। महिलाओं की बेशुमार समस्याएं हैं और इन महिलाओं के लिए मात्र दैहिक स्वतंत्रता ही एक बहुत बड़ी समस्या नहीं है। जबकि मूल समस्या है स्त्री को अपने अस्तित्व की, अपनी चेतना को परिष्कृत करने की और अपनी जागृति की है। औरत को अपनी कमजोरियों पर विजय पानी है और अपनी स्वयं की पहचान बनानी है।
रचनाकार क्षमा चतुर्वेदी के जिस रूप में आज नारी विमर्श की चर्चा होती है उस रूप में स्त्री को संवेदित करने में विश्वास नहीं करती, स्त्री विमर्श मात्र सैक्स फ्रीडम नहीं है, इस रूप में वे वैज्ञानिक बोध और आधुनिक ज्ञान-विज्ञान से सन्निहित उस स्त्री के पक्ष में अपने-आपको खड़ा पाती हैं जो अपनी अस्मिता और विवेक के आधार पर अपनी राह चुन सकती हो। इनका साहित्य स्त्री की सकारात्मक अस्मिता का पक्षधर है।
ऐसे  ही सन्दर्भों को अपनी रचना प्रक्रिया के माध्यम से सामने लाने का सार्थक प्रयास है इनका कहानी संग्रह ’ख्वाहिशें’। जिसकी कहानियां सामाजिक परिवर्तन की दशा एवं दिशा के साथ नारी की सकारात्मक एवं सार्थक भूमिका की तलाश करता है। इनकी कहानियों पर कथाकार और समीक्षक विजय जोशी का कहना है “यह कहानी संग्रह इस बात का भी प्रमाण है कि जीवन में कठिन संघर्ष के पश्चात् जो मानसिक परिवर्तन होता है उससे प्रभावित होकर व्यक्ति के व्यवहार में जो बदलाव आता है वह किस दिशा में व्यक्ति को ले जाता है और उस यात्रा में उसे किन-किन पड़ावों पर अनुभूति के दायरों से होकर निकलना पड़ता है।”
इसी अनुभूति को महसूस कराती कहानी ’फासले’ में एकाकी जीवन और संयुक्त जीवन के अनुभवों को अपने भीतर तक विलोपित होते देखते रामबाबू की मनःस्थिति का सजीव चित्रण किया गया है, जब वे अपनी पत्नी शोभा के लिए सोचते कि वह उनके पास बैठे, सुख-दुःख सुने। पर वह तो बहू, पोतों-नातियों में व्यस्त रही। रामबाबू सोचते रह जाते कि क्यों शोभा उनकी सहयोगिनी नहीं बन पाई। वह क्यों नहीं सोच पाती कि वे कितने अकेले रह गये हैं। वे सोचते कि शायद वे ही बच्चों में घुलमिल नहीं पाये हों। उन्हें लग रहा था ये सोचले उन्होंने खुद ही अपने और शोभा के बीच जो पुल बनाये थे, उन्हें पाटना उनके बस की बात नहीं रही है। उन्हें तो भरे-पूरे परिवार में भी कोलाहल के मध्य अनवरत सन्नाटा लगता रहा था। वे बिल्कुल अकेला, नितांत अकेला महसूस करते हैं।
 इनकी कहानी ” कश्मकश ” में लड़कियों के जन्म को लेकर अन्दरूनी ऊहापोह का सटीक चित्रण किया गया है। कहनी में तीसरी औलाद भी बच्ची हो तो जमुना और लीलाबाई ही क्या समाज के हर तबके के परिवार में आंतरिक भूचाल करवटें लेता है। पर जया के समझाने पर जमुना तीसरे बच्चे को जन्म देने की सोचती है। वह लड़की होती है। जया को अपने पति सुरेश के साथ ही रहने का अवसर ट्रांसफर होने से मिलता है। परन्तु वह जमुना को  संभालने के वादे को पूरा न कर पाने की कसक से व्याकुल हो जाती है। तथापि वह सहायता करती है और जब जमुना की बेटी आशा को अपनी दादी लीलाबाई को संभालते देखती है तो जया के अपराध बोध की कसक मिट जाती है।
लड़के-लड़की के भेद की कहानी ’अनकही’ में अपने परिवार के प्रति समर्पित सुजाता के संघर्षमयी जीवन की दास्ताँ को शब्द प्रदान करते हुए बताया गया है कि कैसे सुजाता की माँ सुजाता को उसकी निःस्वार्थ सेवा के लिए सराहती नहीं है और  हमेशा अपने बेटे दीपक की ही तारीफ करती। तब भी जबकि उसके प्लास्टर चढ़ा था और वह बेटे-बहू की उपेक्षा के कारण सुजाता के साथ आयी थी। क्या बेटे हमेशा बेटी की तुलना में भारी पड़ते हैं। ’अनकही’ में यही प्रश्न अनुत्तरित सा होकर पारंपरिकता की टोल लेने लगता है।
इनकी कहानी “अनचाही” पढ़ाई के महत्त्व और आजकल के बच्चों की जिद्द के मध्य की चाहत को बयां करती है।  श्वेता को पढ़ाई का महत्त्व तब समझ आया जब उषा ने कहा कि ’इतनी पढ़ी-लिखी नहीं हूँ, मुझे तो चपरासी की ही नौकरी मिल जाये तो बहुत है। ’एक भले घर की लड़की की यह बात सुनकर श्वेता अपनी जिद्द से बाहर आती है। वह कहती है, ’माँ, मैं भी अब कॉलेज में एडमिशन लूँगी…।’  “दरियान्ंश” कहानी में पति-पत्नी के मध्य की मानसिक दूरियों का बारीक विश्लेषण किया गया है। रिश्तों की तासीर और सम्बन्धों की बनावट का अहसास कराती है ’सूखते सागर’ कहानी।”अपराजिता” कहानी संदेश देती है कि माँ जैसा सब्र, प्रयास और समर्पण किसी में होता है? नहीं ना। भौतिक चकाचौंध से सराबोर जिन्दगी के पड़ावों को सामने लाती कहानी ’’बनते-बिगड़ते समीकरण’’ जिसमें पूरबा के माध्यम से नारी की मनःस्थिति के बनते-बिगड़ते समीकरणों का रेखांकन किया है। कहनी “औकात” नारी के समानाधिकार की चर्चा और सम्बन्धों की पोल खोलती है।
कहनी संग्रह की शीर्षक  कहानी  ” ख्वाइश” में व्यक्ति के मन की चाह, अपेक्षा और द्वंद्व को मार्मिक रूप से उभारा है । पीपल बाबा के वृक्ष को आधार बना कर कहानी में पीपल बाबा वृक्ष के चबूतरे पर बड़की, छुटकी और मँझली हमेशा की तरह आते-जाते उतार-चढ़ाव को  पीपल बाबा के समक्ष बयाँ करती हैं। सब कुछ होते हुए भी कुछ रीता-सा लगता है जिसे वे तीनों महसूस करती हैं। इसीलिए पीपल वृक्ष सोचता है उन ख्वाहिशों के बारे में जो पूरी होकर भी कभी पूरी नहीं होती। इसी सच को अहसास कराते हैं कि ख्वाहिशों के पीछे न भागकर जीवन के आनन्द में वह  जीवन के पड़ाव तलाशें जो स्व के अस्तित्व को उभार कर एक सुकून दे।
रचनाकार की कहानियों के कतिपय उक्त प्रसंग स्पष्ट करते हैं  कि व्यक्ति की मानसिकता में परिवर्तन जिस तेजी से हो रहा है उसी तेजी से व्यवहार में परिवर्तन आ रहा है। यह परिवर्तन जहाँ रिश्तों की  संवेदनाओं में कठोरता का अहसास करा रहा है वहीं सम्बन्धों की दृढ़ता को खोखला करता जा रहा है।
संवाद और परिवेश के चित्रण एवं पात्रों के भाव-अनुभावों के क्रियाकलापों द्वारा लेखिका ने विषयवस्तु को  जिस मार्मिक रूप से अभिव्यक्ति दी है ,यही कहानियों की विशेषता है।
हिंदी भाषा में लिखी इनकी कहानियों, बाल कहानियों और उपन्यासों की भाषा अत्यंत सरल और सहज है। सभी रचनाएं बोलती हुई प्रतीत होती हैं। पात्रों के हाव-भाव, दुख-दर्द और खुशी पाठकों को गहराई तक सोचने को मजबूर करते हैं। रचना के अनुरूप परिवेश और विषयवस्तु महान कहानीकार और उपन्यासकार मुंशी प्रेम चंद की याद दिलाते हैं।पिछले पचास वर्षों से लेखन करने वाली रचनाकार का मर्म है लोगों को आगे बढ़ने की प्रेरणा मिले। अब तक साहित्यिक यात्रा में लगभग 300 कहानियां और 500 बाल कहानियां लिख चुकी हैं।
इनके तीन उन्यास भी सामाजिक और पारिवारिक समस्याओं को रेखांकित कर लिखे गए हैं। उपन्यास “अपराजिता” महिलाओं में अंध विश्वास पर चोट करता है। उपन्यास” छाया मत छूना मन” पारिवारिक जीवन के संघर्षों में आगे बदने की प्रेरणा देता है। उपन्यास “अपने हिस्से की धूप” भी एसे ही विषयों पर है। उपन्यासों के साथ-साथ 2021 तक इनकी ग्यारह कहानी संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं। इनमें ‘ सूरज डूबने से पहले’,‘एक और आकाश’, मुट्ठी भर धूप’, ‘चुनौती’, ‘अपनी ही जमीन पर’, ‘अनाम रिश्ते’, ‘ स्वयं सिद्धा’ , ‘ ख्वाइशें ‘,’ निःशब्द ‘, ‘ बेधर’ ‘ बेबसी ‘ और’ वसंत की प्रतीक्षा’ कहानी संग्रह हैं।
इनके बारह बाल कथा संग्रह भी प्रकाशित हो चुके हैं। इनमें ‘खरगोश के सींग’, ‘गधे की अक्ल’, ‘मुनमुन के पटाखे’, ‘जंगल में मंगल’, ‘समय का मूल्य’ ‘म्याऊं की खीर’, ‘टिंकू का स्कूल’, ‘चुपके-चुपके, खेल-खेल में, ‘बया की दावत’, ‘खोमचे वाला’, ‘बड़ा कौन’ बाल कथा संग्रह हैं।
इनके कथा साहित्य पर एक लघु प्रबन्ध और दो एम. फिल. प्रबन्ध लिखे जा चुके हैं। एक  शोध प्रबन्ध पूर्ण हो कर शोधार्थी को पीएच. डी. की उपाधि अवार्ड हो गई है और एक शोधार्थी वर्तमान में शोध कर रहा है।
परिचय :
सामाजिक परिवेश और समस्याओं पर खास कर महिलाओं के संदर्भ में सृजनरत कथा लेखिका डॉ.क्षमा चतुर्वेदी का जन्म इलाहबाद में 1945 में पिता सतीश चंद और माता स्व. कलावती के आंगन में हुआ। पिता इलाहबाद से इंदौर आ गए और इनकी समस्त शिक्षा इंदौर में हुई।आपने गणित विषय में एम.एससी.की डिग्री और पीएच.डी.की उपाधि प्राप्त की।
संयोग है की गणित जैसे विषय में शिक्षा प्राप्त कर आज प्रसिद्ध कथाकार के रूप में पहचान बनाई। इनकी माता भी साहित्य प्रेमी होने से इन्हें भी साहित्य के संस्कार मिले और कॉलेज के समय से ही ये भी लिखने लगी। इनका विवाह  साहित्यकार पति नरेंद्र नाथ चतुर्वेदी से होने से इनके लेखन को पंख लग गए। इनकी कहानियां और विविध विषयों पर आलेख देश की सभी पत्र- पत्रिकाओं में प्रमुखता से प्रकाशित होते हैं।
राजस्थान साहित्य अकादमी ,उदयपुर द्वारा वर्ष 2012 के लिए  विशिष्ठ साहित्यकार सम्मान और 51 हजार रुपए की राशि से पुरस्कृत होने के साथ – साथ विभिन्न संस्थाओं द्वारा आपको सम्मानित किया गया। आज भी आप निरंतर साहित्य सृजन में रत हैं।
संपर्क :
1 ल 1 , दादाबाड़ी
कोटा,324009 ( राजस्थान )
मोबाइल : 8239479566
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लेखक
डॉ.प्रभात कुमार सिंघल
लेखक एवं पत्रकार, कोटा
डॉ.प्रभात कुमार सिंघल
डॉ.प्रभात कुमार सिंघल
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सोशल मीडिया से किस्सा दीपिका चिखलिया के विवाह का

रामानंद सागर द्वारा बनाए गए टीवी धारावाहिक रामायण में सीता की भूमिका निभाने वाली  दीपिका चिखलिया जी की प्रेम कहानी भी बड़ी रोचक है। उन दिनों दीपिका फिल्म इंडस्ट्री में नई-नई ही आई थी। वो अपनी पहली फिल्म सुन मेरी लैला में काम कर रही थी। उस वक्त तक दीपिका जी को ज़रा भी अंदाज़ा नहीं था कि कभी रामायण नाम से कोई सीरियल बनेगा और ये उसमें सीता का रोल निभाकर ये आमजन के लिए सीता ही बन जाएंगी।
दीपिका को उस फिल्म में एक काजल ब्रांड का विज्ञापन करना था। वो विज्ञापन कुछ इस तरह था कि वो फिल्म का दृश्य लगे।
जिस दिन उस विज्ञापन की शूटिंग होनी थी उस दिन काजल बनाने वाली उस कंपनी के मालिक का बेटा भी वहां शूटिंग देखने आया। उसका नाम था हेमंत टोपीवाला। हेमंत टोपीवाला का परिवार साल 1961 से कॉम्सैटिक्स के बिजनेस में था और अपने बिजनेस को और बढ़ाने का विचार कर रहा था। उस दिन पहली दफा दीपिका चिखलिया की मुलाकात हेमंत टोपीवाला से हुई। पहले दिन तो इनके बीच सिर्फ हाय-हैलो और करियर को लेकर कुछ बातें हुई। और दूसरे दिन जब हेमंत फिर से सेट पर आए तो दीपिका से उनकी थोड़ी बातचीत भी हुई।
हेमंत ने तब अपने खानदानी बिजनेस को को समझना शुरू ही किया था। उन्होंने अपने पिता के ऑफिस जाना तब स्टार्ट ही किया था। साथ ही साथ उनकी पढ़ाई भी चल रही थी। फिल्म की शूटिंग कंप्लीट होने के बाद इन दोनों की कोई मुलाकात नहीं हुई। लेकिन लगभग एक साल बाद हेमंत टोपीवाला ने दीपिका चिखलिया को उनके घर के पास स्थित एक ब्यूटी पार्लर में आते देखा। उन्होंने दीपिका से मुलाका की। और दीपिका को बताया कि वो पूरे एक साल से उनसे मिलने के बारे में सोच रहे थे।
उस मुलाकात के बाद अगले कुछ सालों तक दीपिका चिखलिया और हेमंत टोपीवाला की मुलाकात नहीं हुई। फिर साल 1991 में एक फैमिली फ्रेंड के ज़रिए एक दफा फिर से दीपिका चिखलिया और हेमंत टोपीवाला एक-दूजे से मिले। दोनों के बीच दो घंटे तक बातचीत हुई। उस बातजीत में हेमंत जी ने दीपिका जी को अपनी भावनाओं के बारे में बताया। दीपिका जी भी शुरू से ही कहीं ना कहीं हेमंत जी को पसंद करती ही थी। तो उन्होंने भी फैसला किया कि वो हेमंत टोपीवाला को अपना जीवनसाथी बनाएंगी।
ये 28 अप्रैल 1991 की बात है। अगले दिन दीपिका चिखलिया का जन्मदिन था। अपने जन्मदिन के दिन दीपिका चिखलिया ने अपने माता-पिता को बता दिया कि वो अपने लिए जीवनसाथी की तलाश कर चुकी हैं। दूसरी तरफ हेमंत टोपीवाला ने भी अपने घरवालों को खबर दे दी थी कि वो रामायण की सीता को उनकी बहू बनाना चाहते हैं। भला उस ज़माने में कौन दीपिका चिखलिया को अपने घर की बहू बनाने से इन्कार कर सकता था।
सो हेमंत टोपीवाला के घरवाले खुशी-खुशी दीपिका को अपनी बहू बनाने को तैयार हो गए। दूसरी तरफ दीपिका जी के घरवालों को भी उनकी पसंद से कोई ऐतराज़ ना था। इसलिए उसी दिन दोनों के घरवाले मिले और इनकी एक छोटी सी रोका सेरेमनी हो गई। फिर उसी साल 22 नवंबर को धूमधाम से दीपिका चिखलिया और हेमंत टोपीवाला जी की शादी हो गई। इनकी शादी में फिल्म इंडस्ट्री की कई हस्तियों ने शिरकत की थी। सुपरस्टार राजेश खन्ना भी इनकी शादी में पहुंचे थे।
दीपिका जी की शादी को अब 33 साल का वक्त हो चुका है। इनकी दो बेटियां हैं। निधि और जूही। दीपिका जी राजनीति में भी अपनी किस्मत आजमा चुकी हैं और साल 1991 में वो गुजरात के वडोदरा से भाजपा सांसद भी रह चुकी हैं। राजनीति में दीपिका जी को लाने का श्रेय रामायण के रावण का किरदार निभाने वाले एक्टर अरविंद त्रिवेदी जी को दिया जाना चाहिए। उन्होंने दीपिका जी को भाजपा नेता लालकृष्ण आडवाणी से मिलाया था।
#deepikachikhalia #happybirthday
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अमेरिकी बैंक क्यों हो रहे दिवालिया?

अमेरिका में वर्ष 2023 में 3 बैंक (सिलिकन वैली बैंक, सिगनेचर बैंक, फर्स्ट रिपब्लिक बैंक) डूब गए थे एवं वर्ष 2024 में भी एक बैंक (रिपब्लिक फर्स्ट बैंक) डूब गया है। अमेरिकी अर्थव्यवस्था में अमेरिकी केंद्रीय बैंक, यूएस फेडरल रिजर्व, द्वारा ब्याज दरों में की गई वृद्धि के चलते बैंकों के असफल होने की यह परेशानी बहुत बढ़ गई है।

सिलिकन वैली बैंक ने कई तकनीकी स्टार्ट अप एवं उद्यमी पूंजी फर्म को ऋण प्रदान किया था। इस बैंक के पास वर्ष 2022 के अंत में 20,900 करोड़ अमेरिकी डॉलर की सम्पत्तियां थी और यह अमेरिका के बड़े आकार के बैंकों में गिना जाता था और हाल ही के समय में डूबने वाले बैंकों में दूसरा सबसे बड़ा बैंक माना जा रहा है। इसी प्रकार, सिगनेचर बैंक ने न्यूयॉर्क कानूनी फर्म एवं अचल सम्पत्ति कम्पनियों को ऋण सुविधाएं प्रदान कर रखी थीं। इस बैंक के पास वर्ष 2022 के अंत में 11,000 करोड़ अमेरिकी डॉलर से अधिक की सम्पत्ति थी और अमेरिका में हाल ही के समय में डूबने वाले बड़े बैंकों में चौथे स्थान पर आता है। 31 जनवरी 2024 तक के आंकड़ों के अनुसार, रिपब्लिक फर्स्ट बैंक की कुल सम्पत्तियां 600 करोड़ अमेरिकी डॉलर एवं जमाराशि 400 करोड़ अमेरिकी डॉलर थीं। न्यू जर्सी, पेनसिल्वेनिया और न्यूयॉर्क में बैंक की 32 शाखाएं थीं जिन्हें अब फुल्टन बैंक की शाखाओं के रूप में जाना जाएगा क्योंकि फुल्टन बैंक ने इस बैंक की सम्पत्तियों एवं जमाराशि को खरीद लिया है।

पीयू रिसर्च संस्थान के अनुसार, चार शताब्दी पूर्व, वर्ष 1980 एवं वर्ष 1995 के बीच अमेरिका में 2,900 बैंक असफल हुए थे। इन बैंकों के पास संयुक्त रूप से 2.2 लाख करोड़ अमेरिकी डॉलर की सम्पत्ति थी। इसी प्रकार, वर्ष 2007 से वर्ष 2014 के बीच अमेरिका में 500 बैंक, जिनकी कुल सम्पत्ति 95,900 करोड़ अमेरिकी डॉलर थी, असफल हो गए थे। ऐसा कहा जाता है कि विशेष परिस्थितियों को छोड़कर अमेरिका में सामान्यतः बैंक असफल नहीं होते हैं। परंतु, इस सम्बंध में अमेरिकी रिकार्ड कुछ और ही कहानी कह रहा है। वर्ष 1941 से वर्ष 1979 के बीच, अमेरिका में औसतन 5.3 बैंक प्रतिवर्ष असफल हुए हैं।

वर्ष 1996 से वर्ष 2006 के बीच औसतन 4.3 बैंक प्रतिवर्ष असफल हुए हैं एवं वर्ष 2015 से वर्ष 2022 के बीच औसतन 3.6 बैंक प्रतिवर्ष असफल हुए हैं। वर्ष 2022 में अमेरिकी बैंकों को 62,000 करोड़ अमेरिकी डॉलर का नुक्सान हुआ था। इसके पूर्व, वर्ष 1921 से वर्ष 1929 के बीच अमेरिका में औसतन 635 बैंक प्रतिवर्ष असफल हुए हैं। यह अधिकतर छोटे आकार के बैंक एवं ग्रामीण बैंक थे और यह एक ही शाखा वाले बैंक थे। अमेरिका में आई भारी मंदी के दौरान वर्ष 1930 से वर्ष 1933 के बीच 9,000 से अधिक बैंक असफल हुए थे। इनमें कई बड़े आकार के शहरों में कार्यरत बैंक भी शामिल थे और उस समय इन बैंकों में जमाकर्ताओं की भारी भरकम राशि डूब गई थी। वर्ष 1934 से वर्ष 1940 के बीच अमेरिका में औसतन 50.7 बैंक प्रतिवर्ष बंद किए गए थे।

अमेरिका में इतनी भारी मात्रा में बैंकों के असफल होने के कारणों में मुख्य रूप से शामिल है कि वहां छोटे छोटे बैंकों की संख्या बहुत अधिक होना है। बैकों के ग्राहक बहुत पढ़े लिखे और समझदार हैं। बैंक में आई छोटी से छोटी परेशानी में भी वे बैंक से तुरंत अपनी जमाराशि को निकालने पहुंच जाते हैं, जबकि बैंक द्वारा इस राशि से खड़ी की गई सम्पत्ति को रोकड़ में परिवर्तित करने में कुछ समय लगता है।

इस बीच बैंक यदि जमाकर्ता को जमाराशि का भुगतान करने में असफल रहता है तो उसे दिवालिया घोषित कर दिया जाता है और इस प्रकार बैंक असफल हो जाता है। कई बार बैंकों द्वारा किए गए निवेश (सम्पत्ति) की बाजार में कीमत भी कम हो जाती है, इससे भी बैंकें अपने जमाकर्ताओं को जमाराशि का भुगतान करने में असफल हो जाते हैं। अभी हाल ही में अमेरिका में मुद्रा स्फीति की दर को नियंत्रित करने के उद्देश्य से ब्याज दरों में लगातार बढ़ौतरी की गई है, जिससे इन बैकों द्वारा अमेरिकी बांड में किये गए निवेश की बाजार में कीमत अत्यधिक कम हो गई है।
अब इन बैंकों को बांड में निवेश की बाजार कीमत कम होने के स्तर तक प्रावधान करने को कहा गया है और यह राशि इन बैकों के पास उपलब्ध ही नहीं है, जिसके चलते भी यह बैंक असफल हो रहे हैं। एक सर्वे में यह बताया गया है कि आने वाले समय में अमेरिका में 190 अन्य बैंकों के असफल होने का खतरा मंडरा रहा है क्योंकि ब्याज दरों के बढ़ने से ऋण की मांग बहुत कम हो गई है। विभिन्न कम्पनियों ने अपने विस्तार की योजनाओं को रोक दिया है, इससे निर्माण की गतिविधियों में कमी आई है। अमेरिकी केंद्रीय बैंक, फेडरल रिजर्व, का पूरा ध्यान केवल मुद्रा स्फीति को कम करने पर है एवं अमेरिकी अर्थव्यवस्था में विकास दर को नियंत्रित करने के प्रयास किए जा रहे हैं ताकि अमेरिकी अर्थव्यवस्था में उत्पादों की मांग कम हो और मुद्रा स्फीति को नियंत्रण में लाया जा सके। इसके चलते कई कम्पनियां अपने कर्मचारियों की छंटनी कर रही है एवं देश में युवा वर्ग बेरोजगार हो रहा है।

पूंजीवाद पर आधारित आर्थिक नीतियां अमेरिका में बैंकिंग क्षेत्र में उत्पन्न समस्याओं का हल नहीं निकाल पा रही हैं। अब तो अमेरिकी अर्थशास्त्री भी मानने लगे हैं कि आर्थिक समस्याओं के संदर्भ में साम्यवाद के बाद पूंजीवाद भी असफल होता दिखाई दे रहा है एवं आज विश्व को एक नए आर्थिक मॉडल की आवश्यकता है। इन अमेरिकी अर्थशास्त्रियों का स्पष्ट इशारा भारत की ओर है क्योंकि इस बीच भारतीय आर्थिक दर्शन पर आधारित मॉडल भारत में आर्थिक समस्याओं को हल करने में सफल रहा है।

अमेरिका में बैकों के असफल होने की समस्या मुख्यतः मुद्रा स्फीति को नियंत्रित करने के उद्देश्य से ब्याज दरों में की गई वृद्धि के कारण उत्पन्न हुई हैं। दरअसल, मुद्रा स्फीति को नियंत्रित करने के उद्देश्य से उत्पादों की मांग को कम करने के लिए ब्याज दरों में वृद्धि करने के स्थान पर बाजार में उत्पादों की उपलब्धता बढ़ाई जानी चाहिए ताकि इन उत्पादों की कीमत को कम रखा जा सके। प्राचीन भारत में उत्पादों की उपलब्धता पर विशेष ध्यान दिया जाता था, जिसके कारण मुद्रा स्फीति की समस्या भारत में कभी रही ही नहीं है। बल्कि भारत में उत्पादों की प्रचुरता के चलते समय समय पर उत्पादों की कीमतें कम होती रही हैं।
 ग्रामीण इलाकों की मंडियों में आसपास ग्रामों में निवास करने वाले ग्रामीण व्यापारी एवं उत्पादक अपने उत्पादों को बेचने हेतु एकत्रित होते थे, सायंकाल तक यदि उनके उत्पाद नहीं बिक पाते थे तो वे इन उत्पादों को कम दामों पर बेचना प्रारम्भ कर देते थे ताकि गांव जाने के पूर्व उनके समस्त उत्पाद बिक जाएं एवं उन्हें इन उत्पादों को अपने गांव वापिस नहीं ले जाना पड़े। इस प्रकार भी विभिन्न उत्पादों की भारतीय मंडियों में मांग से अधिक आपूर्ति बनी रहती थी। अतः उत्पादों की कमी के स्थान पर उत्पादों की प्रचुर मात्रा में उपलब्धता पर ध्यान दिया जाता था, इससे प्राचीन भारतीय ग्रंथों में मुद्रा स्फीति का जिक्र ही नहीं मिलता है। दूसरे, पूंजीवादी अर्थव्यवस्था में आर्थिक मॉडल एवं नियमों को बहुत जटिल बना दिया गया है। इससे भी कई प्रकार की आर्थिक समस्याएं खड़ी हो रही है जिसका हल विकसित देश नहीं निकाल पा रहे हैं।
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वैदिक धर्म में तलाक नहीं हो सकता

आचार्य प्रियव्रत वेदवाचस्पति

वेद की सम्मति में एक बार पति-पत्नी रूप में जिसका हाथ पकड़ लिया, जीवन भर उसी का हो कर रहना चाहिए।

वैदिक धर्म में तलाक की भी जगह नहीं हैं। वर-वधू को विवाह से पूर्व भली-भाँति देख-भाल और पड़ताल करके अपना साथी चुनने का आदेश दिया गया है – खूब अच्छी तरह परख कर अपना साथी चुनो। पर जब एक बार विवाह हो गया तो फिर विवाह टूट नहीं सकता – तलाक नहीं हो सकता। फिर तो एक दूसरे की कमी और दोषों को दूर करते हुए प्रेम और सहिष्णुता से गृहस्थ में रहो। एक पुरुष की एक ही पत्नी और एक स्त्री का एक ही पति होना चाहिये तथा विवाहित पति-पत्नी में कभी तलाक नहीं होना चाहिये इस विषय पर प्रकाश डालने वाले वेद के कुछ स्थल पाठकों के अवलोकनार्थ यहाँ उद्धृत किये जाते हैं –

√ अथर्ववेद (7.37.1) में पति से पत्नी कहती है – “हे पति तुम मेरे ही रहो, अन्य नारियों का कभी चिन्तन भी मत करो।”
√ अथर्ववेद (2.30.2) में पति पत्नी से कहता है – “हे पत्नी ! तू मुझे ही चाहने वाली हो, तू मुझ से कभी अलग न हो ।”

√ अथर्ववेद के चौदहवें काण्ड और ऋग्वेद के दसवें मण्डल के 85 वें सूक्त में विवाह के समय नव वर-वधू को उपदेश दिया है कि – “तुम दोनों पति-पत्नी सारी आयु भर इस विवाहित जीवन के बन्धन में स्थिर रहो, तुम कभी एक दूसरे को मत छोड़ो।”

√ अथर्ववेद में वहीं चौदहवें काण्ड में (14.2.64) कहा है – “ये नव विवाहित पति-पत्नी सारी आयु भर एक दूसरे के साथ इस प्रकार इकट्ठे रहें जिस प्रकार चकवा और चकवी सदा इकट्ठे रहते हैं।”

√ ऋग्वेद (10.85.47) में विवाह के समय वर-वधू अपने आप को पूर्ण रूप से एक-दूसरे में मिला देने का संकल्प करते हुए कहते हैं – “सब देवों ने हम दोनों के हृदयों को मिला कर इस प्रकार एक कर दिया है जिस प्रकार दो पात्रों के जल परस्पर मिला दिये जाने पर एक हो जाते हैं।

√ अथर्ववेद (14.1.50) में वर अपनी वधू को सम्बोधन कर के कहता है – “हे पत्नि ! तू मुझ पति के साथ बुढ़ापे तक चलने वाली हो।” “हे पत्नि ! तू मुझ पति के साथ सौ वर्ष तक जीवित रह।” (अथर्ववेद 14.1.52)

वेद के इन और ऐसे ही अन्य स्थलों में स्पष्ट रूप से प्रतिपादन किया गया है कि आदर्श स्थिति यह है कि एक स्त्री का एक पति और एक पुरुष की एक ही पत्नी रहनी चाहिये तथा उनमें कभी तलाक नहीं होना चाहिये।

विवाह वास्तव में वह दिव्य सम्बन्ध है जिस में दो व्यक्ति अपना हृदय एक-दूसरे को प्रदान कर देते हैं। हृदय एक ही बार और एक ही व्यक्ति को दिया जा सकता है। एक बार दिया हुआ हृदय फिर वापिस नहीं लिया जा सकता। इसीलिये वेद एक-पति और एक-पत्नी के व्रत का विधान करते हैं तथा तलाक का निषेध करते हैं। वेद की सम्मति में एक बार पति-पत्नी रूप में जिसका हाथ पकड़ लिया, जीवन भर उसी का हो कर रहना चाहिये। यदि एक-दूसरे में कोई दोष और त्रुटियां दीखने लगें तो उनसे खिन्न हो कर एक-दूसरे को छोड़ नहीं देना चाहिये।

प्रत्युत स्नेह और सहानुभूति के साथ सहनशीलता की वृत्ति का परिचय देते हुए परस्पर के दोषों को सुधारने का प्रयत्न करते रहना चाहिये। जो दोष दूर ही न हो सकते हों उन के प्रति यह सोच कर कि दोष किस में नहीं होते, उपेक्षा की वृत्ति धारण कर लेनी चाहिये। स्नेह और सहानुभूति से एक-दूसरे की कमियों को देखने पर वे कमियां परस्पर के परित्याग का हेतु कभी नहीं बनेंगी।

इसी अभिप्राय से वैदिक विवाह संस्कार में वर-वधू मिल कर मन्त्र-ब्राह्मण के वाक्यों से कुछ आहुतियां देते हैं जिन का भावार्थ इस प्रकार हैं – “तुम्हारी मांग में, तुम्हारी पलकों में, तुम्हारे रोमा आवर्तों में, तुम्हारे केशों में, देखने में, रोने में, तुम्हारे शील-स्वभाव में, बोलने में, हंसने में, रूप-काँति में, दाँतों में, हाथों और पैरों में, तुम्हारी जंघाओं में, पिंडलियों में, जोड़ों में, तुम्हारे सभी अङ्गों में कहीं भी जो कोई दोष, त्रुटि या बुराई है, मैं इस पूर्णाहुति के साथ उन सब तुम्हारी त्रुटियों और दोषों को शान्त करता हूं।” विवाह संस्कार की समाप्ति पर ये वाक्य पढ़ कर आहुतियें दी जाती हैं।

इन आहुतियों द्वारा वर-वधू यह संकल्प करते हैं कि हमने एक-दूसरे को उसके सारे गुण-दोषों के साथ ग्रहण किया है। हम एक-दूसरे के दोषों से खिन्न हो कर परस्पर झगड़ेंगे नहीं, और न ही कभी एक-दूसरे का परित्याग करने की सोचेंगे। हम तो विवाह-संस्कार की इन पूर्णाहुतियों के साथ यह संकल्प दृढ़ करते हैं कि हम सदा परस्पर के दोषों को स्नेह और सहानुभूति से सुधारने और सहने का प्रयत्न करते रहेंगे। विवाह से पहले हमने अपने साथी को इसलिये चुना था कि वह हमें अपने लिये सब से अधिक उपयुक्त और गुणी प्रतीत हुआ था। अब विवाह के पश्चात् हमारी मनोवृत्ति यह हो गई है कि क्योंकि मेरी पत्नी मेरी है और मेरा पति मेरा है, इसलिये मेरे लिये मेरी पत्नी सब से अधिक गुणवती है और मेरा पति मेरे लिये सब से अधिक गुणवान् है। अब हमारे हृदय मिल कर एक हो गये हैं। अब हमें एक-दूसरे के गुण ही दीखते हैं, अवगुण दिखते ही नहीं। और यदि कभी किसी को किसी में कोई दोष दीख भी जाता है तो उसे स्नेह और सहानुभूति से सह लिया जाता है तथा सुधारने का यत्न किया जाता है। विवाह की इन पूर्णाहुतियों में हमने ऐसा संकल्प दृढ़ कर लिया है और अपनी मनोवृत्ति ऐसी बना ली है। जब हमारे दिल और आत्मा एक हो गये हैं तो हमारा ध्यान आपस की ऊपरी शारीरिक त्रुटियों की ओर जा ही कैसे सकता है?

इस प्रकार वैदिक धर्म में न तो अनेक-पत्नी प्रथा (Polygamy) का स्थान है और न ही अनेक-पति प्रथा (Poliandry) का। इसके साथ वैदिक धर्म में तलाक का भी विधान नहीं है। यह ऊपर दिये गये वेद के प्रमाणों से अत्यंत स्पष्ट है।

[स्रोत : मेरा धर्म, प्रथम संस्करण 1957 ई., पृ 15-18, प्रस्तुतकर्ता : भावेश मेरजा]

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ब्रह्मा जी के मन से उत्पन्न हुए थे महान ऋषि मरिचि

सृष्टि के प्रारंभिक  दिनों में मरीचि नाम के एक महान ऋषि हुए थे। वे ब्रह्मा के मानस पुत्र तथा सप्तर्षियों में से एक थे। ये ब्रह्मा जी के मन से उत्पन्न हुए थे। मरीचि का शाब्दिक अर्थ चंद्रमा या सूर्य से आने वाली प्रकाश की किरण है। और मरीचि का अर्थ मरुतों (‘चमकदार’) का प्रमुख होना भी होता है। गीता के अनुसार मरीचि वायु देव है और कश्यप ऋषि के पिता हैं। इनका विवाह दक्ष प्रजापति की पुत्री सम्भूति के साथ हुआ था। इन्हें मरीचि या मारिषि के नाम से भी जाना जाता है। प्रकाश की किरण के संदर्भ में, ऋषि मरीचि को सप्तर्षियों में से एक माना जाता है, जिन्हें प्रथम मन्वंतर में सात महान ऋषियों के रूप में भी जाना जाता है।

महर्षि मरीचि ब्रह्मा के अन्यतम एक प्रधान प्रजापति हैं। इन्हें द्वितीय ब्रह्मा ही कहा गया है। ऋषि मरीचि पहले मन्वंतर के पहले सप्तऋषियों की सूची के पहले ऋषि है। यह दक्ष के दामाद और शंकर के साढू भी थे। इनकी पत्नि दक्ष-कन्या संभूति थी। इनकी दो और पत्नियां थी- कला और उर्णा। संभवत: उर्णा को ही धर्मव्रता भी कहा जाता है जो एक ब्राह्मण कन्या थी। दक्ष के यज्ञ में मरीचि ने भी शंकर जी का अपमान किया था। इस पर शंकर जी ने इन्हें भस्म कर डाला था।

इन्होंने ही भृगु को दण्डनीति की शिक्षा दी है। ये सुमेरु के एक शिखर पर निवास करते हैं और महाभारत में इन्हें चित्रशिखण्डी कहा गया है। ब्रह्मा ने पुष्करक्षेत्र में जो यज्ञ किया था उसमें ये अच्छावाक् पद पर नियुक्त हुए थे। दस हजार श्लोकों से युक्त ब्रह्मपुराण का दान पहले-पहल ब्रह्मा ने इन्हीं को किया था। वेद और पुराणों में इनके चरित्र का चर्चा मिलती है।

मारीचि का जीवन उनके वंशजों के विवरण से अधिक जाना जाता है, विशेष रूप से ऋषि कश्यप से। मारीचि का विवाह कला से हुआ और उन्होंने कश्यप को जन्म दिया था।  कश्यप की माता ‘कला’ कर्दम ऋषि की पुत्री और ऋषि कपिल देव की बहन थी। कश्यप को कभी-कभी प्रजापति के रूप में भी स्वीकार किया जाता है, जिसे अपने पिता से सृजन का अधिकार विरासत में मिला था। माना जाता है कि वह हिंदू भगवान विष्णु की निरंतर ऊर्जा से बने हैं। माना जाता है कि उन्होंने ब्रह्मा की तपस्या पुष्कर में की थी। माना जाता है कि वे नारद मुनि के साथ, महाभारत के दौरान भीष्म को मिलने गए थे, जब वह तीर बिस्तर पर लेटे थे। मारीचि को तपस्या करने के लिए युवा महाराजा ध्रुव के सलाहकार के रूप में भी उद्धृत किया गया है। उनका नाम कई हिंदू धर्मग्रंथों जैसे ब्रह्मांड पुराण और वेदों में भी पाया जाता है।


(लेखक भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण, आगरा मंडल में सहायक पुस्तकालय एवं सूचनाधिकारी पद से सेवामुक्त हुए हैं। वर्तमान समय में उत्तर प्रदेश के बस्ती नगर में निवास करते हुए समसामयिक विषयों,साहित्य, इतिहास, पुरातत्व, संस्कृति और अध्यात्म पर अपने विचार व्यक्त करते रहते हैं।)

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