Monday, May 13, 2024
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अंगोला के बहाने इस्लाम को प्रतिबंधित करने की साजि़श?

पश्चिमी देशों द्वारा इस्लामी देशों में लगातार की जा रही दखलअंदाज़ी और सैन्य हस्तक्षेप  इस्लामी जगत में पश्चिमी देशों के विरुद्ध आक्रोश तथा हिंसा व आतंकवाद का रूप धारण करता जा रहा है। यह स्थिति गत 2 दशकों से यह संकेत दे रही थी कि हो न हो एक दिन इस्लाम धर्म को तथा इस्लाम धर्म के अनुयाईयों को संदेह की दृष्टि से देखा जा सकता है। इतना ही नहीं बल्कि यह भी महसूस किया जाने लगा कि इस्लाम धर्म को प्रतिबंधित करने की साजि़श भी रची जा सकती है। हालांकि इसकी शुरुआत किसी पश्चिमी देश से तो नहीं हुई परंतु ब्रिटेन के सबसे घनिष्ठ दक्षिणी अफ्रीकी देश अंगोला से ऐसी खबरें प्राप्त हो रही हैं कि यहां सभी गैर इसाई अल्पसंख्यक समुदाय व विश्वास के धर्मों व समुदायों को प्रतिबंधित करने का काम शुरु कर दिया गया है।
 
1975 में पुर्तगाल से स्वतंत्रता प्राप्त करने वाला अंगोला हालांकि अपने इस प्रकार के किसी आदेश को अंगोला के संविधान तथा वहां के कानून के अंतर्गत् उठाया जाने वाला कदम बता रहा है। अंगोला के कानूनों के मुताबिक यहां किसी भी धार्मिक संगठन,समुदाय अथवा विश्वास के सदस्यों को धार्मिक मान्यता प्राप्त करने के लिए उनकी कम से कम एक लाख से अधिक की सं या होना ज़रूरी है। इसके अतिरिक्त देश के 18 में से कम से कम 12 प्रांतों में उनकी उपस्थिति होना भी अनिवार्य है। इस अनुपात तक पहुंचने पर ही किसी भी धर्म,विश्वास अथवा समुदाय के लोगों को अंगोला में अपना धर्मस्थल निर्माण करने,धार्मिक स्कूल अथवा संस्था बनाने की अनुमति मिल सकती है तथा इसके लिए उन्हें लाईसेंस जारी किया जा सकता है। परंतु वर्तमान समय में अंगोला की लगभग 18 मिलियन की आबादी में मुसलमानों की सं या केवल 90 हज़ार है।
               
 
अंगोला के उपरोक्त कानून की आड़ में सबसे पहले इस्लाम धर्म व इससे जुड़े धर्मस्थल विशेषकर मस्जिदों व शिक्षण संस्थाओं को निशाना बनाया जा रहा है। हाँलाकि मुसलमानों के धर्मस्थलों के विरुद्ध कार्रवाई की शुरुआत 2010 से ही हो चुकी है। गत् दो वर्षों में अंगोला में आठ मस्जिदों को ध्वस्त करने, उन्हें गिराए जाने अथवा जलाए जाने का समाचार है। अंगोला में पूरे देश में कुल 78 मस्जिदें हैं जिनमें राजधानी लुआंडा के अतिरिक्त अन्य सभी मस्जिदें सरकार द्वारा यह कहकर बंद करा दी गई हैं कि इनके पास मस्जिद बनाने अथवा इन्हें संचालित करने का उपयुक्त लाईसेंस नहीं है। लुआंडा सरकार द्वारा उठाए जाने वाला इस्लाम विरोधी कदम वहां की इसाई बाहुल्य जनता का भी मनोबल बढ़ा रहा है।
 
अंगोला सरकार जिस किसी मस्जिद को अवैध घोषित करती है उसे स्वयं मुसलमानों के हाथों से गिराए जाने के लिए 73 घंटों की समय सीमा निर्धारित करती है। समय सीमा बीत जाने के बाद सरकारी अमले के लोग तथा इस्लाम विरोधी इसाई जनता स्वयं आकर मस्जिद को या तो ध्वस्त करने लग जाती है या फिर उसमें आग लगा देती है। अंगोला सरकार द्वारा गैर इसाई धर्मों के विरुद्ध इस प्रकार का कदम उठाए जाने का कारण देश का सांस्कृतिक संरक्षण भी बताया जा रहा है।
               
 
अंगोला की इस घटना के बाद पूरे विश्व में इस बात को लेकर व्यापक बहस छिड़ गई है कि क्या अपने सांस्कृतिक संरक्षण के नाम पर दूसरे धर्म व विश्वास के लोगों की धार्मिक स्वतंत्रता छीन लेना जायज़ है? क्या किसी देश को इस बात का हक हासिल है कि वह कानून की आड़ में किसी धर्म व आस्था को गैर कानूनी या अवैध ठहरा सके? वैसे तो अंगोला में खुद इसाई धर्म से संबंध रखने वाले लगभग एक हज़ार विभिन्न समुदाय के लोग रहते हैं। परंतु उनमें कैथोलिक इसाईयों की सं या आधी से अधिक है जबकि एक चौथाई लोग प्रोटेस्टेंट विचारधारा से जुड़े इसाई हैं। जबकि मुसलमानों की जनसं या अंगोला की कुल जनसं या का मात्र एक प्रतिशत है। और यह लगभग सभी विदेशी हैं तथा पश्चिमी अफ्रीकी देशों तथा अन्य दूसरे देशों से अंगोला आए हैं। इन मुसलमानों में अधिकांशत: सुन्नी मुसलमान हैं। यहां विदेशी इसाई मिशनरीज़ भी काफी सक्रिय हैं। अंगोला की स्वतंत्रता से पूर्व यानी 1975 से पहले तो पूरे अंगोला में मिशनरीज़ का बोलबाला था। परंतु अब अंगोला सरकार द्वारा कुछ स ती किए जाने के बाद पश्चिमी देशों द्वारा प्रायोजित मिशनरीज़ की संख्या में काफी कमी आ चुकी है। अंगोला सरकार का मानना है कि मिशनरीज़ का देश में प्रचार-प्रसार यहां के नागरिकों में देश की स्वतंत्रता से पूर्व की भावनाओं का पोषण करता है।
               
 
बहरहाल,दक्षिण अफ्रीकी देश अंगोला का नाम अब दुनिया के पहले ऐसे देश के रूप में लिया जाने लगा है जिसने इस्लाम धर्म को प्रतिबंधित करने जैसा विवादित कदम उठाया है। खबरें हैं कि वहां राष्ट्रीय संस्कृति के संरक्षण के नाम पर दूसरे कई बाहरी धर्मों व मतों पर पाबंदी लगाए जाने का काम भी अंगोला सरकार द्वारा शुरु कर दिया गया है।
 
अंगोला की सांस्कृतिक मंत्री रोसा क्रूज़ के अनुसार-'न्याय और मानवाधिकार मंत्रालय ने इस्लाम को अंगोला में कानूनी वैधता नहीं दी है इसलिए अगले आदेश तक देश की सभी मस्जिदें बंद रहेंगीÓ। इतना ही नहीं बल्कि अंगोला की सभी मस्जिदों को गिराए जाभने के आदेश दिए जाने का भी समाचार है। सरकारी सूत्र इन आदेशों को किसी पूर्वाग्रह के अंतर्गत् उठाया गया कदम मानने के बजाए यह कहकर अपने आदेश को उचित ठहरा रहे हैं कि अंगोला के कानून व नियम पूरे न होने के कारण मस्जिदों को प्रतिबंधित किया गया है। सरकारी सूत्रों की मानें तो इनके पास उचित लाईसेंस नहीं है।
 
परंतु अंगोला में सक्रिय इस्लामी संगठन का आरोप है कि इस देश में गैर इसाई धर्मों व मतों के अनुयाईयों के साथ काफी लंबे समय से सौतेला बर्ताव होता आ रहा है। उदाहरण के तौर पर यहां की सरकार ने देश के सभी धर्मस्थलों,धार्मिक संस्थाओं व संस्थानों में सरकार की ओर से एयरकंडीशंड लगवाए जाने का आदेश जारी किया था। परंतु अब तक अंगोला में जिन 83 स्थानों पर एसी लगाए गए हैं वे सभी स्थान या तो इसाई धर्म के चर्च हैं या इसाई धर्म से जुड़ी अन्य संस्थाएं। जबकि मुसलमानों की ओर से अपने धर्मस्थलों व धार्मिक संस्थानों में लगाए जाने हेतु जो 194 प्रार्थना पत्र दिए गए थे उनमें से किसी एक पर भी आदेश नहीं किया गया है। अंगोला सरकार द्वारा पक्षपात पूर्ण फैसले लिए जाने का इससे बड़ा प्रमाण और क्या हो सकता है?
               
 
अंगोला में यदि कोई मुस्लिम लड़की स्वेच्छा से स्कार्फ या हिजाब सिर पर रखकर स्कूल जाती है तो उसे मिशनरी स्कूल की अध्यापिका कक्षा में दाख़िल नहीं होने देती। इसाई मिशनरी ऐसी स्कार्फधारी लड़की को अपनी सभ्यता व संस्कृति के विरुद्ध मानती है। हालंभकि इन स्कूलों के पास स्कार्फ या हिजाब पहनने वाले बच्चों को कक्षा में दाख़िल न होने देने संबंधी कोई लिखित आदेश नहीं है फिर भी अध्यापिकाएं ऐसी लड़कियों को कक्षा में प्रवेश नहीं देतीं।
 
हिजाब का विरोध करने वाले लोग अंगोला में साफतौर पर यह कहते सुनाई देते हैं कि देश छोड़ो या परदा छोड़ो। कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि अभी कुछ वर्ष पूर्व तक ही गृह युद्ध की त्रासदी का सामना करने वाले अंगोला के लिए किसी धर्म अथवा मत के विरुद्ध कानून बनाना, उन्हें अमल में लाना तथा इस प्रकार दूसरे मत व विश्वासों के लोगों की भावनाओं को आहत करना किसी भी कीमत पर मुनासिब नहीं है। अंगोला सरकार द्वारा अल्पसंख्यकमतों के लोगों के विरुद्ध उठाया जाने वाला इस प्रकार का कदम जहां उन शक्तियों को बल प्रदान करेगा जोकि इस्लाम धर्म को आतंकवाद से जोड़कर देखने की कोशिश कर रही हैं। वहीं यह कदम मुस्लिम जगत में एक और आक्रोश का कारण भी बन सकता है।इतना ही नहीं बल्कि अंगोला सरकार के इस कदम से इस्लाम धर्म में सक्रिय आतंकवादी ताकतों को भी सक्रिय होने का एक और बहाना मिल सकता है।
               
 
अंगोला सरकार द्वारा उठाए गए इस कदम के परिणामस्वरूप दुनिया के कई उन मुस्लिम बाहुल्य देशों में भी इसका प्रभाव नकारात्मक पड़ सकता है जहां इसाई समुदाय के लोग अल्पसं या में रहते हैं। लिहाज़ा न केवल अंगोला बल्कि किसी भी देश के द्वारा उठाया जाने वाला ऐसा कोई कदम सामुदायिक संघर्ष को हवा देने वाला कदम ही माना जाएगा। दुनिया के किसी भी देश को यह अधिकार कतई नहीं होना चाहिए कि वह  छोटी से छोटी सं या रखने वाले समुदाय के धर्म,मत तथा विश्वास को मान्यता प्रदान करने अथवा न करने जैसे आदेश जारी करे या कानून बनाए। यदि दुनिया का कोई देश किसी भी धर्म तथा विश्वास को समान आदर,स मान,सुविधाएं तथा प्राथमिकताएं नहीं दे सकता तो कम से कम उसे अपमानित करने अथवा उसके विरुद्ध साजि़श रचने या उसके धर्मस्थलों को गिराकर अथवा उनके धर्मग्रंथों को जलाकर उसकी भावनाओं को आहत करने का अधिकार अपनी राष्ट्रीय संस्कृति के नाम पर तो कतई नहीं होना चाहिए।    

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अमिताभ जाते जाते गँवई हुलिए में आएंगे केबीसी में

केबीसी में अमिताभ एक लुक में दिखने जा रहे हैं। यह नया अंदाज दर्शकों को चौंका सकता है। दिसंबर के पहले सप्ताह में प्रसारित होने वाले एक एपिसोड में अमिताभ इस तरह से नजर आएंगे। कौन बनेगा करोड़पति के अंत में अमिताभ बच्चन अब अपने दर्शकों को मनोरंजन की दोगुनी सौगात देंगे। बिगबी एक अनोखी भूमिका के साथ शो में अवतरित होंगे। जो दर्शकों अवश्य ही पसंद आएगी। रिएलिटी शो कौन बनेगा करोड़पति अब अपने अंतिम चरण में पंहुच गया है। जिसके चलते शो के बचे एपिसोड में बिगबी कुछ नया प्रयोग करने की सोच रहे हैं, जिससे दर्शकों का पूरा मनोरंजन हो सके। अमिताभ अब पहली बार शो में डबल रोल में नजर आएंगे। बिगबी का ये गेटअप पूरी तरह से एक गांव वाले का होगा। बॉलीवुड मंत्र वेबसाइट पर इस लुक में अमिताभ की फोटो भी जारी हो गई है। यही नहीं गांव वाले बनकर अमिताभ हॉट सीट पर भी बैठेंगे।

 

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महिला पुलिस अधिकारी के सामने रो दिए तरुण तेजपाल

तहलका के संस्‍थापक संपादक तरुण तेजपाल रविवार को रो पड़े। गोवा पुलिस के क्राइम ब्रांच दफ्तर में उनसे करीब पांच घंटे पूछताछ हुई और उनका सामना हुआ गोवा की सबसे सख्त पुलिस अधिकारी से।

इस मामले की जांच का जिम्मा संभाल रहीं सुनीता सावंत गोवा पुलिस की क्राइम ब्रांच की सबसे सख्त अधिकारी मानी जाती हैं। पूर्व पर्यटन मंत्री मिकी पचेको को उनका नाम जरूर याद होगा,‌ जिनसे उन्होंने दस घंटे पूछताछ की थी। जब वह पूछताछ से बाहर निकले, तो ऐसे लग रहे थे मानो जोर का झटका लगा हो।

एक अधिकारी ने साफ कर दिया, "तेजपाल से गहन पूछताछ की जाएगी।"

सुनीता सावंत राज्य में गैर-कानूनी खनन मामले की जांच करने वाली टीम का हिस्सा भी रहीं। इस विवाद ने दो साल पहले गोवा में बवाल मचा दिया था।
सुनीता ने डीजीपी किशन कुमार से इजाजत बिना तेजपाल से जुड़ी कोई भी टिप्पणी करने से मना कर दिया। जो लोग उनसे वाकिफ हैं, उनका कहना है कि सुनीता एक प्रोफेशनल और प्रतिबद्ध अधिकारी है। जल्द ही डीएसपी पद पर उनका प्रमोशन होने वाला है।

एक जानकार ने बताया, "वह क्राइम ब्रांच में सबसे अनुभवी हैं। वह सख्त है और सच बाहर निकालना जानती हैं। उन्होंने कई मामले सुलझाए हैं, विधायकों से सवाल-जवाब किए हैं। वह जानती हैं कि क्या करना है और क्या नहीं। वह भ्रष्ट नहीं हैं।"

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भारत रत्न किस लिए?

सचिन तेंदुलकर 24 वर्ष के सफल कैरियर से सन्यास ले लिये। सचिन के चाहने वालों में एक निराशा हुई कि सचिन अब मैदान पर खेलते हुए नहीं दिखेंगे। सचिन के चाहने वालों ने उनको ईडेन गार्डन से लेकर वानखेड़े स्टेडियम व भारत के अनेकों शहरों कस्बों में अपने अपने तरीकों से याद किया और विदाई दिये। ईडेन गार्डन में मैच से पहले शहर को सचिन के कार्टून से भर दिया गया था उनके ऊपर फूलों की बारिश की गई और टास सचिन के छपे फोटो वाले सिक्के से किया गया। सचिन शतक बना पायेंगे कि नहीं इस पर हजारों करोड़ का सट्टा लगा। सचिन ने 24 वर्ष में बैट के साथ-साथ बॉल से भी अच्छा खेल दिखाया है जिसके कारण वह क्रिकेट के भगवान बन गये। क्रिकेट के इस भगवान में जो क्रियेटविटी थी उसका लाभ पूंजीपति वर्ग ने भी जमकर उठाया।

उनको बहुत से विज्ञापन मिले जिनसे उन्हें करोड़ों रु. मिले। सचिन विज्ञापन करते समय उनके गुणवत्ता को भी नहीं देखते हैं। जिस पेप्सी का प्रचार कर सचिन करोड़ों कमाते हैं वह पेप्सी स्वास्थ्य के लिए कितना खतरनाक है यह बात साबित हो चुका है। सहारा इंडिया के जिस क्यू ब्रांड को हिमाचल प्रदेश के हाईकोर्ट ने प्रतिबंधित कर रखा है, सेबी विज्ञापन के द्वारा लोगों से सार्वजनिक अपील की थी कि वे सहारा के क्यू प्लान में निवेश नहीं करें। भारत के उच्चतम न्यायलय के बावजदू जनता के 24000 करोड़ न लौटाने वाली सहारा इंडिया का प्रचार सचिन और उनके साथी खिलाड़ी करते रहे हैं।

सचिन को जब भारत के लिए आयकर चुकाना पड़ता है तो वे अपने को एक्टर बता कर आयकर में छूट हासिल करते हैं। 2001-2002 और 2004-2005 में स्टार स्पोर्टस व पेप्सी के विज्ञापन से 5,92,31,211 करोड़ की कमाई कि जिस पर 2,08,59,707 रु. आयकर चुकाना था लेकिन सचिन ने आयकर के दावे को चुनौती दी थी और अपना आयकर देने से बच गये थे। जब वह डॉन ब्रेडमैन की 29 शतक लागने की बराबरी की तो उन्हें तोहफे में फरारी कार मिली जिसकी 1.13 करोड़ की आयात ड्युटी चुकाना सचिन ने मुनासिब नहीं समझा। इस मामले पर कोर्ट ने सचिन व केन्द्र सरकार को नोटिस जारी किया। मामला बढ़ता देख फिएट कम्पनी ने यह आयात कर चुकाया। बाद में सचिन ने इस कार को सूरत के एक व्यापारी को बेच दिया, जिस पर तुषार गांधी ने ट्वीट किया था कि जब सचिन फरारी को गिफ्ट में चाहते थे तो आयात कर में छूट मांगी थी, लेकिन जब उन्होंने कार बेच दी है तो क्या उनसे मुनाफा पर टैक्स मांगा जाएगा?

सचिन कभी भारत के लिए नहीं खेले क्रिकेट टीम बीसीसीआई के अधीन होती है और बीसीसीआई एक स्वायत सेवी संस्था है। बीसीसीआई तमिलनाडु सोसाइटीज रजिस्ट्रशन एक्ट के तहत रजिस्टर्ड है इस पर सरकार का कोई भी नियम कानून लागू नहीं होते हैं।

डॉ. मनमोहन सिंह ने सचिन के बधाई पत्र में लिखा है कि ‘‘यह सम्मान आपको प्रदान करके राष्ट्र ने एक जिवंत इतिहास को सम्मानित किया है, जिसकी क्रिकेट में असंख्य उपलध्यिां रही हैं। और उनके अनुकरणीय खेल ने विश्वभर में अनेक लोगों को प्रेरित किया है। आप खेल की दुनिया के सच्चे राजदूत हैं। हम आपको एक खेल प्रतिभा और वैश्विक खेल प्रतिमा के रूप में सलाम करते हैं। आप न केवल खेलों में बल्कि मानवीय व्यवहार के अन्य क्षेत्रों में भी देशवासियों को निरंतर प्रेरित करते रहेंगे।’’

इस तरह से ऐसे व्यक्ति को भारत रत्न दिया जा रहा है जिसको भारत की जनता की जीवन से कुछ लेना-देना नहीं है। वह एक संस्था के लिए खेलते रहे और विज्ञापन करके अपने प्रशंसकों को छलते रहे। इससे उन्होंने 1500 करोड़ रु. की कमाई की और उनके विज्ञापन से कम्पनियों ने कितने लाख करोड़ की कमाई की होगी उसका कोई हिसाब नहीं है। भारत रत्न से नवाज कर उनको पूरे जिन्दगी प्रधानमंत्री के वेतन के बराबर या आधी राशि बतौर पेंशन मिलती रहेगी। भारत में कही भी विमान और रेल में फस्र्ट क्लास की यात्रा मुफ्त में कर सकता है, जरूरत पड़ने पर जेड प्लस श्रेणी की सुरक्षा भी दी जाती है। यह सब सुविधाएं आम आदमी के टैक्स के पैसे से दी जाती रहेंगी, जिस टैक्स को बचाने के लिए सचिन झूठ का सहारा लेते रहे। आम आदमी जिसके पास दो जून की रोटी जुटाने के लिए दिन रात मेहनत करनी पड़ती है उसका दिया हुआ टैक्स इस तरह उड़ा दिया जाता है।

क्या यह पुरस्कार सचिन को पूंजीपतियों के सेवा करने के लिए दिया जा रहा है? या यह कांग्रेस के वोट बैंक का सवाल है? जैसा कि केन्द्रीय गृहमंत्री ने बीएसएफ की नई बटालियन को उद्घाटन करते हुए बोले कि सचिन को भारत रत्न जनमानस को देखते हुए दिया गया।

79 वर्षीय डॉ. सीएनआर राव (चिंमामणि नागेश रामचंद्र राव) को भी भारत रत्न देने की घोषणा की गई है। राव को दर्जनों  अंतराष्ट्रीय व राष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त हो चुके हैं। कहा जा रहा है कि दुनिया भर में उनके रसायन शास्त्र के ज्ञान की लोहा माना जाता है। वे इंदिरा गांधी से लेकर राजीव गांधी, एचडी देवगौड़ा, इन्द्रकुमार गुजरात और डॉ मनमोहन सिंह के वैज्ञानिक सलाहाकर परिषद के अध्यक्ष रहे हैंं। कुछ समाचार पत्रों में उनको मंगल अभियान का जनक भी कहा जा रहा है। प्रेस वार्ता में वे नेताओं को इडियट (मूर्ख) कहा। उनका कहना था कि ‘‘हमारा निवेश बहुत कम है, देर से मिलता है। हमें जो पैसे मिले उसके लिए हमने काम किया। हमें जितने पैसो मिल रहे हैं वो कुछ भी नहीं है।’’ बाद में उनको लगा कि उनके बयान से भारत रत्न खटाई में पड़ सकता है तो उन्होंने अपने बयान से पलटते हुए कहा कि नेताओं से उन्हें कोई शिकायत नहीं है। मजाक में नेताओं को बेवकूफ कहा था। हमारे बहुत सारे दोस्त नेता हैं।

जिस देश में 77 प्रतिशत जनता 20 रु. रोजाना पर गुजारा करती है। जहां 9 नौ छात्रों में से एक छात्र ही कालेज पहुंच पाता है। शिक्षा की यह हालत हैं कि मानविकी में डिग्री ले चुके दस में से एक छात्र और इंजीनियरिंग में डिग्री में ले चुके 4 में से एक छात्र ही नौकरी पाने के योग्य होता है। शिक्षण संस्थानों में कमी के कारण कटऑफ इतना ऊंचा पहुंच रहा है कि बहुत से योग्य छात्राओं को भी दाखिला नहीं मिल पाता है। जैसा कि पिछले वर्ष श्रीराम कॉलेज ऑफ कामर्स में बी कॉम आनर्स की कटऑफ 99 प्रतिशत गया। दुनिया में तीन करोड़ गुलामों में से आधे भारत में है। भारत में पैदा होने वाले 1000 नवजातों में से 44 की मृत्यु हो जाती है, जो कि पूरे विश्व में नवजातों की मृत्यु भारत का प्रतिशत 28 है। सरकार ने गर्भवती महिलाओं के लिए योजनायें भी चलाई है लेकिन उन योजनाओं में बजट कम होने के कारण अस्पतालों की हालत बहुत बुरी है इसलिए महिलाएं अस्पताल जाने के बजाय घरों में ही बच्चे को जन्म देती है।

सचिन के 100 शतक से या मंगल पर पहुंच जाने से भारत की आम जनता की स्थिति में कुछ सुधार हुआ है? निश्चित ही सचिन के 100 शतक से पूंजीवाद को फायदा हुआ। मंगल पर हम पहुंच भी जायें तो क्या देश की 100 करोड़ जनता को कोई लाभ पहुंचेगा या पहुंचने वाले अरबपतियों-खरबपतियों की कीमत भी इन्हीं जनमानस  को उठानी पड़ेगी? ऐसे में जनता के टैक्स के पैसे को उन लोगों पर क्यों खर्च किया जा रहा है जो कुछ प्रतिशत के लिए काम करते हैं? क्या इन पैसों से यहां पर शिक्षा, स्वास्थ्य, ट्रांसपोर्ट को नहीं सुधारा जा सकता है?

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नारायण सिंह के खिलाफ बयान दिया तो रात हवालात में गुज़री

इन्दौर से पत्रिका ने खबर दी है कि इन्दौर में �नारायण सांई की पत्नी जानकी उर्फ शिल्पी और गार्ड सतीश वाधवानी के बयान लेकर गुजरात पुलिस शुक्रवार रात इंदौर से रवाना हो गई है। बयान देने के बाद जब गार्ड अपने त्रिवेणी नगर स्थित घर पर पहुंचा ही था कि जूनी इंदौर पुलिस पहुंच गई। दरअसल, एक गुंडे ने गार्ड के खिलाफ पत्नी के साथ छेड़छाड़ का मामला दर्ज करवा दिया था। मामले में सतीश का कहना है, नारायण सांई और उसके सेवादारों ने ही यह षड़यंत्र रचा है।

सतीश को पुलिस ने रातभर लॉकअप में रखा। सुबह जमानत पर बाहर निकला। सतीश ने बताया, वह नारायण सांई और आसाराम के गार्ड था। 2011 तक उनके साथ था। विरोध करने पर छेड़छाड़ की झूठी रिपोर्ट दर्ज करवाकर मुझे डरा रहे हैं।�

सतीश ने बताया कि गुजरात पुलिस कल दोपहर मेरे बयान के बाद टीम ने शिल्पी का घर पूछा। मैं उन्हें लेकर शिल्पी के घर गया। रात सवा 9 बज चुकी थी। मैं वहां से टीम के साथ अपने घर आ गया। घर पहुंचा तो गुंडा और उसकी पत्नी खड़े थे। उन्होने मुझसे बात करना चाही। डर के कारण 100 नंबर पर कंट्रोल रूम फोन लगाया। फिर जूनी इंदौर थाने से दो पुलिसकर्मी आए। उन्होने मुझसे कहा, तुम्हारे खिलाफ छेड़छाड़ का मामला दर्ज हुआ है। थाने पहुंचा तो पता चला, उस गुंडे ने ही केस दर्ज कराया है। पुलिस का कहना है कि फरियादी क्षेत्र का नामी बदमाश है। उस पर 10 से अधिक अपराध दर्ज है। सतीश का कहना है, नारायण सांई मुझे धमकियां दे रहा है। मेरे पास उसकी कॉल रिकार्डिग है। गवली पलासिया आश्रम के सेवादार चिंटू ने एक सप्ताह पहले मुझे धमकाया था जिसकी रिपोर्ट दर्ज कराई है।

पीए पकड़ाई तो सांई भी आ जाएगा गिरफ्त में

सतीश ने बताया, 1994 में उन्होंने आसाराम से दीक्षा ली थी। उसके बाद से वह 2011 तक आसाराम व नारायण सांई के साथ रहे। उसके बाद आसाराम और सतीश के बीच अनबन हो गई। सतीश को आसाराम ने पिटवाया था। आसाराम का अहमदाबाद में महिला आश्रम था। वहीं, नारायण सांई ने हिम्मतनगर के गामदोई के आश्रम में महिला आश्रम बनाया। इनमें वे काले कारनामों को अंजाम देते थे। साढ़े 3 बजे रात को नारायण सांई के रूम से लड़कियां बाहर आती थी। नारायण सांई की पीए मोनिका अग्रवाल निवासी दिल्ली भी गायब है। मोनिका की उसके पिता पुरूषोत्तम से फेसबुक पर बात होती रहती है। यदि पुलिस उसे पकड़ लेगी तो नारायण सांई भी पकड़ा जाएगा। बयान में शिल्पी ने पुलिस को बताया, वह नारायण की करतूतों से बहुत दु:खी है। शिल्पी नारायण सांई से तलाक लेने के लिए कोर्ट का दरवाजा खटखटाएगी।

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तरुण तेजपाल घाटे के बाद भी कैसे चलाते रहे तहलका?

तरुण तेजपाल पर अपनी साथी पत्रकार के कथित यौन उत्पीड़न के आरोपों के बाद तहलका के असली मालिकों और राजनीतिक संबंधों को लेकर सवाल उठने लगे हैं। तहलका पत्रिका को चलाने वाली कंपनी अनंत मीडिया प्राइवेट लिमिटेड वर्ष 2010-12 के दौरान करीब 26 करोड़ का घाटा उठा चुकी है। हाल के वर्षों में उद्योगपति और तृणमूल कांग्रेस के राज्यसभा सांसद केडी सिंह से जुड़ी कंपनियों की अनंत मीडिया में हिस्सेदारी बढ़ी है।

केडी सिंह के अलावा अनंत मीडिया में वर्ष 2012 तक कपिल सिब्बल और राम जेठमलानी की हिस्सेदारी भी रही है। तहलका की प्रबंध संपादक शोमा चौधरी के पास भी कंपनी के 1000 शेयर हैं। केडी सिंह के अलकैमिस्ट समूह की तीन कंपनियों पर गैर-कानूनी तरीके से पूंजी जुटाने के आरोप लग चुके हैं। सरकार इस मामले की स्पेशल फ्रॉड इंवेस्टीगेशन ऑर्गेनाइजेशन (एसएफआईपी) से जांच के आदेश दे चुकी है।

कंपनी रजिस्ट्रार की फाइलिंग के अनुसार, वर्ष 2011 और 2012 के बीच अनंत मीडिया में केडी सिंह से जुड़ी कंपनियों की हिस्सेदारी बढ़कर दोगुनी से ज्यादा हो गई। सितंबर, 2011 में रॉयल बिल्डिंग एंड इंफ्रा. लिमिटेड की हिस्सेदारी 30 फीसदी से बढ़कर सितंबर, 2012 में 65.75 फीसदी तक पहुंच गई, जबकि तरुण तेजपाल की हिस्सेदारी 39.34 फीसदी से घटकर 19.25 फीसदी रह गई।

रॉयल बिल्डिंग एंड इंफ्रा में केडीएस कॉरपोरेशन की 85 फीसदी हिस्सेदारी है। इस तरह केडी सिंह ने केडीएस कॉरपोरेशन व अन्य कंपनियों के जरिए परोक्ष रूप से अनंत मीडिया में बड़ी हिस्सेदारी खरीदी है। सितंबर, 2012 में अनंत मीडिया में छोटे-बड़े कुल 29 हिस्सेदार थे, जिसमें कांग्रेस के कपिल सिब्बल और नामी वकील राम जेठमलानी भी शामिल हैं। सिब्बल, जेठमलानी और शोमा चौधरी की हिस्सेदारी एक फीसदी से कम थी।

तहलका पत्रिका का प्रकाशन करने वाली कंपनी अनंत मीडिया प्राइवेट लिमिटेड कंपनी का गठन अगस्त 2003 में हुआ था। तब कई नामी हस्तियां इससे जुड़ी थीं। लेकिन अब सिर्फ 5 लोग तरुण तेजपाल (टीटी), उनकी बहन नीना तेजपाल शर्मा, अनिल ओबरॉय कुमार, सतीश मेहता और प्रवीण कुमार राठी अनंत मीडिया के निदेशक के तौर पर काम कर रहे हैं। सतीश मेहता केडी सिंह के अलकैमिस्ट ग्रुप की कई कंपनियों में भी निदेशक हैं। माना जाता है कि अलकैमिस्ट की ओर से वही तहलका का कामकाज देखते हैं।

साभार- अमर उजाला से

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बीए बीएससी की पढ़ाई अब इतिहास रह जाएगी

देश में छात्रों की आने वाली नई पीढ़ी बीए और बीएससी जैसी पढ़ाई की पारंपरिक कोर्सो से महरूम रहेगी। विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) ने बीए और बीएससी की पढ़ाई को आउट ऑफ डेटेड बताते हुए इसे बंद करने का प्रस्ताव पास किया है। यूजीसी के मुताबिक बीए, बीएससी की पढ़ाई अब रोजगार परक नहीं है। इसलिए इसमें बदलाव जरूरी है। इसकी जगह नया कोर्स लांच करने की तैयारी है। इसका नाम बैचलर ऑफ वोकेशनल एजूकेशन (बीवोक) रहेगा जो पूरी तरह से रोजगार परक होगा। इंडस्ट्री की मांग के मुताबिक कोर्स करिकुलम तैयार किया जाएगा। यूजीसी ने बीए, बीएससी की पढ़ाई को रिप्लेस करने का मसौदा तैयार कर लिया है। इसका सकरुलर भी राज्य विश्वविद्यालय और संबद्ध महाविद्यालयों की वेबसाइट, लॉगिन पर उपलब्ध है।

200 कालेजों में कोर्स शुरू होगा
27 नवंबर को यूजीसी के वाइस चेयरमैन एस. देवराज की ओर से जारी आदेश में कहा गया है कि प्रयोग के तौर पर बीवोक का नया कोर्स सत्र 2015-16 से शुरू किया जाएगा। पहले फेज के दौरान देश के 200 कालेजों में यह कोर्स शुरू होगा। अगले 10 सालों में संशोधित कोर्स देश के सभी राजकीय, अनुदानित और सेल्फ फाइनेंस कालेजों में पढ़ाने की योजना है। यह व्यवस्था कई फेज में लागू जाएगी।

कालेजों को मिलेगा अनुदान
 
वाइस चेयरमैन ने कहा कि यूजीसी का अनुदान अब परफारमेंस पर आधारित कर दिया गया है। जिस कालेज के पास अच्छी फैकल्टी, रिसर्च, इंफ्रास्ट्रBर और एजूकेशन क्वॉलिटी बढ़िया होगी, उसे अच्छा अनुदान दिया जाएगा।

निजी संस्थानों को 25 हजार करोड़ की मदद
यूजीसी के वाइस चेयरमैन के मुताबिक राष्ट्रीय उच्चतर शिक्षा अभियान के तहत देश के निजी शैक्षिक संस्थानों को 25 हजार करोड़ रुपये का अनुदान दिया जाना है। इससे शैक्षिक गुणवत्ता में जबरदस्त सुधार की उम्मीद है। देवराज ने कहा है कि उच्च शिक्षा की गुणवत्ता में इंग्लैंड और अमेरिका की तरह सुधार की जरूरत है। यूजीसी ने एजूकेशनल इंस्टीट्यूट को और जवाबदेह बनाने की कवायद की है।

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मूवीज नाउ के साथ दिसंबर में मनाइए जश्न

महीने भर ऐक्शन, रोमांच और जोश से भरपूर मनोरंजन का उत्सव

मूवीज नाउ इस वर्ष दिसंबर माह में अपने दर्शकों के लिये शानदार लाइन-अप के साथ उनका मनोरंजन करने के लिए तैयार है! अपनी तीसरी वर्षगांठ का उत्सव मना रहा मूवीज नाउ वाकई में अविस्मरणीय जश्न मनाने के मूड में है! मूवीज नाउ हॉलीवुड शौकीनों के लिये दिसंबर महीने में एक के बाद एक हिट फिल्में प्रस्तुत करके उन्हें जीवनकालिक अनुभव करायेगा। इसमें ऐक्शन से लेकर सस्पेंस और एनिमेशन से भरपूर ब्लॉकबस्टर फिल्में शामिल हैं।

माह की शुरूआत ही धमाके के साथ होगी! मूवीज नाउ पर 1 दिसंबर 2013 को ब्लॉकबस्टर नाइट्स से महीने की शुरूआत होने वाली है। चैनल के पोर्टफोलियो में 25 मिलियन डॉलर से 481 मिलियन डॉलर तक कमाने वाली फिल्मों की आकर्षक श्रृंखला उपलब्ध है। इनमें से सर्वश्रेष्ठ फिल्में ब्लॉकबस्टर नाइट्स के अंतर्गत प्रसारित की जायेंगी, जैसे कि सॉल्ट, राइज ऑफ द प्लैनेट ऑफ द ऐप्स, कुंग फू पांडा सहित कई अन्य फिल्में प्रत्येक रविवार रात 11 बजे प्रसारित की जाएंगी।

जबकि ब्लॉकबस्टर नाइट्स दर्शकों का मूड बनायेगा, हैरी पॉटर- द कम्प्लीट एडवेंचर से शाम की शुरूआत और भी बेहतरीन बनेगी। मूवीज नाउ ना सिर्फ आपको आपके पसंदीदा जादूगर के युद्ध, लड़ाई और जीत के किस्से दिखायेगा, बल्कि इस रोमांचक जादूगर की पूरी श्रृंखला को प्रस्तुत करेगा। 6 दिसंबर से प्रत्येक शुक्रवार 9 बजे देखिय हैरी पॉटर- द कम्प्लीट ऐडवेंचर में स अनोखी फ्रैंचाइज के 7 ब्लॉकबस्टर्स को।

मूवीज नाउ जोश और ऐक्शन का समावेश करते हुये, भारतीय टेलीविजन पर 21 दिसंबर रात 9 बजे सबसे बड़े और अद्भुत मार्शल आर्ट ब्लॉकबस्टर ताइ ची जीरो का प्रसारण करेगा। यही नहीं, एनिमेटेड, प्यारी और मजेदार हिट मैडागास्कर एस्केप 2 अफ्रीका दर्शकों का मनोरंजन करेगी। 28 दिसंबर रात 9 बजे महीने की सुपर मूवी के रूप में बेन स्टिलर, क्रिस रॉक, डेविड श्विमर, जैडा पिंकेट स्मिथ और साशा बैरान कोहेन को मैडागास्कर फ्रैंचाइजी की दूसरी किश्त में एलेक्स, मार्टी, मेलमैन, ग्लोरिया और किंग जूलियन की भूमिका में देखने का अवसर मिलेगा।

त्यौहार का मौसम समाप्त करते हुये मूवीज नाउ जिंगल ऑल द डे और हाइ ऑन 2013 के साथ वर्ष के अंतिम सप्ताह का उत्सव मनायेगा। क्रिसमस और नये वर्ष के जोश का आनंद उठाने के लिये, चैनल हॉलीवुड की फिल्मों के शौकीनों और संपूर्ण परिवार के लिये सर्वश्रेष्ठ हिट फिल्में प्रसारित करेगा। जिंगल ऑल द डे के साथ 24 और 25 दिसंबर को सुबह 9 बजे से बेबीज डे आउट, जिंगल ऑल द वे, आइस एज: डान ऑफ द डायनासोर्स, जुमांजी आदि कई फिल्मों के साथ क्रिसमस का त्योहार मनाएं। हैंगओवर, फाइनल डेस्टिनेशनल, फैंटास्टिक फोर-राइज ऑफ द सिल्वर सर्फर, कराटे किड एव अन्य ऐक्शन ब्लॉकबस्टर फिल्मों के साथ नये साल की मस्ती का जश्न मनाइये।

इस दिसंबर, मूवीज नाउ- हॉलीवुड इन एचडी पर सर्वश्रेष्ठ हॉलीवुड फिल्मों के साथ ऐक्शन और पार्टी का आनंद उठाएं!

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वंदे मातरम राष्ट्र की अस्मिता का गीत

जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी अर्थात जननी और जन्मभूमि स्वर्ग से भी बढ़कर है. फिर अपनी मातृभूमि से प्रेम क्यों नहीं ? अपनी मातृभूमि की अस्मिता से संबद्ध प्रतीक चिन्हों से घृणा क्यों? प्रश्न अनेक हैं, परंतु उत्तर कोई नहीं. प्रश्न है राष्ट्रगीत वंदे मातरम का. क्यों कुछ लोग इसका इतना विरोध करते हैं कि वे यह भी भूल जाते हैं कि वे जिस भूमि पर रहते हैं, जिस राष्ट्र में निवास करते हैं, यह उसी राष्ट्र का गीत है, उस राष्ट्र की महिमा का गीत है?�

वंदे मातरम को लेकर प्रारंभ से ही विवाद होते रहे हैं, परंतु इसकी लोकप्रियता में दिन-प्रतिदिन वृद्धि होती चली गई. �2003 में बीबीसी वर्ल्ड सर्विस द्वारा आयोजित एक अंतर्राष्ट्रीय सर्वेक्षण के अनुसार वंदे मातरम विश्व का दूसरा सर्वाधिक लोकप्रिय गीत है. इस सर्वेक्षण विश्व के लगभग सात हज़ार गीतों को चुना गया था. बीबीसी के अनुसार 155 देशों और द्वीप के लोगों ने इसमें मतदान किया था. �उल्लेखनीय है कि विगत दिनों कर्नाटक विधानसभा के इतिहास में पहली बार शीतकालीन सत्र की कार्यवाही राष्ट्रगीत वंदे मातरम के साथ शुरू हुई. अधिकारियों के अनुसार कई विधानसभा सदस्यों के सुझावों के बाद यह निर्णय लिया गया था. विधानसभा अध्यक्ष कागोदू थिमप्पा ने कहा था कि लोकसभा और राज्यसभा में वंदे मातरम गाया जाता है और सदस्य बसवराज रायारेड्डी ने इस मुद्दे पर एक प्रस्ताव दिया था, जिसे आम-सहमति से स्वीकार कर लिया गया.

वंदे मातरम भारत का राष्ट्रीय गीत है. वंदे मातरम बहुत लंबी रचना है, जिसमें मां दुर्गा की शक्ति की महिमा का वर्णन किया गया है. भारत में पहले अंतरे के साथ इसे सरकारी गीत के रूप में मान्यता मिली है. इसे राष्ट्रीय गीत का दर्जा कर इसकी धुन और गीत की अवधि तक संविधान सभा द्वारा तय की गई है, जो 52 सेकेंड है. उल्लेखनीय है कि 1870 के दौरान ब्रिटिश शासन ने 'गॉड सेव द क्वीन' गीत गाया जाना अनिवार्य कर दिया था. बंकिमचंद्र चटर्जी को इससे बहुत दुख पहुंचा. उस समय वह एक सरकारी अधिकारी थे. उन्होंने इसके विकल्प के तौर पर 7 नवंबर, 1876 को बंगाल के कांतल पाडा नामक गांव में वंदे मातरम की रचना की. गीत के प्रथम दो पद संस्कृत में तथा शेष पद बांग्ला में हैं. राष्ट्रकवि रबींद्रनाथ ठाकुर ने इस गीत को स्वरबद्ध किया और पहली बार 1896 में कांग्रेस के कलकत्ता अधिवेशन में यह गीत गाया गया. 1880 के दशक के मध्य में गीत को नया आयाम मिलना शुरू हो गया. वास्तव में बंकिमचंद्र ने 1881 में अपने उपन्यास 'आनंदमठ' में इस गीत को सम्मिलित कर लिया. उसके बाद कहानी की मांग को देखते हुए उन्होंने इस गीत को और लंबा किया, अर्थात बाद में जोड़े गए भाग में ही दशप्रहरणधारिणी, कमला और वाणी के उद्धरण दिए गए हैं. बाद में इस गीत को लेकर विवाद पैदा हो गया.�

वंदे मातरम स्‍वतंत्रता संग्राम में लोगों के लिए प्ररेणा का स्रोत था. इसके बावजूद इसे राष्ट्रगान के रूप में नहीं चुना गया. वंदे मातरम के स्थान पर वर्ष 1911 में इंग्लैंड से भारत आए जॊर्ज पंचम के सम्मान में रबींद्रनाथ ठाकुर द्वारा लिखे और गाये गए गीत जन गण मन को वरीयता दी गई. इसका सबसे बड़ा कारण यही था कि कुछ मुसलमानों को वंदे मातरम गाने पर आपत्ति थी. उनका कहना था कि वंदे मातरम में मूर्ति पूजा का उल्लेख है, इसलिए इसे गाना उनके धर्म के विरुद्ध है. इसके अतिरिक्त यह गीत जिस आनंद मठ से लिया गया है, वह मुसलमानों के विरुद्ध लिखा गया है. इसमें मुसलमानों को विदेशी और देशद्रोही बताया गया है. �

1923 में कांग्रेस अधिवेशन में वंदे मातरम के विरोध में स्वर उठे. कुछ मुसलमानों की आपत्तियों को ध्यान में रखते हुए कांग्रेस ने इस पर विचार-विमर्श किया. पंडित जवाहरलाल नेहरू की अध्यक्षता में समिति गठित की गई है, जिसमें मौलाना अबुल कलाम आज़ाद, सुभाष चंद्र बोस और आचार्य नरेन्द्र देव भी शामिल थे. समिति का मानना था कि इस गीत के प्रथम दो पदों में मातृभूमि की प्रशंसा की गई है, जबकि बाद के पदों में हिन्दू देवी-देवताओं का उल्लेख किया गया है. समिति ने 28 अक्टूबर, 1937 को कलकत्ता अधिवेशन में पेश अपनी रिपोर्ट में कहा कि इस गीत के प्रारंभिक दो पदों को ही राष्ट्र-गीत के रूप में प्रयुक्त किया जाएगा. इस समिति का मार्गदर्शन रबींद्रनाथ ठाकुर ने किया था.�

मोहम्मद अल्लामा इक़बाल के क़ौमी तराने ’सारे जहां से अच्छा हिन्दोस्तां हमारा’ के साथ बंकिमचंद्र चटर्जी द्वारा रचित प्रारंभिक दो पदों का गीत वंदे मातरम राष्ट्रगीत स्वीकृत हुआ. 14 अगस्त, 1947 की रात्रि में संविधान सभा की पहली बैठक का प्रारंभ वंदे मातरम के साथ हुआ. फिर 15 अगस्त, 1947 को प्रातः 6:30 बजे आकाशवाणी से पंडित ओंकारनाथ ठाकुर का राग-देश में निबद्ध वंदे मातरम के गायन का सजीव प्रसारण हुआ था. डॊ. राजेंद्र प्रसाद ने संविधान सभा में 24 जनवरी, 1950 को �वंदे मातरम को राष्ट्रगीत के रूप में अपनाने संबंधी वक्तव्य पढ़ा, जिसे स्वीकार कर लिया गया. �वंदे मातरम को राष्ट्रगान के समकक्ष मान्यता मिल जाने पर अनेक महत्त्वपूर्ण राष्ट्रीय अवसरों पर यह �गीत गाया जाता है.�

आज भी आकाशवाणी के सभी केंद्रों का प्रसारण वंदे मातरम से ही होता है. वर्ष 1882 में प्रकाशित इस गीत को सर्वप्रथम 7 सितंबर, 1905 के कांग्रेस अधिवेशन में राष्ट्रगीत का दर्जा दिया गया था. इसलिए वर्ष 2005 में इसके सौ वर्ष पूरे होने पर साल भर समारोह का आयोजन किया गया. 7 सितंबर, 2006 को इस समारोह के समापन के अवसर पर मानव संसाधन मंत्रालय ने इस गीत को स्कूलों में गाये जाने पर विशेष बल दिया था. �इसके बाद देशभर में वंदे मातरम का विरोध प्रारंभ हो गया. परिणामस्वरूप तत्कालीन मानव संसाधन विकास मंत्री अर्जुन सिंह को संसद में यह वक्तव्य देना पड़ा कि वंदे मातरम गाना अनिवार्य नहीं है. यह व्यक्ति की स्वेच्छा पर निर्भर करता है कि वह वंदे मातरम गाये अथवा न गाये. इस तरह कुछ दिन के लिए यह मामला थमा अवश्य, परंतु वंदे मातरम के गायन को लेकर उठा विवाद अब तक समाप्त नहीं हुआ है।�

�जब भी वंदे मातरम के गायन की बात आती है, तभी इसके विरोध में स्वर सुनाई देने लगते हैं. इस गीत के पहले दो पदों में कोई भी मुस्लिम विरोधी बात नहीं है और न ही किसी देवी या दुर्गा की आराधना है. इसके बाद भी कुछ मुसलमानों का कहना है कि इस गीत में दुर्गा की वंदना की गई है, जबकि इस्लाम में किसी व्यक्ति या वस्तु की पूजा करने की मनाही है. इसके अतिरिक्त यह गीत ऐसे उपन्यास से लिया गया है, जो मुस्लिम विरोधी है. गीत के पहले दो पदों में मातृभूमि की सुंदरता का वर्णन किया गया है. इसके बाद के दो पदों में मां दुर्गा की अराधना है, लेकिन इसे कोई महत्व नहीं दिया गया है. ऐसा भी नहीं है कि भारत के सभी मुसलमानों को वंदे मातरम के गायन पर आपत्ति है या सब हिन्दू इसे गाने पर विशेष बल देते हैं. कुछ वर्ष पूर्व विख्यात संगीतकार एआर रहमान ने वंदे मातरम को लेकर एक संगीत एलबम तैयार किया था, जो बहुत लोकप्रिय हुआ. उल्लेखनीय बात यह भी है कि ईसाई समुदाय के लोग भी मूर्ति-पूजा नहीं करते, इसके बावजूद उन्होंने कभी वंदे मातरम के गायन का विरोध नहीं किया. �वरिष्ठ साहित्यकार मदनलाल वर्मा क्रांत ने वंदे मातरम का हिन्दी में अनुवाद किया था. अरबिंदो घोष ने इस गीत का अंग्रेज़ी में और आरिफ़ मोहम्मद ख़ान ने उर्दू में अनुवाद किया. �उर्दू में ’वंदे मातरम’ का अर्थ है ’मां तुझे सलाम’. ऐसे में किसी को भी अपनी मां को सलाम करने में आपत्ति नहीं होनी चाहिए ।�

संपर्क�
डॉ. सौरभ मालवीय
प्रकाशन अधिकारी
माखनलाल चतुर्वेदी�
राष्‍ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्‍वविद्यालय, भोपाल �
मो. +919907890614�

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युवा एवम् दिग्गजों संग दिल्ली में सजी शास्त्रीय संगीत की महफिल..

तीन दिवसीय 9वां स.म.प. संगीत सम्मेलन सम्पन्न! श्रोता हुए भाव-विभोर!

नई दिल्ली।सोपोरी अकादमी ऑफ म्यूजि़क एंड परफॉर्मिंग आर्ट्स द्वारा आयोजित 3 दिवसीय स.म.प. संगीत सम्मेलन रविवार की रात सम्पन्न हुआ। कमानी सभागार में आयोजित किये गये इस सम्मेलन में देश के लीजेण्ड्री कलाकारों सहित प्रतिष्ठित एवम् युवा कलाकारों ने अपने शानदार प्रस्तुतिकरण से दिल्ली के वीकेण्ड को खुशनुमा बनाया। संगीत कार्यक्रम के अतिरिक्त स.म.प. पुरस्कार भी प्रदान किये गये।

स.म.प. संगीत सम्मेलन शुक्रवार को रघुवीर सिंह जू. माॅडल स्कूल व सलवाल स्कूल, गुड़गांव द्वारा प्रस्तुत सरस्वती वन्दना के साथ हुआ। जिसके बाद नृत्य व संगीत क्षेत्र में आजीवन योगदान हेतु पंडित बिरजू महाराज एवम् पंडित अनूप जलोटा को वर्ष 2013 के स.म.प. वितस्ता अवार्ड से सम्मानित किया गया।

संगीतमय संध्या की शुरूआत सूफी गायिका रागिणी रेणु के सूफी गायन से हुई। रागिणी ने बाबा बुल्ले शाह के कलाम ‘घंूघट चक हुन सजना..’ से शुरूआत करते हुए हज़रत आमिर खुसरो का कलाम ‘जिहाले मिस्की..’ प्रस्तुत किया और बाबा बुल्ले शाह के कलाम ‘रांझणा..’ से अपनी प्रस्तुति को विराम दिया। रागिणी के बाद संतूर वादन व संगीतकार अभय रूस्तुम सोपोरी ने अपने चिर-परिचित अंदाज में संतूर वादन प्रस्तुत किया। अभय ने राग चम्पाकली में आलाप – जोड़, विलम्बित झपताल में गत, मध्यलय एकताल में सूफीयाना तराना, दु्रत लय में एक बंदिश और अतिदु्रत तीन ताल में एक गत प्रस्तुत करते हुए सभी को मंत्र-मुग्ध किया। अभय के उपरान्त लीजेण्ड्री भजन गायक पंडित अनूप जलोटा जी ने मंच संभाला और ‘ऐसी लागी लगन…’, ‘राम नाम की धुन है…’, ‘रंग दे चुनरिया श्याम पिया…’ और ‘जग में सुन्दर हैं दो नाम..’ आदि सहित विभिन्न भजन से शास्त्रीय संगीत की इस संध्या के पहले दिन को विराम दिया। एक तरफ जहां जलोटा जी भजन प्रस्तुत कर रहे थे वहीं श्रोता इनमे लीन व मग्न दिखाई दिये, तालियों की गड़गड़ाहट से श्रोताओं ने पंडित जी का अभिवादन किया।

दूसरी संध्या की शुरूआत स.म.प. सम्मान से हुई जहां जम्मू-कशमीर के वयोवृद्ध कलाकार श्री अब्दुल गनी राथर ‘त्राली’ को ‘स.म.प. शेर-ए-कश्मीर शेख मौहम्मद अब्दुल्ला अवार्ड’, श्री अरूण चटर्जी को ‘स.म.प. आचार्य अभिनवगुप्त सम्मान’  और युवा हिन्दुस्तानी सूफी गायिका रागिणी रेणु एवम् मोहनवीणा वादक श्री सलिल भट्ट को ‘स.म.प. युवा रत्न सम्मान’ प्रदान किये गये। इसके बाद सलिल भट्ट की सात्विक वीणा ने उपस्थित श्रोताओं का मन-मोहा। उन्होंने राग जोगेश्वरी प्रस्तुत किया। दूसरा प्रस्तुतिकरण गुंदेचा बंधुओ के धु्रपद गायन था जिन्होंने राग बिहाग का खूबसूरत प्रस्तुतिकरण दिया। दूसरे दिन का आकर्षण पंडित रोनू मजूमदार की बांसुरी और उस्ताद रफीक खान के सितार की जुगलबन्दी रही, जहां तबले पर उस्ताद अकरम खान ने उन्हें संगत दी। रोनू दा ने राग बागेश्री प्रस्तुत किया।

तृतीय एवम् अन्तिम संध्या का गुंजायेमान पंडित विजय शंकर मिश्रा ने के संचालन में स्वर-लय-सम्वाद से हुआ जहां युवा कलाकारों अभिषेक मिश्रा, सचिन शर्मा व जुहैब खान (सभी तबला) और ऋषि शंकर उपाध्याय (पखावज) ने वरिष्ठ कलाकारों घनश्याम सिसोदिया (सारंगी) व दामोदर लाल घोष (हारमोनियम) के साथ दो दर्जन से अधिक दुर्लभ परन प्रस्तुत की। इसके बाद विदूषी कला रामनाथ के वाॅयलिन का जादू भी श्रोताओं द्वारा सराहा गया। उन्होंने राग शुद्ध कल्याण में विलम्बित में बंदिश ‘बोलन लागी..’, तीन ताल में मध्य लय, दुु्रत लय एक ताल में बंदिश और एक तराना प्रस्तुत किया।

समारोह का अंतिम दिन और बीतता समय श्रोताओं व दर्शकों की उत्सुकता बढ़ाये जा रहा था क्योंकि उन्हें इंतजार था स्वयं श्याम को मंच पर देखने का। दर्शकों के इंतजार और उत्सुकता को लीजेण्ड्री कत्थक सम्राट पंडित बिरजू महाराज ने बखूबी चरम पर पहुंचाया और मंच पर जो रूपान्तरण उन्होंने उजागर किया वह देखते ही बनता था। पंडित जी ने अपने भाव-विभोर नृत्य से मंच पर प्रभु श्री श्याम को मंच पर जीवंत करते हुए भरपूर वाह-वाही लूटी। साथी कलाकारों ओनिर्बन भट्टाचार्य (गायन), राजेश प्रसन्ना (सरोद), गुलाम वारिस (सारंगी), अकरम खान (तबला) और दीपक महा (पढंत) के साथ उनका तालमेल जबरदस्त था। कभी तबले की थाप नायक तो पंडित जी के घुंघरू नायिका का किरदार निभा रहे थे। नृत्य के माध्यम से राधा जी के प्रति श्याम का असीम प्रेम बखूबी देखने को मिला कि किस तरह से वे कभी उन्हें रोकते हैं तो कभी पकड़ लेते हैं तो कभी सताते हैं तो कभी उनका पीछा करते हैं। सभागार में मौजूद श्रोताओं ने खड़े होकर तालियों की गड़गड़ाहट के साथ पंडित जी का अभिवादन किया।

मौके पर मेहमानों व कलाकारों ने पंडित भजन सोपोरी एवम् स.म.प. द्वारा संगीत क्षेत्र में किये जा रहे उनके प्रयासों की भूरि-भूरि प्रसंशा की। पं. बिरजू महाराज ने संगीत विरासत को संजोय रखने के उनके प्रयास को सराहा। उन्होंने कहा कि एक कलाकार वह व्यक्तित्व है जो कला को संजोने में अपना पूरी जीवन समर्पित कर देता है और दर्शक दीर्घा में विभिन्न उम्र के दर्शकों को देखकर मुझे बेहद खुशी है कि आपने काफी समय तक रूककर संगीत का लुत्फ उठाया। मैं उम्मीद करना हूं कि युवा पीढ़ी के कलाकार भी उसी तरह से आने वाली पीढि़यों के लिए इस कला को संजोयेंगे जिस तरह से हमने अपने पूर्वजों की विरासत को संजोया है।

पंडित अनूप जलोटा ने इस मंच पर मौका देने हेतु स.म.प. का आभार व्यक्त करते हुए कहा कि शास्त्रीय संगीत के इस मंच पर अपना कार्यक्रम प्रस्तुत करना गौरवपूर्ण है और मैं बहुत गौरवशाली महसूस कर रहा हूं।

सलिल भट्ट ने पंडित भजन सोपोरी, अभय सोपोरी व स.म.प. के प्रयासों की सराहना की। उन्होंने कहा कि जहां आज के समय में लोग सिर्फ अपने लिये सोचते हैं, अपना भविष्य उज्जवल करने हेतु प्रयासरत हैं वहीं पंडित भजन सोपोरी की सोच जन-जन तक संगीत पहुंचाने की रही है जो कि बेहद मुश्किल है और स.म.प. संगीत सम्मेलन जैसे श्रेष्ठ कार्यक्रम में इतने प्यारे श्रोताओं के समक्ष संगीत प्रस्तुत करना शानदार अनुभव है।

पंडित भजन सोपोरी ने गीत-संगीत को बढ़ावा देने हेतु युवाओं के आगे आकर निरंतर प्रयास करने की बात पर जोर देते हुए कहा कि युवा ही भविष्य के लीजेण्ड हैं, हमने परम्परा और विरासत को संजोये रखने का प्रयास करते हुए इस समारोह के माध्यम से मंच प्रदान किया है जिससे कि वे अपने कला-कौशल को निखारते हुए आगे बढ़ें और दूर-दूर तक इसे जींवत रखें।

तीन दिवसीय संगीत समारोह का संचालन श्रीमति साधना श्रीवास्तव ने किया। तीनों ही दिन विभिन्न अतिथिगण कार्यक्रमों का लुत्फ उठाने कमानी सभागार पहुंचे जिनमें पंडित भजन सोपोरी, प्रो. अपर्णा सोपोरी, श्रीमति शमीम आज़ाद, त्रिनिदाद एंड टोबागो के राजदूत माननीय श्री चन्द्रदत्त सिंह, राज्यसभा सांसद गुलाम नबी रत्नपुरी, टाटा के रेजीडेंट डायरेक्टर भरत वख्लू, वीपी संजय सेठी, डी.डी.जी – दूरदर्शन डा. रफीक मसूदी, श्री शिव नारायण सिंह अनिवेद, पंडित विजय शंकर मिश्रा, रितेश मिश्रा, अविनाश पसरीचा आदि प्रमुख थे।

संगीत सम्मेलन के दौरान कमानी सभागार के प्रांगण में फोटोग्राफी इन्नी सिंह की फोटो प्रदर्शनी एवम् दिल्ली व जम्मू-कश्मीर के कलाकारों की कला-प्रदर्शनी भी आयोजित की गयी थी।

सम्पर्क करें-शैलेष नेवटिया -9716549754

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