Wednesday, July 3, 2024
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स्थानीय लोगों की मदद से ही पक्की होगी ‘जीत’

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सन 1962 के युद्घ में परास्त होने के बावजूद शांति के मोर्चे पर भारत जीत हासिल कर रहा है जबकि चीन जीतने के बावजूद मैकमोहन रेखा के दोनों ओर चुनौतियों का सामना कर रहा है।

सन 1962 के भारत-चीन युद्घ में किसे जीत हासिल हुई? यह सवाल हास्यास्पद प्रतीत होता है, खासतौर पर उन लोगों को जो 20 अक्टूबर 1962 को नामका चू के निकट शुरू हुए उस युद्घ के 50 साल पूरे होने पर आ रहे निराशाजनक आलेखों से जूझ रहे हैं। लेकिन जरा इस तथ्य पर गौर कीजिए : वर्ष 1962 के बाद से अरुणाचल प्रदेश का जबरदस्त भारतीयकरण हुआ है। उसने निरंतर जोर देकर खुद को भारत का हिस्सा बताया है। इस बीच, तिब्बत का मामला धीरे-धीरे सुलग रहा है क्योंकि चीन, साधारण तिब्बती लोगों से पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) की ताकत के बल पर निपटने की कोशिश कर रहा है। चीन के सैनिक प्रदर्शनकारियों को विरोध प्रदर्शन शुरू करने से भी पहले गिरफ्तार कर लेते हैं। चीन के हान समुदाय के लोग भारी संख्या में तिब्बत में जननांकीय अतिक्रमण कर रहे हैं और इस तरह वे पशुपालन करके जीवन यापन करने वाले स्थानीय लोगों की संस्कृति को नष्टï कर रहे हैं।

ऐसे में क्या कहा जाए, युद्घ में भीषण पराजय के बाद शांतिकाल में भारत को विजय हाथ लग रही है? और चीन, सन 1962 में भारत को ‘सबक सिखाने के बादÓ और तिब्बत को जबरदस्त दमन के साथ कब्जाए रखने के बाद भी मैकमोहन रेखा के दोनों ओर यानी तिब्बत और अरुणाचल प्रदेश की ओर से चुनौती का सामना कर रहा है।

तिब्बत में वर्ष 2008 के बाद से ही चीन को लगातार भारी विरोध का सामना करना पड़ रहा है। भारत की ओर से उसे सेना के बढ़ते जमाव और तिब्बत की निर्वासित सरकार का सामना करना पड़ रहा है जो चीन द्वारा तिब्बत में किए जा रहे दमन पर सारी दुनिया का ध्यान आकर्षित कराने में लगी हुई है।

इसके ठीक विपरीत भारत ने अरुणाचल प्रदेश (तत्कालीन नॉर्थ ईस्ट फ्रंटियर एजेंसी) में संवेदनशीलता से काम लिया है और सैन्य बल प्रयोग के प्रति अपनी अनिच्छा दिखाई है। परिणामस्वरूप वह भारत के एक अंग के रूप में उन स्थानीय लोगों का विश्वास जीतने में कामयाब रहा है जिनके मन में सन 1962 की हार काफी भीतर तक घर कर गई थी। ताकत के ख्ुाले आम प्रयोग से बचने की प्रवृत्ति सन 1951 में तवांग पर भारत के कब्जे के वक्त ही प्रत्यक्ष नजर आई थी जब असिस्टेंट पॉलिटिकल ऑफिसर आर काथिंग ने सीमा पर स्थित इस कस्बे में अद्र्घसैनिक बल असम राइफल्स की केवल एक प्लाटून (36 जवान) के साथ परेड की थी।

इसके अलावा सन 1853 में अचिंगमोरी में जब तागिन जनजाति के लोगों ने असम राइफल्स की प्लाटून का कत्लेआम किया था तब असम सरकार के तत्कालीन विशेष सलाहकार नरी रुस्तमजी ने प्रख्यात तौर पर नेहरू को इसका विरोध करने से रोका था। नेहरू ने चुनौती दी थी कि वह तागिन को नष्टï कर देंगे। इसके बजाय रुस्तमजी ने भारी नागरिक अभियान की शुरुआत की और दोषियों को न केवल पकड़ा और बकायदा बांस के बने अस्थायी न्यायालय में प्रक्रिया चलाकर उनको दंडित भी किया गया। यह बात बहुत जल्दी सारे क्षेत्र में फैल गई थी।

लेकिन यह ध्यान देना होगा कि स्थानीय संवेदनशीलता को राष्टï्रीय हित से ऊपर स्थान देने के कारण ही वर्ष 1962 में पराजय का सामना करना पड़ा था। सैन्य शक्ति पर निर्भर नहीं रहने की जिस बात ने स्थानीय लोगों का भरोसा जीतने में मदद की उसी के तहत सेना की तैनाती में अनिच्छा और उसकी अपर्याप्त संख्या ने सन 1962 की पराजय में भी अहम भूमिका निभाई। उस वक्त ‘भविष्य की नीतिÓ के रूप में जो अदूरदर्शी तरीका अपनाया गया और जिसके तहत एकतरफा घोषित सीमाओं पर भारतीय चौकियां बनाई गईं, वह भारत की तीखी पराजय की वजह बनी। इस पराजय ने स्थानीय लोगों के मन में भारत की छवि भी धूमिल की।

आज उस घटना के 50 साल बाद जबकि देश अधिक समृद्घ और आक्रामक है, वह सैन्य शक्ति का अधिक इस्तेमाल करने और जवानों की तैनाती को लेकर भी आश्वस्त है। चीन के किसी भी किस्म के आक्रामक रवैये से निपटने की योजना तैयार करने में सन 1950 के दशक के सबक को याद रखना महत्त्वपूर्ण होगा। पहली बात, सेना की मौजूदगी को लेकर अरुणाचल के लोग बहुत अधिक सहज नहीं है। यह हालत तब है जबकि कई बार दूरदराज इलाकों में सेना ही इकलौती ऐसी सरकारी इकाई होती है जिसे लोग देख पाते हैं। सन 1950 और 1960 की तर्ज पर वर्ष 2010 और 2011 में भी अरुणाचल को भारत का अंग बनाए रखने के लिए स्थानीय लोगों का सहयोग उतना ही आवश्यक है जितना कि सेना का।

बहरहाल, सैनिकों की संख्या बढ़ाकर सैकड़ों किलोमीटर लंबी पहाड़ी घाटियों वाले इलाके में संपूर्ण सुरक्षा नहीं हासिल की जा सकती है। सैनिकों की संख्या में लगातार इजाफा करके भारत खुद पाकिस्तान के जाल में फंसते जाने का जोखिम बढ़ा रहा है। वह एक ऐसे पड़ोसी के खिलाफ अपनी सैन्य शक्ति बढ़ाने की कोशिश कर रहा है जिसके पास आर्थिक संसाधनों तथा सैन्य शक्ति की कोई कमी नहीं है।

इसके बजाय भारतीय सेना को अपनी रणनीति पर पुनर्विचार करना चाहिए। उसे सेना की मौजूदगी बढ़ाने के बजाय सन 1950 के दशक की तर्ज पर स्थानीय स्तर की साझेदारी पर भरोसा करना चाहिए। इसके लिए तीन स्तरीय कार्य योजना तैयार की जानी चाहिए। सबसे पहले स्थानीय जनजातियों की 20 प्रादेशिक बटालियन तैयार की जानी चाहिए जो चीन से अपने मातृ प्रदेश की रक्षा करेगी। बजाय कि सेना के उन जवानों पर निर्भर रहने के जो अपने निवास स्थान से हजारों किलोमीटर दूर अनजानी जगहों पर तैनात रहते हैं। रक्षा की प्रथम पंक्ति इन्हीं स्थानीय जनजातीय सेनाओं के जरिये तैयार की जानी चाहिए।

दूसरी बात, सीमा पर चीन की घुसपैठ रोकने के लिए भारी संख्या में जवानों की तैनाती करने के बजाय हमें ऐसे आक्रामक दस्ते तैयार करने चाहिए जो चीन द्वारा किसी भी तरह की घुसपैठ का जवाब तिब्बत में आकस्मिक हमले या घुसपैठ करके दें। हमारे पास हर वक्त 8 से 10 ऐसी योजनाएं तैयार रहनी चाहिए और साथ ही उनको लागू करने के लिए पूरे संसाधन भी हमारे पास होने चाहिए।

तीसरी बात, अरुणाचल प्रदेश और असम में सड़कों और रेलवे का बुनियादी ढांचा विकसित करना जो ऐसे लड़ाकू समूहों का परिवहन तेज करने के काम आएगा। उनको सीमा पर अधिक तेजी से ले जाने में मदद मिलेगी ताकि चीन की किसी भी नकारात्मक योजना को विफल किया जा सके। मेरे खयाल से यह सबसे अधिक जरूरी कदम है क्योंकि इससे सेना और आम जनता दोनों के हित की पूर्ति होगी। मैकमोहन रेखा के आसपास स्थित गांवों में सड़क सुविधा मुहैया कराकर हम वहां के लोगों को वह जीवनरेखा मुहैया करा रहे हैं जो उनको भारत से जोड़ती है।

साभार-बिज़नेस स्टैंडर्ड से.

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पत्रकार राघवेंद्र द्विवेदी को तरुण कला संगम का पुरस्कार

बाजारीकरण के दौर में समाज को सही मार्ग दिखा पाना अत्यंत चुनौतीपूर्ण है। मुंबई जैसे शहर में यह कार्य और भी जटिल है। त्रासदी यह है कि लोकतंत्र के सबसे महत्वपूर्ण स्तंभ मीडिया को भी बाजारीकरण ने अपने चुंगल में ले लिया है।

उक्त उद्गार मुंबई के पुलिस आयुक्त डॉ. सत्यपाल सिंह ने मुंबई के होटल सम्राट में सामाजिक एवं साहित्यिक संस्था तरुण कला संगम द्वारा हमारा महानगर दैनिक के कार्यकारी संपादक राघवेन्द्रनाथ द्विवेदी को विशिष्ट पत्रकारिता सम्मान प्रदान करने के लिए आयोजित कार्यक्रम में बतौर विशिष्ट अतिथि व्यक्त किए। उन्होंने कहा कि समाचार पत्र हों या खबरिया चैनल, सभी में इन दिनों मानो नकारात्मक खबर समाज के संमुख प्रस्तुत करने की होड़ सी मची हुई है। डॉ. सिंह ने कहा कि मीडिया इन दिनों मुंबई की जो तस्वीर पेश कर रहा है, उससे समाज में भय का माहौल है।

उन्होंने कहा कि पतन का मार्ग चिकना होता है, जिस पर इंसान आसानी से फिसल जाता है, जबकि सच्चाई और सफलता की राह बहुत कठिन होती है। जिसमें समाज को आगे ले जाने का ज्ञान हो, लेखनी में प्रेरणा की धमक हो, बुद्धिजीवी हो, वही सच्चा पत्रकार कहलाने की काबिलियत रखता है, उसमें समाज और राष्ट्र को जोड़कर रखने का माद्दा होना जरूरी है। पत्रकार रत्न से सम्मानित राघवेन्द्रनाथ द्विवेदी को उन्होंने उज्जवल भविष्य की शुभकामनाएं दीं। इस अवसर पर पुलिस आयुक्त डॉ. सत्यपाल सिंह तथा कांग्रेस के सभासद अविनाश पांडे ने मुंबई कांग्रेस अध्यक्ष प्रा जनार्दन चांदुरकर, वरिष्ठ पत्रकार लालजी मिश्र, शचीन्द्र त्रिपाठी, डॉ. अभयनारायण त्रिपाठी(आईएएम) तथा संस्था अध्यक्ष चित्रसेन सिंह मौजूदगी में राघवेन्द्रनाथ द्विवेदी को पुरस्कार स्वरूप 31 हजार नगद, ट्रॉफी तथा प्रशस्तिपत्र प्रदान कर सम्मानित किया।

मुख्य अतिथि अविनाश पांडे ने कहा कि महज लेखन से ही एक पत्रकार बुद्धिजीवी नहीं हो सकता, उसकी हर क्षेत्र में व्यापक पकड़ होनी चाहिए। अध्यक्षीय भाषण में वरिष्ठ पत्रकार शचीन्द्र त्रिपाठी ने संस्था द्वारा प्रदत्त इस सम्मान की सराहना करते हुए कहा कि इससे नवोदित युवा पत्रकारों को भी सकारात्मक लेखन की प्रेरणा मिलती है। उन्होंने सत्कारमूर्ति राघवेन्द्रनाथ द्विवेदी को मेहनत एवं निष्ठा की प्रतिमूर्ति बताते हुए कहा कि वे इन्हीं गुणों के बलबूते अल्पकाल में ही सर्वोच्च पद तक पहुंचने में कामयाब रहे हैं। उन्होंने कहा कि विकृति समाज का अभिन्न हिस्सा रही है।

बावजूद इसके मीडिया को घृणित चेहरा दिखाने से परहेज करना चाहिए क्योंकि समाज सुरक्षित है तो हम भी सुरक्षित हैं। मुंबई कांग्रेस के अध्यक्ष प्रा जनार्दन चांदुलकर ने येलो जर्नलिज्म को समाज के लिए सबसे बड़ा खतरा बताते हुए कहा कि मीडिया आज इस्तेमाल और ब्लैकमेलिंग का जरिया बनती जा रही है। उन्होंने कहा कि देश में यंग डेमोक्रेसी महज 65 वर्ष की है लिहाजा मीडिया की भी थिंकिंग प्रोसेस साइंटिफिक होना चाहिए। डॉ. अभयनारायण त्रिपाठी ने कहा कि पत्रकार समाज को दिशा प्रदान करता है लिहाजा जहां तक संभव हो उसे पीत पत्रकारिता से परहेज करना होगा। सम्मान के प्रति आभार व्यक्त करते हुए राघवेन्द्रनाथ द्विवेदी ने चित्रसेन सिंह तथा समुची टीम को इस सम्मान के लिए धन्यवाद देते हुए कहा कि यह सदैव उनके लिए प्रेरणा का कार्य करेगा और वे सामाजिक दायित्वों का निर्वहन हमेशा करते रहेंगे।

कार्यक्रम में प्रमुख अतिथि के तौर पर लिबोर्ड ग्रुप के चेयरमैन सीए ललित डांगी, भारतीय सद्विचार मंच के अध्यक्ष डॉ. राधेश्याम तिवारी, मुंबई कांग्रेस के महासचिव राजन भोंसले, युवा उद्योगपति गणपत कोठारी(कोठारी ग्रुप ऑफ कंपनीज), कपड़ा व्यापारी एकता एसोसिएशन के अध्यक्ष एसपी आहूजा, राकांपा के मुंबई महासचिव उदयप्रताप सिंह तथा पत्रकारिता क्षेत्र की अनेक गणमान्य हस्तियां मौजूद थीं। संचालन आनंद सिंह तथा आभार तरुण कला संगम के अध्यक्ष श्री चित्रसेन सिंह ने व्यक्त किया।.

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27 से 29 तक बठिंडा में ज्योतिष सम्मेलन

सभी वर्गों को ज्योतिष का वैज्ञानिक स्वरूप उदेश्य अखिल भारतीय ज्योतिष सम्मलेन बठिंडा की और से २७-से २९ सितम्बर तक सेठ भानमल ट्रस्ट नई बस्ती-६ बठिंडा में विशाल ज्योतिष सम्मलेन का आयोजन किया जा रहा हे.

दिली,उतरप्रदेश,उतराखंड,हरियाणा,राजस्थान,मध्यप्रदेश,उड़ीसा,महाराष्ट्र्र आदि प्रदेशो के विश्वविख्यात ज्योतिर्विद ईस सम्मलेन में भाग लेकर फ्री ज्योतिष परामर्श के लिए उपलब्ध होगे सम्मलेन के मुख्य आयोजक व् प्रधान ज्योतिषी पदम् कुमार के अनुसार सम्मलेन में वैदिक ,लालकिताब,हस्त रेखा,वास्तु-विज्ञान अंक-विज्ञान,फेस-रीडिंग आदि के द्वारा सिक्षा ,रोज़गार,विवाहिक,जिवन.सन्तान,प्रमोशन,रोग आदि अनेक समस्याओं के निदान हेतु निबन्ध पढ़े जायेंगे आपसी ज्योतिषीय रामर्ष के साथ-साथ ज्योतिष=प्रेमियों का फ्री मार्गदर्शन भी किया जयेगा.

इस अवसर पर गो-मूत्र आदि पञ्च-गव्यों से तेयार की गयी औषधियों से केंसर ,मोटापा, जिदों का दर्द आदि के उपचार हेतु ओषधि प्रदर्शनी का आयोजन किया जाएगा। रोटरी क्लब बठिंडा केंट की और से नशे की महामारी के बारे में जागरूकता हेतु नशा मुक्ति प्रदर्शनी का आयोजन किया जायेगा लायंस क्लब लेक की और से अमर शहीद स. भगत सिंह जी के जीवन को समर्पित देश के लिए अर्पण ये जीवन का आयोजन किया जयेगा. जिग्यासुओं की सुविधा हेतु मात्र 50 रूपये में जन्म-कुण्डली बनाने की सुविधा भी उपलब्ध रहेगी. प्रश्नकर्ताओं के लिए प्रात १० से १२ बजे तक लंगर-भंडारे की सेवा भी नगर के दानी सजनू के सहयोग से चलेगी सम्मलेन के आयोजन समिति के सदस्यों प. हरीष दत्त,द. रुपिंदर पुरी,प. अविनाश तिवारी ,विजय मितल के.पी. चिमन देव,पवन फखर गुरूजी,बाबा जसपाल सिंह,प. सुखपाल सिंह पिंड गीदड ,गियानी नरेंदर सिंह पिंड झुम्बा ए. शाम लाल गोयल , दी. आर गाँधी. आदि सभी ने नगर तथा आस पास की सभी मंडियों के ज्योतिष -प्रेमियों से अपील की है कि इस सम्मेलन में शामिल हों।

संपर्क
Padam Kumar

+91-9815075493
SHREE DURGA JEWELLERS
Court Road, Bathinda -151001 , [Pb.].

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मूवीज़ नाउ पर देखिये एक से एक जांबाज़ हीरों के कारनामें-23 सितंबर से

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लीथल वेपन 2 में कारपेंटर का नाम मैकजी है, जो कि इस भूमिका को निभाने वाले जैक मैकजी का असली सरनेम भी है

 लीथल वेपन 3रू मार्बल स्लैब्स,जो कि फिल्म में तबाह किए गए एक पुराने सिटी हॉल का हिस्सा थीं, आज ओरलैंडो, फ्लोरिडा में एक स्थानीय आउटडोर कैफे में टेबलटॉप्स के तौर पर उपयोग में लाई जा रही हैं

उस समय आपकी क्या हालत होती हैं जब आप ऐसी किसी मुंश्किल परिस्थिति में फंस जाते हैं जिसमें आगे कुंआ और पीछे खाई होती है? इसी तरह के हालात और उनसे बाहर निकलने के संघर्ष की गाथा को देखें सिर्फ मूवीज नॉऊ पर। इस माह फाइनल स्टैंड में बेहद कठिन हालात से भी निपट कर बहादुर योद्धाओं के तौर सामने आने की महान गाथा को देखा जा सकेगा।

23 सितंबर से शुरू हो रही इन फिल्मों को हर सोमवार-गूरूवार को रात 11 बजे से देखा जा सकेगा, जिनमें आदमी के धूल में से उठ खड़े होने और बेहद खतरनाक हालात से भी बच निकलने की गाथाओं को देखा जा सकेगा! इनमें फैंटासटिक फोर 1 और 2, एक्स मैन-फस्र्ट क्लास, ब्लेड 1 और 2, ट्रांसपोर्टर 2, कमांडो, लीथल वेपन 2 और 3 शामिल हैं। इस प्रकार से फाइनल स्टैंड में आपका जोश बढ़ाने के लिए हर संभव प्रयास किया जाएगा।

इन सुपरहीरो टीमों के साथ चार लड़ाईयों को देखा जा सकेगा, जो कि फैंटासटिक फोर 1 और 2 में बेहद ताकतवर खलनायकों के साथ लड़ते हुए इस दुनिया को तबाह होने से बचाने की लड़ाई है। वहीं एक्स-मैन फस्र्ट क्लास में दो समूहों के संघर्ष और एक्स-मैन की बहादुरी को देखा जा सकेगा। वहीं ब्लेड 1 और 2 में आप उस समय अपने दिल की धड़कन को भी सुन सकेंगे, जिसमें देखा जा सकेगा कि मानवता और जानलेवा शैतानों की एक पूरी नसल के बीच चल रहे संघर्ष को देखा जा सकता है, जिसमें ब्लेड मानवता को बचाता है।

मर्सनरी फ्रैंक मार्टिन, जो कि खतरनाक सामान को तय जगह पर पहुंचाने का काम करता है, इस बार ट्रांसपोर्टर 2 में फ्लोरिडा में एक खतरनाक आतंकी ग्रुप से भिड़ जाता है। वहीं एक रिटायर्ड ब्लैक ओपीएस, अकेला ही साउथ अमेरिकी अपराधियों के एक गिरोह से भिड़ जाता है जो कि उसकी बेटी का अपहरण कर लेता है। कमांडो को देखना चूक ना जाएं। मेल गिब्सन और डैनी ग्लोवर, लीथल वैपन 2 और 3 में खतरनाक हथियारों के डीलर्स से लड़ाई के दौरान आप का कलेजा भी मुंह में ला सकते हैं।

देखें फाइनल स्टैंड में उन बहादुरों को जो कि हमेशा आपको बचाने के लिए तैयार हैं, सिर्फ मूवीज नॉऊ पर!.

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