डीडी भारती, भारतीय संगीत और कला का अनूठा चैनल है जोकि अलग-अलग सांस्कृतिक कार्यक्रमों का लाइव टेलिकास्ट करता है। इस साल डीडी भारती एक बार फिर अपने दर्शकों के लिए खजुराहो नृत्य महोत्सव का लाइव टेलीकास्ट करने जा रहा है। 20 से 26 फरवरी के दौरान दर्शक शाम 7 से 11 बजे तक इस महोत्सव का आनंद उठा सकेंगे।
खजुराहो नृत्य महोत्सव मध्य प्रदेश के खजुराहो मंदिर में आयोजित किया जाता है। चंदेल राजाओं के बनवाए ये मंदिर अपने पाषाण शिल्प के लिए दुनिया भर में प्रसिद्ध हैं। भारतीय शास्त्रीय नृत्य की प्रस्तुतियों से मंदिर सजीव हो उठते हैं। इस महोत्सव में भारत के अनेक दिग्गज कलाकार अपनी कला का प्रदर्शन करते हैं।
डीडी भारती पर खजुराहो महोत्सव का प्रसारण
दिग्विजय कालेज के प्राध्यापकों ने सीखीं कम्प्यूटर की बारीकियां
राजनांदगांव। शासकीय दिग्विजय महाविद्यालय के प्राध्यापकों ने एक विशेष अभिमुखीकरण कार्यशाला में कम्प्यूटर का प्रभावी प्रशिक्षण प्राप्त किया। विश्वविद्यालय अनुदान आयोग की स्वशासी महाविद्यालयों के लिए संचालित महत्वाकांक्षी योजना के अंतर्गत हुई पखवाड़े भर की इस कार्यशाला में विषय विशेषज्ञों और कम्प्यूटर शिक्षकों ने प्राध्यापकों को कम्प्यूटर के व्यावहारिक उपयोग के अनेक पहलुओं को भली भांति समझाया। कार्यशाला के उदघाटन अवसर पर मुख्य अतिथि छत्तीसगढ़ विज्ञान एवं तकनीकी परिषद् के महानिदेशक प्रोफ़ेसर मुकुंद हम्बार्डे थे। अध्यक्षता डॉ.हेमलता मोहबे ने की। विशिष्ट अतिथि शासकीय कमलादेवी महिला महाविद्यालय,राजनांदगांव के प्राचार्य डॉ.राजेश पाण्डेय थे। समापन प्रसंग पर मुख्य अतिथि शासकीय शिवनाथ विज्ञान महाविद्यालय की प्राचार्य डॉ.सुमन सिंह बघेल थी।
महाविद्यालय के प्राचार्य डॉ.आर.एन.सिंह तथा कम्प्यूटर विभागाध्यक्ष डॉ.शबनम खान के मार्गदर्शन में आयोजित कार्यशाला का उदघाटन करते हुए प्रोफ़ेसर मुकुंद हम्बार्डे ने प्रशिक्षण कार्यक्रम को समय की ज़रुरत बताते हुए कहा कि कम्यूटर एक सेवक की तरह है। उसके लिए कार्यों की सही जानकारी होने पर ही हम उसकी वास्तविक और अपेक्षित सेवा प्राप्त कर सकते हैं। उन्होंने शोध कार्यों में कम्प्यूटर के उपयोग के तरीकों पर रोचक ढंग से प्रकाश डाला। अध्यक्षता कर रहीं डॉ.हेमलता मोहबे ने अपने प्रेसेंटेशन में कम्प्यूटर की उपयोगिता के विविध पक्षों की जानकारी दी। विशिष्ट अतिथि शासकीय कमलादेवी महिला महाविद्यालय,राजनांदगांव के प्राचार्य डॉ.राजेश पाण्डेय ने कहा कि बदलते युग और परिवेश में कम्प्यूटर हमारी ज़िंदगी का ज़रूरी हिस्सा बन गया है। इसका ज्ञान हर व्यक्ति के लिए आवश्यक है। इससे दक्षता विकास भी होता है। इस दृष्टि से यह कार्यशाला विशेष महत्वपूर्ण है। प्राचार्य डॉ.आर.एन.सिंह ने बताया कि भविष्य में सभी प्राध्यापकों, शिक्षकों के लिए कम्प्यूटर जानना अनिवार्य होगा ताकि कम्प्यूटर के अतिरिक्त कोर्स वे स्वयं पढ़ा सकें। इसलिए कम्प्यूटर सबको सीखना चाहिए। विभागाध्यक्ष डॉ.शबनम खान ने प्रशिक्षण से सम्बंधित विषयों की महत्ता प्रतिपादित की।
महाविद्यालय के प्राध्यापक डॉ.चन्द्रकुमार जैन ने उक्त जानकारी देते हुए बताया कि कार्यशाला के दौरान अतिथि वक्ता सेंट थॉमस कालेज भिलाई के प्राध्यापक संतोषकुमार मिरी ने एम.एस.ऑफिस पर एकाग्र बहुआयामी जानकारी देकर प्राध्यापकों को लाभान्वित किया। जिज्ञासाओं का समाधान करते हुए उन्होंने कम्प्यूटर के उपयोग के कई अनछुए पहलुओं की बारीकियां समझायीं। इसी तरह व्याख्यानमाला की कड़ी में कम्प्यूटर शिक्षकों ने वर्ड,एक्सेल,पावर पाइंट, ई मेल बनाना, इंटरनेट सर्फिंग जैसे अनेक व्यावहारिक पक्षों की प्रायोगिक जानकारी दी। कोशिश यह रही कि समय सीमा के भीतर सभी प्रशिक्षु कम्प्यूटर की उपयोगिता से ज्यादा से ज्यादा रूबरू हो सकें, जिससे उसे बेहतर जानने की ललक भी पैदा हो सके। डॉ.शंकर मुनि राय ने प्रशिक्षण कार्यक्रम से अर्जित ज्ञान और उसके उपयोग पर आमने अनुभव साझा किये।
कार्यशाला के समापन प्रसंग पर मुख्य अतिथि शासकीय शिवनाथ विज्ञान महाविद्यालय की प्राचार्य डॉ.सुमन सिंह बघेल ने प्रशिक्षणार्थी प्राध्यापकों को प्रमाणपत्र और प्रशिक्षण में प्रयुक्त सामग्री प्रदान की। प्रशिक्षण देने वाले शिक्षकों को भी प्रमाणपत्र प्रदान कर सम्मानित किया गया। विभागाध्यक्ष डॉ.शबनम खान ने सबके सहयोग का आभार माना।
संपर्क
डॉ.चन्द्रकुमार जैन
प्राध्यापक
शासकीय दिग्विजय स्वशासी
स्नातकोत्तर महाविद्यालय,
राजनांदगांव ( छत्तीसगढ़ )
पाकिस्तानी हिन्दू महिलाओं को मंगलसूत्र नहीं शादी का प्रमाणपत्र चाहिए!
पाकिस्तान में हिंदू विवाह को क़ानूनी तौर पर कुबूला नहीं गया है, जिसकी वजह से निचले तबके के लोग प्रभावित होते हैं. पिछले साल सत्तारूढ़ पार्टी के सांसद इस मुद्दे के समाधान के लिए एक विस्तृत विधेयक नेशनल असेंबली में लाए थे पर सुप्रीम कोर्ट की ओर से दो बार विधेयक पारित करने के आदेश के बावजूद इसे कैबिनेट की मंज़ूरी नहीं मिली.
ताराचंद पाकिस्तानी हैदराबाद की एक हिंदू बस्ती में रहते हैं. वह बस्ती के दूसरे 40 परिवारों की तरह ही सब्जी और फल का ठेला लगाकर अपनी विधवा मां, पत्नी और सात बच्चों का पेट पालते हैं. ताराचंद की शादी 16 साल पहले हुई थी. उनकी पत्नी मीरा गले में मंगलसूत्र पहनती हैं और मांग में सिंदूर लगाती है. तारा का कहना है कि शादी के प्रमाणपत्र के बिना उनके रिश्ते का यही प्रमाण है.
उनका कहना है कि सरकार के हिसाब से हमारी शादी नहीं हुई. हमारी शादी तो हुई है पर अगर कोई मेरी पत्नी को उठा ले जाता है, या बच्चे का अपहरण हो जाता है तो मेरे पास दावे के लिए कोई प्रमाणपत्र नहीं है. तारा अपनी पत्नी मीरा के लिए पति के नाम वाला पहचान पत्र बनवाने की कोशिश कर रहे हैं पर उनके पास शादी की कोई तस्वीर नहीं है. मीरा का कहना है, "हमें अब पता चला है कि पहचान पत्र से वतन कार्ड मिलता है और इसके तहत बेनज़ीर इन्कम सपोर्ट प्रोग्राम से पैसे भी मिलते हैं. '
पाकिस्तान में हिंदू शादियों के लिए कोई विशेष क़ानूनी दस्तावेज़ मौजूद नहीं है.
हैदराबाद में पारिवारिक मामलों के एडवोकेट शावक राठौड़ ने बीबीसी को बताया कि उनकी बिरादरी कई साल से हिंदू विवाह के पंजीकरण की मांग कर रही है और यह समस्या कम्प्यूटरीकृत पहचान पत्र और इसका महत्व बढ़ने के बाद अधिक शुरू हुआ है.
ताराचंद ने कहा, "जब हम पहचान पत्र बनवाने जाते हैं तो वे कहते हैं निकाहनामा दिखाएं. फिर हम जब उन्हें बताते हैं कि हमारे यहां निकाहनामा नहीं, फेरे लिए जाते हैं तो वे कहते हैं कि हमें इससे कोई लेना-देना नहीं. अपने रीति-रिवाज अपनी जगह हमें तो प्रमाणपत्र चाहिए."
उन्होंने बताया कि जब किसी अदालत में घरेलू मामले जाते हैं जैसे कि जबरन शादियां, संपत्ति या तलाक के मामले तो उन्हें निपटाने में बहुत मुश्किल होती है.
अगर कोई महिला तलाक लेना चाहे तो न्यायाधीश हमसे पूछते हैं कि अगर कोई दस्तावेज़ मौजूद नहीं तो तलाक कैसे दिया जा सकता है?
हिंदू पंडितों या पंचायतों के पास शादी-ब्याह के दस्तावेज़ीकरण का अधिकार नहीं है.
पाकिस्तान में हिंदू जोड़े अपने रीति-रिवाज़ के अनुसार शादी तो कर लेते हैं पर राज्य उसे स्वीकार नहीं करता.
पाकिस्तान मुस्लिम लीग (नवाज़) के सदस्य डॉक्टर रमेश कुमार वानकोनिय ने पिछले साल हिंदू मैरिज एक्ट को एक निजी सदस्य के रूप में संसद में पेश किया.
डॉक्टर रमेश कहते हैं कि जैसे निकाह को सरकार की मान्यता मिली हुई है वैसे ही हिंदुओं के लिए भी होनी चाहिए.
हिंदू मैरिज एक्ट पर उनका कहना है, "इस क़ानून में शादी और तलाक का पूरा मसौदा है. मसलन कि पंडित या महाराज कैसा है? कितने फेरे होने चाहिए? क्या वह हमारे धर्म के हिसाब से शादी करवा रहे हैं? क्या ज़िला परिषद में पंजीकरण हुआ है या नहीं. हम भी इस देश के नागरिक हैं, हमें भी राज्य की ओर से ऐसी व्यवस्था चाहिए."
डॉक्टर रमेश का कहना है कि यह विधेयक संसदीय समिति और मंत्रिमंडल के पास है. इस विधेयक के अनुमोदन के लिए सुप्रीम कोर्ट ने दो बार आदेश दिए हैं पर कोई प्रगति नहीं हुई. उनका कहना है, "मैंने यह प्रस्तावित विधेयक चारों प्रांतों को भी भेजा है और यह कैबिनेट के पास पिछले साल सितंबर से है. सुप्रीम कोर्ट ने तो उसे पारित करने के आदेश जारी किए हैं लेकिन किसी को भी इस विधेयक में रुचि नहीं है. मेरी गुज़ारिश है कि अगर प्रधानमंत्री नवाज़ शरीफ़ और कैबिनेट के पास समय नहीं तो नेशनल असेंबली को इस विधेयक को मंज़ूरी दे देनी चाहिए."
पाकिस्तान में हिंदू सबसे बड़ा अल्पसंख्यक समुदाय है जिनमें से सबसे अधिक संख्या निचली जाति के हिंदुओं की है. उनके पास न सरकारी अधिकारियों को रिश्वत देने के पैसे हैं और न काम करने के लिए संबंध हैं. यह एक बड़ा मसला है क्योंकि इस क़ानून के अभाव में हिंदू अल्पसंख्यकों की पहचान अस्पष्ट रहेगी.
साभार- बीबीसी हिन्दी http://www.bbc.co.uk/ से
महुआ माजी, वीरेन्द्र सारंग व मलय जैन के उपन्यासों का लोकार्पण
विश्व पुस्तक मेले का छठा दिन पुस्तक लोकार्पणों के नाम रहा। राजकमल प्रकाशन समूह के स्टॉल (237-56) में तीन किताबों महुआ माजी की ‘मरंग गोड़ा निलकंठ हुआ’, मलय जैन की ‘ढाक के तीन पात’ व वीरेन्द्र सारंग का उपन्यास ‘हाता रहीम’ का लोकार्पण किया गया।
महुआ माजी की किताब ‘मरंग गोड़ा निलकंठ हुआ’ के लोकार्पण के अवसर पर बोलते हुए वरिष्ठ कवि मंगलेश डबराल ने कहा कि, महुआ माजी के इस उपन्यास का पेपरबैक में आना खुशी की बात है। पेपर बैक से ही साहित्य का भविष्य है। इस उपन्यास के महत्व पर बोलते हुए उन्होंने कहा कि इस उपन्यास का समाजशास्त्रीय महत्व है। वरिष्ठ पत्रकार रामशरण जोशी ने मंगलेश जी की बातों को आगे बढ़ाते हुए कहा कि, आमतौर पर आदिवासी विमर्श को सतही ढंग से देखा जा रहा था, लेकिन अब बदलाव आया है। आदिवासी समस्या लेखक समझने लगे हैं। कवि संपादक लीलाधर मंडलोई ने कहा कि हमलोगों को भी एक खास तरीके की लिटरेसी की जरूरत है। इस किताब से मैं भी लिटरेट हुआ हूं। आलोचक वीरेन्द्र यादव ने इस मौके पर कहा कि, हिन्दी में इस विषय पर पहले उपन्यास नहीं लिखा गया था। इसका समाजशास्त्रीय महत्व तो है ही साथ में एक उपन्यास के रूप में भी महत्व है। विकास बनाम विनाश का प्रश्न एक साथ उठाया गया है। यह पारंपरिक कसौटी से इतर आस्वादपरक मनःस्थिति से मुक्त होकर नई दिशाओं का अन्वेषक है।
कथाकार असगर वजाहत ने कहा कि, यह किताब हिन्दी साहित्य पर लगे उस आरोप का खंडन करती है जिसमें कहा गया है कि हिन्दी साहित्य मध्यमवर्ग तक ही सीमित रहा है। लेखक संपादक प्रियदर्शन ने कहा कि यह उपन्यास बहुत ही शोध कर के लिखी गयी है। इस किताब के बारे में बताते हुए उपन्यासकार महुआ माजी ने कहा कि, इस उपन्यास में मैंने विकिरण, प्रदूषण व विस्थापन से जूझते आदिवासियों की गाथा को पेश किया है। यह उपन्यास तथाकथित सभ्य देशों द्वारा किए जाने वाले सामूहिक नरसंहार के विरूद्ध निर्मित एक नई मुक्तिवाहिनी की कथा है। वास्तविक अर्थों में यह उपन्यास इक्कीसवीं सदी का और ‘आज का’ उपन्यास है।
राधाकृष्ण प्रकाशन से प्रकाशित मलय जैन की किताब ‘ढाक के तीन पात’ का लोकार्पण के अवसर पर बोलते हुए आलोचक वीरेन्द्र यादव ने कहा कि यह उपन्यास गांव, पुलिस, अध्यापक की पृष्भूमि लिए हुए 21 सदी में तेजी से भागते भारत और पिछड़ते भारत के अंतर्द्वंद्व की कथा है। रोचक मुहावरे में सामाजिक यथार्थ पर लिखा हुआ उपन्यास है। वहीं वरिष्ठ पत्रकार रामशरण जोशी ने कहा कि मलय जी का यह उपन्यास व्यंग प्रधान उपन्यास है। जब श्रीलाल शुक्ल का उपन्यास ‘रागदरबारी’ 1968 में आया था तब उसने ग्रामीण भारत के यथार्थ को झकझोरा था। उसी कड़ी में यह भी उपन्यास है। मलय जी ने नई जटिलताओं को इस उपन्यास में उठाया है। लेखक मलय जैन ने कहा कि यह उपन्यास नए संदर्भों में गांव व सरकारी समस्याओं को समझने का मौका देगा।
वीरेन्द्र सारंग का उपन्यास ‘हाता रहीम’ का लोकार्पण केदारनाथ सिंह, मदन कश्यप, रंजीत वर्मा, हृषिकेश सुलभ, लीलाधर मंडलोई, कृष्ण कल्पित, पंकज चतुर्वेदी, महुआ माजी व अजंतादेव की उपस्थिति में हुआ। इस मौके पर केदारनाथ सिंह ने उपन्यास की सफलता की कामना की। स्टॉल पर निरंतर बढ़ रही पाठकों के भीड़ के बीच स्टॉल पर दिन भर स्थापित व नवोदित लेखकों का आना-जाना बना रहा। राजकमल प्रकाशन समूह के प्रबंध निदेशक अशोक महेश्वरी ने सदाबहार पुस्तकों के साथ-साथ नई पुस्तकों के लिए भी पाठकों का रूझान देखकर प्रसन्नता व्यक्त की।
आशुतोष कुमार सिंह
साहित्य प्रचार अधिकारी
राजकमल प्रकाशन समूह
मो.9891228151
ईमेल- publicity@rajkamalprakashan.com
बेटियों के सुखद भविष्य के लिए डाकघरों में आरंभ हुई सुकन्या समृद्धि योजना
मिलेगा 9.1 प्रतिशत ब्याज, बेटियों की उच्च शिक्षा और उनके विवाह में होगी सुविधा
बेटियांँ पढ़ेंगी तो बेटियांँ बढ़ेंगी। बेटियों की समृद्धि और खुशहाली में ही समाज का भविष्य टिका हुआ है। इसी के मद्देनजर बेटियों की उच्च शिक्षा और उनके विवाह के लिए डाकघरों में सुकन्या समृद्धि योजना आरंभ की गयी है। इस संबंध में जानाकारी देते हुए इलाहाबाद परिक्षेत्र के निदेशक डाक सेवाएं श्री कृष्ण कुमार यादव ने बताया कि सुकन्या समृद्धि योजना के अंतर्गत बेटी के जन्म से लेकर 10 वर्ष की आयु तक कभी भी किसी भी डाकघर में यह खाता खोला जा सकता है। इसमें एक वित्तीय वर्ष में न्यूनतम 1,000 और अधिकतम डेढ़ लाख रूपये जमा किये जा सकते हैं । इस पर वर्तमान में 9.1 प्रतिशत ब्याज देय है और जमा धनराशि में आयकर छूट का भी प्राविधान है। इस खाते को देशभर में किसी भी डाकघर में स्थानांतरित किया जा सकता है।
डाक निदेशक श्री यादव ने बताया कि सुकन्या समृद्धि योजना की सुविधा केवल 2 बेटियों के लिए ही मिलेगी। लेकिन, पहली बेटी के बाद यदि जुड़वा बेटियाँ पैदा होती है तो तीसरी बेटी को भी उसका लाभ मिलेगा। यह खाता बालिका के अभिभावकों द्वारा खोला या संचालित किया जायेगा। वे बालिका के दस साल का होने तक खाते का परिचालन करेंगे। 10 साल की आयु पूरी होने के बाद बालिका खुद खाते का परिचालन कर सकेगी। इस योजना में खाता खोलने से 14 वर्ष तक धन जमा कराना होगा। यदि किसी वित्तीय वर्ष खाते में किसी कारणवश न्यूनतम राशि जमा नहीं हो पाती है तो दंड के रूप में पचास रूपये जमा कर खाते को पुनः संचालित किया जा सकता है।
निदेशक डाक सेवाएं श्री कृष्ण कुमार यादव ने बताया कि बालिका की उच्चतर शिक्षा और विवाह आदि आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए इसमें से 50 फीसदी राशि बालिका के 18 वर्ष पूरा होने पर निकाली जा सकती है। खाते की परिपक्वता अवधि उसके खोले जाने से 21 वर्ष पूरे होने या बालिका के विवाह के वक्त जो भी पहले लागू हो तक होगी, बशर्ते बालिका की आयु न्यूनतम 18 वर्ष हो चुकी हो। खाताधारक की मृत्यु होने पर इसे तत्काल बंद कर दिया जाएगा और खाते में रखी राशि का खाता बंद होने के पिछले महीने तक के ब्याज के साथ अभिभावक को भुगतान कर दिया जाएगा।
प्रवर डाक अधीक्षक, इलाहाबाद मंडल श्री रहमतउल्लाह ने बताया कि खाता खोलने के लिए बालिका का जन्म प्रमाणपत्र, अभिभावक का फोटोग्राफ, जमाकर्ता की पहचान और आवासीय प्रमाण से संबंधित दस्तावेज देना अनिवार्य है।
‘सार्थक’ की चौथी किताब ज़ेड प्लस हुई लोकार्पित
युवाओं के बीच ‘लप्रेक’ के चढ़े सुरूर के बीच ‘सार्थक’ ने आज विश्व पुस्तक मेले में अपनी अगली किताब ज़ेड प्लस फिल्म की औपन्यासिक कथा का लोकार्पण कराया। ‘ज़ेड प्लस’ के बारे में बोलते हुए प्रसिद्ध कवि मंगलेश डबराल ने कहा कि, ‘यह सिनेमा और साहित्य की दूरियों को पाटने का काम करेगी। इसकी भाषा पठनीय है। यह एक पोलिटिकल पार्स है।’ वहीं जाने माने पत्रकार रामशरण जोशी ने कहा कि, ऐसे समय में जब साहित्य और सिनेमा को लेकर परिस्थितियां जटिल होती जा रही है, वैसे में इस किताब का आना सार्थक पहल है। बतौर एक प्रयोग इस पुस्तक का बहुत महत्व है। पाठक प्रिय कथाकार असगर वज़ाहत ने कहा कि, मुझे खुशी है कि हिन्दी सिनेमा में कुछ बढ़ रहा है। किसी निर्देशक निर्माता को यह कहानी प्रभावित की और उसने इस पर फिल्म बनाई। हिन्दी सिनेमा और साहित्य के बीच में जो दूरी है, उस पर सोचने की आवश्यकता है।
कथाकार व जानकीपुल व्लॉग के संपादक प्रभात रंजन ने कहा कि, यह हिन्दी में पहला मौका है, जब किसी उपन्यास पर फिल्म पहले बनी है और उसका प्रकाशन बाद में हुआ है। अपनी किताब के बारे में बताते हुए लेखक रामकुमार सिंह ने कहा कि, ‘यह उपन्यास साहित्य व सिनेमा की जर्नी है। यह एक आम आदमी की कहानी है, जो राजनीतिक खेल से परेशान है। मुझे पूरा विश्वास है कि इस उपन्यास को पढ़ कर आप वाह! कहे बिना नहीं रह सकते। यह थ्रिलर की तरह चलती है। यह बहुत ही मज़ेदार है’।
ध्यान रहे कि ज़ेड प्लस से पहले राजकमल प्रकाशन समूह के नए इम्प्रिंट ‘सार्थक’ से तीन किताबें दर्दा-दर्रा हिमालय (अजय सोडानी), सफ़र एक डोंगी में डगमग (राकेश तिवारी) और ‘इश्क़ में शहर होना’ जिसे टीवी पत्रकार रवीश कुमार ने लिखा पाठकों के बीच जबर्दस्त मांग में है। इस बावत राजकमल प्रकाशन समूह के संपादकीय निदेशक सत्यानंद निरुपम ने आशा व्यक्त करते हुए कहा कि जिस तरह से सार्थक की बाकी किताबों को पाठकों से प्यार मिला है, उसी तरह इस किताब को भी स्नेह मिलेगा।
लेखक परिचय
राम कुमार सिंह
दिलचस्प किस्कागोई के साथ मौलिक और जमीन से जुड़े कथाकार के रूप में पहचान।सिनेमा और साहित्य में समान रूप से सक्रिय। फतेहपुर शेखावटी, राजस्थान के बिरानियां गांव में 1975 में किसान परिवार में पैदा हुए। कहानिया लिखीं। हिन्दी साहित्य से एम.ए.। राजस्थान में हिन्दी पत्रकारिता में नाम कमाया। पुरस्कृत भी हुए। पहला कहानी-संग्रह भोभर तथा अन्य कहानियां चर्चित और प्रशंसित। राजस्थानी की चर्चित फिल्म भोभर की कथा, संवाद और गीत लिखे। ज़ेड प्लस उपन्यास पर बनी फिल्म की पटकथा और संवाद भी निर्देशक के साथ मिलकर लिखे।
सादर
आशुतोष कुमार सिंह
साहित्य प्रचार अधिकारी
राजकमल प्रकाशन समूह
मो.9891228151
ईमेल- publicity@rajkamalprakashan.com
प्रभावशाली जन-सम्बोधन की कला सिखाएंगे डॉ.चन्द्रकुमार जैन
राजनांदगांव। जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में अच्छा बोलने की बढ़ती महत्ता के मद्देनज़र आयोजित एक विशिष्ट प्रसंग में,शहर के जाने-माने वक्ता,लेखक और दिग्विजय कालेज के हिन्दी विभाग के प्राध्यापक डॉ.चन्द्रकुमार जैन ख़ास मार्गदर्शन देंगे। मार्च के पहले सप्ताह में गोंदिया ( महाराष्ट्र ) में डॉ.जैन 'इमेज बिल्डिंग थ्रू इफेक्टिव पब्लिक स्पीकिंग' पावर प्वाइंट प्रेसेंटेशन के जरिए प्रभावशाली,सम्भाषण और जन-सम्बोधन से व्यक्तित्व निर्माण और संस्था की छवि में निखार लाने के गुर बताएंगे।
स्वामी विवेकानंद शिक्षण संस्थान के तत्वावधान में यह कार्यक्रम ख़ास तौर पर डॉ.जैन के प्रस्तुतीकरण पर एकाग्र होगा जिसमें बड़ी संख्या में प्राध्यापक,शिक्षक, विद्यार्थी और अभिभावक उपस्थित रहेंगे। आयोजक संस्थान द्वारा कार्यक्रम की भव्य तैयारी की गई है। गौरतलब है कि डॉ.चन्द्रकुमार जैन महाराष्ट्र में ही महामहिम राष्ट्रपति जी सहित जावेद अख्तर, शबाना आज़मी, महेश भट्ट, गुलाम अली जैसी मशहूर हस्तियों के सामने अपनी वक्तृत्व कला की यादगार बानगी पेश कर चुके हैं। वहीं, महाराष्ट्र के जलगांव, अमरावती, अकोला और गोवा के अलावा राजस्थान विश्वविद्यालय में देश के कई प्रांतों के जिज्ञासु लेखकों को अच्छा लिखने की बारीकियां समझा चुके हैं। लिखने और बोलने की कला की जीवंत रचनात्मक साझेदारी से डॉ.जैन ने राष्ट्रीय ख्याति अर्जित कर छत्तीसगढ़ का नाम रौशन किया है। यह सिलसिला आज भी जारी है।
———————————————-
———————————————-
बीबीसी करोड़ों रु. खर्च कर बाँधवगढ़ क बाघों पर फिल्म बनाएगा
बीबीसी करोड़ों रुपए खर्च करके एक बार फिर मध्य प्रदेश के बांधवगढ़ के बाघों पर फिल्म बनाने की तैयारी कर रहा है। इसके लिए बीबीसी ने शुल्क की एक किस्त के रूप में 44 लाख 40 हजार रुपए बांधवगढ़ प्रबंधन के पास जमा करवाए हैं। बांधवगढ़ में फिल्म बनाने के लिए बीबीसी को पार्क में एंट्री के लिए प्रतिदिन 52 हजार रुपए शुल्क देना होगा। इस फिल्म को पूरा होने में एक साल का समय लग सकता है।
बंद पार्क में भी होगा कामः
क्षेत्र संचालक बीटीआर सीएच मुरली कृष्णन ने बताया कि बीबीसी का यह प्रोजेक्ट मार्च में शुरू हो सकता है। इस फिल्म का कुछ हिस्सा रेनी सीजन में भी शूट किया जाना है इसके लिए बीबीसी को राज्य सरकार से अलग से अनुमति लेनी होगी।
इसके लिए बीबीसी के लोग भोपाल में प्रयास कर रहे हैं। रेनी सीजन में जून से अक्टूबर तक जब पार्क बंद होता है तो किसी को भी अंदर जाने की इजाजत नहीं होती। सिर्फ विभाग के लोग ही आन-जाना करते हैं। हालांकि विशेष अनुमति पर बीबीसी फिल्म बना सकेगा।
प्रबंधन को ये भी लाभः
ऐसे प्रोजेक्ट पर काम होने की वजह से पार्क प्रबंधन को लाभ ही होता है। फिल्म बनाने वाले खुद ही उन जानवरों पर नजर रखते हैं जिन पर नजर रखने का जिम्मा पार्क प्रबंधन का होता है। हाल ही में जब बमेरा वाला बाघ लापता हुआ था तो इसकी जानकारी प्रबंधन को वारेन परेरा से मिली थी जो इस पर फिल्म बना रहे थे।
52 हजार रुपए प्रतिदिन है शुल्क
पार्क के अंदर फिल्म बनाने के लिए बीबीसी को 52 हजार रुपए प्रतिदिन शुल्क देना होगा। इसमें 40 हजार रुपए फोटोग्राफी के लिए है और 12 हजार रुपए हाथी का शुल्क है। आवश्यकता होने पर दूसरे शुल्क भी इसमें शामिल हो सकते हैं।
साभार- दैनिक नईदुनिया से
आज के सवाल और मुक्तिबोध के ‘अँधेरे में’ की एक पड़ताल
हिन्दी कविता के महानतम सर्जकों में से एक गजानन माधव मुक्तिबोध के निधन के पचास साल इसी सितंबर में पूरे हो गए हैं। सितंबर उन्नीस सौ पैंसठ के नया ज्ञानोदय में कवि श्रीकांत वर्मा का एक लेख छपा था जिसमें उन्होंने कहा था ‘अप्रिय’ सत्य की रक्षा का काव्य रचने वाले कवि मुक्तिबोध को अपने जीवन में कोई लोकप्रियता नहीं मिली और आगे भी, कभी भी, शायद नहीं मिलेगी। कालांतर में श्रीकांत वर्मा की आशंका गलत साबित हुई और मुक्तिबोध निराला के बाद हिन्दी के सबसे बड़े कवि के तौर पर न केवल स्थापित हुए बल्कि आलोचकों ने उनकी कविताओं की नई-नई व्याख्याएं कर उनको हिंदी कविता की दुनिया में शीर्ष पर बैठा दिया। मुक्तिबोध की बहुचर्चित कविता 'अँधेरे में' ने भी अपनी अर्धशती पूरी कर ली है। कहना न होगा कि अँधेरे की शब्दावली में अपने आस-पास पसरे अँधेरे के अनगिन सवालों की शिनाख्त करने वाले मुक्तिबोध की बेकली को बकलम मुक्तिबोध ही समझने का इस से बेहतर अवसर संभव नहीं है। लिहाज़ा, समय आ गया है कि इस बात की ईमानदार पड़ताल की जाए कि मुक्तिबोध की रचनाओं में संघर्ष दिखाई देता है वह उनका अपना संघर्ष है या फिर पूरे मध्य वर्ग का, समूची मानवता का,हमारे मौजूदा समय का भी संघर्ष है।
प्रसिद्ध कवि आशोक वाजपेयी ठीक कहते हैं कि बड़ा लेखक वह है जिसमें हम हर बार नये अर्थ को ढूढते हैं। जो कुछ मुक्तिबोध के जमाने में अंधेरे में था, आज वही उजाले में है। वो सच आज सबके सामने है जिसको मुक्तिबोध अपने समय में महसूस करके लिख चुके थे। बात साफ़ है कि मुक्तिबोध के रचना कर्म की परिधि और उसके केंद्र दोनों में हमारे आज के दौर के सवालों की समझ और उनके ज़वाब हासिल किए जा सकते हैं। वहीं, मुक्तिबोध के सम्बन्ध में डॉ. नामवर सिंह ने स्पष्ट कहा है, ‘‘नई कविता में मुक्तिबोध ने अपने युग के सामान्य काव्य-मूल्यों को प्रतिफलित करने के साथ ही उसकी सीमा को चुनौती देकर उस सृजनात्मक विशिष्टता को चरितार्थ किया, जिससे समकालीन काव्य का सही मूल्यांकन सम्भव हो सका।’’ कुल मिलाकर मुक्तिबोध को लक्षित-मूल्यांकित करने का क्रम अभी जारी है। छायावादी काव्यधारा में ‘निराला’ और नयी कविता में मुक्तिबोध का व्यक्तित्व अपवाद की सीमा तक विशिष्ट था, इसमें दो मत नहीं है।
समरण रहे कि ‘अंधंरे में’ मुक्तिबोध की प्रसिद्ध कविता है। यह कविता परम अभिव्यक्ति की खोज में जिस तरह की फैंटेसी बुनती है लेकिन अपने मूल में यह कविता ऐसे अंधेरे की पड़ताल करती है जो देश की आजादी के बाद की व्यवस्था का अंधेरा है, इस लोकतंत्र का अंधेरा है। ‘अंधेरे में’ पूंजी की दुनिया व रक्तपाई वर्ग द्वारा पैदा की गई क्रूर, अमानवीय व शोषण की हाहाकारी स्थितियों से साक्षात्कार करती है। यह हिन्दी कविता में ‘मील का पत्थर’ है जिसमें ‘अंधेरा’ मिथ नहीं, ऐसा यथार्थ है जिससे जूझते हुए हिन्दी कविता आगे बढ़ी है।
मुक्तिबोध की कविता जिस अंधेरे से रू ब रू है, वह इन पचास सालों में सच्चाई बनकर उभरा है। उसका विस्तार ही नहीं हुआ, वह सघन भी हुआ है। मुक्तिबोध ने मठ व गढ़ को तोड़ने की बात की है। इसलिए कि उन्होंने इन मठों व गढ़ों को बनते और इनके अन्दर पनपते खतरनाक भविष्य को देखा। कैसे हैं ये मठ व गढ़ ? आज ये पूंजी, धर्म, वर्ण, जाति के मठ व गढ में रूपांतरित हो गये है। राजनीति सेवा नहीं, मेवा पाने का माध्यम बन गई है। बड़ी बड़ी बातें की जा रही हैं। प्रगति व विकास के दावे किये जा रहे हैं। कोई गौरवान्वित हो सकता है कि हमारी संसद अरबपतियों से रौशन है। पर हमने ईमानदारी, नैतिकता, आदर्श, भाईचारा सहित जो जीवन मूल्य निर्मित किये थे, उसमें कहां तक प्रगति की है ? अब तो इस पर बात करना भी पिछड़ापन है।
‘अंधेरे में’ मुक्तिबोध कहते हैं ‘पूंजी से जुड़ा हृदय बदल नहीं सकता’। गांधी जी पूंजीपतियों को देश का ट्रस्टी मानते थे। उनका दर्शन ‘हृदय परिवर्तन’ पर आधारित था। उनकी समझ थी कि समाज के प्रभुत्वशाली वर्गों तथा वर्चस्ववादी जातियों व शक्तियों के हृदय परिवर्तन से समाज में समता आयेगी। गांधी जी के इन विचारों के विपरीत मुक्तिबोध का चिंतन था। वे इस ‘उजली दुनिया’ के पीछे फैले काले संसार को, इसकी हृदयहीनता व मनुष्य विरोधी चरित्र को बखूबी समझते थे जिसकी प्रवृति छलना व लूटना है। पूंजीवाद की यह अमानवीयता आज के समय में कही ज्यादा आक्रामक होकर हमारे सामने आई है। आज जिस ‘महान लोकतंत्र’ की दुहाई दी जा रही है, वह मूलतः लूट और झूठ की बुनियाद पर टिका है। यह अपनी लूट को छिपाने तथा उसे बदस्तूर जारी रखने के लिए झूठ की रचना करता है। कौन नहीं जानता कि आज कॉरपोरेट हित सर्वोपरि है लेकिन इसे अर्थशास्त्रीय शब्दावली की भूल भुलैया में ले जाकर 'समावेशी' कहा जा रहा है। इस पूंजी से हमारे देश की प्राकृतिक संपदा, खनिज, जंगल, जल व जमीन की लूट जारी है। लेकिन इसे ‘विकास’ की संज्ञा दी जा रही है।
ऐसे अनेक आज के सवाल हैं जिनका सही चेहरा दिखाने में मुक्तिबोध का रचना संसार, विशेषतः की कविता 'अँधेरे में' पूरी तरह समर्थ है।
=========================================
शासकीय दिग्विजय स्नातकोत्तर स्वशासी
महाविद्यालय, राजनांदगांव ( छत्तीसगढ़ )
दाउद को लेकर ज़ी न्यूज़ का धमाका
मुंबई अंडरवर्ल्ड डॉन दाऊद इब्राहिम का नाम एक बार फिर चर्चा में है। दरसअल इस बार जी न्यूज ने दाऊद इब्राहिम पर एक बड़ा खुलासा किया है और उसने यह खुलासा एक ऑडियो टेप के जरिए किया है, चैनल के हाथ लगा है। इस टेप में दाऊद इकबाल नाम के अपने एक गुर्गे से दुबई के किसी प्रोजेक्ट को लेकर बात कर रहा है।
इस एक्सक्लूसिव टेप में दाऊद और इकबाल के बीच दुबई के एक प्रोजेक्ट को लेकर पैसों के लेनदेन की बात हो रही है। इस बातचीत से पता चलता है कि दाऊद पाकिस्तान के कराची में शाही ठाठ के साथ रह रहा है और अपना काला कारोबार चला रहा है। इस टेप से पता चलता है कि वह पाकिस्तान के कराची और दुबई में रियल स्टेट के कारोबार में पैसा भी लगा रहा है। इकबाल दाऊद को 3 लाख दिरहम यासिर नाम के एक शख्स को देने को कह रहा है। जवाब में दाऊद कहता है कि यासिर तो यहीं कराची में है, यानि दाऊद कराची में मौजूद है।
दोनों के बीच हुई इस बातचीत को भारतीय खुफिया एजेंसियों ने इंटरसेप्ट किया है। दाऊद की आवाज पहचानने वाले पत्रकार बलजीत परमार ने पुष्टि की है कि ऑडियो टेप में दर्ज आवाज मोस्ट वांटेड अंडरवर्ल्ड सरगना दाऊद इब्राहिम की ही है। परमार ने कहा कि पाकिस्तान भारत को धोखा दे रहा है।
दाऊद के अपने इस कबूलनामे से आतंक के खिलाफ पाकिस्तान की दोहरी नीति बेनकाब हो गई है। पाकिस्तान की ओर से हर बार दाऊद के पाक में होने की बात से इनकार किया गया। लेकिन ऑडियो टेप ने पाक के हर झूठ को बेनकाब कर दिया है। बातचीत में दाऊद ने अपने पते और गुर्गों के बारे में भी बताया है।
इस तरह हुई दाऊद और इकबाल के बीच बातचीत…
इकबाल: तो अभी वहां तीन एक लाख दिरहम चाहिए होंगे।
दाऊद: हां-हां।
इकबाल: तो अभी फिलहाल सब काम चलेंगे।
दाऊद: ठीक है, मैं भिजवा देता हूं, बोल देता हूं। किसको देना है?
इकबाल: यासिर को, यासिर को भिजवाते हैं तो मैं कर लूंगा।
दाऊद: बोल देता हूं मैं, यासिर तो यहीं है कराची में, मैं यासिर को बोल देता हूं।
इस बातचीत में एक और शख्स अमृत सिंह का नाम सामने आया है जिसके अकाउंट में दाऊद से पैसे डालने को कहा जा रहा है। ये अमृत सिंह कौन है? इस सवाल का जवाब भी खुफिया एजेंसियां तलाश रही हैं।
पाकिस्तानी अभिनेता फवाद खान अभिनीत धारावाहिक 'बेहद' एक बार फिर भारतीय दर्शकों को मंत्रमुग्ध करेगा। दरअसल यह शो रविवार को हिंदी चैनल 'जिंदगी' पर दस्तक दे चुका है।
बेहद' की कहानी मां-बेटी के रिश्ते की पेंचीदगी और कैसे एक-दूजे के प्रति उनका प्यार उनके लिए खिन्नता की वजह बनता है, के इर्दगिर्द घूमती है।
हिंदी चैनल जिंदगी पर 'हमसफर' और 'जिंदगी गुलजार है' जैसे धारावाहिकों के बाद 'बेहद' फवाद का एक अन्य कीर्तिमान है।
पहली हिंदी फिल्म 'खूबसूरत' व धारावाहिकों की वजह से फवाद को बॉलिवुड में ढेरों प्रशंसक मिल गए हैं।मुंबई अंडरवर्ल्ड डॉन दाऊद इब्राहिम का नाम एक बार फिर चर्चा में है। दरसअल इस बार जी न्यूज ने दाऊद इब्राहिम पर एक बड़ा खुलासा किया है और उसने यह खुलासा एक ऑडियो टेप के जरिए किया है, चैनल के हाथ लगा है। इस टेप में दाऊद इकबाल नाम के अपने एक गुर्गे से दुबई के किसी प्रोजेक्ट को लेकर बात कर रहा है।
इस एक्सक्लूसिव टेप में दाऊद और इकबाल के बीच दुबई के एक प्रोजेक्ट को लेकर पैसों के लेनदेन की बात हो रही है। इस बातचीत से पता चलता है कि दाऊद पाकिस्तान के कराची में शाही ठाठ के साथ रह रहा है और अपना काला कारोबार चला रहा है। इस टेप से पता चलता है कि वह पाकिस्तान के कराची और दुबई में रियल स्टेट के कारोबार में पैसा भी लगा रहा है। इकबाल दाऊद को 3 लाख दिरहम यासिर नाम के एक शख्स को देने को कह रहा है। जवाब में दाऊद कहता है कि यासिर तो यहीं कराची में है, यानि दाऊद कराची में मौजूद है।
दोनों के बीच हुई इस बातचीत को भारतीय खुफिया एजेंसियों ने इंटरसेप्ट किया है। दाऊद की आवाज पहचानने वाले पत्रकार बलजीत परमार ने पुष्टि की है कि ऑडियो टेप में दर्ज आवाज मोस्ट वांटेड अंडरवर्ल्ड सरगना दाऊद इब्राहिम की ही है। परमार ने कहा कि पाकिस्तान भारत को धोखा दे रहा है।
दाऊद के अपने इस कबूलनामे से आतंक के खिलाफ पाकिस्तान की दोहरी नीति बेनकाब हो गई है। पाकिस्तान की ओर से हर बार दाऊद के पाक में होने की बात से इनकार किया गया। लेकिन ऑडियो टेप ने पाक के हर झूठ को बेनकाब कर दिया है। बातचीत में दाऊद ने अपने पते और गुर्गों के बारे में भी बताया है।
इस तरह हुई दाऊद और इकबाल के बीच बातचीत…
इकबाल: तो अभी वहां तीन एक लाख दिरहम चाहिए होंगे।
दाऊद: हां-हां।
इकबाल: तो अभी फिलहाल सब काम चलेंगे।
दाऊद: ठीक है, मैं भिजवा देता हूं, बोल देता हूं। किसको देना है?
इकबाल: यासिर को, यासिर को भिजवाते हैं तो मैं कर लूंगा।
दाऊद: बोल देता हूं मैं, यासिर तो यहीं है कराची में, मैं यासिर को बोल देता हूं।
इस बातचीत में एक और शख्स अमृत सिंह का नाम सामने आया है जिसके अकाउंट में दाऊद से पैसे डालने को कहा जा रहा है। ये अमृत सिंह कौन है? इस सवाल का जवाब भी खुफिया एजेंसियां तलाश रही हैं।
पाकिस्तानी अभिनेता फवाद खान अभिनीत धारावाहिक 'बेहद' एक बार फिर भारतीय दर्शकों को मंत्रमुग्ध करेगा। दरअसल यह शो रविवार को हिंदी चैनल 'जिंदगी' पर दस्तक दे चुका है।
बेहद' की कहानी मां-बेटी के रिश्ते की पेंचीदगी और कैसे एक-दूजे के प्रति उनका प्यार उनके लिए खिन्नता की वजह बनता है, के इर्दगिर्द घूमती है।
हिंदी चैनल जिंदगी पर 'हमसफर' और 'जिंदगी गुलजार है' जैसे धारावाहिकों के बाद 'बेहद' फवाद का एक अन्य कीर्तिमान है।
पहली हिंदी फिल्म 'खूबसूरत' व धारावाहिकों की वजह से फवाद को बॉलिवुड में ढेरों प्रशंसक मिल गए हैं।