Tuesday, November 26, 2024
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स्पेल चेक सॉफ्टवेयर का लोकार्पण समारोह

कम्प्यूटर पर हिन्दी लिखते समय वर्तनी की अशुद्धियों को दूर करेगा स्पेल चेक सॉफ्टवेयर

 

भोपाल/24 दिसम्बर 2013/माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय में आज (25 दिसम्बर 2013 को) हिन्दी के प्रथम ओपन सोर्स स्पेल चेक सॉफ्टवेयर का लोकार्पण समारोह आयोजित किया जा रहा है। समारोह विश्वविद्यालय परिसर के सभागृह में प्रातः 11.00 बजे प्रारम्भ होगा। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि वरिष्ठ पत्रकार एवं सम्पादक श्री राहुल देव होंगे। कार्यक्रम के विशिष्ट अतिथि भारत सरकार के सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के पूर्व सचिव श्री उदय वर्मा होंगे। कार्यक्रम की अध्यक्षता विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. बृज किशोर कुठियाला करेंगे।

पत्रकारिता विश्वविद्यालय की एक महत्वाकांक्षी परियोजना के तहत कम्प्यूटर में काम करते समय हिन्दी के शब्दों को लिखते समय होने वाली वर्तनी त्रुटियों को दूर करने के लिए स्पेल चेक सॉफ्टवेयर बनाने की योजना पर कार्य शुरू किया गया था। आज प्रखर वक्ता यशस्वी पत्रकार एवं शिक्षाविद् पं. मदन मोहन मालवीय की जयंती एवं हिन्दीसेवी कवि, पत्रकार, पूर्व प्रधानमंत्री श्री अटल बिहारी बाजपेयी के जन्मदिवस के अवसर पर इस स्पेल चेक सॉफ्टवेयर लोकार्पण किया जा रहा है।

विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. बृज किशोर कुठियाला ने बताया कि कम्प्यूटर में हिन्दी लिखते समय वर्तनी की अशुद्धियाँ अक्सर हुआ करती हैं। इस स्पेल चेक सॉफ्टवेयर के माध्यम से कम्प्यूटर में हिन्दी लिखते समय वर्तनी की अशुद्धियों से बचा जा सकता है। अभी हिन्दी में जो वर्तनी परीक्षक सॉफ्टवेयर उपलब्ध हैं, उनमें कुछ न कुछ कमियाँ हैं। इस स्पेल चेक सॉफ्टवेयर में उन कमियों को दूर करते हुए इसे मुक्तस्रोत सॉफ्टवेयर लायसेंस के तहत जारी किया गया है, अर्थात् इसका न केवल निःशुल्क उपयोग किया जा सकता है बल्कि इसमें आवश्यक सुधार, परिवर्तन आदि करते हुए इसके अन्य संस्करण भी तैयार किये जा सकते हैं। हिन्दी के क्षेत्र में कार्य करने वाले लोगों तथा मीडिया जगत के लिए यह एक उपयोगी सॉफ्टवेयर होगा। इसे विश्वविद्यालय की वेबसाइट www.mcu.ac.in से निःशुल्क डाउनलोड किया जा सकता है।

इस कार्यक्रम में नगर के गणमान्य नागरिक, शिक्षाकर्मी, मीडियाकर्मी, प्रबुद्धजन, हिन्दीसेवी तथा विश्वविद्यालय के शिक्षक, अधिकारी एवं कर्मचारी उपस्थित रहेंगे।

 

(डॉ. पवित्र श्रीवास्तव)
निदेशक, जनसंपर्क प्रकोष्ठ

 

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कैंसर जागरूकता हेतु कन्सर्ट फॉर होप

सोनम कालरा और सूफी गोस्पल प्रोजेक्ट का शानदार कार्यक्रम

नई दिल्ली; हाल ही में इण्डियन कैंसर सोसायटी द्वारा कैंसर की जागरूकता हेतु स्टेन ऑडिटोरियम, इण्डिया हैबीटेट सेंटर में एक संगीतमय संध्या ‘कन्सर्ट फॉर होप’ का आयोजन किया, जहां जानी-मानी कलाकार सोनम कालरा और उनके द सूफी गोस्पल प्रोजेक्ट ने लगभग दो घंटे के कार्यक्रम से उपस्थित मेहमानों एवम् अन्य श्रोताओं को मंत्र-मुग्ध किया।
 
कार्यक्रम की शुरूआत पारम्परिक दीप प्रज्जवलन के साथ हुई जिसके बाद श्रीमति गुरूशरण कौर ने इंडियन कैंसर सोसायटी के वालनटीयर्स को सम्मानित किया। मौके पर प्रधानमंत्री श्री मनमोहन सिंह की पत्नी श्रीमति गुरूशरण कौर बतौर मुख्यातिथि उपस्थित थीं। उनके अतिरिक्त रक्षा मंत्री की पत्नी श्रीमति एलिजाबेथ एंथोनी, प्रख्यात कलाकार श्रीमति शन्नो खुराना, कैंसर सोसायटी की सचिव श्रीमति ज्योत्सना गोविल व अन्य उपस्थित रहे।

सोनम कालरा ने अपनी साथी कलाकारों; एलेक्स फर्नांडिस (पियानो), राजेश व रितेश प्रसन्ना (बांसुरी), तरित पाल (परकशन), परवेज हुसैन (तबला), अमर संगम (गिटार) एवम् गायक अक्षय द्योधर जो कि विशेष रूप से इस कन्सर्ट के लिए मुम्बई से आये थे, ने एक के बाद एक जबरदस्त गीत प्रस्तुत करते हुए संगीतमय समां बांधा।

सोनम ने ‘इक ओंकार..’ से शुरूआत की। इसके बाद उन्होंने पारसी कविता को बतौर गीत के रूप में तैयार‘मन मनम..’, प्रस्तुत किया। बाबा बुल्ले शाह के कलाम ‘चल बुलेया..’ को श्रोताओं ने बेहद पसन्द किया। इसके बाद विशेष रूप से सोनल व अक्षय ने कन्सर्ट फॉर होप के लिए तैयार कम्पोजिशन ‘हैंडफुल ऑफ गोल्ड, हार्ट फुल ऑफ होप..’ व ‘वी ऑल नीड ए लिटिल लाइट..’ भी प्रस्तुत की।

अपने माता-पिता को समर्पित गीत ‘चल हुन सखी वहीं देस..’ और रे चाल्र्स से प्रेरित गीत ‘हलेलुजाह, आई जस्ट लव हिम सो..’ सोनम की अगली प्रस्तुति थे। श्रोताओं की डिमांड पर उन्होंने एक क्रिसमस गीत ‘हैव योरसेल्फ अ मेरी लिटिल क्रिसमस..’ भी प्रस्तुत किया।

कन्सर्ट का समापन एक ऐसी प्रस्तुति से हुआ, जो कि सर्वश्रष्ठ और शानदार थी, बाबा बुल्लेशाह का कलाम जिसे आयरिश टच दिया गया था ‘अल्फत इन बिन नुक्ता यार पढ़ाया..‘ इस प्रस्तुतिकरण में सुर-लय-ताल तो जबरदस्त थी ही, साथ ही कलाकारों के आपसी ताल-मेल और जुगलबन्दी ने श्रोताओं को भाव-विभोर कर दिया, जिसके उपरान्त खचाखच भरे आॅडिटोरियम में हरेक श्रोता ने खड़े होकर तालियों के साथ कलाकारों का अभिवादन किया।

कार्यक्रम के उपरान्त सोनम ने बताया कि ‘मेरी मां को भी कैंसर था, जिसे उन्होंने एक कैंसर समुराई की तरह लड़ा। यह कन्सर्ट मैंने उनके और उन सभी लोगों के लिये किया है जो इस घातक बीमारी के शिकार हैं।’

कन्सर्ट का प्रमुख उद्देश्य कैंसर के प्रति जागरूकता फैलाना था और कन्सर्ट के दौरान लोगों द्वारा दी गयी डोनेशन जागरूकता और कैंसर स्क्रीनिंग हेतु इस्तेमाल की जायेगी।

मौके पर श्रीमति ज्योत्सना गोविल ने सोनम कालरा की भूरि-भूरि प्रसंशा करते हुए कहा कि हमारा उद्देश्य कैंसर रोगों में कमी लाना है और सोनम जैसे कलाकार हमारे उद्देश्य की पूर्ति हेतु विशिष्ट योगदान देते हैं। हमें लगता है कि ऐसे संगीतमय कार्यक्रम न केवल मनोरंजन कराते हैं बल्कि एक आशा भी जगाते हैं कि कैंसर का ईलाज सम्भव है अगर इसका जल्दी पता लगा लिया जाये।

अधिक जानकारी हेतु सम्पर्क सूत्रः
पंकज सुखीजा-9810123446, शैलेश नेवटिया-9716549754

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वरिष्ठ पत्रकार प्राण चोपड़ा नहीं रहे

अनुभवी पत्रकार और द स्टेट्समैन के पहले भारतीय संपादक प्राण चोपड़ा का रविवार को निधन हो गया। वह पिछले कुछ समय से बीमार थे। ऑल इंडिया रेडियो के लिए द्वितीय विश्व युद्ध और भारत-पाकिस्तान की जंग कवर करने वाले चोपड़ा 92 वर्ष के थे। उनके निधन पर एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया ने शोक जाहिर किया है। वह अपने पीछे पत्नी और दो बेटियां छोड़ गए हैं।  

उनका जन्म जनवरी 1921 में लाहौर में हुआ था। उन्होंने पत्रकारिता में अपने करियर की शुरुआत 1941 में सिविल एंड मिलिट्री गजट से की। उन्हें 60’ के दशक में स्टेट्समैन के दिल्ली एडिशन का संपादक बनाया गया और उसके बाद वह अखबार के एडिटर-इन-चीफ बने।   60’ के दशक के आखिर में वह ‘द सिटिजन’ और ‘वीकेंड रिव्यू’ जैसी मैगजीन्स के एडिटर बने। चोपड़ा ने पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री जुल्फिकार अली भुट्टो की किताब ‘इफ आइ एम असैसिनेटेड’ की प्रस्तावना भी लिखी। 

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प्रसार भारती शिक्षा के 50 नए चैनल शुरु करेगी

प्रसार भारती और मानव संसाधन विकास मंत्रालय के संयुक्त प्रयास से  छात्रों के लिए 50  एजुकेशन चैनल शुरू किए जा रहें हैं। इन्हें अगले वर्ष एक मई से शुरू किए जाने की योजना है, जिसके तहत सेटेलाइट के जरिये शिक्षा संबंधी कंटेंट का प्रसारण किया जायेगा।  

मानव संसाधन विकास मंत्रालय की ओर से उच्च शिक्षा सचिव अशोक ठाकुर और प्रसार भारती की ओर से मुख्य कार्यकारी अधिकारी जवाहर सरकार ने सहमति पत्र पर हस्ताक्षर किये हैं। पहले चरण में 50 डीटीएच चैनल शुरू किये जायेंगे।

आईआईटी, इग्नू, राज्य मुक्त विश्वविद्यालय, केंद्रीय विश्वविद्यालय, एनआईटी जैसे उच्च शिक्षण संस्थान शिक्षण संबंधी कंटेंट तैयार करेंगे और जिसका प्रसारण इन चैनलों पर किया जायेंगा। प्रत्ये क चैनल 9 घंटे का लाइव कार्यक्रम प्रसारित करेगा,जिसे अगले 15 घंटे दोहराया जाएगा। इसके लिए वर्ष में 1,64,250 घंटे की शैक्षणिक कंटेंट की जरूरत होगी और यह कंटेंट 16 करोड़ भारतीय परिवारों तक पहुंच सकेगी।   इन 50 डीटीएच चैनलों के लिये अगले डेढ साल के लिये250 से 300 करोड रूपये का बजट निर्धरित किया गया है। बाद में 46 अरब रूपये के खर्च से सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकी के जरिये शिक्षा पर राष्ट्रीय मिशन एनएमईआईसीटी के तहत 1000 डीटीएच चैनल शुरू किये जाने की योजना है।

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सांप्रदायिक हिंसा विरोधी कानून का औचित्य क्या है?

सांप्रदायिक हिंसा विरोधी विधेयक संसद में लाने तथा इसे संसद में पास कराकर कानून की शक्ल दिए जाने की कवायद हालांकि सन् 2005 से चल रही है। परंतु मु य विपक्षी दल भारतीय जनता पार्टी द्वारा इस बिल का विरोध किए जाने के चलते इसे ठंडे बस्ते में डाल दिया गया था। पिछले दिनों मुज़्ज़फरनगर व आसपास के क्षेत्रों में फैली सांप्रदायिक हिंसा व दंगों के बाद एक बार फिर न केवल इस विधेयक को संसद में मंजूरी हेतु लाए जाने का दबाव सरकार पर बढऩे लगा तथा संयुक्त प्रगतिशील सरकार इस विषय पर गंभीर नज़र आने लगी।

परिणामस्वरूप पिछले दिनों प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की अध्यक्षता में हुई केंद्रीय मंत्रिमंडल की बैठक में इस विधेयक को संसद में पेश किए जाने की मंज़ूरी दे दी गई। हालांकि भारतीय जनता पार्टी द्वारा इस बिल के कई बिंदुओं पर आपत्ति उठाए जाने के बाद इसके कई प्रावधानों में फेरबदल व संशोधन भी किए जा चुके हैं। विपक्ष को आपत्तिजनक नज़र आने वाले कई प्रावधान इस विधेयक से हटा भी दिए गए हैं। इसके बावजूद भाजपा का कहना है कि इस विधेयक के कानून की शक्ल अि तयार करने के बाद देश में सांप्रदायिकता नियंत्रित होने के बजाए और बढ़ेगी तथा इससे समाज में ध्रुवीकरण हो सकता है। जबकि कांग्रेस पार्टी देश में अब तक हुए सांप्रदायिक दंगों की जांच-पड़ताल तथा उससे संबंधित रिपोर्ट के अध्ययन के बाद इस विधेयक को संसद में पारित कराया जाना ज़रूरी समझती है। सवाल यह है कि क्या देश के सभी राजनैतिक दलों को सांप्रदायिकता पर नियंत्रण करने तथा इसे रोकने व इसके लिए ज़िम्मेदारलोगों को सज़ा दिलाए जाने के लिए प्रतिबद्ध नहीं होना चाहिए? क्या भारत जैसे धर्मनिरपेक्ष देश में कलंक रूपी सांप्रदायिकता को समाप्त किया जाना ज़रूरी नहीं है?               

सांप्रदायिक हिंसा विरोधी विधेयक में जहां अन्य और कई प्रकार के बिंदु तथा प्रावधान हैं वहीं इसमें केंद्र व राज्य स्तर पर सांप्रदायिक सौहाद्र्र,न्याय तथा मुआवज़ा प्राधिकरण बनाने का भी प्रस्ताव है। इस प्राधिकरण अथवा अथॉरिटी को सिविल कोड के अधिकार प्राप्त होंगे। इस प्राधिकरण(अथॉरिटी) के पास दंगों की, दंगा प्रभावित क्षेत्रों व दंगा पीडि़तों अथवा दंगा स्थल की जांच के लिए अपनी टीम होगी। सांप्रदायिक हिंसा की रोकथाम के लिए केंद्र अथवा राज्य सरकार किसी भी एजेंसी की मदद ले सकेंगे। यह अथॉरिटी अथवा प्राधिकरण सांप्रदायिक हिंसा की जांच हेतु उच्च न्यायालय के किसी न्यायधीश की अगुवाई में जांच कराए जाने का आदेश भी दे सकती है। प्रस्तावित विधेयक में हिंसा से प्रभावित व पीडि़त लोगों को जल्द से जल्द मुआवज़ा दिए जाने की भी व्यवस्था है। केंद्रीय मंत्रिमंडल ने विपक्ष की आपत्ति के बाद जिन प्रावधानों में परिवर्तन किया है उन बदले हुए प्रावधानों के मुताबिक केंद्र अब राज्य के कानून व्यवस्था संबंधी मामलों में सीधे तौर पर दखल नहीं दे पाएगा। अब संशोधित विधेयक के अनुसार केंद्र सरकार राज्य के कहने के बाद ही अर्धसैनिक बलों को भेज सकेगा। और इन सबसे महत्वपूर्ण प्रावधान जिसका उल्लेख इस विधेयक में किया गया है वह यह है कि  सांप्रदायिक दंगों व हिंसा के लिए ब्यूरोक्रेसी की जि़ मेदारी को और अधिक सुनिश्चित किया जाना। अर्थात् यदि कोई उच्चाधिकारी अपनी जि़ मेदारियों का सही तरीके से निर्वहन नहीं कर पाता तो उसके विरुद्ध कानूनी कार्रवाई की जाएगी।               

हमारे देश में सांप्रदायिक व लक्षित दंगों व ऐसी हिंसा का इतिहास काफी पुराना है। देश में पहली संाप्रदायिक हिंसा 1892 में हुई थी। उस समय से लेकर अब तक कश्मीर से कन्याकुमारी तक होने वाली सांप्रदायिक हिंसा में यही देखा जा रहा है कि प्राय: अल्पसं यक समाज के लोगों को बहुसं य समाज के लोगों की हिंसा का सामना करना पड़ता है। यह भी देखा जाता है कि ऐसे दंगों में कई आलाधिकारी अपनी पक्षपात पूर्ण तथा पूर्वाग्रही भूमिका अदा करते हैं। और इन सबसे अफसोसनाक बात यह है कि इन दंगों में विभिन्न दलों से संबंध रखने वाले राजनेता तथा सत्तारूढ़ सरकारें अपने राजनैतिक नफे-नुकसान को मद्देनज़र रखते हुए प्रशासन को व आलाधिकारियों को निर्देश जारी करते हैं तथा अपनी सोच व नीति के अनुसार अधिकारियों को दंगों व दंगाईयों से निपटने का निर्देश देते हैं।

परिणामस्वरूप कश्मीर में जब अल्पसंख्यक कश्मीरी पंडितों पर ज़ुल्म ढाए जाते हैं तो वहां का राज्य प्रशासन व प्रशासनिक अधिकारी तथा पुलिस बहुसंख्यकों के तुष्टिकरण तथा उनके भयवश दंगाईयों व हिंसा फैलाने वालों के विरुद्ध स त कार्रवाई नहीं कर पाते। और इसी का परिणाम है कि आज लाखों कश्मीरी पंडित अपनी जन्मस्थली को छोड़कर अन्य स्थानों पर अभी तक शरणार्थी बनने को मजबूर हैं और अभी तक उनका पुनर्वास नहीं हो पा रहा है। ऐसी ही स्थिति 1984 में भी उस समय पैदा हुई थी जबकि देश के राज्यों में सिख विरोधी दंगे भड़क उठे थे। इन दंगों में भी राजनेताओं व प्रशासन की मिलीभगत का खमियाज़ा अल्पसं यक सिख समुदाय का भुगतना पड़ा था। और ऐसी ही स्थिति मुस्लिम समुदाय के लोगों के साथ अक्सर बनती रहती है। गुजरात के 2002 के दंगे हों या 1992 में बाबरी मस्जिद विध्वंस के बाद देश में हुई सांप्रदायिक हिंसा अथवा मुरादाबाद,मेरठ,इलाहाबाद तथा भागलपुर जैसी जगहों पर होने वाले दंगे या फिर उड़ीसा के कंधमाल में इसाई समुदाय के विरुद्ध भड़की हिंसा अथवा आसाम में अल्पसं यंकों को निशाना बनाया जाना,इन सभी जगहों पर बहुसं य लोगों के तांडव तथा इसमें प्रशासन की मिलीभगत अथवा चुप्पी को साफतौर पर देखा जा सकता है।               

ऐसे में क्या यह ज़रूरी नहीं कि देश के संविधान में उल्लिखित प्रावधानों के मद्देनज़र हम अपने देश में रहने वाले अल्पसं यक समुदाय के लोगों को संरक्षण देने तथा उनके जान व माल की हिफाज़त सुनिश्चित करने के उपाय करें? एक और ज़रूरी सवाल यहां यह भी है कि जब कभी देश में अल्पसंख्यकों की सुरक्षा तथा उनके अधिकारों या संरक्षण की बात की जाती है तो केवल भारतीय जनता पार्टी तथा उसके सहयोगी संगठनों को ही सबसे अधिक कष्ट क्यों होता है? भारतीय जनता पार्टी की इस विधेयक को लेकर तथाकथित चिंताएं क्या इस ओर इशारा नहीं करतीं कि भाजपा देश में रह रहे अल्पसं यकों को सुरक्षा व संरक्षण प्रदान करने में कोई दिलचस्पी नहीं रखती? और ऐसी ही स्थिति पक्षपातपूर्ण तथा पूर्वाग्रही स्थिति कही जाती है।
 
क्या यह भाजपा के सांप्रदायिक चरित्र का प्रमाण नहीं है? क्या कारण है कि अटल बिहारी वाजपेयी के दौर में जिस भाजपा के साथ 24 राजनैतिक दल वाजपेयी के नेतृत्व वाले गठबंधन में शामिल थे आज दो दलों के सिवा कोई भी उनके साथ नहीं है? आिखर क्यों? भाजपा के नेता प्रतिदिन कई-कई बार इस बात को दोहराते रहते हैं कि देश में सबसे अधिक दंगे कांग्रेस के शासनकाल में हुए इसलिए कांग्रेस पार्टी को सांप्रदायिक तथा अल्पसं यक विरोधी पार्टी समझा जाना चाहिए। परंतु भाजपाई यह आंकड़ा कभी पेश नहीं करते कि देश में कहीं भी होने वाले सांप्रदायिक दंगों में अथवा सांप्रदायिक हिंसा में सबसे अधिक गिर तारियां किस पार्टी व किस संगठन के लोगों की होती हैं? माया कोडनानी जैसी दंगाई महिला जोकि आज जेल में आजीवन कारावास की सज़ा भुगत रही है उसे 2002 के गुजरात दंगों में शामिल होने तथा सामूहिक हत्याकांड करवाने हेतु पुरस्कार स्वरूप मंत्री पद कौन सी पार्टी की सरकार देती है? यहां तक कि अभी पिछले दिनों मुज़्ज़फरनगर में सांप्रदायिक हिंसा फैलाने में आरोपित भाजपा के दो विधायकों को आगरा में किस पार्टी ने स मानित किया? कितना हास्यासपद विषय है कि देश की धर्मनिरपेक्षता तथा भारतीय संविधान की धज्जियां उड़ाने वाले लोग तथा दल आज सांप्रदायिक हिंसा विरोधी विधेयक को लेकर यह आपत्ति दर्ज करते सुनाई दे रहे हैं कि इस कानून से देश का संघीय ढांचा बिखर जाएगा। 6 दिसंबर के गुनहगारों तथा गुजरात दंगों को क्रिया की प्रतिक्रया बताए जाने वालों तथा दंगाईयों को पुरस्कृत व स मानित करने वालों पर ऐसी बातें कतई शोभा नहीं देती।

मुझे याद है कि एक बार महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री अब्दुल रहमान अंतुले ने मुझसे वार्तालाप के दौरान स्पष्ट रूप से यह बात कही थी कि सांप्रदायिक हिंसा अथवा दंगों को रोकना अथवा न होने देना पुलिस एवं प्रशासन के बाएं हाथ का खेल है। उन्होंने बताया था कि मु यमंत्री बनते ही सर्वप्रथम उन्होंने पूरे महाराष्ट्र राज्य के जिलाधिकारियों व पुलिस अधीक्षकों को प्रथम निर्देश यही दिया था कि राज्य में कहीं सांप्रदायिक हिंसा अथवा दंगे नहीं होने चाहिएं। और यदि हुए तो स्थानीय अधिकारी इसके दोषी होंगे। परिणामस्वरूप अंतुले के शासनकाल में राज्य में एक भी दंगा नहीं हुआ। वास्तव में कोई भी ज़िम्मेदार अधिकारी मात्र दो-चार घंटों में ही बड़ी से बड़ी हिंसा को नियंत्रित कर सकता है।
 
दरअसल, प्रशासन के लोग अपने राजनैतिक आकाओं की मर्ज़ी व उसके निर्देश एवं उनकी खुशी के लिए काम करना बेहतर समझते हैं। आज आप किसी भी पूर्व अथवा वर्तमान ईमानदार अधिकारी से बात करें तो वह यही कह ता मिलेगा कि दंगे भड़कने तथा फैलने से लेकर इसके अनियंत्रित रहने तक में नेताओं की ही प्रमुख भूमिका होती है। और यदि नेता इनमें दखल न दें तो सांप्रदायिक हिंसा शुरु ही नहीं हो सकती। आज गुजरात में तमाम अधिकारी या तो जेल की सलाखों के पीछे हैं या फिर अपनी साफगोई व कर्तव्यनिष्ठा का परिणाम भुगतते हुए निलंबित हैं अथवा मुकद्दमों का सामना कर रहे हैं। यह सब राजनैतिक दखलअंदाज़ी तथा पक्षपातपूर्ण शासकीय रवैयों का ही परिणाम है। वास्तव में ऐसी स्थितियां संघीय ढांचे के लिए खतरा हैं न कि सांप्रदायिक हिंसा विरोधी कानून। लिहाज़ा देश में अमन-चैन व भाईचारा कायम रखने के लिए इस विधेयक को कानून की शक्ल देना बेहद ज़रूरी है न कि इस विधेयक को लेकर भी लोगों का गुमराह करना व सांप्रदायिकता की राजनीति करना।

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हद की बेशर्मी, मोदी की सभा पर भी आपत्ति जताई अमरीका ने!

देवयानी खोब्रागड़े को अपमानित करने के बाद मरीका भारत से सीधी तू-तू मैं-मैं पर उतर आया है।  अमेरिका भारत को यह बताने की कोशिश कर रहा है कि भारतीय नेता कहां रैली कर सकते हैं और कहां नहीं।  अमरीका ने ताज़ा विवाद रविवार को मुंबई के एमएमआरडीए मैदान में हुई नरेंद्र मोदी की रैली को लेकर पैदा किया है। एमएमआरडीए मैदान मुंबई के बांद्रा इलाके में है, जहां अमेरिकी वाणिज्य दूतावास मौजूद है। अमेरिकी प्रशासन की ओर कहा गया है कि मोदी की रैली में शामिल हुए लोगों की ओर से अमेरिका के वाणिज्य दूतावास पर हमले का खतरा था।

बांद्रा में बीकेसी परिसर में स्थित अमेरिकी वाणिज्य दूतावास को कई स्तरों की सुरक्षा मुहैया कराई गई थी। लेकिन भारतीय विदेश मंत्रालय के अफसर तब हैरान रह गए जब अमेरिका ने मोदी की रैली के मद्देनजर सुरक्षा कड़ी किए जाने की मांग की। बताया जा रहा है कि अमेरिका ने भारत सरकार से कहा था कि रविवार को हुई मोदी की रैली में शामिल हुए लोग वाणिज्य दूतावास और उसके अफसरों पर हमला कर सकते हैं।

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मुंबई में मोदी की महागर्जना

भाजपा के प्रधान मंत्री पद के उम्मीदवार श्री नरेंद्र मोदी के मुंबई आगमन के ठीक 8 घंटे पहले मुंबई विश्वविद्यालय के उपकुलपति ने सांताक्रुज़ के विश्वविद्यालय स्थित मैदान में हैलीपेड पर मोदी का हेलीकॉप्टर उतारने को लेकर अपनी अनुमति वापस ले ली थी, लेकिन मुंबई के पुलिस आयुक्त श्री सत्यपाल सिंह ने पुलिस आयुक्त के विशेषाधिकारों का प्रयोग करते हुए पूरे परिसर को अपने कब्जे में लेकर वहाँ श्री नरेंद्र मोदी के हेलीकॉप्टर को उतारे जाने की व्यवस्था की।

श्री नरेंद्र मोदी ने मुंबई के बांद्रा कुर्ला कॉम्प्लैक्स में महागर्जना रैली के दौरान वोट फॉर इंडिया का नया नारा दिया, वहीं चायवालों के बहाने कहा कि अब समय बदल रहा है, देश का हर गरीब वीआइपी होगा। वह यह भी कहने से नहीं चूके कि मोदी लोगों के दिलों में जगह बना चुका है। आइए जानते हैं मोदी के भाषण की दस प्रमुख बातें :-

 

1. वोट फॉर इंडिया :

नरेंद्र मोदी ने भाषण के समापन में भाजपा के लिए नहीं, बल्कि भारत के लिए वोट मांगा। उन्होंने 'वोट फॉर इंडिया' का नारा दिया। जनता से संकल्प लिया कि भारत की एकता, विकास, महंगाई व भ्रष्टाचार से मुक्ति, नारियों के लिए सम्मान, वंशवाद से मुक्ति और सुराज की राजनीति के लिए इंडिया के लिए वोट करेंगे।

2. कांग्रेस क्विट इंडिया :

मोदी ने कहा कि आजादी के दौरान महाराष्ट्र से अंग्रेजों के खिलाफ क्विट इंडिया मूवमेंट की शुरुआत हुई थी। यहीं से कांग्रेस क्विट इंडिया की आवाज उठे। उन्होंने कहा कि कांग्रेस मुक्त भारत का सपना साकार करना होगा क्योंकि हर समस्याओं के जड़ में कांग्रेस पार्टी ही है।

 

3. कुशासन डायबिटीज की तरह :

मोदी ने कहा कि किसी देश या राज्य का कुशासन डायबिटीज बीमारी की तरह होता है जो ऊपर से देखने में तो सही लगता है लेकिन अंदर ही अंदर सैकड़ों बीमारियां पैदा कर देता है। उसी तरह सरकार का कुशासन राज्य को खोखला कर देता है।

 

4. शिवराज सरकार की तारीफ :

मोदी ने कहा कि जब हम गुजरात की तारीफ करते हैं तो कुछ नेताओं को पेट में दर्द होने लगता है इसलिए हम मध्यप्रदेश की बात करेंगे, जहां भाजपा का शासन है। मध्यप्रदेश एक समय बीमारू राज्य कहा जाता था, जहां विकास का नामोनिशान नहीं था ऐसे राज्य में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने पूरी व्यवस्था बदलते हुए राज्य में खुशहाली ला दी। एक समय था जब पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश गेहूं और चावल की सबसे ज्यादा पैदावार करते थे लेकिन आज मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ जैसे राज्यों ने देश का अनाज भंडार भरा है।

 

5. मोदी लोगों के दिलों में :

जबरदस्त भीड़ से उत्साहित मोदी ने कहा कि उन्हें कांग्रेसशासित राज्यों में रैली से पहले केबल प्रसारण बंद किए जाने की जानकारी है, लेकिन जनता के दिलों पर कोई ताला नहीं लगा सकता। 'मोदी दिलों में जगह बना चुका है।' केबल पर ताला लगा सकते हो, देशवासियों के दिलों पर नहीं।

 

6. देश का हर गरीब वीआइपी :

रैली में 10 हजार चायवालों को वीआइपी देकर आमंत्रित किए जाने का उल्लेख करते हुए मोदी ने कहा, अब चायवाले वीआइपी बन गए हैं। समय बदल रहा है, वह दिन दूर नहीं जब देश में हर गरीब वीआइपी होगा।

7. राहुल पर चुटकी :

राहुल गांधी पर चुटकी लेते हुए उन्होंने कहा कि यह सिर्फ कांग्रेस के शासन में होता है कि सरकार भ्रष्टाचार करती है और उनका नेता इसके खिलाफ उपदेश देता है। वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी के नेतृत्व में भाजपा के सभी सांसदों ने लिखकर दिया है कि उनका विदेश में कोई खाता नहीं है। कांग्रेस सांसदों ने चुप्पी साध रखी है, लेकिन नेता हैं कि गरीबों की बात करते हैं।

 

8. मुस्लिमों को किया आगाह :

मोदी मुस्लिमों को भी आगाह करने से नहीं चूके। उन्होंने कहा कि सरकार ने मुस्लिमबहुल 90 जिलों के लिए बजट घोषित किया था, लेकिन संसद में खुद सरकार ने माना है कि पिछले तीन वर्ष में इस मद से एक पैसा खर्च नहीं किया गया है।

 

9. श्रमेव जयते :

मोदी ने श्रमिकों की महता पर बल देते हुए सत्यमेव जयते की तर्ज पर श्रमेव जयते का नया नारा दिया।

10. कांग्रेस पर निशाना :

मोदी ने भाषण में कांग्रेस पर जमकर निशाना साधा। उन्होंने आरोप लगाया कि कांग्रेस वोट बैंक की राजनीति में डूबकर समाज को तोड़ने और बांटने में जुटी हुई है। अंग्रेजों से लड़ते-लड़ते कांग्रेस ने डिवाइड एंड रूल की पॉलिसी अपना ली है। नदियों के लिए लड़ाया जा रहा है लोगों को। पानी बंटवारे को लेकर कई सालों से लड़ाई लड़ रहे हैं लोग और केंद्र में बैठी सरकार को भाई से भाई को लड़ाने में मजा आ रहा है। देश को वोटबैंक की राजनीति से उबारना होगा, तभी देश समस्याओं से मुक्त होगा।

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केंद्रीय मंत्री आज़ाद ने खोली सांसदों की पोल

केंद्रीय स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्री गुलाम नबी आजाद ने देश के सांसदों के बारे में चौंकाने वाला खुलासा करते हुए कहा है कि सांसद सबसे ज्यादा जवान होने, याददाश्त बढ़ाने और कामोत्तेजक आयुर्वेदिक दवाओं का इस्तेमाल करते हैं।

जम्मू के परेड मैदान में स्वास्थ्य मंत्रालय के आरोग्य मेले में गुलाम नबी आजाद आजाद ने बताया कि इस बार संसद सत्र के दौरान एक सांसद ने उनसे पूछा था कि संसद में कौन सी आयुर्वेदिक दवाइयां ज्यादा बिकती हैं। स्वास्थ्य मंत्री ने दावा किया कि जब उन्होंने इस बारे में जानकारी ली तो उन्हें पता चला कि देश के सांसद आयुर्वेद की तीन दवाओं का इस्तेमाल ज्यादा करते हैं। इनमें जवान होने, याद्दाश्त बढ़ाने और शादी के बाद काम आने वाली दवाएं शामिल हैं।

 

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चमनलाल की टोपी ने अरविंद केजड़ीवाल की किस्मत बदल दी!

आम आदमी पार्टी आखिरकार दिल्ली में सरकार बना रही है और अरविंद केजरीवाल मुख्यमंत्री बन रहे हैं। इस आम आदमी पार्टी की पहचान हैं वो सफेद रंग की नारे लिखीं टोपियां जो अरविंद केजरीवाल से लेकर हजारों आप समर्थकों के माथे पर सजती हैं। जिस टोपी को पहनकर अरविंद और उनके समर्थकों ने लोकपाल आंदोलन से लेकर इस सियासी सफलता तक सफर तय किया है, उसके पीछे जो शख्स है उनका नाम चमनलाल है चमनलाल दिल्ली के सदर बाजार में सस्ती टोपियां बेचते हैं । दिल्ली में बड़े राजनीतिक बदलाव के प्रतीक आप पार्टी की टोपी को सबसे ज्यादा संख्या में बेचने का श्रेय उन्हीं को जाता है।

इकॉनोमिक टाइम्स के अनुसार, चमनलाल ने दिल्ली में अक्टूबर में आप पार्टी के बनने के बाद छह से सात लाख टोपियां बेची हैं। चमनलाल को उम्मीद है कि केजरीवाल के सीएम बनने के बाद और आप पार्टी के राष्ट्रीय स्तर पर चुनाव लड़ने की तैयारी से टोपियों की मांग और बढ़ेंगी। चमनलाल खुद भी आप समर्थक हैं और वह टोपियां बेचने के बिजनेस पर गर्व करते हैं।

चमनलाल के अनुसार, वह महज 25 पैसे के मुनाफे पर एक टोपी तीन रुपए में बेचते हैं। चमनलाल बताते हैं कि लोकपाल आंदोलन में अन्ना हजारे के अनशन के दौरान 'अन्ना टोपी' के साथ आम आदमी पार्टी की टोपी की मांग में उछाल आया था। उन्होंने कहा, 'पहले यह टोपियां कॉटन की बनाई जाती थीं लेकिन बाद में आप की टोपियों को सस्ते फैब्रिक चाइना नेट से बनाया जाने लगा।' इसके पीछे का कारण बताते हुए चमनलाल कहते हैं कि इससे आप की टोपी की कीमत कम रखी जा सकती है।

 

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आप ने बताया, कितने लोगों ने सरकार बनाने की माँग की

आम आदमी पार्टी की PAC ने तय किया है कि – पार्टी दिल्ली में सरकार बनाने के लिए तैयार है. हालांकि आम आदमी पार्टी को दिल्ली विधानसभा चुनाव में बहुमत के लिए आवश्यक 36 सीटें नहीं मिली थी लेकिन दिल्ली की जनता ने जनमत संग्रह में भारी बहुमत से पार्टी को सरकार बनाने का निर्देश दिया है. सप्ताह भर तक चले जनमत सर्वेक्षण में इंटरनेट, साइबर मीडिया और जनसभाओं के ज़रिये लोगो से सरकार बनाने के सवाल पर राय मांगी थी. यह देश में राजनीति को बदलने की एक ऐतिहासिक शुरुआत थी. जनता ने इसमें भारी संख्या में भाग लिया। विभिन्न माध्यमों से जनता ने निम्नवत राय दी –

Particulars

Total Response

Total Responses – (unique)

Total Valid Responses for Delhi

Outcome – Yes

Outcome- No

Website

1,34,917

99,043

20,969

14,256

6,713

Phone Calls

238, 239

1,83,093

85,716

62,412

23,304

SMS

324,154

2,41,047

1,59,281

1,20,418

38,863

Total

6,97,310

523183

265966

197086

68880

 

Jansabhas/

Public Meetings

280

257

23

कुल मिलाकर SMS और Internet के माध्यम से 697310 प्रतिक्रियाएं मिली, जिसमें से डुप्लीकेट ID और नंबर्स को हटा कर कुल 523183 लोगों ने राय दी. इसमें से 265966 दिल्ली से हैं. इसमें से 197086 यानि 74% ने पार्टी को सरकार बनाने के पक्ष में फैसला दिया है.

इसे देखते हुए आम आदमी पार्टी ने दिल्ली में सरकार बनाने का निर्णय लिया है. विधायक दल के नेता अरविन्द केजरीवाल के नेतृत्व में पार्टी दिल्ली के उप राज्यपाल से सरकार बनाने की पेशकश करने जा रही है. 

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