Tuesday, November 26, 2024
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भारतीय न्यायचरित मानसः बड़ा आदमी जेल से बाहर सज़ा भुगते?

अक्सर मीडिया और अग्रणी लोगों द्वारा प्रसारित किया जाता है कि देश के न्यायालय लोकतंत्र की रक्षा में मजबूती से खड़े हैं किन्तु मेरे स्वतंत्र मतानुसार वास्तविक स्थिति इससे भिन्न है| भ्रष्ट और शक्तिशालों लोगों को यदाकदा दण्डित करने मात्र से 125 करोड़ का जनतंत्र मजबूत नहीं होता है| न्यायालयों के तो समस्त निर्णयों में प्रजातंत्र झलकना चाहिये और अपवाद स्वरुप किसी मामले में दोषी को दण्डित करने में मानवीय चूक हो सकती है जिसे जनता सहन-वहन कर सकती है|

आज स्थिति यह है कि कार्यरत और सेवानिवृत न्यायाधीशों पर भी नैतिक अधपतन तक के आरोप लग रहे हैं यद्यपि सेवारत न्यायाधीशों पर बहुत कम आरोप लग रहे हैं| इसका यह कदापि अभिप्राय नहीं है कि भारत में सेवारत समस्त न्यायाधीश भले और ईमानदार हैं अथवा रहे हैं| ऐसा नहीं है कि ये लोग आदित: सदचरित्रवान रहे हों और कालान्तर में इनका नैतिक अधपतन हुआ हो| सेवारत होते हुए किसी न्यायाधीश पर आरोप लगाने पर अवमान कानून का “न्यायिक आतंकवाद” की तरह प्रयोग किये जाने का जोखिम बना रहता है अत: इस कानून के कारण नागरिक न्यायपालिका के सम्बन्ध में अपने विचार भी खुलकर अभिव्यक्त नहीं कर पाते हैं और पीड़ित लोग न्यायाधीशों की सेवानिवृति तक आरोप लगाने का इन्तजार करते हैं|

भारत में पत्रकारों द्वारा न्यायालयों की कार्यवाहियों की रिपोर्टिंग भी दबी जुबान से ही होती है जो प्राय: अर्द्धसत्य ही होती है| वास्तव में भारतीय न्यायालय अवमान कानून न केवल ब्रिटेन के कानून से अश्रेष्ठ और आतंकी है बल्कि श्रीलंका का अवमान कानून भी भारतीय कानून से श्रेष्ट है| जहाँ ब्रिटेन के कानून में किसी न्यायाधीश पर आरोप लगाना अवमान नहीं है बल्कि किसी मामले में सीधे अवरोध उत्पन्न करना ही अवमान है वहीं किसी मामले में झूठी गवाही देने, झूठे साक्ष्य पेश करने जैसे मामलों में भारत में मुश्किल से ही किसी दोषी को सजा होती है|

 न्यायालय अपराधियों के प्रति उदारता का परित्याग कर जिस दिन ऐसा करने लगेंगे उस दिन रक्तबीज की तरह बढती अनावश्यक मुकदमेबाजी स्वत: ही घट जायेगी और सरकारी अधिकारी इससे सबसे अधिक प्रभावित होंगे| ठीक इसी प्रकार श्रीलंका में अलग से कोई अवमान कानून ही नहीं है अपितु न्यायिक कार्यवाही में अवरोध करना ही अवमान माना जाता है| प्रथम तो भारत में कोई वकील अपवाद स्वरुप ही राजनीति या किसी राजनैतिक दल से घनिष्ठ संपर्क से दूर है और भारत में उच्च न्यायालयों व उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीशों की नियुक्ति प्रक्रिया और उसके पैंतरों को देखने से भी यह एहसास नहीं होता कि ये नियुक्तियां गैर-राजनैतिक ढंग से स्वच्छतापूर्वक  होती हैं|    

अभी हाल ही में चारा घोटाले में लालू यादव व जगन्नाथ मिश्र को सुनाई गयी सजा (सजा भुगतेंगे कितनी यह अभी भविष्य के गर्भ में है) से शायद देश की जनता को ऐसा भ्रम होगा कि देश में कानून का राज है और दोषियों को बख्शा नहीं जाता| किन्तु विचारणीय है कि क्या लालू यादव या जगन्नाथ मिश्र का यह पहला आपराधिक मामला है जहां उन्हें सजा सुनाई गयी है| यदि नहीं तो फिर आज तक ये आजाद क्यों घूमते रहे? क्या आजादी का मतलब इतना उदार है ? एक ओर उच्च वर्ग के अपराधी या पीड़ित के मामले में पुलिस पीछा करने या गिरफ्तार करने के लिए हवाई यात्रा का खर्चा वहन करती है वहीं आम गवाह को बजट नहीं होने का बहाना बनाकर बस यात्रा व भोजन व्यय का भी भुगतान नहीं करती है|

 सैद्धांतिक तौर पर पुलिस पर भी न्यायपालिका का नियंत्रण बताया जाता है अत: पुलिस द्वारा ढंग से छानबीन नहीं की जाए या अपराधियों को बचाया जाए और निर्दोष लोगों को फंसाया जाए तो न्यायालय मूकदर्शी नहीं रह सकते| फिर अपराधी आखिर दंड से क्यों बच निकलते हैं?  किसी भी अपराधी को यदि अपराध करने पर दंड नहीं मिले तो वह दुस्साहसी हो जाता है और देश की कानून-व्यवस्था को ठेंगा दिखाता है| एक सामान्य अपराधी जेबकाटने से प्रारम्भ कर कालांतर में चोर और डाकू बनता है| देश की जनता जानती है कि निश्चित रूप से उक्त मामले के आरोपियों-लालू यादव व जगन्नाथ मिश्र के ये पहले अपराध नहीं थे किन्तु आज तक दण्डित नहीं हुए फलत: ये अपराध की दुनिया में आगे तेजी से कदम बढाते गए| बिहार राज्य की जनता तो इनके बारे में काफी कुछ जानती है|

जगन्नाथ मिश्र 1972 से 1974 तक बिहार में मंत्री पद पर रहे हैं और मुख्यमंत्री भी रहे हैं| इस अवधि में भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा बिहार के सहकारिता विभाग की ऑडिट की गयी और इस रिपोर्ट में गंभीर अनियमितताएं पायी गयी| रिपोर्ट के अनुसार अवैध ऋण वितरण, भ्रष्टाचार और गबन भी पाया गया| जगन्नाथ मिश्र पर पुरानी तारीख में आदेश करने और रिकार्ड में हेराफेरी करने के भी आरोप थे| मजिस्ट्रेट न्यायालय से मामले की शुरुआत हुई और परीक्षण के दौरान मामला कई बार उच्च न्यायालय व उच्चतम न्यायालय गया| इस बीच राज्य सरकार ने मामला वापिस लेने की अनुमति दे दी किन्तु शिवनंदन पासवान के विरोध के कारण मामला शीघ्र बंद नहीं हो सका| मामला दुबारा उच्चतम न्यायालय के समक्ष पुनरीक्षण याचिका के रूप में सुनवाई हेतु आया और न्यायालय के सामने प्रमुख प्रश्न था कि क्या सरकार द्वारा आपराधिक मुकदमा  वापिस लेने का कोई नागरिक विरोध कर सकता है| न्यायालय ने इस सैद्धांतिक प्रश्न का तो सकारात्मक जवाब दे दिया किन्तु मामले में पुन: परीक्षण के आदेश नहीं दिए और घटना के लगभग 14 वर्ष बाद भी दोषियों के विरुद्ध परीक्षण न्यायालय में कोई प्रभावी कार्यवाही प्रारम्भ तक न हो सकी|

परिणामत: इस निर्णय का कोई वास्तविक और व्यावहारिक लाभ देश की जनता को नहीं मिला और भरसक प्रयास  के बावजूद  भ्रष्टाचार, गबन, अमानत में खयानत, रिकार्ड में हेराफेरी का अभियुक्त न केवल दण्डित होने से बच गया बल्कि उसे एक अभियुक्त की तरह न्यायालयी कार्यवाही का सामना तक नहीं करना पडा| कालान्तर में जगन्नाथ मिश्र ने प्रगति की और चारा घोटाले में लिप्त हो गए और लालू यादव के साथ उन्हें भी दोषी पाया गया है| यदि जगन्नाथ मिश्र के विरुद्ध 1980 के दशक में ही प्रभावी कार्यवाही हो गयी होती तो शायद दुस्साहस इस स्तर तक नहीं बढ़ता|  

बिहार राज्य में ही भागलपुर में न्यायालय में बैठे न्यायाधीश पर पुलिस द्वारा हमला करने के मामले में पटना उच्च न्यायालय ने 3 माह से भी कम अवधि में अवमान कार्यवाही के मामले में अन्वीक्षा पूर्ण कर दोषी पुलिस कर्मियों को दण्डित कर दिया| ठीक इसी प्रकार नडियाद (गुजरात) में मजिस्ट्रेट को जबरदस्ती शराब पिलाकर जुलूस निकालने के मामले में अवमान कार्यवाही में उच्चतम न्यायालय ने समस्त दोषी पुलिस अधिकारियों व झूठा प्रमाण पत्र देने वाले डॉक्टर को भी दण्डित कर दिया|

किन्तु देश की जनता का मानना है कि जब यही प्रश्न किसी दोषी न्यायिक अधिकारी को दण्डित करने के सम्बन्ध में उठता है तो भारत के न्यायाधीशों का रुख भिन्न पाया जाता है| लगभग 10 वर्ष पूर्व अहमदाबाद के एक मजिस्ट्रेट पर आरोप लगाए गए कि उसने कुछ वकीलों के साथ मिलकर 40000/- रूपये के बदले भारत के राष्ट्रपति,  मुख्य न्यायाधीश, एक अन्य न्यायाधीश व एक वकील के विरुद्ध फर्जी मामले में वारंट जारी किये| मामला सी बी आई को जांच हेतु दिया गया और एक सप्ताह में जांच रिपोर्ट भी आ गयी थी किन्तु मामले में परीक्षण उच्चतम न्यायालय में आज तक लंबित है|    

ऐसे ही एक मामले में कलकता उच्च न्यायालय के एक न्यायाधीश ने पश्चिम बंगाल की ज्योति बासु सरकार के पक्ष में एक आदेश जारी करके उपकृत किया और बदले में उसी दिन आवेदन कर मुख्य मंत्री के विवेकाधिकार कोटे से साल्ट लेक में सस्ती दर पर एक प्लाट आवंटित करवा लिया| मामले की फ़ाइल को भी न्यायाधीश ने अपने पास रख लिया और कोई भी नागरिक फ़ाइल से कोई नकल तक नहीं ले सका| न्यायाधीश महोदय के सेवानिवृत होने तक 12 वर्ष तक फ़ाइल उनके कब्जे में रही|

यद्यपि यह प्रथम दृष्टया व्यक्तिगत लाभ के लिए पद के स्पष्ट दुरूपयोग का मामला था| इस प्रसंग में कलकता उच्च न्यायाल में भी रिट लगाई गयी किन्तु उसमें याची को कोई राहत नहीं मिली| मामला उच्चतम न्यायालय पहुंचा और उच्चतम न्यायालय ने मात्र प्लाट का आवंटन को रद्द करने का प्रभाव रखने वाला ही आदेश दिया जिससे  मिला अनुचित लाभ सरकार को लौटाना पड़े किन्तु पद के दुरूपयोग के लिए कोई दांडिक कार्यवाही के आदेश नहीं  दिए गये| यद्यपि मामले में स्वयं उच्चतम न्यायालय ने कहा कि हमें स्मरण रखना चाहिए कि बाहरी तूफ़ान की बजाय अन्दर के कथफोड़ों से अधिक ख़तरा है|

राज्य सभा सदस्य रशीद मसूद को एम बी बी एस सीटों के आवंटन में गड़बड़ी के आरोप में दोषी मानते हुए हाल ही में सजा सुनाई गयी है| लगभग ऐसा ही एक मामला  महाराष्ट्र राज्य में वर्ष 1985 में हुआ था जिसमें एम डी की प्रवेश परीक्षा में उत्तर पुस्तिका से छेड़छाड़ कर महाराष्ट्र के मुख्य मंत्री के रिश्तेदारों को बम्बई विश्वविद्यालय में प्रवेश दिलाकर उपकृत किया गया था| परिणामत: अन्य पात्र सामान्य डॉक्टर एम डी में प्रवेश से वंचित हो गये थे| कालान्तर में मामला उच्चतम न्यायालय तक पहुंचा और उच्चतम न्यायालय ने पाया कि इस बात में  काफी सशक्त संदेह है कि श्री पाटिल या उसके चहेतों को प्रसन्न करने के लिए गड़बड़ी की गयी और गड़बड़ी साबित है| गड़बड़ी से लाभ मिलने वालों की रिश्तेदारी भी साबित है| मुख्य मंत्री द्वारा सार्वजनिक जांच समिति के सामने उपस्थिति से इन्कारी भी रिकार्ड पर है| न्यायालय ने आगे कहा कि मुख्यमंत्री की पुत्री जो पहले 3 बार अनुतीर्ण हो चुकी थी को उत्तीर्ण करवाने के लिए प्रयास किया गया| फिर भी उच्चतम न्यायालय ने मामले में आपराधिक कार्यवाही करने का कोई आदेश नहीं दिया|  

अमेरिका में न्यायपालिका की वास्तविक स्थिति जानने के लिए सरकारें नीजि संस्थाओं से सर्वेक्षण करवाती हैं और उसके आधार पर सरकारें न्यायिक सुधार की रूपरेखा तैयार करती हैं| यदि यही प्रक्रिया भारत में भी अपनाई जाये तो दूध का दूध और पानी का पानी हो सकता है| जिम्मेदार पत्रकारिता जगत यह कार्य भारत में भी स्वत: कर सकता है क्योंकि उसके पास आवश्यक नेटवर्क भी है| अब उक्त तथ्यों के आधार पर विद्वान पाठक ही अनुमान लगाएं कि देश की न्यायपालिका उनकी आशाओं और अपेक्षाओं पर कितनी खरी उतर रही है व कितनी स्वतंत्र, निष्पक्ष, तटस्थ और दबावमुक्त है| स्वयं प्रज्ञावान नागरिक यह भी मूल्यांकन करें कि न्याय का तराजू कितना संतुलित है और हमारा गणतन्त्र मात्र सीमा पर ही नहीं अंदर से कितना सुरक्षित है |

जय हिन्द ! ….

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एक और फिल्मी जोड़े में अलगाव

ऋतिक और सुजैन एक और फिल्मी जोड़ी के बीच अनबन की खबर आ रही है। ऋतिक-सुजैन के तलाक को लेकर अर्जुन रामपाल का अपनी पत्नी मेहर में जमकर झगड़ा हो रहा है।

मुंबई की जानी मानी हस्ती अंबिका हिंदुजा की पार्टी में दोनों के बीच जबर्दस्त झगड़े की खबर से फिल्मी दुनिया में चटखारे लेकर कई खबरें सुनाई जा रही है।  

अर्जुन पर यह आरोप लगाया जा रहा था कि उनके कारण ऋतिक और सुजैन के रिश्ते में दरार आई है। हालांकि, सुजैन भी स्पष्ट कर चुकी हैं कि ऋतिक से तलाक लेने का कारण अर्जुन नहीं है।

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अब कैबल टीवी वाला आपको बिल देगा, अपनी पसंद के चैनल देख सकेंगे

अब आपके पास इसी महीने से केबल का बिल आएगा। बिल कैसा आए,यह आप खुद तय करेंगे। ट्राई के निर्देश पर मल्टी सिस्टम ऑपरेटरों (एमएसओ) के असोसिएशन एमएसओ एलायंस ने इस बारे में गाइडलाइंस जारी की है।

एलायंस ने दावा किया है कि बिलिंग में ट्रांसपैरंसी आएगी। एमएसओ ने कहा कि केबल के डिजिटाइजेशन की प्रोसेस में तीन फेज में काम हुआ। पहले फेज में कंस्यूमर्स को सेट टॉप बॉक्स लेना पड़ा, दूसरे फेज में चैनल पैकेज का चयन करते हुए अपनी जानकारी (केवाईसी) जमा करनी पड़ी। इस महीने से ग्राहकों को मासिक बिल मिलेगा यानी नवंबर महीने का बिल दिसंबर में आएगा।

क्या होगा अब

-अब हर महीने केबल बिल मिलेगा। इसमें आपसे लिए गए पैसे का पूरा हिसाब दिया जाएगा। अब तक हर महीने आम तौर पर सब्सक्रिप्शन फी के नाम पर पैसा लिया जाता था और इसके बदले बिल नहीं दिया जाता था।

-बिल सर्विस टैक्स के साथ और आप जितने चैनल देखेंगे उस हिसाब से तय किया जाएगा।

-अगर आप एक खास तारीख से पहले अपने केबल डिस्ट्रिब्यूटर को सर्विस बंद रखने की पूर्व जानकारी देते हैं तो उस दौरान आपको कोई चार्ज नहीं देना होगा।

-अगर आपको केबल सर्विस से शिकायत होती है तो सेंट्रलाइज्ड ग्रीवांस सेल भी 24 घंटे काम करेगा और किसी भी वक्त आप शिकायत कर सकेंगे।

-आप अपने हिसाब से चैनल के पैक को सेलेक्ट कर सकेंगे और इसकी पूरी जानकारी आपको मुहैया कराई जाएगी।

'यह कदम इस लिहाज से भी अहम है कि इससे यह तय होगा कि ग्राहक केवल उन्हीं चैनलों के लिए पैसा दें जो वे देखते हैं। साथ ही अब तक केबल ग्राहकों की शिकायतों के निपटारे के लिए भी कोई मजबूत मैकेनिजम नहीं था। अब इसकी सुविधा मिलेगी। साथ ही अब हर ग्राहक को पता होगा कि वह अपने केबल टीवी का इस्तेमाल किस तरह कर रहे हैं।'

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पोस्ट ऑफिस से छपेंगे शादी के कार्ड

चिट्ठियों का जमाना बीता तो पोस्ट ऑफिस भी खुद को बदलने की कोशिश में जुट गया। डाक विभाग अब लोगों के जरूरी पोस्ट को घर से रिसीव कर उसे जरूरी जगह तक 24 घंटे में पहुंचाने की जिम्मेदारी लेने के अलावा शादी कार्ड बांटने और इसे छापने तक का काम करेगा। विभाग अलग-अलग प्रयोग पूरे देश में करने जा रहा है। अधिकारियों के मुताबिक, तकनीक के जमाने में जब लोग सामान्य खत नहीं लिखते,अब इसके काम में भी विविधता लाना जरूरी है।

शादी कार्ड छपवाएं और बंटवाएं भी: डाक विभाग की नई पहल के अनुसार शादी के दौरान लोगों को निमंत्रण देने के लिए मनचाहे शादी का कार्ड छपवाने से लेकर उसे बंटवाने तक का जिम्मा विभाग लेगा। हर तरह की सर्विस के लिए अलग चार्ज होगा। शहर के अंदर कार्ड भिजवाने हैं या बाहर,कितने दिन में भिजवाने हैं इन सब प्राथमिकता के आधार पर अलग-अलग फीस ली जाएगी। पोस्ट मैन कार्ड को लिफाफे में देने के अलावा उस पर पता लिखने, टिकट चस्पा करने तक की जिम्मेदारी लेंगे। हर काम की अलग फीस ली जाएगी जो 30 पैसे से 1 रुपये तक होगी।

आपके घर से लेंगे जरूरी दस्तावेज: डाक विभाग अब आपके घर से जरूरी दस्तावेज लेकर उसे पहुंचाने की भी जिम्मेदारी ले रहा है। इसके मुताबिक, अगर आपको कोई जरूरी दस्तावेज भेजना है तो डाक विभाग के लोग घर से उसे रिसीव करेंगे और एयरपोर्ट पर बने विशेष डाक घर तक पहुंचाएगी ताकि 24 घंटे के अंदर उसे दूसरे शहर भेजा सके। इसे देश के 23 शहरों में शुरू की गई है। इसके मुताबिक आपके घर से एयरपोर्ट की दूरी के अनुसार पैसे लिए जाएंगे, जो एक डाक के लिए 100 रुपये से शुरू होगा।

साभार –नवभारत टाईम्स से

 

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80 प्रतिशत लोगों की माँग, सरकार बनाए केजड़ीवाल

एबीपी न्यूज-नील्सन सर्वे में 80 फीसदी लोगों का कहना है कि अरविंद केजरीवाल के नेतृत्व में आम आदमी पार्टी को सरकार बनानी चाहिए। सर्वे में शामिल हुए 71 फीसदी लोगों ने कहा कि उन्होंने 4 दिसंबर को आप को वोट दिया था। लेकिन केवल 64 फीसदी लोगों ने कहा कि यदि दोबारा से चुनाव हुए तो वे फिर से आप को ही वोट देंगे। 59 फीसदी ने माना कि केजरीवाल की आप पार्टी चुनाव अभियान के दौरान जो वायदे किए थे, वह उन्हें पूरा करने में समर्थ होगी।

64 फीसदी मतदाता दिल्ली में दोबारा से चुनाव के पक्ष में नहीं हैं। 33 फीसदी चाहते हैं कि दिल्ली में दोबारा चुनाव हों। जिन लोगों ने सर्वे में जवाब दिया उसमें 58 फीसदी 24-25 आयु वर्ग के थे। नील्सन ने यह सर्वे 19 दिसंबर को दिल्ली के 28 विधानसभा क्षेत्रों में 1470 लोगों के जवाब पर आधारित है। उधर, आप को गुरुवार रात साढ़े आठ बजे तक सरकार बनाने या न बनाने के मुद्दे पर 5.35 रिस्पॉन्स मिले हैं। इनमें एसएमएस,ई-मेल और आईवीआरएस कॉल्स शामिल हैं।

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1947 की फोटो कॉपी होगा 2014 का कैलेंडर

कोई भी भारतवासी वर्ष 1947 को भुला नहीं सकता, क्योंकि यही वह साल था जब अंग्रेजों की गुलामी से भारतवासियों को वषरे बाद आजादी मिली थी। 15 अगस्त 1947 हर भारतवासी के जेहन में बसता है। अब वही इतिहास वापस लौट रहा है। अगला साल यानि 2014 की तारीखें 1947 के समान होगी।

और होगा वही आजादी का शुक्रवार

अंग्रेजों को भारत से खदेड़ने के बाद 15 अगस्त 1947 को ब्रिटिश झंडे के स्थान पर पहली बार लाल किले की प्राचीर पर तिरंगा फहरा था और लोगों ने जमकर आजादी का जश्न मनाया था उस दिन शुक्रवार था और वर्ष 2014 में भी 15 अगस्त को वही शुक्रवार होगा। भले ही 1947 और 2014 के कैलेंडर का एक होना आंकड़ों का संयोग हो लेकिन लोग इसे लेकर आशान्वित हैं और यही कारण है कि आजादी के साल से 2014 को लेकर भी कयास लगा रहे हैं। लोगों का कहना है, जहां 1947 में देश को अंग्रेजों की गुलामी से आजादी मिली थी तो 2014 देश को भ्रष्टाचार से आजादी दिलाएगा और उसके संकेत भी पहले सामने आने लगे हैं, क्योंकि बहुप्रतीक्षित लोकपाल बिल पास हो गया।

 

– 2014 का कैलेंडर बिल्कुल 1947 के कैलेंडर की तरह है।

– 66 साल बाद आजादी का यही साल हूबहू 2014 के रूप में पुन: सामने आएगा।

– 1947 में एक जनवरी को बुधवार था तो वर्ष 2014 में भी साल की शुरूआत का दिन बुधवार ही है।

– 31 दिसंबर को दोनों ही वषरे में शुक्रवार है। यानी 1947 का साल 2014 में कैलेंडर के रूप में एक बार फिर आने वाला है।

 

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तेजस बनेगा भारतीय सेना का गौरव

करीब तीन दशक की यात्रा को पार करते हुए देश के अपने लड़ाकू विमान ने हथियार दागने की अपनी सभी क्षमताएं साबित करने का आज प्रमाण हासिल कर वायुसेना में शामिल होने की अंतिम सीढ़ी पर कदम रख लिया।

रक्षा मंत्री एके एंटनी ने देश में ही विकसित हल्के लड़ाकू विमान की अस्त्र प्रणालियों के परीक्षण सफलतापूर्वक पूरे होने के बाद सर्विस दस्तावेज आज वायुसेना प्रमुख एनएके ब्राउन को सौंप दिए और इस तरह 12 महीने बाद इसके वायुसेना के ध्वज तले आने का मार्ग प्रशस्त हो गया।
      
जनवरी 2011 में इस विमान ने अपनी सुरक्षित उड़ान क्षमता साबित की थी और उसके बाद तेजस ने अपने हथियारों को दागने की क्षमता का प्रदर्शन शुरू कर दिया था। तेजस ने मिसाइलों, 500 किलो के बमों समेत 62 विभिन्न प्रकार के अस्त्रों के तालमेल और उन्हें दागने की क्षमता साबित की। ऊंचाई वाले स्थानों से लेकर पोखरण की तपिश तक में तेजस की कडी की अग्नि परीक्षा ली गई, जिसमें यह खरा उतरा।
   
तेजस के मार्क-1 को वायुसेना में मिग-21 लडाकू विमानों का स्थान लेगा, जिन्हें सेवा से बाहर शुरू करने का सिलसिला गत 12 दिसंबर से शुरू हो चुका है। तेजस उन्नत मिग-21 बाइसन विमानों से कहीं बेहतर माना जा रहा है, जबकि इसका अगला संस्करण मार्क-2 इंजन, राडार और हथियारों के मामले में मार्क-1 से कहीं आगे निकल जाएगा।
      
तेजस कार्यक्रम से जुड़े अधिकारियों ने बताया कि मार्क-1 के चार तेजस विमान इस साल तैयार हो जाएंगे, जबकि अगले दो साल में आठ और इसके बाद प्रति वर्ष 16 तेजस विमान उत्पादन की क्षमता हासिल कर ली जाएगी। इन पहले चार विमानों को बंगलुरु के पास सुलूर एयरबेस पर रखा जाएगा, ताकि किसी प्रकार के सुधार या संशोधन की जरूरत पडने पर हिंदुस्तान एयरोनोटिक्स लिमिटेड की मदद तुरंत ली जा सके, जिसने यह विमान तैयार किया है।
    
तेजस को हवा से हवा में मार करने वाली आर-73 मिसाइलों, 23एमएम गनों, रॉकेटों और आंखों की दृश्य सीमा से आगे देखने में सक्षम बीवीआर मिसाइलों से लैस किया जा रहा है। हवा में ईंधन भरने की क्षमता इसमें अगले साल तक शामिल कर ली जाएगी।
       
तेजस के विकास के साथ ही भारत उन गिने चुने देशों में स्थान बना चुका है, जो अपना खुद का फाइटर बना सके हैं। इनमें अमेरिका, रूस, ब्रिटेन, फ्रांस, चीन और दक्षिण कोरिया शामिल हैं।
     
कभी एलसीए परियोजना अगस्त 1983 में 560 करोड़ रुपये की मंजूरी से शुरू हुई थी, लेकिन अनुदान जारी करने में ही दस साल का समय लग गया और असली काम तभी आरंभ हो सका था। इसके एक दशक बाद तत्कालीन प्रधनमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने देश के इस फाइटर को तेजस नाम दिया था।
    
वायुसेना को इन विमानों की सख्त जरूरत है, क्योंकि उसे बेहद पुराने पड़ चुके और हादसों के कारण उड़न ताबू. की कुख्याति पा चुके मिग-21 विमानों से काम चलाना पड़ रहा है। वायुसेना के पास 250 से अधिक मिग-21 विमान हैं। वायुसेना देश में बने 120 तेजस विमान लेने जा रही है, जबकि इसका नौसैनिक संस्करण भी तैयार हो गया है।
       
पिछले तीन दशक में तेजस परियोजना के विकास और उत्पादन पर करीब 17 हजार करोड़ रुपये खर्च हो चुके हैं, लेकिन विदेशों से विमान खरीदने का अंदाजा लगाएं, तो इससे सरकारी राजस्व को बेहद फायदा होने जा रहा है। एक तेजस विमान की कीमत 200 करोड़ रुपये से कम होगी, जबकि इस श्रेणी के लड़ाकू विमान यदि विदेशों से खरीदें, तो भारत को दुगनी लागत खर्च करनी होगी। यानी भारत इस परियोजना से अगले एक दशक में करीब 40 हजार करोड़ रुपए की बचत कर लेगा।

तेजस हर मायने में दुनिया के किसी भी चौथी पीढ़ी के विमान से आगे है। स्टैल्थ विशेषताएं और सुपरसोनिक क्रूज रफ्तार यदि इसमें जुड जाएं, तो यही पांचवी पीढ़ी का विमान बन सकता है। परियोजना अधिकारियों के अनुसार तेजस अत्याधुनिक फ्लाईबाई वायर तकनीकी से लैस है, जिससे पूरा विमान बटन प्रणालियों से चलता है। उन्होंने बताया कि 2480 घंटे की उड़ानों में तेजस ने बिना किसी नकारात्मक घटना के यह सफर पूरा किया है।

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सरकार की जीत मगर जनता की हार

हाल ही में इंडोनेशिया के बाली में विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) की नौवीं मंत्रिस्तरीय बैठक हुई। गौरतलब है कि डब्ल्यूटीओ को बने २० साल हो चुके हैं, पर अब तक इसमें एक भी सर्वसम्मत समझौता नहीं हो पाया है। कारण यह है कि अमेरिका व यूरोपीय संघ के देश विकासशील देशों के संसाधनों और बाजार का उपयोग अपने फायदे के लिए करना चाहते रहे हैं। इस बार डब्ल्यूटीओ का अस्तित्व बने रहने के लिए विकसित देशों को लग रहा था कि बाली में कोई न कोई समझौता होना ही चाहिए।

जो मसौदा समझौते के लिए रखा गया, उसमें एक बिंदु भारत और अन्य विकासशील देशों के खिलाफ था। इस मसौदे में यह चाहा गया था कि विकासशील देश खाद्य सुरक्षा के लिए खर्च की जाने वाली कृषि सबसिडी का आकार १० फीसद से ज्यादा नहीं रखेंगे। ऐसा न करने की सूरत में अमीर देश व्यापारिक प्रतिबंध लगा सकते हैं। इस पर हमारे वाणिज्य मंत्री समेत अन्य विकासशील देशों की आपत्ति के बाद यह तय किया गया कि विकासशील देश ग्यारहवें मंत्रिस्तरीय सम्मेलन तक अपनी मौजूदा सीमा तक कृषि सबसिडी को जारी रख सकते हैं। पर इस समझौते के भी अपने खतरे हैं। जाहिर है यह छूट लगभग चार साल के लिए ही है।

गौरतलब है कि अमेरिका जैसे देश भारत पर लगातार दबाव बनाते आ रहे हैं कि वह खेती और खाद्य सुरक्षा के लिए किए जाने वाले खर्च को कम करे। उनका तर्क है कि जब सरकार किसानों को सबसिडी और लोगों को सस्ता राशन देती है तो इससे व्यापार पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है और कंपनियों के लाभ कमाने के अवसर कम होते हैं। बहरहाल, सच यह है कि अमेरिका की जनसंख्या भारत की आबादी के मुकाबले तकरीबन एक चौथाई है, वहीं खाद्य सबसिडी पर भारत अमेरिका से तीन-चौथाई कम खर्च करता है। अमेरिका ४५ खरब रुपए खर्च करके अपने यहां अतिरिक्त पोषण सहायता कार्यक्रम (सप्लीमेंटल न्यूट्रिशन असिस्टेंस प्रोग्राम) चलाकर ४.७० करोड़ लोगों को ९६४८० रुपए प्रतिव्यक्ति खर्च करके हर साल २४० किलो अनाज की मदद देता है। वहीं दूसरी तरफ भारत में, जहां ७७ फीसद लोग ३० रुपए प्रतिदिन से कम खर्च करते हैं, हमारी सरकार यदि पीडीएस के तहत भूख के साथ जीने वाले ४७.५ करोड़ लोगों को १६२० रुपए प्रतिव्यक्ति सालाना खर्च करके ५८ किलो सस्ता अनाज देती है, तो अमेरिका और उनके मित्र देशों को दिक्कत होती है।

कहा जा रहा है कि बाली में भारत के पक्ष की जीत हुई है, क्योंकि इस समझौते में हमारी खाद्य सुरक्षा संबंधी चिंताओं का ध्यान रखा गया है। पर यह सच नहीं है। आज भारत असमान आर्थिक विकास कर रहा है। उस विकास में समानता लाने के लिए खाद्य सुरक्षा पर सरकारी खर्च (खाद्य सुरक्षा सबसिडी) बढ़ाना जरूरी है, जो अब किया जाना संभव न होगा। हमें यह भी समझना होगा कि डब्ल्यूटीओ, अमेरिका और यूरोपीय संघ इस बिंदु पर भारत पर इसलिए भी दबाव बना रहे हैं, ताकि कृषि और खुदरा व्यापार में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के लिए उन्हें ज्यादा ठोस माहौल मिल सके।

इस प्रावधान में बंधकर भारत सरकार और राज्य सरकारें किसानों से अनाज की न्यूनतम समर्थन मूल्य पर खरीदी नहीं कर सकेंगे या कम करेंगे और इससे बहुराष्ट्रीय कंपनियों के लिए नए रास्ते खुलेंगे। हम जानते हैं कि मौजूदा केंद्र सरकार देश में वैसे भी अनाज के बदले नकद अंतरण (कैश ट्रांसफर) की योजना लागू करना चाहती है। नए संदर्भ से उसे कैश ट्रांसफर लागू करने का बहाना भी मिलेगा। कुल मिलाकर ऐसा लगता है कि जो भी बाली में हुआ, वह अकस्मात नहीं था। हमारी सरकार भले ही इसे अपनी जीत बताए, पर वास्तव में यह हमारे लोगों की हार है।

(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं और राईट टू फुड अभियान व भोपाल की विकास संवाद सेवा से भी जुड़े हैं ये उनके निजी विचार हैं।)

संपर्क

sachin.vikassamvad@gmail.com

साभार- दैनिक नईदुनिया से 

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मुनाफे की आग में मजदूरों की मौत

2 नवम्बर, 2013 दिपावली की पूर्व संध्या (जिसे छोटी दिपावली भी कहते हैं) के दिन न्यू पटेल नगर के रिहाईशी इलाके में गैर कानूनी रूप से चल रही फैक्ट्री 2151/3 में शाम 6 बजे आग लग गई, जिसमें पूजा, मीरा, सोनिया, द्रोपदी, पियुष व राहुल की जल कर मृत्यु हो गई तथा दर्जनों घायल हो गये। इस फैक्ट्री में 30 मजदूर काम करते थे, जिसमें 20 महिला और 10 पुरुष थे। इस फैक्ट्री में ज्वलनशील पदार्थ का प्रयोग बैग का दाग छुड़ाने के लिये किया जाता था। इसकी तीन मंजिली इमारत रिहाईशी इलाकों के बीच निवास-स्थल के रूप में स्थित है। अन्दर जाने के लिए एक छोटा से गेट है ऊपरी मंजिल के गेट बंदे रखे जाते थे जिससे कि मजदूर छत पर न जा सकें। इसके पास में ही एक दूसरी फैक्ट्री 2151/9सी/1, टच ऑफ इंडिया इसी मालिक का है, जिसमें उनका ऑफिस भी है।

मजदूर (जिसमें महिलओं की संख्या ज्यादा थी) दिपावली की खुशी में थे और शाम को जल्द घर जाना चाहते थे। कम्पनी का सुपरवाईजर (विकास) ने जाने नहीं दिया- बोला कि काम अर्जेन्ट है इसको पूरा करने ही जाना।

उसी समय फैक्ट्री मालिक (दिनेश गम्भीर) अपनी दूसरी फैक्ट्री की पूजा करके शाम को 6 बजे इस फैक्ट्री में पूजा करने आया। पूजा करने के बाद दीप को गेट के पास रखे केमिकल के पास ही रखवा कर चला गया। उसके बाद जो हुआ उसे मजदूरों ने घर से निकलते समय थोड़ा भी नहीं सोचा होगा। थोड़ी ही देर में फैक्ट्री में आग लग गई। मजदूर निकल नहीं सकते थे क्योंकि गेट के पास ही केमिकल मंे आग लगी थी। मजदूर ऊपर की तरफ गये लेकिन वहां भी लॉक होने के कारण वह नहीं निकल सकते थे। धुंआ अन्दर भरता जा रहा था। मजदूर चिल्लाते हुए इधर से उधर भागे। कुछ लोग अपने को बाथरूम में बंद कर लिया तो कुछ जहाँ जगह मिली छुपने की कोशिश किये। आग फैलती जा रही थी और वह प्रथम तल तक पहुंच चुकी थी। आस-पास के लोग दौड़ कर आये, किसी तरह प्रथम तल की खिड़की को तोड़कर कुछ लोगों को निकाले। कुछ लोगों को निकाला गया तो कुछ उसमें फंसे रह गये। इस आग ने पूजा, सोनिया, मीरा, द्रोपदी, पियुष, राहुल की जान ले ली। इसमें से कई मजदूर तो घर के अकेले कमासूत थे और परिवार का देखभाल करते थे। कुछ मजदूर जख्मी हो गये तो कुछ का धुंए से दम घुटने लगा।

सभी मजदूर किसी न किसी रूप से प्रभावित हुये। सभी मजदूरों के पर्स/बैग जल गये। उनका मोबाइल फोन और तनख्वाह (उसी दिन मजदूरों को तनख्वाह मिली थी) के पैसे जल कर राख हो गये। मजदूरों के मोबाइल जलने से अब मजदूर एक दूसरे के सम्पर्क में भी नहीं है। ये मजदूर बलजीत नगर, रंजीत नगर, पांडव नगर से आते थे, एक दो मजदूर ही दूसरी जगह से थे जैसा कि मृतक मीरा नागलोई से आती थी। मीरा की दो लड़कियां हैं ये इस फैक्ट्री में करीब 7 वर्ष से काम करती है। इसी तरह मृतक पूजा अविवाहित थी और अपने मां-बाप की सहारा थी। सोनिया का एक छोटा बेटा है तो द्रोपदी इस फैक्ट्री में 12 वर्ष से काम करती है और उनके तीन बेटियां और एक बेटा है। इसी तरह पियुष व राहुल अविवाहित थे और इस फैक्ट्री में 1 वर्ष और 6 वर्ष से काम करते थे और अपने परिवार के लिए सहारा थे।

घायल मजदूरों को मेट्रो केयर हास्पिटल, बाला जी और अन्य अस्पतालों में ले जाया गया। इस फैक्ट्री की तीन महिला मजदूरों से मेरी बात हुई जिनका परिवर्तित नाम मैं लिख रहा हूं क्योंकि उनको डर है कि उनका नाम आने से उन पर मालिक द्वारा या प्रशसान द्वारा दबाव बनाया जा सकता है। घायल पुष्पा ने बताया कि वह इस  फैक्ट्री में 6 माह से 4000 रु. प्रति माह पर काम कर रही है। सुबह 9.30 बजे से शाम के 7 बजे तक 9.5 (साढ़े नौ) घंटे की ड्युटी होती थी, कोई ओवर टाइम नहीं मिलता था। पुष्पा के पीठ जले हुए हैं, उसकी पट्टी मेट्रो केयर हास्पीटल में हो रहा है। आग लगने के बाद शोर सुनकर पास के ही फैक्ट्री में काम कर रहे पति ने खिड़की से किसी तरह से पुष्पा को बाहर निकाला और अस्पताल लेकर गये। उनका मोबाइल और तनख्वाह के पैसे बैग के साथ जल गये।

कविता, जिनके पति की हत्या 7 वर्ष पहले कुंडली में हो गई थी, इस फैक्ट्री मंे 7 वर्ष से काम कर रही है। उनको 4200 रु. मिलते थे। इतने कम पैसे में अपने दो बच्चों की परवरिश करती थी और घर का किराया भी देती है। इनके पास ईएसआई, पीएफ कार्ड भी नहीं है।

गायत्री देवी 2003 से इस फैक्ट्री में है लेकिन बीच में इन्होंने काम छोड़ दिया था। 4 वर्ष से वह लगातार काम कर रही है। उनको भी 4200 रु. मिलते थे, किसी तरह का ईएसआई, पीएफ कार्ड नहीं था। आग लगने पर वो अपने को टायलेट में बंद कर ली। धुंए से उनका दम घुटने लगा तब तक दमकल विभाग के लोग आकर निकाले। उन्हें बाला जी अस्पताल ले जाया गया लेकिन हालत अधिक खराब होने पर आचार्य भिक्षु अस्पताल में एक सप्ताह तक भर्ती रही। वह अभी भी बेड पर लेटी ही रहती है।

बहुत सी महिला मजदूर थोड़ा बहुत घायल होने पर घबराकर घर चली गई और वहीं अपने पैसे से इलाज करवायी। फैक्ट्री मालिक ने दस हजार को चैक दिया है मजदूरों को, लेकिन उन मजदूरों को नहीं दिया जो घर जाकर इलाज करवाये। यह फैक्ट्री मालिक यहां के जो भी मजदूर काम करने लायक है उसको कुंडली (हरियाणा) ले जाकर काम करवा रहा है। इन मजदूरों से न तो कोई पुलिस वाला मिला और न ही कोई श्रम अधिकारी ने उनकी सुध ली है अभी तक।

ज्वलनशील पदार्थ प्रयोग करने वाली फैक्ट्री रिहायशी इलाके में कैसे चल रही थी? श्रम अधिकारी और पुलिस की जानकारी में यह नहीं था? 8 घंटे की जगह 9.5 घंटे काम कैसे कराया जाता था? 4000 रुपये मजदूरी क्यों थी? मजदूरों को ईएसआई, पीएफ क्यों नहंी थे? महिलाओं को मातृत्व लिव या हेल्थ की छुट्टी क्यों नहीं मिलती थी? आम आदमी जो इस सिस्टम से वाकिफ नहीं है वह जानना चाहता है। लेकिन ये सवाल अनुत्तरित नहीं है। सभी जानते हैं कि मजदूरों की इस मेहनत की लूट से ही यह फैक्ट्री चल रही थी। आज दिल्ली का न्यूनतम मजदूरी 8000 रु. के करीब है, उसके बाद ओवर टाइम होता है जिसका नियमतः दुगना बनता है।

इस तरह 9.5 घंटे काम के मजदूरों को कम से कम 11000 रु. बनते हैं। इस तरह से प्रत्येक मजदूर से 7000 रु. प्रति महीना लूटा जाता है। ईएसआई, पीएफ और छुट्टी के पैसे लगाने पर कम से कम 9-10 हजार रु. होगा। इन्हीं मजदूरों की लूट पर यह फैक्ट्री चलती है और मालिक दिन दूना रात चौगुना आगे बढ़ता है। इसी लूट में श्रम और पुलिस अधिकारियों के साथ-साथ संतरी से मंत्री तक को हिस्सा जाता है और सभी की जानकारी में यह गैर कानूनी काम उनके नाक के नीचे चलता रहता है। जैसा कि 15 मई, 2012 को ओखला औद्योगिक क्षेत्र के फेस 1 की फैक्ट्री नं. ए 274  जो कि मेंहदी (हेयर डाई) बनाने की काम करती है, में आग से दो मजदूरों की मौत हो गई। इस फैक्ट्री में आग कोई पहली बार नहीं लगी थी। इसके पहले भी दो बार आग लग चुकी थी और यह फैक्ट्री तब भी बिना लाईसेंस की चल रही थी। पीयूडीआर की टीम ने जब सम्बंधित अधिकारी से पुछा तो उनका जबाब था कि हां लाईसेंस नहीं है सोच रहा हूं कि अब लाईसेंस दे दूं। इससे स्पष्ट है कि किस तरह की मिलीभगत होती है।

यह न तो पहला ममला है न ही आखिरी। इस तरह के हजारों मामले देश में होते रहते हैं। दिपावली के समय ही हर साल  सैकड़ो लोग पटाखे की फैक्ट्री में आग लगने के कारण जल कर मर जाते हैं जिनमें बच्चों की संख्या भी अधिक होती है। दिल्ली के अन्दर ही कई उदाहरण मिल जायेंगे आप को। 20 जनवरी, 2011 को तुगलकाबाद में ब्यालर फटने से कई मजदूरों की मृत्यु हो गई। 19 सितम्बर 2010 को लखानी फैक्ट्री पीरागढ़ी में आग से मजदूरों की मौत हो या 3 मई 2009 को फरीदाबाद की लखानी कम्पनी में 10 मजदूरों की मौत, 26 अगस्त 2013 को नरेला की जूता फैक्ट्री में आग हो या 11-12 मार्च की रात में मंगोलपुरी खुर्द की जूता फैक्ट्री में आग जिसमें 5 मजदूरों की मौत हो गई। इस तरह के बहुत सारे उदाहरण आप को कानून बनाने वालों के नाक के नीचे मिल जायेंगे। लेकिन ये कानून निर्माता हमेशा चुप्पी साधे रहते हैं।

आखिर ये मौतें कब तक होती रहेंगी? अपने को मजदूर हितैषी कहने वाली यूनियनें कब तक अपनी रोटियां सेंकती रहेंगी? अपने को प्रगतिशील कहने वाला समाज चुप क्यों रह जाता है? शासक वर्ग तो पूंजीपति वर्ग की रक्षा करता है लेकिन मजदूर वर्ग की रक्षा करने वाले कहां है? क्या वे इंतजार करते रहते हैं कि जब मजदूर लड़ कर आगे बढ़े तो वे उनको झंडा लेकर क्रांति का रास्ता दिखाने आ जायेंगे।

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मूर्तियों के अनावरण की राजनीति

मूर्ति पूजा भारत में कोई नई बात नहीं है, यहां पर कई करोड़ देवी-देवताओं को मूर्ति बनाकर पूजा जाता है। इन्सानों को भगवान बना दिया जाता है यहां तक कि मूर्ति विरोधी लोगों को मूर्ती बनाकर पूजा जाने लगता है। जैसा कि बुद्ध को भगवान बना दिया गया उनकी पूजा होने लगी यहां तक झारखंड की कुछ जगहों पर तो बुद्ध की मूर्ति पर महिलाएं सिन्दुर तक लगा देती हैं। बुद्ध मूर्ति पूजा विरोधी थे लेकिन आज के समय बुद्ध खुद मर्ति के रूप में विरजमान हैं, इसी तरह भगत सिंह जो कि खुद को नास्तिक मानते थे उसको भी हिन्दुत्वा बिग्रेड व शासक वर्ग अपनाने की कोशिश कर रहा है। भगत सिंह ने जिस तरह के शोषणकारी पार्लियामेंट का विरोध किया था उसी तरह के शोषणकारी पार्लियामेंट में उनकी मूर्ति स्थापित कर दी गई। जिस अयोध्या में कई मन्दिर व मूर्तियों की पूजा करने वाला कोई नहीं है उसी अयोध्या में राम मंदिर बनाने के लिए दो सम्प्रदायों के अन्दर इतना विद्वेष भर दिया गया कि कितने लोगों का खून बहा है, बह रहा और बहेगा; कहा नहीं जा सकता।

आजकल भारत में मूर्ति निर्माण का कार्यक्रम चला हुआ है, देश को शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार की जरूरत नहीं है मूर्ति की जरूरत है। गुजरात में ‘स्टैच्यू ऑफ यूनिटी’ 182 मीटर (597 फीट) ऊंची प्रतिमा (दुनिया के सबसे बड़ी प्रतिमा), बिहार के चम्पारण जिले के जानकी नगर में राम की 405 फीट ऊंची मूर्ति (दुनिया का सबसे ऊंचा हिन्दु मन्दिर), उ.प्र. के कुशीनगर में 268 एकड़ जमीन पर 220 फीट ऊंची कांस्य की बुद्ध प्रतिमा बनायी जा रही है। यानि आजकल भारत में सब कुछ ‘ऊंचा’ करने का संकल्प ले लिया है। जैसा कि मोदी ने 31 अक्टूबर, 2013 को नर्मदा तट पर ‘स्टैच्यू ऑफ यूनिटी’ (सरदार बल्लभ भाई पटेल की प्रतिमा) का शिलान्यास करते हुए कहा था कि भारत को श्रेष्ठ बनाने के लिए एकता की शक्ति से जोड़ने का यह अभियान एक नई ऐतिहासिक घटना है।

वे अपने भाषणों में कहते रहे हैं कि दुनिया के सबसे ऊंची ‘स्टैच्यू ऑफ लिबर्टी’ 93 मीटर (जो कि ऐतिहासिक गलती भी है स्टैच्यू ऑफ लिबर्टी से ऊंची दो प्रतिमा हैं- 1. स्प्रिंग टेम्पल बुद्धा 153 मीटर, 2. जापान में बुद्ध की प्रतिमा 120 मीटर) से ऊंची लौह पुरुष की ‘स्टैच्यू ऑफ यूनिटी’ को पूरी दुनिया की ऊंची प्रतिमा होगी।  क्या हम  ‘स्टैचू ऑफ यूनिटी’ बनाकर अमेरिका (स्टैच्यू ऑफ लिबर्टी 93 मीटर) से दोगुना ताकतवर हो जाने वाले हैं (जो कि मंत्रियों के कपड़े तक खुलवा कर चेकिंग करता है); बेल्जीयम स्थित 39.6 मीटर उंची ‘क्राइस्ट द रीडीमर’ से हम पांच गुना (बेल्जियम की जनसंख्या करोड़ में है और भारत को कर्ज/सहायता देता है) या रूस के ‘द मदरलैंड काल्स’ जो कि 85 मीटर ऊंचा है उससे हम दोगुना ताकतवर होने वाले हैं (जिस के ऊपर भारत रक्षा के लिए निर्भर रहता है)?

इन मूर्तियों को लेकर कहीं भी ऐसा शोर सुनाई नहीं दे रहा है जैसा कि मायावती के समय सुनाई दे रहा था कि देश की जनता को पॉर्क, मूर्तियों की जगह शिक्षा, स्वास्थ्य व रोटी की जरूरत है। इस बार शोर इस बात को लेकर हो रहा है कि पटेल की वारिस कांग्रेस है या भाजपा? भाजपा का दावा है कि ‘लौह पुरुष’ पटेल ने 565 राजवारों को भारत में मिलाया था जो कि भाजपा के वृहद भारत के सपनों से मिलता है; दूसरी तरफ कांग्रेस का कहना है कि ‘लौह पुरुष’ कांग्रेस में थे और भाजपा के पितामह संगठन आरएसएस को सांप्रदायिक बता कर प्रतिबंधित किया था। केन्द्रीय मंत्री वेनी प्रसाद वर्मा ने तो यहां तक कह दिया कि ‘‘लोहा मंत्री हैं वेनी प्रसाद वर्मा और लोहा बन रहे हैं मोदी। सरदार पटेल के वशंज हैं वेनी प्रसाद वर्मा और सरदार पटेल की मूर्ति बनवा रहे हैं मोदी। यह वोट के लिए नहीं चलेगा।’’ प्रतिमा की पूरी लड़ाई वारिस बनने की लड़ाई में बदल गई है।

इन मूर्तियों के बहाने लोगों से सच्चाईयों को छुपाया जा रहा है, जमीनें हड़पी जा रही है व टूरिज्म को बढ़ावा दिया जा रहा है। गुजरात सरकार के दस वर्ष पूर्ण होने के अवसर पर गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अपनी महत्वाकांक्षी योजना ‘स्टैच्यू ऑफ यूनिटी’ की घोषणा की थी। ‘स्टैच्यू ऑफ यूनिटी’ के तहत सरदार बल्लभ भाई पटेल की 182 मीटर उंची मूर्ती नर्मदा जिले मंे नर्मदा नदी के अंदर टापू क्षेत्र में स्थापित की जायेगी। इसके लिए अलग से एक कोष निर्धारित किया गया है जो दुनिया भर में मीडिया के जरिए इस प्रतिमा का प्रचार करेगी।  इस प्रतिमा पर सरकार 2500 करोड़ रु. खर्च करने वाली है।

यहां पहले से ही नर्मदा बांध (122 मीटर ऊंचा) द्वारा लाखों लोगों का विस्थापन हो चुका है जो आज तक विस्थापन की लड़ाई लड़ रहे हैं। मेधा पाटेकर ने इसे बांध की ऊंचाई बढ़ाने की साजिश बताया है उनका कहना है कि लगातार बढ़ती बिजली के भूख ने इस बांध को बंटवारे का बांध बना दिया है। ऊंची प्रतिमा के बहाने बांध की ऊंचाई भी 122 मीटर से बढ़ाकर 138 मीटर ले जाने की है जिससे कि पानी की सप्लाई बढ़ायी जाये और बिजली का उत्पादन भी। इसके कारण एक बार फिर बड़ी संख्या में आदिवासी अपने घरों से उजाड़े जायेंगे।

‘स्टैच्यू ऑफ यूनिटी’ को बनाने का ठेका अमेरिकी कम्पनी ‘टर्नर कन्स्ट्रकशन’ को दिया गया है। यह कम्पनी आस्ट्रेलिया के मीनहाटर््ज और अमेरिका के माइकल ग्रेव्स एण्ड एसोसिएट्स के साथ मिलकर पटेल की आकृतिवाली 60 मंजिला इमारत बनायेगी। अमेरिका के टर्नर कन्स्ट्रकशन व माइकल ग्रेव्स एण्ड एसोसिएट्स भवन निर्माण की कम्पनी है जो पूरी दुनिया में बड़े-बड़े भवनों का ठेका लेती है। एफिल टॉवर के तर्ज पर इस मूर्ति के भीतर 500 फुट पर एक डेक का निर्माण किया जायेगा जिस पर 200 लोग एक साथ चढ़कर 12 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैले सरदार सरोवर जलाशय को देख कर आंखों को ठंडक पहुंचा सकते हैं जिसने लाखों लोगों को उजड़ने पर मजबूर किया है।

तीन वर्ष के अंदर यहां होटल, पार्क, रेस्टोरेण्ट, अंडरवाटर अम्यूजमेन्ट पार्क, थीम, पब बनाये जायेंगे जिससे कि पर्यटकों को लुभाया जा सके। मोदी की इस ड्रीम योजना की और स्पष्टता उनके 15 दिसम्बर, 2013 को उत्तराखण्ड में दिये गए भाषण से होती है वे कहते हैं कि ‘‘प्रदेश की आर्थिक हालत को सुधारने के लिए टूरिज्म को बढ़ावा देना होगा। पूरे विश्व में टूरिज्म उद्योग सबसे तेज गति से बढ़ने वाला उद्योग में शामिल है। टूरिज्म में 3 खरब डॉलर व्यापार की संभावना छिपी है। ईश्वर के नाम पर उत्तराखंड लाखों लोगों को आकर्षित कर सकता है, ‘टेरिज्म डिवाइड्स, टूरिज्म युनाइट्स’।’’ मोदी टूरिज्म उद्योग को बढ़ावा देकर देश को आगे ले जाना चाहते हैं। गोवा के लोगों की दुर्दशा किसी से छिपी बात नहीं है जो कि एक टूरिज्म स्थल के रूप में मशहूर है, यहां पर लाखों विदेशी सैलानी प्रति वर्ष आते हैं। वहां की स्थानीय जनता को अपनी पेट की आग को बुझाने के लिए महिलाओं, लड़कियों को नंगा होकर नाचना पड़ता है, शैलानियों के नंगे बदन को मसाज करना होता है।

उत्तराखण्ड की केदार घाटी में ईश्वर के नाम पर जून, 2013 में मानव निर्मित तबाही छिपी हुई बात नहीं है जिसमें बीसियों हजार लोग मारे गये। एक साथ गांव अनाथ/विधवा हो गये। उस समय मोदी जी भी उत्तराखण्ड गये थे। क्या वह ऐसा ही विकास चाहते हैं जहां पेट की आग बुझाने के लिए महिलाओं और बच्चियों को नंगा नाचना पड़े, गांव के गांव, परिवार के परिवार एक साथ मारे जायें लाशें सड़ती रहें बच्चे अनाथ हो जाएं। ऐसा ही टूरिज्म और ऐसा ही विकास उनको चाहिए?

‘रन फॉर यूनिटी’

सरदार बल्लब भाई पटेल की 63 वीं पुण्यतिथि पर 15 दिसम्बर को ‘रन फॉर यूनिटी’ का अयोजन 565 जगहों पर किया गया। ‘रन फॉर यूनिटी’ का अयोजन 565 जगह पर इसलिए किया गया कि पटेल ने 565 रियासतों को भारत में मिलाया था। इस आयोजन को बड़ोदरा जिले में हरी झंडी दिखाते हुए नरेन्द्र मोदी ने कहा कि ‘‘सरदार पटेल ने राष्ट्र को एकजुट करने में अपना जीवन समर्पित कर दिया। उन्होंने स्वतंत्रता संग्राम से आम लोगों को जोड़ा देश को औपनिवेशिक मानसिकता से मुक्ति दिलाने का प्रयास किया। देश को बांटने की मानसिकता को बदला और देश को एकजुट किया।’’ हम मोदी जी से पूछना चाहते हैं कि मोदी जी इसमें से किन पद्चिनहों को अपनाया है? आप तो औपनिवेशिक मानसिकता को अपना रहे हैं और उसे बढ़ावा दे रहे हैं। आप ‘स्टैच्यू ऑफ यूनिटी’ को बनाने के लिए जिस ‘टर्नर कन्सट्रक्शन’ कम्पनी को ठेका दिया है जो दुनिया के जालिम देश अमेरिका की कम्पनी है जिस देश का नकल करके आप स्टैच्यू बनाकर ‘श्रेष्ठ’ होना चाहते हैं।

आप पटेल के आम लोगों की जोड़ने की बात कर रहे हैं, ‘साहब’ आप ध्यान दीजिये आप तो अपने ही लोगों को उजाड़ रहे हैं, उनको अपनी जमीन, अपनी संस्कृति से बेदखल कर रहे हैं। आप के ‘सिरमौर’ बनने के डर से एक वर्ग, एक विशेष समुदाय भयभीत है। आप जिस उद्योग को बढ़ावा देने की बात कर रहे हैं उस उद्योग में आप की संस्कृति का क्या होगा, अपने देश की मां-बहनों के साथ क्या होगा वो आपने कभी सोचा है?

भाजपा अध्यक्ष राजनाथ सिंह ने दिल्ली में ‘रन फॉर यूनिटी’ के समय कहा कि अगर जनता ने मोदी को 10 वर्ष के लिए प्रधानमंत्री बनाया तो भारत महाशक्ति बन जायेगा। सिंह जी क्या मोदी के 10 वर्ष के शासन काल में गुजरात भारत का अग्रणी राज्य बन गया है? अगर गुजरात अग्रणी राज्य बन गया होता तो पश्चिम गुजरात की रहने वाली सोनल को दो बार पैसे के लिए सरोगेसी (किराये का कोख) से बच्चा पैदा नहीं करने पड़ते (बीबीसी हिन्दी.कॉम, 29 जुलाई 2011)। अग्रणी राज्य होता तो गुजरात के जिस नर्मदा जिले में जनता का 2500 करोड़ रु. खर्च करके स्टैच्यू बनाया जा रहा है उसी जिले की 5,90,297 जनसंख्या पर हायर सेकेंड्री स्कूल केवल 27 हैं अस्पताल तो केवल दो ही हैं अगर इन पैसों को उस जिला के लोगों पर ही खर्च कर दिया जाता तो सचमुच शिक्षा, स्वास्थ्य के मामले में दुनिया के बेहतरीन जगहों में गिना जा सकता था। लेकिन सिंह जी आप लोगों को तो नाम चाहिये, इससे मुझे 1969 में आई फिल्म ‘एक फूल दो माली’ के गाने याद आते हैं- ‘‘तूझे सूरज कहूं या चंदा, दीप कहूं या तारा मेरा नाम करेगा रोशन जग में मेरा राज दुलारा’’।

2500 करोड़ रु. से भारत में 100-100 करोड़ रु. लगाकर 25 अस्पताल बना दिये जाते तो हर साल लाखों लोगों की जिन्दगी बचाई जा सकती थी या इतने पैसे लगाकर स्कूल, कॉलेज खोले जाते तो शिक्षा के स्तर में सुधार होता, कई डाक्टर, इंजीनियर पैदा किये जा सकते थे। इसमें बल्ली सिंह चीमा के वो गाने सटीक बैठते हैं कि ‘‘कोठियों से मुल्क की मय्यार को मत आंकिये, असली हिन्दुस्तान तो फुटपाथ पर आबाद है….।’’

भारत में मूर्तियों को लेकर एक खास तरह की राजनीति हो रही है। मूर्तियों में जनता को उलझा कर और झूठी श्रेष्ठता दिखाकर टूरिज्म को बढ़ावा दिया जा रहा है। अब हम तो सब कुछ ॅज्व् की शर्त्तों पर अपने देश को लूटने की इजाजत देकर बाहर से मंगा सकते हैं। अब उद्योगों की जगह मूर्तियों की स्थापना की जा रही है और उसके आस पास रेस्टोरेन्ट, होटल, पब, डिस्को इत्यादि का निर्माण किया जा रहा है। टूरिज्म से विदेशी मुद्रा आयेगी उससेे उपभोक्तावादी-साम्राजयवादी, संस्कृति को और बढ़ावा मिलेगा। देश में बलात्कार जैसी घटनाएं बढ़ेंगी जिस पर हम रोज हाय-तौबा मचा रहे हैं। इससे आम लोगों की हालत और बदतर होगी, स्थानीय लोगों की जमीनी छीनी जायेगी, उनकी रोजी-रोटी खत्म कर दिये जायेगा, उनके छोटे व्यापारियों के जगह धानाढ्य लोगों का व्यापार आ जायेगा और हम-आप उनके पास काम करने को मजबूर होंगे। महिलाओं-लड़कियों को वेश्यावृति के धंधे में धकेला जायेगा। ‘बड़ा, ऊंचा, श्रेष्ठ’ ये सब सुना कर लोगों को ये एहसास कराया जा रहा है कि कोई बात नहीं घर में खाने को भी नहीं है लेकिन हम ‘श्रेष्ठ’ हैं, ‘ताकतवर’ हैं।

हमें जितनी ऊंचाई दिखाई जा रही है हम उतनी ही हमें नीचे की तरफ जा रहे हैं। हमें इन झूठे श्रेष्ठ, स्वाभिमान और ऊंचाई की मूर्तियों के खिलाफ एक होकर बोलना होगा, लोगांे की रोटी, रोजगार, स्वास्थ्य, शिक्षा और सम्मान की राजनीति दिलाने वाली नीतियों के लिए लड़ना होगा। मूर्तियों में जो पैसा खर्च किया जा रहा है वो पैसा भारत की आम जनता के लिए रोजगार, शिक्षा, स्वास्थ्य पर खर्च किये जाने की जरूरत है।

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