Saturday, April 27, 2024
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पिताजी और उँगलियों के निशान 

पिताजी बूढ़े हो गए थे और चलते समय दीवार का सहारा लेते थे। परिणामस्वरूप दीवारें उस स्थान पर बदरंग हो जाती जहां-जहाँ वे उसे छूते थे और उनकी उंगलियों के निशान दीवारों पर छप जाते थे।मेरी पत्नी गंदी दीखने वाली दीवारों के बारे में अक्सर मुझ से शिकायत करती रहती।

एक दिन पिताजी को सिरदर्द था, इसलिए उन्होंने अपने सिर पर तेल की मालिश कराई थी और फलस्वरूप दीवार थामते समय उस  पर तेल के गहरे धब्बे पड़ गए थे।
मेरी पत्नी यह देखकर मुझ पर चिल्लायी और मैं भी अपने पिता पर क्रोधित हुआ और उन्हें  ताकीद की कि आगे से वे चलते समय दीवार को न छुआँ करें और न ही उसका सहारा लिया करें।
पिताजी ने अब चलते समय दीवार का सहारा लेना बंद कर दिया और एक दिन वे धड़ाम से नीचे गिर पड़े। अब वे बिस्तर पर ही पड़े रहने लगे और थोड़े समय बाद हमें छोड़कर चले गए।मारे पश्चाताप के मेरा दिल तङप उठा और मुझे लगा कि मैं अपने को कभी माफ़ नहीं कर सकूँगा, कभी नहीं।
कुछ समय बाद हम ने अपने घर का रंग-रोगन  कराने की सोची। जब पेंटर लोग आए तो मेरा बेटा, जो अपने दादा से बहुत प्यार करता था, ने रंगसाज़ों को अपने दादा के उंगलियों के निशानों को मिटाने और उन क्षेत्रों पर पेंट करने से रोका।
पेंटर बालक की बात मान गए। उन्होंने उसे आश्वासन दिया कि वे उसके दादाजी यानी मेरे पिताजी के उंगलियों/हाथों के निशान नहीं हटाएंगे, बल्कि इन निशानों के आसपास एक खूबसूरत गोल घेरा बनाएंगे और एक अनूठा डिजाइन तैयार करेंगे।
इस बीच पेंट का ख़त्म हुआ मगर वे निशान हमारे घर का एक हिस्सा बन गए। हमारे घर आने वाला हर व्यक्ति हमारे इस अनूठे डिजाइन की प्रशंसा करने लगा।
समय के साथ-साथ मैं भी बूढ़ा हो गया।अब मुझे चलते समय दीवार का सहारा लेने की जरूरत पड़ने लगी थी। एक दिन चलते समय, मुझे अपने पिता से कही गई बातें याद आईं और मैंने बिना सहारे चलने की कोशिश की। मेरे बेटे ने यह देखा और तुरंत मेरे पास आया और मुझसे दीवार का सहारा लेने को कहा और चिंता जताई कि मैं सहारे के बिना गिर जाऊंगा। मैंने महसूस किया कि मेरा बेटा मेरा सहारा बन गया था।
मेरी बिटिया तुरंत आगे आई और प्यार से मुझसे कहा कि मैं चलने के लिए उसके कंधे का सहारा लूं। मैं रोने लगा। अगर मैंने भी अपने पिता के लिए ऐसा किया होता तो वे और लंबे समय तक जीवित रह सकते थे, मैं सोचने लगा।मेरी बिटिया मुझे साथ लेकर गई और सोफे पर बिठा दिया।फिर  मुझे अपनी ड्राइंग बुक दिखाने लगी ।
उसकी टीचर ने उसकी ड्राइंग की प्रशंसा की थी और उत्कृष्ट रिमार्क दिया था।स्केच मेरे पिता के दीवार पर हाथों के निशानों का था।
उसकी टिप्पणी थी – “काश! हर बच्चा बुजुर्गों से इसी तरह प्यार करे”।
मैं अपने कमरे में वापस आया और खूब रोया, अपने पिता से क्षमा मांगी, जो अब इस दुनिया में नहीं थे।
हम भी समय के साथ बूढ़े हो जाएंगे । आइए, हम अपने बुजुर्गों की देखभाल करें और अपने बच्चों को भी यही सिखाएं।
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पृथ्वी दिवस और वेद

भूमि को वेद में माता कहा गया है “माता भूमि: पुत्रो अहं पृथिव्या: -अथर्व० १२/१/१२”, “उपहूता पृथिवी माता -यजु० २/१०”। वेद कहता है-
यस्यामाप: परिचरा: समानीरहोरात्रे अप्रमादं क्षरन्ति।
सा नो भूमिर्भूरिधारा पयो दुहामथो उक्षतु वर्चसा।। -अथर्व० १२/१/९
जिस भूमि की सेवा करनेवाली नदियां दिन-रात समान रूप से बिना प्रमाद के बहती रहती हैं वह भूरिधारा भूमिरुप गौ माता हमें अपना जलधार-रूप दूध सदा देती रहें।
भूमि की हिंसा न करें

वेद मनुष्य को प्रेरित करते हुए कहता है “पृथिवीं यच्छ पृथिवीं दृंह, पृथिवीं मा हिंसी: अर्थात् तू उत्कृष्ट खाद आदि के द्वारा भूमि को पोषक तत्त्व प्रदान कर, भूमि को दृढ़ कर, भूमि की हिंसा मत कर”। भूमि की हिंसा करने का अभिप्राय है उसके पोषक तत्वों को लगातार फसलों द्वारा इतना अधिक खींच लेना कि फिर वह उपजाऊ न रहे। भूमि पोषकतत्त्वविहीन न हो जाये एतदर्थ एक ही भूमि में बार-बार एक ही फसल को न लगाकर विभिन्न फसलों को अदल-बदलकर लगाना, उचित विधि से पुष्टिकर खाद देना आदि उपाय हैं। आजकल कई रासायनिक खाद ऐसे चल पड़े हैं, जो भूमि की उपजाऊ-शक्ति को चूस लेते हैं या भूमि की मिट्टी को दूषित कर देते हैं।

भूमि में या भूतल की मिट्टी में यदि कोई कमी आ जाये तो उस कमी को पूर्ण किये जाने की ओर भी वेद ने ध्यान दिलाया है –
“यत्त ऊनं तत्त आ पूरयाति प्रजापति: प्रथमजा ऋतस्य अर्थात् प्रजापति राजा विभिन्न उपायों द्वारा उस कमी को पूरा करे -अथर्व० १२/१/६१”।
यजुर्वेद के एक मन्त्र में कहा गया है
“सं ते वायुर्मातरिश्वा दधातु उत्तानाया हृदयं यद् विकस्तम् अर्थात् उत्तान लेटी हुई भूमि का हृदय यदि क्षतिग्रस्त हो गया है तो मातरिश्वा वायु उसमें पुनः शक्ति-संधान कर दे -यजु० ११/३९”।
मातरिश्वा वायु का अर्थ है अंतरिक्षसंचारी पवन, जो जल, तेज आदि अन्य प्राकृतिक तत्त्वों का भी उपलक्षक है। परन्तु यदि जल, वायु आदि ही प्रदूषित हो गए हों तो उनसे भूमि की क्षति-पूर्ति कैसे हो सकेगी?

#EarthDay
मातृभूमि वैभवम ₹ 150 (डाक खर्च सहित)
मँगवाने के लिए 7015591564 पर वट्सएप करें।

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कचरा प्रबंधन में नई पहल

नेक्सस से प्रशिक्षित स्टार्ट-अप आकरी तकनीक के बूते घरों से कचरा संग्रहण के कार्य को व्यवस्थित करने और छंटाई किए गए कचरे को रीसाइक्लिंग नेटवर्क के साथ जोड़ रहा है। सी. चंद्रशेखर ने कचरा प्रबंधन के क्षेत्र में उतरने का फैसला तब किया जब केरल में कोच्चि के उनके घर पर एक स्क्रैप लेने वाले ने जूते और थर्मोकोल जैसी वस्तुओं को यह कहते हुए लेने से इनकार कर दिया कि बाजार में इनका कोई रीसाइक्लिंग मूल्य नहीं है। स्क्रैप लेने वाले ने बताया कि ऐसे वस्तुएं कचरे के रूप में फेंक दी जाती हैं।

चंद्रशेखर कहते हैं, ‘‘मैंने रीसाइक्लिंग के बारे में जानने के लिए एक साल तक स्क्रैप यार्ड में अंशकालिक काम करना शुरू किया। रीसाइक्लिंग प्रक्रिया को समझने और उद्योग में प्रचलित अस्पष्ट मूल्य निर्धारण और वजन करने के गलत तरीकों के देखने के बाद मैंने इस क्षेत्र में सकारात्मक बदलाव लाने का फैसला किया।’’

चंद्रशेखर ने आकरी नाम से एक स्टार्ट-अप शुरू किया, मलयालम में जिसका मतलब है ‘‘कबाड़’’और साथ ही उन्होंने एक मोबाइल एप भी विकसित किया। दो कर्मचारियों और एक वाहन के साथ उन्होंने 2019 में स्क्रैप एकत्र करना शुरू किया। एक साल के भीतर वह राज्य सरकार की इकाई क्लीन केरल कंपनी लिमिटेड और सीमेंट उद्योग के साथ साझेदारी में कार्य करने लगे। वह बताते हैं, ‘‘फिर हमने बिजनेस-टू-बिजनेस (बी2बी) और बिजनेस-टू-कंज्यूमर (बी2सी) क्षेत्रों में कदम बढ़ाया। सभी को एप में सहजता के साथ एकीकृत कर लिया गया।’’

अपशिष्ट प्रबंधन सेवाओं के लिए आकरी केरल में घर-घर में जाना जाने लगा है। आकरी अमेरिकी दूतावास नई दिल्ली के नेक्सस स्टार्ट-अप हब में 19 वें समूह का हिस्सा था। केरल में इसका ग्राहक आधार एक लाख से अधिक है और इसमें नगर पालिकाएं, वाणिज्यिक प्रतिष्ठान और आवासीय समुदाय शामिल हैं। आकरी अब दूसरे राज्यों में अपनी सेवाओं का विस्तार करने की योजना बना रहा है।

प्रस्तुत हैं चंद्रशेखर के साथ साक्षात्कार के मुख्य अंश :

शुभारंभ के बाद से आपके स्टार्ट–अप का विकास किस तरह से हुआ?
आकरी का विकास उल्लेखनीय रहा है। शुरुआत के एक साल के भीतर हमारा ग्राहक आधार 100 से बढ़कर 5000 हो गया। 2021 में हमने एप को विकसित किया और रीजनल जोन्स की स्थापना की और इसके साथ ही एक इन-हाउस टेक्नोलॉजिकल विंग और कॉल सेंटर की स्थापना की। एक साल बाद, हमने आईओएस एप लॉंच किया और तीन जिलों तक विस्तार किया और फिर बायोमेडिकल अपशिष्ट प्रबंधन के लिए केरल एनवायरो इंफ्रास्ट्रक्चर लिमिटेड (केईआईएल) के साथ सहभागिता की। हमने सदस्यता, ऑनलाइन भुगतान और बहुभाषी विकल्प की सुविधाएं अपने एप से जोड़ कर इसे और अधिक यूज़र फ्रेंडली बनाया है। 2023 तक हमारी टीम बढ़कर 47 सदस्यों की हो गई। सस्टेनेबिलिटी को प्राथमिकता देते हुए हम सीएनजी और बिजली के वाहनों का उपयोग करते हैं।

अपशिष्ट प्रबंधन के लिए प्रौद्योगिकी का इस्तेमाल करने का विचार कैसे आया?
प्रौद्योगिकी को शामिल करने का विचार पर्यावर्णीय चिंताओं, तकनीकी प्रगति, बाजार के अवसरों, व्यक्तिगत अनुभवों और कुछ अलग प्रभाव डालने की इच्छाओं के संयोजन से पैदा हुआ। हमारा मानना है कि, अपशिष्ट प्रबंधन में मोबाइल एप जैसी तकनीकों का उपयोग वास्तविक जीवन की समस्याओं का सुविधाजनक और कुशल समाधान उपलब्ध करा सकता है।

बायोमेडिकल कचरे के सुरक्षित और पर्यावरण–अनुकूल निपटान में आकरी की भूमिका के बारे में बताइए।
हम घरों से कई तरह के बायोमेडिकल अपशिष्ट एकत्र करते हैं जिनमें पेशाब बैग, डायपर, सैनिटरी नैपकिन, मियाद बीत चुकी दवाएं और लैब से निकला कचरा शामिल हैं। हमने इस कचरे के वैज्ञानिक प्रसंस्करण के लिए केईआईएल के साथ मिलकर काम किया। हम पीले बार कोडेड बैग का उपयोग करते हैं जो 2016 के बायोमेडिकल अपशिष्ट प्रबंधन के नियमों का सख्ती से पालन करते हैं। इसके अलावा, हम कम खर्च में बायोमेडिकल कचरे के निपटान के लिए एक रिसॉर्स मैंनेजमेंट कंपनी रे सस्टेनेबिल्टी के सहयोग से अपना खुद का निपटान संयंत्र लगाने की प्रक्रिया में हैं।

आकरी को अपशिष्ट प्रबंधन के क्षेत्र में किन चुनौतियों से जूझना पड़ा और उसे किस तरह के अवसर मिले?
जहां तक चुनौतियों की बात है तो प्लास्टिक कचरे की जटिल प्रकृति, उसे ढंग से अलग करने में परेशानी और उसकी काफी ज्यादा मात्रा है। हम संग्रह और रीसाइक्लिंग को ढंग से व्यवस्थित करने के लिए आकरी एप का उपयोग करके इन चुनौतियों से निपटते हैं। ई-कचरे की रीसाइक्लिंग और फिर से उसके इस्तेमाल को बढ़ावा देने के मकसद से एक्सटेंडेट प्रोड्यूसर रिस्पॉंसबिलिटी (ईपीआर) की शुरुआत से भी इस काम में मदद मिली है।

नेक्सस स्टार्ट–अप हब में प्रशिक्षण से आपनेक्या खास बातें सीखीं?
नेक्सस ने हमें नेटवर्किंग, विशेषज्ञता तक पहुंच और प्रेरणा देने में सहायता की। साथी उद्यमियों और परामर्शदाताओं से मिलने और कार्यक्रम का हिस्सा बनने से सहयोग के द्वार खुल गए। प्रशिक्षण सत्रों में अक्सर विशेषज्ञ शामिल होते थे, जो उद्यमिता के विभिन्न पहलुओं जैसे व्यवसाय विकास, मार्केटिंग और पैसों के बंदोबस्त के बारे में एक नजरिया सामने रखते थे।

ग्राहकों का भरोसा आप पर बना रहे, इसके लिए आप क्या करते हैं?
ग्राहक टोल-फ्री नंबरों, ईमेल और ऑनलाइन पोर्टल के माध्यम से हमसे जुड़ सकते हैं और हम तुरंत उसका जवाब देते हैं। हम नियमित फीडबैक के आधार पर अपनी रणनीतियां तैयार करते हैं। हमारी ठोस प्रक्रियाएं, सुविधाजनक सेवाएं और लगातार सक्रियता हमारी विश्वसनीयता बढ़ाने में मददगार है। तकनीकी रूप से हम परिचालन दक्षता के लिए रूट ऑप्टमाइजेशन, आईओटी सक्षम कचरे के डिब्बे और ग्राहक प्रबंधन प्लेटफॉर्म जैसे समाधान अपनाते हैं।

आपकी आगामी परियोजनाएं क्या हैं, और अपशिष्ट प्रबंधन के भविष्य को आकार देने में आपकी भूमिका क्या होने जा रही है?
कोच्चि में एक स्मार्ट बिन सुविधा का शुभारंभ अस्थायी आबादी की जरूरतों को पूरा करेगा और सुरक्षित अपशिष्ट निपटान सुनिश्चित करेगा। भविष्य को देखते हुए आकरी का लक्ष्य अपनी बायोमेडिकल कचरा संग्रहण सेवाओं को पूरे केरल और उसके बाहर तक विस्तारित करने का है।

साभार- spanmag.com/hi/

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रीमा राय सिंह के काव्य संग्रह ‘अक्षर तूलिका’ पर परिचर्चा

मुंबई, चित्रनगरी संवाद मंच मुंबई के साहित्यिक परिचर्चा में वरिष्ठ कथाकार सूरज प्रकाश, निर्देशक राजशेखर व्यास और गीतकार देवमणि पांडेय की उपस्थिति में कवयित्री रीमा राय सिंह के काव्य संग्रह ‘अक्षर तूलिका’ पर परिचर्चा हुई। पहले सत्र में सृजन संवाद कार्यक्रम में साहित्य और सिनेमा के रिश्तों पर महत्वपूर्ण चर्चा हुई और अंत में कुछ चुनिंदा कवियों का काव्यपाठ भी हुआ।

गोरेगांव पश्चिम के केशव गोरे हाल में रविवार की शाम हुए साप्ताहिक प्रोग्राम में अपनी कविताओं का जिक्र करते हुए रीमा राय ने कहा, “जीवन में जब मौन प्रस्फुटित होता है तो शब्द का आकार लेता है और वे शब्द जब भावों के मोतियों के रूप में संकलित होतें है तब कविता का जन्म होता है। ‘अक्षरतूलिका’ ऐसे भावों को समेटती विविध प्रकार की कविताओं का वह संकलन है जिसे मैंने अपने दैनिक जीवन में महसूस किया।”

रीमा राय ने कहा, “एक स्त्री के रूप में घर और घर से बाहर होने वाली घटनाओं और उस पर विविध प्रकार प्रतिक्रियाएं एक रचनाकार के रूप में जाने अनजाने मुझे भी आंदोलित करती रहती हैं जिसे मैंने मानवीय सम्वेदनाओं के आधार पर एक भावनात्मक स्वरुप प्रदान करने का एक प्रयास किया है। इस किताब की कविताएँ उन मनोभाओं पर आधारित है जिन्होनें मेरे अपने जीवन और मेरे आस-पास की होने वाली परिस्थितियों के आधार पर मुझे लिखने के लिए प्रेरित किया।”

अक्षर तूलिका की कविताएं छंद मुक्त और सरल भाषा में हैं। पाठक इनमें मौजूद वेदनाओं, संवेदनाओं, खामोशियों और रुसवाइयों जैसे भावों से रूबरू हो सकते हैं। किताब में सूरज प्रकाश, डॉ प्रमोद कुश ’तन्हा’ और डॉ रोशनी किरण की टिप्पणियां हैं। इस परिचर्चा में डॉ वर्षा महेश, डॉ पूजा अलापुरिया, सविता दत्त और राजीव मिश्र ने हिस्सा लिया। इस मौके पर रीमा राय सिंह ने अपने कविता संग्रह की कुछ कविताओं का पाठ भी किया, जिसे बौद्धिक वर्ग के श्रोताओं ने खूब सराहा।

पहले सत्र में चित्रनगरी संवाद मंच मुम्बई के सृजन संवाद कार्यक्रम में साहित्य और सिनेमा के रिश्तों पर महत्वपूर्ण चर्चा हुई। कार्यक्रम में प्रस्तावना पेश करते हुए कथाकार सूरज प्रकाश ने चर्चा के लिए कुछ मुद्दे सामने रखे। उन्होंने कहा कि साहित्य को सिनेमा में तब्दील करते समय क्या चुनौतियां आती हैं इस पर विचार की ज़रूरत है। साहित्य पर आधारित फ़िल्म की सफलता और असफलता के मानदंड क्या हैं? एक ही कथाकार मन्नू भंडारी की कहानी पर ‘रजनीगंधा’ फ़िल्म कामयाब होती है और उन्हीं की कथा ‘आपका बंटी’ पर आधारित फ़िल्म क्यों फ्लाप हो जाती है, इस पर चर्चा की आवश्यकता है।

सुप्रसिद्ध लेखक संपादक, निर्माता निर्देशक एवं दूरदर्शन के अतिरिक्त महानिदेशक राजशेखर व्यास ने कहा कि जब कोई साहित्यकार अपनी कृति फ़िल्म निर्माण के लिए किसी फ़िल्मकार को देता है तो उसे भूल जाना चाहिए कि इस पर मेरा कोई हक़ है। जब साहित्य पर फ़िल्म बनती है तो उस पर निर्देशक का अधिकार हो जाता है। सिनेमा निर्देशक का माध्यम है। इसलिए निर्देशक सिनेमाई ज़रूरत के अनुसार साहित्यिक कृति में मनचाहा बदलाव कर सकता है।

श्री व्यास ने अपने पिता पद्मभूषण सूर्यनारायण व्यास को याद करते हुए कहा कि उन्होंने सम्राट विक्रमादित्य और कवि कालिदास पर फ़िल्मों का निर्माण किया था और दोनों फ़िल्में कामयाब हुई थीं। सिने जगत में साहित्यकारों का आवागमन काफ़ी पुराना है। सन् 1924 में यानी मूक फ़िल्मों के ज़माने में पांडेय बेचन शर्मा उग्र मुंबई आ गए थे। उन्होंने यहां के फ़िल्मी माहौल पर संस्मरण भी लिखा। व्यास जी ने उग्र जी का रोचक संस्मरण पढ़कर सुनाया।

इस सृजन सम्वाद में फ़िल्म, गोदान, और ‘तीसरी क़सम’ से लेकर ‘शतरंज के खिलाड़ी’ तक पर बढ़िया चर्चा हुई। ‘धरोहर’ के अंतर्गत अभिनेता शैलेंद्र गौड़ ने प्रख्यात कवि राजेश जोशी की कविता ‘बच्चे काम पर जा रहे हैं’ का पाठ असरदार ढंग से किया। प्रतापगढ़ से पधारे वरिष्ठ कवि राजमूर्ति सौरभ का परिचय राजेश ऋतुपर्ण ने दिया। सौरभ ने अपनी चुनिंदा ग़ज़लें, दोहे और गीत सुनाए। उनकी रचनाओं को भरपूर सराहा गया। श्रोताओं की फरमाइश पर उन्होंने अवधी भाषा में भी काव्य पाठ किया। शायर नवीन जोशी नवा और कवि राजेश ऋतुपर्ण ने काव्य पाठ के सिलसिले को आगे बढ़ाया।

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अर्जुन रामपाल शामिल होंगे क्राई गाला में

हर साल की तरह इस बार भी क्राई गाला २०२४ का आयोजन होने जा रहा है। बच्चों के सुखी, स्वस्थ और शिक्षित जीवन के अधिकारों को सुनिश्चित करने के लिए CRY, चाइल्ड राइट्स एंड यू संस्था बनी है इसकी अमेरिका इकाई का यह 20वां वर्ष है। चिंतन और उत्सव की एक शाम के लिए हमारे साथ जुड़ें क्योंकि हम अपने समर्थकों के समुदाय के प्रति अपना आभार व्यक्त करना चाहते हैं तथा अपनी उपलब्धियों को साझा करना चाहते हैं,और बे एरिया, सैन डिएगो और सिएटल में हमारे CRY रात्रिभोज में अपने लक्ष्यों के बारे में बात करना चाहते हैं।

इस कार्यक्रम में सेलिब्रिटी अतिथि अर्जुन रामपाल, प्रोजेक्ट पार्टनर डॉ. रोली सिंह, सीआरवाई इंडिया की सीईओ पूजा मारवाहा समेत अन्य लोग शामिल होंगे। इस में सामानों की नीलामी, रात्रिभोज, दाता प्रशंसा और प्रतिज्ञा सत्र, बॉलीवुड संगीत और नृत्य शामिल होंगे। एक ऑनलाइन नीलामी में भारतीय कलाकारों मुरली नागापुझा, पूजा क्षत्रिय, प्रकाश देशमुख, मोहन नाइक द्वारा दान की गई पेंटिंग, कैप्टन सौरव गांगुली द्वारा हस्ताक्षरित एक क्रिकेट बल्ला, अनीता डोंगरे, अनामिका खन्ना, गौरव गुप्ता द्वारा डिजाइनर पोशाकें और इशर्या द्वारा डिज़ाइन आभूषण, जनजाति आम्रपाली आभूषण सुहानी पिट्टी, के द्वारा, शीतल ज़वेरी आभूषण और बहुत कुछ।

यह कार्यक्रम अमेरिका में ३ जगहों पर होने वाला है। San Diego: April 26 – The Heights Golf Club: https://www.cryamerica.org/sd-gala-2024/,Seattle: April 27 – W Bellevue: https://www.cryamerica.org/seattle-uphaar-2024/,Bay Area: April 28 – Villa Ragusa: https://www.cryamerica.org/bay-area-gala-2024/

आपका अटूट समर्थन खुशहाल बचपन बनाने के हमारे मिशन के पीछे प्रेरक शक्ति रहा है। CRY गाला से मिलने वाली धनराशि को हजारों वंचित बच्चों को जीने, सीखने, बढ़ने और खेलने के उनके बुनियादी अधिकार सुनिश्चित करने के लिए उपयोग किया जायेगा। आइए मिलकर इस 20 साल की यात्रा को आपके साथ मिल कर, बच्चों की नियति को आकार देने की हमारी साझा प्रतिबद्धता का प्रमाण बने।

अर्जुन राम पाल ने हिन्दी मीडिया से बात करते हुए बताया कि क्राय अपना कार्य बहुत कुशलता से करती है। उन्होंने आगे कहा कि क्राय के जितने कार्यर्कता है वो बहुत अच्छे लोग है। क्राय बच्चों की सुरक्षा, पढ़ाई और रहने की व्यवस्था का ध्यान रखती है। मेरे पास लिपिका और डीना का फ़ोन आया और बोला की अभी क्राय अमेरिका के २० साल हो रहे हैं आप क्यों नहीं ज्वाइन करते हैं। मुझे २ मिनट भी नहीं लगे हाँ कहने में। जो भी मेरी शूटिंग थी उसको इस तरह से मैनेज कर लिया और २ हफ्ते निकाल लिए। मैं अमेरिका आ रहा हूँ आप सभी का पैसा निकलवाने।

ये तो थी अर्जुन रामपाल जी की बात अब मैं यहाँ ये बताती चलूँ कि CRY, चाइल्ड राइट्स एंड यू, अमेरिका (CRY अमेरिका) एक 501c3 गैर-लाभकारी संस्था है जो एक न्यायपूर्ण दुनिया के अपने दृष्टिकोण से प्रेरित है यह संस्था ,सभी बच्चों कोअपनी पूरी क्षमता से विकसित होने और अपने सपनों को साकार करने के समान अवसर मिले इस बात का ध्यान रखती है और उनकी सहायता करती हैं। 35,334 से अधिक दानदाताओं और 2,000 स्वयंसेवकों के सहयोग से, CRY अमेरिका ने भारत और अमेरिका में 111 परियोजनाओं के समर्थन के माध्यम से 5,027 गांवों और झुग्गियों में रहने वाले 796,919 बच्चों के जीवन को प्रभावित किया है।

अधिक जानकारी के लिए: पर्सी प्रेसवाला से 714-512-6499 पर संपर्क करें या https://www.cryamerica.org/ पर जाएँ या [email protected] पर लिख सकते हैं।

(रचना श्रीवास्तव अमेरिका में रहतीं हैं और वहां होने वाली गतिविधियों पर लगातार लिखती हैं।)

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लुंबिनी परिक्षेत्र के प्रमुख बौद्ध मठ,मन्दिर और स्मारक

शाक्य गणराज्य की राजधानी कपिलवस्तु के निकट उत्तर प्रदेश के ककरहवा नामक ग्राम से 14 मील और नेपाल-भारत सीमा से कुछ दूर पर नेपाल के अन्दर रुमिनोदेई नामक ग्राम ही लुम्बनीग्राम है, जो गौतम बुद्ध के जन्म स्थान के रूप में जगत प्रसिद्ध है। शाक्य राजकुमार सिद्धार्थ गौतम, जो बुद्ध के नाम से प्रसिद्ध हैं, का जन्म 623 ईसा पूर्व में बैसाख की पूर्णिमा के दिन लुम्बिनी में हुआ था। भगवान बुद्ध के पिता, राजा शुद्धोदन, शाक्य वंश के शासक थे, जिनकी राजधानी कपिलवस्तु में थी। उनकी माता रानी मायादेवी (महामाया) ने अपने पैतृक घर की यात्रा के दौरान उन्हें जन्म दिया था। लुंबिनी में चीन, ताइवान, थाईलैंड, जापान, श्रीलंका, म्यांमार, जर्मनी, फ्रांस, कम्बोडिया, कोरिया, मनांग, वियतनाम, जर्मनी का ग्रेट ड्रिगुंग लोटस स्तूप,थ्रांगु वज्र विद्या मठ, और अन्य देशों के लगभग दो दर्जन मठ मंदिर और अन्य स्मारक हैं। पास ही में कपिलवस्तु क्षेत्र की वास्तविक राजधानी तिलौरा – कोट, बुद्ध का ननिहाल कोल राजधानी देवदह और करकुच्छंद नामक पूर्व बुद्ध का स्तूप गोटीहवा नामक पुरातात्विक साइट भी दर्शनीय है। यह परिक्षेत्र कुल लगभग चौसठ धार्मिक, ऐतिहासिक और पुरातात्विक स्थलो से यह अपनी आभा बिखेर रहा हैं।

प्राचीन बुद्ध के समय के मनुष्य की एकाग्रता इतनी होती थी कि उन्हें किसी का अवलंबन का सहारा नही लेना पड़ता था। वे बिना मूर्ति के ही भगवान् का ध्यान कर लेते थे। किन्तु बाद में उसकी शक्ति कम होने लगी। उसका ध्यान भटकने लगा तो मूर्ति का अवलंबन लेकर ध्यान और पूजा का प्रचलन बौद्घ और जैन धर्म में शुरू हो गया।भगवान बुद्ध का जन्म 623 ईसापूर्व हुआ था। जबकि भारत में भगवान की मूर्तियां पहली शताब्दी में पहली वार कनिष्क ने ही वनवाई थी।

लुम्बिनी में सबसे प्राचीन बौद्ध मंदिरों में से एक, जो यूनेस्को की विश्व धरोहर स्थल भी है, माया देवी मंदिर सबसे प्रसिद्ध मंदिरों में से एक है जिसे गौतम बुद्ध के जन्मस्थान के रूप में जाना जाता है। यह मंदिर लुंबिनी विकास क्षेत्र नामक पार्क मैदान के बीच में स्थित है, इसका निरंतर विकास इसे एक अवश्य देखने योग्य आकर्षण बनाता है। माया देवी मंदिर, पुष्करिणी नामक पवित्र तालाब और एक पवित्र उद्यान के ठीक बगल में स्थित है। यह मंदिर उस स्थान को चिह्नित करता है जहां माया देवी ने गौतम बुद्ध को जन्म दिया था और इस स्थान के पुरातात्विक अवशेष लगभग तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व अशोक के समय के हैं।

हिमालय की तलहटी में बसा लुम्बिनी नेपाल के सीमावर्ती क्षेत्र में है। लुंबिनी की लंबाई 4.8 किमी (3 मील) और चौड़ाई 1.6 किमी (1 मील) है। लुंबिनी परिसर को तीन क्षेत्रों में विभाजित किया गया है:

1.पवित्र उद्यान
पवित्र उद्यान लुम्बिनी क्षेत्र का केंद्र बना हुआ है और इसमें बुद्ध का जन्मस्थान और पुरातात्विक और आध्यात्मिक महत्व के अन्य स्मारक जैसे मायादेवी मंदिर, अशोक स्तंभ, मार्कर स्टोन, नैटिविटी मूर्तिकला, पुस्कारिनी पवित्र तालाब और अन्य संरचनात्मक खंडहर शामिल हैं।

लुम्बिनी विकास न्यास ने एक महायोजना तैयार की है जिसके तहत इसे विश्वस्तरीय पर्यटन स्थल बनाने की योजना है। इस महायोजना का प्रभाव पूरे शहर में दिखाई पड़ता है। यह योजना इस परिसर को एक नहर द्वारा मध्य से दो भागों में बांटती है, जिसके एक ओर मायादेवी का मंदिर है तो दूसरी ओर एक विशाल श्वेत रंग का विश्वशांति शिवालय देखा जा सकता है। इस नहर के पश्चिम में महायान बोद्ध देशों से सम्बंधित मंदिर स्थित है, जैसे कोरिया, चीन, जर्मनी, कनाडा, ऑस्ट्रिया, वियतनाम, लद्धाख और बेशक नेपाल। पूर्व की ओर थेरवाद बोद्ध धर्म का पालन करने वालों से सम्बंधित मंदिर स्थित हैं, जैसे थाईलैंड, म्यांमार, कम्बोडिया, भारत का महाबोध समाज, कोलकता, नेपाल का गौतमी जनाना मठ। इन दोनों के मध्य वज्रयान बोध धर्म की भी झलक मिलती है। दोनों ओर के संगठनों के अपने भिन्न भिन्न ध्यान केंद्र हैं जहाँ पूर्वनिर्धारित कर ध्यान का अभ्यास किया जा सकता है।

2. मठ क्षेत्र
बौद्ध स्तूपों और विहारों का 1 वर्ग मील के क्षेत्र में फैले मठ क्षेत्र को दो क्षेत्रों में विभाजित किया गया है: पूर्वी मठ क्षेत्र जो बौद्ध धर्म के थेरवाद स्कूल का प्रतिनिधित्व करता है और पश्चिमी मठ क्षेत्र जो बौद्ध धर्म के महायान और वज्रयान स्कूल का प्रतिनिधित्व करता है, जिसके दोनों ओर उनके संबंधित मठ हैं। एक लंबा पैदल पथ और नहर। मठ स्थल को एक पवित्र तीर्थ स्थल के रूप में चिह्नित करते हुए, कई देशों ने अपने अद्वितीय ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और आध्यात्मिक डिजाइनों के साथ मठ क्षेत्र में बौद्ध स्तूप और मठ स्थापित किए हैं।

लुंबिनी मठ स्थल एक जटिल आवास है जिसमें गौतम बुद्ध के जीवन के बारे में जानकारी देने, बौद्ध धर्म के महत्व, इसके प्रचार-प्रसार, विकास और विश्वास प्रणाली को समझने में मदद करने के लिए विभिन्न मंदिर और मठ बनाए गए हैं जो सामंजस्यपूर्ण संघों को बनाए रखने में मदद करने के लिए एक सामान्य स्ट्रिंग के रूप में कार्य करता है। मठ स्थल को एक जल नहर द्वारा दो खंडों में विभाजित किया गया है जिसका उपयोग अक्सर पर्यटक मोटर नौकाओं पर घूमने के लिए करते हैं। पूर्व की ओर वाले भाग को पूर्वी मठ क्षेत्र कहा जाता है, जहां थेरवाद बौद्ध धर्म प्रचलित है, और पश्चिम की ओर वाले क्षेत्र को पश्चिम मठ क्षेत्र कहा जाता है, जहां वज्रयान और महायान प्रमुख हैं। एक बार अंदर जाने के बाद, व्यक्ति केवल संस्कृति, परंपराओं और बौद्ध धर्म के इतिहास के संपर्क में रहता है।

3 .सांस्कृतिक केंद्र और न्यू लुंबिनी गांव
सांस्कृतिक केंद्र और न्यू लुंबिनी गांव में लुंबिनी संग्रहालय, लुंबिनी अंतर्राष्ट्रीय अनुसंधान संस्थान, जापान का विश्व शांति पैगोडा, लुंबिनी क्रेन अभयारण्य और अन्य प्रशासनिक कार्यालय शामिल हैं।

4. भारत सरकार का बौद्ध मठ प्रस्तावित
भगवान बुद्ध के जन्मस्थली लुम्बिनी में भारत सरकार एक अरब रुपए की लागत से बौद्ध मठ का निर्माण कराएगी। 16 मई 2022 को लुम्बिनी दौरे पर पीएम मोदी इसका शिलान्यास किए हैं। भारत लुंबिनी मठ क्षेत्र में 14 अन्य देशों में शामिल हो जाएगा, क्योंकि प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने नेपाल में बौद्ध धर्म के लिए एक अंतरराष्ट्रीय केंद्र की आधारशिला रखी है। यह बौद्ध मठ लुम्बिनी में बने अन्य देश के मठ की तुलना में सबसे बड़ा व सबसे अधिक लागत वाला होगा। भारत सरकार के अधीन संस्था अंतर्राष्ट्रीय बौद्ध परिसंघ इस मठ का निर्माण करा रहा है। परिसंघ ने लुम्बिनी विकास कोष से जमीन ली है। जिस मठ का शिलान्यास हुआ है उस मठ मे बुद्ध का मंदिर, बौद्ध गुरुओं के ठहरे की व्यवस्था, चिकित्सा, ध्यान हाल का निर्माण हो रहा है।

6 अगस्त 2023 को नेपाल में बौद्ध भिक्षुओं के विशेष मंत्रोच्चारण के साथ भूमि पूजन महोत्सव के बाद लुंबिनी में भारतीय अंतर्राष्ट्रीय बौद्ध संस्कृति और विरासत केंद्र के निर्माण का शुभारंभ हुआ। 1.60 अरब रुपये की लागत से बनने वाला हेरिटेज सेंटर कमल के आकार का होने की उम्मीद है। इसे जीरो-नेट तकनीक में बनाया जाएगा और करीब-करीब वर्ष में पूरा किया जाएगा। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और नेपाल के प्रधान मंत्री शेर बहादुर देउबा ने 2022 में मोदी की लुंबिनी यात्रा के दौरान संयुक्त रूप से इसकी रैली निकाली थी।भारत और नेपाल की सांस्कृतिक विरासतें साझा की जा रही हैं, और अंतरराष्ट्रीय मानकों पर एक मठ का निर्माण किया जा रहा है।

5. लुंबिनी संग्रहालय
लुंबिनी संग्रहालय मौर्य और कुशान काल की कलाकृतियों को प्रदर्शित करता है। संग्रहालय में लुम्बिनी को चित्रित करने वाली दुनिया भर से धार्मिक पांडुलिपियों, धातु मूर्तियों और टिकटें हैं। लुंबिनी इंटरनेशनल रिसर्च इंस्टीट्यूट लुंबिनी संग्रहालय के सामने स्थित है, सामान्य रूप से बौद्ध धर्म और धर्म के अध्ययन के लिए अनुसंधान सुविधाएं प्रदान करता है। इस संग्रहालय की वास्तुकला में ताइवान का प्रभाव नजर आएगा। यहां लगभग 12000 कलाकृतियों को प्रदर्शित किया गया है। यहां प्राचीन सिक्के, पांडुलिपियां, टिकटें, टेराकोटा मूर्तियां देखने को मिलेंगी। यह संग्रहालय 1970 के दशक में बनाया गया था और अब इसे ताइवान के वास्तुकार क्रिस याओ और उनकी टीम द्वारा फिर से तैयार किया गया है।

6. माया देवी का पावन मन्दिर
मायादेवी मंदिर इस क्षेत्र का सबसे महत्वपूर्ण और पवित्र स्थल है –यह वह वास्तविक स्थान है जहां भगवान बुद्ध का जन्म कपिलवस्तु के राजा शुद्धोधन की पत्नी रानी मायादेवी के घर हुआ था। यह जगह बहुत शांतिपूर्ण है और लोग आम तौर पर वहां ध्यान करते हैं। हाल ही में हुई खुदाई के नतीजों से पता चला है कि मंदिर का यह ढांचा मायादेवी मंदिर के भीतर बना था। यह सम्राट अशोक के इस क्षेत्र में पहुंचने से पहले की घटना है। माना जाता था कि लुम्बिनी और यह मंदिर सम्राट अशोक के कार्यकाल में तीसरी शताब्दी में बनाया गया था। इस खुदाई मिशन में शामिल अनुसंधानकर्ताओं ने सम्राट अशोक के समय से पहले के एक मंदिर का पता लगाया है जो कि ईंट से बना हुआ था।

7. बौद्धों और हिंदुओं दोनों के लिए पवित्र स्थल
बौद्धों और हिंदुओं दोनों के लिए पवित्र मायादेवी मंदिर, माना जाता है कि इसे पांचवीं शताब्दी के मंदिर के ऊपर बनाया गया था, जो संभवतः अशोक के मंदिर के ऊपर बनाया गया था। मंदिर में बुद्ध के जन्म की एक पत्थर की आधार-राहत है। एक छोटे शिवालय जैसी संरचना में संरक्षित, यह छवि भगवान की मां मायादेवी को अपने दाहिने हाथ से साल के पेड़ की एक शाखा को पकड़कर सहारा देती हुई दिखाई देती है। नवजात बुद्ध को अंडाकार प्रभामंडल वाले कमल के मंच पर सीधे खड़े देखा जाता है। पवित्र पुष्करिणी कुंड महादेवी मंदिर के दक्षिण में स्थित है जहाँ मायादेवी ने भावी बुद्ध को जन्म देने से पहले स्नान किया था। यहीं पर सिद्धार्थ को पहला औपचारिक शुद्धिकरण स्नान भी कराया गया था। सनातन हिंदू बुद्ध को हिंदू भगवान विष्णु का 10वां अवतार मानते हैं और बैसाख (अप्रैल-मई) की पूर्णिमा के दिन हजारों नेपाली हिंदू भक्त माया देवी से प्रार्थना करने के लिए यहां आते हैं, जिन्हें स्थानीय लोग रूपा देवी “लुम्बिनी की देवी माँ” कहते हैं।

8. माया देवी का वर्तमान मंदिर
साइट पर पुरातात्विक अवशेष पहले तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व अशोक द्वारा निर्मित ईंट की इमारतों के थे। छठी शताब्दी ईसा पूर्व का लकड़ी का मंदिर 2013 में खोजा गया था। 1992 में की गई खुदाई से कम से कम 2200 साल पुराने खंडहरों का पता चला, जिसमें एक ईंट के चबूतरे पर एक स्मारक पत्थर भी शामिल था, जो तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व में सम्राट अशोक द्वारा रखे गए पत्थर के विवरण से मेल खाता था। इस स्थल पर एक भव्य स्मारक बनाने की योजना है, लेकिन अभी एक मजबूत ईंट मंडप मंदिर के खंडहरों की सुरक्षा करता है। आप ऊंचे बोर्ड वॉक पर खंडहरों के चारों ओर घूम सकते हैं। तीर्थयात्रियों के लिए केंद्र बिंदु बुद्ध के जन्म की एक बलुआ पत्थर की नक्काशी है, जिसे 14 वीं शताब्दी में मल्ल राजा, रिपु मल्ला द्वारा यहां छोड़ा गया था, जब माया देवी को हिंदू मातृ देवी के अवतार के रूप में पूजा जाता था। सदियों से चली आ रही पूजा के कारण यह नक्काशी लगभग सपाट हो गई है, लेकिन अब माया देवी की आकृति को देखा जा सकता है। जो एक पेड़ की शाखा को पकड़ रही है और बुद्ध को जन्म दे रही है, जबकि इंद्र और ब्रह्मा देख रहे हैं। इसके ठीक नीचे बुलेटप्रूफ शीशे के अंदर एक मार्कर पत्थर लगा हुआ है, जो उस स्थान को इंगित करता है जहां बुद्ध का जन्म हुआ था। प्राचीन माया देवी मंदिर का निर्माण सम्राट अशोक की लुम्बिनी यात्रा के दौरान लगभग 249 ईसा पूर्व में किया गया था, जिसमें मार्कर पत्थर और जन्म मूर्तिकला की सुरक्षा के लिए पकी हुई ईंटों का उपयोग किया गया था। आसपास की मिट्टी से पोस्टहोल संरेखण की रेडियोकार्बन डेटिंग से संकेत मिलता है कि पवित्र स्थान था पहली बार छठी शताब्दी ईसा पूर्व में माया देवी मंदिर के भीतर चित्रित किया गया था।

9. जन्मस्थान का गर्भगृह
लुंबिनी (और संपूर्ण बौद्ध जगत का) का सबसे महत्वपूर्ण और पवित्र स्थान वह पत्थर की पटिया है जो सटीक स्थान बताती है जहां बुद्ध का जन्म हुआ था। यह गर्भगृह के अंदर गहराई में स्थित है और प्रसिद्ध मायादेवी मंदिर के पुराने स्थल पर खंडहरों की तीन परतों के नीचे की गई बहुत कठिन और श्रमसाध्य खुदाई के बाद पाया गया है।

10. मायादेवी का पवित्र तालाब लुंबिनी
मायादेवी तालाब, माया देवी मंदिर परिसर के अंदर स्थित, वह जगह है जहां बुद्ध की मां उसे जन्म देने से पहले स्नान करती थीं। यह भी माना जाता है कि सिद्धार्थ गौतम का पहला स्नान भी यहां हुआ था। माया देवी मंदिर के ठीक सामने स्थित, माया देवी तालाब एक चौकोर आकार की संरचना है जिसमें जल स्तर तक चढ़ने के लिए चारों ओर सीढ़ियाँ हैं। इसे पुष्करिणी के नाम से भी जाना जाता है, यह वह जगह है जहां गौतम बुद्ध की मां – माया देवी – स्नान करती थीं। दरअसल भगवान बुद्ध का प्रथम स्नान इसी तालाब में हुआ था। तालाब के एक तरफ हरे-भरे झाड़ियों से घिरा ऊंचे पेड़ों वाला एक अच्छी तरह से रखा हुआ बगीचा है और दूसरी तरफ प्राचीन खंडहर हैं जो तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व के हैं। माना जाता है कि ये खंडहर ईंट के मंडपों से संरक्षित प्राचीन मंदिरों और स्तूपों के अवशेष है। यहां माया देवी ने बुद्ध को जन्म देने से पहले स्नान किया था। मैदान के चारों ओर दूसरी शताब्दी ईसा पूर्व से लेकर 9वीं शताब्दी ईस्वी तक के कई ईंट स्तूपों और मठों की खंडहर नींवें बिखरी हुई हैं।

11. बोधि वृक्ष
लुम्बिनी में बोधि वृक्ष शांत माया देवी तालाब के तट पर मंदिर के ठीक बगल में माया देवी मंदिर परिसर में स्थित है। इस पेड़ के नीचे ही भगवान बुद्ध ने ज्ञान प्राप्त किया था। इस पेड़ को बहुत पवित्र माना जाता है। गौतम बुद्ध ने इस वृक्ष के नीचे ध्यान करके क्रोध, भ्रम, भोग और विलासिता से भरे अपने जीवन से मुक्ति प्राप्त की थी। इस पेड़ के करीब जाकर आपको अहसास होगा कि जीवन में भौतिक सुख के अलावा और भी बहुत कुछ है। यह पेड़ एक सदियों पुराना पीपल का पेड़ या फिकस रिलिजियोसा है जो रंग-बिरंगे प्रार्थना झंडों से सुसज्जित है, स्थानीय लोगों का मानना है कि रंग-बिरंगे प्रार्थना झंडों को बांधते समय मांगी गई इच्छाएं अक्सर पूरी होती हैं।

12. अशोक स्‍तंभ
यूं तो दुनिया में कई अशोक स्‍तंभ हैं, लेकिन लुम्बिनी में बना अशोक स्‍तंभ सबसे प्रसिद्ध है। तीसरी शताब्दी में बनी यह प्राचीन संरचना माया देवी मंदिर के परिसर के अंदर स्थित है। कहते हैं कि राजा अशोक ने भगवान बुद्ध को श्रद्धांजलि देने के लिए इस स्तंभ का निर्माण करवाया था। इसकी ऊंचाई 6 मीटर है, इसलिए आप इसे दूर से ही देख पाएंगे। अगर आप लुंबिनी गए हैं, तो आपको अशोक स्‍तंभ को देखने जरूर जाना चाहिए।

13. विश्व शांति (जापान का) पगोडा लुंबिनी
जापान शांति स्तूप, जिसे विश्व शांति पैगोडा के नाम से भी जाना जाता है, 21वीं सदी का प्रारंभिक स्मारक है – शांति का प्रतीक और लुंबिनी में एक प्रसिद्ध पर्यटक आकर्षण।

मुख्य परिसर के बाहर स्थित, संरचना पारंपरिक पगोडा शैली की वास्तुकला के साथ एक शानदार स्तूप है। जापानी बौद्ध द्वारा 1 मिलियन अमेरिकी डॉलर की लागत से निर्मित, यह स्मारक सुनहरे बुद्ध की मूर्ति के साथ सफेद रंग में रंगा गया है। राजसी संरचना के केंद्र में एक गुंबद है जिस तक पहुंचने के लिए दो सीढ़ियों में से एक पर चढ़कर पहुंचा जा सकता है। दूसरे स्तर पर, गुंबद को घेरने वाला एक गलियारा है।

14. ताइवान का संग्रहालय लुंबिनी
पवित्र उद्यान क्षेत्र के यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल के अंदर स्थित, लुंबिनी संग्रहालय में धार्मिक पांडुलिपियों, धातु की मूर्तियां, टेरा कोटा, मौर्य और खुसना राजवंश के सिक्के और लुंबिनी को चित्रित करने वाले दुनिया भर के टिकटों सहित लगभग 12000 कलाकृतियां प्रदर्शित हैं।

15. रॉयल थाई बौद्ध मठ लुंबिनी
लुंबिनी में रॉयल थाई मठ बौद्ध प्रथाओं को समर्पित एक भव्य और आश्चर्यजनक वाट-शैली (थाई मठ शैली) मठ है। चमचमाती इमारत सफेद संगमरमर से बनी है और पास में ही नीली छत वाला ध्यान केंद्र उत्कृष्ट स्थापत्य शैली का उदाहरण है। मंदिर की दीवार पर सुंदर डिजाइन और नक्काशी इस जगह को अवश्य देखने लायक बनाती है।

16. धर्म स्वामी महाराजा बुद्ध विहार, लुंबिनी
धर्म स्वामी महाराजा बुद्ध विहार शाक्यपा संप्रदाय से संबंधित एक बौद्ध गोम्पा है। इसकी स्थापना महामहिम चोग्या त्रिचेन रिनपोछे ने की थी। इस स्थल की असीम शांति इसे ध्यान और शांत आत्मनिरीक्षण के लिए एक आदर्श स्थान बनाती है। मठ में रहने वाले 600 भिक्षुओं द्वारा प्रतिदिन तारा पूजा की जाती है।

17. श्रीलंकाई मठ, लुंबिनी
श्रीलंका मंदिर के रूप में भी जाना जाने वाला यह मठ एक सुंदर श्रीलंकाई बौद्ध प्रतिष्ठान है जो गौतम बुद्ध के जीवन और क्षेत्र में इसके महत्व के बारे में जानकारी देता है। ये उत्सव, कार्यक्रम और त्यौहार लुंबिनी के एक प्राचीन मठ में मनाए जाने वाले उत्सवों से थोड़े अलग लग सकते हैं। यह गौतम बुद्ध के जीवन की एक झलक भी प्रदान करता है और पूरे समय में इसके विकास पर जोर देता है।

यह मठ श्रीलंका को समर्पित एक थेरवाद बौद्ध प्रतिष्ठान है। यह लुंबिनी के पूर्वी मठ क्षेत्र में स्थित एक आकर्षक मठ है, जिसके शीर्ष पर एक पारंपरिक शिवालय के साथ एक गोलाकार ऊंचा मंच है। शिवालय के नीचे, भगवान बुद्ध की एक सुंदर सुनहरी मूर्ति है जो ध्यान मुद्रा में बैठी हुई दिखाई देती है। इस व्यवस्था में एक मार्ग है जो संरचना को घेरता है और परिक्रमा के लिए एक क्षेत्र प्रदान करता है। यह स्थल बेहद अच्छी तरह से बनाए रखा गया है और इतना शांतिपूर्ण है कि पर्यटक एक पल के लिए एकांत में बैठ सकते है

18. कम्बोडियन मठ, लुंबिनी
लुम्बिनी में सबसे आकर्षक पर्यटक स्‍थल है कंबोडिया मठ है। इस जगह की वास्तुकला कंबोडिया में अंगकोर वाट के जैसी है। इस संरचना के भीतर आपको कई रंगों में ड्रेगन, सांपों और फूलों की सुंदर नक्काशी देखने को मिलेगी। इस मंदिर के अंदर हरे रंग के सापों की नक्काशी बनी हुई है। इन सापों की लंबाई 50 मीटर से ज्‍यादा बताई जाती है। इस मठ में जाकर, कंबोडियन बौद्ध धर्म की एक झलक देखने को मिलेगी। कंबोडियन मठ रंगीन कल्पना और आध्यात्मिक शक्तियों का मिश्रण है जो इसे क्षेत्र के सबसे आकर्षक मंदिरों में से एक बनाता है। प्रसिद्ध अंगकोर वाट से मेल खाते वास्तुशिल्प डिजाइन में निर्मित, आकर्षक मठ एक चौकोर रेलिंग से घिरा हुआ है, प्रत्येक में चार 50 मीटर हरे सांप हैं। बड़े परिसर की बाहरी दीवार सुंदर और जटिल डिजाइनों से ढकी हुई है।

19. म्यांमार बर्मी स्वर्ण मंदिर, लुंबिनी
लुंबिनी में म्यांमार स्वर्ण मंदिर शहर की सबसे पुरानी संरचना है। बर्मी वास्तुकला शैली में निर्मित यह मंदिर भगवान बुद्ध को समर्पित है। बागान के मंदिरों की तर्ज पर बनाया गया मक्के के भुट्टे के आकार का प्रभावशाली शिखर पूरी संरचना को एक राजसी रूप देता है। इमारत के अंदर तीन प्रार्थना कक्ष और एक लोकमणि पुला पगोडा हैं।

20. चीन मंदिर, लुंबिनी
झोंग हुआ चीनी बौद्ध मठ, जिसे चीन मंदिर के नाम से जाना जाता है, लुंबिनी में एक सुंदर बौद्ध मठ है। यह प्रभावशाली संरचना पगोडा-शैली की वास्तुकला में बनाई गई है और चीन के प्रसिद्ध निषिद्ध शहर की तरह दिखती है। जैसे ही कोई प्रवेश करता है, पूरी तरह से सुसज्जित आंतरिक आंगन दिल को शांति और आनंद से भर देता है।

21. कोरियाई मंदिर, लुंबिनी
डे सुंग शाक्य सा, जिसे कोरियाई मंदिर के नाम से जाना जाता है, लुंबिनी में एक बौद्ध मठ है। यह प्रभावशाली संरचना कोरियाई वास्तुकला शैली में बनाई गई है और इसकी छत पर रंगीन भित्ति चित्र हैं।भिक्षुओं और तीर्थ यात्रियों से भरे प्रांगण में ध्यान करना एक शांतिपूर्ण और ताज़ा अनुभव है।

22. मनांग समाज स्तूप, लुंबिनी
उत्तरी नेपाल में मनांग के बौद्धों द्वारा बनाया गया एक चोर्टेन, मनांग समाज स्तूप नेपाल के सबसे पुराने स्तूपों में से एक माना जाता है, जो 600 ईसा पूर्व में गौतम बुद्ध के जन्म के समय का है। इस इमारत के मध्य में एक सुनहरी बुद्ध प्रतिमा है और यह रंगीन भित्तिचित्रों से घिरी हुई है। वर्तमान में, इस आकर्षण का मानना है कि यह जल्द ही नवीकरण के अधीन हो जाएगा।

23. वियतनाम फ़ैट क्वोक तू मंदिर, लुंबिनी
वियतनाम के लुंबिनी में स्थित फाट क्वोक तू मंदिर उन कुछ आकर्षणों में से एक है जो वियतनाम और नेपाल के बीच संबंधों का प्रतिनिधित्व करता है। गौतम बुद्ध की तीर्थयात्रा के हिस्से के रूप में कई लोग इस मंदिर में आते हैं। कृत्रिम पहाड़ों और एक भव्य छत से घिरा इसका अग्रभाग है।

24. ग्रेट ड्रिगुंग लोटस स्तूप, लुंबिनी
ग्रेट ड्रिगुंग लोटस स्तूप लुंबिनी में धार्मिक रूप से सबसे महत्वपूर्ण स्तूपों में से एक है और इसका निर्माण जर्मन तारा फाउंडेशन द्वारा किया गया था। इमारत में एक खोखला मुकुट है जो आंशिक रूप से कांच से ढका हुआ है जिससे अंदर बुद्ध की मूर्ति का पता चलता है। इस इमारत का ऐतिहासिक महत्व सदियों पुराना है जब इस इमारत का निर्माण रिनपोचेस की देखरेख और मार्गदर्शन में हुआ था। लुम्बिनी में यह स्तूप निश्चित रूप से देखने लायक है। स्तूप की गुंबददार छत बौद्ध भित्ति चित्रों से ढकी हुई है। सोना, लकड़ी और नक्काशी बुद्ध की मान्यताओं और शिक्षाओं का प्रतिनिधित्व करते हैं जो शांति और अहिंसा का संदेश फैलाते हैं।

25. थ्रांगु वज्र विद्या मठ, लुंबिनी
थ्रांगु वज्र विद्या मठ लुम्बिनी में एक मठ है जो थ्रांगु रिनपोछे को समर्पित है। वह शांति, ज्ञान और एकता पर अपने सिद्धांतों का निर्माण करते हुए बुद्ध की शिक्षाओं में विश्वास करते थे। बहुत कम उम्र से, थ्रांगु रिनपोछे ने बौद्ध अध्ययन के लिए संस्थानों की स्थापना शुरू कर दी थी। आज, इस मठ में कई छात्र हैं जो महत्वाकांक्षी भिक्षु हैं।मठ में कई कार्यक्रम भी होते हैं जहां नियमित आधार पर सेमिनार, भाषण और समारोह आयोजित किए जाते हैं। उन्होंने यहां कई संस्थान भी स्थापित किए हैं जो इंग्लैंड, अमेरिका और कनाडा जैसे विभिन्न देशों में स्थित हैं। थरांगु वज्र विद्या मठ, थरागु रिनपोछे का एक स्मारक है और लुंबिनी में एक बड़ा आकर्षण है।

26. विश्व शांति पैगोडा
पीस पैगोडा शांति को प्रेरित करने वाला एक स्मारक है जिसे सभी जातियों और पंथ के लोगों को एकजुट करने तथा विश्व शांति की उनकी खोज में मदद के लिए डिजाइन किया गया है। इसे निप्पोनज़न पीस पैगोडा भी कहा जाता है। इसे लगभग दस लाख अमेरिकी डॉलर की लागत से जापानी बौद्धों द्वारा डिजाइन और निर्मित किया गया था। पैगोडा लुंबिनी मास्टर प्लान की केंद्रीय धुरी पर शुरुआती बिंदु के रूप में कार्य करता है, दूसरा छोर मायादेवी मंदिर है। शिवालय से मंदिर की दूरी लगभग 3.2 किमी है। स्तूप की सीढ़ियाँ तीन अलग-अलग स्तरों तक ले जाती हैं। स्तूप को सफेद किया गया है और फर्श पर पत्थर लगाया गया है। इसमें बुद्ध की चार बड़ी सुनहरी मूर्तियाँ हैं जो चार दिशाओं की ओर मुख किये हुए हैं।स्तूप के आधार के पास एक जापानी भिक्षु (उनाताका नवतामे) की कब्र है, जिसे भारत के लुटेरों ने पास ही गोली मार दी थी। स्तूप के उत्तर का क्षेत्र मुख्य रूप से सारस क्रेन के पक्षियों के आवास के लिए भी संरक्षित है।

(लेखक भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण, आगरा मंडल, आगरा में सहायक पुस्तकालय एवं सूचनाधिकारी पद से सेवामुक्त हुए हैं। वर्तमान समय में उत्तर प्रदेश के बस्ती नगर में निवास करते हुए समसामयिक विषयों,साहित्य, इतिहास, पुरातत्व, संस्कृति और अध्यात्म पर अपना विचार व्यक्त करते रहते हैं लेखक को अभी हाल ही में इस पावन स्थल को देखने का अवसर मिला था।)

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महावीर के संदेश तब भी उपयोगी थे आज भी उपयोगी है – श्रमण डॉ पुष्पेन्द्र

-जैन धर्म के 24वें तीर्थंकर महावीर स्वामी के 2623 वें जन्म कल्याणक (जयंती) के अवसर पर प्रदेशवासियों को शुभकामनाएँ देते हुए श्रमण डॉ पुष्पेन्द्र ने कहा है कि तीर्थंकर महावीर केवल जैनों के नहीं वरन सम्पूर्ण मानवता के भगवान हैं। महावीर उन्हीं लोगों के काम के हैं जो ज्योर्तिमयता में विश्वास रखते हैं। वे ही पहले ऐसे महापुरुष थे जिन्होंने सरे बाजार में बिकने वाली नारी को बिक्री की वस्तु से हटाकर उसे आमजन मानस में गौरवपूर्ण स्थान दिलवाया।
 
आज जरूरत केवल इतनी-सी है कि भगवान महावीर में आस्था रखने वाला लोग केवल मंदिरों में उनकी पूजा-आरती न करते रहें, अपनी पंथ-परम्पराओं की चारदिवारी में बंधकर न रहें, वरन् उनके द्वारा दिए गए अहिंसा, अनेकांत, समता, समानता, सहयोग जैसे संदेशों को विश्वभर में फैलाने की जी-जान से कौशिश करें फिर वह दिन दूर नहीं जब संयुक्त राष्ट्र संघ में शांति और मैत्री की केवल बातें नहीं होगी वरन् विश्व मैत्री और विश्व शांति का सपना साकार होता दिखेगा। महावीर के संदेश तब भी उपयोगी थे आज भी उपयोगी हैं और सदा उपयोगी बने रहेंगे। वे कभी आउट ऑफ डेट नहीं होंगे, सदा अप-टू-डेट बने रहेंगे।


आगे उन्होंने कहा कि महावीर का म कहता है महान बनो – जहाँ भगवान श्री राम दिए हुए वचन को निभाने की प्रेरणा देने वाले आदर्श-स्तंभ हैं वहीं भगवान श्री महावीर लिए हुए संकल्प पर दृढ़ रहने के आदर्श स्रोत हैं। स्वयं महावीर शब्द में गूढ़ रहस्य छिपा हुआ है। महावीर का म महान बनने, ह हिम्मत रखने व वचन निभाने और र रमन करने का पाठ सिखाता है। भले ही सिकन्दर ने पूरी दुनिया को जीता, पर सिकन्दर बनकर दुनिया को जीतना सरल है, पर उसी सिकन्दर के लिए स्वयं को जितना बड़ा मुश्किल है। जो स्वयं को जीतते हैं वही दुनिया में वीरों के वीर महावीर कहलाते हैं।
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पश्चिम रेलवे विभिन्‍न गंतव्‍यों के लिए 3 जोड़ी स्‍पेशल ट्रेनें चलाएगी

मुंबई। पश्चिम रेलवे द्वारा यात्रियों की सुविधा तथा उनकी यात्रा मांग को पूरा करने के उद्देश्य से विशेष किराये पर और 03 जोड़ी समर स्‍पेशल ट्रेनें चलाने का निर्णय लिया गया है।

पश्चिम रेलवे के मुख्य जनसंपर्क अधिकारी श्री सुमित ठाकुर द्वारा जारी एक प्रेस विज्ञप्ति के अनुसार इन स्‍पेशल ट्रेनों का विवरण इस प्रकार है:

1. ट्रेन संख्‍या 09037/09038 उधना-भागलपुर अनारक्षित स्पेशल ट्रेन [02 फेरे]

ट्रेन संख्या 09037 उधना-भागलपुर स्पेशल शनिवार, 20 अप्रैल, 2024 को उधना से 11.25 बजे प्रस्थान करेगी और अगले दिन 20.00 बजे भागलपुर पहुंचेगी। इसी प्रकार, ट्रेन संख्या 09038 भागलपुर-उधना स्पेशल रविवार, 21 अप्रैल, 2024 को भागलपुर से 23.00 बजे प्रस्थान करेगी और मंगलवार को 09.00 बजे उधना पहुंचेगी।

यह ट्रेन दोनों दिशाओं में चलथान (आगमन 11.40 बजे/प्रस्‍थान 11.45 बजे), भदोही (आगमन 12.00 बजे/प्रस्‍थान 12.05 बजे), नंदुरबार, भुसावल, खंडवा, इटारसी, जबलपुर, कटनी, सतना, मानिकपुर, प्रयागराज छिवकी, पं. दीन दयाल उपाध्याय, बक्सर, आरा, पटना, बख्तियारपुर, मोकामा, किऊल, जमालपुर और सुल्तानगंज स्टेशनों पर रुकेगी।

इस ट्रेन में जनरल सेकेंड क्लास कोच होंगे।

2. ट्रेन संख्या 09019/09020 उधना-भागलपुर-विश्वामित्री अनारक्षित स्‍पेशल ट्रेन [02 फेरे]

ट्रेन संख्या 09019 उधना-भागलपुर स्पेशल शनिवार, 20 अप्रैल, 2024 को उधना से 20.00 बजे प्रस्थान करेगी और सोमवार को 10.00 बजे भागलपुर पहुंचेगी। इसी प्रकार ट्रेन संख्या 09020 भागलपुर-विश्वामित्री स्पेशल सोमवार, 22 अप्रैल 2024 को भागलपुर से 13.00 बजे प्रस्थान करेगी और मंगलवार को 23.55 बजे विश्वामित्री पहुंचेगी।

यह ट्रेन दोनों दिशाओं में वडोदरा, गोधरा, रतलाम, उज्जैन, संत हिरदाराम नगर, बीना, सागर, दमोह, कटनी मुरवारा, सतना, मानिकपुर, प्रयागराज छिवकी, पं. दीन दयाल उपाध्याय, बक्सर, आरा, पटना, बख्तियारपुर, मोकामा, किऊल, जमालपुर और सुल्तानगंज स्टेशनों पर रुकेगी। ट्रेन संख्या 09019 सूरत, सायन और भरूच स्टेशनों पर भी रुकेगी।

इस ट्रेन में जनरल सेकेंड क्लास कोच होंगे।

3. ट्रेन संख्या 09477/09478 साबरमती-पटना स्पेशल [02 फेरे]

ट्रेन संख्या 09477 साबरमती-पटना स्पेशल रविवार, 21 अप्रैल, 2024 को साबरमती से 00.45 बजे प्रस्थान करेगी और अगले दिन 09.30 बजे पटना पहुंचेगी। इसी तरह, ट्रेन संख्या 09478 पटना-साबरमती स्पेशल सोमवार, 22 अप्रैल, 2024 को पटना से 12.30 बजे प्रस्थान करेगी और अगले दिन 21.30 बजे साबरमती पहुंचेगी।

यह ट्रेन दोनों दिशाओं में महेसाणा, पालनपुर, आबू रोड, मारवाड़ जं., अजमेर, फुलेरा, जयपुर, बांदीकुई, भरतपुर, अछनेरा, आगरा फोर्ट, टूंडला, कानपुर सेंट्रल, लखनऊ, सुल्तानपुर, जौनपुर सिटी, वाराणसी, पं. दीन दयाल उपाध्याय, बक्सर और आरा स्टेशनों पर रुकेगी।

इस ट्रेन में स्लीपर क्लास और जनरल सेकेंड क्लास कोच होंगे।

ट्रेन संख्‍या 09477 की बुकिंग 20 अप्रैल, 2024 से सभी पीआरएस काउंटरों और आईआरसीटीसी की वेबसाइट पर शुरू होगी। ट्रेन के ठहराव, संरचना और समय के बारे में विस्तृत जानकारी के लिए यात्री कृपया www.enquiry.indianrail.gov.in पर जाकर अवलोकन कर सकते हैं।

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आखिर पाकिस्तान भारत से क्यों डरा?   

क्या मोदी सरकार की आतंकवाद-विरोधी नीति और पाकिस्तान में भारत के दुश्मनों की हत्या में कोई संबंध है?

अभी हाल ही में पाकिस्तान ने आरोप लगाया है कि 14 अप्रैल को आतंकी संगठन लश्कर-ए-तैयबा के संस्थापक हाफिज सईद के सहयोगी अमीर सरफराज तांबा की ‘अज्ञात बंदूकधारियों’ द्वारा हत्या में ‘भारत की भूमिका’ है। आलेख लिखे जाने तक सरफराज जीवित है या गंभीर रूप से घायल, इसे लेकर पाकिस्तानी अधिकारियों में भ्रम की स्थिति है। कुछ समय से पाकिस्तान में वे आतंकवादी ‘अज्ञात हमलावरों’ का शिकार बन रहे है, जो भारत की ‘सर्वाधिक वांछित सूची’ में शामिल है।

इसमें मौलाना रहीम उल्लाह तारिक, अकरम गाजी, ख्वाजा शाहिद, शाहिद लतीफ, रियाज अहमद, मौलाना जिया-उर-रहमान, खालिस्तानी परमजीत सिंह पंजवार और बशीर अहमद पीर शामिल है। पाकिस्तानी मंत्री नकवी ने सरफराज के साथ इन हत्याओं में भी भारत के शामिल होने का आक्षेप लगाया है।

आखिर सरफराज ने ऐसा क्या किया था कि उसकी हत्या का बेतुका आरोप पाकिस्तान ने सीधा भारत पर लगा दिया? माना जाता है कि सरफराज और उसके साथी मुद्दसर ने पाकिस्तानी सेना और खुफिया एजेंसी आईएसआई के इशारे पर वर्ष 2013 में लाहौर की जेल में बंद भारतीय नागरिक सरबजीत सिंह की पीट-पीटकर हत्या कर दी थी। यह हत्या भारत में आतंकवादी अफजल गुरु की फांसी के दो माह बाद हुई थी, जो 13 दिसंबर 2001 को भारतीय संसद हमले का मुख्य षड्यंत्रकर्ता था। कालांतर में पाकिस्तान की एक अदालत ने सरबजीत की हत्या के दोनों आरोपियों को इसलिए बरी कर दिया, क्योंकि जेल में उपस्थित किसी ने भी इनके खिलाफ गवाही नहीं दी। यह स्थिति तब थी, जब पोस्टमार्टम में सरबजीत के शव पर बर्बरता के कई निशान मिले थे।

सरबजीत भारत-पाकिस्तान सीमा पर बसे तरनतारन जिले (पंजाब) के भिखीविंड गांव के रहने वाले थे। 30 अगस्त 1990 को वे अनजाने में पाकिस्तान पहुंच गए थे, जहां उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया। इसके बाद सरबजीत को बम धमाका मामले में फंसाकर बाद में दोषी ठहराते हुए मौत की सजा सुना दी। सरबजीत की बहन दलबीर कौर 1991 से लेकर 2013 में उनकी नृशंस हत्या तक रिहाई के लिए पाकिस्तान से लगातार पैरवी कर रही थी। 11 वर्ष बाद सरबजीत का मामला पुन: अपने ‘हत्यारे’ सरफराज की ‘अज्ञात हमलावरों’ द्वारा ‘हत्या’ के कारण फिर से सर्खियों में है।

पाकिस्तान से पहले ब्रिटिश समाचारपत्र ‘द गार्जियन’ ने 6 अप्रैल को प्रकाशित अपनी रिपोर्ट में दावा किया था कि भारत विदेशी धरती पर रहने वाले अपने सर्वाधिक वांछितों को समाप्त करने की रणनीति के अंतर्गत पाकिस्तान में लोगों की हत्या कर रहा है। रिपोर्ट के अनुसार, “2019 में हुए पुलवामा हमले के बाद से भारतीय खुफिया एजेंसी रॉ ने 20 हत्याएं करवाईं। इन सभी को भारत अपना दुश्मन मानता था।” भारत सरकार इस रिपोर्ट को सिरे से खारिज कर चुका है।

यह तीसरी बार है, जब भारत पर विदेशी धरती पर अपने दुश्मनों की हत्या या हत्या का प्रयास करने का आरोप लगाया गया है। इससे पहले, गत वर्ष कनाडाई प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो ने दावा किया था कि खालिस्तानी आतंकवादी हरदीप सिंह निज्जर की हत्या में भारत का हाथ था। इसके बाद में अमेरिका ने भी कह दिया कि भारत ने खालिस्तानी अलगाववादी गुरपतवंत सिंह पन्नू की भी हत्या की कोशिश की थी, जिसे उसने विफल कर दिया। मोदी सरकार इस प्रकार के सभी आरोपों का खंडन कर चुकी है। परंतु क्या अमेरिका या किसी अन्य पश्चिमी देशों को इस मामले में भारत को कोई उपदेश देने का अधिकार है?

सच तो यह है कि अमेरिका के स्वयं का इतिहास विदेश में अपने शत्रुओं को ठिकाने लगाने का रहा है। 2 मई 2011 को पाकिस्तान में मध्यरात्रि घुसकर अमेरिकी सेना ने उस ओसामा बिन लादेन को मार गिराया था, जिसने सितंबर 2001 में अमेरिकी के न्यूयॉर्क में भीषण 9/11 आतंकवादी हमले की साजिश रची थी। यही नहीं, कई देशों के विरोध को नजरअंदाज करते हुए अमेरिका ने वर्ष 2003 में इराक पर यह कहकर हमला कर दिया था कि उसके तानाशाह सद्दाम हुसैन के पास सामूहिक विनाश के घातक हथियार हैं। बाद में अमेरिका को कोई हथियार नहीं मिले।

इसी तरह 2019 में अमेरिका ने सीरिया में आईएसआईएस सरगना अबु अल-बगदादी, 2020 में ईरान में शीर्ष सैन्य अधिकारी कासिम सुलेमानी और जुलाई 2022 में अफगानिस्तान के काबुल में आतंकवादी अल-जवाहिरी को मौत के घाट उतार दिया था। इतना ही नहीं, अमेरिकी जांच एजेंसी ‘सीआईए’ ने क्यूबा के नेता फिदेल कास्त्रो की हत्या के आठ असफल प्रयास तक चुका था।

इज़राइल भी आत्मरक्षा में अपने दुश्मनों को दुनिया के किसी भी छोर में ठिकाने लगाने में पारंगत है। 1972 के म्यूनिख ओलंपिक में 11 इज़रायली खिलाड़ियों की हत्या करने वाले फ़िलिस्तीनी आतंकवादियों को इटली, फ्रांस, नार्वे, लेबनान और साइप्रस में ढूंढकर मारना— इसका उदाहरण है। आज भी इज़राइल इस प्रकार के कदम उठाने से नहीं हिचकचता। गत वर्ष हमास के हमले के बाद इजराइल द्वारा गाजा-पट्टी को मलबे के ढेर में परिवर्तित करना— इसका उदाहरण है। यही नहीं, डेढ़ माह पहले ईरानी सैन्यबलों ने पाकिस्तान की सीमा में घुसकर सुन्नी आतंकवादी संगठन जैश अल-अदल के कमांडर इस्माइल शाहबख्श सहित अन्य जिहादियों को मार डाला था।

वास्तव में, शेष विश्व में भारत के आलोचक इस बात से हतप्रभ है कि मई 2014 के बाद मोदी सरकार ने राष्ट्रीय सुरक्षा को लेकर शून्य सहनशक्ति प्रदत्त नीति अपना रही है कि वे आवश्यकता पड़ने पर सीमापार करने से भी नहीं हिचकते। वर्ष 2016 और 2019 में भारतीय सेना की सर्जिकल स्ट्राइक के साथ देश में आतंकवादी हमलों में एकाएक कमी आना— इसका प्रमाण है। इस पृष्ठभूमि में भारत पर पाकिस्तान, अमेरिका और कनाडा द्वारा अपने दुश्मनों की हत्या करने का आरोप लगाना— शेष विश्व में उस राजनीतिक, वैचारिक, गैर-सरकारी संगठनों और निजी संस्थाओं की संयुक्त बौखलाहट का परिचायक है, जो भारत की मौलिक सनातन पहचान, सांस्कृतिक पुनरुत्थान, आर्थिक प्रगति, देशहित केंद्रित विदेश-नीति, तुलनात्मक रूप से सुरक्षित सीमाओं और आत्मनिर्भरता (आयुध सहित) की ओर बढ़ते कदमों से कुंठित हो चुके है।

(लेखक राजनीतिक विश्लेषक हैं ,हाल ही में लेखक की ‘ट्रिस्ट विद अयोध्या: डिकॉलोनाइजेशन ऑफ इंडिया’ पुस्तक प्रकाशित हुई है।)

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मुस्लिम महिलाओं की मिलिभगत से महाराष्ट्र और त्रिपुरा में लवजिहाद 

महाराष्ट्र और त्रिपुरा से लव जिहाद की दो घटनाएँ सामने आई हैं। लव जिहाद की दोनों ही घटनाओं में मुस्लिम महिलाओं का हाथ सामने आया है और दो मुस्लिम महिलाओं समेत 6 लोगों के खिलाफ एफआईआर दर्ज की गई है और तीन गिरफ्तार कर लिए गए हैं।

पहली घटना छत्रपति संभाजी नगर की है, जहाँ एक मुस्लिम कॉन्ट्रैक्टर ने अपने परिवार वालों के साथ मिलकर एक हिंदू इंजीनियर लड़की का जबरन धर्म परिवर्तन कराया और निकाह कर लिया। तीनों ने उसके साथ मारपीट भी की। अब पुलिस ने तीनों के खिलाफ एफआईआर दर्ज कर ली है।

दूसरी घटना त्रिपुरा की है, जहाँ एक नाबालिग हिंदू लड़की को मोहम्मद मुस्तफा ने ज्योत्सना खातून के साथ मिलकर एक लड़की को घर छोड़ने के बहाने किडनैप कर लिया और असम लेकर भाग गया। पुलिस ने इस मामले में भी तीन को गिरफ्तार किया है और नाबालिग लड़की को मुक्त कराया है।

दोनों ही घटनाओं में मुस्लिम महिलाओं का हाथ सामने आया है। महाराष्ट्र में ताहेर पठान, तैय्याब शब्बीर पठान और आयेशा बहेर पठान के खिलाफ एफआईआर दर्ज की गई है, तो त्रिपुरा के मामले में मोहम्मद मुस्तफा और उसकी मदद करने वाले पार्था नाग के साथ ही ज्योत्सना खातून को गिरफ्तार किया है।

महाराष्ट्र के छत्रपति संभाजीनगर में एक मुस्लिम कॉन्ट्रैक्टर ने हिंदू महिला इंजीनियर को जबरन इस्लाम में कन्वर्ट कराया और निकाह कर लिया। इस मामले में पुलिस ने ताहेर पठान, तैय्यब शब्बीर पठान और आयेशा बहेर पठान के खिलाफ एफआईआर दर्ज की गई है। आरोप है कि ताहेर पठान ने अपनी पहचान छिपाकर और खुद को अविवाहित बताकर हिंदू इंजीनियर लड़की को प्रेम जाल में फाँसा और 11 फरवरी 2024 को उसे इस्लाम में कन्वर्ट करा दिया। ये लोग उस पर नमाज पढ़ने, बुर्का पहनने और जबरन निकाह करवाने में शामिल थे।

इस मामले की एफआईआर सिटी चौक पुलिस स्टेशन में दर्ज की गई है और पुलिस मामले की जाँच कर रही है। इसी इलाके में कुछ दिनों पहले दो नाबालिग लड़कियों का भी जबरन धर्म परिवर्तन कर निकाह कराने की बात सामने आई थी।

त्रिपुरा के सेपहीजला जिले में स्थित बिशालगढ़ पुलिस थाना इलाके से 15 अप्रैल को एक नाबालिग लड़की का स्कूल से घर लौटते समय अपहरण कर लिया गया। इस मामले में ज्योत्सना खातून नाम की महिला ने नाबालिग को गाड़ी में ये कहकर बिठाया कि वो लोग उसे घर छोड़ देंगे, इसके बाद मोहम्मद मुस्तफा गाड़ी को लेकर असम भाग गया। पुलिस ने उसे ही मास्टरमाइंड बताया है। लड़की की तलाश में लगी पुलिस ने अगले ही दिन असम के सिलचर के एक होटल से उसे बरामद कर लिया और आरोपितों को भी गिरफ्तार कर लिया। इस मामले में मुस्तफा के साथी पार्था दास को भी पुलिस ने गिरफ्तार किया है।

साभार- hindi.opindia.com से
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