Saturday, December 21, 2024
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महिमा नागेश्वर पार्श्वनाथ उन्हेल की

कोटा। नगरीय विकास एवं स्वायत शासन मंत्री होली पर कुछ दिन नागेश्वर पार्श्वनाथ,उन्हेल में प्रवास करेंगे। धारीवाल वर्षो से इस विश्व विख्यात जैन तीर्थ पर श्रद्धापूर्वक पूजा -अर्चना कर भगवान पार्श्वनाथ के दर्शन करते आ रहे हैं। व्यस्त जीवन के कुछ पल वे यहाँ भक्ति और शांति से व्यतीत करते हैं और प्रदेश की खुशहाली की कामना करते हैं।

आपको बतादें जैन धर्म के इस पावन तीर्थ की महिमा भारत में ही नहीं विदेशों तक विख्यात है। राजस्थान के ही नहीं, देश के प्रसिद्ध जैन मंदिरों में कोटा से 190 किलोमीटर पर राजस्थान और मध्य प्रदेश की सीमा पर चौमहला से 9 किलोमीटर दूर उन्हेल गांव में 23वें तीर्थंकर पार्श्वनाथ को समर्पित नागेश्वर पार्श्वनाथ जैन मंदिर अपना विशिष्ट महत्व रखता है।

पार्श्वनाथ जैन मंदिर में नागेश्वर पार्श्वनाथ की 2829 वर्ष पुरानी सप्तफणधारिणी कायोत्सर्ग मुद्रा में हरे पाषाण की 13.5 फुट ऊंची प्रतिमा के दर्शन होते हैं। यह प्रतिमा ग्रेनाईट सेण्ड स्टोन से बनाई गई है। कमल के पत्ते, धर्मचक्र आदि की रचनाएं मूर्ति का सौन्दर्य बढ़ाती हैं। भगवान शांतिनाथ स्वामी एवं श्री महावीर स्वामी की करीब 4-4 फीट की मूर्तियां मुख्य प्रतिमा के दोनों ओर स्थापित हैं।

सफेद संगमरमर से बना कारीगरीपूर्ण खूबसूरत मंदिर शिल्प कला का चमत्कार है। मुख्य मंदिर के परिसर में 24 जिनालय बने हैं, जिनमें 24 तीर्थंकरों की प्रतिमाएं स्थापित हैं। मंदिर में पदमावती एवं श्री मणिभद्रावीर की प्रतिमाएं भी स्थापित हैं।

कहा जाता है कि उन्हेल के राजा और रानी पदमावती ने एक विशाल मंदिर बनवाया और वहां प्रतिमा स्थापित की। मुगलकाल में इस मंदिर को कई बार क्षति पहुंचाई गई। विक्रम संवत 1264 में नागेन्द्र एवं अभयदेव सूरी ने इस मंदिर का जीर्णोद्धार कराया। उस समय वहां करीब 500 जैन परिवार रहते थे, जिन्होंने गांव छोड़ दिया और मंदिर फिर से बर्बाद हो गया।

उपाध्याय धर्मसागर जी महाराज एवं अभय सागर जी महाराज ने इस स्थान का भ्रमण किया तथा णमोकार मंत्र के साथ तीर्थ के इतिहास का पता लगाया और योजना बनाई कि इस तीर्थ का नवीनीकरण किया जाए। उन्होंने अपने भक्त उन्हेल नागेश्वर के निवासी सेठ दीपचंद जैन को वर्तमान मंदिर के पुनर्निमाण की जिम्मेदारी सौंपते हुए कहा कि यहां ऐसा मंदिर बने, जो न केवल हमारे देश में बल्कि विदेशों में भी अद्वितीय हो।

सेठ दीपचंद ने संतों की इच्छा के मुताबिक वर्तमान भव्य एवं कलात्मक मंदिर का निर्माण किया। इस जैन मंदिर की ख्याति दिनों-दिन बढ़ती रही और आज यहां दर्शनार्थी विशेष रेलगाड़ी और बसों से पहुंचतेँ हैं। यह मंदिर देश के ही नहीं, विदेश के जैन मतावलंबियों का प्रमुख आस्था केन्द्र बन गया है।

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