Friday, May 17, 2024
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भव्यता का अहसास कराते चंद्रेसल के भग्नावशेष मंदिर

कोटा शहर से करीब 15 किलोमीटर दूरी पर चंद्रेसल गाँव में चंदलोई नदी के किनारे दसवीं शताब्दी का प्रतिनिधित्व करने वाला पंचायतन शैली में निर्मित कलात्मक शिव मंदिर समूह स्थापत्य शिल्प का अनुपम नमूना है। एक टीले पर ऊँची दीवारों से घिरे मंदिर समूह के भग्नावशेष तकालीन समय में इनकी भव्यता और कलात्मक होने का अहसास सहज ही कराते हैं। कुछ समय पूर्व तक भारतीय पुरातत्व की यह अमूल्य धरोहर और इसका परिसर बेतरतीब और उजाड़ लगता था को कोटा के पुरातत्व विभाग को मिले करीब 1.50 करोड़ रुपए से हाल ही में कराए गए चारदीवारी, अग्र भाग, मंदिर परिसर, फर्श, प्रार्थना मंडप का पुनर्निर्माण आदि जीर्णोधार कार्यों से सम्पूर्ण परिसर खूबसूरत हो गया है। ये कार्य अधीक्षक उमराव सिंह की रुचि से उनकी देखरेख में किए गए हैं।

मंदिर तक जाने के लिए 20 नई सीढ़ियां बना कर भक्तगणों की सुविधा के लिए बीच में रैलिंग लगा दी गई है। मुख्य मंदिर का प्रार्थना हाल 24 स्तंभों पर नए स्वरूप में पुन: निर्मित किया गया है। इधर उधर बिखरे शिल्प खंडों को सुरक्षित एक कक्ष में रख दिया गया है। आने वालों के लिए बैठने और शीतल पेयजल की व्यवस्था की गई है।

मंदिर परिसर में प्रवेश करने पर बाईं ओर मध्य में भूरे पत्थरों से निर्मित मुख्य शिव मंदिर नजर आता है। मंदिर में गर्भगृह ,अंतराल एवम् आराधना मंडप बने हुए हैं। मन्दिर में पाद, गर्भगृह की दीवारें,छज्जा एवम् सुच्याकार शिखर नज़र आते हैं। गर्भगृह के अंदर का भाग आयताकार विन्यास पर बना है जिसमें शिवलिंग की पूजा की जाती है। पाद भाग पर सरल अलंकरणों से सज्जित और स्तम्भों पर खड़ी प्रतिमाएं नज़र आती हैं।। छत एवं छज्जों के अलंकरण देखते ही बनते हैं। शिखर के आधार की वास्तु-योजना, गर्भगृह के आंतरिक विन्यास पर ही आधारित है तथा आमलक और कलश के श्रृंगों से युक्त है। गर्भगृह का द्वार त्रिशाखा प्रकार का है, इसके ऊपर ललितासन में चतुर्मुखी शिव दंपत्तियों के दोनों किनारों पर चतुर्मुखी ब्रह्मा एवं विष्णु की प्रतिमाएं बनाई गई हैं। आयताकार अन्तरालय के दोनों ओर की दीवारों पर साधारण ताख निर्मित हैं। अंतरालय की समतल छत पर उथले कमल-पुष्प की आकृति तथा आस-पास संगीतज्ञों एवं प्रणयरत प्रतिमाएं उत्कीर्ण की गई हैं। शिखर का ऊपरी भाग अत्यंत जीर्णशीर्ण स्थिति में हैं।

मंदिर की बाहरी दीवारों पर दिखाई देने वाली देव एवं दिक्पाल प्रतिमाएं आज नज़र नहीं आती हैं।

मंदिर के सामने पेड़ के नीचे चबूतरे पर गणेश जी की प्रतिमा, शिवलिंग तथा चबूतरे के नीचे बड़ी नंदी प्रतिमा विराजित है। मंदिर के पीछे के लघु मंदिर में भी शिव विराजित हैं तथा दाईं और दो भग्न मंदिरों के मध्य एक टीन शेड में हनुमान जी की प्रतिमा पधराई गई है जिसकी पूजा की जाती है। परिसर में एक सुंदर कलात्मक छतरी और कुछ चबूतरे और तिबारियों में नागा साधुओं का डेरा है। यह स्थल गिरी संप्रदाय का साधना स्थल रहा है। इसमें मठाधीश की नियुक्ति बनारस से की जाती थी। इस संप्रदाय के गुसाई लोगों की देखरेख में ही यह मंदिर आज तक पूजांतर्गत है। पीछे के परिसर में भी एक भग्न मंदिर है।

प्रति वर्ष महाशिवरात्रि पर्व पर मेले का आयोजन किया जाता है। श्रद्धालु स्नान कर भगवान शिव की पूजा अर्चना कर पुण्य कमाते हैं। सर्दियों में मठ के सामने बहती चंदलोई नदी का दृश्य एवं धूप सकते व पानी में तैरते मगरमच्छ देखने का भी आनद लिया जा सकता हैं। नदी किनारे नहाने के पक्के घाट बना दिए गए हैं।


– डॉ.प्रभात कुमार सिंघल
लेखक एवम् पत्रकार
कोटा

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