Friday, November 22, 2024
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चौपाल में स्वास्थ्य, संगीत और साहित्य की त्रिवेणी

मुंबई के रचनाधर्मियों की चौपाल हर बार की तरह अनूठी, मजेदार और विविध स्वाद वाली होती है। यहाँ मौजूद श्रोताओं को हर बार एक नया अनुभव मिलता है। जब चौपाल में अतुल तिवारी जी और शेखर सेन नहीं होते हैं तो परदे के पीछे श्री अशोक बिंदलजी सूत्रधार के रूप में चौपाल की रसधारा यथावत बनाए रखते हैं। इस बार चौपाल की सूत्रधार थी इला जोशी और उन्होंने पहली बार में ही चौपाल का सूत्र संचालन जिस तरह से किया उससे अतुलजी और शेखरजी की कमी नहीं खली।

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इलाजी ने जाने माने कवि स्व. चन्द्रकांत देवताले की कविता’ क्या मुझे और कुछ कहना होगा’ से करते हुए श्रोताओं को एक अलग तरह की कविता की दुनिया से रू-ब-रू करवाया।

इस बार चौपाल में रिलायंस के वरिष्ठ अधिकारी डॉ. पीयूष सक्सेना ने खुद को स्वस्थ रखने के ऐसे नुस्खे दिए कि डॉक्टरों के मकड़जाल में उलझकर अपनी शारीरिक और आर्थिक सेहत से समझौता करने वाले लोगों को मानों संजीवनी बूटी मिल गई हो।

डॉ. पीयूष सक्सेना ने जिस आत्मविश्वास और अधिकार के साथ शरीर को स्वस्थ रखने वाली क्लीनज़िंग थैरेपी की जानकारी दी वह सबके लिए रहस्य रोमाँच और सुकून का विषय थी। इस थैरेपी से लाभ लेने वाली फिल्म अभिनेत्री संभावना सेठ व कुनिका जी ने जब मंच पर आकर बताया कि किस तरह से क्लीनज़िंग थैरेपी ने उनको एक नया जीवन दिया तो श्रोताओं के लिए ये कुतुहल का विषय बन गई। सब ये जानकर हैरान थे कि मात्र 400-500 रुपये में हर कोई अपनी किसी भी गंभीर से गंभीर बीमारी का इलाज कर सकता है।

डॉ. पीयूष सक्सेना ने बताया कि 15 साल पहले मैं भयंकर बीमार हो गया, मेरी कंपनी ने कहा कि जहाँ जैसा संभव हो इलाज कराओ, खर्च की फिक्र मत करो। जबकि मेरी हालत ये थी कि इनर्जी लेवल बहुत कम हो चुका था, मेरे लिए 10 दिन भी जीवित रहना मुश्किल था। लेकिन इस क्लीनज़िंग थैरेपी की बदौलत मैं न केवल अपना इलाज कर पाया बल्कि इसके बाद आज तक बीमार नहीं पड़ा और यहाँ आप लोगों के बीच खड़ा हूँ। साथ ही हजारों लोगों ने इस क्लीनज़िंग थैरेपी को अपनाकर अपना इलाज कर गंभीर से गंभीर बीमारियों से मुक्ति पा ली। मैने इस क्लीनज़िंग थैरेपी का प्रयोग खुद पर करने के बाद पूरे परिवार पर किया। डॉ. सक्सेना बताते हैं कि मैं इस थैरेपी के लिए न कोई फीस लेता हूँ, न कोई डोनेशन लेता हूँ और न ही किसी भी तरह के प्रोडक्ट का प्रचार करता हूँ। इससे अगर किसी व्यक्ति को अपनी बीमारी से मुक्ति मिलती है ससे जो आनंद मिलता है वही मेरी सबसे बड़ी फीस होती है।

डॉ. पीयूष सक्सेना की वेब साईट https://www.drpiyushsaxena.com/cleanses/kidney.php पर क्लीनज़िंग थैरेपी के बारे में विस्तार से जान सकते हैं.

उन्होंने डॉक्टरों, लेबोरेटरियों के मकड़जाल को बहुत ही रोचक अंदाज़ में समझता हुए श्रोताओं से संवाद करते हुए पूछा कि अगर आपका स्कूटर खराब हो जाए या पंक्चर हो जाए तो आप क्या करेंगे। श्रोताओं ने कहा हम मैकेनिक के पास जाएंगे। इस पर पीयूष सक्सेना ने कहा कि अगर स्कूटर का पंक्चर या उसकी छोटी सी तकनीकी खराबी के लिए आपको कहा जाए कि इसके टायर, ट्यूब, प्लग की जाँच कराके लेबोरेटरी से रिपोर्ट आने के बाद इसको ठीक करेंगे तो आप क्या करेंगे। जाहिर है श्रोताओं ने अक स्वर में जवाब दिया, ऐसा नहीं करेंगे। इस पर डॉ. पीयूष सक्सेना ने कहा हम अपने शरीर के साथ तो यही कर रहे हैं। हम अपनी बीमारी को लेकर एक दुष्चक्र में फँस जाते हैं।

उन्होंने बताया कि जब आप किसी डॉक्टर के पास जाते हैं तो वो दुनिया भर के टेस्ट लिख देता है और जब रिपोर्ट आती है तो वो ये देखता है कि आपकी जेब में कितना दम है ताकि उसके हिसाब से इलाज शुरु करे। जबकि सोचनीय बात ये है कि एलोपैथी किसी भी बीमारी का इलाज नहीं करती बल्कि उससे आराम देती है। उन्होंने बताया कि इस क्लीनज़िंग थैरेपी से 28 तरह की बीमारियों का इलाज किया जा सकता है। क्लीनजिंग थैरेपी से आप किडनी की बीमारी, ब्लड शुगर, जोड़ों के दर्द, थायराइड, यूरिनल इन्फेक्शन, डिप्रेशन, शरीर में पानी जमा होना, लीवर संबंधी बीमारियां, मोटापा, एनीमिया, दमा, नाक, कान, गले संबंधी रोग, सिर दर्द माइग्रेन, वेरीकोस वेंस, सफेद दाग सहित कई बीमारियों से हमेशा हमेशा के लिए मुक्ति पा सकते हैं।

डॉ. पीयूष सक्सेना का वीडियो https://www.drpiyushsaxena.com/cleanses/kidney.php देखकर भी आप इसके बारे में विस्तार से जान सकते हैं

उन्होंने कहा कि हमारी अधिकांश बीमारियाँ पका हुआ खाना खाने से होती है। हम अब भले ही अपनी ये आदत नहीं बदल सकते, लेकिन इससे होने वाली बीमारी का इलाज क्लीनज़िंग थैरेपी से कर सकते हैं। क्लीनज़िंग थैरेपी से किडनी, लीवर, ह्रदय से लेकर घुटनों की बीमारी का इलाज शर्तिया तरीके से होता है। क्लीनज़िंग थैरेपी बीमारी का इलाज नहीं है बल्कि शरीर को स्वस्थ रखने की सहज व सरल विधि है। उन्होंने बताया कि अगर आपको पीठ का दर्द है तो उसका एक्सरे, एमआरई, सीटी स्कैन सब करवाने के बाद डॉक्टर इलाज करता है, जबकि पीठ के दर्द में इन टेस्ट और इसकी रिपोर्टों का कोई मतलब ही नहीं है। ये शरीर में कैल्सियम की कमी से होता है।

डॉ. पीयूष सक्सेना ने कहा कि बढ़ते प्रदूषण, पैरासाइट और बिगड़ी जीवन शैली को तमाम बीमारियों की जड़ है। हमारी इसी जीवन शैली की वजह से शरीर में टॉक्सिन्स् जमा होते रहते हैं, जिससे शरीर के अंग सही ढंग से काम नहीं कर पाते और हम बीमार हो जाते हैं। अगर इन टॉक्सिन्स् को शरीर से बाहर निकाल दिया जाए तो लगभग 90 प्रतिशत स्वास्थ्य समस्याओं का इलाज हो जाता है। शरीर से टॉक्सिन्स् बाहर निकालने की ये प्रक्रिय क्लींजंग थेरेपी है। क्लींनजिंग थेरेपी में हमारे दैनिक जीवन में उपयोग की जाने वाली साधारण सी चीजों का प्रयोग किया जाता है। जिनके माध्यम से शरीर के वि,ले तत्वों की सफाई की जाती है। उन्होंने कहा कि जीवन शैली और प्रदूषित चीजों की वजह से किडनी व लीवर गंभीर रूप से प्रभावित होते हैं। परंतु इन दोनों अंगों की खूबी यह है कि ये तीन-चौथाई गड़बड़ी की दशा में भी अपना काम करते रहते हैं, इसलिए हमें इनके बीमार होने का पता ही नहीं चलता है। उन्होंने चर्चा के दौरान शरीर और चिकित्सा विज्ञान से जुड़ी कई गंभीर बातें बहुत मजेदार अंदाज में प्रस्तुत पूरी चर्चा को रोचक और यादगार बना दिया। सत्र समापन के बाद आपने श्रोताओं की जिज्ञासाओं का समाधान भी बहुत रोचक अंदाज़ में किया।

चौपाल किसी एक विषय पर ही टिक कर नहीं रह जाती, साहित्य और संगीत के बगैर चौपाल पूरी होती ही नहीं।

कार्यक्रम का शुभारंभ जाने माने अभिनेता श्री विष्णु शर्मा द्वारा संगीतकार सलिल चौधरी पर प्रस्तुत संस्मरण से हुआ। श्री विष्णु शर्मा ने बताया कि मैं 1978 में तब दिल्ली आकाशवाणी में था और मुझे संगीतकार सलिल चौधऱी का साक्षात्कार करने का मौका मिला। इस साक्षात्कार के लिए मुझे 125 रुपये मिले थे। वे गोल मार्केट में अपने मित्र के यहाँ ठहरे थे। जब मैने उन्हें बताया कि मुझे आकाशवाणी के लिए बात करना है तो वे बात करने के लिए राजी हो गए। मुझे ये जानकर आश्चर्य हुआ कि वे गाते गुनगुनाते और हारमनोनियम बजाते मुझसे बराबर बात करते रहे। वे धुन भी बना रहे थे और मुझे बात भी किए जा रहे थे। उन्होंने मुझे सातिब सुल्तानपुरी की ग़ज़ल पढने को दी इसके बाद इसके हर शब्द का हिंदी में मतलब पूछते रहे।

इस अवसर पर ‘कथाकथन’ के माध्यम से बच्चों को अपनी भाषाओं के संस्कार देने के प्रयास में लगे समूह की रेखा जी ने कहा कि हम बच्चों से अपनी भाषा छीनते जा रहे हैं। अगर हमने बच्चों को अपनी भाषा बोलने ,मझने के संस्कार नहीं दिए तो आने वाले कुछ सालों में हम अपनी ही भाषा भूल जाएंगे। स्कूलों में बच्चों को अपनी भाषा में नहीं बोलने देते। माँ-बाप भी जबरन बच्चों से अंग्रेजी में बात करते हें। हमें बच्चों को अपनी मातृभाषा के प्रति सम्मान व गौरव का भाव पैदा करना चाहिए। उन्होंने बताया कि हमारे समूह से जुड़े लोग बच्चों के बीच जाकर उन्हें अलग अलग भाषाओं में कहानियाँ सुनाते हैं।

सुश्री मुदिता रस्तोगी ने अपनी कविताएं प्रस्तुत कर श्रोताओं की वाहवाही लूटी।

इस अवसर पर विज्ञापन की दुनिया की जानी मानी हस्ती श्री जमील गुलरेज़, सुश्री इला जोशी और श्री शेखर शंकर ने 1948 में लिखी कृष्ण चंदर की कहानी ‘अमृतसर आज़ादी के पहले, अमृतसर आज़ादी के बाद’ इतने रोचक, प्रभावी तरीके से प्रस्तुत की कि श्रोताओं को इस कहानी में नाटक का आनंद लिया। इस कहानी के माध्यम से आजीदी के पहले और आज़ादी के बाद का हमारा घिनौना रूप दिखाया गया था।

इस कहानी को सुनते ही श्री कुलदीप सिंह जी से नहीं रहा गया और उन्होंने आकर भारत के विभाजन के दौरान का रोचक किस्सा बयाँ किया। उन्होंने बताया कि हम अमृतसर में रहते थे, जब विभाजन का माहौल था तो हमारे साथ एक मुस्लिम बंदूकर लेकर साथ साथ चला करता था। बैसाखी पर जब भारत और पाकिस्तान की सीमा खोली गई तो हम अपने पाकिस्तान स्थित गाँव में गए तो हमारे पड़ोस के लोगों ने बताया कि आपके घर पर ताला लगा है और ये घर अभी भी सुरक्षित है, आप चाहे जब यहाँ आकर रह सकते हैं। हम तब जब भी जाते थे पाकिस्तान के 8-10 लोगों के लिए गिफ्ट लेकर जाते थे और बदले में एक ट्रंक भरकर गिफ्ट लेकर भी आते थे।

कार्यक्रम का संचालन करते हुए सुश्री इला जोशी ने जाने माने अभिनेता श्री राजेन गुप्ता को आमंत्रित किया तो उन्होंने धूमिल की कविताओं का इतना दमदार वाचन किया कि श्रोतागण कविता के शब्दों और राजेन गुप्ता जी धारदार आवाज़ के व्यामोह में खो से गए।

उन्होंने बताया कि कविता से मेरा रिश्ता धूमिल की कविताएँ पढ़ने के बाद ही हुआ। मैं तो विज्ञान का छात्र था। जब मैने पहली बार अंधायुग का निर्देशन किया तो मुझे पहली बार कविता और शब्दों की ताकत पता चली। शब्द ड्रामे से ज्यादा असर पैदा करते हैं। उन्होंने धूमिल की 50 साल पहले लिखी कविता मोचीराम को सशक्त अंदाज़ में प्रस्तुत किया।

प्रस्तुत है धूमिल की ये अमर रचना…

राँपी से उठी हुई आँखों ने मुझे
क्षण-भर टटोला
और फिर
जैसे पतियाये हुये स्वर में
वह हँसते हुये बोला-
बाबूजी सच कहूँ-मेरी निगाह में
न कोई छोटा है
न कोई बड़ा है
मेरे लिये,हर आदमी एक जोड़ी जूता है
जो मेरे सामने
मरम्मत के लिये खड़ा है।

और असल बात तो यह है
कि वह चाहे जो है
जैसा है,जहाँ कहीं है
आजकल
कोई आदमी जूते की नाप से
बाहर नहीं है
फिर भी मुझे ख्याल है रहता है
कि पेशेवर हाथों और फटे जूतों के बीच
कहीं न कहीं एक आदमी है
जिस पर टाँके पड़ते हैं,
जो जूते से झाँकती हुई अँगुली की चोट छाती पर
हथौड़े की तरह सहता है।

यहाँ तरह-तरह के जूते आते हैं
और आदमी की अलग-अलग ‘नवैयत’
बतलाते हैं
सबकी अपनी-अपनी शक्ल है
अपनी-अपनी शैली है
मसलन एक जूता है:
जूता क्या है-चकतियों की थैली है
इसे एक आदमी पहनता है
जिसे चेचक ने चुग लिया है
उस पर उम्मीद को तरह देती हुई हँसी है
जैसे ‘टेलीफ़ून ‘ के खम्भे पर
कोई पतंग फँसी है
और खड़खड़ा रही है।

‘बाबूजी! इस पर पैसा क्यों फूँकते हो?’
मैं कहना चाहता हूँ
मगर मेरी आवाज़ लड़खड़ा रही है
मैं महसूस करता हूँ-भीतर से
एक आवाज़ आती है-’कैसे आदमी हो
अपनी जाति पर थूकते हो।’
आप यकीन करें,उस समय
मैं चकतियों की जगह आँखें टाँकता हूँ
और पेशे में पड़े हुये आदमी को
बड़ी मुश्किल से निबाहता हूँ।

एक जूता और है जिससे पैर को
‘नाँघकर’ एक आदमी निकलता है
सैर को
न वह अक्लमन्द है
न वक्त का पाबन्द है
उसकी आँखों में लालच है
हाथों में घड़ी है
उसे जाना कहीं नहीं है
मगर चेहरे पर
बड़ी हड़बड़ी है
वह कोई बनिया है
या बिसाती है
मगर रोब ऐसा कि हिटलर का नाती है
‘इशे बाँद्धो,उशे काट्टो,हियाँ ठोक्को,वहाँ पीट्टो
घिस्सा दो,अइशा चमकाओ,जूत्ते को ऐना बनाओ
…ओफ्फ़! बड़ी गर्मी है’
रुमाल से हवा करता है,
मौसम के नाम पर बिसूरता है
सड़क पर ‘आतियों-जातियों’ को
बानर की तरह घूरता है
गरज़ यह कि घण्टे भर खटवाता है
मगर नामा देते वक्त
साफ ‘नट’ जाता है
शरीफों को लूटते हो’ वह गुर्राता है
और कुछ सिक्के फेंककर
आगे बढ़ जाता है
अचानक चिंहुककर सड़क से उछलता है
और पटरी पर चढ़ जाता है
चोट जब पेशे पर पड़ती है
तो कहीं-न-कहीं एक चोर कील
दबी रह जाती है
जो मौका पाकर उभरती है
और अँगुली में गड़ती है।

मगर इसका मतलब यह नहीं है
कि मुझे कोई ग़लतफ़हमी है
मुझे हर वक्त यह खयाल रहता है कि जूते
और पेशे के बीच
कहीं-न-कहीं एक अदद आदमी है
जिस पर टाँके पड़ते हैं
जो जूते से झाँकती हुई अँगुली की चोट
छाती पर
हथौड़े की तरह सहता है
और बाबूजी! असल बात तो यह है कि ज़िन्दा रहने के पीछे
अगर सही तर्क नहीं है
तो रामनामी बेंचकर या रण्डियों की
दलाली करके रोज़ी कमाने में
कोई फर्क नहीं है
और यही वह जगह है जहाँ हर आदमी
अपने पेशे से छूटकर
भीड़ का टमकता हुआ हिस्सा बन जाता है
सभी लोगों की तरह
भाष़ा उसे काटती है
मौसम सताता है
अब आप इस बसन्त को ही लो,
यह दिन को ताँत की तरह तानता है
पेड़ों पर लाल-लाल पत्तों के हजा़रों सुखतल्ले
धूप में, सीझने के लिये लटकाता है
सच कहता हूँ-उस समय
राँपी की मूठ को हाथ में सँभालना
मुश्किल हो जाता है
आँख कहीं जाती है
हाथ कहीं जाता है
मन किसी झुँझलाये हुये बच्चे-सा
काम पर आने से बार-बार इन्कार करता है
लगता है कि चमड़े की शराफ़त के पीछे
कोई जंगल है जो आदमी पर
पेड़ से वार करता है
और यह चौकने की नहीं,सोचने की बात है
मगर जो जिन्दगी को किताब से नापता है
जो असलियत और अनुभव के बीच
खून के किसी कमजा़त मौके पर कायर है
वह बड़ी आसानी से कह सकता है
कि यार! तू मोची नहीं ,शायर है
असल में वह एक दिलचस्प ग़लतफ़हमी का
शिकार है
जो वह सोचता कि पेशा एक जाति है
और भाषा पर
आदमी का नहीं,किसी जाति का अधिकार है
जबकि असलियत है यह है कि आग
सबको जलाती है सच्चाई
सबसे होकर गुज़रती है
कुछ हैं जिन्हें शब्द मिल चुके हैं
कुछ हैं जो अक्षरों के आगे अन्धे हैं
वे हर अन्याय को चुपचाप सहते हैं
और पेट की आग से डरते हैं
जबकि मैं जानता हूँ कि ‘इन्कार से भरी हुई एक चीख़’
और ‘एक समझदार चुप’
दोनों का मतलब एक है-
भविष्य गढ़ने में ,’चुप’ और ‘चीख’
अपनी-अपनी जगह एक ही किस्म से
अपना-अपना फ़र्ज अदा करते हैं।

चौपाल का समापन श्रीधर नागराज द्वारा प्रस्तुत मुक्तिबोध की कविताओं से हुआ।

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