Saturday, April 27, 2024
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स्वाधीनता के लिये जीवन को दाँव पर लगाने वाली उज्ज्वला मजुमदार

देश को स्वाधीन करवाने के लिए हमारे देश के वीर जवानों ने अपने जीवनों की आहुतियाँ दे दी| जब भाई जीवन का बलिदान कर रहे हों तो बहिनें कैसे पीछे रह सकतीं थीं? अत: बहिनों ने भी बली के इस मार्ग को पकड़ कर अपने भाइयों का अनुगमन किया| इस प्रकार से अपने आप को जिन बहिनों ने बली के इस श्रेष्ठ मार्ग पर अपना कदम आगे बढाया, उन बहिनों में उज्ज्वला मजूमदार भी एक थी| आओ आज हम देश की स्वाधीनता के लिए अपार कष्टों को सहन करने वाली उज्ज्वला मजूमदार का कुछ परिचय प्राप्त करने का प्रयास करें|

उज्ज्वला मजूमदार का सम्बन्ध अविभाजित बंगाल के ढाका से था, जो देश का बंटवारा होने के कारण पूर्वी पाकिस्तान का भाग बन गया था और बाद में यह बंगला देश की राजस्धानी बन गया| यहाँ पर एक वीर पुरुष होते थे, जो क्रांति के पथ पर चलते हुए देश की स्वाधीनता दिलाने का प्रयास करते हुए नित्य अपार कष्टों से निकलते रहते थे| इसी क्रांति वीर के यहाँ २१ नवम्बर १९१४ ईस्वी को एक कन्या ने जन्म लिया| इस कन्या का नाम उज्ज्वला रखा गया क्योंकि इस के परिवार मजूमदार जाति से सम्बन्ध रखते थे, इस कारण यह बालिका उज्ज्वला मजूमदार के नाम से जानी जाने लगी|

जब किसी परिवार में एक व्यक्ति देश का दीवाना हो जाता है तो उसके परिवार को देश के लिए कुछ करने, देश के लिए संकट सहन करने और देश के लिए मर मिटने की शिक्षा स्वयमेव ही मिल जाया करती है| एसा ही हमारी कथानायिका उज्ज्वला मजूमदार के साथ भी हुआ| वह नित्य अपने पिता से देश के लिए किये जा रहे कार्यों के सम्बन्ध में सुनती रहती थी| पिता को किन कष्टों का सामना करना पडा, कितने दिन उनको भोजन करने का अवसर नहीं मिला, किस प्रकार वह अंग्रेज पुलिस को चकमा दिया करते थे, कहाँ से गोला बारूद खरीदते थे अथवा किस परकर शस्त्रों की आपूर्ति होती थी और किस प्रकार अंग्रेज को देश से भगाने के लिए कार्य करना होता है, यह सब कुछ उसने बाल्यकाल में ही अपने पिता के माध्यम से सीख लिया था| यही कारण था कि उसमे वीरता के गुण बाल्यावस्था में ही आ गए थे और वह बाल्यकाल में ही देश के दीवानों की सहायता करने लग गई थी| बचपन से ही वह क्रांतिकारी विचारों की बन गई थी और देश की आजादी के लिए अनेक गतिविधियों में बढ़ चढ़ कर भाग भी लेने लगी थी|

उज्जवला की इन गतिविधियों के कारण उसके बाल्यकाल में ही उसका नाम क्रांतिकारी गतिविधियों में बढ चढ़ कर भाग लेने वाली नारियों में विशेष रूप से मोटे शब्दों में अंकित हो चुका था| वह एक इस प्रकार की कन्या थी जो कमर में एक साथ तीन तीन पिस्तौलें लटका कर इधर उधर गति किया करती और अपनी इन गतिविधियों को करते हुये वह बड़ी सरलता से पुलिस को चकमा भी दे जाया करती थी| इस प्रकार पुलिस को चकमा देने की कला में भी वह पूर्णतया प्रवीण हो चुकी थी| यह सब उसके लिए एक साधारण सा खेल ही बन गया था, जिसे खेलते हुए उसे अत्यधिक आनन्द आता था| ज्यों ज्यों समय बीतता गया वह क्रान्ति के कार्यों में अपनी रूचि को बढाती ही चली गई| इस कारण वह शीघ्र ही ˋबंगाल वालंटियर्सˊ की सदस्य बन गई| यह संस्था अत्यंत ही उग्र विचारों की थी| इस प्रकार उज्ज्वला मजूमदार देश की स्वाधीनता के कार्यो के क्षेत्र में एक अत्यंत उग्र विचारों की प्रमुख संस्था की सदस्य के रूप में उभर कर सामने आई| इस संस्था की सदस्य होने के बाद उसका संपर्क एक अन्य स्वाधीनता प्रेमी संस्था से हुआ, जिसका नाम ˋदीपाली संघˊ था| वह इस की भी सदस्य बन गईं| इन्हीं दिनों ˋयुगांतर दलˊ के नाम से एक अन्य संस्था भी देश की स्वाधीनता के लिए कार्य शील थी| उज्ज्वला मजूमदार ने अब इस संस्था की भी सदस्यता प्राप्त कर ली|

यह तीनों की तीनों संस्थाएं देश को स्वाधीनता प्राप्त कराने के लिए निरंतर कार्य कर रहे सदस्यों से भरपूर संस्थाएं थीं और प्रतिक्षण क्रान्ति की योजनायें बनाती ही रहतीं थीं| इनका एकमात्र उद्देश्य था की वह येन कें प्रकारेन अंग्रेजी शासन से मुक्ति प्राप्त करें| वह अंग्रेजी शासन को उखाड़ फैंकने के लिए कृत संकल्प थीं| इस प्रकार तीन तीन क्रांतिकारी दलों की सदस्यता लेने से ही ज्ञात हो जाता है कि उज्ज्वला मजूमदार कितनी उग्र क्रांतिकारी महिला थी| इन संस्थाओं की सदस्यता लेने से उज्ज्वला का परिचय अनेक क्रांतिकारियों से हुआ, विशेष रूप से क्रांतिकारी वीरांगना प्रीतिलता और वीरांगना कल्पनादत्त से उसका गंभीर संपर्क हुआ| वह भी उज्ज्वला मजूमदार की भाँति ही संकटों में आगे बढ़ने में भी आनंदित होतीं थीं| दोनों ने उग्र गतिविधियों की और कुछ ल्रंती का कार्य संपन्न संपन्न किये तो वह दोनों ही अंग्रेज सरकार के हाथ आ गईं| वह जानती थीं कि अब अंग्रेज सरकार की कथोर्ता की नीति तथा गंदे व्यववहार उनके साथ होने वाला है, जिसका सामना करना एक महिला के लिए अत्यधिक कठिन होता है क्योंकि अक महिला के लिए केवल सजा हिनहिन होती, सजा को तो वह सरलता से हंसते हुए भुगत लेती है किन्तु जो उस का सतीत्व लूटने का प्रयास किया जाता है, उसे वह सहन्नहीं कर पाती, यह विचार आते ही प्रीतीलता ने अंग्रेज की क्रूरता से बचने के लिए सैनाईट खा कर अपना जीवन देश की बलिवेदी पर बलिदान कर दिया| कल्पनादता ने कुछ अधिक बुद्धिमत्ता से काम लिया| इस बुद्धिमता के कारण ही वह गोलियों की उस बौछार से बच निकली, जो पुलिस द्वारा उसे पकड़ने के लिए की जा रही थी| बच तो निकलने में वह सफल रही किन्तु कुछ ही समय पश्चातˎ वह पुलिस के शिकंजे में आ गई और उसे एक लम्बी जेल की सजा सुना दी गई|

देश को स्वाधीन कराने के लिए क्रान्ति वीरों के पास शस्त्रों की कमीं को अनुभव किया गया और इस कमीं को पूरा करने के लिए १९३० में चटगाँव शस्त्रागार को लूटने की योजना बनाई गई| इस काण्ड के बाद अंग्रेज सरकार का अत्यंत उग्र रूप सामने आया और इस के आदेश से जिस प्रकार का दमन चक्र अंग्रेज सरकार ने आरम्भ किया, उसके कारण पूरा बंगाल ही काँप गया और इसके लोगों में प्रतिक्रया की अग्नि भीषण रूप लेकर सुलगने लगी| इसका यह परिणाम हुआ कि अंग्रेज की इन दमनकारी गतिविधियों का बदला लेने की आग क्रांतिवीरों के अन्दर जल उठी और उनमे बदला लेने की भावना बलवती हुई| बदले की इस भावना से अनेक संगठन क्रियाशील हो गए| इन संगठनों के युवा कार्यकर्ताओं ने अपने सर पर कफ़न बाँध लिया, अपने प्राणों को हथेली पर लिए प्रतिक्षण कुछ करने के लिए तैयार हो गए| इस प्रकार बदले की आग में जलने वाले संगठनों में एक संगठन का नाम था ˊबंगाल वालंटियर्सˋ इस संगठन के एक दल ने दार्जिलिंग में गवर्नर एंडर्सन, जो इन अत्याचारों का केंद्र था, को गोली मार कर इसका अंत करने की योजना बना डाली| इस योजना की पूर्ति के लिए वह उचित अवसर की प्रतीक्षा करने लगे|

जब योजना को पूर्ण करने के लिए सब लोग प्रयास करते हैं तो अवसर भी शीघ्र ही आ जाया करता है और हुआ भी एसा ही| शीघ्र ही उन्हें पता चला कि ८ मई १९३४ को गवर्नर एंडर्सन लेवंग रेसकोर्स में आने वाला है| बस फिर क्या था, तत्काल योजना को कार्यरूप देने के लिए योजना बना डाली और इस योजना के अंतर्गत युवा क्रांतिकारी वीरों ने अपनी पिस्तौलों में गोलियां भर लीं| अब इस योजना की पूर्ति के लिए भवाली भट्टाचार्य, क्रन्तिकारी रवि, वीर मनोरंजन बनर्जी सहित उज्ज्वला मजूमदार भी अपनी भरी हुई पिस्तौलें ले कर अपने गंतव्य की और रवाना हो गईं| गंतव्य पर पहुंच कर मनोरंजन बनर्जी ने भवानी भट्टाचार्य और वीर रवि को इस मैदान के एक सुरक्षित भाग में तैनात कर दिया, जहां से आसानी से गोली चला कर गवर्नर को मारा जा सकता था, शेष दोनों को पुलिस पहले से ही खोज रही थी, इस लिये पुलिस की आँख से बचने के लिए यह दोनों सिलीगुडी लौट आये|

ज्यों ही गवर्नर ने इस मैदान में प्रवेश किया, उस पर गौलियाँ बरसा दी गईं| गोलियां चली कुछ सफलता भी मिली किन्तु जितनी सफलता को पाने के लिए यह कार्य किया गया था, उतनी सफलाता नहीं मिल पाई| इस गोली काण्ड में भाग न लेने पर तथा घटना स्थल से बहुत दूर सिलीगुड़ी में होने पर भी मनोरंजन बनर्जी सहित उज्ज्वला मजूमदार, इन दोनों के नाम से पुलिस ने गिरफ्तारी के लिए वारंट निकाल दिए| अत: उज्ज्वला ने भेष बदलकर पुलिस को धत्ता बताते हुए वहां से निकल गई और इधर उधर भटकते हुए क्रान्ति के कार्यों को करती रही| अंत मे एक दिन पुलिस के हाथ लग गई और बंदी बना ली गईं| इसकी गतिविधियों तथा दोष की पहचान करने और इसे दण्ड देने के लिए अंग्रेज सरकार ने एक स्पेशल ट्रिब्यूनल का गठन किया| इस ट्रिब्यूनल में उज्ज्वला के विरुद्ध मुकद्दमा चलाया गया| यह कोई मुकद्दमा नहीं मात्र मुकद्दमें का ढोंग मात्र ही था| जिस अपराध को उज्ज्वल्ला मजुमदार ने किया ही नहीं था, झुथी साक्षियां खडी कर पूर्व निर्धारित दण्ड की घोषणा करते हुए उज्ज्वला को बीस वर्ष के कठोर कारावास का दण्ड सुनाया गया तथा १८ मई १९३४ को उसे बन्दी बनाकर कुर्शिया जेल भेज दिया गया और कुछ ही समय बाद इसे पहले दार्जिलिंग और फिर मिदनापुर की जेलों में भेज दिया गया|

दोष झूठा था, उसे झूठ में फंसा कर अकारण ही दण्ड दिया गया था, जो वास्तव में अंग्रेज सरकार का एक अपराध था किन्तु तो भी इसे स्वीकार करते हुए इसे निरस्त करने के लिए अपील की गई| इस अपील का यह परिणाम हुआ कि उसकी यह सजा कुछ अल्प सी कम करते हुए इसे चोदह साल कर दिया गया किन्तु था तो अन्याय ही, इस कारण गांधी जी ने इसे रिहा करने की आवाज उठाई और इस का यह परिणाम हुआ कि जेल जाने के पश्चातˎ पांच वर्ष ही हुए थे कि १९३९ में उज्ज्वला मजुमदार को रिहा कर दिया गया|

क्रान्तिकारियों के लिए वह समय अत्यंत कठिन और परीक्षा की घड़ी का होता है, जब वहजेल से छूटते हैं और फिर कुछ समय के लिए पुलिस की नजरें बदलने के लिए निठल्ले बैठ जाते हैं| इस अवसर पर सब क्रान्तिकारी अत्यधिक दु:खी और परेशान रहते हुए अपने समय को काटते हैं| उनसे अपनी आँखों के सामने किसी पर भी अत्याचार होते हुए देखा नहीं जाता और यदि इस अत्याचार को देखकर वह चुप रहते हैं तो वह अपने आप को कायर ओर बुजदिल समझते है| अत: यह उनके लिए कठिनता के साथ साथा एक परिक्षा की घड़ी भी होती है, जिसे कोई ही वीर लान्घ पाता है अन्यथा वह पुन: अपने उद्देश्य की पूर्ति के लिए लग जाता है और पकड़ा जाता है| इस समय सब क्रान्तिकारी खाली निठल्ले बैठे हुए दु:खी हो रहे थे| वह न तो अन्य कोई कार्य ही चाहते थे, न ही किसी अन्य कार्य मे उनकी रूचि ही थी ओर न ही कोई अन्य कार्य वः जानते ही थे, इस कारण बहुत परेशान से रहते थे| इतना ही नहीं जेल में जाने के कारण समाज को पता चल गया था कि वह देश के दीवाने हैं, इस कारण न तो शासन तंत्र अर्थातˎ पुलिस ही उन्हें सुख से रहने दे रही थी और न ही समाज का एक वर्ग उन्हें सुख से रहने दे रहा था तथा अनेक लोगों को सहानुभूति होते हुये भी उनका साथ नहीं दे पा रहे थे|

जब यह क्रांति की वीरांगना इस अवस्था में बेकार बैठी थी तो उन्हीं दिनों महात्मा गांधी जी ने भारत छोडो आन्दोलन की घोषणा कर दी| यह आन्दोलन आरम्भ होते ही देश भर में अंग्रेज के विरोध में आक्रोशित होकर कांग्रेस के कार्यकर्ता आंदोलित होकर अंग्रेज के विरोध में उठ खड़े हुए तथा स्थान स्थान पर जुलूस निकलने लगे| जब उज्ज्वला मजूमदार कुछ भी नहीं कर पा रहीं थीं तो यह आन्दोलन उनके लिए डूबते को तिनके का सहारा बन कर आया और वह भी इस आन्दोलन से जुड़ कर सक्रीय रूप से अंग्रेज का विरोध करने लगी| ज्यों ही उज्ज्वला मजूमदार ने कांग्रेस के इस आन्दोलन के लिए अपनी गतिविधियाँ आरम्भ कीं त्यों ही अंग्रेज की पुलिस इन के विरोध में हरकत में आ गई| परिणाम यह हुआ कि इसे तत्काल भारत रक्षा कानून के अन्तर्गत बंदी बना लिया गया| अत: इसे बंदी बना कर प्रजीडैन्सी जेल में बंद कर दिया गया| वह लगभग डेढ़ वर्ष तक इस जेल में रहीं और १९४६ में इस जेल से छूटकर बाहर आई| इसके जेल से छूटने के कुछ समय बाद ही देश स्वाधीन हो गया|

अब उसे अपने जीवन में ही स्वाधीन भारत का आनन्द प्राप्त हो गया| इसे पाकर वह बेहद प्रसन्न थी| अब वह अपने जीवन का और क्या करे, इस समस्या से निपटने के लिए अब उसने देश की स्वाधीनता को बनाए रखने के लिए योजनायें बनानी आरम्भ कीं और इसके लिए वह फारवर्ड ब्लाक की सदस्य बन गईं| अपने जीवन के बचे हुए शेष समय को इस की सदस्या के रूप में रहते हुए देशKENAVANIORMAAN के नवा निर्माण के लिए कार्य करती रहीं|

डॉ. अशोक आर्य
पॉकेट १/ ६१ रामप्रस्थ ग्रीन से, ७ वैशाली
२०१०१२ गाजियाबाद उ. प्र. भारत
चलभाष ९३५४८४५४२६ e mail [email protected]

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