Friday, April 26, 2024
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धरती पर उदित होने वाले ‘साहित्य के सूर्य’ हैं प्रेमचंद

प्रेमचंद जयन्ती पर दिग्विजय महाविद्यालय के हिन्दी विभाग ने किया मर्मस्पर्शी आयोजन 

राजनांदगांव। आधुनिक हिन्दी कथा साहित्य के पितामह माने जाने वाले प्रेमचंद की जयन्ती, शासकीय दिग्विजय स्वशासी स्नातकोत्तर महाविद्यालय के हिन्दी विभाग द्वारा कृतज्ञ भाव पूर्वकमनाई गई। इस अवसर पर प्राचार्य डॉ.आर.एन.सिंह के मागदर्शन में हुए विशेष कार्यक्रम में हिंदी के प्राध्यापक गण डॉ.शंकर मुनि राय, डॉ.चन्द्रकुमार जैन, डॉ.बी.एन.जागृत और डॉ.नीलम तिवारी ने प्रेमचंद साहित्य पर अलग-अलग कोण से सार्थक चर्चा की, जिससे बड़ी संख्या में उपस्थित विद्यार्थी सहज अभिभूत हो उठे। आयोजन की विशेषता यह रही कि लगभग दर्जन भर छात्र-छत्राओं ने उपन्यास सम्राट प्रेमचंद की अपनी पसंद की रचना पर मुक्त भावोद्गार व्यक्त किया। विद्यार्थियों में विनोदकुमार टंडन, छगनलाल मंडावी, गुंजा साहू, रानू श्रीरंगे, राजकुमार सिद्धार्थ, रेशमा शेंडे, रीना वर्मा, कुम्भलाल, कृष्णकुमार साहू आदि ने स्वतःस्फूर्त अपने विचार व्यक्त कर सराहना प्राप्त की। 

प्रेमचंद जयन्ती पर प्राध्यापक डॉ.चन्द्रकुमार जैन ने कहा कि प्रेमचंद की पहली हिन्दी कहानी सरस्वती पत्रिका के 1915 के दिसंबर अंक में सौत नाम से प्रकाशित हुई और 1936 में अंतिम कहानी कफन नाम से। महज दो दशक की इस अवधि में उनकी कहानियों के इंद्रधनुषी रंग उभरने लगे। उन्होंने सरल, सहज और आम भाषा का उपयोग करके जीवन के यथार्थ और अपने परिवर्तनकारी विचारों को समाज के सभी वर्गों तक पहुंचाया। उन्होंने बताया कि प्रेमचंद ने कुल मिलाकर करीब तीन सौ कहानियां, लगभग एक दर्जन उपन्यास और कई लेख लिखे। कुछ नाटक भी लिखे और कुछ अनुवाद कार्य भी किए। डॉ.जैन ने कहा प्रेमचंद धरती पर जन्म लेने वाले ऐसे सूरज हैं जिनके सृजन का तेज कभी अस्त नहीं होगा। 

कार्यक्रम का संयोजन करते हुए डॉ.शंकर मुनि राय ने बताया कि 1921 में प्रेमचंद ने महात्मा गांधी के आह्वान पर अपनी नौकरी छोड़ दी। कुछ महीने मर्यादा पत्रिका का संपादन का भार संभाला और फिर छह साल तक माधुरी नामक पत्रिका का संपादन किया। 1930 में बनारस से अपना मासिक पत्रिका हंस को शुरू किया। प्रेमचंद के कई साहित्यिक कृतियों का अंग्रेज़ी, रूसी, जर्मन सहित अनेक भाषाओं में अनुवाद हुआ। डॉ.राय ने कहा गोदान प्रेमचंद की कालजयी रचना है। उन्‍होंने हिंदी और उर्दू में पूरे अधिकार से लिखा। बहुमुखी प्रतिभा संपन्न प्रेमचंद ने अनेक विधाओं में साहित्य की सृष्टि की। वे अपने जीवन काल में ही वे ‘उपन्यास सम्राट’ की उपाधि से सम्मानित हुए। 

डॉ.बी.एन.जागृत ने स्पष्ट किया कि प्रेमचंद का पहला कहानी संग्रह सोज़े-वतन नाम से आया। देशभक्ति की भावना से ओतप्रोत होने के कारण इस पर अंग्रेज़ी सरकार ने रोक लगा दी और इसके लेखक को भविष्‍य में इस तरह का लेखन न करने की चेतावनी दी। इसके कारण उन्हें नाम बदलकर लिखना पड़ा। इस तरह  मूल नाम धनपत राय से नवाबराय बने प्रेमचंद की लेखन यात्रा आगे बढ़ती गई, जिसने बाद में कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। डॉ.जागृत ने प्रेमचंद नाम के आगे मुंशी शब्द जुड़ने की रोचक कहानी भी सुनाई। 

जयन्ती कार्यक्रम के उक्त तीनों वक्ताओं के सम्बोधन के दौरान विद्यार्थियों की उत्सुकता स्वाभाविक रूप से बढ़ती गई।सबने एक मत से स्वीकार किया कि ज्ञानवर्धक सम्बोधन से उन्हें प्रेमचंद और हिन्दी सहित्य के वैभव का अनोखा परिचय मिला। विशेष प्रस्तुति देने पर विद्यार्थियों को डॉ.चन्द्रकुमार जैन ने अपनी प्रेरक संपादित कृति उपहार स्वरूप देकर प्रोत्साहित किया। अंत में डॉ.नीलम तिवारी ने मुंशी प्रेमचंद के योगदान को नमन करते हुए आभार ज्ञापन किया। 

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