Wednesday, July 3, 2024
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भारत के आम नागरिक के संघर्ष को पहचान देने वाली पुस्तक

याद नहीं कितने अरसे बाद एक हिन्दी उपन्यास उठाया और तीन दिन की रिकार्ड अल्पावधि में पूरा पढ़ डाला , बल्कि यह उपन्यास स्वयं को पढ़वा ले गया यह कहना अधिक उपयुक्त होगा।

‘अगम बहै दरियाव’ उत्तर भारत के ग्राम्य जीवन , विशेषकर किसान जीवन और स्थानीय स्तर पर जातीय सम्बंधों की जकड़न , तद्जनित शोषण एवम सरकारी कर्मचारियों , थाना , कचहरी के भ्रष्टाचार से उपजी पेचीदगियों की एक तरफ गहराई से पड़ताल करता है तो दूसरी ओर आर्थिक उदारीकरण ,पिछड़े वर्गों में आई नई राजनीतिक चेतना तथा हिंदुत्ववादी राजनीति के उभार द्वारा जनित स्थितियों को भी रेखांकित करता है ।

यह उपन्यास हिंदी में ‘गोदान’ , ‘राग दरबारी’ और कुछ सीमा तक ‘मैला आँचल’ की परंपरा की अगली और नवीनतम कड़ी है . ‘गोदान’ 1930 के दशक में प्रकाशित हुआ था , तो ‘राग दरबारी’ ‘1960’ के दशक में , इक्कीसवीं सदी का हिन्दी पाठक , विशेषकर 1990 के बाद जन्मी पीढी अपने लाख ग्रामीण संस्कारों के बावजूद , ‘गोदान’ के होरी या धनिया से उस तरह का परिचय नहीं बिठा पाता , या ‘राग दरबारी’ के बैद जी , सनीचर , लंगड़ , बद्री पहलवान से उतना परिचित नहीं हो पाता जितना ‘अगम बहै दरियाव’ के संतोखी हजाम , छत्रधारी ठाकुर , माठा बाबा , हिंसक क्रांतिकारी जंगू , अम्बेडकर वादी दलित वकील तूफानी या गाँव के जमींदार से लोहा लेने वाले विद्रोही जी जैसे चरित्रों से फौरी तादात्म्य बिठा सकता है . इक्कीसवीं शताब्दी के भारतीय ग्रामीण समाज मे ‘होरी’ , या ‘बैद जी’ जैसे चरित्रों की उपलब्धता , प्रमाणिकता हो या न हो , ‘संतोखी’ और ‘छत्रधारी’ की तो लगभग हर गाँव में अनिवार्य उपस्थिति होगी।

कथा वितान ऐसा है कि इसमें कोई एक नायक नही , न एक खलनायक , बल्कि इन दो अतियों के बीच अनेक श्वेत-श्याम-धूसर चरित्रों का पूरा एक ‘स्पेक्ट्रम’ है, जो न केवल कथा को जीवंत ढंग से आंदोलित किये रहता है , बल्कि इसे समकालीन ग्रामीण सामाजिक यथार्थ के और निकट करता है . जैसा कि हर एक रोचक कथा की विशेषता होती है कि कथा और पाठक के बीच से कथाकार को स्वयं को अदृश्य कर लेना , या अपना हस्तक्षेप इतना न्यून कर लेना की उसकी उपस्थिति का आभास न हो , इस उपन्यास और पाठक के बीच कोई फांक नहीं रह पाती और यह ‘दरियाव’ अपने कथा-प्रवाह में पाठक को जैसे अंतिम पृष्ठ तक बहा ले जाता है।

इस सब के अतिरिक्त इस उपन्यास की एक अन्य विशिष्टता है जो ‘गोदान’ , और ‘राग दरबारी’ की परंपरा में होते हुए भी उनसे इसे विशिष्ट बनाती है , और वह है लोकोक्तियों , लोकगीतों ,नौटंकी के बोलों का एक समृद्ध संग्रह . इस उपन्यास को लोकस्मृति से तेजी से विलुप्त होते लोक-गीतों एवम कहावतों के एक अद्वितीय कोष या संग्रह के रूप में भी देखा जा सकता है , जो इसके साहित्यिक मूल्य में वृद्धि ही करता है ।

ग्रामीण पृष्ठभूमि पर आधारित कथाओं में आंचलिक बोलियों के कुछ ऐसे शब्द जरूर आ जाते हैं जिन्हें प्रत्येक हिन्दी पाठक नहीं समझ सकता , यह समस्या इस उपन्यास में भी है , तथापि ऐसे शब्द कम ही हैं और जहां हैं भी वहां उनके अर्थ प्रसंगों के आलोक में खुलते जाते हैं।

संक्षेप में एक लंबे अरसे के बाद एक बेहद रोचक और पठनीय कृति हासिल हुई है ‘हिन्दी उपन्यास’ को , तो बिना देर किए इस जादुई ‘दरियाव’ में छलाँग लगाइए और स्वयं को कथा-प्रवाह में बहने दीजिए।

साभार- https://www.facebook.com/santosh.choubey से

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शोध और समीक्षा से हिंदी साहित्य को समृध्द करने वाली डॉ.मनीषा शर्मा

हाड़ोती के रचनाकारों में डॉ.मनीषा शर्मा एक ऐसी रचनाकार है जिन्होंने गद्य विधा में सृजन कर हाड़ोती के साहित्य को समृद्ध करने में अतुलनीय योगदान कर रही हैं। राष्ट्र भाषा हिंदी में विभिन्न साहित्यिक शोध आलेख, साहित्यकारों की रचनाओं की समीक्षा, समसामयिक विषयों पर आलेख लिख कर, शोध कार्य और यात्रा संस्मरण, डायरी लेखन द्वारा हिंदी साहित्य में अपना अमूल्य योगदान किया है। यही नहीं शोध आलेखों का,राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रस्तुतिकरण भी किया।

आपने अज्ञेय, विवेकानंद, फणीश्वरनाथ रेणु, मीरा, कबीर, विभिन्न कालों और उपन्यास में नारी स्थिति, आधुनिक हिंदी साहित्य की दशा और दिशा जैसे कई महत्वपूर्ण विषयों पर विशेष रूप से कलम चलाई है। आपकी चार पुस्तकें प्रकाशित हुई हैं। ” डॉ.जगदीश गुप्त- काव्य सिद्धांत और सृजन ” में नई कविता आंदोलन की पृष्ठभूमि प्रस्तुत करते हुए डॉक्टर जगदीश गुप्त के संपूर्ण साहित्य के भाव पक्ष और कला पक्ष की विस्तृत विवेचन प्रस्तुत की जो सर्वथा मौलिक कार्य है।

“सामयिक संचेतना और नासिरा शर्मा ” पुस्तक में 20वीं सदी के अंत में साहित्य के केंद्र में आए प्रमुख विमर्शों वैश्वीकरण स्त्री विमर्श और दलित विमर्श का विस्तृत विवेचन प्रस्तुत करते हुए नासिरा शर्मा के कथा साहित्य के संदर्भ में गहन विवेचन किया गया साथ ही समकालीन लेखिकाओं चित्रा मुद्गल मैत्री पुष्पा, मृदुला गर्ग ,कृष्णा सोबती राजी सेठ ,प्रभात खेतान के कथा साहित्य का तुलनात्मक विश्लेषण प्रस्तुत कर शोधार्थियों और पाठक वर्ग के लिए एक महत्वपूर्ण आलोचनात्मक ग्रंथ प्रस्तुत किया।

हिन्दी कविता के विविध आयाम’ पुस्तक में हिंदी साहित्य के आदिकाल और भक्ति काल के प्रमुख संत कबीर दास मीराबाई के साथ-साथ आधुनिक काल के प्रमुख रचनाकारों यथा- भारतेंदु हरिश्चंद्र के संपूर्ण साहित्य व नाटकों, द्विवेदी युगीन राष्ट्रवादी रचनाकारों, जयशंकर प्रसाद की साहित्य की राष्ट्रीय चेतना, दिनकर के साहित्य में राष्ट्रीय चेतना,रश्मिरथी और उर्वशी के वैशिष्ट्य, कविअज्ञेय, संत जांभोजी और राजस्थान की महिला रचनाकारों हाडोती आंचल की जीत परंपरा जैसे महत्वपूर्ण विषयों पर आलेख संकलित किए हैं ।

हिंदी कथा साहित्य एक विमर्श’ पुस्तक में भी सर्वथा मौलिक समसामयिक विषयों पर अपने लेख प्रस्तुत किए हैं। आंचलिक कथाकार फणीश्वर नाथ रेणु जैनेंद्र के साहित्य में नई चिंतन, महादेवी वर्मा का नई चिंतन प्रथम दशक की महिला रचना करूं का उपन्यास साहित्य आधुनिक युग में राम कथा का बदलता हुआ स्वरूप ,अमित त्रिपाठी के उपन्यास सीता मिथिला की योद्धा के संदर्भ में साहित्य जगत में चर्चित विविध विमर्श नारी विमर्श, आदिवासी विमर्श किन्नर विमर्श, दिव्यांग विमर्श तथा वर्तमान दशक के साहित्य में अभिव्यक्त जीवन मूल्य प्रवासी कथा साहित्य जैसे प्रासंगिक विषयों पर अपने विचार इस पुस्तक में प्रस्तुत किए हैं जो आज के पाठक वर्ग में साहित्यिक चेतना उत्पन्न करने में समर्थ हैं । चौथी पुस्तक “हिंदी कथा साहित्य एक विमर्श” प्रकाशित हुई हैं।

हिंदी साहित्य में समीक्षा एक ऐसी प्रभावी विधा है जिससे पाठक किसी कृति को पूरा पढ़ने के लिए प्रेरित होता है। समीक्षा और आलोचना आधुनिक गद्य की चुनौती पूर्ण विधा हैं, जिसमें आलोचक के रूप में ये तटस्थ और निरपेक्ष भाव से कृति का मूल्यांकन पूर्ण निष्ठा और ईमानदारी से करती हैं। हाडौती अंचल के साहित्य को सर्वथा नवीन चिंतन दृष्टि प्रदान करने में महत्वपूर्ण योगदान दिया है और विगत 25 वर्षों से निरंतर इस साधना में रत हैं। समीक्षक के रूप में इन्होंने हाड़ौती के साहित्यकारों के काव्य संग्रह और कथा साहित्य पर समीक्षा की है।

रमेश चंद्र विजयवर्गीय सुधांशु की कृति ‘दिन होगा खजुराहो में’ विजय जोशी के उपन्यासों और कहानी संग्रह, डॉ., गीता सक्सेना के काव्य संग्रह, दया कृष्ण विजय, इंद्र बिहारी सक्सेना, आरसी शर्मा आरसी की कृति अहिल्याकरण, श्याम कुमार पोकरा के उपन्यास ‘मां जोगणिया’ आई.,ए.एस टीकम अंजाना की काव्य कृति’ रज भारत की चंदन सी ‘स्नेह लता शर्मा की सत्य प्रकाशित काव्य कृति’ सुनो पत्थरों के बीच नदी बहती है ‘हाडौती के विश्वामित्र दाधीच के पौराणिक उपन्यास’ वेदवती ‘ और साहित्यकार जितेंद्र निर्मोही के खंडकाव्य ‘द्रौपदी’, डाॅ. कंचना सक्सेना के कविता संग्रह ‘जो पात्र मुझे मिले’ मुंबई महाराष्ट्र के साहित्यकार प्रोफेसर मृगेंद्र राय की काव्य कृति ‘हथेली पर चांद’ आदि की समीक्षा के साथ-साथ अनेक अन्य साहित्यिक कृतियों की समीक्षा की है और पुस्तकों को पढ़ने का माहोल बनाया है।

हिंदी साहित्य में शोध के क्षेत्र में उनकी महत्वपूर्ण उपलब्धि और योगदान निरंतर जारी है । इन्होंने हिंदी के विस्थापन साहित्य, स्वामी रामानंद, कथाकार अमरकांत ,हिंदी गजल, डॉ. शत्रुघ्न प्रसाद सिंह के ऐतिहासिक उपन्यास ,आदिवासी महिला की अस्मिता, निशक्तजन केंद्रित रचनाएं-( दिव्यांग विमर्श) एक अनुशीलन, डॉ. उषा किरण सोनी की साहित्य साधना ,मृदुला सिन्हा का निबंध सहित्य ,तथा जितेंद्र निर्मोही के साहित्य में चेतना की विविध स्वर विषयों पर शोध कार्य पूर्ण करवाया है।
हिंदी साहित्य में शोध पर्यवेक्षक के रूप में 10 शोधार्थियों को पीएच- डी. की डिग्री दिलवाई एवं 7 शोधार्थी विभिन्न शोध विषयों पर शोधरत हैं।

इन्होंने संस्मरण और यात्रा वृतांत भी लिखे हैं। जिसमें “गेपरनाथ की घाटी में एक रोमांचकारी रात” उनके जीवन की सच्ची घटना पर आधारित संस्मरण है, दूसरी ओर “मेरी उत्कल और बंग प्रदेश की यात्रा” और”मेरी तीर्थ यात्रा”, जैसे यात्रा वृतांत भी लिखे हैं। ये यात्रा वृतांत पांचवा स्तंभ और साक्षात्कार जैसी पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुके हैं ।

आपके संपादित आलेख 25 संपादित पुस्तकों में प्रकाशित हुए हैं। विभिन्न राष्ट्रीय अंतरराष्ट्रीय पत्र पत्रिकाओं में शताब्दिक शोध आलेख एवं अन्य आलेख प्रकाशित हुए हैं।

हाड़ौती अंचल की गीत परंपरा विषय पर शोध आलेख केंद्रीय हिंदी संस्थान आगरा द्वारा प्रकाशित पत्रिका भाषा विमर्श में प्रकाशित हुआ। प्रमुख आलेखों में अद्वितीय यह क्षण , विवेकानन्द का शैक्षिक चिन्तन ,इक्कीसवीं सदी के प्रथम दशक के उपन्यासों में स्त्री विमर्श, प्रथम दशक की हिन्दी कहानी ,हिन्दी नाटकों में अभिव्यक्त सामाजिक सरोकार विशेष संदर्भ – डॉ. लक्ष्मीनारायण लाल , हाशिए पर जीवन जीती तीसरी दुनिया का सच, मृदुला सिन्हा के निबन्धों में स्त्री विमर्श , भक्तिकालीन काव्य और नारी विमर्श मिट्टी की गंध के रचनाकार फणीश्वर नाथ रेणु ,मीरा के काव्य में भक्ति भावना एवं संत साहित्य में लोकमंगल की भावना, रश्मिरथी में राष्ट्रीय चेतना शामिल हैं। आकाशवाणी कोटा से समय-समय पर विभिन्न विषयों पर वार्ताएं प्रसारित की गई।

परिचय
हिंदी साहित्य में शोध, लेखन, समीक्षक के रूप में पहचान बनाने वाली रचनाकार डॉ.मनीषा शर्मा का जन्म 9 मार्च 1970 को अजमेर में पिता स्व. श्री मोहन लाल शर्मा एवं माता प्रसन्न देवी शर्मा के आंगन में हुआ। आपने 1993 में हिंदी विषय से स्नातकोत्तर की डिग्री और 1998 में अजमेर विश्वविद्यालय से ” काव्य सृजन और सिद्धान्त” विषय पर पीएच.डी. की उपाधि प्राप्त की। आप राजस्थान लोक सेवा आयोग द्वारा चयनित हो कर नवंबर 1998 से निरंतर कॉलेज शिक्षा में सेवारत हैं। हिन्दी कथा साहित्य एवं हिन्दी साहित्य का इतिहास में आप की विशेषज्ञता है। आपके निर्देशन में कश्मीर का विस्थापन साहित्य, स्वामी रामानंद, आदिवासी महिला की अस्मिता, निशक्तजन विमर्श ,हिंदी गजल, कथाकार अमरकांत , शत्रुघ्न प्रसाद सिंह, मृदुला सिन्हा के साहित्य आदि विषयों पर अब तक 10 शोधार्थियों को पीएच.डी. की उपाधि प्रदान करवा चुकी हैं तथा 7 शोधार्थी इनके निर्देशन में शोधकार्य कर रहे हैं।

आप राजस्थान साहित्य अकादमी की 18वीं सरस्वती सभा उदयपुर जून 2017 से 2018 तक मनोनीत सदस्य रही है। रक्तदान के प्रति आपकी गहरी रुचि हैं और 2008 से निरंतर रक्तदान कर रही हैं तथा औरों को भी प्रेरित करती हैं। आप महाविद्यालय की सांस्कृतिक, साहित्यिक और अन्य गतिविधियों में भी सक्रिय रहती हैं। आपको देश की विभिन्न संस्थाओं द्वारा हिंदी भाषा विभूषण की मानद उपाधि , संभाग स्तरीय हिंदी सेवी सम्मान, सरोजिनी शर्मा स्मृति राष्ट्रीय साहित्यांचल पुरस्कार, जैसे अनेक सम्मान प्राप्त हुए।वर्तमान में आप राजकीय कला कन्या महाविद्यालय कोटा के हिंदी विभाग में आचार्य पद पर सेवाएं प्रदान कर रही हैं और साहित्य सृजन में लगी हुई हैं।

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देश-दुनिया में छा गई पंजाब की पहली वेल्डिंग गर्ल!

एक लड़की है ~ हरपाल कौर नाम है
पंजाब की पहली वेल्डिंग गर्ल …!!!
सिखों की एक बेहद जुझारू लड़की…!!!
पंजाब के लुधियाना और जालंधर के बिल्कुल बीच में
फगवाड़ा से मात्र 13 किलोमीटर दूर गुरा नामक गाँव मे रहती है।
मात्र बीस वर्ष की उम्र में पिता ने शादी कर दी। ससुराल वालों से मतभेद हुए, पिता के पास आकर रहने लगी।नौ साल का एक लड़का है उसे भी साथ ले आई। तीन कुंवारी बहने पहले से घर मे थी। पिता ने ससुराल में रहने को फोर्स करने की बजाय उसे खुद की लाइफ अपने हिसाब से जीने को स्वंतत्र किया और उसके फैसले के साथ रहे।

अब 9 वर्ष के लड़के के साथ मायके में रहना भी लड़की के लिए आसान नही होता। तलाक का केस चल रहा। परिवार रिस्तेदारों के व्यंग्य बाण रोज सुनने को मिलते। रोज पिता से खर्च मांगना भी आत्मसम्मान को ठेस पहुंचाता….!!!

कहीं जॉब शुरू करके जीवन को पटरी पर लाने की कोशिश की लेकिन नही कर पाई।

पिता की एक दुकान है वेल्डिंग करके कृषि उपकरण बनाने की। दुकान के ऊपर उनका घर है लड़की ने पिता को कहा यहीं दुकान पर काम कर लेती हूँ , जो खर्च एक मजदूर को देते हो वही मुझे दे दो,साथ मे अपनी जगह रहूंगी तो सेफ्टी भी रहेगी।

लड़की ने 300 रुपये रोजाना के हिसाब से वहीं काम शुरू कर दिया, लोहे को वेल्डिंग करके उपकरण बनाने का।

पंजाब की पहली वेल्डिंग गर्ल बनी। हाथ मे सफाई इतनी कि ट्रैंड लड़के भी उसके जैसा काम न कर सकते। वेल्डिंग की तेज रोशनी से आंखों से रोज पानी बहता, लोहे उठाने से हाथ काले पड़ जाते और दर्द करते,जुराबें गर्म होकर जूते के अंदर ही पेर से चिपक जाती पर ऐसी फसी होती कि उसे निकाल भी न पाती।
कई लड़की उसे देखकर दुकान पर काम सीखने आई पर वहां की मेहनत देखकर दोबारा मुड़कर उस शॉप पर नही गयी। हरपाल रोजाना सुबह जल्दी उठकर और शाम को सबसे बाद में काम छोड़ती। जितना काम दूसरा मजदूर एक दिन में करके देता उतने ही पैसे में वो दुगना काम पिता को करके देती वो भी एकदम सफाई से।

टिक टोक पर वीडियो बनाने शुरू किए। वो बन्द हुई तो इंस्टाग्राम पर अपने वेल्डिंग करते के वीडियो पोस्ट किए। लोगों को पता लगने लगा फिर एक पंजाबी चैनल ने इंटरव्यू किया तो पूरे पंजाब समेत विदेशों में भी लड़की की चर्चा होने लगी। भारत समेत इंग्लैंड कनाडा और यूरोप के अन्य देशों से भी लड़की के लिए रिश्ते आ रहे पर वो अपने देश की मिट्टी में रहकर ही काम करना चाहती है चाहे पैसे कम मिले।

इंस्टाग्राम और यूट्यूब पर लाखों सब्सक्राइबर होने की वजह से हरियाणा पंजाब और राजस्थान से भी लोग कृषि उपकरण बनवाने के लिए आने लगे। दोनो जगह बेटी की वजह से भगवान सिंह धंजल की दुकान की कीर्ति पूरे भारत मे फेल गयी।

हरपाल कौर सबसे बड़ी है उससे छोटी की शादी कर दी गयी उससे छोटी पंजाब पुलिस में सेलेक्ट हो गयी। सबसे छोटी इसी के साथ दुकान पर काम करती है। बेटी की जी तोड़ मेहनत की वजह से आज पिता का व्यवसाय पहले से कई गुना बढ़ गया। लड़की के पास खुद का बैंक एकाउंट है खूब पैसे हैं पर फिर भी रोज जी तोड़ मेहनत करती है एक दिन दुकान पर मेले कुचैले कपड़ों और काले हाथों के साथ लोहे को वेल्ड कर रही होती है तो दूसरे दिन बुलेट पर चलती एक खूबसूरत परी जैसी दिखती है।

सोशल मीडिया पर इन्हें चन्द गालियां देने वाले लोग भी है जो कहते है 2 कोड़ी की नचनिया है पैसे के लिए नाचती है या दस मिनट काम करती है पर लाखों लोग इन्हें प्रेम देने वाले भी है 10-10 पिज्जा एक साथ अनजान लोग इनकी शॉप पर गिफ्ट्स भेज देते हैं बिना अपना नाम जाहिर किये।
आये दिन दुकान पर कोई न कोई गिफ्ट आता रहता है।

हमारे समाज मे ऐसी देवी जैसी लड़कियां भी हैं वो चाहती तो कब की शादी करके अपने लिए जीना शुरू कर देती। पर बेटे के भविष्य को देखकर फुंक फूंक कर कदम रखती है अणु शक्ति के दिये हुए टॉपिक तो ऐसी लड़कियों के मन मे ही नही आते, अभिभूत हो जाता हूँ ऐसी संघर्षरत जुझारू लड़कियों के जीवन के प्रति इतने जज्बे को देखकर !

साभार- https://www.facebook.com/YahiToShayriHai से

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पेंशनर्स से काॅम्यूटेशन राशि की वसूली 11 वर्ष में की जाए

कोटा 30 मई/ राजस्थान पेंशन समाज कोटा ने पेंशनर्स समाज की विभिन्न समस्याओं को लेकर संभागीय आयुक्त को मुख्यमंत्री के नाम बुधवार को ज्ञापन दिया।
राजस्थान पेंशन समाज के जिला अध्यक्ष श्री रमेश चंद्र गुप्ता ने जानकारी दी की राज्य कर्मचारियों की सेवानिवृत्ति के बाद मूल पेंशन की अधिकतम 33 प्रतिशत तक राशि काॅम्यूटेशन के रूप में दी जाती है जो 14 वर्ष में वापस वसूल की जाती है। उक्त राशि पर 12 प्रतिशत ब्याज वसूल किया जाता है वर्तमान समय में जब बैंक द्वारा ब्याज दरों में कमी कर दी गई है । इस समय अधिकतम 8 प्रतिशत ब्याज दर से काॅम्यूटेशन राशि की गणना की जानी चाहिए जो अधिकतम 11 वर्ष तक वसूल की जानी चाहिए। पुराने पेंशनर्स जिनके 11 वर्ष पूर्व हो गए हैं उनकी कटौती बंद की जाए।

30 जून को सेवानिवृत कर्मचारियों को एक वेतन वृद्धि का लाभ अविलंब दिया जाना चाहिए इसके अतिरिक्त कोरोना कॉल मैं 18 माह का बकाया डी ए का भुगतान किया जावे। पारिवारिक पेंशन की पात्रता हेतु पूर्व की भांति पारिवारिक पेंशन स्वीकृत की जाए । आरजी एच एस मैं निर्धारित बीमारियों की सूची में अन्य बीमारियों की सूची जोड़ी जाए । आरजीएस योजना में जांचों के लिए ₹30000 रुपए की अतिरिक्त राशि नियत की जाए । पेंशनर्स को अस्पतालों में भरती करके 5 दिन में डिस्चार्ज करने के नियम को समाप्त किया जाए ।

मान्यता प्राप्त अस्पतालों में शाम 7:00 बजे के बाद आरजीएस की विंडो बंद कर दी जाती है उसे रात्रि 7:00 से सुबह 9:00 बजे तक खोला जा कर चौबीस घंटे इलाज की सुविधा दी जावे।

पेंशनर्स को 65 वर्ष, 70 वर्ष, 75 वर्ष एवम् 80 वर्ष पूर्ण करने पर वेतन वृद्धि का लाभ दिया जावे । ज्ञापन देने में आर.पी. गुप्ता महासचिव, हरि सुदन शर्मा वरिष्ठ उपाध्यक्ष, घनश्याम शर्मा उपाध्यक्ष एवं रमेश पोरवाल सचिव भी उपस्थित रहे ।

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पुरातन मूर्तियाँ हमारी सांस्कृतिक धरोहर हैं

कला एवं संस्कृति किसी भी राष्ट्र की अमूल्य धरोहर होती है !समाज द्वारा इस धरोहर को अपने अगली पीढ़ी को विरासत के रूप में हस्तांतरित किया जाता है! जबकि भारत के साथ कुछ ऐसी विडंबना रही कि लगातार विदेशी आक्रमणकारियों के द्वारा लूटपाट एवं अत्याचार किया गया! धरोहरों को चुराया गया !उसके साथ छेड़छाड़ किया गया और अपने नाम किया गया! जो भारत के लिए बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण रहा! यद्यपि की हम स्वतंत्र भारत के नागरिक हैं!

हमारी कानून व्यवस्था भी हमारे हीअधीन है परंतु किसी भी सरकार ने कलाकृतियों एवं संस्कृतियों को धरोहर के रूप में देखते हुए उसके संरक्षण और संवर्धन पर विचार ही नहीं किया अथवा रोजी-रोटी की समस्या से ऊपर उठकर कला एवं संस्कृतियों के दिशा में कभी ध्यान ही नहीं गया! परंतु सौभाग्य से वर्तमान मोदी सरकार का इस क्षेत्र में ध्यान गया और उन्होंने भारतबोध यानि कि- ‘नई पीढ़ी को भारत की विशेषताओं से अवगत कराना , जिसके कारण बार-बार विदेशी आक्रमणकारी भारत पर आक्रमण करते रहे ,अत्याचार करते रहे इत्यादि के कारणों को पता लगाते हुए नई पीढ़ी को परोसने का कार्य किया ! इसके लिए विदेश से लेकर देश तक हर जगह मौजूद प्राचीन कलाकृतियों और संस्कृतियों की छानबीन की तथा करवाया और उससे समस्त देशवासियों को अवगत कराया!

2014 के बाद मोदी सरकार ने इस दिशा में पहल किया और विचार किया कि यदि हमें विकसित राष्ट्र होना है तो सर्वप्रथम खुद को ,अपनी संस्कृतियों को ,अपनी विशेषताओं को जानना होगा! अपने देश की संपत्ति, सांस्कृतिक धरोहरों का तथा कलाकृतियों का ज्ञान होना वास्तव में भारत का गौरव है! उन धरोहरों को जो विदेशों में छुपा लिया गया है उन्हें वापस लाना होगा ! इस दिशा में विचार और कार्य दोनों आरंभ हुआ! सांस्कृतिक धरोहरों और कलाकृतियों के संरक्षण संवर्धन और विदेशों से पुनरागमन की दिशा में कार्य करते हुए देश में 251 मूर्तियां और प्राचीन धरोहरों को वापस लाया गया है! इनमें 238 मूर्तियां और प्राचीन धरोहरों को 2014 के पश्चात लाया गया है!

इस दौरान जिन प्राचीन धरोहरों और पवित्र मूर्तियों को वापस लाया गया है उनमें वाराणसी की अन्नपूर्णा देवी की मूर्ति, चित्तौड़गढ़ के नटराज की मूर्ति , चोल काल की ‘श्री’ देवी जी की मूर्ति, हनुमान जी की मूर्ति, राम जी की मूर्ति, लक्ष्मण जी की मूर्ति तथा सीता जी की अष्टधातु की मूर्तियां और भगवान बुद्ध की कई प्रतिमाएं शामिल हैं! इन मूर्तियों और धरोहरों में से ज्यादातर अमेरिका, ब्रिटेन ,फ्रांस तथा आस्ट्रेलिया जैसे देशों से वापस लाई गई है! औपनिवेशिक कालखंड में भारत से बड़े पैमाने पर अमूल्य कलाकृतियां और धरोहरों को ब्रिटेन और फ्रांस सहित कई देशों में चोरी छुपे या फिर युद्ध के दौरान लूट कर ले जाया गया था जिसे वापस लाने के दिशा में सफल प्रयास किया गया है!
अभी तक 251 मूर्तियां और प्राचीन धरोहरों को दूसरे देशों से वापस लाया गया है !

सरकार ने ‘स्वदेश दर्शन’ के तहत 15 पर्यटन सर्किट को विकसित किया है ! ‘चार धाम कनेक्टिविटी योजना’ के तहत 889 किलोमीटर के राष्ट्रीय राजमार्ग विकसित किए जाएंगे! ‘हृदय योजना’ के अंतर्गत 12 हेरिटेज शहरों का विकास किया जा रहा है! ‘प्रसाद योजना’ के अंतर्गत सांस्कृतिक स्थलों के विकास के लिए 1200 करोड रुपए का निवेश किया गया है! भारत सरकार द्वारा 10 नए जनजाति स्वतंत्रता सेनानी संग्रहालय स्थापित किया जा रहे हैं! वर्तमान सरकार के सक्रिय सहयोग से काशी विश्वनाथ कॉरिडोर तथा अन्य परियोजनाओं के कारण मंदिरों, नदियों, गलियों और परिसरों का कायाकल्प हुआ है ! केदारनाथ परिसर में आदि शंकराचार्य की नई प्रतिमा का अनावरण किया जो सभ्यता और संस्कृति का शाश्वत प्रतीक है!

सरकार अपने सांस्कृतिक धरोहरों के संरक्षण के लिए अति गंभीर है !जी-20 शिखर सम्मेलन के दौरान अपने रूख को स्पष्ट किया है और इससे जुड़े पहलुओं को ‘दिल्ली घोषणा पत्र ‘में स्थान दिया गया है! ‘दिल्ली घोषणा पत्र’ में सर्वसम्मति से पारित किया गया है कि तस्करी एवं चोरी सहित दूसरे देशों से आयातित किसी भी कलाकृति एवं सांस्कृतिक धरोहर को प्राप्त करने का मूल देश को मौलिक अधिकार है!

जिन देशों के पास ऐसी वेशकीमती वस्तुएं मौजूद है उन्हें स्वेच्छा से उसे वापस कर देना चाहिए! संस्कृति मंत्रालय भारत सरकार द्वारा जी-20 की बैठक के दौरान इस विषय को सर्वोच्च प्राथमिकता से रखा गया है! वर्तमान सरकार ने सांस्कृतिक धरोहरों तथा कलाकृतियों पर गर्व किया है! विभिन्न मंत्रालय के अनुसार विगत वर्षों में उसे दूसरे देशों में मौजूद अपनी कलाकृतियों को वापस लाने में महत्वपूर्ण सफलता भी प्राप्त हुई है! यह उपलब्धि भारत के गौरव को ऊंचा उठाने का बहुत बड़ा कारण हैं जो हमारी मेरुदंड की महत्ता रखते हैं!

( डॉक्टर सुनीता त्रिपाठी ‘जागृति’ स्वतंत्र लेखिका, अखिल भारतीय राष्ट्रवादी लेखक संघ, नई दिल्ली)

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स्वतंत्र निर्वाचन आयोग ही :लोकतंत्र की आधारशिला

भारत के संविधान के भाग 15 में अनुच्छेद 324 से 329 तक निर्वाचन आयोग से संबंधित प्रावधान है।अनुच्छेद 324 के अनुसार ,”इस संविधान के अधीन संसद,प्रत्येक राज्य के विधान मंडल, राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति के पदों के लिए निर्वाचन के निर्वाचक नामावली तैयार करने तथा उन सभी निर्वाचनों के संचालन का अधीक्षक, निर्देशन तथा नियंत्रण निर्वाचन आयोग में होगा”।

भारत के संविधान के अनुच्छेद 324(2) के अनुसार, निर्वाचन आयोग मुख्य निर्वाचन आयुक्त एवं उतने अन्य निर्वाचन आयुक्तों से यदि कोई हो, जितने राष्ट्रपति समय- समय पर नियत करें मिलाकर बनेगा तथा मुख्य निर्वाचन आयुक्त और अन्य निर्वाचन आयुक्तों की नियुक्ति संसद द्वारा इस निमित्त बनाई गई विधि में उपबंधों के अधीन रहते हुए राष्ट्रपति द्वारा की जाएगी।

स्वतंत्र ,निष्पक्ष एवं पारदर्शी चुनाव सुनिश्चित करने के विषय में माननीय उच्चतम न्यायालय ने भारत के निर्वाचन आयोग के मुख्य चुनाव आयुक्त एवं अन्य निर्वाचन आयुक्तों की नियुक्ति एक समिति /पैनल की अनुशंसा द्वारा की जाएगी। इसके सदस्यों में भारत के आदरणीय प्रधानमंत्री ,विपक्ष के नेता एवं सर्वोच्च न्यायालय के माननीय मुख्य न्याय मूर्ति होंगे। सर्वविदित है कि यही पैनल केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो के निदेशक /मुखिया की नियुक्ति की सिफारिश करता है। इस संवैधानिक शून्यता की पूर्ति करने तथा नियुक्ति के लिए एक विधाई प्रक्रिया स्थापित करने का प्रयास करता है।

इस व्यवस्था के प्रति उत्तर में भारत के संसद के द्वारा मुख्य निर्वाचन आयुक्त एवं अन्य निर्वाचन आयुक्त( नियुक्ति, सेवा शर्त एवं पद की अवधि) अधिनियम, 2024 पारित किया गया था जिसमें नियुक्ति समिति में शामिल मुख्य निर्वाचन आयुक्त एवं निर्वाचन आयुक्त की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा एक समिति की अनुशंसा पर की जाएगी जिसमें आदरणीय प्रधानमंत्री और विपक्ष के नेता और केंद्रीय कैबिनेट मंत्री सम्मिलित होंगे।

सर्वोच्च न्यायालय ने मोहिंद्र सिंह गिल बनाम मुख्य चुनाव आयुक्त AIR ,1978 के मामले में टिप्पणी करते हुए कहा है कि” चुनाव आयोग को व्यापक उत्तरदायित्व सौपें गए हैं। इस उत्तरदायित्व (स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव करवाने का) के अंतर्गत काम करवाने का अधिकार, जिम्मेदारी तथा प्रशासनिक और अन्य तरह के काम आते हैं जैसा की स्थिति के लिए आवश्यक हो। चुनाव आयोग को यह सुनिश्चित करने का अधिकार भी है कि चुनाव करवाने के लिए ‘ उपर्युक्त और अनुकूल वातावरण’ बनाए रखा जाए ।

चुनाव आयोग इस उपर्युक्त और अनुकूल वातावरण को सुनिश्चित करने के लिए जो भी आवश्यक एवं उपयुक्त समझे प्रयोग कर सकते हैं। इन सभी से चुनाव आयोग को अप्रत्याशित स्थितियों में काम करने के लिए अवशिष्ट शक्तियां प्रदान की गई हैं ताकि निष्पक्ष राजनीतिक प्रतिनिधित्व सुनिश्चित किया जा सके और 7 दशकों से इन्हीं शक्तियों के माध्यम से इसने हुए नियम बनाए हैं ,जिनसे राजनीतिक दल संचालित हो सके।

चयन समिति में रिक्ति के आधार पर मुख्य निर्वाचन आयुक्त और निर्वाचन आयुक्त के नियुक्ति को न्यायालय में चुनौती नहीं दी जा सकती है। रिक्ति के आधार पर चयन समिति के व्यक्तित्व पर सवाल नहीं किया जा सकते हैं। मुख्य निर्वाचन आयोग और निर्वाचन आयुक्तों( नियुक्ति, सेवा, शर्तें और पद की अवधि) अधिनियम ,2024 के प्रावधानों के अंतर्गत मुख्य चुनाव चुनाव आयुक्त और अन्य निर्वाचन आयुक्त के वेतन और भत्ते कैबिनेट सचिव के समान होंगे, जबकि 1991 के अधिनियम के अनुसार निर्वाचन आयुक्तों के वेतन एवं भत्ते उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश के समान था।

भारत के संविधान के अनुच्छेद 324 (5 )के अनुसार, मुख्य निर्वाचन आयुक्त को उसके पद से इस प्रक्रिया और आधार पर हटाया जा सकता है ,जिस रीति से उच्चतम न्यायालय के न्याय मूर्ति को हटाया जाता है। इस प्रक्रिया को संवैधानिक शब्दों में ‘ निष्कासन ‘ कहा जाता है, क्योंकि भारत के संविधान के अंतर्गत महाभियोग की प्रक्रिया राष्ट्रपति महोदय के लिए प्रयोग किया जाता है। मुख्य निर्वाचन आयुक्त एवं अन्य निर्वाचन आयुक्त को नियुक्ति के पश्चात उसके लिए अलाभकारी रूप से परिवर्तन नहीं किया जाएगा ।निर्वाचन आयोग कार्यपालिका से स्वतंत्र होता है। व्यवस्थापिका की शक्तियों से भी संविधान के प्रावधानों द्वारा सीमित किया गया है।

चुनाव सुधार के लिए 1975 में गठित की गई तारकुंडे समिति ने निर्वाचन आयुक्त के नियुक्ति के लिए चयन समिति में प्रधानमंत्री, लोकसभा में विपक्ष के नेता तथा उच्चतम न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश को सम्मिलित करने की अनुशंसा किया था ।तत्पश्चात चुनाव सुधार हेतु 1990 में गठित दिनेश गोस्वामी समिति ने तारकुंडे समिति की अनुशंसाओं की सिफारिश किया था। 2005 में दूसरे प्रशासनिक सुधार आयोग प्रतिवेदन में निर्वाचन आयुक्त की नियुक्ति से संबंधित चयन समिति में राज्यसभा के उपसभापति तथा विधि मंत्री को शामिल किया गया था।

संशोधित अधिनियम में चयन समिति के सदस्यों के संदर्भ में किए गए प्रावधान से सरकार का बहुमत हो गया है जो सरकार के रुचि के व्यक्ति की नियुक्ति की संभावनाओं को प्रबल करती है। इससे निर्वाचन आयुक्त द्वारा सरकार के पक्ष लिए जाने की संभावना उत्पन्न होती है। संशोधित अधिनियम में निर्वाचन आयुक्त एवं अन्य निर्वाचन आयुक्त का वेतन कैबिनेट सचिव के समान करने का प्रावधान किया गया है। कैबिनेट सचिव का वेतन सरकार (कार्यपालिका )द्वारा निर्धारित किया जाता है, जबकि इसके पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त एवं अन्य निर्वाचन आयुक्त उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीशों के समान था जो संसदीय विधि द्वारा निर्धारित किया गया था।

निर्वाचन आयोग अर्ध न्यायिक संस्था है। वह अर्ध न्यायिक कर्तव्यों का निर्वहन करता है। आयोग राष्ट्रपति को संसद के सदस्यों के अयोग्यता/निर्हरता के प्रश्न पर परामर्श देना आदि अर्द्ध न्यायिक कार्य हैं। निर्वाचन आयोग मुख्य संवैधानिक संस्थाओं में मेरुरज्जु की भूमिका का निर्वहन करता है। आयोग जन विश्वास, लोक आस्था एवं जन विश्वास बहाली में महत्ती भूमिका का निर्वहन करती है। भारत के संविधान ने निर्वाचन आयोग के स्वतंत्रता और निष्पक्षता को सुनिश्चित करने के लिए महत्वपूर्ण संवैधानिक प्रावधान किए हैं। निर्वाचन आयुक्त की नियुक्ति प्रसाद पर्यंत के सिद्धांत पर आधारित नहीं है।

यह नियुक्ति 6 वर्ष की अवधि के लिए या 65 वर्ष की आयु (जो भी पहले हो) के लिए होती है। निर्वाचन आयुक्त को उन्हें उसी आधार एवं प्रक्रिया से हटाया जाता है जिस प्रक्रिया और रीति से उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश हटाए जाते हैं। यह प्रक्रिया एवं रीति निर्वाचन आयुक्त की स्वतंत्रता का महत्वपूर्ण आयाम है जिससे वह भय मुक्त एवं राजनीतिक दबाव से स्वतंत्र होते हैं। लोकतांत्रिक शासकीय व्यवस्था के मजबूती में भयमुक्त एवं दबाव मुक्त होना अति आवश्यक है। निष्पक्ष एवं भय मुक्त चुनाव जनता की विश्वास बहाली के उन्नयन में महत्वपूर्ण भूमिका को निभाते हैं।

निर्वाचन की स्वतंत्रता इस तथ्य में निहित है कि अन्य निर्वाचन आयुक्तों एवं प्रादेशिक निर्वाचन आयुक्त को उनके पद से मुख्य निर्वाचन आयुक्त की सिफारिश के बिना नहीं हटाया जा सकता है। निर्वाचन आयोग को निर्वाचकीय कृत्य के लिए संघ सरकार एवं एवं राज्य सरकार आयोग की अपेक्षा को देखते हुए चुनावी कृत्य को संपन्न करने के लिए अपेक्षित संख्या में कर्मचारी उपलब्ध करवाते हैं ।आयोग अपनी स्वतंत्रता से अधिकारियों का हस्तांतरण भी करता है और आवश्यकता अनुसार प्रतिकूल आचरण के लिए दंडित भी करता है।

1950 से 2024 तक चुनाव आयोग पर दृष्टिपात करने ,आंकड़ों का बारीकी से अध्ययन करने एवं सभी चुनाव आयुक्त के कार्यकाल का सूक्ष्म विश्लेषण करने से स्पष्ट होता है कि सरकार को चयन समिति की समीक्षा करने तथा इसमें विश्वसनीयता में अभिवृद्धि हेतु स्वतंत्र विशेषज्ञों, न्यायविदों और नागरिक समाज के प्रतिनिधियों को पर्यवेक्षक के रूप में शामिल किए जाने पर विचार करना चाहिए।

चुनाव आयुक्तों के वेतन तथा भत्ते को नौकरशाह के समक्ष न रखकर उनके वेतन को भारत की संचित निधि पर आधारित होना चाहिए इसके कारण मुख्य निर्वाचन आयुक्त एवं अन्य निर्वाचन आयुक्तों के स्वतंत्रता को अच्छा रखा जा सकता है।

निर्वाचन आयोग को अन्य देशों के निर्वाचन आयोग के साथ अंतरराष्ट्रीय सेमिनार और ज्ञान का आदान-प्रदान करना चाहिए जिससे सर्वोच्च प्रथाओं को अपनाया जा सके । तकनीकी विशेषज्ञ और नवोन्मेष का उन्नयन किया जा सके जिससे स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव को बढ़ावा दिया जा सके।

लोकतंत्र में निर्वाचन आयोग की भूमिका ऑक्सीजन की तरह है जिससे लोकतंत्र रूपी शरीर के लिए विशुद्ध रक्त प्रवाहित होता है, जो हमारे देश के लोकतंत्र को स्वस्थ एवं जीवंत रखती है। इनके उचित कार्यों की उपादेयता के कारण नागरिकों की लोकतंत्र के प्रति आस्था एवं विश्वास सुदृण होता है ।संवैधानिक संस्थाओं की मजबूती से कार्य करने से नागरिकों के नागरिक मूल्य एवं संवैधानिक अधिकारों में मजबूती होता है।

(लेखक राजनीतिक विश्लेषक हैं)

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कन्याकुमारी में ध्यान के बाद की अनुभूतियाँ

लोकतन्त्र की जननी में लोकतन्त्र के सबसे बड़े महापर्व का एक पड़ाव आज 1 जून को पूरा हो गया है। तीन दिन तक कन्याकुमारी में आध्यात्मिक यात्रा के बाद, मैं अभी दिल्ली जाने के लिए हवाई जहाज में आकर बैठा ही हूं…काशी और अनेक सीटों पर मतदान चल ही रहा है। कितने सारे अनुभव हैं, कितनी सारी अनुभूतियां हैं…मैं एक असीम ऊर्जा का प्रवाह स्वयं में महसूस कर रहा हूं।

वाकई, 24 के इस चुनाव में, कितने ही सुखद संयोग बने हैं। अमृतकाल के इस प्रथम लोकसभा चुनाव में मैंने प्रचार अभियान 1857 के प्रथम स्वतन्त्रता संग्राम की प्रेरणास्थली मेरठ से शुरू किया। माँ भारती की परिक्रमा करते हुए इस चुनाव की मेरी आखिरी सभा पंजाब के होशियारपुर में हुई। संत रविदास जी की तपोभूमि, हमारे गुरुओं की भूमि पंजाब में आखिरी सभा होने का सौभाग्य भी बहुत विशेष है। इसके बाद मुझे कन्याकुमारी में भारत माता के चरणों में बैठने का अवसर मिला। उन शुरुआती पलों में चुनाव का कोलाहल मन-मस्तिष्क में गूंज रहा था। रैलियों में, रोड शो में देखे हुए अनगिनत चेहरे मेरी आंखों के सामने आ रहे थे। माताओं-बहनों-बेटियों के असीम प्रेम का वो ज्वार, उनका आशीर्वाद…उनकी आंखों में मेरे लिए वो विश्वास, वो दुलार…मैं सब कुछ आत्मसात कर रहा था। मेरी आंखें नम हो रही थीं…मैं शून्यता में जा रहा था, साधना में प्रवेश कर रहा था।

कुछ ही क्षणों में राजनीतिक वाद विवाद, वार-पलटवार…आरोपों के स्वर और शब्द, वह सब अपने आप शून्य में समाते चले गए। मेरे मन में विरक्ति का भाव और तीव्र हो गया…मेरा मन बाह्य जगत से पूरी तरह अलिप्त हो गया।

इतने बड़े दायित्वों के बीच ऐसी साधना कठिन होती है, लेकिन कन्याकुमारी की भूमि और स्वामी विवेकानंद की प्रेरणा ने इसे सहज बना दिया। मैं सांसद के तौर पर अपना चुनाव भी अपनी काशी के मतदाताओं के चरणों में छोड़कर यहाँ आया था।
मैं ईश्वर का भी आभारी हूँ कि उन्होंने मुझे जन्म से ये संस्कार दिये। मैं ये भी सोच रहा था कि स्वामी विवेकानंद जी ने उस स्थान पर साधना के समय क्या अनुभव किया होगा! मेरी साधना का कुछ हिस्सा इसी तरह के विचार प्रवाह में बहा।

इस विरक्ति के बीच, शांति और नीरवता के बीच, मेरे मन में निरंतर भारत के उज्जवल भविष्य के लिए, भारत के लक्ष्यों के लिए निरंतर विचार उमड़ रहे थे। कन्याकुमारी के उगते हुए सूर्य ने मेरे विचारों को नई ऊंचाई दी, सागर की विशालता ने मेरे विचारों को विस्तार दिया और क्षितिज के विस्तार ने ब्रह्मांड की गहराई में समाई एकात्मकता, Oneness का निरंतर ऐहसास कराया। ऐसा लग रहा था जैसे दशकों पहले हिमालय की गोद में किए गए चिंतन और अनुभव पुनर्जीवित हो रहे हों।

कन्याकुमारी का ये स्थान हमेशा से मेरे मन के अत्यंत करीब रहा है। कन्याकुमारी में विवेकानंद शिला स्मारक का निर्माण श्री एकनाथ रानडे जी ने करवाया था। एकनाथ जी के साथ मुझे काफी भ्रमण करने का मौका मिला था। इस स्मारक के निर्माण के दौरान कन्याकुमारी में कुछ समय रहना, वहां आना-जाना, स्वभाविक रूप से होता था।

कश्मीर से कन्याकुमारी… ये हर देशवासी के अन्तर्मन में रची-बसी हमारी साझी पहचान हैं। ये वो शक्तिपीठ है जहां मां शक्ति ने कन्या कुमारी के रूप में अवतार लिया था। इस दक्षिणी छोर पर माँ शक्ति ने उन भगवान शिव के लिए तपस्या और प्रतीक्षा की जो भारत के सबसे उत्तरी छोर के हिमालय पर विराज रहे थे।

कन्याकुमारी संगमों के संगम की धरती है। हमारे देश की पवित्र नदियां अलग-अलग समुद्रों में जाकर मिलती हैं और यहां उन समुद्रों का संगम होता है। और यहाँ एक और महान संगम दिखता है- भारत का वैचारिक संगम!

यहां विवेकानंद शिला स्मारक के साथ ही संत तिरुवल्लूवर की विशाल प्रतिमा, गांधी मंडपम और कामराजर मणि मंडपम हैं। महान नायकों के विचारों की ये धाराएँ यहाँ राष्ट्र चिंतन का संगम बनाती हैं। इससे राष्ट्र निर्माण की महान प्रेरणाओं का उदय होता है। जो लोग भारत के राष्ट्र होने और देश की एकता पर संदेह करते हैं, उन्हें कन्याकुमारी की ये धरती एकता का अमिट संदेश देती है।

कन्याकुमारी में संत तिरुवल्लूवर की विशाल प्रतिमा, समंदर से मां भारती के विस्तार को देखती हुई प्रतीत होती है। उनकी रचना ‘तिरुक्कुरल’ तमिल साहित्य के रत्नों से जड़ित एक मुकुट के जैसी है। इसमें जीवन के हर पक्ष का वर्णन है, जो हमें स्वयं और राष्ट्र के लिए अपना सर्वश्रेष्ठ देने की प्रेरणा देता है। ऐसी महान विभूति को श्रद्धांजलि अर्पित करना भी मेरा परम सौभाग्य रहा।
स्वामी विवेकानंद जी ने कहा था- Every Nation Has a Message To deliver, a mission to fulfil, a destiny to reach.

भारत हजारों वर्षों से इसी भाव के साथ सार्थक उद्देश्य को लेकर आगे बढ़ता आया है। भारत हजारों वर्षों से विचारों के अनुसंधान का केंद्र रहा है। हमने जो अर्जित किया उसे कभी अपनी व्यक्तिगत पूंजी मानकर आर्थिक या भौतिक मापदण्डों पर नहीं तौला। इसीलिए, ‘इदं न मम’ यह भारत के चरित्र का सहज एवं स्वाभाविक हिस्सा हो गया है।

भारत के कल्याण से विश्व का कल्याण, भारत की प्रगति से विश्व की प्रगति, इसका एक बड़ा उदाहरण हमारी आज़ादी का आंदोलन भी है। 15 अगस्त 1947 को भारत स्वतंत्र हुआ। उस समय दुनिया के कई देश गुलामी में थे। भारत की स्वतन्त्रता से उन देशों को भी प्रेरणा और बल मिला, उन्होंने आजादी प्राप्त की। अभी कोरोना के कठिन कालखंड का उदाहरण भी हमारे सामने है। जब गरीब और विकासशील देशों को लेकर आशंकाएं व्यक्त की जा रही थीं, लेकिन, भारत के सफल प्रयासों से तमाम देशों को हौसला भी मिला और सहयोग भी मिला।

आज भारत का गवर्नेंस मॉडल दुनिया के कई देशों के लिए एक उदाहरण बना है। सिर्फ 10 वर्षों में 25 करोड़ लोगों का गरीबी से बाहर निकलना अभूतपूर्व है। प्रो-पीपल गुड गवर्नेंस, aspirational district, aspirational block जैसे अभिनव प्रयोग की आज विश्व में चर्चा हो रही है। गरीब के सशक्तिकरण से लेकर लास्ट माइल डिलीवरी तक, समाज की अंतिम पंक्ति में खड़े व्यक्ति को प्राथमिकता देने के हमारे प्रयासों ने विश्व को प्रेरित किया है। भारत का डिजिटल इंडिया अभियान आज पूरे विश्व के लिए एक उदाहरण है कि हम कैसे टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल गरीबों को सशक्त करने में, पारदर्शिता लाने में, उनके अधिकार दिलाने में कर सकते हैं। भारत में सस्ता डेटा आज सूचना और सेवाओं तक गरीब की पहुँच सुनिश्चित करके सामाजिक समानता का माध्यम बन रहा है। पूरा विश्व technology के इस democratization को एक शोध दृष्टि से देख रहा है और बड़ी वैश्विक संस्थाएं कई देशों को हमारे मॉडल से सीखने की सलाह दे रही हैं।

आज भारत की प्रगति और भारत का उत्थान केवल भारत के लिए बड़ा अवसर नहीं है। ये पूरे विश्व में हमारे सभी सहयात्री देशों के लिए भी एक ऐतिहासिक अवसर है। G-20 की सफलता के बाद से विश्व भारत की इस भूमिका को और अधिक मुखर होकर स्वीकार कर रहा है। आज भारत को ग्लोबल साउथ की एक सशक्त और महत्वपूर्ण आवाज़ के रूप में स्वीकार किया जा रहा है। भारत की ही पहल पर अफ्रीकन यूनियन G-20 ग्रुप का हिस्सा बना। ये सभी अफ्रीकन देशों के भविष्य का एक अहम मोड़ साबित हुआ है।

नए भारत का ये स्वरूप हमें गर्व और गौरव से भर देता है, लेकिन, साथ ही ये 140 करोड़ देशवासियों को उनके कर्तव्यों का अहसास भी करवाता है। अब एक भी पल गँवाए बिना हमें बड़े दायित्वों और बड़े लक्ष्यों की दिशा में कदम उठाने होंगे। हमें नए स्वप्न देखने हैं। अपने सपनों को अपना जीवन बनाना है, और उन सपनों को जीना शुरू करना है।

हमें भारत के विकास को वैश्विक परिप्रेक्ष्य में देखना होगा, और इसके लिए ये जरूरी है कि हम भारत के अंतर्भूत सामर्थ्य को समझें। हमें भारत की शक्तियों को स्वीकार भी करना होगा, उन्हें पुष्ट भी करना होगा और विश्व हित में उनका सम्पूर्ण उपयोग भी करना होगा। आज की वैश्विक परिस्थितियों में युवा राष्ट्र के रूप में भारत का सामर्थ्य हमारे लिए एक ऐसा सुखद संयोग और सुअवसर है जहां से हमें पीछे मुड़कर नहीं देखना है।

21वीं सदी की दुनिया आज भारत की ओर बहुत आशाओं से देख रही है। और वैश्विक परिदृश्य में आगे बढ़ने के लिए हमें कई बदलाव भी करने होंगे। हमें reform को लेकर हमारी पारंपरिक सोच को भी बदलना होगा। भारत reform को केवल आर्थिक बदलावों तक सीमित नहीं रख सकता है। हमें जीवन में हर क्षेत्र में reform की दिशा में आगे बढ़ना होगा। हमारे reform 2047 के विकसित भारत के संकल्प के अनुरूप भी होने चाहिए।

हमें ये भी समझना होगा कि किसी भी देश के लिए reform कभी एकाकी प्रक्रिया नहीं हो सकती। इसीलिए, मैंने देश के लिए reform, perform और transform का विज़न सामने रखा। reform का दायित्व नेतृत्व का होता है। उसके आधार पर हमारी ब्यूरोक्रेसी perform करती है और फिर जब जनता जनार्दन इससे जुड़ जाती है, तो transformation होते हुए देखते हैं।

भारत को विकसित भारत बनाने के लिए हमें श्रेष्ठता को मूल भाव बनाना होगा। हमें Speed, Scale, Scope और Standards, चारों दिशाओं में तेजी से काम करना होगा। हमें मैन्युफैक्चरिंग के साथ-साथ क्वालिटी पर जोर देना होगा, हमें zero defect- zero effect के मंत्र को आत्मसात करना होगा।

हमें हर पल इस बात पर गर्व होना चाहिए कि ईश्वर ने हमें भारत भूमि में जन्म दिया है। ईश्वर ने हमें भारत की सेवा और इसकी शिखर यात्रा में हमारी भूमिका निभाने के लिए चुना है।हमें प्राचीन मूल्यों को आधुनिक स्वरूप में अपनाते हुये अपनी विरासत को आधुनिक ढंग से पुनर्परिभाषित करना होगा।

हमें एक राष्ट्र के रूप में पुरानी पड़ चुकी सोच और मान्यताओं का परिमार्जन भी करना होगा। हमें हमारे समाज को पेशेवर निराशावादियों के दबाव से, Professional Pessimists के दबाव से बाहर निकालना है। हमें याद रखना है, नकारात्मकता से मुक्ति, सफलता की सिद्धि तक पहुंचने के लिए पहली जड़ी-बूटी है। सकारात्मकता की गोद में ही सफलता पलती है।

भारत की अनंत और अमर शक्ति के प्रति मेरी आस्था, श्रद्धा और विश्वास भी दिन-प्रतिदिन बढ़ते जा रहे हैं। मैंने पिछले 10 वर्षों में भारत के इस सामर्थ्य को और ज्यादा बढ़ते देखा है और ज्यादा अनुभव किया है। जिस तरह हमने 20वीं सदी के चौथे-पांचवे दशक को अपनी आज़ादी के लिए प्रयोग किया, उसी तरह 21वीं सदी के इन 25 वर्षों में हमें विकसित भारत की नींव रखनी है। स्वतंत्रता संग्राम के समय देशवासियों के सामने बलिदान का समय था। आज बलिदान का नहीं निरंतर योगदान का समय है।

स्वामी विवेकानंद ने 1897 में कहा था कि हमें अगले 50 वर्ष केवल और केवल राष्ट्र के लिए समर्पित करने होंगे। उनके इस आह्वान के ठीक 50 वर्ष बाद, 1947 में भारत आज़ाद हो गया। आज हमारे पास वैसा ही स्वर्णिम अवसर है। हम अगले 25 वर्ष केवल और केवल राष्ट्र के लिए समर्पित करें। हमारे ये प्रयास आने वाली पीढ़ियों और आने वाली शताब्दियों के लिए नए भारत की सुदृढ़ नींव बनकर अमर रहेंगे। मैं देश की ऊर्जा को देखकर ये कह सकता हूँ कि लक्ष्य अब दूर नहीं है। आइए, तेज कदमों से चलें…मिलकर चलें, भारत को विकसित बनाएं।

(यह विचार पीएम मोदी ने 1 जून को कन्याकुमारी से दिल्ली लौटते समय विमान में शाम 4:15 बजे से 7 बजे के बीच लिखे हैं।)

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कमल का ये फूल भारत में खिलते हैं

गुलाब के फूल से बागान महकते है
चमेली के फूल चमन में चहकते है।
राष्ट्रप्रेमी जन नई इबारत लिखते है,
कमल का ये फूल भारत में खिलते हैं।।

कीचड़ उछालने वाले जग में लाख है मगर,
कंठ तक जल में गड़ा, मुस्कुराता है कमल।
आंधी तूफ़ान को ये सहते जा रहा है कमल,
तभी तो जग को लुभाता आ रहा है कमल।।

कंठ तक जल में गड़ा, रहकर मुस्कुराता है कमल ,
संसार के दिल जिगर को नित नित लुभाता है कमल ।
भोर की किरणें रवि की न जाने क्या था असर छोड़ा,
शाम तक बिल्कुल नहीं पलको को झुकता है कमल ।।

ताल मिटते जा रहे हैं अब कहाँ जा करके खिले ,
आँसुओं की झील में ही झिलमिलाता है कमल ।
रूप की आराधना में यह साथ कवियों का दिया ,
सुन्दरी की श्यामल अलकों को सजाता है कमल ।।

पी गया यह शान से जो गर्दिशों की धूप को ,
ज़िन्दगी का फ़लसफ़ा सबको सिखाता है कमल ।
साथ रोटी के, शहीदों का बना सम्बल कभी,
राष्ट्र की आराधना के गीत गाता है कमल ।।

दीन दयाल उपाध्याय की सहाद्त दिखा रहा कमल।
श्यामा प्रसाद मुखर्जी की कीर्ति लिखा रहा कमल।
अटल जी की अटूट निष्ठा को दिखा रहा है कमल।
आडवाणी की कुर्बानी भी बयां कर रहा है कमल।।

धर्मनीति योगी का है बुलडोजर चला रहा है।
शाह जी का शय मात का खेल खिला रहा है।
सूरज तपन में कमल कीचड़ में खिल रहा है।
भारत देश तीसरी बार मोदी को अपना रहा है !!

कवि का परिचय:-
(कवि ,भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण, आगरा मंडल ,आगरा में सहायक पुस्तकालय एवं सूचनाधिकारी पद से सेवामुक्त हुए हैं। वर्तमान समय में उत्तर प्रदेश के बस्ती नगर में निवास करते हुए समसामयिक विषयों,साहित्य, इतिहास, पुरातत्व, संस्कृति और अध्यात्म पर अपना विचार व्यक्त करते रहते हैं )

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चित्रनगरी संवादमंच में रातभर नाटक का मंचन और गीता पर सम्वाद

मुंबई। दीप्ति मिश्र व असीमा भट्ट लिखित, निर्देशित नाटक ‘रात भर’ का मंचन देखने के लिए साहित्य, संगीत और रंगमंच की दुनिया से अच्छी तादाद में लोग पधारे। रविवार 2 जून 2024 को चित्रनगरी संवाद मंच मुम्बई की ओर से मृणालताई हाल, केशव गोरे स्मारक ट्रस्ट, गोरेगांव में आयोजित इस नाटक का प्रथम मंचन शानदार और यादगार रहा। आधुनिक और पारंपरिक सोच की दो महिलाओं को घनघोर बारिश में रात भर साथ रहना पड़ता है।

दोनों की व्यथा कथा को संप्रेषित करने में दीप्ति मिश्र और असीमा भट्ट ने कमाल का अभिनय किया। कहानी और अभिनय दोनों की जमकर तारीफ़ हुई। मंचन के बाद इस प्रस्तुति पर ज़ोरदार चर्चा हुई। वरिष्ठ अभिनेत्री सविता बजाज, राजेंद्र गुप्ता, विष्णु शर्मा, सूरज प्रकाश, अनूप सेठी, रेहाना वजाहत, विभा रानी, सुभाष काबरा, डॉ नांगल, लता हया, मीनू मदन, धर्मेश बोथरा, आर एस विकल और रवि यादव ने इस नाटक के बारे में महत्त्वपूर्ण विचार व्यक्त किये।
शुरूआत में श्रीमदभगवत गीता का दोहानुवाद करने वाले कवि यशपाल सिंह यश ने “आज के समय में गीता” विषय पर वक्तव्य दिया। अपनी पुस्तक से उन्होंने चुनिंदा दोहे भी सुनाए। यश जी के अनुसार अर्जुन की तरह आज किसी भी इंसान को संशय हो जाता है। श्रीमदभगवत गीता आज भी हर संशय के निवारण में समर्थ है।

सुप्रसिद्ध पंजाबी कवि पाश की कविता “सपनों का मर जाना” का पाठ आरजे दिलीप सिंह ने बहुत अच्छे अंदाज़ में किया। काव्य पाठ के सत्र में मशहूर शायरा लता हया, मीनू मदान, अर्चना जौहरी, उषा मौर्य और दिल्ली से पधारी कवयित्री ऋतुपर्णा ने विविधरंगी कविताओं का पाठ किया। लोकप्रिय गायक संगीतकार सुधाकर स्नेह के गायन से कार्यक्रम का समापन हुआ।

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एक बीघा क्षेत्र में फैला है 150 साल पुराना वटवृक्ष

#बिहार के एक ऐसे #पेड़ की #कहानी जो अपने आप में खास है.यह जंगल नहीं, बल्कि 150 साल पुराना वटवृक्ष है। इसकी करीब 200 शाखाएं एक बीघा क्षेत्र में फैली हैं। यह पेड़ गोपालगंज जिला मुख्यालय से 52 किलोमीटर दूर बैकुंठपुर प्रखंड के राजापट्टी कोठी स्थित सोनासती देवी मंदिर के पास है। इसे अंग्रेजों ने संरक्षित किया था। अंग्रेज यहां नील की खेती किया करते थे।

इसकी खासियत यह है कि इसके नीचे तापमान 5 से 6 डिग्री कम रहता है।कालांतर में अंग्रेज यहां नील की खेती किया करते थे. उस दौरान यहां काम कर रहे मजदूरों को छाया और गर्मी के दिनों में ठंडक देने के लिए इस पेड़ को लगाया गया था. इस पेड़ की खासियत यह है कि इस पेड़ के बीच में और नीचे तापमान अन्य जगहों से 5 से 6 डिग्री कम रहता है. गर्मी के दिनों में चलने वाली लू और गर्म हवाएं भी इसकी छाया में पहुंच कर ठंडी हो जाती है.इस पेड़ की शाखाएं एक-दूसरे से गूंथकर जमीन में अपनी मोटी जड़ें जमा चुकी हैं. जड़ों के लिहाज से यहां सिर्फ एक पेड़ की वजह से जंगल जैसा नजारा दिखता है. इस वट वृक्ष की मोटी जड़ें 50 किलोग्राम कार्बन डाईआक्साइड सोखती हैं. ऐसा जानकर मानते है. ये शाखाएं अपने आप में कार्बन सोखने के लिए फ़िल्टर का काम करती है।

पर्यावरणविद और वनस्पति विज्ञानं के प्रोफ़ेसर डॉ ए के सिंह के मुताबिक ऐसे पेड़ को अक्षय वट कहते हैं. इसका बॉटेनिकल नाम- फिक्स रीलिजोसा है. इसकी फैमिली-मोरसिया है. इसकी शाखाएं 50 से 60 किलो ग्राम कार्बन-डाईऑक्साइड सोखतीं है. अधिक मात्रा में कार्बन अवशोषित करने के चलते यह ऑक्सीजन ज्यादा उत्सर्जित करता है.

ऐसे पुराने पेड़ जितना ज्यादा घने और ज्यादा शाखाएं होती हैं वो नमी और ऑक्सीजन ज्यादा उत्सर्जित करती हैं. यही कारण है कि जब बाहर का तापमान 35 से 40 डिग्री सेल्सियस के बीच हो तो इसकी छाया में पारा 30 से 35 डिग्री रहता है.बताया जाता है कि महिला अंग्रेज हेलेन ने इस पेड़ को संरक्षित किया था. इस पेड़ के सामने अंग्रेजों की हवेली का खंडहर हुआ करता था जो अब दूर-दूर तक नहीं दिखाई देती. लेकिन यह विशाल वट वृक्ष आज भी वैसे ही खड़ा है. ब्रिटिश हुकूमत में यहां नील की खेती होती थी. कोठी में अंग्रेज अधिकारी के साथ उनकी पत्नी हेलेन भी रहती थी. आसपास की महिलाएं यहां सोनासती मईया की पूजा करने आती थीं. तब हेलेन ने इस पेड़ को संरक्षित किया था, ताकि पूजा-पाठ हो और मजदूरों को छाया मिल सके.


लेखक विभिन्न रोचक व सामाजिक विषयों पर लिखते हैं

साभार- https://www.facebook.com/anoopnaraian.singh से

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