Saturday, November 23, 2024
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चौपाल में हुई अहसासों की बारिश

25 जून रविवार और वहग भी बारिश से तरबतर मुंबई, 20 साल की हो चुकी चौपाल 21वें साल में प्रवेश कर रही थी और बारिश के तेवर देखकर ऐसा लग रहा था कि इस बार चौपाली बारिश से हार जाएंगे, लेकिन ये चौपाल का ही जलवा है कि दस मिनट का रास्ता एक घंटे में तय करने का हौसला चौपालियों में निराशा या हताशा पैदा नहीं करता, हर बार की तरह चौपाल जमी और खूब जमी। 20 साल की हो चुकी चौपाल ने अपनी विलक्षता, सरसता, संगीत, गायन, नृत्य, साहित्य, नाटक से लेकर हर उस विधा से मुंबई के चौपालियों को ऐसा सराबोर किया है कि अब चौपाल हर एक के लिए महीने में आने वाला त्यौहार हो गया है। अब अगर कोई चौपाल में नहीं आ पाता है तो अगली चौपाल तक अपने आपको खाली खाली महसूस करता है। यही है चौपाल की असली ताकत और इस ताकत को बनाए रखा है श्री अतुल तिवारी, शेखर सेन और राजेन्द्र गुप्ता जैसी त्रिमूर्ती और अशोक बिंदल जैसे सारथी ने। इन चारों के बगैर चौपाल की कल्पना भी नहीं की जा सकती और चारों में से एक भी गैर हाजिर हो तो चौपाल तमाम खूबियों के बावजूद खाली खाली रहती है। कविता गुप्ता व दिनेश गुप्ता इस चौपाल के वो स्तंभ हैं जिनके परिवार का समर्पण और आतिथ्य सत्कार का भाव चौपालियों को मुंबई शहर की भीड़ में ये एहसास कराता है कि चौपाल में न आएँ हों मानो किसी पारिवारिक समारोह में मेहमान बनकर आए हों।

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भुवंस कल्चरल सेंटर के एसपीजैन ऑडिटोरियम में चौपाल की शुरुआत हुई, बीस साल की यादों से सजी डॉक्यूमेंट्री से जिसे बनाया सुदूर जयपुर में बैठे चौपाल प्रेमी पवन झा ने और मुंबई से सहयोग दिया निशांत ने।

श्री अतुल तिवारी का अपना अंदाज़ होता है उन्होंने चौपाल की 20 साल की यात्रा की शुरुआत इन पंक्तियों से की-

12 बरस कुकुर जिए, 16 जिए सियार,

बरस 18 छत्री (क्षत्रिय) जिए, ज्यादा जिए तो धिक्कार।

ये पंक्तियाँ प्राचीन काल में क्षत्रियों के लिए कही जाती थी।

अतुल जी ने बताया कि किस तरह 25 जून 1998 को बरसात में पहली चौपाल वर्सोवा के 15 नंबर बंगले में जमी थी और चौपाल में आए रसिकों के जूते भारी बारिश में पूरी तरह भीग गए थे।

इसके बाद चौपाल श्री राजेन गुप्ता के वर्सोवा के 30 नंबर वाले बंगले में जमी, जिसमें अशोक बाँठिया, अशोक बिंदलजी, राजेन गुप्ता जी, अतुल तिवारीजी, डॉ. चन्द्रप्रकाश द्विवेदी आदि ने मिल बैठकर तय किया कि मुंबई की भाग-दौड़ की जिंदगी में ऐसा कुछ किया जाए कि हम अपने सहयोगी साथियों, मित्रों, कलाकारों आदि से बगैर किसी मतलब के मिल सकें, कुछ उनकी सुनें, कुछ उनसे कहें। कुछ देर माथा-पच्ची करने के बाद चौपाल नाम पर सह

मति हुई और ये तय किया गया कि महीने में दो बार हम ऐसे ही मिला करेंगे। इसके बाद पहली चौपाल 15 वर्सोवा के 15 नंबर के बंगले में कालिदास पर हुई जिसमें श्री शेखर सेन ने कालिदास पर नागार्जुन की लिखी कविता की प्रस्तुति से की। लेकिन दो बार की जगह महीने में एक बार आयोजित करने पर ही सहमति बनी।
इसके बाद चौपाल ने शायद पीछे पलटकर नहीं देखा, न कोई अध्यक्ष, न सचिव, न कोषाध्यक्ष और न कोई कोष बस, चौपाल अनवरत चलती रही। अतुलजी, शेखरजी हर बार किसी नए रोमांचक और समसामयिक विषय को चुनते इस पर शोध करते और विषय से जुड़े जानकार लोगों को तलाश करके उन्हें चौपाल में आमंत्रित करते। इस तरह हर बार चौपाल में एक नया रंग, एक नया रस और एक नया अवतार सामने आता। 20 सालों की ये 253 वीं चौपाल थी।

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पने काँटे जैसे नुकीले व्यंग्य से गुदगुदाने वाले स्व. यज्ञ शर्मा भी। इन 20 सालों में चौपाल से जुड़ने वालों का सिलसिला एक कारवाँ सा बन गया, रंगकर्मी दिनेश ठाकुर, गज़ल गायक स्व. जगजीत सिंह, अभिनेता सत्येन कप्पू, संगीतकार रवीन्द्र जैन, भीमसेन, निदा फाज़ली, हबीब तनवीर, ए.के. हंगल, जाने माने अनुवादक और पंजाबी लेखक सुखबीर, मंच सचालक स्व, आलोक भट्टाचार्य, पुष्पा भारती सबने चौपाल को समृध्द तो किया ही, चौपाल मुंबई का एक ऐसा नाम हो गया कि किसी का चौपाल में जाना ही सम्मान और गौरव का प्रतीक बन गया।

चौपाल की इस 20 साल की यात्रा को पुराने ऑडियो कैसेट में रेकॉर्ड करने वाले लट्टूजी बागड़ी पहली बार मंच पर आए और उन्होंने बताया कि कैसे ये कैसेट उनके घर का एक ज़रुरी हिस्सा हैं। मुझे पता नहीं इस डिजिटल दुनिया में जब कैसेटों का महत्व नहीं रहा है तो इनका आगे क्या होगा, मगर मेरे घर में इनकी मौजूदगी मुझे बहुत सकून देती है। लट्टू जी की एक और खासियत अतुलजी ने बताई कि वे मुंबई जैसे शहर में बाहर से इलाज के लिए आने वाले मरीजों को सही डॉक्टर से मिलवाने से लेकर उनको इलाज में हर तरह का मार्गदर्शन करते हैं ताकि उनका पैसा और समय बेकार न जाए।

चौपाल की हर गतिविधि को अपनी कलम में पिरोने वाली निर्मला डोसी ने मंच पर आकर बताया कि चौपाल ने उनकी लेखनी को सुलझाया, संतुलित भी किया और समृध्द भी। मैने इसलिए लिखना शुरु किया कि लिखा हुआ रह जाता है, बाकी सब बह जाता है। उन्होंने राजेन गुप्ताजी के आंगन में होने वाली चौपाल और गुप्ताजी के आंगन में बिखरे प्राकृतिक वैभव से लेकर अध्यात्म पुरातत्व और संस्कृति के रंगों का जो रूपक और बिंब प्रस्तुत किया, उससे एहसास हुआ कि गुप्ताजी के आंगन में चौपाल के न रहने से कितना कुछ पीछे छूट गया है।

चौपाल का समापन हमेशा की तरह श्री शेखर सेन की संगीतमयी प्रस्तुति से हुआ। शेखर जी ने कवि प्रदीप की कविता और सखी संप्रदाय के ललित किशोरी की रचना प्रस्तुत की। ललित किशोरी क का जन्म का नाम कुंदनलाल था। इनके पिता गोविंदलाल लखनऊ के निवासी थे और वाजिद अली शाह के दरबार में संगीतज्ञ थे। ललित किशोरी के नाम से उन्होंने कृष्ण को समर्पित कई भजन लिखे। उनमें से एक भजन श्री शेखरजी अपने खास अंदाज़ में पेश करते हैं और इस बार भी उन्होंने श्रोताओं को निराश नहीं किया।

लजीले, सकुचीले, सरसीले, सुरमीले से,
कटीले और कुटीले, चटकीले मटकीले हैं।

रूप के लुभीले, कजरीले उनमीले, बर-
छीले, तिरछीले से फँसीले औ गँसीले हैं॥

‘ललित किसोरी’ झमकीले, गरबीले मानौं,
अति ही रसीले, चमकीले औ रँगीले हैं।

छबीले, छकीले, अरु नीले से, नसीले आली,
नैना नंदलाल के नचीले और नुकीले हैं॥

बरसों तक चौपाल को अतिथि सत्कार देने वाली वीणा भाभी (श्रीमती राजेन गुप्ता) ने कहा, चौपाल से मुझे ऐसे रिश्ते मिले जिसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती।

कुलदीप सिंह जी के बगैर तो चौपाल की गाथा आगे बढ़ ही नहीं सकती। कुलदीप सिंहजी, और उनके बेटे जाने-माने गायक जसविंदर सिंह चौपाल में हर बार अपने सहयोगी कलाकारों के साथ कभी कबीर, तो कभी नज़ीर से लेकर हर फनकार को लेकर हाजिर होते हैं। इस बार उनकी तीसरी पीढ़ी यानी जसविंदरजी का बेटा अमन सिंह कुलदीप सिंहजी के निर्देशन में कलाकारों द्वारा प्रस्तुत जाँ निसार अख्त़र की गज़लों की प्रस्तुति में शामिल था।

जाने माने अभिनेता पवन मल्होत्रा ने कहा कि चौपाल में आकर हर बार ऐसा कुछ नया मिल जाता है, जिसके बारे में सोचा भी नहीं जा सकता।

चौपाल में लगातार अपने परिवार के साथ आ रहे राकेश साहू का कहना था कि मैं किस्मतवाला हूँ कि चौपाल का और मेरा जन्म दिन एक ही दिन 25 जून को है और मैं यहाँ आकर बगैर काम के सब लोगों से मिल लेता हूँ।

इस अवसर पर जाने माने अभिनेता और देश के सबसे लोकप्रिय नाटक चाणक्य के निर्माता-निर्देशक श्री अशोक बाँठिया ने कहा, हम सब लोग मुंबई से बाहर से आए हैं। हमको ऐसा लगता है कि हम बहुत लोगों को जानते हैं, हम सब जानते हैं, चारों तरफ हमारी पहचान है, लेकिन ये कभी महसूस नहीं होता था कि मह किसी को नहीं जानते। हम चार-पाँच लोगों ने एक दूसरे का नमक खाकर इस चौपाल की नींव रखी, वही नमक इस चौपाल को चौपाल बनाए हुए है। उन्होंने कहा कि हम जो भी काम करते हैं ससे हमारा दिल बहलता है लेकिन सुकून नहीं मिलता, ऐसा लगता था कि हम एक झूठ से अपने आपको बहला लेते हैं, लेकिन चौपाल ऐसा मंच है जहाँ हम खुद को जान लेते हैं, खुद को पहचान लेते हैं।

पूना से आई रचना भंडारी ने कहा कि मैं गुप्ताजी के आंगन में होने वाली चौपाल में कई सालों तक आती रही मगर मुझे ये पता ही नहीं था कि ये घर गुप्ता जी का है, क्योंकि उस घर में आप सबसे घुल-मिल जाते थे। चौपाल में आकर मेरी लेखनी, मोरी सोच और मेरा व्यक्तित्व सबकुछ बदल गया।

जाने माने मंच संचालक और जिनकी आवाज़ दिल्ली और मुंबई की मेट्रों में लगातार गूँजती रहती है, हरीश भिमानी ने कहा कि इंटरनेट व सोशल मीडिया के दौर में भी चौपाल का ये अंदाज़ हमें नई ताज़गी देता है।

चौपाल के नियमित श्रोता व जाने माने गज़लकार श्री हस्तीमल हस्ती ने अपनी गज़लों से चौपाल के साथ अपने जुड़ाव के एहसास को साझा किया।

दिनेश गुप्ता और कविता गुप्ता मंच पर आए और उन्होंने तो मानों चौपाल का सारा निचोड़ पेश कर दिया। कविता जी ने कहा कि मेरे बच्चों को इस चौपाल से ऐसे संस्कार मिले कि मुझे अपने बच्चों पर और अपने आप पर गर्व होता है, तो श्री दिनेश गुप्ता ने कहा कि चौपल की वजह से मैं कविता को समझ पाया नहीं तो मैं इनको कभी नहीं समझ पाया, और जाहिर है इतनी मीठी आत्मस्वीकृति पर जोरदार तालियाँ तो बजना ही थी।

श्री अतुल तिवारी ने भी स्वीकार किया कि कई बार लोग हमें ये श्रेय देते हैं कि हमारी वजह से ये चौपाल इतनी बढ़िया होती है, जबकि मेरा मानना है कि हम जिस विषय का चयन करते हैं उसको लेकर हमारा भी ज्ञान सीमित ही होता है लेकिन चौपाल की वजह से कई लोगों से मिलना और जानना हो जाता है। चौपाल ने मुझे 254 विषयों को जाने और समझने का मौका दिया है।

श्वेता भाभी (श्रीमती शेखर सेन) ने कहा कि जब पहली चौपाल हुई तब मेरा बेटा सौरभ पालने में था। तब शेखरजी चौपाल की पहली मीटिंग राजेन गुप्ता के घर करके आए थे और बड़े उत्साहित होकर बता रहे थे कि उनके घर में बड़ा सा आंगन है और वहाँ चौपाल जैसा कुछ किया जाएगा।

श्री राजेन गुप्ता ने कहा कि जिस आंगन में चौपाल होती थी वह आज भले ही नहीं है, लेकिन चौपाल की ऊर्जा और संवेदना कभी कम नहीं होगी। उन्होंने कहा कि मुझे चौपाल की शुरुआत के वो दिन याद आते हैं जब शेखर जी का तुलसी पर तैयार किया गया नाटक भाईदास हाल में होने वाला था और अशोक बाँठिया और मेरे बाकी मित्र ये नाटक देखने जाने की जिद कर रहे थे, मैने कहा तुलसी पर नाटक क्या देखना। मगर जब मैं नाटक देखने गया तो मैने महसूस किया कि अगर शेखर सेन को तुलसी के रूप में नहीं देखता तो मैं कितना कुछ खो देता। इसके बाद तो शेखर जी ने और हमने चौपाल शुरु की और पहली चौपाल में मैने राही मासूम रज़ा की टोपी शुक्ला का पाठन किया था।

चौपाल में आने वाले सभी साथियों के लिए भरपूर स्वल्पाहार का प्रबंध करने वाले श्री अशोक बिंदल ने कहा कि चौपाल के लिए एक चाय वाले की ज़रुरत थी और मुझे वहा काम मिल गया। चौपाल में एक ऐसा परिवार मिला है, जो सब रिश्तों से बढ़कर है।

इस अवसर पर भुवंस कल्चरल सेंटर के श्री ललित वर्मा ने कहा कि साहित्य, कला और संस्कृति की प्यास ऐसी होती है कि इसे जितना पाओ मिटती नहीं है, आज 75 साल की उम्र में भी चौपाल से बहुत-कुछ सीखता रहता हूँ।

जाने माने व्यंग्यकार श्री सुभाष काबरा, जो हर बार चौपाल के लिए एक नई रचना लेकर आते हैं, अपनी रचना नई रचना से श्रोताओं का भरपूर मनोरंजन किया।

इस अवसर पर श्री नीतिन तिवारी ने भी अपनी कविता प्रस्तुत की।

चौपाल का एक और आकर्षण था तापसी जी नागराज जो जबलपुर से आई थी, उनके द्वारा प्रस्तुत गीत- छाएँगे कारे बादल, पिया तुम घर आ जाना…। उनके बेटे श्रीधर नागराज चौपाल में हर बार हिंदी गीतों की एक नई संगीतमयी प्रस्तुति लेकर आते हैं।

स्वर्गीय पं. विनोद शर्मा की बेटी मिनी गोयल ने भी चौपाल के प्रति अपनी कृतज्ञता व्यक्त की। अकोला से आए कवि घनश्याम पटेल ने चौपाल के प्रति अपना अहोभाव प्रकट किया।

चौपाल का फेसबुक पेज- https://www.facebook.com/Chaupaal/

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