नई दिल्ली। चरमपंथियों के दबाव में मलयालम लेखक एमएम बशीर को रामायण पर अपना कॉलम बंद करना पड़ा। साहित्यिक समालोचक एमएम बशीर ने अगस्त में मलयालम दैनिक मातृभूमि के लिए अपने कॉलम लिखने को तैयार थे। संपादक से उन्होंने छह स्तंभ लिखने का वादा किया था।
मगर, लगातार मिल रही धमकियों के बाद उन्होंने पांच स्तंभ ही लिखे। बशीर को अनजान लोगों की ओर से फोन पर धमकियां मिल रही थीं। उन्हें एतराज था कि बशीर मुसलमान हैं, तो फिर वे राम पर क्यों लिख रहे हैं। इस स्तंभ के पहले दिन छपने के बाद से ही अखबार के संपादकों को रोजाना लोगों की गालियां का सामना करना पड़ा था।
इंडियन एक्सप्रेस में प्रकाशित खबर के मुताबिक, तीन अगस्त को पहला स्तंभ ‘श्रीराम का क्रोध’ प्रकाशित हुआ था। इसके बाद से ही लोगों ने विरोध करना शुरू कर दिया था। चार दिन बाद पांचवां स्तंभ छपने के पश्चात बशीर ने फैसला कर लिया कि वे आगे नहीं लिखेंगे।
बशीर ने बताया कि 75 साल की उम्र में मैं सिर्फ मुसलमान होकर रह गया। मुझसे यह सब सहा नहीं गया और मैंने लिखना बंद कर दिया। कालीकट विश्वविद्यालय में मलयालम के पूर्व प्रोफेसर बशीर ने कहा कि फोन करने वाले पूछते थे कि तुम्हें भगवान राम पर लिखने का क्या अधिकार है।
उन्होंने बताया कि मेरे स्तंभों की श्रृंखला वाल्मीकि रामायण पर आधारित थी। वाल्मीकि ने राम का चित्रण मानवीय गुणों के आधार पर किया था और उनके कार्यकलापों की आलोचना से परहेज नहीं किया। फोन करने वालों ने वाल्मीकि द्वारा राम की आलोचना को अपवादस्वरूप लिया, जो कि उद्धरणों के साथ थी। ज्यादातर लोगों ने मेरे पक्ष को समझने का प्रयास भी नहीं किया। वे सिर्फ मुझे गालियां देते रहे।
मातृभूमि में रामायण पर उन्होंने जो पांच टिप्पणियां लिखीं, वह सीता की अग्निपरीक्षा पर वाल्मीकि द्वारा राम की कथित आलोचना से जुड़ी थीं। ये लेख कवि वाल्मीकि की विद्वता को लेकर ज्यादा थे। मानवीय दशा पर लिखते समय उनकी अंतरदृष्टि पता चलती है। इसमें कहीं राम का अपमान नहीं है।
साभार- http://naidunia.jagran.com/ से