Friday, May 3, 2024
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प्रदूषण की समस्या का समाधान अग्निहोत्र विधि

अग्निहोत्र सामान्य रूप से घरों में किये जाने वाले होम की वैदिक और आयुर्वेदिक नित्य विधि है। यह एक विशेष औषधि है जिसका विवरण वैदिक शास्त्रों गृह्य सूत्र में मिलता है और चरक संहिता में भी वर्णित है। इसमें बहुत से भौतिक और रासायनिक गुण होते हैं और इसका प्रयोग चिकित्सा में भी किया जाता है। अग्निहोत्र से चिकित्सा दैव व्यापाश्रय चिकित्सा की श्रेणी में आती है।

अग्नि, प्रयुक्त सामग्री, मंत्र ध्वनि और अग्नि के संयोग से होने वाले इसके वैज्ञानिक प्रभावों में दो मुख्य हैं – (1) स्थान की उपस्थित ऊर्जा में परिवर्तन होना व ऊर्जा उत्पन्न होना । (2) स्थान की वायु का अति शुद्ध हो जाना।

सूर्य और अग्निहोत्र की दूर अवरक्त किरणें (फार इन्फ्रारेड रेडीऐशन ) प्रतिध्वनित होकर जीवन प्रक्रियाओं के लिए उपयोगी महत्वपूर्ण ऊर्जा (वाइटल एनर्जी) की विशाल मात्रा उत्पन्न करती हैं । अग्निहोत्र (औषधीय सामग्री के प्रयोग के साथ) के धुएं से कृत्रिम रूप से प्रदूषित क्षेत्र में सल्फर और नाइट्रोजन के ऑक्साइड की सांद्रता (कान्सन्ट्रैशन) कम हो जाती है । यज्ञ के आसपास की वायु में सस्पेंडेड पार्टिकुलेट मैटर (एसपीएम और आरएसपीएम) बहुत कम हो जाता है। अग्निहोत्र के समय उत्पन्न प्रोटॉन या इलेक्ट्रॉन वायु प्रदूषण को रोककर आसपास के वातावरण को ठीक और शुद्ध करते हैं। अग्निहोत्र पर बहुत बड़ी संख्या में आधुनिक शोध सफलता पूर्वक पूरी हो चुकी हैं और उनके शोध पत्र इंटरनेट पर उपलब्ध हैं।

आधुनिक विज्ञान के शब्दकोश में परिभाषित की गईं कई गैस बनती हैं। जो त्वचा और श्वास के माध्यम से मनुष्य के शरीर में जाती हैं। इसका प्रभाव मनुष्य शरीर के त्वचा, श्वास, कोशिका, नाड़ी, मन और सूक्ष्म गुण पर होता है। अग्निहोत्र को त्रिविध तापों से मुक्ति देने वाला कहा गया है।

अग्निहोत्र करना बहुत सरल है और इसे प्रत्येक घर में होना चाहिए, विशेषकर जहाँ प्रदूषण की समस्या है। घर के सभी सदस्य इसे सरलता से कर सकते हैं। इसे करने में लगभग 5 मिनट का समय लगता है। तो चलिए इसे सीखते हैं:

अग्निहोत्र करने के लिए आवश्यक सामग्री:

  • तांबे या मिट्टी का शुद्ध कोणों वाला हवनकुंड
  • देसी गाय के गोबर के कंडे/गौरी/उपले (छोटे व पतले हों तो सर्वथा उपयुक्त हैं)
  • गाय के दूध का शुद्ध घी ( ये बहुत थोड़ी मात्रा में चाहिए रहता है)
  • अक्षत / अखंडित चावल (बिना पॉलिश के, जैविक/आर्गेनिक सर्वोत्तम हैं)
  • अग्निहोत्र के मंत्र
  • सूर्योदय/सूर्यास्त का स्थानीय समय
  • इसमें सर्वाधिक स्वास्थ्य का लाभ लेने के लिए और घर की वायु को शुद्ध करने लिए सामग्री के रूप में 24 से 45 औषधियों का मिश्रण भी प्रयोग करना उत्तम होता है। ऐसी औषधीय सामग्री संस्कृति आर्य गुरुकुलम द्वारा बनाई भी जाती है, जो प्रयोग में सुविधाजनक है। इसमें मुख्य रूप से गुग्गलु, खस, मोथा, कपूर, कचाली, बेल, गिरी, गुलाब, पलाश, गिलोय, तगर, अगर, ब्राह्मी, इंद्र, जौ, रक्त चंदन, श्वेत चंदन, नागकेशर, अर्जुन त्वक, नौग्रह लकड़ी, कुश, उदुम्बर त्वक, वटवृक्ष त्वक, दूर्वा, छोटी इलायाची, जटामांसी, काली सरसव, पीली सरसव मिश्रित हैं।

अग्निहोत्र की तैयारी

हो सके तो लाल चावल (ब्राउन राइस) का प्रयोग करें। अधिक पॉलिश किया हुआ चावल अपनी पौष्टिकता खो देता है। ये चावल अक्षत हों अर्थात टूटे न हों तो उपयुक्त है। एक समय के अग्निहोत्र के लिए आधी अंजुलि या मुट्ठी अक्षत पर्याप्त हैं। प्रत्येक आहुति के लिए उतने अक्षत लें जो आपकी चुटकी (जो मध्यमा, अनामिका और अंगुष्ठ को मिलाकर बनती है) में आ जाएं। इन्हें एक पात्र में रख लें और किंचित घी मिला लें, केवल अक्षत को घी की परत दे देने के लिए।

अग्नि निर्माण व प्रज्वलन

गाय के कंडे को इस रूप से एक दूसरे के ऊपर रखें कि उनके बीच वायु जा सके। हर कंडे के टुकड़े पर घी भी डाल सकते हैं। एक छोटा टुकड़ा सबसे नीचे रखें, फिर दो टुकड़े विपरीत कोनों में रखें, फिर उनके ऊपर दो टुकड़े विपरीत कोनों में रखें। इसी प्रकार से तीन या चार परत बना सकते हैं।

अग्नि प्रज्वलित करने के लिए, बीच ने एक कर्पूर का टुकड़ा या घी व रुई की बत्ती जला कर रखें, एक उपले का घी लगा पतला छोटा टुकड़ा भी जला के बीच में रख सकते हैं। जब कुंड में रखे उपले अग्नि पकड़ लें तो वह आहुति के लिए पकी जानिए।

अग्नि प्रज्वलन सूर्योदय /सूर्यास्त के निर्धारित समय से 1-2 मिनट पहले आरम्भ करें जिससे अग्निहोत्र के समय पर वह पक कर प्रज्वलित हो। पूर्ण रूप से प्रज्वलित अग्नि में ही अक्षत व घी शीघ्र होम होंगे। अगर अग्नि क्षीण लगे तो उसमें 1-2 कंडे और रख दें।

अग्निहोत्र मंत्र:

सृष्टि में सब ओर चैतन्य की तरंगें विद्यमान हैं। जहाँ तरंगे हैं, वहाँ शब्द(ध्वनि) भी है। हम जब इन मंत्रों का उच्चारण करते हैं तो बोले जाने वाले मंत्रों की ध्वनि इन तरंगों को चैतन्य करके वातावरण में विशेष जीवन ऊर्जा उत्पन्न करती हैं।

जब हम एकाग्र मन से अग्निहोत्र की आहूति देते समय शुद्ध मंत्रों का उच्चारण करते हैं तो उन मंत्रों की शक्ति वातावरण में व अग्निहोत्र की भस्म में शेष हो जाती है। इसी कारण अग्निहोत्र की भस्म में कई औषधीय गुण होते हैं।

सूर्योदय/ सूर्यास्त, दोनों समय समान मंत्रों का उच्चारण किया जा सकता है।

ॐ अग्नये स्वाहा, इदं अग्नये इदं न मम।

ॐ सूर्याय स्वाहा, इदं अग्नये इदं न मम।

ॐ सोमाय स्वाहा, इदं सोमाय इदं न मम।

ॐ प्रजापतये स्वाहा, इदं प्रजापतये इदं न मम।

ॐ इन्द्राय स्वाहा, इदं इन्द्राय इदं न मम।

ॐ भूर्अग्नये स्वाहा, इदं भूर्अग्नये इदं न मम।

ॐ भूर्वायवे स्वाहा, इदं भूर्वायवे इदं न मम।

ॐ स्व आदित्याय स्वाहा, इदं आदित्याय इदं न मम।

ॐ भूर्भुवः स्वः अग्निवाऽवादित्येभ्य: स्वाहा ,इदं अग्निवाऽवादित्येभ्य: इदं न मम।

ॐ धनवन्तरये स्वाहा, इदं धनवन्तरये इदं न मम।

ॐ सुरभ्यै स्वाहा, इदं सुरभ्यै इदं न मम।

ॐ सरस्वत्यै स्वाहा, इदं सरस्वत्यै इदं न मम।

आहूति की विधि:

सूर्योदय/सूर्यास्त के ठीक समय पर पहला मंत्र बोलते हुए, अक्षत एवं घी की आहूति अग्नि को समर्पित करें। ‘मम’ कहने पर अग्नि में समर्पित करें। इसके बाद अगला मंत्र बोलते हुए, अक्षत एवं घी की आहूति अग्नि को समर्पित करें। सभी मंत्रों को एक के बाद एक बोलते हुए आहूति दें। एक मंत्र का उच्चारण एक ही बार करना है, एक से अधिक बार नहीं।

अंतिम आहूति के बाद आदर्श है कुछ देर उसी स्थान पर बैठें। वहीं बैठ कर ध्यान कर सकते हैं अथवा गायत्री मंत्र का मन में उच्चारण कर सकते हैं।

अग्निहोत्र सम्पन्न हो जाने के बाद उसकी अग्नि को अपने आप पूर्ण होने दें। हवन कुंड को हिलाएं डुलायें नहीं। अग्नि समाप्त हो जाने पर कुछ देर सुलगते हुए कंडों पर गुग्गुल अथवा रोग रक्षक धूप डाल सकते हैं। ये वातावरण को अधिक निर्मल व सुगंधित बनाएगा।

अग्नि के पूरी तरह शीतल हो जाने पर, अग्निहोत्र की भस्म को एकत्रित कर लें। इसे किसी मिट्टी, लकड़ी या शीशे के पात्र में रख सकते हैं। यह भस्म औषधीय है, इसे तांबें या सोने के अतिरिक्त किस मेटल के पात्र में न रखें।

आरोग्यं भास्करादिच्छेत् धनं इच्छेत् हुताशनात्।

ज्ञानं च शंकरादिच्छेत् मुक्तिमिच्छेत्जनार्दनात्॥

आरोग्य की इच्छा अथवा आरोग्य की प्रार्थना सूर्य से करो, धन की इच्छा अग्नि से करो, ज्ञान की इच्छा शंकर (आदिगुरु) से करो और मुक्ति अथवा मोक्ष की इच्छा जनार्दन अर्थात् विष्णु से करो।

यात्रा जारी है….

(लेखिका अंशु दुबे अपने को एक सतत जिज्ञासु कहती हैं। वर्तमान में संस्कृति आर्य गुरुकुलम में शिष्य तथा शिक्षक हैं। दर्शन, वैदिक शिक्षा और आयुर्वेद गुरुकुल में शिक्षण के मुख्य विषय हैं। प्राप्त ज्ञान को साझा करने की मंशा से विभिन्न वैदिक विषयों पर लिखती हैं। भारतीय इतिहास और वैदिक ज्ञान के आधुनिक शास्त्रीय प्रयोग उनकी रुचि के विषय हैं। फिनटेक, आईटी कंसल्टिंग के क्षेत्र में 20 वर्ष बिताने के बाद अब वैदिक ज्ञान, शिक्षा और शिक्षा पद्धति की साधना के प्रति समर्पित हैं)

साभार- https://x.com/AnshuDubey27/ से 

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