Saturday, April 27, 2024
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बासु दाः वो यादें वो किस्से जो अब एक धरोहर है!

एक नन्हा किंतु मार्मिक और दिलचस्प संस्मरण -बासु दा! मेरे चार दशक के अंतरंग, इस बहुत बुरे दौर में, वे भी मुझे अकेला छोड़ चले गए। बासु चटर्जी का जाना, सिर्फ़ एक निर्माता निर्देशक का जाना नहीं, साहित्य प्रेमी महान मनुष्य का जाना हैं दुनिया उन्हें चितचोर खट्टा-मीठा शौक़ीन स्वामी छोटी सी बात के निर्देशक रूप में जानती हैं हमने उनसे दूरदर्शन पर रजनी कक्काजी कहिन एक रुका हुआ फ़ैसला और ब्योमकेश बख़्शी बनवाए, आख़री काम उनसे जब मैं दूरदर्शन नेशनल और इंडियन क्लासिक सिरीज़ प्रमुख था “छब्बीस प्रेम कहानी” बनवायी थी, उसकी बहुत लंबी दास्तान हैं, मेरी आत्मीयता अंतरंगता अलग, वे दिल्ली आते द्वारका मेरे आवास पर ख़ूब बैठक होती मैं मुंबई जाता उन्ही के पास ठहरता, वे मुझे ट्राफ़ी वाले कमरे में ठहराते कहते इसी में राजेंद्र यादव कमलेश्वर रहते थे शरद जोशी सहित इन तीनों के ख़ूब क़िस्से सुनाते थे।

बेहद रोचक उनके पास अशोक कुमार नलिनी जयवंत के ख़ूब क़िस्से थे वे फ़िल्म जगत के विश्वकोश थे हम दोनों इंदौर जयपुर मुंबई कोलकत्ता लंदन सहित अनेक फ़िल्म फ़ेस्टिवल में साथ रहें कभी कभी दोनों ज़ूरी में भी, नेशनल फ़िल्म फ़ेस्टिवल में चेयर मेन थे सरकार ने दिल्ली में पार्क होटेल में ठहराया वहाँ उनका मन नहीं लगता तो रोज मेरे तब के एक कमरे के कर्ज़न रोड मकान में आ जाते शाम प्रेस क्लब! रास्ते में कटिंग जहाँ मैं बनवाता एशिया हाउस वहीं बैठ जाते बेहद सहज सरल, एक रात सारी रात गीतकार शैलेंद्र की बात करते रहें हम दोनों उसके दीवाने रोते रहें तब बताया वे मथुरा में शैलेंद्र के बाल सखा रहें थे, किसी विदेशी चेनल ने एक बार उनसे लम्बा साक्षात्कार चाहा, तो साफ़ कह दिया मुझसे बात तो सिर्फ़ राजा ही करेगा सात घंटे की वह रिकार्डिंग नायाब दुर्लभ रिकार्डिंग शायद सहेब इलियासी और मौशमी किसी बांग्ला भाषी लड़की के पास हो क्योंकि केमरा मेंन को मेरे कमरे में ले कर यह दोनों आए थे उस दिन दोपहर बारह बजे से शाम सात बजे तक उनसे बात की पर वे थकते नहीं थे उनकी मदिरा वे इतने शौक़ से रस ले ले कर पीते और उतने ही शौक़ से खाना खाते ख़ूब पढ़ते स्क्रिप्ट पर उनसे ज़्यादा मेहनत शायद ही कोई करता हो।

एक बेहतरीन इंसान, एक बेहद प्यारा निर्देशक, भरपूर ज़िंदगी जीनेवाला ट्रेंड सेटर चला गया। अरे, मैं  बताना भूल गया हमारी आख़िरी मुलाक़ात में एक रात सारी रात वे मुझसे चंद्र शेखर आज़ाद के बारे में सुनते रहे रोते रहे, कहने लगे कितना कम जानता हूँ मैं। वे और देवेंद्र खंडेलवाल आज़ाद पर कुछ करना चाहते थे शायद एक फ़िल्म, फिर वे बीमार रहने लगे नब्बे के हो चले होंगे साथ चले तो साठ से ज़्यादा दिखते नहीं, शौक़ीन बासु दा अलविदा! बासु दा का एक और दिलचस्प क़िस्सा याद आया! बासु दा ख़ुद ही बहुत रस ले कर सुनाते थे!

बासु भट्टाचार्य और बासु चटर्जी दोनों बड़े नाम, अक्सर बड़े बड़े लोग भी इन दोनों में गड़बड़ कर देते थे, बासु भट्टाचार्य सीनियर थे, अक्सर उनका सारा श्रेय भी हमारे बासु दा को मिल जाता था, मेरे एक प्रिय अंतरंग अग्रज सम्पादक भी अपने लेख और सम्पादकीय लेखों में अक्सर तीसरी क़सम फ़िल्म का श्रेय बासु चटर्जी के नाम कर देते हैं जबकि ये उसमें तीन असिस्टेंट में एक थे, लोग तो उन बासु भट्टाचार्य की फ़िल्म आविष्कार भुवनशोम छोड़ो ऋषिकेश मुखर्जी की भी बहुत सारी फ़िल्म को बासु दाँ की समझ लेते एक मज़ेदार बात हुई जब हमारे बासु दाँ “रजनी“ बना रहें थे तो उन्होंने एक एपिसोड में बम्बई (तब मुंबई नही हुई थी) के टैक्सी वालों की बदमाशी और लूट पाट की पोल खोली, दूसरे दिन सुबह अक्खि मुंबई के टैक्सी वाले हमारे दूरदर्शन के मुंबई बर्ली सेंटर पहुँच गए।

विरोध प्रदर्शन करने बासु दा बोले हँसने की बात यह वे नारे लगा रहे थे -बासु भट्टाचार्य मुर्दाबाद! हाय हाय और उनके पोस्टर पर भी फ़ोटो उन्ही बासु भट्टाचार्य की लगी थी! बासु दा बड़ा रस ले कर बताते यार उसके सब कामों का श्रेय तो मुझे मिलता ही मैं चुप रह कर मज़े लेता था पर बेचारे को मेरे किए की गाली भी बेवजह पढ़ती थी! एक बार मैंने उनसे पूछा -दादा! ए संजय लीला भंसाली इतना पैसा खर्चता हैं इतने बड़े बड़े सेट और अभी मुझसे पार्टी में कह रहा था -बासु दा मेरे प्रेरणा स्त्रोत हैं मैं इनसे इंस्पायर हुआ, आप तो कभी ऐसे भव्य सेट लगाते नहीं थे! उनका सहज उत्तर सुनना हैं? – यार! पैसे ही नही होते थे, होते तो हम भी लगाते! “क्या आज कोई मानेगा “छोटी सी बात” महज छह लाख रुपए में बन गयी थी इतने में आज किसी भी धारावाहिक का एक एपिसोड भी मुश्किल से बनता हैं। इस छः लाख में भी दो लाख बी आर चोपड़ा से उधार लिए थे इस लिए शुरू में ही बीआर फ़िल्म का लोगों देना पढ़ा! एक और बेहद सहज सरल प्रसंग बासु दा सच भी बहुत बोलते थे ईमानदार बहुत थे भाषा में भी जीवन में भी एक बार मैं उन्हें हमारे मंत्री से मिलाने ले गया, मैंने कहा -सर ए बासु चटर्जी हैं इन्होंने अपने लिए “रजनी” कक्का जी कहिन “ब्योमकेश बक्शी, एक रुका हुआ फ़ैसला बनाया है। अभी मैं बात पूरी करूँ इस से पहले ही बासु दा बोल उठे… नहीं नहीं एक रुका हुआ फ़ैसला हमारा नहीं था वो तो चोरी का माल था हमने पोलिश फ़िल्म और एक प्ले “Twelve Angry Man” से उठाया था,  वो तो अडोपटेशन था! “मंत्री, मैं और बासु दा तीनों हँस पढ़े, इतनी साफ़गोई!

(लेखक दूरदर्शन के अतिरिक्त महानिदेशक रह चुके हैं और कई ऐतिहासिक विषयों पर चर्चित पुस्तकों का लेखन किया है।)

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