Friday, April 26, 2024
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आंख मार भाषण

आँख मानव जीव का एक ऐसा अंग है जिसके देखने अलावा और कई मुख्य कार्य हैं। ये देश के विज्ञानियों के लिये बहुत महत्वपूर्ण विषय माना जाना चाहिये।। आँख मारना क्या कहलाता है ये विषय हर बढते हुये बच्चे के बालमन का कौतूहल होता है । इसी बात पर मेरे बेटे ने पूछा आंख मारना क्या होता है ? प्रश्न अच्छा था । मैने बेटे को बेहद आदर्शवाद समझाते हुये बताया यह गलत इशारा होता है । यह शिष्टाचार नही होता है ।लेकिन उसने प्रिया प्रकाश का वीडियो देख रखा था सो मेरा आदर्शवाद चला गया तेल लेने । लेकिन इससे अलग देखें तो यही आँख मारना बड़े होने पर कई बातों को समझाने बताने का बेहद अलहदा तरीका होता है । जो की काफी कारगर और किफायती होता है।

आँख समस्त जीवों का वह हिस्सा होता है जो प्रकाश के प्रति सजग है। यह प्रकाश को देख करके उसे तंत्रिका कोशिकाओ द्वारा विद्युत-रासायनिक प्रतिक्रिया में बदल देता है। यह क्रियाएं प्राकृतिक रुप से होती रहती हैं । इसके साथ ही सभी जीव आंखों के माध्यम से काफी चीजे बताते और जताते हैं ।उच्चस्तरीय जन्तुओं की आँखों के इशारे एक तंत्र की तरह होते हैं जो आसपास के वातावरण से इशारों देख समझ कर त्वरित उत्तर स्वरुप इशारा देता है ।

आँख मारने के कई तरीके होते हैं । इतने तरीके कि चाहें तो एक पाठ्यक्रम भी शुरु कर सकते हैं । और प्रयोगशालाएं भी चलायी जा सकती हैं । आँख मारने के पीछे वजह कोई भी लेकिन यह कला गजब होती है । प्रिया प्रकाश के आँख मार वीडियो के वायरल होने के बाद तो लोगो ने आँख मारना सिखाने की टुयुशन और कोचिंग खोल लिया । अब लोग जिम- विम जैसी चीजें छोड़ कर आँख मारना सीखने मे जुट गये हैं ।

इस मामले में हमारे फिल्मकार बहुत पहले ही शोध के साथ चीजें बाहर लाकर रख चुके हैं उदाहरण स्वरुप “ आँख मारे ओ लड़का आँख मारे .. आँख मारे ओ लड़की आँख मारे । इस गाने में फिल्मकार ने बताने का प्रयास किया है कि आँख मारना संबंध स्थापित करना कितना जरुरी कार्य है । कबूतर से संदेश भेजने के पहले संदेश लेने के कार्य आँख ही किया करती थी । आँख इतनी पॉवर फुल होती है कि अभिनेत्री रूप मे रही वैज्ञनिका रवीना टंडन ने आँख से गोली मारने जैसा साहसिक कार्य जाने कब का कर चुकी हैं ।एक वाक्य जो रचनाधर्मियों के लिये अक्सर अब सुनने को मिलता है कि कुर्ता फाड़ परफॉर्मेन्श दिया .. इससे अलग देखे तो अब आँख मार भाषण भी शुरु किया जा चुका है । यह एक ऐसी विधा इजात की गयी है जिससे लोग कन्फ्यूज रहते हैं कि कही गयी बात गम्भीर थी या मजाक मे कहा गया है । बात की बात और मजे के मजे । लोग माने तो ठीक अन्यथा मजाक समझ आगे निकल लें ।


शशि पाण्डेय

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