Saturday, April 27, 2024
spot_img
Homeपुस्तक चर्चागोआ में पुर्तगालियों के आतंक और अत्याचार की दास्तान

गोआ में पुर्तगालियों के आतंक और अत्याचार की दास्तान

गोवा, दमन-दीव के लोग पुर्तगाली शासन के अत्याचारों से तबाह थे। गोवा, दमन-दीव की आजादी के लिए वर्षों तक तेज़ आन्दोलन चला। स्थिति सुलझती न देख भारत सरकार ने भारतीय सेना को ‘ऑपरेशन विजय’ गोवा में आरम्भ करने का निर्देश दिया। इस सैन्य ऑपरेशन के 36 घंटे के अन्दर पुर्तगाली गवर्नर जनरल मैनुएल एंटोनियो वेसालो दा सिल्वा ने 18 दिसम्बर को अपनी सत्ता का हथियार डाल दिया था और 19 दिसम्बर, 1961 को दमन-दीव समेत गोवा भारत में शामिल हो गया। इसलिए हर साल 19 दिसम्बर को ‘गोवा लिबरेशन-डे’ का उत्सव एक बड़ा आयोजन होता है।

गोवा लिबरेशन-डे पर राजकमल ब्लॉग में पढ़ें, विकास कुमार झा के उपन्यास राजा मोमो और पीली बुलबुल का एक अंश। इस उपन्यास के जरिए हिन्दी साहित्य में पहली बार देश के सबसे छोटे राज्य को बड़े फ़लक पर लेकर केन्द्रीय विमर्श में लाने की पेशकश की गई है।

फरवरी की पहली तारीख से वसंत की उमक यहाँ के कण-कण में दिखती है। पर गोवा के बारे में आमतौर से सारी दुनिया में धारणा है कि दिसम्बर यहाँ का ‘राजा महीना’ है। यह सही है। दरअसल, 3 दिसम्बर से ही यहाँ भव्य उत्सवों की शुरुआत हो जाती है जब ‘वैसिलिका ऑव बाम जेसस’ में गोवा के पैट्रन यानी संरक्षक संत सेंट फ्रांसिस जेवियर की याद में शानदार समारोह और भोज का आयोजन होता है। फिर 8 दिसम्बर को ‘इम्मैकुलेट कांसेप्शन ऑव वर्जिन मेरी का पणजी और मडगाँव में होनेवाला मनोहारी मेलों से उमगता उत्सव। शिरोडा में श्री शिवनाथ की जात्रा। दिसम्बर में ही पूरे धूम-धड़ाके का दुनिया भर के जमीनी सितारों से जगमगाता ‘अन्तरराष्ट्रीय गोवा फ़िल्म महोत्सव!’ गोवा का स्वाधीनता दिवस… ‘गोवा लिबरेशन-डे’ भी 19 दिसम्बर को। इसके छठे दिन क्रिसमस।

पापा बताते थे कि पुर्तगालियों के पहले कर्नाटक के कदम्ब राजाओं से लेकर दक्कन के सुलतानों ने गोवा पर राज किया। इनके बाद सन् 1510 में पुर्तगालियों ने जो गोवा पर क़ब्ज़ा जमाया, तो साढ़े चार सौ साल बाद 19 दिसम्बर, 1961 को पुर्तगाली शासन से गोवा को मुक्ति मिली। पुर्तगाली गवर्नर अलब्युकर्क ने जब बीजापुर के शासक से गोवा को छीनकर क़ब्ज़ा जमाया था, तो उसके सामने अपने शासन और व्यापार का मानचित्र स्पष्ट था कि गोवा में अपनी हुकूमत का खूँटा गाड़कर न सिर्फ़ मालाबार के व्यापार पर नियंत्रण रहेगा, बल्कि दक्कन के शासकों पर भी नजर रखी जा सकेगी। गोवा में अपना मुख्यालय स्थापित कर पुर्तगालियों ने श्रीलंका, सुमात्रा और मलक्का के बन्दरगाहों पर भी किले बनाए।

अर्से तक पुर्तगालियों के दबदबे से बुरी तरह परेशान तुर्कों ने समुद्र पर पुर्तगालियों की घेरेबन्दी को तोड़ने के लिए सन् 1536 में अपनी सम्पूर्ण नौसेना झोंककर हमला किया था। पर बात बनी नहीं। पुर्तगाली की चूलें नहीं हिलनी थीं, सो नहीं हिलीं। भारत में अंग्रेजों के लम्बे शासन के बावजूद पुर्तगाली गोवा में इस हद तक डटे रहे कि सबसे शुरू में भारत आए पुर्तगाली सबसे अन्त में गोवा से गए। साढ़े चार सौ वर्षों से ज्यादा समय तक गोवा, दमन-दीव पर पुर्तगालियों का शासन रहा।

दमन को गंगा नदी ने दो भागों में विभाजित कर रखा है― एक नानी दमन और दूसरा मोटी दमन। गोवा, दमन-दीव के लोग पुर्तगाली शासन के अत्याचारों से तबाह थे। गोवा, दमन-दीव की आजादी के लिए वर्षों तक तेज़ आन्दोलन चला। स्थिति सुलझती न देख भारत सरकार ने भारतीय सेना को ‘ऑपरेशन विजय’ गोवा में आरम्भ करने का निर्देश दिया। इस सैन्य ऑपरेशन के 36 घंटे के अन्दर पुर्तगाली गवर्नर जनरल मैनुएल एंटोनियो वेसालो दा सिल्वा ने 18 दिसम्बर को अपनी सत्ता का हथियार डाल दिया था और 19 दिसम्बर, 1961 को दमन-दीव समेत गोवा भारत में शामिल हो गया। इसलिए हर साल 19 दिसम्बर को ‘गोवा लिबरेशन-डे’ का उत्सव एक बड़ा आयोजन होता है और दिसम्बर के आखिर में दुनिया में मशहूर गोवा के क्रिसमस का कहना ही क्या!

पापा जिस उल्लास से ‘गोवा लिबरेशन-डे’ को सेलिब्रेट करते थे, वह देखने लायक़ होता था। उस दिन सुबह से उनके होंठों पर, ‘भारत म्होजो देस… महान म्होजो देस’ और ‘एक आमगेलो देसु हो’ सरीखे कोंकणी के अनेक देश-प्रेम गीत थिरकते ही रहते थे। एक बार पापा को झोंक आया, तो उसे बिठाकर दादाजी की पुरानी फ़ाइलें और डायरियाँ देर तक दिखाते रहे। अपनी डायरियों में दादाजी ने संघर्ष के उन दिनों की कई स्मृतियाँ दर्ज की हुई हैं। उनकी फ़ाइलों में गोवा स्वाधीनता संग्राम को लेकर उस समय के अखबारों में छपी खबरों और महत्त्वपूर्ण लेखों की पीली पड़ चुकी कतरनें भी सहेजकर रखी हुई हैं। पापा को एक बार सुर चढ़ा, तो दादाजी के इस संग्रह में उन्होंने भी योगदान किया।

पणजी स्थित ‘गोवा स्टेट सेंट्रल लाइब्रेरी’ देश की सबसे पुरानी पब्लिक लाइब्रेरी है। इसकी स्थापना 15 सितम्बर, 1832 को पुर्तगाली वायसराय ने की थी। बीते दशकों में यह लाइब्रेरी कई बार खुली और बन्द हुई! कई बार इसका स्थान परिवर्तन भी हुआ। अब यह पट्टो इलाके में पणजी के मेन बस स्टैंड के पास अपने छह मंजिले भवन में स्थित है। सैंड्रा के घर से यह लाइब्रेरी दस मिनट का रास्ता है। पापा ने कुछ साल पहले हफ़्ता-दस दिन लगाकर इस लाइब्रेरी से गोवा की आजादी को लेकर वर्ष 1961 के अखबारों में छपी खबरों की कई फ़ोटो-प्रतियाँ करवाई।

पापा कहते थे कि दादाजी की डायरी और अखबारों की कतरनों के साथ इन खबरों की फ़ोटो-प्रतियों को जोड़ देने से गोवा की आज़ादी को लेकर हुए संघर्ष का यह मुकम्मल और दुर्लभ संग्रह हो गया। पापा का मानना था कि इतिहासकार से चूक हो सकती है लेकिन अखबार से नहीं। पापा भावुक होकर कहते थे, “सैंड्रा! यह हमारे खानदान की पूँजी है। मेरे बाद इसे सँभालकर तुम्हें ही रखना है।” पापा के बाद दादाजी की इन डायरियों और फ़ाइलों को उसने गहने की तरह सँभालकर अपने कमरे के रैक पर रखा हुआ है। कभी देर रात तक नींद नहीं आने पर वह किसी एक डायरी का कोई अंश या किसी पुरानी फ़ाइल से गोवा की आजादी की लड़ाई को लेकर उस समय के अखबार में छपे किसी लेख को पढ़ते हुए अपनी अनिद्रा को बहलाती है। वर्ष 1961 में भारत सरकार द्वारा चलाए गए ‘ऑपरेशन विजय’ की ख़बरें पढ़कर वह रोमांचित हो उठती है। उस वक़्त उसे लगता है कि पापा अचानक से दबे पाँव दादाजी के संग कमरे में कहीं मौजूद हैं।

लेखक के बारे में –
देश की हिन्दी पत्रकारिता के एक समर्थ हस्ताक्षर। मर्मस्पर्शी उपन्यास ‘मैकलुस्‍कीगंज’ (‘कथा यू.के. पुरस्‍कार’ से सम्‍मानित), ‘वर्षावन की रूपकथा’ और ‘गयासुर संधान’।बहुचर्चित पुस्तक : ‘बिहार राजनीति का अपराधीकरण’। राजनीतिक दस्तावेज़ : ‘सत्ता के सूत्रधार’।संग्रहणीय कविता-संग्रह : ‘इस बारिश में’। बिहार के बांग्ला-भाषियों के जीवन पर बांग्ला में प्रकाशित चर्चित पुस्तक : ‘परिचय-पत्र’। मैथिली में मंचित-चर्चित नाटक : ‘जमपुत्र’ तथा ‘सोनमछरिया’। बिहार की मुक्तिकामी-जनता के संघर्ष में सदैव सक्रिय रचनात्मक हिस्सेदारी।

साभार- https://rajkamalprakashan.com/blog

image_print

एक निवेदन

ये साईट भारतीय जीवन मूल्यों और संस्कृति को समर्पित है। हिंदी के विद्वान लेखक अपने शोधपूर्ण लेखों से इसे समृध्द करते हैं। जिन विषयों पर देश का मैन लाईन मीडिया मौन रहता है, हम उन मुद्दों को देश के सामने लाते हैं। इस साईट के संचालन में हमारा कोई आर्थिक व कारोबारी आधार नहीं है। ये साईट भारतीयता की सोच रखने वाले स्नेही जनों के सहयोग से चल रही है। यदि आप अपनी ओर से कोई सहयोग देना चाहें तो आपका स्वागत है। आपका छोटा सा सहयोग भी हमें इस साईट को और समृध्द करने और भारतीय जीवन मूल्यों को प्रचारित-प्रसारित करने के लिए प्रेरित करेगा।

RELATED ARTICLES
- Advertisment -spot_img

लोकप्रिय

उपभोक्ता मंच

- Advertisment -spot_img

वार त्यौहार