Monday, June 17, 2024
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मंजू किशोर ‘ रश्मि ‘: सामाजिक विषमता के साथ प्रेम की पक्षधर रचनाएँ

लिव इन रिलेशनशिप में
रिश्तों में ना रही शुद्धता
नर-नारी पर समलैंगिकता छाईं
ये कैसी संस्कृति है आई
मेरे भारत बता
ये कैसी भ्रामिकता छाईं
पिता अपनाअंश बेचता
माता अपनी कोख
वर्जिनिटी की कीमत
बाजारों आई…

सामाजिक विषमताओं पर करारा व्यंग्य करती रचनाकार मंजू कुमारी मेघवाल साहित्यिक उप नाम मंजू किशोर ‘ रश्मि ‘ की यह रचना उनके काव्य संग्रह “भावों का स्पंदन” की एक बानगी है जिसका प्रकाशन राजस्थान साहित्य अकादमी उदयपुर के आर्थिक सहयोग से हुआ है। ऐसे ही परिवेश,संदर्भ और साम्यिकता पर आधारित 86 कविताओं के संग्रह में ‘औलाद वसीयत से अलग होती है’, महंगे लोग सस्ते लोगों, तीन तलाक़, कचरे के ढेर, शहीद की विधवा का दर्द, सिंहासन, चम्बल मुझसे कुछ कहती हैं और मतदान आदि कविताएं समाज की विषमताओं को ही प्रकट करती हैं परंतु मूल भाव प्रेम और समर्पण है।

प्रेम की कोई बोली भाषा नहीं होती है। प्रेम समंदर है, इसकी कोई थाह नहीं ले सकता है। प्रेम को अभिव्यक्त करना गूंगे को गुड़ देकर उससे स्वाद पूछना है। प्रेम संसार की आध्यात्मिक, नैतिक और सामाजिक आवश्यकता है। प्रेम है तो संसार है। प्रेम हमेशा ही वासुदेव कुटुम्बकम की भावना से ओत-प्रोत रहा है। आज अराजकता, असंवेदनशीलता, हिंसा, अपराध बहुत बढ़ गये हैं। प्रेम ही वो संजीवनी बूटी है जो इन्हें जड़मूल से समाप्त कर सकता है। इसलिए इनकी कविताएँ प्रेम की पक्षधर हैं…………..
प्रेम!
चुपके से
आसमा में बैठे
शान्त
बादलों के कानों में
तुम क्या कह गए
रात भर बरस-बरस
तर-बतर कर रहे हैं
धरती का पोर-पोर…..

इनकी कविता में रसानुभूति के साथ आनन्द का आस्वादन भी है। भावात्मक अभिव्यक्ति के साथ लयात्मकता होने श्रोता को सरलता से पुलकित करती है। देखिए एक बानगी………
एक कविता …
खड़ा हैं मौन
विरह व्याल
डस गया कब कैसे
विप्रलंभ श्रृंगार ,
स्निग्धा खो तृष्णक्षय
प्रौढ़ता लिए खड़ा हैं
आज बताओं कहाॅं
छुपाये तेरी यादों को
बादल बाहर भी ,भीतर भी
बरस रहे हैं
सब कुछ भीगा-भीगा
तर है एक-एक सा
संयम खुद के विरुद्ध
खड़ा हैं मौन अनिर्वचनीय सा।

आसपास के परिवेश और उससे जुड़े संदर्भों को ही मंजु किशोर ‘ रश्मि ‘ ने अपनी कविताओं, कहानियों, लघु कथाओं, उपन्यास का विषय बनाया है। ये हिंदी, राजस्थानी और हाड़ौती भाषाओं में गद्य और पद्य दोनों विधाओं में गीत, ग़ज़ल, लेख, कविता, पुस्तक समीक्षा, कहानी, लघुकथा संस्मरण आदि लिखती हैं। किशोरावस्‍था में आते-आते ये कविता लिखने लगी थी। अपने पिता की प्रेरणा को लेखन में आने का श्रेय देती हैं। शादी होने पर एक अंतराल आया और फिर से आज तक सृजन में लगी हुई हैं।

कुछ समय पूर्व जब सारी दुनिया में तीन तलाक़ को लेकर हंगामा मचा हुआ था,उस समय “तीन तलाक़” शीर्षक से लिखी इनके काव्य सृजन का अंदाज़ देखिए…
हमारी बेटियां तीन तलाक़ से आजाद हैं
क्यों? कहते हैं इस जहाॅं के लोग
भूल जाते हैं, न जाने क्यूॅं ये
आजादी तो दिलों की ज़ंजीरों में कैद है
बाप, भाई,पति,बेटे के ज़ेहन में दबी है
आजादी के मायने वो जानते ही नहीं है….

महिला प्रधान तीन तलाक कविता इनकी कृति “दूर कहीं आस” काव्य संकलन की बानगी है जिसमें 77 कविताएँ सामाजिक परिवेश के विभिन्‍न आयामों और पारिवेशिक अनुभूतियों पर हैं। कविताएँ सांस्कृतिक मूल्यों, जीवन के विभिन्‍न पहलुओं यथार्थबोध से ओत-प्रोत हैं। प्राकृतिक सौन्‍दर्य, सत्य, जल, पलाश, वक्त की बेल, नीड़, आईना, वृक्ष से कुछ बातें, पर्यावरण जीवन, कारे बदरा, दीप से दीप आदि कविताएं नवीन सामाजिक संदर्भों के साथ नये मूल्‍य बोधों का समावेश इन कविताओं में है। इस कविता संग्रह में दस कविताएँ महिला प्रधान हैं।

स्थानीय परिवेश से ‘कोटा कचोरी’कविता गहरे भाव लिए है जो भेदभाव और भूख जैसे मुद्दों को उजागर करती है कि कैसे कचोरी ने नफ़रत,जात-पात, गरीब-अमीर के भेद भाव को पाट दिया है……………….
भूख है जो अमीर-गरीब
ऊंच-नीच सब की एक जैसी है
भूख की लाइन सिर्फ एक है
नफ़रत,जात-पात, गरीब-अमीर
देखने की दृष्टि ही नहीं आने दी
सिर्फ कचोरी के लालच ने
कितना अंतर पाट दिया
मेरे भाई कचोरी वाले ने
अनजाने ही।

राजस्‍थानी भाषा साहित्‍य तथा संस्‍कृति अकादमी, बीकानेर के आर्थिक सहयोग से प्रकाशित इनकी “थंसूं मिलतांई ” राजस्थानी कविता संग्रह कृति में हाड़ोती की 54 कविताएँ शामिल हैं। ऐसी कविताएं मातृभाषा और लोक संस्कृति जीवंत रखने और आने वाली पीढ़ियों को लोक से जोड़े रखने में सहायक सिद्ध होती है। कविता संग्रह में विविधता में एकता का संदेश देती कविताएँ बावळीयों रंग, कथा भागवत, शरमाई, गांठ, मूरत, फळ, माळा आदि हैं। वहीं प्रेम के मिलन विरह को प्रकट करती हुई थांरी सुरत की सीपड्यां मं, नींद न बैच’ र, प्रेम पाणी बिना, थांरी तस मं, ठूंठ होबा कै प्हली, हरयो मन, तू कांई जाणै तरसबो, थंसूं मिलतांई पोथी की प्रतिनिधि रचनाएँ हैं। बांट न्हाळती भूख, पीहर-सासरो, जीव को जंजाळ, दिवाळी, घूंघट आदि सामाजिक सरोकार से ओतप्रोत कविताएँ हैं। सूखीं रेत मं, रेत मं उग जावै, मन रेत को छळ, म्हूं छू, धरती की रेत पै कविताएं रेत को विभिन्न अनुभूतियों और संदर्भ को रेखांकित करती हैं। संग्रह की बाल कविता ‘सांची बेटी बण जाऊं ‘ की रचनाधर्मिता देखिए….
न चावै मां खेल-खेलकणा,
न तितलियां के पाछै भागूं।
प्हैली पढ़बा को काम करूं
फेर खेलबा मं नाव करूं।
पढ़-पढ़ आखर गिनती अर
गिटरपिटर सगळी भाषा बोलूं।
म्हूं फौजी अफसर मां अर
बड़ी डाक्टर बण जाऊं।
या सीमा पं खड़ी हो जाऊं,
धरती मां कै काम आ जाऊं ।
मनख्यां की सेवा कर पाऊं
अतनो सारो रूपयों कमाऊं।
थारी फाटी साड़ी नुई दिलाऊं
बाबूजी को हाथ बटाऊं।
थां दोनी नै राज कराऊं
थांकी सांची बेटी बण जाऊं।

गद्य विधा में इनकी कहानियों की विषय वस्तु सामाजिक विषमता और असामंजस्यता के ताने-बाने पर हैं। इनकी “वारिस” कहानी एक ऐसी महिला की कहानी है जो सौ प्रतिशत परिवार को समर्पित चारित्रिक स्त्री है‌। लेकिन समाज और परिवार का अदृश्य दवाब वो मां नहीं बन सकती तो उसका अस्तित्व खतरे में है। अपना घर में अस्तित्व बचाने के लिए उसे एनकेन प्रकारेण घर को वारिस देना ही है।

स्त्री के हृदय के दर्द का अंदाजा कोई नहीं लगा सकता। कोरोना काल के समय की कहानी “सेर वाला लड़का” कोरोना के डर ने अनजान व्यक्ति के लिए हृदय में संवेदना संसार भर जाता है चिंता से मुक्त जब मिलती है महिनों बाद वो लड़का अचानक सैर पर मिल जाता है।

इनकी लघुकथाएं ‘रिश्वत’,’ नसबंदी’, ‘छोटी गलती बड़ी सजा’ आदि को खूब पसंद किया गया। इन्होंने आतंक और साहित्यक आतंक, कोटा कोचिंग आत्महत्या पर रोक, न शातिर अपराधी न आदतन अपराधी,आदि अनेक समस्या प्रदान लेख भी खूब लिखे हैं। हिंदी और राजस्थानी भाषा के अनेक छोटे-बड़े रचनाकारों की लगभग 40 कृतियों पर समीक्षाएं लिखी है।

वर्तमान में ये हाशिए पर समाज के साठियां एवं मौग्यो पर लेखन कर रही हैं। इनका एक राजस्थानी उपन्यास “तस” लगभग पूर्णता पर है ‘जो सामाजिक अंधकारमय सोच के ताने-बाने से समाज के पाठकों के सम्मुख पर्दा उठाता है। कहानी संग्रह और कविता संग्रह पर भी काम चल रहा है। इनकी अनेक रचनाएं साझा संकलनों और प्रतिष्ठित राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशित हुई हैं।

परिचय :
सामाजिक विषमताओं में प्रेम की पक्षधर रचनाओं का सृजन करने वाली रचनाकार मंजु किशोर ‘ रश्मि ‘ का जन्म 29 दिसंबर 1972 को कोटा में पिता किशन लाल राथलिया एवं माता जगन्नाथी बाई के आंगन में हुआ। आपने समाजशास्त्र विषय में स्नातकोत्तर तक शिक्षा प्राप्त की। दलित साहित्यक अकादमी द्वारा झलकारी बाई राष्ट्रीय शिरोमणि अवार्ड और काव्य सम्राट हरिवंशराय बच्चन स्मृति सम्मान जैसे प्रमुख सम्मानों के साथ आपको कई अन्य संस्थाओं द्वारा समय-समय पर सम्मानित किया गया है। ये राष्ट्रीय मेघवाल युवा परिषद कोटा की जिला अध्यक्ष है और सामाजिक सेवा कार्यों में सक्रिय हैं। लिखना पढ़ना, ड्रेस डिजाइन, चित्रकला, नृत्य आदि इनकी अभिरुचियाँ हैं।वर्तमान में आप राजकीय बालिका उच्च माध्यमिक विद्यालय रंगबाड़ी कोटा में अध्यापिका के रूप में सेवा रत हैं और साहित्य सृजन में लगी हैं।

संपर्क :
वीएचई – 119 विवेकानन्द नगर
कल्पना चावला सर्किल के पास,
कोटा- 324005 ( राजस्थान )
मोबाइल : .8441019846
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डॉ.प्रभात कुमार सिंघल
लेखक एवं पत्रकार, कोटा

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