Thursday, May 9, 2024
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देवी माँ श्रध्दा का विषय है विवाद का नहीं

Sunita Tripathi
कहा जाता है कि बात जब भक्ति और आस्था की हो तो वहां तर्क नहीं होता सिर्फ विश्वास होना ही काफी है।सच्चे हृदय की भावना ही भक्त को भगवान के करीब ले जाती है।लोकोक्ति भी है- “मानो तो देव नहीं तो पत्थर”या फिर” मानो तो गंगा मां हूं,ना मानो तो बहता पानी”! अरे पर मजाल क्या है कि आज का पढ़ा लिखा समाज नहीं ज्यादा पढ़ा- लिखा वर्ग जो वैज्ञानिक आधार पर ही सत्य को स्वीकार करता है। जो अपने ज्ञान,कर्म और पौरुष पर घमंड करता है,किसी भी विषय को तर्क के बिना कह- सुन नहीं सकताहै। यही नहीं कुछ राजनीतिक दलो से प्रेरित भी ऐसे हैं जो प्रत्येक विषय के विपक्ष में बैठते हैं ।उसे मत का खंडन करके स्वयं को हाईलाइट करना होता है। मनसा चाहे जो भी हो, विषय चाहे जो भी हो, पर डिबेट अवश्य आरंभ हो जाता है ।अमुक व्यक्ति मिथक है या प्रमाण।इसी बात पर बात आकर रुक जाती है। और तब जरूरत पड़ती है दलील की, सबूत की, साक्ष्य की, संदर्भ की, गवाही की, अरे भाई विषय भी तो गंभीर हो गया है। ऐसा ही एक गंभीर विषय नवरात्रि में देवी के नाम और स्वरूप का बन गया। नवरात्रि चल रही है भाई ।मां जगदंबिका और उनके विविध नाम और रूप ज्वलंत मुद्दा था। फिर क्या था डिबेट शुरू हो गया। अब प्रश्न आया की अंबे माँ प्रमाणिक है या मिथक है? ,फिर इनके इतने रूप-स्वरूप हैं, कौन सा प्रमाणिक है या मिथक है ? अब डिबेट में हिस्सा ले रहे व्यक्ति पार्टी बन गए! एक प्रमाणिकता को मानता है,एक वह जो प्रमाणिकता को नहीं मानता है ।

हम हिंदू हैं और हम हिंदुस्तान के निवासी हैं। हमें भारतीय संस्कृति पर गर्व है ।अपने धर्म के विषयों में ,आध्यात्म के विषयों में हार मानेंगे नहीं। और उसमें भी अंबे तो हमारी मां है, तो फिर माँ को मिथक कैसे मान लें? पर संदर्भ दिखाने में असमर्थता थी। शायद प्रमाण हो भी पर डिबेट के लिए कोई होमवर्क करके बैठा नहीं गया था।संदर्भ प्रस्तुत करने के लिए कोई तैयारी नहीं की गई थी। मिथक मानने वाला पक्ष प्रबल हो गयाऔर प्रमाणिक मानने वाला पक्ष पराजित सा मौन हो गया।

दूर बैठी हुई किसी व्यक्ति विशेष की प्रतीक्षा कर रही मै,सब कुछ देखते और सुनते हुए भी अपने को इस डिबेट से अलग रखी थी क्योकि उसमें मेरे पहचान का कोई नहीं था।परन्तु
अब इसके आगे मै खुद को रोक नहीं पा रही थी क्योंकि मुझमें दूर से खुदको अलग रखकर देखते रहने या सुनते रहने की क्षमता बहुत ही कम है।ज्यादा बोलने और कम सुनने की आदत है।अब प्रतीक्षा और धैर्य दोनों हार मान लिया और मै भी डिबेट का हिस्सा हो गयी।आखिरकार बातभी तो हमारी भारतीय संस्कृति की है । फिर मैं सोचने लगी बात आखिर कहाँ से शुरू करूं? तब मैने संस्कार बस परिचय से शुभारम्भ किया।मैअमुक…,मै, …डॉ..,myself,..abc,..मैअमुक..,अधिवक्ता…प्रवक्ता….वगैरह…वगैरह..।

ताज्जुब हुआ इनमें कोई भी गैर मजहबी नहीं,…. कोई भी पाकिस्तानी या किश्चियन या मुस्लिम नहीं वल्कि सभी हिंदू और हिंदुस्तानी ही थे ,वेल एजुकेटेड और वेल क्वालीफाईड थे तभी तो डिबेट इतना जटिल हो गया था? आखिर समस्या की जड़ है क्या? फिर मै मुख्य विषय पर फोकस करते हुए पूछ बैठी आप सभी ने अपना जो नाम बताया है उसकी कोई प्रमाणिकता है? या किसी ने कभी परिचय देते समय आप से प्रमाण लिया क्या? आप के दो या तीन नाम क्यों है ऐसा पूछा क्या? कभी रोका क्या? नहीं न? सबने उत्तर दिया नहीं नाम तो हमेशा सही होता है, वह तो संज्ञा होता है। फिर उसके लिए क्या प्रमाण? तब तक मै पूरी तरह से अपने व्याख्याता अवतार में आ गयी थी और लेक्चर शुरू हुआ तो बस चलता ही गया- हम हिंदुस्तानी युवा पीढी दिशा- भ्रमित हो गए हैं, उदेश्यहीन हो गए हैं। ज्ञान कोश सबमें भरा है पर ज्ञान से परे भटक रहे हैं। भारत को विश्व गुरु बनाना है लेकिन पहले भारत को ही नहीं जानते हैं। सर्वप्रथम हमें भारत बोध करना होगा।

भारतीय विषयों के डिबेट में साक्ष्य उर्दू, अंग्रेजी या आधुनिक हिंदी से युक्त ट्रांसलेशन पर आधारित गूगल बाबा से नहीं अपने बाप- दादा(भारतीयता) से लाना होगा। जो हमारी संस्कृति है वह संस्कृत भाषा में है।और जो डिबेट करने वाला वर्ग है वह तो संस्कृत जानता ही नहीं है फिर उनके लिए संस्कृत और संस्कृति तो “काला अक्षर भैंस बराबर “है।चाय की दुकानों पर, काफी हाउस में, रेस्टोरेंट में, लाइब्रेरी और क्लब में, होटल के कमरे में बैठकर डिबेट होगाऔर प्रामाणिकता सिद्ध गूगल बाबा से करवाया जाएगा तो कितना प्रमाणित हो सकेगा यह संदर्भ? विचार का विषय है। जहां तक मां दुर्गा के प्रामाणिकता पर प्रश्न है तो मुझे याद है अपने धर्मग्रंथ”दुर्गा सप्तशती” के ‘एकादश अध्याय’ में जब माँ ने खुद अपने जुबानी बताई हैं अपने नाम और काम की कहानी तो उसे पढ़ने और जानने की आवश्यकता है। बात अगर भारतीय संस्कृति की है तो उसे संस्कृत भाषा में जानना होगा न, वहीं से तो असल प्रमाण मिलेगा???

क्या आप सभी ने मो. पैगंबर, ईmeमसीह, जrसस् इत्यादि का प्रमाण प्रमाण मांगते कभी किसी को देखा है? नहीं न? इसका कारण कि उन्हें अपने धर्म एवं धर्मग्रंथों पर पूरा विश्वास है और सनातन धर्म व संस्कृति के लोगों को अपने ही धर्म व संस्कृति पर विश्वास नहीं है, अगर होता तो अपने देवी देवताओं को अपने धर्म ग्रंथों में ढूँढने की कोशिस करते अंग्रेजों द्वारा अनुदित हिंदी पर आधारित गूगल पर या ट्रांसलेशन पर सर न खपा रहे होते। आप में से कितनों को संस्कृत आती है? और क्यों नहीं आती है? किसने कहा कि संस्कृत पंडितों की भाषा है।

अरे हम सब हिंदुस्तानियों की मातृभाषा है। संस्कृत जिसे जानना हर हिंदुस्तानी का हक है। प्रथम अधिकार है। भारत का हर मुस्लिम दुनिया के किसी कोने में रहे लेकिन उसे उर्दू अवश्य आता है। इशाई को अंग्रेजी अवश्य आता है । चाहे वह कोई भी कोर्स की पढ़ाई करें। हम हिंदू सनातन संघ की बात करते हैं। विश्व गुरु होने का ख्वाब देखते हैं। मां को जानते नहीं, उनके विविध अवतार किन कारणों से और कब हुआ इसका ज्ञान नहीं है और ज्ञानी होकर डिबेट करते हैं। यदि भारत का बोध होता तो जानते कि दुर्गा हमारी मां है और याद रखो माँ कभी भी आस्था का विषय होती है ,श्रद्धा का विषय होती है, सम्मान की अधिकारी होती है कभी भी डिबेट के विषय नहींहोती।”

डॉ. सुनीता त्रिपाठी “जागृति ”
नई दिल्ली

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