Wednesday, May 1, 2024
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दो मुख्य मंत्री और एक केंद्रीय मंत्री आएंगे नय पद्मसागरजी के ‘जीओ’ कार्यक्रम में

मुंबई। महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री पृथ्वीराज चव्हाण, गोवा के मुख्यमंत्री मनोहर पर्रिकर, केंद्रीय ग्रामीण विकास राज्यमंत्री प्रदीप जैन एवं फिल्म अभिनेता विवेक ओबरॉय 27 अक्टूबर (रविवार) को मुंबई में जैन इंटरनेशनल ऑर्गेनाइजेशन (जीओ) द्वारा आयोजित ग्लोबल कॉन्फ्रेंस में हिस्सा लेंगे। इस कॉन्फ्रेंस में विख्यात जैन संत परम पूज्य नयपद्म सागर महाराज के सामाजिक एकता और विकास के सपने को साकार करने के लिए चार विशेष कार्यक्रमों की शुरूआत होगी। इस आयोजन में इंटरनेशनल सेटलमेंट फोरम, पॉलिटिकल फोरम फॉर गुड गवर्नेस सहित मुंबई में एक इंटरनेशनल स्कूल की स्थापना की शुरूआत की जाएगी।�‘जीओ’�की ग्लोबल लॉचिंग इस आयोजन का सबसे प्रमुख कार्यक्रम होगा।

‘जीओ’�का यह मेगा आयोजन वरली स्थित एनएससीआई के सरदार वल्लभभाई पटेल स्टेड़ियम में 27 अक्टूबर (रविवार) को सुबह 9 बजे से शुरू होगा। इस अतर्राष्ट्रीय आयोजन में देश विदेश के विभिन्न स्थानों से विशेष रूप से मुंबई आ रहे हैं। राजनेता, न्यायविद. उद्योगपति, डॉक्टर, सीए, एडवोकेट, इंजीनियर, वैज्ञानिक, पत्रकार, लेखक, साहित्यकार, प्रसासनिक अधिकारी, बैंकर्स, सामाजिक कार्यकर्ता एवं कॉर्पोरेट जगत आदि विभिन्न क्षेत्रों के करीब 6 हजार से भी ज्यादा निष्णात लोग इस ग्लोबल कॉन्फ्रेंस में हिस्सा लेंगे। नयपद्म सागर महाराज के अनुसार परोपकार, विश्वमैत्री एवं प्राणी कल्याण को समर्पित जैन समाज के लिए एक संगठित प्लेटफॉर्म के रूप में आयोजित यह ग्लोबल कॉन्फ्रेंस सामाजिक रूप से एक पॉवर सेंटर साबित होगी। सामाजिक विकास एवं विश्व की बदली हुई परिस्थितियों में�‘जीओ’�के द्वारा एक कार्यक्षम संगठन के रूप में नए इतिहास के निर्माण होगा।

जैन इंटरनेशनल ऑर्गेनाइजेशन की इस ग्लोबल कॉन्फ्रेंस में शिक्षा, चिकित्सा, उद्योग, व्यवसाय, प्रशासन एवं राजनीतिक क्षेत्र में जैन समाज की सक्षम भूमिका के निर्माण की दिशा भी तय की जाएगी। नयपद्म सागर महाराज ने बताया कि इस ग्लोबल आयोजन की सारी महत्वपूर्ण तैयारियां पूरी कर ली गई हैं।

संपर्कः 9967060060

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जल की बरबादी के लिए शासन-प्रशासन भी ज़िम्मेदार

उपभोक्ता मंच

 

 

सृष्टि की रचना में विशेषकर वन,वनस्पति,जीव-जंतु,मानव जीवन तथा उद्योग आदि सभी में जल का क्या महत्व है इस विषय पर अधिक प्रकाश डालने की कोई आवश्यकता नहीं है। बस यूूं समझा जा सकता है कि जल के बिना इनमें से किसी का अस्तित्व संभव ही नहीं है। आज भी वैज्ञानिक चंद्र अथवा मंगल ग्रह पर जीवन की संभावनाओं की बात करते हैं तो सबसे पहले उन्हें इन ग्रहों पर जल की उपलब्धता की तलाश में शोध कार्य करने पड़ रहे हैं। कुछ समय पूर्व तक तो ऐसी अवधारणा थी कि प्रकृति द्वारा प्रदान की गई यह बेशकीमती नेमत कभी समाप्त न होने वाली अमूल्य सौगात है।

 

परंतु अब वैज्ञानिकों के शोध के आधार पर यह   अवधारणा बदल चुकी है। भूगर्भीय जल स्त्रोत के भंडारों में निरंतर कमी आती जा रही है। पीने का साफ पानी न केवल कम बल्कि दिन-प्रतिदिन दूषित होता जा रहा है जिसके परिणाम बेहद चौंकाने वाले हैं। हालांकि इसमें कोई दो राय नहीं कि न केवल भारत में बल्कि वैश्विक स्तर पर पेयजल के संसाधनों में काफी वृद्धि हुई है। विश्व बैंक द्वारा भी प्रत्येक गांव व मोहल्ले में पीने का साफ पानी मुहैया कराए जाने हेतु भारी-भरकम धनराशि खर्च की जा रही है। इसमें काफी बड़ी रकम जल संरक्षण संबंधी विज्ञापनों तथा इससे संबंधित जागरूकता अभियानों पर भी खर्च की जा रही है। परंतु इन सब का नतीजा लगता है वही ढाक के तीन पात।              

 

अनपढ़ लोगों की तो बात ही क्या करनी,पढ़े-लिखे लोग तथा समाज में कथित प्रतिष्ठा प्राप्त लोगों द्वारा भी जल संरक्षण संबंधी नियमों व दिशा निर्देशों की जमकर धज्जियां उड़ाई जाती हैं। अपने गार्डन,बगीचे में अनावश्यक रूप से रबड़ के पाईप द्वारा पानी डालना,लॉन की घास को तरोताज़ा रखने हेतु बेतहाशा पानी का प्रयोग करना, रबड़ पाईप से अपनी कारों को नहलाना-धुलाना, शेविंग व ब्रश करते समय पानी की टोंटी को चलते रहने देना तथा अपनी कोठी के फर्श को दिन में कई-कई बार खुले पानी से धोने की कवायद करना, शिक्षित,अमीर अथवा नवधनाढय लोगों के चोचलों में शामिल है।

 

इसी प्रकार किसान भी भूगर्भीय जल के दुरुपयोग के कम दोषी नहीं हैं। खेती-बाड़ी में ज़रूरत से ज़्यादा पानी का इस्तेमाल किया जाता है। परिणास्वरूप लगभग पूरे देश में भूगर्भीय जलस्तर भी दिन-प्रतिदिन नीचे होता जा रहा है। और यदि पीने का पानी उपलब्ध है भी तो वह भंयकर रूप से दूषित है। परिणामस्वरूप यह दूषित जल जीवन देने के बजाए जीवन लेने का कारण बनता जा रहा है।

               

विश्व बैंक की एक रिपोर्ट के अनुसार भारत में 21 प्रतिशत बीमारी का कारण केवल असुरक्षित व दूषित जल का सेवन करना है। लगभग 1600 लोग प्रतिदिन केवल डायरिया जैसी बीमारी से अपनी जान गंवा बैठते हैं और डायरिया का प्रमुख कारण प्राय: दूषित जल ग्रहण करना ही होता है। विकासशील देशों में बीमारी का अस्सी प्रतिशत कारण दूषित जल से पैदा होने वाली बीमारियां हैं। और इन्हीं विकासशील देशों में 90 प्रतिशत जल नाली व नालों के माध्यम से नदियों में मिलकर नदियों को प्रदूषित करता हुआ समुद्र में जा मिलता है और मीठा जल, खारे जल में परिवर्तित हो जाता है। आंकड़े बताते हैं कि दुनिया के आधे से अधिक अस्पतालों के बिस्तर दूषित जल संबंधी बीमारियों का सामना करने वाले मरीज़ों से भरे होते हैं। जल के दोहन व दुरुपयोग में विकसित देश भी विकासशील देशों से पीछे नहीं हैं। एक आंकड़े के अनुसार अमेरिका में एक व्यक्ति एक भारतीय नागरिक की तुलना में आठ गुणा अधिक जल का प्रयोग करता है।

              

जल की इस दर्दशा का परिणाम यह है कि विश्व में डेढ़ अरब लोगों को पीने का साफ पानी नहीं मिल पा रहा है। इस प्रकार पूरे विश्व में लगभग 40 लाख लोग प्रतिवर्ष जल संबंधी बीमारी से मर रहे हैं। दुनिया की आधी गरीब आबादी एक ही समय में केवल दूषित जल के सेवन के कारण बीमार हो जाती है। जल संरक्षण संबंधी योजनाओं का अभाव तथा जल की बेतहाशा बरबादी की वजह से जल संकट विशेषकर सूखा पडऩे के समय पानी का अभाव देखने को मिलता है। आंकड़ों के अनुसार पूरे विश्व में कृषि पर 70 प्रतिशत जल खर्च होता है। जबकि उद्योग में 22 प्रतिशत जल की खपत होती है। सवाल यह है कि विश्व बैंक से लेकर देश व राज्य की सरकारें तथा स्थानीय स्तर पर जि़ला प्रशासन तक 'जल ही जीवन है’ तथा जल संरक्षण संबंधी योजनाओं के प्रचार व प्रसार का दम भरते रहते हैं। परंतु वास्तव में ऐसा नहीं लगता कि सरकार के इस जागरूकता अभियान का कोई प्रभाव आम लोगों पर पड़ता दिखाई देता हो। बल्कि बजाए इसके ऐसा प्रतीत होता है कि जल संरक्षण के संबंध में बरती जाने वाली लापरवाहियां दिनों-दिन और बढ़ती जा रही हैं। क्योंकि खासतौर पर हमारे देश में उद्योगों,नए रिहाईशी क्षेत्रों,कारों,कोठियों,  लैटस, गार्डन, पार्क व नवधनाढयों की सं या में भी तेज़ी से इज़ाफा होता जा रहा है। अत: इसी अनुपान के अनुसार जल की खपत भी बेतहाशा बढ़ती ही जा रही है।            

              

अफसोस तो इस बात का है कि जनता से जल संरक्षण की उ मीद करने वाली सरकार अथवा सरकार के निर्देश पर 'जल बचाओ अभियान’ की मुहिम को लागू करने वाला प्रशासन भी पानी की बर्बादी का कमज़िम्मेदार नहीं है। बल्कि कुछ उदाहरण तो ऐसे हैं जिन्हें देखकर यह कहा जा सकता है कि सरकारी लापरवाही के परिणामस्वरूप अधिक जल बर्बाद होता है। उदाहरण के तौर पर महानगरों में बड़े आकार के पानी के पाईप अक्सर लीक होते देखे जा सकते हैं। कई जगह तो यह लीकेज नियमित रूप से होते ही रहते हैं। प्रशासन से इस लीकेज के बारे में यदि आप पूछेंगे तो पाईप लाईन का बहुत पुराना जोड़ बताकर अधिकारी अपनी ड्यूटी पूरी समझते हैं। इसी प्रकार रेलवे स्टेशन पर ट्रेन के डिब्बों में भरे जाने वाले पानी की पाईप लाईन कई-कई जगहों से लीक होते देखी जा सकती है। रेलवे स्टेशन के प्लेटफार्म पर या तो गर्मियों में पानी रहता ही नहीं है और वाटर टेप सूखा पड़ा रहता है। या फिर टोंटी नदारद रहती है और पानी यूं ही बेवजह बहता रहता है।

 

ज़मीन के नीचे से होकर घर-घर व मुहल्ले-मुहल्ले पहुंचने वाली पाईप लाईन भी कभी भारी वाहन के गुज़रने की वजह से अथवा प्रगति के नाम पर केबल आदि बिछाए जाने के नाम पर होने वाली खुदाई के चलते मज़दूरों के हाथों से पाईप लाईन क्षतिग्रस्त हो जाती है। नतीजतन मु य मार्ग पानी से कुछ इस तरह भर जाता है जैसे कि मोहल्ले में नदी का प्रवाह होने लगा हो। और ऐसी भूमिगत पाईप लाईन के रिसाव का परिणाम केवल जल की बरबादी मात्र नहीं होता बल्कि इसी रिसाव वाले स्थान से बाहरी गंदगी पाईप में प्रवेश कर जाती है जोकि पानी की सप्लाई के द्वारा घर-घर पहुंच जाती है। और यही दूषित व गंदा पानी आम लोगों की बीमारी का एक बड़ा कारण बनता है।

              

कभी-कभी तो पानी की उस टंकी से भी जल प्रपात अथवा लीकेज होता देखा जा सकता है जिस टंकी से शहर में पानी की आपूर्ति की जाती है। शहरों में पानी की आपूर्ति के अनेक सार्वजनिक पाईप ऐसे मिलेंगे जिन पर से टोंटी गायब रहती है। बेशक टोंटियां चुराना जनता के बीच के लोगों का ही कार्य है परंतु यह प्रशासन का भी फजऱ् है कि वह इसकी रोकथाम के लिए भी ऐसे उपाय तलाश करे जिससे पानी की टोंटी कोई चोरी न कर सके और पेयजल यंू ही न बहता रहे। इसी प्रकार सरकारी अस्पतालों में व कार्यालयों में भी पानी की बरबादी के अनेक प्रमाण देखे जा सकते हैं।

 

लिहाज़ा यदि वास्तव में जल संरक्षण की मुहिम को अमली जामा पहनाना है तो स्वयं सरकार व प्रशासन को अत्यंत गंभीर व पारदर्शी होना पड़ेगा। देश में कहीं भी पुरानी पाईप लाईन जिनसे कि जल रिसाव होता रहता है सरकार को ऐसे सभाी पाईप तुरंत बदलने अथवा उनके जोड़ दुरुस्त करने के उपाय करने चाहिए। रेलवे विभाग को भी जल संरक्षण हेतु स्थायी व उपयुक्त कदम उठाने चाहिए। नाली व गंदे नालों के बीच से होकर गुज़रने वाले तथा सीवर पाईप लाईन के मध्य होकर जाने वाली पाईप लाईन के रास्ते बदल देने चाहिए। ऐसे पाईप भी बीमारी फैलने का एक अहम कारण हैं।

 

सही मायने में सरकार व प्रशासन को आम जनता के लिए जल संरक्षण संबंधी दिशा निर्देश तथा दूषित जल ग्रहण करने से अपना बचाव करने का निर्देश जारी करने का अधिकार भी तभी है जबकि सरकार व प्रशासन पहले स्वयं को जल संरक्षण व इसकी स्वच्छता के लिए गंभीरतापूर्वक कदम उठाए। अन्यथा जल संरक्षण व दूषित जल से आम लोगों का बचाव हो या न हो परंतु इसके नाम पर करोड़ों रुपयों की बरबादी ज़रूर होती रहेगी।

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समस्याएं कांग्रेस हो गई और कांग्रेस समस्या हो गई!

कांग्रेस का राज 30 साल पहले कैसा था और आज कैसा है इसका अंदाज़ा आपको देश के प्रतिष्ठित व्यंग्यकार स्व. शरद जोशी के इस व्यंग्य लेख से हो जाएगा-ये लेख स्व. जोशी ने 36 साल पहले वर्ष 1977 में लिखा था।

कांग्रेस को राज करते करते तीस साल बीत गए । कुछ कहते हैं, तीन सौ साल बीत गए । गलत है ।सिर्फ तीस साल बीते । इन तीस सालों में कभी देश आगे बढ़ा , कभी कांग्रेस आगे बढ़ी । कभी दोनों आगे बढ़ गए, कभी दोनों नहीं बढ़ पाए। फिर यों हुआ कि देश आगे बढ़ गया और कांग्रेस पीछे रह गई। तीस सालों की यह यात्रा कांग्रेस की महायात्रा है। वह खादी भंडार से आरम्भ हुई और सचिवालय पर समाप्त हो गई।

पूरे तीस साल तक कांग्रेस हमारे देश पर तम्बू की तरह तनी रही, गुब्बारे की तरह फैली रही, हवा की तरह सनसनाती रही, बर्फ सी जमी रही। पूरे तीस साल तक कांग्रेस ने देश में इतिहास बनाया, उसे सरकारी कर्मचारियों ने लिखा और विधानसभा के सदस्यों ने पढ़ा। पोस्टरों, किताबों ,सिनेमा की स्लाइडों, गरज यह है कि देश के जर्रे-जर्रे पर कांग्रेस का नाम लिखा रहा। रेडियो, टीवी डाक्यूमेंट्री, सरकारी बैठकों और सम्मेलनों में, गरज यह कि दसों दिशाओं में सिर्फ एक ही गूँज थी और वह कांग्रेस की थी। कांग्रेस हमारी आदत बन गई। कभी न छूटने वाली बुरी आदत। हम सब यहाँ वहां से दिल दिमाग और तोंद से कांग्रेसी होने लगे। इन तीस सालों में हर भारतवासी के अंतर में कांग्रेस गेस्ट्रिक ट्रबल की तरह समा गई।

 

जैसे ही आजादी मिली कांग्रेस ने यह महसूस किया कि खादी का कपड़ा मोटा, भद्दा और खुरदुरा होता है और बदन बहुत कोमल और नाजुक होता है। इसलिए कांग्रेस ने यह निर्णय लिया कि खादी को महीन किया जाए, रेशम किया जाए, टेरेलीन किया जाए। अंग्रेजों की जेल में कांग्रेसी के साथ बहुत अत्याचार हुआ था। उन्हें पत्थर और सीमेंट की बेंचों पर सोने को मिला था। अगर आजादी के बाद अच्छी क्वालिटी की कपास का उत्पादन बढ़ाया गया, उसके गद्दे-तकिये भरे गए। और कांग्रेसी उस पर विराज कर, टिक कर देश की समस्याओं पर चिंतन करने लगे। देश में समस्याएँ बहुत थीं, कांग्रेसी भी बहुत थे।समस्याएँ बढ़ रही थीं, कांग्रेस भी बढ़ रही थी।

 

एक दिन ऐसा आया की समस्याएं कांग्रेस हो गईं और कांग्रेस समस्या हो गई। दोनों बढ़ने लगे। पूरे� तीस साल तक देश ने यह समझने की कोशिश की कि कांग्रेस क्या है? खुद कांग्रेसी यह नहीं समझ पाया कि कांग्रेस क्या है? लोगों ने कांग्रेस को ब्रह्म की तरह नेति-नेति के तरीके से समझा। जो दाएं नहीं है वह कांग्रेस है।जो बाएँ नहीं है वह कांग्रेस है। जो मध्य में भी नहीं है वह कांग्रेस है। जो मध्य से बाएँ है वह कांग्रेस है। मनुष्य जितने रूपों में मिलता है, कांग्रेस उससे ज्यादा रूपों में मिलती है। कांग्रेस सर्वत्र है। हर कुर्सी पर है। हर कुर्सी के पीछे है। हर कुर्सी के सामने खड़ी है। हर सिद्धांत कांग्रेस का सिद्धांत है है। इन सभी सिद्धांतों पर कांग्रेस तीस साल तक अचल खड़ी हिलती रही।

 

तीस साल का इतिहास साक्षी है कांग्रेस ने हमेशा संतुलन की नीति को बनाए रखा। जो कहा वो किया नहीं, जो किया वो बताया नहीं,जो बताया वह था नहीं, जो था वह गलत था। अहिंसा की नीति पर विश्वास किया और उस नीति को संतुलित किया लाठी और गोली से। सत्य की नीति पर चली, पर सच बोलने वाले से सदा नाराज रही। पेड़ लगाने का आन्दोलन चलाया और ठेके देकर जंगल के जंगल साफ़ कर दिए। राहत दी मगर टैक्स बढ़ा दिए। शराब के ठेके दिए,� दारु के कारखाने खुलवाए; पर नशाबंदी का समर्थन करती रही।

 

हिंदी की हिमायती रही अंग्रेजी को चालू रखा। योजना बनायी तो लागू नहीं होने दी। लागू की तो रोक दिया। रोक दिया तो चालू नहीं की। समस्याएं उठी तो कमीशन बैठे, रिपोर्ट आई तो पढ़ा नहीं। कांग्रेस का इतिहास निरंतर संतुलन का इतिहास है। समाजवाद की समर्थक रही, पर पूंजीवाद को शिकायत का मौका नहीं दिया। नारा दिया तो पूरा नहीं किया। प्राइवेट सेक्टर के खिलाफ पब्लिक सेक्टर को खड़ा किया, पब्लिक सेक्टर के खिलाफ प्राइवेट सेक्टर को। दोनों के बीच खुद खड़ी हो गई । तीस साल तक खड़ी रही।

 

एक को बढ़ने नहीं दिया।दूसरे को घटने नहीं दिया। आत्मनिर्भरता पर जोर देते रहे, विदेशों से मदद मांगते रहे। 'यूथ' को बढ़ावा दिया, बुड्द्धों को टिकेट दिया। जो जीता वह मुख्यमंत्री बना, जो हारा सो गवर्नर हो गया। जो केंद्र में बेकार था उसे राज्य में भेजा, जो राज्य में बेकार था उसे उसे केंद्र में ले आए। जो दोनों जगह बेकार थे उसे एम्बेसेडर बना दिया। वह देश का प्रतिनिधित्व करने लगा।� एकता पर जोर दिया आपस में लड़ाते रहे। जातिवाद का विरोध किया, मगर अपनेवालों का हमेशा ख्याल रखा। प्रार्थनाएं सुनीं और भूल गए। आश्वासन दिए, पर निभाए नहीं। जिन्हें निभाया वे आश्वश्त नहीं हुए। मेहनत पर जोर दिया, अभिनन्दन करवाते रहे। जनता की सुनते रहे अफसर की मानते रहे।शांति की अपील की, भाषण देते रहे। खुद कुछ किया नहीं दूसरे का होने नहीं दिया। संतुलन की इन्तहा यह हुई कि उत्तर में जोर था तब दक्षिण में कमजोर थे। दक्षिण में जीते तो उत्तर में हार गए।

 

तीस साल तक पूरे, पूरे� तीस साल तक, कांग्रेस एक सरकार नहीं, एक संतुलन का नाम था। संतुलन, तम्बू की तरह तनी रही, गुब्बारे की तरह फैली रही, हवा की तरह सनसनाती रही बर्फ सी जमी रही पूरे� तीस साल तक। कांग्रेस अमर है। वह मर नहीं सकती। उसके दोष बने रहेंगे और गुण लौट-लौट कर आएँगे। जब तक पक्षपात ,निर्णयहीनता ढीलापन, दोमुंहापन, पूर्वाग्रह, ढोंग, दिखावा, सस्ती आकांक्षा और लालच कायम है, इस देश से कांग्रेस को कोई समाप्त नहीं कर सकता। कांग्रेस कायम रहेगी। दाएं, बाएँ, मध्य, मध्य के मध्य, गरज यह कि कहीं भी किसी भी रूप में आपको कांग्रेस नजर आएगी। इस देश में जो भी होता है अंततः कांग्रेस होता है। जनता पार्टी भी अंततः कांग्रेस हो जाएगी। जो कुछ होना है उसे आखिर में कांग्रेस होना है। तीस नहीं तीन सौ साल बीत जाएँगे, कांग्रेस इस देश का पीछा नहीं छोड़ने वाली।।।

 

साभारः व्यंगकार स्व. शरद जोशी के संकलन "जादू की सरकार" के "तीस साल का इतिहास" से

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राहुल गाँधी को इन्दौर कलेक्ट की क्लीन चिट

 कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने इंदौर की आमसभा में किसी भी तरह से चुनाव आचार संहिता का उल्लंघन नहीं किया है। उन्होंने अपने भाषण में धर्म की बात जरूर की थी, लेकिन इससे दो धर्मो के प्रति वैमन्यस्ता का माहौल बने ऐसा प्रतीत नहीं होता। यह खुलासा इंदौर कलेक्टर आकाश त्रिपाठी ने मुख्य निर्वाचन पदाधिकारी जयदीप गोविंद को भेजी गई रिपोर्ट में किया है। उन्होंने रिपोर्ट के साथ आमसभा में राहुल गांधी द्वारा दिए गए भाषण की सीडी भी भेजी है।

 

इंदौर कलेक्टर की रिपोर्ट और सीडी मिलने के बाद निर्वाचन आयोग ने इसे विशेष वाहक के हाथ से दिल्ली भेज दिया। उल्लेखनीय है कि भाजपा के प्रदेशाध्यक्ष नरेन्द्र सिंह तोमर ने मुख्य निर्वाचन पदाधिकारी कार्यालय में शिकायत दर्ज कराई थी कि कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने इंदौर की जनसभा को संबोधित करते हुए धार्मिक समुदायों के बीच घृणा की भावना एवं जनता के बीच भ्रम फैलाकर आचार संहिता का सरेआम उल्लंघन किया है।

 

तोमर ने अपनी शिकायत में कहा कि गांधी ने जनसभा में कहा कि मैं मुजफ्फरनगर गया था वहां एक आईबी अधिकारी ने मुझे बताया कि यहां दस-पंद्रह मुसलमान ल़़डके हैं। उनके भाई-बहनों को मारा गया है और पाकिस्तान उनसे संपर्क कर रहा है। तोमर ने अपनी शिकायत में यह भी कहा था कि इस भाषषण से न सिर्फ चुनाव आयोग की आदर्श संहिता का उल्लंघन हुआ है बल्कि गांधी ने साम्प्रदायिक भावनाओं को भड़का कर आईपीसी की धारा 153 एक का भी अपराध किया है

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मलेशिया के एक हिन्दू की शानदार पहल

मलेशिया में रहने वाले उथया शंकर का जन्म हिंदू परिवार में हुआ लेकिन बचपन में वे अकसर चर्च जाते थे और कभी-कभी मस्जिद में भी खेलते भी थे।  वे कहते हैं कि अलग अलग धर्मों के लोगों से मिलने में बहुत मज़ा आता था। लेकिन 90 का दशक आते आते चीज़ें बदलने लगीं।  संबंधित समाचार ईसाई ईश्वर को कह सकते हैं अल्लाह: मलेशियाई पीएम मलेशिया: मुसलमानों के अलावा कोई ना कहे अल्लाह संकट के बीच ओबामा नहीं जाएंगे मलेशिया और फिलीपींस अब 41 साल के हो चुके उथया बताते हैं, “लोगों ने एक दूसरे के धार्मिक स्थानों पर जाना बंद कर दिया। राजनीतिक फ़ायदे के लिए मलेशिया की राजनीतिक पार्टियों ने समानताओं की जगह धार्मिक भेदों पर ज़ोर देना शुरु कर दिया।”  इसलिए 2010 में उन्होंने एक ऐसा मंच बनाने की सोची, जिसमें मलेशिया के सभी लोग धर्म और नस्ल की बात खुलकर कर सकें। वे टूर का आयोजन करते हैं जिसमें युवाओं को अलग अलग धार्मिक स्थलों पर ले जाया जाता है- मस्जिद, मंदिर, चर्च सभी जगह।

कुछ दिन पहले ही उथया कुछ युवाओं और छात्रों को कुआला लंपुर के हिंदू मंदिर में लेकर गए थे, जहाँ उन्होंने हर मूर्ति के बारे में लोगों को बताया।  परज़ूएस जेम्स भारतीय मूल के ईसाई हैं और इस टूर का हिस्सा बने। वे इससे पहले कभी किसी मस्जिद में नहीं गए थे।  वे कहते हैं, “मुझे शर्म महसूस हुई कि दूसरे धर्मों के बारे में इतनी कम जानकारी है। मैं पहले सोचता था कि सिर्फ़ मुसलमान ही मस्जिद में जा सकते हैं।”

इस टूर का हिस्सा रहे 27 साल के रेनर के पिता चीनी बौद्ध हैं और माँ ईसाई। रेनर कहते हैं, “दूसरों के धर्मों के बारे में मुझे कुछ पता नहीं था। मुझे नहीं लगता कि हमें अपने दोस्तों से इसके बारे में बात करने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है।”  28 साल की नोर आर्लीन मुसलमान हैं और उनका परिवार मलेशिया, चीनी और पुर्तगाली मूल का है। वे इस टूर के तहत चीनी बौद्ध मंदिर गई और हिंदू और मुसलमान लोगों के साथ मिलकर वहाँ अगरबत्ती जलाई।  वहीं 21 साल के अज़्ज़ाम सयाफ़िक सिख गुरुद्वारा देखकर काफ़ी हैरान हुए- खास़कर वहाँ खुली जगह और कमरे के बीचों बीच रखे गुरु ग्रंथ साहब को देखकर।  वे कहते हैं, “ये काफ़ी कुछ मस्जिद जैसा था। मैं हमेशा से ही मुस्लिम स्कूल में पढ़ा हूँ। यूनिवर्सिटी में जाकर पहली बार मैने दूसरी नस्ल और धर्म से दोस्त बनाए।”  उथया शंकर तुरंत ही ये सारी तस्वीरें सोशल मीडिया पर डालते हैं क्योंकि उन्हें लगता है कि अपना संदेश फैलाने का ये बढ़िया माध्यम है।

पर्यवेक्षकों का कहना है कि नस्लीय और धार्मिक मतभेद बढ़ रहे हैं, ऐसे समय में उथया शंकर का अभियान काबीले तारीफ़ है।  सात फ़ीसदी भारतीय दो तिहाई मलेशियाई लोग भूमिपुत्र कहलाते हैं जो मूलत वहीं के हैं, एक चौथाई चीनी मूल के लोग हैं और सात फ़ीसदी भारतीय मूल के। सबसे ज़्यादा मुसलमान हैं जिसके बाद हिंदू, ईसाई और बौद्ध समुदाय के लोग।  लेकिन मलेशिया में धार्मिक आज़ादी की क्या सीमा है, इसका नमूना भी मिल जाता है। मिसाल के तौर पर मस्जिद के पास धार्मिक मामलों के विभाग के एक पोस्टर लगा है कि मलेशिया में सिर्फ़ सुन्नी इस्लाम का पालन किया जा सकता है और शिया इस्लाम के खिलाफ़ 1996 से ही फ़तवा है।

हालांकि प्रधानमंत्री नजीब रज़ाक ने वन मलेशिया नाम का अभियान चलाया था जिसे भारतीय हिंदू, ईसाई , बौद्ध और चीनी वोट जुटाने का एक असफल अभियान माना जाता है।  आयोजकों को उम्मीद है कि ज़्यादा से ज़्यादा युवा ये संदेश फैलाएँगे कि मलेशियाई लोगों में बहुत सी आपसी समानताएँ हैं।

 

साभारः बीबीसी हिन्दी से

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एक भारतवंशी ने चुनौती दी ब्रिटिश संसद को

लंदन। सदस्यता लेने से वंचित किए जाने से नाराज भारतीय मूल के अरबपति ब्रिटिश कारोबारी रमिंदर सिंह रैंगर ने हाउस ऑफ लॉड्‌र्स को अदालत में घसीट लिया है। भारतवंशी रैंगर का आरोप है कि गलत, झूठी और भेदभावपूर्ण जानकारियों के जरिये उन्हें दो बार हाउस आफ लॉर्ड्‌स की सदस्यता लेने से रोक दिया गया।

लंदन के द संडे टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार, रैंगर ने हाई कोर्ट में याचिका दाखिल कर जानना चाहा है कि गैर राजनीतिक सदस्यता वाले पीपुल्स पीयर्स के रूप में उनकी नियुक्ति को दो बार क्यों रोका गया। पीपुल्स पीयर्स को ब्रिटिश संसद के ऊपरी सदन हाउस ऑफ लॉड्‌र्स में २००० में स्थापित किया गया था।

एक्सपोर्ट कंपनी सन मार्क लिमिटेड के मालिक रैंगर की संपत्ति ९.५ करोड़ पौंड (५८४ करोड़ रुपए) बताई जाती है। वह प्रिंस चार्ल्स ट्रस्ट के अलावा कई सामाजिक कार्यों में योगदान देते रहे हैं। उनके वकील ने हाई कोर्ट से कहा कि रैंगर अब ब्रिटिश लोगों के लिए और ज्यादा करना चाहते हैं। जुलाई, २००७ में उनकी पहली याचिका दूसरे दौर तक गई थी जबकि अगस्त, २०१० में दूसरी बार इसे तुरंत ही खारिज कर दिया गया। रैंगर का आरोप है कि हाउस ऑफ लॉड्‌र्स की नियुक्ति समिति में उनके खिलाफ दुष्प्रचार अभियान चलाया जा रहा है।

 

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अब भी व्यापक चुनाव सुधारों की दरकार

पूर्व चुनाव आयुक्त टी एन शेषन द्वारा शुरु की गई चुनाव सुधार प्रक्रिया के पश्चात भारत में संपन्न होने वाले संसदीय,विधानसभा व स्थानीय स्तर के चुनावों में हालांकि काफी सुधार हुआ है। जो चुनाव आयोग पहले कभी राजनैतिक दलों के उम्मीदवारों के प्रति नरम रवैया अपनाता नज़र आता था वही चुनाव आयोग अब चुनाव आचार संहिता की धजिजयां उड़ाने वाले उम्मीदवारों पर स ती बरतते देखा जा रहा है। राजनैतिक पार्टियां अब चुनावों से पूर्व आचार संहिता लागू होने के पश्चात आयोग व उनके अधिकारियों से भयभीत नज़र आने लगी है।  परिणामस्वरूप निश्चित रूप से चुनावों के दौरान होने वाले भारी शोर-शराबे में अंतर देखा जा रहा है। पोस्टर,पैंपलेट,बैनर,बिल्ले तथा अन्य प्रचार सामग्री भी पहले से कम इस्तेमाल होती देखी जा रही है। चुनावों में प्रयोग में आने वाले उम्मीदवारों के प्रचार वाहन भी पहले से कम और सीमित हो गए हैं। गोया अब कोई भी राजनैतिक दल चुनावों में इस प्रकार की मनमानी करने से घबराने लगा है जैसी मनमानी चुनाव सुधार प्रक्रिया लागू होने से पूर्व किया करते थे।

परंतु अब भी हमारे देश के चुनाव संचालन में तमाम ऐसी ख़ामियां हैं जिनमें व्यापक सुधार किए जाने की ज़रूरत है। इनमें दो बातें खासतौर पर ऐसी हैं जिनपर भारतीय निर्वाचन आयोग को न केवल नज़र रखने की ज़रूरत है बल्कि इन विषयों पर नियम बनाए जाने की भी आवश्यकता है। इनमें एक तो यह कि चुनाव आयोग प्रत्येक राजनैतिक दल तथा प्रत्याशी के चुनावी खर्च तथा उसे चुनाव हेतु प्राप्त होने वाली फंडिंग पर चुनाव पूर्व से लेकर चुनाव संचालन तथा चुनाव के बाद तक की गतिविधियों पर पूरी नज़र रखे। और दूसरा यह कि निर्वाचन आयोग देश के किसी भी राजनैतिक दल व प्रत्याशी को इस बात की कतई इजाज़त न दे कि कोई भी दल अथवा प्रत्याशी अपने चुनाव प्रचार में धर्म,जाति,धर्मस्थान,क्षेत्रवाद व भाषा आदि के मुद्दे उठा सके। यदि इन दो सुधारों को निर्वाचन आयोग स ती से लागू करता है तो ऐसी उम्मीद की जा सकती है कि भविष्य में चुनावों में आर्थिक भ्रष्टाचार में तो कमी आएगी ही साथ-साथ चुनावों के माध्यम से चुनाव के दौरान उठने वाले मंदिर-मस्जिद अथवा सांप्रदायिकता व जातिवाद जैसे मुद्दों का उछलना यदि बंद नहीं तो कम ज़रूर हो जाएगा।

हालांकि चुनावी खर्च को लेकर निर्वाचन आयोग ने पहले से ही अपनी निर्देशावली बना रखी है जिसके तहत प्रत्याशियों,राजनैतिक दलों को चुनाव उपरांत अपने खर्च व आमदनी का ब्यौरा आयोग को देना पड़ता है। परंतु यह व्यवस्था न तो पारदर्शी है न ही विश्वसनीय। राजनैतिक दल व नेता भले ही कानून के निर्माता, देश के रखवाले, संविधान तथा संसदीय व्यवस्था के संरक्षक व संचालक क्यों न नज़र आते हों परंतु हकीकत तो इसके विपरीत ही है। मेरे विचार से इन्हीं तथाकथित कानून के रखवालों द्वारा ही सबसे अधिक कानून का उलंघन भी किया जाता है।

यही वर्ग नियम व कानून की धज्जियां उड़ाने का सबसे अधिक जि़ मेदार है। यह राजनैतिक वर्ग सत्ता में हो या विपक्ष में इन्हें भलीभांति यह मालूम है कि कागज़ी ख़ानापूर्ति किस प्रकार की जानी है। निर्वाचन आयोग को संतुष्ट करने वाले कागज़ात किस प्रकार तैयार किए जाने हैं। आयोग को हिसाब देते समय बाकायदा लेखाकार तथा कानूनी विशेषज्ञों की सहायता ली जाती है। उसके पश्चात तैयार किए गए फर्ज़ी दस्तावेजों के माध्यम से आयोग को उम्मीदवारों द्वारा यह समझा दिया जाता है कि उन्होंने आयोग के नियमों,निर्देशों तथा चुनाव आचार संहिता के विरुद्ध कुछ भी नहीं किया। इतना ही नहीं बल्कि कई 'चतुर' प्रत्याशी तो ऐसे भी होते हैं जो अपने चुनाव में होने वाले निर्धारित खर्च में बची हुई रकम का भी ख़ुलासा कर देते हैं। जबकि हकीकत में निर्वाचन आयोग के समक्ष दिए गए चुनावी खर्च संबंधी हिसाब-किताब तथा चुनाव पर हुए वास्तविक खर्च में ज़मीन-आसमान का अंतर होता है। और यहीं से शुरु होता है भ्रष्टाचार का वह खेल जोकि आज हमारे देश को दीमक की तरह खाए जा रहा है।

 

हमारे देश में लोकसभा के चुनाव से लेकर विधानसभा, नगर निगम, नगरपालिका, सरपंच व ग्राम प्रधान तक के चुनावों में बड़े पैमाने पर फुज़ूलखर्ची होते देखी जा सकती है। गऱीबों की बस्तियों में नकद पैसे बांटना,शराब के बल पर वोट लेना, आटा,आलू,मिट्टी का तेल जैसी सस्ती सामग्री बंटवाकर मतदाताओं को अपनी ओर आकर्षित करने जैसी हरकतें चुनाव प्रत्याशी द्वारा अक्सर की जाती हैं। पिछले दिनों हरियाणा में हुए नगर निगम चुनावों के दौरान तो यहां तक सुनने को मिला कि अपने पक्ष में अधिक से अधिक मतदान कराने हेतु बाकायदा एजेंट नियुक्त किए गए जिन्हें कुछ इस प्रकार की 'स्कीमÓ बताई गई। यदि कोई एजेंट सौ वोट अमुक प्रत्याशी के पक्ष में डलवाता है तो उसे एक स्कूटर भेंट की जाएगी। और पांच सौ वोट डलवाने पर उसे एक कार तोहफे में दी जाएगी। इसी प्रकार किसी प्रत्याशी के जुलूस में शामिल होने के लिए 200 रुपये प्रति व्यक्ति की दर से नकद पैसे बांटे जाने का समाचार प्राप्त हुआ।

मतदान के दिन सौ रुपये से लेकर एक हज़ार रुपये प्रति वोट तक की कीमत लगाए जाने जैसी शर्मनाक बातें सामने आईं। खरीदने व बेचने का यह खेल केवल मतदाताओं तक ही सीमित नहीं रहा बल्कि नगर निगमों में धन बल के बूते पर बनने वाले मेयर ने कई निर्वाचित सभासदों को भी मात्र अपने धन की बदौलत अपने पक्ष में कर लिया। इसी सौदेबाज़ी को यदि आप विधानसभा स्तर पर परिवर्तित कर के देखें तो देश के विभिन्न राज्यों में ऐसे नज़ारे देखने को मिलेंगे जबकि मंत्री बनने अथवा किसी दूसरे महत्वपूर्ण पद को प्राप्त करने के लिए किसी दल का प्रत्याशी किसी दूसरे दल के प्रति आस्थावान दिखाई देने लगता है। यह सब आिखर भ्रष्टाचार नहीं तो और क्या है? खुद हरियाणा राज्य में ही पिछले विधानसभा चुनावों में यह नज़ारा देखा जा चुका है जबकि एक राजनैतिक दल के कई विधायक अपने पार्टी प्रमुख को अकेला छोड़कर सत्तारुढ़ दल से जा मिले और सभी विधायकों को 'स मानितÓ पद भेंट स्वरूप दिए गए।

 

निर्वाचन आयोग को संतुष्ट करने वाले नेतागण बखूबी जानते हैं कि चुनावों के दौरान हैलाकॉप्टर से लेकर कारों तक के नाजायज़ इस्तेमाल को कैसे जायज़ करार देना है। उन्हें पता है कि चुनावी यात्रा को किस प्रकार सरकारी यात्रा में परिवर्तित करना है। इसी प्रकार चुनावी खर्च,आमदनी तथा चंदे आदि के हिसाब-किताब किस प्रकार चुनाव आयोग के समक्ष रखने हैं। इन्हें यह सबकुछ बखूबी मालूम है। भला हो टी एन शेषन का जिन्होंने चुनाव प्रक्रिया में सुधार की शुरुआत कर भारत में होने वाले चुनावों को काफी हद तक नियंत्रित कर दिया अन्यथा हमारे देश की चुनाव व्यवस्था तो इतनी लचर व बेढंगी थी कि धनवान व बाहुबली व्यक्ति बड़ी ही आसानी से चुनाव को न केवल अपने पक्ष में कर सकता था बल्कि मतगणना की मेज़ तक पर उस की मनमानी चल सकती थी। परंतु निश्चित रूप से अब कम से कम उतनी अंधेरगर्दी नहीं रही जो पहले हुआ करती थी। इसके बावजूद अब भी चुनावी चंदे के नाम पर पिछले दरवाज़े से भारी-भरकम फ़ंडिंग किए जाने का सिलसिला जारी है।

 

यह फ़ंडिंग केवल देश के उद्योगपत्तियों व व्यवसायियों के माध्यम से ही नहीं बल्कि विदेशों से भी की जाती है। चुनाव आयोग को चाहिए कि जिस प्रकार आयोग चुनाव के उपरांत राजनैतिक पार्टियों से व उम्मीदवारों से चुनावी आय-व्यय पर हिसाब लेता है। उसी प्रकार आयोग को चाहिए कि चुनाव पूर्व भी वह समस्त प्रत्याशियों से उनके चुनावी खर्च के हिसाब-किताब,उसकी आय के स्त्रोत तथा चुनावी बजट के संबंध में जानकारी हासिल करे। इस संबंध में अरविंद केजरीवाल द्वारा गठित आम आदमी पार्टी द्वारा जो शुरुआत की गई है वह निश्चित रूप से सराहनीय है।

 

इसी प्रकार निर्वाचन आयोग को चुनाव में सांप्रदायिकता और धर्म-जाति आदि मुद्दे उछालने पर प्रतिबंध लगाना चाहिए। चुनावों में धर्म, जाति, मंदिर-मस्जिद तथा वर्ग-भेद जैसे मुद्दे उठने पर धर्म,जाति तथा वर्ग के आधार पर समाज में धु्रवीकरण बड़ी आसानी से हो जाता है। परंतु इस प्रकार के भावनात्मक मुदें का चुनावों में प्रयोग होने के परिणामस्वरूप क्षेत्र के विकास संबंधी मुद्दे गौण हो जाते हैं। नतीजतन हमारा देश इन्हीें सांप्रदायिक व जातिवाद संबंधी फुज़ूल की बातों में उलझ कर रह जाता है। लिहाज़ा निर्वाचन आयोग ने जहां चुनाव प्रक्रिया में व चुनाव आचार संहिता में अब तक विभिन्न प्रकार के बदलाव व सुधार किए हैं वहीं उपरोक्त प्रमुख विषयों को भी उसे अपनी चुनाव सुधार प्रक्रिया का हिस्सा बनाना चाहिए।

       

तनवीर जाफरी

1618, महावीर नगर,

अंबाला शहर। हरियाणा

फोन : 0171-2535628

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बिग बॉस के खिलाफ इन्दौर के न्यायालय में परिवाद दायर

सिखों की पगड़ी का मजाक बनाना बिग बॉस के लिए मुसीबत बन गया है। इंदौर जिला न्यायालय ने कलर चैनल पर दिखाए गए सीजन-6 के एपीसोड को आधार मानते हुए परिवादी गगनदीप सिंह भाटिया का परिवाद स्वीकार करते हुए केस चलाने के अनुमति दे दी है। साथ ही निचली अदालत द्वारा परिवाद को खारिज करने के आदेश को गलत ठहराया है। परिवादी गगनदीप सिंह व वकील इंद्रजीत सिंह भाटिया को 21 नवंबर को निचली अदालत में उपस्थित रहने के आदेश भी दिए।

शनिवार को इंदौर जिला कोर्ट के न्यायाधीश आरपी शर्मा की कोर्ट ने विवादित एपीसोड की सीडी देखते हुए आदेश पारित किया। आदेश में लिखा गया है कि यह स्पष्ट है कि इससे सिख समाज की धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंची है। परिवाद ग्राह्य किया जाता है।

गौरतलब है कि 19 अक्टूबर 2012 को दिखाए गए शो में पूर्व क्रिकेटर नवजोत सिंह सिद्धू ने महिला कलाकारों को पग़ि़डयां पहनाकर घूमाया था। इसपर अभिनेता सलमान खान ने टिप्पणी की थी कि यह भी 'सन ऑफ सरदार' का एक रूप है। फिर अजय देवगन ने कहा कि यह तो 'डॉटर ऑफ सरदार' हैं। इस वाक्ये के बाद अजय देवगन, सलमान खान, संजय दत्त और सोनाक्षी सिन्हा हंसने लगे थे। इसे कोर्ट ने धार्मिक आस्था को ठेस पहुंचाने वाला कृत्य माना है।

निचली अदालत ठीक से करे अवलोकन

निचली अदालत के न्यायाधीश आशुतोष शुक्ला के समक्ष युवा सिख मोर्चा के अध्यक्ष गगनदीपसिंह भाटिया की ओर से एडवोकेट इंद्रजीत सिंह भाटिया ने परिवाद पेश किया। यहां से परिवाद यह कहते हुए खारिज कर दिया गया था कि महिलाएं पग़़डी नहीं पहनती, इसका कोई पुख्ता सबूत नहीं है।

अदालत ने निचली कोर्ट को आदेश दिए कि वह बिगबॉस के उक्त एपीसोड की सीडी ठीक से देखे और अवलोकन करे। परिवादी कोई अतिरिक्त सबूत पेश करना चाहे तो उसे भी सुना व देखा जाए। प्रकरण की सुनवाई भी जारी रखी जाए।

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ये खबर मोरारी बापू और रमेश भाई ओझा को जरुर शर्मिंदा करेगी!

ये खबर देश के दो महान संतों मोरारी बापू और भूपेंद्र भाई पंड्या को ज़रुर शर्मिंदा करेगी और हो सकता है मुकेश अंबानी की माँ श्रीमती कोकिलाबेन अंबानी को भी शर्मिंदा करे कि देश के सबसे बड़े उद्योगपति जिनका पूरा खानदान शाकाहारी है, वे अब देश भर में लोगों को माँसाहार सहजता से उपलब्ध हो उसके लिए चिकन रेस्त्राँ कोलने जा रहे हैं।

 

इस खबर के शीर्षक में हमने मोरारी बापू और रमेश भाई ओझा का नाम इसलिए लिया है कि दोनों ही संत अंबानी परिवार के प्रिय संत हैं और मोरारी बापू ने तो अंबानी परिवार द्वारा कॉर्पोरेट घरानों के लिए रामचरित मानस पर विशेष कथा तक की थी जिसमें आम आदमी को आने की अनुमति नहीं थी।

 

हमको उम्मीद है कि इन दोनों संतों में इतना स्वभिमान और आत्म गौरव बाकी है कि वे इस खबर पर शर्मिंदा ही नहीं होंगे बल्कि सार्वजनिक रूप से मुकेश अंबानी के इस कारोबार पर शर्मिंदगी जाहिर करेंगे। अगर ये दोनें संत अफ़सोस जाहिर नहीं करते हैं तो फिर ये मान लेना चाहिए कि हजारों लोगों के बीच अपने कथा कार्यक्रम के दौरान मोरारी बापू और रमेश भाई ओझा कथा सुनाने के लिए कथा करते हैं, और अंबानी जैसे घरानों के लोगों को अपनी कथा में आमंत्रित कर उनका महिमा मंडन करते हैं। काश! मोरारी बापू और रमश भाई ओझा मुकेश अंबानी पर पने प्रभाव का उपयोग कर मुकेश अंबानी से देश में गौ-वंश को बचाने के लिए कुछ करवा पाते तो देश के करोड़ों किसानों को नया जीवन मिल सकता था।

देश के प्रमुख अंग्रेजी दैनिक टाईम्स ऑफ इंडिया ने खबर दी है कि देश के सबसे अमीर आदमी मुकेश अंबानी अब नॉनवेज यानी चिकन रेस्त्रां चेन खोलने जा रहे हैं। रिलायंस इंडस्ट्रीज लिमिटेड (आरआइएल) के पोर्टफोलियो में एक कारोबार और जुड़ जाएगा। रिलायंस अपने चिकन रेस्त्रां चेन को ब्रिटेन स्थित कंपनी के साथ गठबंधन करके शुरू करेगी।

कंपनी को इस बिजनेस में ग्रोथ नजर आ रही है। भारत में क्विक सर्विस रेस्त्रां (क्यूएसआर) का कारोबार प्रति वर्ष 30 फीसद की तेजी से बढ़ रहा है। हालांकि, मजे की बात यह है कि रिलायंस के मालिक मुकेश अंबानी खुद शाकाहारी हैं और यह उनकी जीवनशैली से बिल्कुल भिन्न है। इससे साफ होता है कि व्यक्तिगत रूप से मुकेश इसमें सीधे तौर पर हस्तक्षेप नहीं करेंगे।

भारत में चिकन प्रेमियों के लिए यह अच्छी खबर हो सकती है। रिलायंस इस चेन का नाम 'चिकन केम फस्ट' दिया है जोकि सीधे केएफसी को टक्कर देगा। दुनिया में चिकन रेस्त्रां चेन में केएफसी को सबसे ज्यादा पॉपुलर माना जाता है। छपी खबर के मुताबिक, आरआईएल ने टू सिस्टर्स फूड इंडिया (टीएसएफआई) में 45 फीसद शेयर लिए हैं। टीएसएफआई ब्रिटेन की तीसरी सबसे बड़ी फूड कंपनी है जोकि पोल्ट्री, रेट मीट, मछली और बेकरी तथा रिटेल चेन को फ्रोजन प्रोडक्ट सप्लाई करती है।

आरआईएल ने इस कंपनी में रिलायंस रिटेल के जरिए हिस्सेदारी खरीदी है लेकिन लेनदेन की राशि का खुलासा नहीं किया गया है। ब्रिटेन की कंपनी के मालिक का नाम रंजीत सिंह बोपरन है। कारोबार की शुरुआत में दोनों कंपनियां फूट आउटलेट को फ्रोजन और चिल्लड फूड को सप्लाई करेंगे। इसके बाद चिकन केम फस्ट के साथ 7,000 करोड़ रुपये के फूड सर्विस मार्केट पर अपनी पकड़ मजबूत करेगी। टूएसएफजी की ब्रिटेन में 36 मैन्युफैक्चरिंग साइट हैं, आठ नीदरलैंड, 5 आयरलैंड और 1 पोलैंड में है।

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इस बार दीपावली पर 149 वर्ष पुराना संयोग

दीपावली पर इस बार १४९ साल बाद धन लक्ष्मी योग बन रहा है। इस योग में धन की अधिष्ठात्री देवी महालक्ष्मी के पूजन का विशेष महत्व है। मान्यता है कि इस संयोग में लक्ष्मी को प्रसन्न करने से निरंतर धन-धान्य की प्राप्ति होती है। पंचग्रही योग सिद्घांत के अनुसार ऐसा योग ५०० साल में केवल तीन बार ही बनता है। इससे पहले २९ अक्टूबर १८६४ में ऐसा संयोग बना था। अगला योग १६ नवंबर २१६१ में बनेगा।

उज्जैन के ज्योतिषाचार्य पं.अमर डब्बावाला का कहना है कि  स्थिर लग्न में की गई महालक्ष्मी की पूजा सर्वश्रेष्ठ मानी जाती है। इस लग्न में पूजन से माता की कृपा हमेशा बनी रहती है। अर्थात निरंतर धन आगमन का योग बना रहता है। नक्षत्र मेखला की गणना के अनुसार इस बार प्रदोष काल में वृषभ लग्न आ रहा है। लग्न के द्वितीय स्थान में बृहस्पति एकादश अधिपति होकर अपने कारक स्थान यानी धन स्थान पर बैठे हैं। मिथुन राशि में पदस्थ बृहस्पति व्यावसायिक लाभ की दृष्टि से श्रेष्ठ माने जाते हैं। यह योग धन लक्ष्मी योग कहलाता है।

वृषभ लग्न में करें पूजन

ज्योतिष के अनुसार दीपावली पर प्रदोषकाल के दौरान वृषभ लग्न में शाम ६.२३ बजे से ७.५८ बजे तक महालक्ष्मी का पूजन करना अतिशुभ होगा। हालांकि प्रदोष काल के बाद भी अर्धरात्रि तक माता लक्ष्मी का पूजन किया जा सकता है।

शाम तक अमावस्या

इस बार अमावस्या शनिवार रात ८.१२ बजे से शुरू होकर रविवार को दीपावली की शाम ६.२३ बजे तक रहेगी। डब्बावाला ने बताया, शास्त्रों में कहा गया है कि किसी भी पर्व पर अमावस्या का स्पर्श काल मुहूर्त के अंदर ३५ मिनट भी रहता है तो उसे अर्धरात्रि तक मान्य किया जा सकता है। 

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