Tuesday, November 26, 2024
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आर. के. तलरेजा महाविद्यालय में द्विदिवसीय अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी संपन्न

उल्हासनगर। विश्वविद्यालय अनुदान आयोग द्वारा संपोषित हिंदी विभाग आर. के. तलरेजा महाविद्यालय, उल्हासनगर एवं साहित्यिक सांस्कृतिक शोध संस्था, मुंबई के संयुक्त तत्वावधान में गत दिनों नवंबर 2013 कोया. कार्यक्रम का उद्घाटन श्रद्धेय आचार्य डॉ. शिवेंद्रपुरी के करकमलों से संपन्न हुआ. पं. शांडिल्य ने अपने सुमधुर स्वर में सरस्वती वंदना प्रस्तुत की. उद्घाटन सत्र की अध्यक्षता करते हुए डॉ. शिवेंद्रपुरी ने कहा कि भक्ति जनमानस का मूल्य है. बीज वक्तव्य में मुंबई विश्वविद्यालय के आचार्य डॉ. रामजी तिवारी ने भारतीय समाज के ‘वसुधैव कुटुंबकम’ की भावना पर प्रकाश डाला. प्राचार्य डॉ. ललितांबाल नटराजन ने स्वागत भाषण देते हुए संगोष्ठी में पधारे सभी व्यक्तियों का सम्मान किया. आर. के. तलरेजा विश्वविद्यालय के पूर्व हिंदी विभागाध्यक्ष डॉ. दशरथ सिंह ने भक्ति साहित्य के महत्व को स्पष्ट किया. सिंधी भाषा की एकमात्र डी.लिट. उपाधि ग्रहण करने वाले डॉ. दयाल आशा ने सिंधी भक्ति साहित्य में विश्वकल्याण की भावना पर प्रकाश डाला.  

डॉ. शिवेंद्रपुरी ने उद्घाटन सत्र में सोनभाऊ बसवंत महाविद्यालय, शाहपुर के उपप्राचार्य एवं हिंदी विभागाध्यक्ष डॉ. अनिल सिंह द्वारा संपादित पुस्तक ‘वैश्विक परिदृश्य में साहित्य, मीडिया एवं समाज’ का विमोचन किया. इसी कड़ी में डॉ. प्रदीप कुमार सिंह, हिंदी विभागाध्यक्ष, साठेय महाविद्यालय की पुस्तक ‘सूफी साहित्य का पुनर्मूल्यांकन’ का भा विमोचन किया गया. दक्षिण कोरिया से पधारे हिंदी के विद्वान डॉ. को. जोग. किम ने भक्ति साहित्य को भारतीय साहित्य की अमूल्य धरोहर तथा विश्वकल्याण का मार्गदर्शक माना. इसी सत्र में साहित्यिक सांस्कृतिक शोध संस्था की ओर से साहित्य एवं संस्कृति के क्षेत्र में उल्लेखनीय कार्य करने वाली विभूतियों को शाल, श्रीफल और प्रशस्तिपत्र प्रदान कर सम्मानित किया गया. इस अवसर पर डॉ. दिलीप सिंह ने डॉ. शिवेंद्र, डॉ.रामजी तिवारी, डॉ. दयाल आशा, डॉ. एस. एन. सिंह, डॉ. रामआह्लाद चौधरी, डॉ. बीना खेमचंदानी, डॉ. सतीश पांडेय आदि को सम्मानित किया. डॉ. किम ने साहित्यिक सांस्कृतिक शोध संस्था की वेबसाईट का उद्घाटन किया.

प्रथम सत्र में डॉ. शीतला प्रसाद दुबे ने भक्ति साहित्य में व्यक्त विश्वकल्याण की भावना पर प्रकाश डाला. कलकत्ता विश्वविद्यालय के हिंदी विभागाध्यक्ष डॉ. रामआह्लाद चौधरी ने वर्तमान व्यावहारिकता एवं आपाधापी से भरे जीवन में भक्ति साहित्य की प्रासंगिकता को स्पष्ट किया. सत्र के सम्माननीय अतिथि डॉ. किम ने बड़ी सहजता से हिंदी भक्ति साहित्य की भावभूमि की कलातीत सार्वभौमिकता को स्वीकार किया.

उच्च शिक्षा और शोध संस्था, दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा, हैदराबाद के आचार्य एवं अध्यक्ष डॉ.ऋषभ देव शर्मा ने भक्ति को चेतना एवं व्यावहारिकता से जोड़ते हुए समय के साथ उसे गंभीरता से ग्रहण करने की अनिवार्यता पर बल दिया.

औरंगाबाद विश्वविद्यालय के पूर्व विभागाध्यक्ष डॉ. अंबादास देशमुख ने भक्ति साहित्य की भाषा को विश्व मानव से जोड़ने वाला मूल तंतु बताया. सत्र की अध्यक्षता डॉ. दिलीप सिंह ने की. डॉ. मुक्ता नायडू ने संचालन किया और सभी का आभार व्यक्त किया.

इस सत्र के आरंभ में इस वर्ष दिवंगत हुए हिंदी साहित्यकारों को स्मरण कर श्रद्धांजलि समर्पित की गई. डॉ. राजेंद्र यादव, डॉ. के. पी. सक्सेना, डॉ. शिवकुमार आदि साहित्यकारों की आत्मा की शांति हेतु संगोष्ठी में दो मिनट का मौन रखा गया.

संगोष्ठी के उपरांत सभी अतिथियों और प्रतिभागियों को 5000 वर्ष पुराने अंबरनाथ मंदिर, टिटवाला गणेश गणेश मंदिर (जिसे सिद्धि मंदिर माना जाता है) का भ्रमण करवाया गया.

प्रतिभागियों की विशाल संख्या को ध्यान में रखकर संगोष्ठी के दूसरे दिन छह समानांतर स्तरों में संगोष्ठी आयोजित की गई. अस्सी से अधिक प्रपत्र प्रस्तुत किए गए जिनमें सूर, कबीर आदि के अलावा मराठी, सिंधी, तमिल, कन्नड़, पंजाबी आदि अन्य भारतीय भाषाओं के भक्तों के साहित्य में वर्णित विश्वकल्याण और विश्वबंधुत्व की भावना पर प्रकाश डाला गया. इन छह समानांतर सत्रों में विभक्त संगोष्ठी के विषय थे – साहित्य और मानव मूल्य, सूफी साहित्य और लोक संग्रह, हिंदीतर भाषाओं में विश्वबंधुत्व की भावना, भक्ति, दर्शन एवं कृष्ण काव्य, राम साहित्य और लोकमंगल आदि. इन सत्रों की अध्यक्षता क्रमशः डॉ. दिलीप सिंह, डॉ. रामआह्लाद चौधरी, डॉ. अनिल सिंह, डॉ. अंबादास देखमुख, डॉ. ऋषभ देव शर्मा और डॉ. अशोक धुलधुले ने की.

संगोष्ठी के समानांतर सत्रों में डॉ. श्रीराम परिहार, डॉ. श्रीराम जी तिवारी, डॉ. घरत अर्जुन, डॉ. नारायण, डॉ. उत्तम भाई पटेल, डॉ. माधव पंडित, डॉ. विष्णु सर्वदे, डॉ. शेषारत्नम, डॉ. रामनाथम और डॉ. मधुकर पाडवी विशेष अतिथि के रूप में उपस्थित रहें. उक्त सत्रों का संचालन डॉ. मोहसिन खान, प्रा. संजय निबलाकर, डॉ. एम. एच. सिद्दीकी, डॉ. शील अहुजा तथा डॉ. मिथिलेश शर्मा ने किया.

समापन सत्र में साहित्यिक सांस्कृतिक शोध संस्था द्वारा डॉ. शीला गुप्ता, डॉ. शेषारत्नम, डॉ. मुक्ता नायडू, डॉ. अशोक धुलधुले, डॉ. शेख हसीना, डॉ. शीतला प्रसाद दुबे का प्राचार्य ललितांबाल नटराजन एवं डॉ. दिलीप सिंह ने शाल, श्रीफल एवं प्रशस्तिपत्र प्रदान कर सम्मानित किया. इस सत्र के अध्यक्ष डॉ. दिलीप सिंह ने संगोष्ठी की सफलता और उपलब्धियों की चर्चा करते हुए संस्था की ओर से सभी का आभार व्यक्त किया. इस अवसर पर उपप्राचार्य नंद वघारिया, कोंकण से पधारे प्रा. अर्शद आवटे, गुजरता से आए डॉ. उत्तम भाई पटेल, प्रा. रीना सिंह एवं छात्र प्रतिनिधि डॉ. उपाध्याय सूर्यभान ने संगोष्ठी के विभिन्न पक्षों पर अपनी टिप्पणी प्रस्तुत की.

समापन सत्र का कुशल संचालन डॉ. अनिल सिंह ने किया. संगोष्ठी को सफल बनाने में सक्रिय सहयोग देने हेतु डॉ. अनिल सिंह, सह संयोजिका प्रा. रीना सिंह, प्रा. योगेंद्र खत्री, डॉ. अजय सिंह, डॉ. पी. के. सिंह और कर्मठ छात्राओं को धन्यवाद देते हुए संगोष्ठी के संयोजक डॉ. संतोष मोटवानी ने सभी के प्रति आभार व्यक्त किया.

संपर्क

 डॉ. गुर्रमकोंडा नीरजा

प्राध्यापक, उच्च शिक्षा और शोध संस्थान,

दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा, हैदराबाद – 500004

ईमेल – neerajagkonda@gmail.com

saagarika.blogspot.in

srawanti.blogspot.in

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मात्र हस्ताक्षर के लिए गरीब देश में इतना वेतन और सुविधाएं देना कैसे न्यायोचित ?

अमेरिका में प्रति लाख जनसंख्या 256 और भारत में 130 पुलिस है जबकि अमेरिका में भारत की तुलना में प्रति लाख जनसंख्या 4 गुणे मामले दर्ज होते हैं| फिर भी भारत में प्रति लाख जनसंख्या 56 केन्द्रीय पुलिस बल इसके अतिरिक्त हैं| अमेरिका में प्रति लाख जनसंख्या 5806 मुकदमे दायर होते हैं जबकि भारत में यह दर मात्र 1520 है| तदनुसार भारत में प्रति लाख जनसंख्या 68 मात्र पुलिस होना पर्याप्त है| किन्तु भारत में मात्र 25% पुलिस बल ही थानों में जनता की सेवा के लिए तैनात है और शेष बल लाइन आदि में तैनात है जिसमें से एक बड़ा भाग अंग्रेजी शासनकाल से ही विशिष्ट लोगों को वैध और अवैध सुरक्षा देने, उनके घर बेगार करने, वसूली करने आदि में लग जाता है|

भारत में अंग्रेज, जनता पर अत्याचार कर उनका शोषण करने और ब्रिटेन के राज कोष को धन से भरने के लिए आये थे अत: उनकी सुरक्षा को खतरे का अनुमान तो लगाया जा सकता है| किन्तु जनतन्त्र में शासन की बागडोर जनप्रिय, सेवाभावी और साफ़ छवि वाले लोगों के हाथों में होती है अत: अपवादों को छोड़ते हुए उनकी सुरक्षा को कोई ख़तरा नहीं हो सकता| फिर भी इन राजपुरुषों की सुरक्षा को लोकतंत्र में भी कोई ख़तरा होता है तो उसके लिए उनका आचरण ही अधिक जिम्मेदार है|   

पुलिस अपनी बची खुची ऊर्जा व समय  का उपयोग अनावश्यक गिरफ्तारियों में करती है| वर्ष भर में देश में लगभग एक करोड़ गिरफ्तारियां होती हैं व देश के पुलिस आयोग के अनुसार 60% गिरफ्तारियां अनावश्यक हो रही हैं| राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के अनुसार भी देश में गत तीन वर्षों में कम से कम 3,668 अवैध गिरफ्तारियां हुई हैं| यह आंकडा तो मात्र रिपोर्ट किये गए मामले ही बताता है जो वास्तविकता का मात्र 5% ही है| इसमें राज्य आयोगों और बिना रिपोर्ट हुए/दबाये गए आंकड़े जोड़ दिए जाएं तो स्थिति भयावह नजर आती है|     

दुखद तथ्य है कि अपनी सुरक्षा के लिए, जिस पुलिस पर देश की जनता पूरा खर्च कर रही उसका उसे मात्र 25% प्रतिफल ही मिल रहा है और न केवल आम नागरिक की सुरक्षा के साथ समझौता किया जा रहा है बल्कि अनुसंधान में देरी का लाभ दोषियों को मिल रहा है| आपराधिक मामलों में 10-15 वर्ष मात्र अनुसंधान में आम तौर पर लगना इस दोषपूर्ण तैनाती नीति की ही परिणति है| अत: अब नीति बनायी जाए की कुल पुलिस बल का कम से कम आधा भाग जनता की सेवा में पुलिस थानों में तैनात किया जाए ताकि जनता कि सुरक्षा सुनिश्चित हो सके, अपराधियों को शीघ्र दंड मिल सके और उन पर प्रभावी नियंत्रण पाया जा सके|

यदाकदा किसी संवेदनशील मामले में न्यायालय द्वारा वरिष्ठ अधिकारी द्वारा अनुसंधान का आदेश दिया जाता है तो भी बयान हैड कांस्टेबल ही लेता और वही रिपोर्ट बनाता है| वरिष्ठ पुलिस अधिकारी तो वातानुकूलित कार्यालयों में बैठकर मात्र हस्ताक्षर ही करते हैं और बयान लेने कहीं बाहर नहीं जाते हैं| मात्र हस्ताक्षर करने के लिए देश की गरीब जनता की जेब से इतना भारी वेतन और सुविधाएं देना किस प्रकार न्यायोचित है|   

पुलिस तो जनता की सुरक्षा के लिए क्षेत्र में कार्य करने वाला बल है जिसका कार्यालयों में कोई कार्य नहीं है| सभी स्तर के पुलिस अधिकारियों को कार्यक्षेत्र में भेजा जाना चाहिए और उन्हें, अपवादों को छोड़कर, हमेशा ही चलायमान ड्यूटी पर रखा जाना चाहिए| आज संचार के उन्नत साधन हैं अत: आवश्यकता होने पर किसी भी पुलिस अधिकारी से कभी भी संपर्क किया जा सकता है और पुलिस चलायमान ड्यूटी पर होते हुए भी कार्यालय का कामकाज देख सकती है| पुलिस अधिकारियों को यह भी निर्देश हो को वे पुलिस थानों के कार्यालय की बजाय जनता से संपर्क कर निरीक्षण रिपोर्ट बनाएं|

                                                                   

 संपर्क

मनीराम शर्मा                                                     

एडवोकेट

नकुल निवास, रोडवेज डिपो के पीछे

सरदारशहर-331403

जिला-चुरू(राज)

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सोनी और लाईफ ओके टीवी पर दो नए कार्यक्रम

सोनी टीवी और लाइफ ओके पर जल्द ही दो नए कार्यक्रमों का प्रसारण होने जा रहा है। ये हैं सोनी एंटरटेनमेंट टेलिविजन पर आने वाला ‘एक नयी पहचान’ और लाइफ ओके पर दिखाया जाने वाला ‘द एडवेंचर ऑफ हातिम’।   

‘एक नयी पहचान’ में सास-बहू के रिश्ते को नए सिरे से परिभाषित किया गया है जबकि ‘द एडवेंचर ऑफ हातिम’ एक चमत्कार भरी कहानी है। दर्शकों को ‘एक नयी पहचान’ 23 दिसंबर से सोमवार से शुक्रवार और ‘द एडवेंचर ऑफ हातिम’28 दिसंबर से हर शनिवार देखने को मिलेगा।   

एक नयी पहचान’ में गए जमाने की अदाकारा पूनम ढिल्लों गुजराती सास के किरदार में नजर आएंगी। इस सीरियल की कहानी श्रीदेवी अभिनीत फिल्म इंग्लिश-विंग्लिश की कहानी से मिलती-जुलती है। साथ ही यह कहीं न कहीं नारी के आत्म-सम्मान और उसके उत्थान की कहानी भी है। इस सीरियल में मुख्य भूमिकाओं में सूरज थापर और क्रिस्टल डिसूजा भी वापसी कर रहे हैं।  

‘द एडवेंचर ऑफ हातिम’ के प्रोड्यूसर निखिल सिन्हा हैं। निखिल ही लाइफ ओके के सुपर हिट सीरियल ‘महादेव’ के निर्माता हैं। सीरियल में हातिम की भूमिका में राजबीर सिंह हैं और उनके साथ परिजाद के अहम किरदार में पूजा बनर्जी और खलनायक जारगम की भूमिका में चन्दन आनंद हैं। साथ ही नौशीन अली सरदार और अंजलि अब्रोल भी इस सीरियल में हैं।

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अपराध जगत में महिलाओं की घुसपैठ

भारतवर्ष में महिलाओं को प्राय: अबला अथवा बेचारी के रूप में देखा जाता है। महिला उत्पीडऩ की घटनाएं भी देश में प्रतिदिन कहीं न कहीं घटित होती ही रहती हैं। खासतौर पर पिछले कुछ वर्षों में महिलाओं के विरुद्ध होने वाले अपराधों ने विशेषकर सेक्स अपराधों ने पूरे देश को हिला कर रख दिया है। यहां तक कि महिलाओं की रक्षा हेतु कई नए कानून बनाए गए हैं तथा महिला विरोधी अपराधों को निपटाने के लिए फास्ट ट्रैक अदालतों का भी गठन किया गया है। देश का पुरुष प्रधान समाज भी महिलाओं पर होने वाले अत्याचार व यौन उत्पीडऩ जैसी घटनाओं को लेकर महिलाओं के प्रति पूरी सहानुभूति रखता देखा जा रहा है। पंरतु इन्हीं समाचारों व घटनाओं के मध्य यह भी देखा जा रहा है कि इसी महिला समाज में महिलाओं की अपराध में भागीदारी का ग्राफ भी दिनोंदिन बढ़ता जा रहा है।              

हमारे देश में पुतली बाई,फूलन देवी तथा सीमा परिहार जैसी दस्यु सुंदरियों ने अपने हाथों में शस्त्र उठाकर यह साबित कर दिया है शस्त्र उठाना अथवा सशस्त्र होकर पुलिस अथवा मर्दों का मुकाबला करना उनके लिए कोई बड़ी बात नहीं है। परंतु उपरोक्त महिला दस्यु की पृष्ठभूमि में यदि हम झांकें तो हमें यह देखने को मिलेगा कि यह महिलाएं रोज़ी-रोटी कमाने अथवा किन्हीं साधारण पारिवारिक परिस्थितियों के चलते महिला दस्यु जगत में शामिल नहीं हुर्इं बल्कि कुछ अपरिहार्य परिस्थितियों ने इन्हें शस्त्र उठाने पर मजबूर कर दिया। और भारत के दस्यु इतिहास में इन महिलाओं ने इतनी प्रसिद्धि अर्जित की कि पूरा देश यहां तक कि भारतीय सिने जगत भी इनकी हिम्मत, बहादुरी व हौसले के चलते इनकी ओर आकर्षित हुआ।

अफसोस की बात तो यह है कि आज हमारे देश में साधारण परिवार की साधारण व गरीब महिलाएं मात्र अपनी रोज़ी-रोटी चलाने के लिए तथा अपनी इच्छाओं की पूर्ति हेतु आपराधिक गतिविधियों को अंजाम दे रही हैं। ऐसी महिलाअेां को अपराध जगत में धकेलने के लिए महिलाएं खुद तो दोषी हैं ही साथ-साथ उनके परिवार के वे पुरुष सदस्य भी जि़ मेदार हैं जोकि अपने घर की औरतों को तरह-तरह अपराध करने हेतु खुली छूट केवल इसलिए देते हैं ताकि वे बाहर निकल कर पैसे कमाकर लाएं तथा परिवार के सदस्यों का खर्च उठाने के अलावा उनकी शराब की भी व्यवस्था करें।              

पिछले दिनों अंबाला में एक ऐसी महिला अपराधी को गिरफ़्तार किया गया जो स्मैक बेचने का धंधा करती थी। उसका यह अवैध कारोबार हालांकि लंबे समय से चल रहा था। स्थानीय पुलिस भी काफी समय तक उसके अपराध में सांझीदार थी। अनेक स्कूल-कॉलेज के बच्चे तथा युवा वर्ग के लोग इस महिला द्वारा बेची जाने वाली स्मैक के नशेे की गिर त में आते जा रहे थे। आिखरकार जब पूरे शहर में  महिला द्वारा संचालित इस स्मैक के अड्डे की चर्चा जगह-जगह शुरु हो गई तब कहीं जाकर पुलिस ने इस औरत को स्मैक सहित धर दबोचा। और इस प्रकार स्मैक बेचने वाली महिला जेल की सलाखों के पीछे पहुंच गई।

जिस बस्ती में रहकर यह महिला स्मैक बेचा करती थी, चौधरी बंसी लाल द्वारा हरियाणा में शराब बंदी लागू रहने के दौरान इसी बस्ती में सार्वजनिक रूप से शराब का अवैध धंधा किया जाता था। बताया जाता है कि उसी दौरान शराब की अवैध कमाई से उस बस्ती के कई लोगों ने अपने पक्के मकान सरकारी अथवा दूसरों की ज़मीन पर कब्ज़ा जमाकर बना लिए। आज भी उस पूरी बस्ती में अपराधों, अवैध कार्यों तथा नशीले पदार्थों की बिक्री का सिलसिला जारी है। गौरतलब है कि इस बस्ती को अपराध की दुनिया में धकेलने में पुलिस का भी कम योगदान नहीं है। पुलिस संरक्षण व पुलिस को मिलने वाली रिश्वत की बदौलत आज जो बस्ती अपराध व अवैध नशीले व्यापार का केंद्र बन चुकी है उसी बस्ती में आज स्वयं पुलिस कर्मी भी जाते हुए डरते व घबराते हैं। क्योंकि अपराध की दुनिया में अपने कदम आगे बढ़ा चुकी महिलाओं के लिए पुलिस कर्मी अथवा किसी भी अन्य व्यक्ति के ऊपर किसी प्रकार का लांछन लगा देना कोई बड़ी बात नहीं है।              

ऐसी महिलाओं विशेषकर युवतियों व किशोरियों को सर्दी-गर्मी अथवा बरसात के किसी भी मौसम में ब्रह्म मुहूर्तकाल में ही संदिग्ध अवस्था में अपने कंधों पर बड़ा सा गठरीनुमा थैला लादे हुए इधर-उधर घूमते हुए देखा जा सकता है। ज़ाहिर तौर पर तो यह महिलाएं व युवतियां कूड़े के ढेर पर मिलने वाले प्लास्टिक, गत्ता,लोहा अथवा अन्य कबाड़ ढंूढने का काम करती हैं। पंरतु देर रात के जिस काले अंधेरे में इन महिलाओं के कदम घर से बाहर निकलते हैं उस समय तो अंधेरे के चलते कुछ भी नज़र ही नहीं आता। फिर आिखर इन औरतों को इनका मनचाहा कबाड़ कैसे दिखाई दे जाता है?

वास्तव में चोरी का काम अंजाम देने वाली महिलाओं का यह एक संगठित नेटवर्क है जोकि कबाड़ व कूड़ा चुनने के नाम पर प्रात:कालीन 3-4 बजे ही अपने घरों से बाहर निकल आता है। और उन मकानों व दुकानों को यह निशाना बनाता है जहां कोई मकान या दुकान मालिक भूलवश अपनी कोई वस्तु अपने घर व दुकान के आसपास भूल गया हो। यह महिलाएं लोगों की नज़रें बचाकर उनके गेट के भीतर रखा सामान भी उठा ले जाती हैं। टूटियां,हैंडपंप के हैंडल, मेनहोल के ढक्कन,किसी बंद पड़े मकान की ग्रिल व खिड़कियां, चाय-पान की दुकानों या रेहडिय़ों के तालों को तोड़कर उनमें रखे गरीब दुकानदार के सामानों का सफाया आदि जैसे काम यह प्रात:काल अंजाम देती हैं। शहर का आम आदमी जब सुबह 5-6 बजे के आसपास सैर करने हेतु बाहर निकलता है तो यही युवतियां, महिलाएं व इनका साथ देने वाले किशोर अपने बड़े-बड़े भारी थैलों को कंधों पर उठाकर अपने-अपने घरों को वापस जाते दिखाई देते हैं। कई बार उनके कंधों पर लदा बोझ इतना भारी होता है कि वे इसे अपने कंधों पर उठाकर नहीं ले जा पातीं और इन्हें सुबह-सुबह रिक्शा चालक की सहायता लेनी पड़ती है।              

इस महिला समाज को केवल चोरी जैसा अपराध ही नहीं करना पड़ता बल्कि प्रात:काल कभी-कभी इन्हें चोरी करते हुए पकड़े जाने के बाद शारीरिक उत्पीडऩ का शिकार भी होना पड़ता है। और अपने को बचाकर भाग निकलने के लिए ऐसी महिलाएं सबकुछ करने के लिए तैयार भी हो जाती हैं। इस पूरे प्रकरण में पहली जि़ मेदारी तो उस पुरुष समाज की है जो स्वयं तो अपने घर में चैन से पड़ा हुआ अपनी नींदें पूरी कर रहा होता है तो उसी दौरान उसके घर की महिलाएं अपनी इज़्ज़त-आबरू का सौदा करने तथा अपने परिवार का पेट पालने के लिए चोरी व अन्य आपराधिक घटनाओं को अंजाम देने ब्रह्म मुहूर्त के अंधेरे में अपने-अपने घरों से बाहर निकल जाती हैं। तो दूसरी जि़ मेदारी उस पुलिस व प्रशासन की भी है जो दशकों से सुबह-सवेरे होने वाले इस अपराध को रोक पाने में नाकाम है। बड़े बड़े अपराध की गुत्थी कुछ ही घंटों में सुलझाने की क्षमता रखने वाली पुलिस कई दशकों से ब्रह्म मुहूर्त में होते आ रहे इन अपराधों से नावािकफ हो ऐसा हरगिज़ नहीं हो सकता। हां दिनोंदिन इनकी सं या में इज़ाफा होते जाना इस बात का सुबूत ज़रूर है कि पुलिस व प्रशासन इस विषय की पूरी तरह अनदेखी करते हैं तथा इन अपराधों से अपना मुंह फेरे हुए हैें।              

इसी महिला समाज में तमाम ऐसी महिलाएं ाी शामिल हैं जोकि सेक्स रैकेट का संचालन करती हैं। इनमें कई ऐसी महिलाएं हैं जो अपनी पूरी जवानी दुसरे पुरुषों से सेक्स संबंध स्थापित करने में बिता देती हैं। और आगे चलकर यही महिलाएं अपने आर्थिक लाभ के लिए अपने संपर्क में आने वाली दूसरी युवतियों को भी उसी नरक में धकेल देती हैं। अनेक नगरों में ऐसे रैकेट चलाने वाली महिलाओं व उनका सहयोग करने वाले पुरुषों को भी देखा जा सकता है। ऐसे अपराधों में संलिप्त महिलाएं प्राय: दबंग,निडर व आक्रामक प्रवृति की होती हैं। इसका कारण ाी मु यत: यही है कि अपनी वासना की इच्छापूर्ति के लिए उनके पास आने वाले पुरुष तो दुश्चरित्र व अपराधी स्वभाव के होते ही हैं साथ-साथ नगर के कुछ विशिष्ठ लोगों व पुलिसकर्मियों से भी इनके संपर्क व संबंध बने होते हैं। और ऐसा धंधा चलाने वाली महिलाओं से इन्हीं संबंधों के भयवश कोई कुछ बोल नहीं पाता। परिणामस्वरूप जहां ऐसे रैकेट संचालित हो रहे हों उसके पास-पड़ोस का वातावरण गंदा हो जाता है। तथा उस इलाके के शरीफ व इज़्ज़तदार लोगों का जीना मुहाल हो जाता है।

 

वैसे भी किसी बदचलन,बदकिरदार तथा आवारा प्रवृति की महिला से मुंह लगाना भी आम आदमी पसंद नहीं करता। क्योंकि जो महिलाएं एक बार अपनी इज़्ज़त,इस्मत तथा चरित्र को दांव पर लगाकर सड़कों पर खड़ी हो जाती हैं कोई पुरुष आसानी से उनका मुकाबला कम से कम बहस,वार्ता अथवा गाली-गलोच में तो कर ही नहीं सकता। वैसे भी एक शरीफ व्यक्ति औरत से बहस करने से कतराता है। वह डरता है कि कहीं कोई बदचलन महिला उस पर भी किसी प्रकार का गलत लांछन लगाकर उसे सारी जि़ंदगी के लिए बदनाम न कर दे।

               

उपरोक्त अपराधों के अतिरिक्त भी कई दूसरे संगीन अपराधों में महिलाओं की भागीदारी की खबरें अक्सर आती रहती हैं। कभी किसी डकैती में किसी औरत के शामिल होने की खबर मिलती है तो कभी ऐसे समाचार भी सुनाई देते हैं जबकि तथाकथित विशिष्ट व अमीर परिवार की महिला सदस्यों द्वारा अपनी सेक्स की इच्छापूर्ति के लिए इंटरनेट के माध्यम से दूसरे पुरुषों को आमंत्रित कर उनसे अपनी शारीरिक इच्छाओं की पूर्ति की जा रही हो। बड़े-बड़े गुंडे व गैंगस्टर के साथ महिलाओं की सक्रिय भागीदारी की खबरें भी कभी-कभी सुनाई देती हैं। गोया हम कह सकते हैं कि हमारे समाज में केवल पुरुष वर्ग ही बुराई अथवा अपराध की ओर अपने कदम आगे नहीं बढ़ा रहा है बल्कि इस अपराध जगत में महिलाओं की भागीदारी भी लगातार बढ़ती जा रही है।                                                                                                                                

निर्मल रानी

1618, महावीर नगर                                                     

अंबाला शहर,हरियाणा।

फोन-0171-2535628

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फिल्मी दुनिया का 2013 का लेखा जोखा

फिल्मी दुनिया के लिए 2013 को जहां मिला-जुला साल बताया, वहीं चेन्नई एक्सप्रेस ने बॉक्स ऑफिस पर रिकार्ड 216 करोड़ रुपए की कमाई कर डाली। बॉलीवुड का इस साल अब तक का कुल कारोबार 2,633 करोड़ रुपए का हो चुका है, जिसमें धूम-3 की कमाई जुड़नी अभी बाकी है। यह फिल्म 20 दिसंबर को रिलीज होनी है। इस साल 166 फिल्में रिलीज हुईं और पिछले साल हुई कुल 2,423 करोड़ रुपए की कमाई से इस साल अधिक कमाई हुई।

ब्लॉकबस्टर फिल्मों की संख्या इस साल हालांकि पिछले साल के मुकाबले कम रही। पिछले साल नौ फिल्में 100 करोड़ के क्लब में शामिल हुई थीं, जिनमें शामिल थीं- अग्निपथ, हाउसफुल-2, राउडी राठौर, एक था टाइगर, बर्फी, जब तक है जान, सन ऑफ सरदार, बोल बच्चन और दबंग-2। इस साल अब तक सिर्फ पांच फिल्में हीं 100 करोड़ के आंकड़े को पार कर सकीं, जिनमें शामिल हैं- ये जवानी है दीवानी, चेन्नई एक्सप्रेस, भाग मिल्खा भाग, कृष-3 और राम-लीला। मल्टिमीडिया कंबाइन्स के राजेश थडानी ने बॉलीवुड के लिए 2013 को मिला-जुला बताया। उन्होंने कहा, 2013 अच्छा साल रहा, बल्कि यह कहना ठीक होगा कि मिला-जुला साल रहा। कुछ बड़ी फिल्में और साथ ही कुछ औसत फिल्मों ने अच्छा प्रदर्शन किया। फिल्म विश्लेषक कोमल नाहटा के मुताबिक, बॉलीवुड का कारोबार अब तक के हिसाब से बेहतर रहा है।

कृष-3 और चेन्नई एक्सप्रेस जैसी कुछ बड़े बजट की फिल्मों ने अत्यधिक अच्छा प्रदर्शन किया। विभिन्न�Ÿोणियों में विविध प्रकार की फिल्मों के साथ यह मिला-जुला साल रहा। इस साल लगभग हर�Ÿोणी की फिल्में बनीं। थडानी ने कहा कि भले ही 100 करोड़ क्लब में इस साल कम फिल्में शामिल हुईं, लेकिन इस साल का कलेक्शन बेहतर रहा। उन्होंने कहा, चेन्नई एक्सप्रेस की 216 करोड़ रुपए की कमाई हुई। ये जवानी है दीवानी की 185 करोड़ रुपए की कमाई हुई। कृष-3 की लगभग 200 करोड़ रुपए, भाग मिल्खा भाग की 109 करोड़ और राम-लीला की 110 करोड़ रुपए की कमाई हुई। थडानी का कहना है, 2012 में 175 करोड़ रुपए और 200 करोड़ रुपए तक की कमाई नहीं हुई थी। जी-7 मल्टिप्लेक्स और मराठा मंदिर के कार्यकारी निदेशक मनोज देसाई ने कहा कि राम-लीला आश्चर्यजनक तरीके से 100 करोड़ रुपए के क्लब में प्रवेश कर गई। राम-लीला के 100 करोड़ रुपए के क्लब में शामिल होने की उम्मीद नहीं थी, लेकिन इसने बढ़िया प्रदर्शन किया।

विश्लेषकों के मुताबिक, कई छोटे बजट की फिल्मों के लिए भी यह साल बेहतर रहा। बिग सिनेमा के मुख्य संचालन अधिकारी आशीष सक्सेना ने कहा, साल अच्छा रहा, लेकिन 2012 के मुकाबले 15-20 फीसदी कम रहा। मेरे ख्याल से यह मिला-जुला साल रहा। जहां तक छोटे बजट की फिल्मों की बात है, आशिकी-2, एबीसीडी- ऐनी बडी कैन डांस, स्पेशल 26 और ग्रैंड मस्ती ने काफी अच्छा कारोबार किया। थडानी ने भी कहा कि छोटे बजट में चार फिल्मों का प्रदर्शन बेहद उम्दा रहा। जानकार सूत्रों के मुताबिक आशिकी-2 ने 79 करोड़ रुपए, एबीसीडी ने 36 करोड़ रुपए, काई पो चे ने 49 करोड़ रुपए, फुकरे ने 32 करोड़ रुपए, स्पेशल 26 ने 67 करोड़ रुपए, चश्मेबद्दूर ने 42 करोड़ रुपए, मद्रास कैफे ने 40 करोड़ रुपए और गो गोवा गॉन ने 25 करोड़ रुपए कमाए.

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बांग्लादेश में हिन्दू की हत्या में आठ को मौत की सजा

बांग्लादेश में पिछले साल विपक्ष द्वारा आहूत बंद के दौरान एक हिन्दू टेलर की हत्या के मामले में अदालत ने सत्ताधारी अवामी लीग के आठ छात्र कार्यकर्ताओं को मौत की सजा सुनाई है। इस मामले में १३ अन्य को आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई है। अदालत ने व्यवस्था दी कि दर्जी विश्वजीत दास की हत्या जघन्य अपराध है, इसकी निंदा की जानी चाहिए।

बांग्लादेश कानून के मुताबिक यदि निचली अदालत द्वारा दोषी ठहराए गए लोग फैसले के खिलाफ अपील नहीं करते हैं तो भी हाई कोर्ट मौत की सजा की समीक्षा करता है। विपक्ष के बंद के दौरान पिछले साल नौ दिसंबर को पुराने ढाका के बहादुर शाह पार्क क्षेत्र में छात्र लीग के कार्यकर्ताओं ने २४ वर्षीय दर्जी विश्वजीत दास को मौत के घाट उतार दिया था। बांग्लादेश छात्र लीग (बीसीएल) अवामी लीग का छात्र संगठन है। सुतरापुर पुलिस ने इस घटना को लेकर हत्या का मामला दर्ज किया था। दो जून को छात्र लीग के कुल २१ कार्यकर्ताओं के खिलाफ आरोप तय किए गए थे। इस हत्याकांड को लेकर सत्ताधारी अवामी लीग की काफी आलोचना हुई थी। फैसले पर प्रतिक्रिया में दास के भाई ने कहा कि हम इससे संतुष्ट हैं, हमें न्याय मिला है।

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राजीव गांधी की जान बचाने वाला कर रहा है मजदूरी

भारतीय सेना की पैरा रेजीमेंट में भर्ती होने के बाद वीरता के बलबूते शांति मेडल हासिल करने वाला जांबाज फौजी भरत सिंह आज दो जून की रोटी के जुगाड़ के लिए मजदूरी कर रहा है।

फौजी का कहना है कि श्रीलंका में भेजी गई शांति में वह भी शामिल था। तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी के जाफना दौरे के दौरान तामिल सैनिक ने अपनी राइफल के बट से जब राजीव पर प्रहार किया था तो उस समय वह ही भारतीय प्रधानमंत्री के पीछे चल रहा था और उसने राइफल को झपट कर पकड़ लिया था। उनकी इसी सतर्कता पर उन्हें शांति मेडल प्रदान किया था।

महेंद्रगढ़ जिले की कनीना तहसील के गांव पोटा के रहने वाले भरत सिंह ने ेबताया कि वे १९८१ में भारतीय थल सेना की पैरा रेजीमेंट में सैनिक के पद पर भर्ती हुए थे। वे आगरा में रेजीमेंट के मुख्यालय पर तैनात थे। अमृतसर स्थित स्वर्ण मंदिर को आतंकवादियों से मुक्त करवाने में उन्होंने अहम भूमिका निभाई थी। १९८७ में उन्हें श्रीलंका में गई शांति सेना में भेजा गया था। वहीं कुछ समय बाद उनका बुरा दौर शुरू हुआ। अपनी यूनिट के हेड क्लर्क के एक आदेश को उन्होंने मानने से इंकार कर दिया था। इसी रंजिश में क्लर्क ने भरत सिंह को फंसाने के लिए षड्‌यंत्र रचना शुरूकर दिया। सेना के वाहन में बैठकर जा रहे भरत सिंह के दोनों पांव एक भूमिगत सुरंग के फटने से बुरी तरह जख्मी हो गए। इलाज के दौरान करंट लगाकर पागल घोषित कर वापस भेज दिया गया। उन्हें पेंशन व अन्य लाभ नहीं दिए गए। फिर कुछ लोगों ने उनकी जमीन पर भी कब्जा कर लिया। व्यवस्था से थक हारकर वह दो जून की रोटी के जुगाड़ के लिए मजदूरी करने पर विवश है।

साभारः दैनिक नईदुनिया से

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अमरीका में शराब की बोतल पर शिवजी का फोटो

अमरीका के उत्तरी केरोलिना राज्य में शराब व पिज़्ज़ा निर्माता कंपनी एशविल्ले ब्रीईंग कंपनी ने� शराब की बोतल पर भगवान शिव की तस्वीर अंकित की है। शराब की बोतल पर नटराज के रूप में भगवान शिव के चित्र के साथ शिवाह् लिखा है। कंपनी के इस कृत्य की अमरीका के हिन्दुओं ने जमकर आलोचना की है। अमरीका के एक हिन्दू कार्यकर्ता राजन जेदने ने कहा कि कंपनी द्वारा हिन्दुओं की भावनाओं का अनादर करने वाला यह कृत्य पूर्णतया अनुचित है। हिन्दुओं के देवताओं का उपहास उड़ाकर कंपनी ने हिन्दू भावनाओं को ठेस पहुंचाई है। हिन्दू धर्म में भगवान शिव आस्था के केन्द्र हैं इसलिए कंपनी तत्काल हिन्दुओं से क्षमा मांगे और इस शराब की बिक्री बंद करे।��������

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नरेंद्र मोदी की रैली के लिए मुंबई के 50 हजार घरों से भोजन

मुंबई। गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी की मुंबई रैली हेतु दक्षिण मुंबई के 50 हजार से ज्यादा घरों में अतिथियों के स्वागत की जोरदार तैयारियां हो रही है। विधायक मंगल प्रभात लोढ़ा एवं सुनील राणे की कोशिशों से दक्षिण मुंबई के 50 हजार परिवार इस रैली में आनेवाले लोगों के लिए अपने अपने घरों से भोजन प्रदान करेंगे। श्री मोदी 22 दिसंबर को मुंबई आ रहे हैं।

अतिथि देवो भवः की भारतीय परंपरा के अनुसार मुंबई में किसी भी राजनेता के स्वागत मै आनेवाले लोगों के लिए विधायक लोढ़ा के मुताबिक अब तक का यह सबसे अनूठा और सबसे बड़ा प्रयास होगा। यह भी पहली बार हो रहा है कि लोग स्वयं अपने घर से अलग अलग भोजन बनाकर देने की पहल कर रहे हैं। उन्होंने बताया कि श्री मोदी के नाम पर लोगों में जो जोश और सहयोग का भाव दिख रहा है, वह अपने आप में अदभुत है। जितने घरों में यह भोजन बनेगा, उनका यह आंकड़ा अब तक 50 हजार से भी ज्यादा तक पहुंच गया है।

भारतीय जनता पार्टी के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार एवं गुजरात के मुख्यमंत्री श्री नरेंद्र मोदी अगले रविवार, 22 दिसंबर को मुंबई आ रहे हैं। वे बांद्रा कुर्ला कॉम्प्लेक्स में प्रदेश की अपनी अब तक की सबसे विशाल जनसभा को संबोधित करेंगे। विधायक लोढ़ा ने बताया कि श्री मोदी की इस रैली में आनेवालों के स्वागत में भोजन का इंतजाम करने के लिए सुनील राणे और उन्होंने जब कार्यकर्ताओं के जरिए लोगों से संपर्क किया तो, बड़ी संख्या में सामान्य घरेलू भाई बहनों ने भी अपनी तरफ से पहल करके फूड पेकेट्स देने की पहल की। इस रैली में बड़ी संख्या में प्रदेश भर के विभिन्न इलाकों से लोग आ रहे हैं। उनके स्वागत में  दक्षिण मुंबई के 50 हजार घरों में भोजन बनेगा। भोजन के ये पैकेट दक्षिण मुंबई बीजेपी के कार्यकर्ता घर घर जाकर इकट्ठा करेंगे। इस रैली को लेकर लोगों में जबरदस्त उत्साह है।

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खराब गले का बहाना बना ठगे 63 लाख रुपये

ई-फ्रॉड्स के लगातार बढ़ रहे मामलों की लिस्ट में एक और ताज़ा घटना जुड़ गई है।  टाईम्स ऑफ इंडिया ने खबर दी है कि एक व्यापारी और नैश्नलाइज़्ड बैंक को 'खराब गले' वाले एक फ्रॉड ने 63 लाख का चूना लगा दिया। फ्रॉड ने व्यापारी की कस्टमर आईडी हैक कर ली और बैंक को लगातार फंड ट्रांसफर करने के लिए मेल करनी शुरू कीं। उसने कहा कि वह बैंक से पर्सनली बात नहीं कर सकता क्योंकि उसका गला खराब है। बैंक ने 63 लाख रुपये ट्रांसफर कर दिये और वह पैसा लेकर चंपत हो गया।

बैंक ने बिना किसी विशिष्ट निर्देश के इन ई-मेल्स के आधार पर ही व्यापारी के फिक्स्ड डिपॉज़िट भी तोड़ दिये। हैरानी की बात यह है कि मेल पर फ्रॉड और बैंक का यह संवाद लगभग एक महीना चला, फिर भी बैंक ने अकाउंट होल्डर की जांच करने की कोई कोशिश नहीं की।

सांताक्रूज़ निवासी चंदर विदेशों में व्यापार करते हैं और इस बैंक की ब्रांच में उनका एक एनआरई (नॉन-रेजिडेंट एक्स्टर्नल रुपी) अकाउंट है। इसी बैंक में उनके व उनकी पत्नी के जॉइंट फिक्स्ड डिपॉज़िट भी हैं।

चंदर को इस धोखाधड़ी का पता 13 दिसंबर को चला, जब वह बैंक गए। उन्हें बताया गया कि उनकी रजिस्टर्ड ई-मेल आईडी से आई रिक्वेस्ट्स के आधार पर उनके अकाउंट से 60 हजार पाउंड्स (करीब 63 लाख रुपये) दो हिस्सों में विदेशी अकाउंट्स में ट्रांसफर किये गए।

चंदर के वकील और साइबर लॉ व सिक्यॉरिटी एक्सपर्ट प्रशांत माली ने बताया, 'उस व्यक्ति ने कहा कि उसका गला खराब है इसलिए वह बोल नहीं सकता। उसने कहा कि लंदन में उसका ट्रीटमेंट चल रहा है इसलिए चंदर के अकाउंट से 40,000 डॉलर निकालकर एक प्राइवेट बैंक में ट्रांसफर किये जाएं।'

माली ने कहा, इसी निर्देश के आधार पर बैंक ने कुछ फिक्स्ड डिपॉज़िट तोड़े और डॉलर्स में अपनी लंदन ब्रान्च को भेज दिये ताकि पैसे उस नकली अकाउंट में क्रेडिट किये जा सकें। लेकिन ट्रांसफर करने के लिए पैसों का ब्रिटिश पाउंड्स में होना ज़रूरी है इसलिए ट्रांसफर नहीं हो पाया। इसके बाद बैंक ने 40,000 डॉलरों को करीब 30,000 पाउंड्स में कन्वर्ट किया और 21 नवंबर को लंदन ट्रांसफर कर दिये।

उन्होंने बताया, इस ट्रांसफर से फ्रॉड को और हिम्मत मिली और उसने फिर से एक मेल किया कि उसको अभी तक पैसा नहीं मिला और ट्रीटमेंट का खर्च चुकाने के लिए उसे लोन लेना पड़ा। उसने कहा कि फंड्स ट्रेस करने के लिए जांच की जाए और निकी वेंचर्स नाम की उसकी कम्पनी के नाम पर दोबारा पैसे भेजे जाएं। 5 दिन बाद बैंक अधिकारियों ने यह भी कर दिया। और तो और, एक मेल में बैंक ने फिक्स्ड डिपॉज़िट और मैच्योरिटी डेट्स की सारी जानकारी बिना मांगे ही उस फ्रॉड को दे दी।

हमारे सहयोगी अखबार टाइम्स ऑफ इंडिया ने उस बैंक के अधिकारियों से बात करने की कोशिश की लेकिन उन्होंने कोई जवाब नहीं दिया।

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