Tuesday, May 21, 2024
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बीबीसी के खिलाफ 10 हजार करोड़ के मुआवजे की याचिका मीडिया डेस्क

दिल्ली हाई कोर्ट के एक न्यायमूर्ति ने एक गैर सरकारी संगठन (NGO) की याचिका पर सुनवाई से खुद को अलग कर लिया है, जिसमें उसने ब्रिटिश ब्राडकास्टिंग कॉपरेशन (बीबीसी) से हर्जाने की मांग की है।

दरअसल, इस याचिका में कहा गया है कि डॉक्यूमेंट्री ‘इंडिया: द मोदी क्वेश्चन‘ न केवल देश की छवि को धूमिल करती है, बल्कि इसमें प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी व भारतीय न्यायापालिका के खिलाफ झूठे व  अपमानजनक बयान भी शामिल हैं।

न्यायमूर्ति अनूप जयराम भंभानी ने कहा कि वह खुद को अलग कर रहे हैं, लेकिन उन्होंने इसके लिए कोई कारण नहीं बताया। न्यायमूर्ति ने कहा कि याचिका को कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश के आदेश के अधीन 22 मई को सुनवाई के लिए दूसरी पीठ के समक्ष सूचीबद्ध किया जाए।

बता दें कि यह याचिका गुजरात स्थित एनजीओ जस्टिस ऑन ट्रायल ने बीबीसी के खिलाफ दायर की है, जिसमें 10,000 करोड़ रुपये के मुआवजे की मांग की गई है। कोर्ट ने इस याचिका पर पहले बीबीसी (यूके) और बीबीसी (भारत) को नोटिस जारी किया था।

जनवरी 2023 में प्रसारित हुई डॉक्यूमेंट्री 2002 के गुजरात दंगों पर केंद्रित है जब मोदी राज्य के मुख्यमंत्री थे। एनजीओ का तर्क है कि डॉक्यूमेंट्री प्रधानमंत्री, भारत सरकार, गुजरात सरकार और भारत के लोगों की प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचाती है।

याचिका में कहा गया है कि बीबीसी (यूके) ब्रिटेन का राष्ट्रीय प्रसारक है और उसने डॉक्यूमेंट्री ‘इंडिया: द मोदी क्वेश्चन‘ जारी की है, जिसके दो एपिसोड हैं और बीबीसी (भारत) उसका स्थानीय संचालन कार्यालय है। जनवरी 2023 में इसके दो एपिसोड प्रसारित किए गए थे। सरकार ने इस  डॉक्यूमेंट्री के रिलीज होने के तुरंत बाद ही इसे प्रतिबंधित कर दिया था और डॉक्यूमेंट्री साझा करने वाले कई यूट्यूब वीडियो और ट्विटर पोस्ट को ब्लॉक कर दिया था।

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कहानी फिल्म सीता और गीता की मनोरमा की मीडिया डेस्क

सीता और गीता’ की चाची मनोरमा थीं पाकिस्तानी, पति ने दिया तलाक, आखिरी समय बदहाली में बीता….
बॉलीवुड फिल्मों में कई तरह की खलनायिकाएँ आईं लेकिन मनोरमा जैसी कोई नहीं। उन्होंने अपने चेहरे के भावों से के दर्शकों में अपनी पहचान बनाई। । मनोरमा ने बाल कलाकार से शुरुआत की और 6 दशक तक पर्दे पर डटी रहीं। फिल्मों से लेकर टीवी की दुनिया में अपना अमूल्य योगदान दिया।
साल 1972 की फिल्म ‘सीता और गीता’ में चाची कौशल्या याद हैं? वही, जिनके चेहरे पर किलो भर मेकअप रहता। आंखों गहरा मोटा काजल और चढ़ी हुई भौंह। उनका नाम मनोरमा है। अधिकतर मूवीज में वह मां और सास के रोल में ही दिखाई दी हैं, जो बहुत ही अत्याचारी होती है। अपने चेहरे के हाव-भाव से ही काफी कुछ कह जाती है। 6 दशकों तक ये इंडस्ट्री में एक्टिव रहीं। इन्होंने कई फिल्मों में काम किया। आज हम आपको इनके बारे में ही बताने जा रहे है। उनकी कुछ चर्चित फिल्मों में ‘सीता और गीता’, ‘एक फूल दो माली’, ‘दो कलियां’, ‘कारवां’ शामिल हैं।
मनोरमा का जन्म 16 अगस्त, 1926 को पाकिस्तान लाहौर में एक आयरिश मां और भारतीय ईसाई पिता के घर हुआ था। उनके पिता एक इंजीनियरिंग कॉलेज में प्रोफेसर थे। जन्म के समय मनोरमा का नाम एरिन इस्साक रखा गया था। मनोरमा के माता-पिता दोनों संगीत प्रेमी थे। इसलिए, एक्ट्रेस ने भी डांस और म्यूजिक में ट्रेनिंग ली थी।
एक बार मनोरमा स्कूल में किसी कार्यक्रम में भाग ले रही थी, तभी एक प्रोड्यूसर की नजर उन पर पड़ी। वह उन्हें कास्ट करना चाहते थे। लेकिन मनोरमा के पिता एक्टिंग के लिए राजी नहीं थे। हालांकि फिल्ममेकर ने मनोरमा के पिता को मना लिया। इसके बाद एरिन इस्साक ‘मनोरमा’ बन गईं।
मनोरमा ने ‘खजांची’ (1941) में एक बाल कलाकार के रूप में शुरुआत की और लाहौर में एक बहुत सफल अभिनेत्री बन गईं। बंटवारे के बाद वह मुंबई आ गईं। मनोरमा ने ‘घर की इज्जत’ (1948) में दिलीप कुमार की बहन की भूमिका निभाई और सुपरहिट पंजाबी फिल्म ‘लच्छी’ (1949) में अभिनय किया। मनोरमा की शादी राजन हक्सर से हुई थी, जो एक अभिनेता भी थे। राजन निर्माता बन गए, जबकि मनोरमा ने अपने अभिनय करियर को फिर से स्थापित किया। अपनी शादी के बाद, उन्हें कैरेक्टर्स रोल और फिर विलन या कॉमिक रोल्स में रखा गया।
राजन से शादी के कई साल बाद उनका तलाक हो गया। उनकी आखिरी हिंदी फिल्म अकबर खान की ‘हादसा’ (1983) थी। मनोरमा ने टीवी सीरियल की ओर रुख किया। उन्होंने ‘दस्ताक’ सीरीज में काम किया था जिसमें शाहरुख खान भी थे। मनोरमा ने सीरियल ‘कुटुंब’ में हितेन तेजवानी की दादी का किरदार भी निभाया था।
2000 के दशक की शुरुआत में, उन्होंने बालाजी टेलीफिल्म्स के साथ उनके धारावाहिक ‘कश्ती’ और ‘कुंडली’ के लिए काम किया। उनकी आखिरी फिल्म दीपा मेहता की ‘वॉटर’ (2005) थी, जिसमें उन्होंने अपने अभिनय से हॉलीवुड क्रिटिक्स को दीवाना बना दिया था। मनोरमा के मुताबिक, फिल्म में मधुमती का किरदार निभाने के लिए वह पहली और आखिरी पसंद थीं। बनारस में फिल्म की मेकिंग पांच साल के लिए बंद कर दी गई थी। उन्हें छोड़कर पूरी कास्ट बदल दी गई थी।
मनोरमा को 2007 मेंलकवा हो गया था और बाद में वो ठीक भी हो गईं। हालाँकि उनको बोलने में मुश्किल होती थी। साथ ही कुछ और शारीरिक दिक्कतें भी थीं। 15 फरवरी 2008 को मुंबई में उनका निधन हो गया। इन्होंने 150 फिल्मों में काम किया था। मनोरमा की एक बेटी रीता हक्सर है। रीता ने संजीव कुमार के साथ ‘सूरज और चंदा’ में लीड रोल के तौर पर काम किया था, लेकिन बाद में एक इंजीनियर से शादी कर ली और विदेश में बस गईं।
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राजकुमार करण सिंह के घोड़े शुभ्रक ने कुतुबुद्दीन की जान लेकर राजकुमार के अपमान का बदला लिया मीडिया डेस्क

कुतुबुद्दीन ऐबक, मोहम्मद गौरी का गुलाम था। कुतुबुद्दीन, मोहम्मद गौरी गौरी के बाद दिल्ली का सुल्तान बना। मोहम्मद गौरी ने इसको खरीदा था। गुलामों को सेनिको की सेवा के लिए खरीदा जाता था। कुतुबुद्दीन ऐबक ने गुलाम वंश कि स्थापना की। इसकी मृत्यु घोड़े से गिरकर नहीं हुई। बल्कि मेवाड़ के स्वामीभक्त घोड़े शुभ्रक के कारण हुई।

कुतुबुद्दीन ऐबक ने दिल्ली में विष्णु मन्दिर को तोड़ कर कुव्वत उल इस्लाम मस्जिद बनाई। अजमेर में संस्कृत विद्यालय को तोड़कर ढाई दिन का झोपड़ा नामक मस्जिद का निर्माण करवाया। उसने दिल्ली में कुतुबमीनार का निर्माण करने के लिए सताइस २७ मन्दिरों को तुड़वा दिया।

ऐसा शासक उदार और दानी कैसे हो सकता हैं जैसा कि इतिहास में लिखा गया है। क्योंकि सत्य को छुपाया गया है।

शुभ्रक घोड़ा और कुतुबुद्दीन ऐबक :

जिसने ग्यारह बारह वर्ष में घुड़सवारी शुरू की हो और घोड़े पर बैठकर कई लड़ाइयां लड़ी हो क्या घोड़े से गिरकर मर सकता हैं ?

कुतुबुद्दीन ऐबक ने राजपूताना में बहुत अत्याचार किए। और मेवाड़ के राजकुंवर कर्ण सिंह को बंदी बनाकर लाहौर ले गया। राजकुंवर शुभ्रक नामक एक स्वामीभक्त घोड़ा था। जो कुतुबुद्दीन को पसन्द आ गया और उसे भी साथ ले गया।

लाहौर में मेवाड़ के कुंवर को बंदी बनाया। लेकिन एक दिन कैद से छूटने के प्रयास में राजकुंवर को मौत की सजा सुनाई गई। और तय हुआ कि राजकुंवर कर्ण सिंह जी का सिर काट कर चौगान खेला जाएगा। चौगान एक प्रकार का खेल होता है, जिसे आजकल पोलो की तरह खेलते हैं।

एक कैदी की तरह समय पर महाराज कुंवर कर्ण सिंह को लाहौर के जन्नत बाग लाया गया। कुतुबद्दीन ऐबक स्वयं शुभ्रक घोड़े पर सवार होकर अपनी टीम के साथ जन्नत बाग में आया।

मेवाड़ के स्वामीभक्त शुभ्रक ने जैसे ही कैदी की अवस्था में राजकुंवर को देखा तो उसकी आँखों से आँसू निकलते लगे । जैसे ही सिर काटने के लिए कर्ण सिंह जी को जंजीरों से खोला, तो शुभ्रक से देखा नहीं गया अपने स्वामी की ऐसी दशा को।

शुभ्रक ने पलक झपकते ही कुतुबुद्दीन ऐबक को पटक दिया। और उसके सीने पर तब तक प्रहार करता रहा जब तक उसके प्राण पंखेरू उड़ नहीं गए। तुर्क सैनिक सम्हले तब तक अपने स्वामी कर्ण सिंह के पास पहुंचा।

इस स्थिति का फायदा उठाकर कर्ण सिंह सैनिकों से छूटे और शुभ्रक पर सवार हो गए। शुभ्रक अपने पूरे वेग से मेवाड़ की और दौड़ने लगा। तीन दिन बाद मेवाड़ की राजधानी चित्तौरगढ़ की सीमा में प्रवेश कर गया।

शुभ्रक चितौड़गढ़ किले में पहुंचा, उसे संतोष था कि उसने अपने स्वामी को पहुंचा दिया। लेकिन जैसे ही राजकुंवर कर्ण सिंह जी शुभ्रक से उतरे और अपने प्रिय अश्व को पुचकारने के लिए हाथ बढ़ाया तो पाया कि वह तो प्रतिमा बना खड़ा था …….. वो निष्प्राण था। उसके सिर पर हाथ रखते ही निष्प्राण शरीर लुढ़क गया।

हमे भारत के इतिहास में यह तथ्य कहीं नहीं पढ़ाया गया क्योंकि वामपंथी और मुल्लापरस्त लेखक कुतुबद्दीन ऐबक की ऐसी दुर्गति वाली मौत को छुपाना चाहते थे। जब कि फारसी की कई प्राचीन पुस्तकों में लिखी बताई गई हैं।

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डॉ. श्री बालाजी तांबे के योगदान पर पुणे में अभिनव आयोजन

जो समाज से मिलता है वह समाज को कई गुना लौटा दो,  इसी पावन भावना के साथ डॉ, श्री बालाजी तांबे जीवन भर कार्य करते रहे। उनका मानना था कि मनुष्य को अपना जीवन किसी वृक्ष की तरह जीना चाहिए, वृक्ष आपसे एक बीज लेता है और आपकी सहायता से ही बीज को विकसित कर अपने आपको फल और फूलों से लाद देता है। इन फल फूलों काु उ  उपयोग वह अपने लिए नहीं करता।

मुंबई से पुणे जाते समय लोनावाला से मात्र 7 किलोमीटर दूर कार्ला में स्थित डॉ. श्री बालाजी तांबे द्वारा स्थापित आत्म संतुलन विलेज आज पूरी दुनिया मे  आयुर्वेद उपचार और  प्राकृतिक व वैदिक जीवन शैली का जीवंत केंद्र बन चुका है। बालाजी के निधन के बाद भी उनके सुयोग्य पुत्र सुनील तांबे अपने सहयोगियों के साथ इस संस्थान को उसी पवित्रता और अनुशासन के साथ चला रहे हैं जैसा बालाजी तांबे अपने जीवन काल में संचालित करते थे।

दुनिया भर के लोग यहाँ अपनी बीमारियों के इलाज से लेकर प्राकृ-तिक व वैदिक जीवन शैली का अनुभव करने आते हैं।  यहाँ हजारों साल पुरानी आयुर्वेदिक परंपरा से दवाईयों का निर्माण होने से लेकर पारंपरिक आयुर्वेदिक चिकित्सा और पंचकर्म, स्वेदन, बस्ती आदि के माध्यम से मरीजों का इलाज किया जाता है।

श्रीगुरु डॉ. श्री बालाजी तांबे  और उनके कार्यों को समाज के सामने प्रस्तुत करने की दृष्टि से पुणे के समाचार पत्र सकाळ समूह ने पुणे में एक अभिनव आयोजन किया ।

इस आयोजन में श्रीगुरु डॉ. श्री बालाजी तांबे की 40 वर्षों काी सतत् साधना और उनके द्वलारा किए गए कार्यों को सफल प्रयोगों के माध्यम से प्रस्तुत किया गया था।  इस अवसर पर  राजेंद्र खेर द्वारा संपादित श्रीगुरु बालाजी तांबे की आत्मकथा ‘संतुलन युगे युगे’, प्रकाशित की गई।

इसका विमोचन करते हुए आयुर्वेदिक उपचार, ध्यान, योग, स्वास्थ्य संगीत आदि के लिए संतुलित जीवन को शुरू करने के लिए उचित मार्गदर्शन की आवश्यकता थी और वह आवश्यकता पूरी हुई। ‘आत्मसंतुलन व्हिलेज’ की 40वीं वर्षगांठ पर आयोजित एवं ‘संतुलन आयुर्वेद’  में  श्री राम जन्मभूमि तीर्थक्षेत्र न्यास के कोषाध्यक्ष स्वामी गोविंददेव गिरि महाराज  ने श्री गुरुजी बालाजी तांबे से जुड़े कई संस्मरण  प्रस्तुत करते हुए कहा कि उन्होंने एकनिष्ठ साधना से आयुर्वेद को जिस ऊँचाई पर पहुँचाया उसे देखकर आश्चर्य होता है कि कोई एक व्यक्ति अपने जीवन में इतना बड़ा काम कैसे कर सकता है।

इस अवसर पर ‘सकाल मीडिया ग्रुप’ के प्रबंध निदेशक अभिजीत पवार ने कहा, “मानो गुरुजी एक विश्वविद्यालय थे जिन्हें सभी क्षेत्रों का सटीक ज्ञान था। वह ‘वसुधैव कुटुंबकम’ के प्रतीक हैं।  श्रीगुरु डॉ. श्री बालाजी तांबे सभी क्षेत्रों में विशेषज्ञ थे। ज्योतिष, संगीत, साहित्य, कला, जैविक खेती ऐसे सभी क्षेत्र थे जिनमें वे पारंगत थे।

इस अवसर पर विविध विषयों पर व्य़ख्यान भी आयोजित किए गए।  गर्भ संस्कार पर आयोजित चर्चा में डॉ. मालविका तांबे ने कहा, “बदलती जीवनशैली के कारण गर्भावस्था से संबंधित समस्याएं बढ़ रही हैं। ऐसे मामलों में कृत्रिम या दुष्प्रभाव वाले उपचारों के बजाय प्राकृतिक गर्भावस्था को प्राथमिकता दी जानी चाहिए।” उन्होंने ‘संतुलन आयुर्वेद फर्टिलिटी एक्सपीरियंस’ (एसएएफई) के बारे में जानकारी दी और आध्यात्मिक गुरु और आयुर्वेद विशेषज्ञ श्रीगुरु बालाजी तांबे के उपदेशों से रचित गर्भसंस्कार पुस्तक के कई प्रमुख अंशों पर चर्चा की।

 


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आधुनिक धन्वंतरी डॉ. श्री बालाजी तांबे नहीं रहे


 

‘संतुलन आयुर्वेद’ के प्रबंध निदेशक सुनील तांबे ने ‘ॐकार’ साधना पर एक विशेष सत्र में ‘ॐकार’ के महत्व को समझाया।  हमारा सारा काम मस्तिष्क द्वारा होता है और ‘ॐकार’ में मस्तिष्क को ऊर्जावान बनाने की शक्ति होती है। ‘ॐकार’ एक तरंग है, और केवल उसके उच्चारण से ऊर्जा कैसे प्राप्त की जा सकती है इसकी प्रतीति साधकों को करवाई गई।

सभी ने अनुभव किया  मानो ये  प्रदर्शनी महज एक प्रदर्शनी नहीं, बल्कि आयुर्वेद की एक पाठशाला ही है। शुरुआत में योग कुटी के माध्यम से श्वास का महत्व तथा प्राथमिक; लेकिन महत्वपूर्ण योग साधनाओं का प्रदर्शनों के साथ मार्गदर्शन किया गया। आरोग्य कुटी में आये नागरिकों की नाड़ी जाँच कर उपचार एवं औषधियों के बारे में मार्गदर्शन किया गया।

उपचार कुटी में बीमारी के अनुसार आए लोगों की शंकाओं का समाधान किया गया। निर्माण कुटी के माध्यम से आयुर्वेदिक औषधि निर्माण का वास्तविक अनुभव लिया गया। पुणे वासियों के लिए ये प्रदर्शनी और विभिन्न विषयों पर हुए चर्चा सत्र रोमांचक अनुभव की तरह थे।

अन्नयोग कुटी में प्रदर्शनों द्वारा मार्गदर्शन किया गया। आत्मसंतुलन के मार्गदर्शकों ने नागरिकों की बीमारियों को जानने के बाद वास्तव में क्या करना है और कैसे करना है, इसका प्रदर्शन कर मार्गदर्शन किया। कई लोगों ने योग, आयुर्वेद, उपचार विधियों और विशेष रूप से पंचकर्म के बारे में जानने के लिए किताबें खरीदीं।

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अमेरिकी विश्वविद्यालय की कक्षाओं में रोमांचक तरीके से होती है पढ़ाई

विद्यार्थियों का कहना है कि अमेरिकी विश्वविद्यालयों में विषयों की गहन पढ़ाई होती है। कक्षाओं में गहन अध्ययन के साथ इसका व्यावहारिक इस्तेमाल शिक्षा को संपूर्ण बनाता है। 

अमेरिकी विश्वविद्यालय कक्षाओं में विभिन्न प्रकार के पाठ्यक्रमों के साथ कक्षाओं के शानदार अनुभव प्रदान करते हैं। कक्षाओं के सुव्यवस्थित सत्र विद्यार्थियों की भागीदारी को प्रोत्साहित करते हैं, व्यावहारिक अनुभव एवं संवादी माहौल कक्षाओं में विद्यार्थियों के  लिए सीख को प्रोत्साहन देते हैं। यह, शैक्षणिक कार्यक्रम तैयार करने की स्वतंत्रता के साथ, अंतरराष्ट्रीय विद्यार्थियों के लिए अनूठा अवसर प्रस्तुत करता है। इससे उन्हें अमेरिकी डिग्री हासिल करने के दौरान अपने समय के अधिकतम इस्तेमाल की सुविधा मिलती है।

विकल्प की स्वतंत्रता    

नॉर्थईस्टर्न यूनिवर्सिटी, मैसाच्यूसेट्स में कंप्यूटर साइंस के ग्रेजुएट विद्यार्थी ऋषभ पाटिल के लिए अपनी शैक्षणिक यात्रा को अपने अनुकूल ढालने की स्वतंत्रता अमेरिका में अध्ययन के ‘‘सबसे बड़े लाभों में से एक ’’है। वह कहते हैं,‘‘यह सभी के लिए उपयुक्त निर्धारित विषयों के चुनाव का अनुसरण करने के बजाए उन विषयों के चुनाव की आजादी देता है जो हमारी अभिरुचियों से मेल खाते हैं।’’

विश्वविद्यालयों में कक्षाओं के दायरे बहुत व्यापक होते हैं, फिर भी विश्वविद्यालय के कॅरियर काउंसलर और समर्पित पेशेवर, विद्यार्थियों को निर्णय लेने में मदद करने के लिए हमेशा उपलब्ध रहते हैं।

कैलिफ़ोर्निया यूनिवर्सिटी, लॉस एंजिलीस से कानून में मास्टर्स डिग्री के लिए अध्ययन कर रही दिव्या कौशिक के अनुसार, ‘‘अपनी कक्षाएं खुद चुनना और अपने शेड्यूल को उसी हिसाब से ढालना निसंदेह एक बड़ा फायदा है। एक बारजब आप अपनी प्राथमिकताएं तय कर लेते हैं, तब आप यूनिट डिस्ट्रीब्यूशन और कठिनाई के स्तर के आधार पर योजनाएं बनाते हैं और इससे खुद में मज़बूती का अहसास होता है।’’

सदर्न कैलिफ़ोर्निया यूनिवर्सिटी, लॉस एंजिलीस से कम्युनिकेशन मैनेजमेंट में ग्रेजुएट विद्यार्थी मानसी चंदू विशेष रूप से पेपर प्रस्तुत करने, परीक्षा देने और विषयवस्तु की पड़ताल के मामले में अमेरिकी शैक्षणिक प्रणाली के लचीलेपन की सराहना करती हैं। वह कहती हैं, ‘‘विद्यार्थी अपने निष्कर्ष किस तरह से पेश करना चाहते हैं, इस मामले में उनको खूब आजादी है। मैं इस बात की सराहना करती हूं कि विषयवस्तु के प्रस्तुतिकरण और सार्वजनिक रूप से बोलने पर काफी जोर दिया जाता है, चाहे बात विपरीत ही क्यों न हो। अतिथि वक्ता  भी यहां काफी दिलचस्प थे क्योंकि सैद्धांतिक पढ़ाई के साथ-साथ आपको सीधे उन लोगों से सीखने का मौका मिलता है जो फील्ड में होते हैं। इससे आपको इस बात का आभास हो जाता है कि जब आप नौकरी के लिए जाएंगे, तब आपको किस तरह की उम्मीद रखनी चाहिए।’’

लचीली योजनाएं

अमेरिकी विश्वविद्यालयों में अंतरराष्ट्रीय विद्यार्थी भी क्लास शेड्यूल को तय करने के लचीलेपन का आनंद लेते हैं। चंदू कहती हैं, ‘‘यहां चीजें बहुत ज्यादा औपचारिकताओं में नहीं उलझी हैं, जिसके चलते विद्यार्थियों को यह समझने की बहुत छूट होती है कि वे अपना शेड्यूल कैसे बनाते हैं। यही कारण है कि मैंने अमेरिका में पढ़ाई करनी चाही।’’

विकल्प और अवसर दो ऐसी चीजें हैं जिसके चलते शिक्षक भी अपने पढ़ाने के तरीके में रचनात्मकता लाते हैं और विद्यार्थियों को प्रेरित रखने के लिए उत्साहित करते रहते हैं। कौशिक के अनुसार, ‘‘चूंकि एक ही विषय कई अध्यापक पढ़़ाते हैं, लिहाजा विद्यार्थियों के पास प्रो़फेसरों के बीच चयन का अवसर होता है। इससे न केवल प्रशिक्षकों की विश्वसनीयता सुनिश्चित होती हैं बल्कि उनके बीच एक स्वस्थ प्रतिस्पर्धा को भी बढ़ावा मिलता है जो अंत में गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्रदान करने में योगदान देता  है।’’

कक्षाएं आमतौर पर दिन में विभिन्न समयों पर लगती हैं, जिससे विद्यार्थियों को एक शैक्षणिक शेड्यूल बनाने में मदद मिलती है और साथ ही इससे पढ़ाई के अलावा उन्हें अपनी दूसरी दिलचस्पियों के लिए भी वक्त मिलना आसान हो जाता है।

कौशिक के अनुसार, ‘‘अमेरिकी विश्वविद्यालय पूरे दिन और शाम को भी कक्षाओं का आयोजन करते हैं ताकि शैक्षणिक गतिविधियों के साथ-साथ पार्ट टाइम रोजगार करने वाले विद्यार्थी भी पढ़ाई और काम के बीच संतुलन बना सकें। यह लचीलापनविद्यार्थियों को अपना शेड्यूल प्रबंधित करने और अपनी निजी ज़रूरतों को पूरा करने के लिहाज से काफी ताकत देता है।’’

संतुलित दृष्टिकोण

पाटिल, अमेरिकी विश्वविद्यालयों में संरचित पाठ्यक्रम, व्यावहारिक कक्षाओं और स्व-अध्ययन के लिए खाली समय के बीच संतुलन बनाने के लिए उनकी सराहना करते  हैं। वह कहते हैं, ‘‘कक्षाएं और प्रयोगशालाएं बहुत व्यवस्थित हैं और पाठ्यक्रम अच्छी तरह से तैयार किया गया होता है। कक्षाएं और प्रयोगशालाएं बहुत बार नहीं होतीं, ह़फ्ते में अधिकतम दो बार ही जाना होता है, जिससे खुद पढ़ने के लिए काफी वक्त मिलता है।’’

पर्ड्यू यूनिवर्सिटी, इंडियाना में कंप्यूटर साइंस के अंडरग्रेजुएट विद्यार्थी रुद्रनील सिन्हा के अनुसार, अमेरिकी कक्षाएं सक्रिय शिक्षण पर केंद्रित हैं। वह बताते हैं, ‘‘असाइनमेंट और लैब कार्य केवल शिक्षण सामग्री को व्यवहार में लाना भर नहीं है, बल्कि उससे कहीं ज्यादा है। समस्या पर शिक्षण सामग्री के इस्तेमाल और उसका समाधान करने का तरीका खोजने पर जोर दिया जाता है जो अक्सर आपको उन चीजों का अहसास कराती हैं जिनको लेकर शुरुआती तौर पर आप बहुत सहज नहीं होते।’’

विद्यार्थियों का कहना है कि अमेरिका में विषय का गहराई से अध्ययन किया जाता है और उसका व्यावहारिक इस्तेमाल के साथ गहनता से अध्ययन ही शिक्षा को संपूर्ण बनाता है। कौशिक के अनुसार, ‘‘अमेरिका में शिक्षण के व्यावहारिक दृष्टिकोण की तारीफ करने वाले कई पूर्व विद्यार्थियों को सुनने के बाद मुझे अहसास हुआ कि उनकी प्रशंसा हकीकत के मुकाबले काफी कमतर थी।’’ वह कहती हैं, ‘‘खासतौर पर अगर कानून की पढ़ाई की बात की जाए तो अमेरिकी शैक्षिक प्रणाली व्यावहारिक शिक्षा, धरातल पर उसके इस्तेमाल और समस्या के समाधान के प्रोत्साहन देने पर केंद्रित होती है जो केवल रटने के बजाए अवधारणाओं और उनके कार्यान्वयन की गहरी समझ की मांग करते हैं।’’

कक्षा में उठाए गए विषयों पर चर्चा में भाग लेना भी महत्वपूर्ण है। कौशिक के अनुसार, ‘‘कक्षा में विद्यार्थी की भागीदारी पर जोर दिया जाता है जिससे विषयवस्तु को आत्मसात करने के साथ, संचार कौशल और बेहतर समझ बनाने में मदद मिलती  है। यह संवादी नज़रिया एक सहयोगात्मक वातावरण को बढ़ावा देता है जिससे विद्यार्थियों में आपसी जुड़़ाव और प्रेरणा को प्रोत्साहन मिलता है।’’

कभी-कभी अमेरिकी विश्वविद्यालय ओपन बुक असेसमेंट का विकल्प भी  देते हैं जिसमें इंटरनेट एक्सेस की सुविधा तक दे दी जाती है। उदाहरण के लिए, लॉ स्कूल परीक्षाएं आमतौर पर, वास्तविक दुनिया की स्थितियों में कानूनी ज्ञान लागू करने की विद्यार्थियों की क्षमताओं का परीक्षण करने के लिए जटिल तथ्यों और परिदृश्यों को प्रस्तुत करती हैं। वह बताती हैं, ‘‘किसी एक सही उत्तर की तलाश के बजाए ये परीक्षाएं दिए गए संदर्भ में सभी प्रासंगिक कानूनी मुद्दों की पहचान करने और काल्पनिक ग्राहकों को व्यावहारिक सलाह देने को प्राथमिकता देती हैं।’’ उनका आगे कहना है, ‘‘यह दृष्टिकोण वास्तविक दुनिया के कानूनी अभ्यास की चुनौतियों को प्रतिबिंबित करता है जो कानून के विद्यार्थियों को शुरू से ही अपने क्षेत्र की जटिलाताओं से प्रभावी तरीके से परिचित कराता है।’’

सिन्हा स्पष्ट करते हैं कि ग्रेडिंग प्रणाली में भागीदारी, उपस्थिति, लैब, असाइनमेंट आदि शामिल हैं न कि सिर्फ एक फाइनल प्रोजेक्ट या टेस्ट। वह बताते हैं, ‘‘पाठ्यक्रम इस तरह से तैयार होता है कि उसमें अलग-अलग तरीकों से सीखने और भिन्न-भिन्न तरीकों से ग्रेडिंग करने का काम होता है और यही चीज़ अमेरिकी शिक्षा प्रणाली को बेहतरीन बनाती है।’’ वह कहते हैं, ‘‘अमेरिकी कॉलेजों में फाइनल ग्रेडिंग सिस्टम इस तरह से होती है कि उसमें ध्यान रखा जाता है कि उसमें परीक्षा, असाइमेंट, उपस्थिति और लैब सभी पक्षों के बीच अच्छा संतुलन कायम रखा जा सके।’’

यह दृष्टिकोण विद्यार्थियों और प्रोफेसरों के बीच आपसी सम्मान के गहरे रिश्तों को प्रोत्साहित करता है जो कक्षा में एक सकारात्मक अनुभव की दृष्टि से काफी महत्वपूर्ण है। कौशिक के अनुसार, ‘‘विद्यार्थियों और प्रोफेसरों के बीच सकारात्मक संबंध अमेरिकी शैक्षिक अनुभव की बुनियाद है।’’

नतासा मिलास स्वतंत्र लेखिका हैं और न्यू यॉर्क सिटी में रहती हैं।

साभार  – https://spanmag.com/hi/ से

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‘….साली तेरी औकात क्या है कि हमको ना करदे…’ स्वाति मालीवाल की आपबीती

आप  की राज्यसभा सांसद स्वाति मालीवाल के साथ दिल्ली  में अरविंद केजरीवाल के आवास पर हुई मारपीट के मामले में एफाईआर  सामने आई है। इसमें स्वाति मालीवाल ने बताया है कि कैसे उनके साथ केजरीवाल के पूर्व निजी सचिव बिभव कुमार ने बर्बरता से मारपीट की। उन्होंने इस एफाईआर  में बताया है कि उन्हें बर्बरता से पीटा गया और जान से मार देने तक की धमकी दी गई।

एफाईआर  में स्वाति मालीवाल ने बताया कि वह 13 मई, 2024 की सुबह केजरीवाल से मिलने उनके घर पहुँची थीं। यहाँ केजरीवाल से मिलने के लिए उन्हें थोड़ी देर प्रतीक्षा करने को कहा गया था। स्वाति मालीवाल ने बताया कि वह  मुख्यमंत्री  केजरीवाल की प्रतीक्षा ड्राइंग रूम में कर रहीं थी तभी वहाँ बिभव कुमार आ गए।

स्वाति मालीवाल ने बताया कि बिभव कुमार ने आते ही उन पर चिल्लाना और गालियाँ देना शुरु कर दिया। स्वाति ने कहा कि उन्होंने बिभव से शांत होने की बात कही लेकिन वह नहीं माने। इसके बाद बिभव कुमार ने स्वाति मालीवाल से कहा, “तू कैसे हमारी बात नहीं मानेगी? कैसे नहीं मानेगी? साली तेरी औकात क्या है कि हमको ना करदे। समझती क्या है खुद को नीच औरत। तुझको हम सबक सिखाएँगे।” बिभव कुमार इसके बाद स्वाति मालीवाल पर हमलावर हो गए।

स्वाति मालीवाल ने बताया कि उन्हें बिभव कुमार ने उन्हें एक साथ 7-8 थप्पड़ मारे। जब स्वाति मालीवाल ने इसका विरोध किया और उन्हें पीछे धकेला तो बिभव कुमार उन पर टूट पड़े। बिभव ने मालीवाल को खींचा और उनकी शर्ट ऊपर कर दी। इसके बाद उनकी शर्ट के बटन खुल गए। मालीवाल ने बताया कि खींचे जाने के कारण उनका सर मेज से टकरा गया और वह स्वयं जमीन पर गिर गईं। बिभव कुमार ने इसके बाद उनकी छाती समेत पूरे शरीर पर लातें बरसाईं।

स्वाति मालीवाल ने आरोप लगाया कि जब उनके साथ मारपीट हुई तब उन्हें पीरियड्स आ रहे थे और इसको लेकर उन्होंने बिभव कुमार से छोड़ देने की अपील भी की। हालाँकि, बिभव नहीं माने और स्वाति को पीटते रहे। स्वाति ने बताया कि इस दौरान उनकी मदद के लिए कोई नहीं आया। स्वाति जब किसी तरह अपने आप को छुड़वाने में सक्षम हुईं तो उन्होंने पुलिस को फ़ोन किया। फोन को लेकर भी बिभव कुमार ने उन्हें गालियाँ दी।

बिभव कुमार ने उनसे कहा, “कर ले तुझे जो कुछ करना है। तू हमारा कुछ नहीं बिगाड़ सकती। तेरी हड्डी पसली तुडवा देंगे और ऐसी जगह गाड़ेंगे किसी को पता भी नहीं चलेगा।” इसके बाद बिभव कुमार ने मुख्यमंत्री आवास के सुरक्षाकर्मियों के जरिए उन्हें बाहर फिंकवा दिया। स्वाति मालीवाल ने बताया कि वह इसके बाद किसी तरह पुलिस थाने पहुँचीं लेकिन मामले को राजनीतिक रंग ना दिया जाए इसलिए उन्होंने उस दिन इस मामले में एफआईआर दर्ज नहीं करवाई।

स्वाति मालीवाल ने एफआईआर में बताया है कि इस मारपीट के कारण वह गंभीर रूप से चोटिल हो गई हैं और उनके शरीर के कई हिस्से दर्द कर रहे हैं। उनसे चला भी नहीं जा रहा है। उन्होंने इस मामले में दिल्ली पुलिस से जाँच करके कार्रवाई की माँग की है। मालीवाल के बयान के आधार पर पुलिस ने बिभव कुमार पर धारा 308, 341, 323, 354बी, 506 और 509 के तहत मामला दर्ज कर लिया है। इससे पहले इस मामले में दिल्ली पुलिस की एक टीम स्वाति मालीवाल के घर भी पहुँची थी।

स्वाति मालीवाल का इस घटना के बाद मेडिकल भी करवाया गया है। दिल्ली पुलिस वर्तमान में बिभव कुमार को तलाश रही है। बिभव को आखिरी बार 16 मई, 2024 को लखनऊ में अरविन्द केजरीवाल के साथ देखा गया था। मामले में  केजरीवाल की चुप्पी पर सवालों के घेरे में है।

स्वाति मालीवाल के साथ हुई बदसलूकी मामले में प्राथमिकी दर्ज होने के बाद अब दिल्ली पुलिस को मेडिकल रिपोर्ट का इंतजार है। इस बीच सूत्रों के हवाले से मीडिया में दी गई जानकारी में कहा जा रहा है कि राज्यसभा सांसद के चेहरे पर सूजन मिली है। बाकी की डिटेल मेडिकल रिपोर्ट मिलने के बाद आएगी। अब पुलिस विभव कुमार को ढूँढने के लिए अपनी कार्रवाई कर रही है। उन्होंने इस मामले में 10 टीमों को लगाया हुआ है।

बता दें कि स्वाति मालीवाल के साथ उस दिन क्या हुआ इसके सबूत जुटाने के लिए पुलिस मुख्यमंत्री आवास के फुटेज मँगाने वाली है, लेकिन मीडिया में इस केस में पहले दिन से क्या-क्या जानकारी आई है इसके बारे में सिलसिलेवार ढंग से जान लेते हैं।

13 मई 2024 को सुबह 9:10 मिनट पर स्वाति मालीवाल सीएम केजरीवाल के आवास पहुँचीं। मीडिया में कहा गया कि चूँकि केजरीवाल सरकार ने उनसे इस्तीफा माँगा था इसलिए वो वहाँ बात करने गई थीं।

इसी दिन 13 मई को करीबन 24 मिनट बाद 9:34 पर स्वाति मालीवाल के नाम से पीसीआर को कॉल गई। उन्होंने बताया कि उनसे साथ सीएम आवास में हिंसा हुई है।

13 मई 2024 को ही स्वाति मालीवाल सिविल लाइंस थाने पहुँची लेकिन एक कॉल आने के बाद बिन शिकायत किए वापस लौट आईं।

13 मई 2024 की शाम तक ये खबर मीडिया में आ गई कि सीएम के आवास पर किसी राज्यसभा सांसद के साथ बदसलूकी हुई है।

14 मई को साफ हो गया है कि वो सांसद स्वाति मालीवाल हैं।

शुरू में सोशल मीडिया पर AAP समर्थकों ने फैलाने की कोशिश की कि ये सारी बातें झूठ हैं।

14 मई को ही बात संभालने के लिए आम आदमी पार्टी के सांसद संजय सिंह ने प्रेस कॉन्फ्रेंस कर डाली।

प्रेस कॉन्फ्रेंस में भरोसा दिया गया कि पार्टी स्वाति मालीवाल के साथ है।

14 मई को स्वाति के पूर्व पति की वीडियो सामने आई। इस वीडियो में उन्होंने मालीवाल की जान को खतरा बताया और पूरा हमला एक साजिश कहा।

15 मई 2024 को बीजेपी दिल्ली ने सीएम हाउस के बाहर प्रोटस्ट किया। एक्शन की माँग हुई।

16 मई 2024 को एक्शन तो दूर मुख्यमंत्री केजरीवाल अपने पीए विभव कुमार को लेकर लखनऊ पहुँच गए।

16 मई शाम में तस्वीर सामने आई कि इतना सब होने के बावजूद अरविंद केजरीवाल पीए के साथ घूम रहे हैं। पूरी AAP पार्टी की मंशा और सोच पर सवाल उठे।

16 मई 2024 रात में पता चला कि स्वाति मालीवाल ने इस संबंध में पुलिस को शिकायत दे दी है। पुलिस ने चार घंटे उनकी बात सुनने के बाद इस मामले में एफआईआर दर्ज की।

रात 11 बजे के करीब पुलिस स्वाति मालीवाल को लेकर एम्स पहुँची। उनका मेडिकल चेक अप हुआ।

16-17 मई की रात करीब 3 बजे स्वाति वापस घर आईं और अंदर घुसते समय जो उनकी वीडियो दिखी उसमें उनके पैर लड़खड़ाते देखे गए।

17 मई 2024 को मीडिया में पुलिस सूत्रों के हवाले से कई बातें सामने आईं। एफआईआर को लेकर कहा गया कि स्वाति मालीवाल ने बताया है कि उनके संवेदनशील अंगों पर विभव ने वार किया।

पुलिस की करीबन 10 टीमों को इस मामले की हकीकत जानने में लगाया गया।

17 मई 2024 की दोपहर स्वाति मालीवाल अपना बयान दर्ज कराने कोर्ट में पहुँची।

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स्कैम तीन में सहारा इंडिया के सुब्रत राय की कहानी

निर्देशक हंसल मेहता की चर्चित सीरीज ‘स्कैम’ के दो सुपर हिट सीजन के बाद अब तीसरे सीजन की घोषणा हो गई है। ‘स्कैम’ के तीसरे सीजन में सहारा परिवार के अगुआ रहे सुब्रत रॉय की कहानी दर्शकों को देखने को मिलेगी। इस वेब सीरीज का नाम ‘स्कैम 2010: द सुब्रत रॉय सागा’ होगा।

वैसे सीरीज का पहला प्रोमो सामने आ गया है। हंसल मेहता ने शो का पहला प्रोमो सोशल मीडिया पर शेयर किया है।

उल्लेखनीय है कि  हंसल मेहता की वेब सीरीज ‘स्कैम’ के दोनों सीजन ‘स्कैम 1992’ और ‘स्कैम 2003’ पहले ही आ चुके हैं।

निर्देशक हंसल मेहता ने ‘स्कैम 2010: द सुब्रत रॉय सागा’ की अनाउंसमेंट करते हुए पोस्ट शेयर कर लिखा, ‘Sc3m वापस आ गया है! स्कैम 2010: द सुब्रत रॉय सागा, जल्द ही @sonylivindia पर आ रहा है #Scam2010OnSonyLIV’

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प्रभात प्रकाशन को चाहिए महिला एंकर

देश के अग्रणी पब्लिशर्स में शुमार ‘प्रभात प्रकाशन’ (Prabhat Parkashan) को अपने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स के लिए दिल्ली में महिला न्यूज एंकर की जरूरत है। इसके लिए योग्य व इच्छुक आवेदकों से आवेदन मांगे गए हैं।

इस बारे में सोशल मीडिया पर शेयर की गई जानकारी के अनुसार, आवेदकों के पास एंकरिंग का कम से कम एक साल का अनुभव होना चाहिए। कंटेंट राइटिंग की समझ होनी चाहिए।

इसके अलावा हिंदी और अंग्रेजी भाषा पर अच्छी पकड़ होनी चाहिए। विभिन्न चीजों को अच्छे तरीके से पेश करने का अनुभव होना चाहिए।

इच्छुक आवेदक अपना  बॉयोडैटा और अपने द्वारा किए गए काम के नमूने (work samples) भेजने के लिए अथवा अन्य जानकारी के लिए वॉट्सऐप नंबर 8076142753 का इस्तेमाल कर सकते हैं।

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डेंगू से बचाव कैसे हो

डेंगू की गंभीरता को देखते हुए इसके बारे में जागरूकता फैलाने के लिए 16 मई को राष्ट्रीय डेंगू दिवस मनाया जाता है! एक छोटा सा मच्छर अगर काट लें तो इससे जान भी जा सकती है और ऐसा तब होता है जब वो मच्छर डेंगू का हो! साफ और रूके हुए पानी में पनपने वाले इस छोटे से मच्छर को एडीज मच्छर कहते है और हर साल मानसून के मौसम में इस मच्छर का प्रकोप फैलता हुआ नजर आता है!  डेंगू होने पर ब्लड में प्लेटलेट्स काफी तेजी से घटने लगती है, साथ ही तेज बुखार सिरदर्द, मांसपेशियों और जोड़ों में दर्द, त्वचा पर रैशेज होने जैसे लक्षण नजर आ सकते हैं. लेकिन कई बार डेंगू गंभीर रूप भी ले सकता है. जिसकी वजह से मरीज की जान तक जा सकती है. इसलिए समय रहते इसका इलाज करवाना बेहद जरूरी है!
डेंगू का खतरा उन लोगों को ज्यादा है जो ऐसे इलाके में रहते है जहां काफी मात्रा में मच्छर होते है, जहां जलभराव होता है! बारिश के मौसम में डेंगू के मामले ज्यादा पाए जाते है! कई बार ये व्यक्ति के लिए बेहद खतरनाक साबित हो सकती है!
‘राष्ट्रीय डेंगू दिवस’ मनाने का कारण- डेंगू की गंभीर बीमारी के प्रति लोगों को जागरुक करने के मकसद से राष्ट्रीय डेंगू दिवस मनाया जाता है। स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय की ओर से डेंगू दिवस मनाया जाता है। देश में हर साल डेंगू की समस्‍या से लाखों लोगों की जान चली जाती है। राष्ट्रीय डेंगू दिवस के दिन देश भर में कई तरह के कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है। जिसमें डेंगू के लक्षण, इसके प्रसार और बचाव के उपायों के बारे में बात की जाती है। इन कार्यक्रमों की बदौलत ही लोग अब इस बीमारी के प्रति काफी जागरूक हो गए हैं।
साल 2024 में राष्ट्रीय डेंगू दिवस की थीम है ‘डेंगू रोकथाम: सुरक्षित कल के लिए हमारी जिम्मेदारी’। क्योंकि डेंगू मच्छरों से फैलने वाली बीमारी है, तो इसकी रोकथाम के लिए सबसे पहले मच्छरों से बचाव जरूरी है।
मच्छरों से बचने के लिए लंबी बाजू वाले कपड़े पहनें। पैरों को भी ढककर रखें। लाइट कलर के कपड़े गर्मी से तो बचाते ही हैं साथ ही मच्छरों से भी। मच्छर डार्क कलर की ओर ज्यादा आकर्षित होते हैं। नियमित रूप से नालियों, गमलों और अन्य जगहों की जांच करते रहें। उनमें पानी न जमा होने दें। इसमें डेंगू के लार्वा पैदा हो सकते हैं। मच्छरों से बचने के लिए मच्छरदानी, स्प्रे का प्रयोग करें। घरों में कुछ खास तरह के पौधे लगाने से भी मच्छर दूर रहते हैं।
वैसे तो मच्छरों से छुटकारा पाने के लिए मार्केट में कई तरह के प्रोडक्ट्स उपलब्ध हैं, लेकिन इनमें से कई सारे सेहत को नुकसान पहुंचाने का काम भी करते हैं और मच्छर पर भी कुछ खास असर नहीं होता। ऐसे में मच्छर भगाने के लिए नेचुरल चीजों का सहारा ले सकते हैं। कुछ खास तरह के पौधे मच्छरों को भगाने में हैं बेहद कारगर हैं, जैसे कि- तुलसी, लेमनग्रास, लैवेंडर इत्यादि!
लेमनग्रास की तेज गंध से मच्छर भाग जाते हैं। इसे घर की बालकनी या फिर खिड़की के पास रखें। यह कई औषधीय गुणों से भरपूर होता है। पौधे के अलावा लेमनग्रास ऑयल भी मच्छरों को भगाने में प्रभावी है। इसमें लिमोनेन और सिट्रोनेला जैसे तत्व होते हैं, जिससे मच्छर दूर रहते हैं। लेमनग्रास पौधे को सीधे जमीन में लगा सकते हैं। धूप में यह अच्छी तरह से पनपता है। इसके लिए मिट्टी, खाद और रेत वाली मिट्टी का कम्पोजिशन ठीक रहता है। छोटे गमले में इसे नहीं लगाना चाहिए क्योंकि इससे इसकी सही विकास नहीं होती।
गेंदे के फूल से न सिर्फ घर की बालकनी की सुंदरता बढ़ती है, बल्कि इससे मच्छर और दूसरे कीट-पतंगे भी दूर रहते हैं। इस पौधे से आने वाली गंध पाइरेथ्रम, सैपोनिन, स्कोपोलेटिन, कैडिनोल और अन्य तत्वों से मिलकर बनती है, जो मच्छरों को घर से दूर रखती है।
तुलसी का पौधा भी मच्छरों को  दूर भगाता है। इसकी महक से मच्छर आसपास नहीं फटकते। इसके अलावा पानी  में तुलसी की कुछ पत्तियों  को उबाल कर उसके अर्क को पानी से अलग कर एक स्प्रे बॉटल में डाल कर  शाम को बाहर निकलने से पहले इस पानी को हाथ, गर्दन और पैरों पर स्प्रे करने से भी मच्छर दूर भागते हैं!
रोजमैरी- एक खूबसूरत और खुशबूदार प्लांट है। इसकी पत्तियां पतली और शार्प होती हैं। गर्मियों में खिलने वाले इस पौधे के तने की खुशबू से मच्छर पास नहीं आते हैं। मच्छरों से घर को महफूज रखने के लिए रोजमैरी प्लांट को घर में लगाई जा सकती है!
लैवेंडर का पौधा मक्खियों, मच्छरों, मकड़ियों और चींटियों को दूर रखने का काम करता है। भीनी-भीनी खुशबू वाला लैवेंडर का पौधा दिखने में भी बेहद खूबसूरत लगता है। इस पौधों का इस्तेमाल अरोमाथेरेपी और हर्बल उपचार के लिए किया जाता है। इस पौधे की पत्तियों को स्किन पर सीधा रब भी कर सकते हैं। इसकी पत्तियों से निकलने वाला ऑयल  कीट पतंगों से बचाने का काम करता है।
डेंगू के बारे में जागरूकता बढ़ाने और निवारक उपायों को बढ़ावा देने के लिए  राष्ट्रीय डेंगू दिवस   मनाया जाता है! डेंगू बीमारी को नियंत्रित करने और खत्म करने के लिए किए जा रहे प्रयासों के प्रति लोगों को जागरूक करना है! कुछ आंकड़ों के अनुसार इस समय 100 से अधिक देशों में डेंगू का प्रकोप जारी है और विश्व भर की लगभग आधी आबादी डेंगू से प्रभावित है! यह बुखार एडीज मच्छरों के काटने के 5 से 6 दिन बाद लोगों के बीच देखने को मिलता है!
 — डॉ सुनीता त्रिपाठी ‘जागृति’ (अखिल भारतीय राष्ट्रवादी लेखक संघ )नई दिल्ली
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भारत सहित एशियाई देश वर्ष 2024 में विश्व की अर्थव्यवस्था में देंगे 60 प्रतिशत का योगदान

वैश्विक स्तर पर आर्थिक क्षेत्र का परिदृश्य तेजी से बदल रहा है। अभी तक वैश्विक अर्थव्यवस्था में विकसित देशों का दबदबा बना रहता आया है। परंतु, अब अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष के एक अनुमान के अनुसार वर्ष 2024 में भारत सहित एशियाई देशों के वैश्विक अर्थव्यवस्था में 60 प्रतिशत का योगदान होने की प्रबल सम्भावना है। एशियाई देशों में चीन एवं भारत मुख्य भूमिकाएं निभाते नजर आ रहे हैं। प्राचीन काल में वैश्विक अर्थव्यस्था में भारत का योगदान लगभग 32 प्रतिशत से भी अधिक रहता आया है।

वर्ष 1947 में जब भारत ने राजनैतिक स्वतंत्रता प्राप्त की थी उस समय वैश्विक अर्थव्यस्था में भारत का योगदान लगभग 3 प्रतिशत तक नीचे पहुंच गया था क्योंकि भारतीय अर्थव्यवस्था को पहिले अरब से आए आक्राताओं एवं बाद में अंग्रेजों ने बहुत नुक्सान पहुंचाया था एवं भारत को जमकर लूटा था। वर्ष 1947 के बाद के लगभग 70 वर्षों में भी वैश्विक अर्थव्यवस्था में भारतीय अर्थव्यवस्था के योगदान में कुछ बहुत अधिक परिवर्तन नहीं आ पाया था। परंतु, पिछले 10 वर्षों के दौरान देश में लगातार मजबूत होते लोकतंत्र के चलते एवं आर्थिक क्षेत्र में लिए गए कई पारदर्शी निर्णयों के कारण भारतीय अर्थव्यवस्था को तो जैसे पंख लग गए हैं। आज भारत इस स्थिति में पहुंच गया है कि वैश्विक अर्थव्यवस्था में वर्ष 2024 में अपने योगदान को लगभग 18 प्रतिशत के आसपास एवं एशिया के अन्य देशों यथा चीन, जापान एवं अन्य देशों के साथ मिलकर वैश्विक अर्थव्यवस्था में एशियाई देशों के योगदान को 60 प्रतिशत तक ले जाने में सफल होता दिखाई दे रहा है।

भारत आज अमेरिका, चीन, जर्मनी एवं जापान के बाद विश्व की 5वीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन गया है। साथ ही, भारत आज पूरे विश्व में सबसे तेज गति से आगे बढ़ती अर्थव्यवस्था है। वित्तीय वर्ष 2023-24 में तो भारत की आर्थिक विकास दर 8 प्रतिशत से अधिक रहने की प्रबल सम्भावना बन रही है क्योंकि वित्तीय वर्ष 2023-24 की पहली तीन तिमाहियों में भारत की आर्थिक विकास दर 8 प्रतिशत से अधिक रही है, अक्टोबर-दिसम्बर 2023 को समाप्त तिमाही में तो आर्थिक विकास दर 8.4 प्रतिशत की रही है। इस विकास दर के साथ भारत के वर्ष 2025 तक जापान की अर्थव्यवस्था को पीछे छोड़ते हुए विश्व की चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन जाने की प्रबल सम्भावना बनती दिखाई दे रही है। केवल 10 वर्ष पूर्व ही भारत विश्व की 11वीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था था और वर्ष 2013 में मोर्गन स्टैनली द्वारा किए गए एक सर्वे के अनुसार भारत विश्व के उन 5 बड़े देशों (दक्षिण अफ्रीका, ब्राजील, इंडोनेशिया, टर्की एवं भारत) में शामिल था जिनकी अर्थव्यवस्थाएं नाजुक हालत में मानी जाती थीं।

आज भारत के सकल घरेलू उत्पाद का आकार 3.7 लाख करोड़ अमेरिकी डॉलर का हो गया है। साथ ही, वस्तु एवं सेवा कर के संग्रहण में लगातार तेज वृद्धि आंकी जा रही है, जिससे भारत के वित्तीय संसाधनों पर दबाव कम हो रहा है और भारत पूंजीगत खर्चों के साथ ही गरीब वर्ग के लिए चलाई जा रही विभिन्न योजनाओं के

 

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