Wednesday, May 8, 2024
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आईना बोलता है

हलीम आईना हास्य-व्यंग्य कविताओं के क्षेत्र में एक सुपरिचित नाम है। अभी हाल ही में उनका तीसरा कविता संग्रह ‘आईना बोलता है’ शीर्षक से किताबगंज प्रकाशन से प्रकाशित होकर मुझे मिला। इस कविता संग्रह में शामिल 51 हास्य-व्यंग्य की कविताएं समय-समाज के उस आईने की तरह है जिसमें अपनी असली शक्ल देखना हम भूलते जा रहे हैं। कवि की मूलभूत चिंता है कि लोग अब सवाल नहीं खड़ा करते। शब्द अपनी सामर्थ्य खोते जा रहे हैं। अमीर और गरीब के बीच खाई बढ़ती जा रही है। जीवन से हंसी और खिलखिलाहट के सतरंगी रंग गायब होते जा रहे हैं।

हलीम आईना की काव्याभिव्यक्ति सहज होकर भी सशक्त है। वह आम भाषा में अपने सरोकार प्रस्तुत करते हैं। वे लिखते हैं,’दुनिया के मंच पर/ शब्दों के शुद्ध व्यापारी महाकवि आ रहे हैं/ सार्थक कविता के दिन लदे जा रहे हैं।’ हलीम अपनी छोटी कविताओं में तो कमाल करते हैं। दो उदाहरण देखें- ‘आज का आदमी/कितना जहरीला सांप है/ कमबख्त गिरगिट का बाप है/ चूहे के बिल में घुसकर/ पहले चूहे को खाता है/ और फिर चूहे के बिल पर/ अपना मालिकाना हक जताता है।’ (चोरी और सीनाजोरी), ‘सच के मुंह पर ताला क्यों है/ झूठ के हाथ निवाला क्यों है?’ (छोटा सा सवाल) वे मानते हैं कि कोई भी कविता कवि से बड़ी नहीं होती।

‘जीवन और मृत्यु’ शीर्षक कविता में कवि जीवन को हास्यव्यंग्य की एक क्षणिका और मृत्यु को रहस्यवाद की एक कविता की संज्ञा देता है। हमारा जागते हुए भी सोते रहना कवि को चिंतित करता है। वह अपनी इन कविताओं के माध्यम से सोई हुई मानवता को, हमारी सोई हुई संवेदना को जगाना चाहता है और काफी हद तक वह इसमें सफल भी हुआ है। आईना की कविताएं हमारे वर्तमान देशकाल की सचबयानी हैं। वे सरल होकर अपनी बात कहती हैं। वे पाठक को हँसाते हुए रुलाना जानती हैं। व्यवस्था की सड़ांध पर एक तरह की रनिंग कमेंट्री करते हुए हलीम विसंगतियों को चुन-चुनकर उद्घाटित करते चलते हैं। एक बेहतर समाज का स्वप्न कवि की, उसकी कविताओं में झलकता है। दिनोदिन आप और बेहतर लिखें, मेरी हार्दिक शुभकामनाएं।

पुस्तक : आईना बोलता है!
लेखक : हलीम आईना
प्रकाशक : किताबगंज प्रकाशन, गंगापुर सिटी (राज.)
मूल्य : 150 रुपये

समीक्षक
राहुल देव
साहित्य सदन, मेहमूदाबाद (अवध )
सीतापुर -261203(उ. प्र.)

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एक निवेदन

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