Tuesday, May 7, 2024
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संतों के संत तथा भगवान जगन्नाथ के हाथ हैं प्रो.अच्युत सामंत-स्वामी चिदानन्द सरस्वती

अतिथिदेवोभव प्रदेश ओडिशा की राजधानी भुवनेश्वर स्थित कलिंग इंस्टीटयूट ऑफ सोसल साइंसेज़,कीस डीम्ड विश्वविद्यालय(विश्व का सबसे बड़ा और प्रथम आदिवासी आवासीय डीम्ड विश्वविद्यालय) ने गत 25 नवंबर को अपना तीसरा दीक्षांत समारोह हर्षोल्लास के साथ मनाया। समारोह के मुख्य अतिथि के रुप में ओडिशा के मान्यवर राज्यपाल श्री रघुवर दास तथा विशिष्ट अतिथि के रुप में छत्तीसगढ़ राज्य के मान्यवर राज्यपाल श्री विश्वभूषण हरिचंदन थे। आमंत्रित परम पूज्य स्वामी चिदानन्द सरस्वती महाराज,भारत के महानतम आध्यात्मिक गुरु ने कीट-कीस के प्राणप्रतिष्ठाता तथा कंधमाल लोकसभा सांसद महान् शिक्षाविद् प्रो. अच्युत सामंत को अपने संदेश में संतों के संत तथा भगवान जगन्नाथ का हाथ बताया।

उत्तराखण्ड ऋषिकेश परमार्थ आश्रम के हेड संत गुरु स्वामी चिदानंद सरस्वती महाभाग ने अपने संबोधन में यह भी कहा कि जो काम ओडिशा के सर्वांगीण विकास के लिए अबतक ओडिशा के लौहपुरुष स्व.मुख्यमंत्री बीजू पटनायक ने किया। जो काम ओडिशा के सतत विकास के लिए वर्तमान मुख्यमंत्री बीजू बाबू के बेटे श्री नवीन पटनायक जी कर रहे हैं वहीं काम कीट-कीस-कीम्स आदि की स्थापना कर तथा उनके माध्यम से जीवनोपयोगी उत्कृष्ट तालीम देकर विदेह संत प्रो.अच्युत सामंत कर रहे हैं।अच्युत सामंत मात्र एक पारदर्शी व्यक्तित्व ही नहीं हैं अपितु एक सकारात्मक विचारधारा हैं जिनके आचरण,व्यवहार,व्यक्तित्व तथा उनके कार्यों से बहुत कुछ सीखा जा सकता है।

उन्होंने जोर देकर यह कहा कि अगर भारत को विकासशील से विकसित बनना है तो भारत के प्रत्येक बच्चे और युवा को प्रो.अच्युत सामंत जैसा निःस्वार्थ समाजसेवी बनना होगा। देश के बच्चे-बच्चे को प्रो.अच्युत सामंत जैसा महान जननायक बनना होगा,निःस्वार्थ समाजसेवी बनना होगा। यह सच है कि प्रो. अच्युत सामंत ने विवाह नहीं किया और उनका यह अडिग निर्णय है कि वे आजीवन अविवाहित ही रहेंगे।यह काम प्रो.अच्युत सामंत ने बहुत अच्छा किया है। अगर वे शादी कर लेते तो उनके एक-दो बच्चे होते लेकिन यहां पर कीट-कीस में तो उनके लगभग लाखों बच्चे हैं जिनके सर्वांगीण विकास में वे प्रतिदिन 16-16 घण्टे लगे रहते हैं। कीट-कीस के बच्चे भी उनको अपना पिता मानते हैं और कीट-कीस को अपना घर मानकर वहां पर अध्ययन करते हैं।

विगत 24 नवंबर को स्वामी जी के सम्मान में कीस जगन्नाथ मंदिर प्रांगण में एक धर्मसभा बुलाई गई थी जिसको संबोधित करते हुए स्वामीजी ने बताया कि जिस प्रकार वे मात्र 8 साल की उम्र में वैरागी संत गुरु बन गये ठीक उसीप्रकार प्रो अच्युत सामंत भी मात्र चार साल की उम्र में अपने पिता को खो दिये। जिसप्रकार संतगुरु जी जंगल में अकेले रहकर तथा सभी प्रकार के सुखों का त्यागकर आज आध्यात्मिक गुरु बने हुए हैं ठीक उसीप्रकार प्रो. अच्युत सामंत ने अपने जीवन में आर्थिक संकटों से संघर्षकर स्वावलंबी बने हैं,आत्मनिर्भर बने हैं और पूरे विश्व की धरोहर के रुप में कीट-कीस और कीम्स जैसी अनेकानेक शैक्षिक संस्थान दे चुके हैं।प्रो.सामंत किसी से कुछ लेते नहीं हैं सिर्फ और सिर्फ उत्कृष्ट तालीम देते हैं। वे अपनी निर्मित शैक्षिक संस्थाओं के माध्यम से प्रेम,करुणा,दया,सहयोग और मैत्री देते हैं।

स्वामी जी ने प्रो.अच्युत सामंत के आध्यात्मिक जीवन,उनके त्यागी जीवन तथा निःस्वार्थ सेवा का उल्लेख करते हुए उन्हें महान् शिक्षाविद् बताया। प्रो.अच्युत सामंत को संतों के संत से अलंकृत किया। उन्हें सम्पूर्ण जगत के नाथ भगवान जगन्नाथ का हाथ बताया क्योंकि जो काम प्रो सामंत ने अबतक कर दिया है वह किसी एक व्यक्ति विशेष के लिए एक असंभव कार्य है। स्वामीजी ने प्रो.सामंत को पवनपुत्र हनुमान जैसा निःस्वार्थ महान् सेवक भी बताया।दिव्य मुनिजी ने प्रो.अच्युत सामंत की तरह संत तथा निःस्वार्थ समाजसेवी बनने के लिए धर्मसभा में आगत सभी से नित्य एक ही प्रार्थना करने को कहा-मैं तो कब से तेरी शरण में हूं,मेरी ओर तू भी तो ध्यान दे।-2,मेरे मन में जो अंधकार है,मेरे स्वर मुझे वह ज्ञान दे,तेरी आरती का दीया बनूं यहीं है मेरी मनोकामना,मेरे प्राण तेरा ही नाम ले,करे मन तेरी ही आराधना,गुणगान तेरा ही मैं करुं,मुझे वो लगन भगवान दे ,मैं तो कब से तेरी शरण में हूं,मेरी ओर तू भी तो ध्यान दे।

उन्होंने कहा कि अगर भारतवर्ष का एक-एक बच्चा जब प्रो.अच्युत सामंत जैसा संत और निःस्वार्थ समाजसेवी बनेगा तभी भारत वास्तव में आत्मनिर्भर बनेगा।गौरतलब है कि दिव्य मुनिजी प्रतिदिन गंगा आरती के लिए विशेष रुप से जाने जाते हैं और उनका कीट-कीस में आना और प्रो. अच्युत सामंत को दिव्यता का आशीर्वाद देना ओडिशावासियों के लिए अत्यंत गौरव की बात रही। कीस डीम्ड विश्वविद्यालय,भुवनेश्वर के तीसरे वार्षिक दीक्षांत समारोह में 25नवंबर को परम पूज्य स्वामी चिदानन्द सरस्वती,भारत के महान् आध्यात्मिक गुरु को विश्वविद्यालय की ओर से मानद डॉक्टरेट की डिग्री से सम्मानितकर प्रो.अच्युत सामंत ने उनके प्रति अपनी कृतज्ञता का पुष्प अर्पित किया जो चिरस्मरणीय रहा।

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