Thursday, May 9, 2024
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एक ही गोत्र में विवाह न करने का वैज्ञानिक कारण जिसे हम भुला बैठे

हमारी सनानत संस्कृति की एक एक परंपरा गहन वैज्ञानिक दृष्टि लिए हुए है, लेकिन आधुनिकता के नाम पर हम अपनी ही परंपराओं और जीवन मूल्यों को भुला बैठे हैं। इससे हमारी संपूर्ण नस्ल की पवित्रता नष्ट होती जा रही है। एक ही गोत्र में विवाह न करने का ये वैज्ञानिक विवेचन इस बात का प्रतीक है कि हमारे पूर्वजों व ऋषि मुनियों ने हर परंपरा को लेकर कितना गहन अध्ययन व शोध किया है।

·प्रश्न : – पिता का गोत्र पुत्री को प्राप्त नही होता आखिर क्यों और एक ही गोत्र मैं शादी क्यों नही करनी चाहिए इस के पीछे का वैज्ञानिक दृष्टिकोण क्या है? देखिए अब एक बात ध्यान दें की स्त्री में गुणसूत्र XX होते है और पुरुष में XY होते हैं। इनकी सन्तति में माना की पुत्र हुआ (XY गुणसूत्र). इस पुत्र में Y गुणसूत्र पिता से ही आया यह तो निश्चित ही है क्यू की माता में तो Y गुणसूत्र होता ही नही ! और यदि पुत्री हुई तो (XX गुणसूत्र). यह गुण सूत्र पुत्री में माता व् पिता दोनों से आते हैं।

१. XX गुणसूत्र :- XX गुणसूत्र अर्थात पुत्री . xx गुणसूत्र के जोड़े में एक x गुणसूत्र पिता से तथा दूसरा x गुणसूत्र माता से आता है . तथा इन दोनों गुणसूत्रों का संयोग एक गांठ सी रचना बना लेता है जिसे Crossover कहा जाता है।

२. xy गुणसूत्र ;- xy गुणसूत्र अर्थात पुत्र . पुत्र में y गुणसूत्र केवल पिता से ही आना संभव है क्यू की माता में y गुणसूत्र है ही नही । और दोनों गुणसूत्र असमान होने के कारण पूर्ण Crossover नही होता केवल ५ % तक ही होता है । और ९ ५ % y गुणसूत्र ज्यों का त्यों (intact) ही रहता है। तो महत्त्वपूर्ण y गुणसूत्र हुआ । क्यू की y गुणसूत्र के विषय में हम निश्चिंत है की यह पुत्र में केवल पिता से ही आया है । बस इसी y गुणसूत्र का पता लगाना ही गौत्र प्रणाली का एकमात्र उदेश्य है जो हजारों/लाखों वर्षों पूर्व हमारे ऋषियों ने जान लिया था ।

वैदिक गोत्र प्रणाली और y गुणसूत्र । Y Chromosome and the Vedic Gotra System अब तक हम यह समझ चुके है की वैदिक गोत्र प्रणाली य गुणसूत्र पर आधारित है अथवा y गुणसूत्र को ट्रेस करने का एक माध्यम है । उदहारण के लिए यदि किसी व्यक्ति का गोत्र कश्यप है तो उस व्यक्ति में विधमान y गुणसूत्र कश्यप ऋषि से आया है या कश्यप ऋषि उस y गुणसूत्र के मूल है । चूँकि y गुणसूत्र स्त्रियों में नही होता यही कारण है की विवाह के पश्चात स्त्रियों को उसके पति के गोत्र से जोड़ दिया जाता है । वैदिक/ हिन्दू संस्कृति में एक ही गोत्र में विवाह वर्जित होने का मुख्य कारण यह है कि एक ही गोत्र से होने के कारण वह पुरुष व् स्त्री भाई बहिन कहलाये क्योंकि उनका पूर्वज एक ही है । परन्तु ये थोड़ी अजीब बात नही? की जिन स्त्री व् पुरुष ने एक दूसरे को कभी देखा तक नहीं और दोनों अलग अलग देशों में परन्तु एक ही गोत्र में जन्मे ,तो वे भाई बहिन हो गये.?

यही कारण था कि विधवा विवाह भी स्वीकार्य नहीं था। क्योंकि, कुल गोत्र प्रदान करने वाला पति तो मृत्यु को प्राप्त कर चुका है। इसीलिये कुंडली मिलान के समय वैधव्य पर खास ध्यान दिया जाता और मांगलिक कन्या होने से ज्यादा सावधानी बरती जाती है।

आत्मज़् या आत्मजा का सन्धिविच्छेद तो कीजिये। आत्म+ज या आत्म+जा । आत्म=मैं, ज या जा =जन्मा या जन्मी। यानी जो मैं ही जन्मा या जन्मी हूँ। यदि पुत्र है तो 95% पिता और 5% माता का सम्मिलन है। यदि पुत्री है तो 50% पिता और 50% माता का सम्मिलन है। फिर यदि पुत्री की पुत्री हुई तो वह डीएनए 50% का 50% रह जायेगा, फिर यदि उसके भी पुत्री हुई तो उस 25% का 50% डीएनए रह जायेगा, इस तरह से सातवीं पीढ़ी में पुत्री जन्म में यह % घटकर 1% रह जायेगा। अर्थात, एक पति-पत्नी का ही डीएनए सातवीं पीढ़ी तक पुनः पुनः जन्म लेता रहता है, और यही है सात जन्मों का साथ। लेकिन, जब पुत्र होता है तो पुत्र का गुणसूत्र पिता के गुणसूत्रों का 95% गुणों को अनुवांशिकी में ग्रहण करता है और माता का 5% (जो कि किन्हीं परिस्थितियों में एक % से कम भी हो सकता है) डीएनए ग्रहण करता है, और यही क्रम अनवरत चलता रहता है, जिस कारण पति और पत्नी के गुणों युक्त डीएनए बारम्बार जन्म लेते रहते हैं।

अर्थात यह जन्म जन्मांतर का साथ हो जाता है। इसीलिये, अपने ही अंश को पित्तर जन्मों जन्म तक आशीर्वाद देते रहते हैं और हम भी अमूर्त रूप से उनके प्रति श्रध्देय भाव रखते हुए आशीर्वाद ग्रहण करते रहते हैं, और यही सोच हमें जन्मों तक स्वार्थी होने से बचाती है, और सन्तानों की उन्नति के लिये समर्पित होने का सम्बल देती है। एक बात और, माता पिता यदि कन्यादान करते हैं, तो इसका यह अर्थ कदापि नहीं है कि वे कन्या को कोई वस्तु समकक्ष समझते हैं, बल्कि इस दान का विधान इस निमित किया गया है कि दूसरे कुल की कुलवधू बनने के लिये और उस कुल की कुलधात्री बनने के लिये, उसे गोत्र मुक्त होना चाहिये। डीएनए मुक्त हो नहीं सकती क्योंकि भौतिक शरीर में वे डीएनए रहेंगे ही, इसलिये मायका अर्थात माता का रिश्ता बना रहता है, गोत्र यानी पिता के गोत्र का त्याग किया जाता है। तभी वह भावी वर को यह वचन दे पाती है कि उसके कुल की मर्यादा कापालन करेगी, यानी उसके गोत्र और डीएनए को करप्ट नहीं करेगी, वर्णसंकर नहीं करेगी, क्योंकि कन्या विवाह के बाद कुल वंश के लिये रज् का रजदान करती है और मातृत्व को प्राप्त करती है। यही कारण है कि हर विवाहित स्त्री माता समान पूज्यनीय हो जाती है।

यह रजदान भी कन्यादान की तरह उत्तम दान है जो पति को किया जाता है। यह सुचिता अन्य किसी सभ्यता में दृश्य ही नहीं है। हमारी हर परंपरा मैं वैज्ञानिक तथ्य छिपे हुए है अगर आपको उसकी जानकारी नही है तो उसका विरोध ना करें उसके पीछे का कारण जानें।

साभार- https://twitter.com/vishal_shrotriy से

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