Sunday, April 28, 2024
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टावर ब्रिज : ब्रिज जो नीचे से गुज़रने के लिए जहाजों के लिए रास्ता देता है

हमने अपने पिछले आलेख में लंदन की टेम्स नदी पर बने दो हज़ार वर्ष से विभिन्न रूपों में बने रहे लन्दन ब्रिज का उल्लेख किया था . आज हम टावर ब्रिज के बारे में बतायेंगे जो लंदन ब्रिज की तुलना में अपेक्षाकृत नया है लेकिन वास्तुशिल्प, सुंदरता और उपयोगिता के हिसाब से महत्वपूर्ण है . कई बार तो लोग टावर ब्रिज को ही लंदन ब्रिज समझ लेते हैं . इस ब्रिज के दोनों सिरों पर नदी के तल से 42 मीटर ऊँची टावर हैं जहां से लोहे के मोटे मोटे रस्सों से ब्रिज को बांधा गया है . इन टावर पर पहुँचने के लिए लिफ्ट हैं और दोनों टावर के सिरों को जोड़ कर सैलानियों के लिए एक वाक वे बनाया है जिसके फ़र्श काँच के हैं जिससे नीचे के ट्रैफ़िक और नदी में होने वाली गतिविधियों को देखा जा सकता है .वैसे भी इस वाक वे से लन्दन शहर का नयनाभिराम नज़ारा दिखता है इसलिए यह फ़ोटोग्राफ़ी के शौक़ीन लोगों के लिए यह बेहतरीन स्पॉट है .
यह ब्रिज कैसे और क्यों बना इसका रोचक इतिहास है .

हुआ यूँ कि लन्दन शहर में ट्रैफ़िक बढ़ने के कारण एक नए ब्रिज की आवश्यकता अरसे से महसूस की जा रही थी , अठ्ठाहरवीं शताब्दी के मध्य तक लन्दन दुनिया का सबसे बड़ा व्यापार केंद्र बन गया था , यह सारा का सारा व्यापार जल मार्ग से ही होता था इसी कारण मालवाहक जहाज़ों का आकार और ऊँचाई दोनों ही बढ़ गई थी और इतने बड़े जहाज़ों को लंदन के अपर पूल यानि माल उतारने के पुराने ठिकानों तक पहुँचाना चुनौती बनता जा रहा था , केवल छोटे छोटे जहाज़ लन्दन ब्रिज के नीचे से गुज़र के बर्मोंडसी स्थित चेरी गार्डन पियर ही पहुँच पाते थे.

इस समस्या का हल निकालने की ज़िम्मेवारी वास्तुविद सर होरेस जोन्स को दी गई. सन् 1886 में इस का निर्माण शुरू हुआ और 1894 में यातायात के लिए खोल दिया गया .

इसकी विशेषता यह है कि इसकी सड़क के आधे आधे हिस्से दोनों सिरों से पर बच्चों के सी-सॉ की तरह ऊपर नीचे हो जाते हैं, इस बास्क्यूल तकनीक भी कहा जाता है . यानि जब इसके नीचे से जहाज़ों को गुज़ारना होता है तो ट्रैफ़िक रोक कर पुल के बीच की सड़क को ऊपर की तरफ़ उठा दिया जाता है .

हम बाक़ायदा टिकट ले कर यह देखने गए कि आख़िर ब्रिज की इतनी भारी सड़क को कैसे ऊपर उठाया जाता है. ब्रिज के दोनों सिरों पर चार चार शक्तिशाली व्हील हैं जिनमें चक्रदंत यानि कॉग लगे हैं टावर ब्रिज इन्ही चक्रदंत की सहायता से खुलता और बंद होता है . इन्हें घुमाने के लिए शुरुआती दौर में वाष्प शक्ति का इस्तेमाल किया जाता था . 1976 से अब यह काम विद्युत ऊर्जा से संपन्न किया जाने लगा है . लेकिन भूतल में तीन स्टीम बायलर और पंपिंग इंजन को प्रदर्शन के लिए अभी भी यथावात सहेज कर रखा गया है. जब ये प्रयोग में लाये जाते थे तो इन्हें प्रतिदिन चौबीस घंटे तीन शिफ्ट में लगातार गर्म रख कर निरंतर भाप बनाई जाती थी ताकि जिस समय ज़रूरत हो ब्रिज को जल-यातायात के लिए उठाया जा सके.

अपने संचालन के प्रारंभिक वर्षों में यह ब्रिज साल में छै हज़ार से भी अधिक बार उठाया जाता था क्योंकि समान लाने ले जाने वाले जगहों की क़तार लगी रहती थी , पिछले साठ सत्तर वर्षों में मालवाहक जहाज़ इतने बड़े हो चुके हैं कि उन्हें टेम्स नदी में लाना ले जाना संभव ही नहीं है इसलिए अब समुद्री पोर्ट पर सामान का संचालन होने लगा है और टावर ब्रिज का प्रतीकात्मक महत्व रह गया है.

पहली बार जब हमने इस ब्रिज को खुलते बंद होते देखा था तब शाम के साड़े चार बजे थे ,हम डबल डेकर बस की ऊपरी मंज़िल के बिलकुल आगे वाली सीट पर बैठे थे .जैसे ही हमारी बास ब्रिज के सिरे पर पहुँची , साइरन बजने लगा , जो इस बात का संकेत था कि ब्रिज सड़क के ट्रैफ़िक के लिए बंद हो रहा है दोनों ओर सैकड़ों बस और कार रुक गए. धीरे धीरे ब्रिज के बीच की सड़क दो भागों में बाँट कर ऊपर की तरफ़ को उठने लगी . इसके बाद नीचे से गुज़ारने वाले पोतों को संकेत किया गया वे बड़े आराम से निकल गए. क्रॉस करने वाले पोत के लिए अनिवार्य है कि वह अपने टॉप पर फ्लैग लगाये. कुल मिला कर तीन पोत गुज़रे , पोत गुजरने के बाद ब्रिज के बीच के भाग की सड़क धीरे धीरे वापस यथा स्थिति में आ गई. यह ब्रिज किस समय सड़क यातायात के लिए बंद रहेगा इसका शेड्यूल काफ़ी पहले से यातायात संचालन विभाग की वेबसाइट पर रहता है ताकि उस समय आवश्यक कार्य से जाने वाले वैकल्पिक मार्ग को चुन सकें . इस बार जब हमने खुलने बंद होने का दृश्य देखने का मन बनाया तो उपयुक्त स्पॉट साउथ बैंक पर चुना जो ब्रिज से तीन सौ मीटर की दूरी पर था , शाम के सात चालीस हो चुके थे , पूरा शहर रौशनी में नहाया हुआ था. टावर ब्रिज को रौशनी से सजाया हुआ रहता है ताकि जब ब्रिज दो हिस्सों में खुले तो सिनेमा के दृश्य की तरफ़ दिखाई दे. सैलानी ब्रिज खुलने से पूर्व ही अच्छे स्पॉट पर भीड़ लगा लेते हैं. बरहाल दोनों बार का अनुभव अलग था .

जब यह ब्रिज बना था इसका रंग ब्राइट चॉकलेटी था जो क्वीन विक्टोरिया का सबसे पसंदीदा रंग हुआ करता था. द्वितीय विश्व युद्ध छिड़ते ही इसका रंग युद्धपोत पर किया जाने वाला ग्रे का ताकि दुश्मन के युद्धक विमानों की नज़र से छुपा रह सके. 1977 में इसे आकर्षक बनाने और स्वर्गीय क्वीन एलिज़ाबेथ के शासन की सिल्वर जुबली मनाने के लिए लाल, सफ़ेद और नीले रंग के काम्बिनेशन से पेण्ट किया गया, यही रंग योजना आज तक चली आ रही है .

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