Friday, April 26, 2024
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Homeहिन्दी जगतहम अपनी ही भाषाओं को मार रहे हैं

हम अपनी ही भाषाओं को मार रहे हैं

हमारे पूर्वज संस्कत धारा प्रवाह बोलते थे। हमारी हमसे दो पीढ़ी आगे हमने संस्कृत में बोलती और पढ़ते सुना बिल्कुल सही उच्चारण के साथ।मेरे पूज्य पिताजी धारा प्रवाह संस्कत
बोलते थे वह तुंरत दूसरे की गलती भी बता देते थे। वर्मातमान में हमारी मातृभाषा हिंदी है,हमारी राष्ट्रभाषा हिन्दी है।

हिंदी के अमूल्य उत्थान में हमारी क्षैत्रिय बोली और भाषा का बहुत बड़ा सहारा और सम्बल रहा है।हर राज्य में अपनी एक बोली है और उनमें भी बीस कोस पर थोड़ी थोड़ी बदलने वाली बोलियां।
आज बहुत लोग अपनी आंचलिक भाषा और बोली को बचाने के लिए प्रयास रत है।

जब से अंग्रेजी माध्यम का समय आया हैं तबसे घर में भी अपनी बोली आंचलिक बोली बोलने में प्रतिशत कम हुआ।उसका कारण देहात सूदूर से शहर में जाकर पढ़ने वाले बच्चे वहां के वर्तमान में साथ पढ़ने वाले अनेक प्रांत के सदस्यों साथियों के साथ तालमेल बैठाता तब उनकी आपस की क्षैत्रिय बोली सहारा नहीं दे पाती,कुछ राज्यों में हिंदी का बोलना भी बहुत कम है तो बच्चे सीधे अंग्रेजी में बात करने लगते हैं।

बहुत जगह अभिभावक भी चाहते हैं कि बच्चे की उन्नति हो तब वह भी बच्चों को अंग्रेजी पढ़ने सीखने और अंग्रेजी पाठशाला को प्राथमिकता देते हैं। यह दोषारोपण नहीं,हम भी सम्मिलित है और हम सभी चाहते हैं कि बच्चा अंतरराष्ट्रीय प्रतिस्पर्धा में आगे आये।

इसलिए बहुत कारण बन गये। हम स्वयं वर्षों से प्रयासरत हैं अपनी आंचलिक बोली मालवी बोली को बचाने के लिए और भी बहुत सारे लोग प्रयत्न कर रहे हैं,क्योकि हिंदी का वर्चस्व रखना है तो हमें अपनी अपनी आंचलिक बोली को भी पूर्ण रूप से बचाना होगा जो हिंदी का आधार स्तम्भ होगा।

अंग्रेजी तो वर्षों से सभी पर प्रभाव छोड़ चुकी है जबकि वह भी तो एक भाषा ही है वह कैसे बची और कैसे बोली जा रही क्योंकि पूरा विश्व टेका लगा रहा।

अगर हम अपनी हिंदी बोली को भी क्षैत्रिय बोली के माध्यम से उत्थान पर लाये और उत्कृष्ट बनाये तो हिंदी युगों-युगों तक हमारी सिरमौर होगी।

मालवा प्रांत की होने के कारण मेरी एक छोटी सी कोशिश है जो मे हर दिन करती हूं। हिंदी गद्य पद्द लेख के साथ में मालवी बोली में भी हर दिन उतना ही सृजन करती हूं।

यह एक प्रयास है साथ ही अपनी क्षैत्रिय लोक कला संस्कृति का भी हम प्रचार प्रसार करते हैं।

इसलिए आंचलिक,क्षैत्रीय बोली का होना बहुत जरूरी है।जो अंग्रेजी में नहीं कह सकते वह तुरंत मीठी अपनी बोली में एकदम कह देते हैं कि-
आओ आओ नी पधारो म्हारे मालवे
तमारी कय कय करूं मनवार पधारो मालवे।

(लेखिका उज्जैन की निवासी हैं, बैंगलुरु में रह रही हैं। आप कला,भाषा और संस्कृति से जुड़े विषयों पर नियमित लेखन करती हैं)

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