महोदय
आज कल गौमांस खाने को लेकर अनेक चर्चायें चल रही है ।पर क्या भोजन की स्वतंत्रता होने का अर्थ यह है कि कुछ भी खाओं और समाज के नियमो का उल्लंधन करते रहो ? फिर तो बच्चों को काट काट कर अतिथियों को खाने में परोसने वाले कुछ वर्ष पूर्व हुए निठारी (नोएडा) जैसे हत्याकांडों की सर्वथा आलोचना नहीं होनी चाहिए थी।परंतु उसको अवैध माना गया और मनुष्य नरभक्षी न बन जायें इसीलिये कठोरतम सजा की प्रतीक्षा में उसके दोषी आज भी इस जघन्य अपराध के लिए कारागार में बंद है।
हमारे देश में सामाजिक न्याय की व्यवस्था प्राचीन काल से ही ऋषियों, मुनियों व विद्धवानों ने स्थापित की है।उन व्यवस्थाओं का जीवन में आचरण करने को भी धर्म की संज्ञा दी गयी है। यह न्यायायिक व्यवस्था संसार को एक विशिष्ट प्रकार की देन है, जिसमें विधर्मियों को दण्डित करने का अनूठा विधान है।
आज भोजन की स्वतंत्रता पर गौमांस खाने के लिए कुछ तथाकथित हिन्दू अपने को सेक्युलर यानी की हिन्दू विरोधी स्पर्धा में बनें रहने के लिए प्राचीन काल में भी ऋषि मुनियो सहित कुछ हिंदुओं को भी गौभक्षी बता कर अनर्गल व असत्य प्रचार करके समाज को भ्रमित कर रहे है ।यह अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण है कि न जाने किस लोभ व लालच में हमारे देश के जन्म से हिन्दू कहलाये जाने वाले कुछ गणमान्य नागरिक गौ मांस भक्षण के पक्ष में बयान दें रहे है।अगर भूलवश हिन्दू समाज के कुछ लोगो ने ज्ञान के अभाव में ऐसा किया भी है तो उसको आधार बना कर गौमांस भक्षण को सार्थक नहीं बनाया जा सकता।
ऐसी स्थिति में आज धर्माचार्यो का परम कर्तव्य है कि वे अपने ज्ञान की गंगा से इस दुष्प्रचार का प्रतिकार करके उन लोगों व विदेशी षड्यंत्र से घिरे हुए मीडिया के विरुद्ध आवश्यक वैधानिक कार्यवाही करके अपने अपने भक्तो की जिज्ञासा का निवारण करें। अन्यथा यह धार्मिक आक्रमण हिन्दू समाज को भ्रमित करने में सफल हो गया तो वर्तमान व भविष्य में हिन्दू धर्म पर होने वाले अत्याचारों को थामना और कठिन हो जाएगा और धर्मद्रोही व देशद्रोही शक्तियां निरंतर हम को इसी प्रकार आहत करने के कुप्रयास करती रहेंगी।
हमारे बड़े बड़े धर्माचार्यों को यह भी समझना होगा कि हिन्दू समाज के धार्मिक गुरु बन कर उनकी भावनाओ का दोहन करके धार्मिक सत्ता का अधिकारी बनना तो सरल है पर समयानुसार अपनी अपनी योग्यता से ऐसी विकट स्थितियों में समाज का मार्गदर्शन करके उसको उचित व अनुचित का बोध कराना भी आवश्यक होता है।उनको यह भी ध्यान रखना होगा की अगर ज्ञान के अभाव में उनके अनुयायी (शिष्य) कहीं षड्यंत्रकारियों के भ्रमजाल में फंस गयें तो वे किस समाज के गुरु कहलायेंगें ?
अतः हिन्दू धर्म रक्षा हेतु धर्माचार्यों को अपने अपने मठो व आश्रमो से जन जागृति हेतु वास्तविक धार्मिक ज्ञान से अवगत करवाने के लिए हिन्दू समाज में अनेकों अभियान चलाने होंगे।
विनोद कुमार सर्वोदय
नया गंज,गाज़ियाबाद