Tuesday, May 21, 2024
spot_img
Homeविशेषस्नेहलता शर्मा के दिल की धड़कनों से गूंजते हैं स्वर....

स्नेहलता शर्मा के दिल की धड़कनों से गूंजते हैं स्वर….

वो दिन-दिनांक,वो स्याह वार
यूं तो उस दिन था पावन त्यौहार!
कायर- डायर के क्रूर वार
से मच गया सभा में हाहाकार!
वैसाखी की थी  पावन वेला
उफ! खेल,खूनी वो दानव खेला!
अनवरत गोलियों की हुई बौछार
भीषण-वीभत्स था नर-संहार!
राष्ट्रवाद और देश प्रेम के भाव लिए जलियांवाला बाग की घटना को आधार बना कर “जलियांवाला बाग़ शहादतों का पुण्य संस्मरण” लिखी गई इस कविता में बलिदान और शाहदत बेकार नहीं जाते, आओ नमन करें उनको जिन्हें स्वदेश की माटी से प्यार है का संदेश देते हुए आगे लिखती हैं….
मासूम -सा बचपन, बन क्रंदन
यौवन की घायल चीत्कार!
भर गये कूप सब लाशों से,
बह चली मार्ग पर रक्त थार!
उत्सव फिर मातम में बदला,
उस बाग की उजड़ी बहार!
माटी में रक्तिम बीज मिले,
स्वातंत्र्य – फसल को देने आधार!
बलिदान अकारथ नहीं जाते,
होतीं  ना  शहादते  बेकार!
लो आज नमन कर लें उनको,
जिनको स्वदेश की मिट्टी से प्यार!
देश प्रेम, देश की माटी से प्यार, देश पर बलिदान होने वाले वीर सपूत,स्वतंत्रता सेनानियों के किरदारों पर लिख कर राष्ट्रवाद से प्रेरित काव्य सृजन के साथ- साथ विभिन्न विषयों और जीवन के मीठे- कड़वे अनुभवों एवं अनुभूतियों को सहेजते समेटते हुए भावनाओं को कागज़ पर उकेर कविता लिखने में सिद्धहस्त रचनाकार स्नेह लता शर्मा ने साहित्य के क्षेत्र में अपनी अलग पहचान बनाई है। यह कहें कि कविता लेखन इनकी अभिरुचि ही नही इनकी धड़कन है अतिश्योक्ति नहीं होगी। इनकी कविता की एक और बानगी देखिए…………..
पीर- प्रसूता होती कविता
इससे रहे ना कोई अछूता!
भाव जो उर में नहीं समाते
कागज़ पर सैलाब उमड़ता!
दुख से कातर,टीस से आकुल
विरह से व्याकुल,आहें भरता!
हो अधीर,मन चंचल होकर,
कभी ग़ज़ल, कभी गीत है बुनता!
चित्त खिन्न, कभी हो उद्विग्न,
मन की कारा तोड़ निकलता!
कलम सहचरी,क्रोध जो कहता,
कर प्रहार, कागज़ जो सहता!
शब्द बनावट,लगे सजावट,
कहीं उपमा, अलंकार से सजता!
शब्द मात्र ना होती कविता,
प्राण कवि का निहित ही रहता!
अंतर्मन की व्यथा -कथा का
कलम कूंची से चित्रण करता!
आन -मान जब राष्ट्र-धर्म का
रक्त से स्वाभिमान ही लिखता!
अपने विद्यार्थी जीवन से ही इन्होंने कविता लिखना,  विद्यालय में विशेष अवसरों पर स्वरचित कविता सुनाना इनकी हॉबी बन गया।विद्यालय और महाविद्यालय की पत्र-पत्रिकाओं में निबंध, कहानी, एकांकी, कविता आदि प्रकाशित होने पर हौंसले को पंख लग गए। शिक्षकों और साथियों का लगातार प्रोत्साहन मिलने से लेखनी में निखार आता गया।
इनके लेखन की मुख्य विधा कविता ही रही,यदा-कदा कहानी, निबंध, शोध-पत्र भी  लिखती हैं। मुख्यत: हिंदी भाषा ही लेखन और अभिव्यक्ति का माध्यम बनी परंतु कभी – कभी कुछ कविताएं, एकांकी व शोध-पत्र अंग्रेज़ी भाषा में भी लिखे हैं। इनकी रचनाएं अधिकांशतः छंद मुक्त हैं । कुछ रचनाएं ग़ज़लें, नज़्में,व गीत शैली में लिखे हैं जिनमें उर्दू व हिंदी दोनों भाषाओं के शब्दों का प्रयोग किया गया है। समाज को विविध प्रकार सावचेत करने  वाली अब तक लगभग 200 कविताओं का सृजन करने वाली रचनाकार की जीवन संघर्ष पर आधारित कविता की बानगी कुछ इस प्रकार है…
जीवन का संघर्ष अकेले लड़ना है
ढ़ूंढो ना अवलंब, अकेले बढ़ना है!
कंटक -पथ पर चलने से क्यों डरते हो?
निर्भय हो ओ इतने कि भय को डरना है!
संग कभी परछाई भी ना चल पाती,
भ्रम ना पालो ,साथ किसी को चलना है!
राहों में बारूद बिछाए जाएंगे,
कदम संभल के, हौले -हौले धरना है!
माना मंज़िल दूर बहुत अंधेरा है,
बुझते-बुझते मन का दीपक जलना है!
 ये अमृता प्रीतम, शिवानी अज़ीज़ आज़ाद, मुंशी प्रेमचंद,नीरज, हरिशंकर परसाई आदि से प्रभावित हैं, जिनका समकालीन लेखन आज भी प्रासंगिक हैं । इनका मानना है कि लेखन की कोई भी विधा हो, साहित्यकार को ऐसी रचनाओं का सृजन करना चाहिए जो समाज को एक दिशा दे,मंथन और चिंतन के विषय दे जिन पर सभी अपनी  सकारात्मक अभिव्यक्ति दे सकें। इसकी बानगी हाल ही में प्रकाशित इनके काव्य संग्रह, “सुनो, पत्थरों के भीतर नदी बहती है ” है। इसके अतिरिक्त कुछ आधा दर्जन साझा संकलनों व पत्र-पत्रिकाओं पत्रिकाओं में प्रकाशित इनकी कविताएं हैं। इन्होंने इनके स्वर्गीय ससुर  शिवप्रसाद शर्मा के काव्य संकलन  “आस्था का दीप” का संपादन भी किया गया है।
इनके काव्य संग्रह में “सुनो, पत्थरों के भीतर नदी बहती है” में पत्थर शीर्षक से बहुत सारी रचनाएं हैं,जैसे “पत्थरों के शहर में”,”दरिया और पत्थर”, “पत्थर का श्रृंगार”, “काश, जज़्बात पत्थर हो जाते”, “पत्थर को पूजते हो” आदि रचनाओं में प्रतीक्षा,परीक्षा, जीवन-दर्शन,मंथन, विविध अनुभूतियों के साथ भावनाओं की बहती अविरल धारा,नदी बहती दिखाई देती है। इनकी मर्यादा पुरुषोत्तम राम, श्रीकृष्ण, भक्तों के भक्त हनुमान पर लिखी कविताएं आकंठ भक्ति रस से सराबोर कर देने वाली और शहीदों, स्वतंत्रता सेनानियों, क्रांतिकारियों, तिरंगे , गणतंत्र दिवस जैसे विषयों पर ओज व वीर रस से  ओतप्रोत रचनाएं देशभक्ति के रंग में रंगी हैं। इनका कवि मन कह उठता है…
मैं अपनी कविताओं में श्रृंगार कहां से लाऊं
सजल नयन में दिखा ना भरपूर प्यार कहां से लाऊं?
सर्दी – गर्मी वर्षा सूखा के कहर जिन्हें सहने हैं
भूख बिलखती  देख ,मधुर आहार, कहां से से लाऊं?
रोज अस्मिता लुटती देखी,और रोती विधवाएं!
आर्यवीर स्वयं साक्षी हैंतो शर्मसार कहां से लाऊं?
सच को रौंद रहे हैं, न्याय पुजारी,प्रतिपल ऐसे,
झूठ की डोली विदा कराने  कहार कहां से लाऊं?
परिचय :
साहित्य में राष्ट्रवाद के स्वर बिखेरती स्नेहलता शर्मा का जन्म मध्यप्रदेश के इंदौर में 4 अगस्त 1967 को पिता स्व. गोपाल कृष्ण  एवं माता स्व. सीता रानी के परिवार में तीसरी संतान के रूप में हुआ। एक भाई व बहन इनसे बड़े और दो भाई छोटे हैं। जब ये ढ़ाई वर्ष की रही होंगी जब इनके पिता इन्दौर से कोटा पत्थर का व्यवसाय करने के लिए आ गए और यहीं बस गए । स्वयंपाठी छात्रा के रूप में आपने अर्थशास्त्र,राजनीति विज्ञान, अंग्रेजी में स्नातकोत्तर एवं एम.एड.की शिक्षा प्राप्त की और प्रतियोगी परीक्षाओं में भी भाग्य आजमाती रही।
आपने बारां जिले में अध्यापिका के साथ शिक्षा विभाग में राजकीय सेवा शुरू की। वर्ष 1994 में राजस्थान लोक सेवा आयोग से व्याख्याता अंग्रेजी पद पर चयनित होकर चेचट में लगभग दो वर्ष रही। इसी दौरान अगस्त 1995 में पीयूष शर्मा से विवाह हो गया। कविता लेखन के साथ-साथ मंच संचालन, एंकरिंग, रंगमंच और टी वी सीरियलों में अभिनय और नाट्य लेखन में भी आप प्रवीण हैं। कोटा आकाशवाणी से लंबे अरसे तक जुड़े रहकर महिला जगत तथा बाल संसार के लिए कार्यक्रमों में एंकरिंग भी की। सीमा कपूर के निर्देशन में दूरदर्शन पर प्रसारित”एकलव्य” सीरियल में प्रमुख भूमिका निर्वहन का अवसर मिला। वर्तमान में कोटा जिले के राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय, बोरदा इटावा कोटा में प्रधानाचार्या के पद पर सेवारत होने के साथ- साथ निरंतर साहित्य सृजन में लगी हुई हैं।
चलते – चलते ………….
पद-यश- कीर्ति मृग-मरीचिका से प्रतीत हों!
कर्म श्रेष्ठ करते हुए यदि जीवन व्यतीत हो!
मोह-राग- द्वेष से प्रचार से निर्लिप्त हो!
राष्ट्र- धर्म सर्वोपरि व्यक्तित्व गुणातीत हो!
वो रहें ना रहें, पर पीढ़ियां प्रदीप्त हों!
नेतृत्व आज राष्ट्र के ऐसे ही अभीष्ट हों।
संपर्क :
मकान न. 2, महावीर नगर विस्तार योजना,
6 सेक्टर के सामने, सुभाष सर्किल के पास,
कोटा ( राजस्थान )
मोबाइल : 9602943772
——————
डॉ.प्रभात कुमार सिंघल
लेखक एवं पत्रकार, कोटा
image_print

एक निवेदन

ये साईट भारतीय जीवन मूल्यों और संस्कृति को समर्पित है। हिंदी के विद्वान लेखक अपने शोधपूर्ण लेखों से इसे समृध्द करते हैं। जिन विषयों पर देश का मैन लाईन मीडिया मौन रहता है, हम उन मुद्दों को देश के सामने लाते हैं। इस साईट के संचालन में हमारा कोई आर्थिक व कारोबारी आधार नहीं है। ये साईट भारतीयता की सोच रखने वाले स्नेही जनों के सहयोग से चल रही है। यदि आप अपनी ओर से कोई सहयोग देना चाहें तो आपका स्वागत है। आपका छोटा सा सहयोग भी हमें इस साईट को और समृध्द करने और भारतीय जीवन मूल्यों को प्रचारित-प्रसारित करने के लिए प्रेरित करेगा।

RELATED ARTICLES
- Advertisment -spot_img

लोकप्रिय

उपभोक्ता मंच

- Advertisment -spot_img

वार त्यौहार