प्रत्येक वर्ष 3 दिसंबर को संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा विश्व दिव्यांग दिवस दिव्यांग व्यक्तियों के अंतर्राष्ट्रीय दिवस के रूप में मनाया जाता है । 1992 के बाद से विश्व दिव्यांग दिवस विकलांग व्यक्तियों के प्रति करुणा और विकलांगता के मुद्दों की स्वीकृति को बढ़ावा देने और उन्हें आत्म-सम्मान, अधिकार और विकलांग व्यक्तियों के बेहतर जीवन के लिए समर्थन प्रदान करने के लिए एक उद्देश्य के साथ मनाया जा रहा है. इसके पीछे मनाने का मूल उद्देश्य यह भी है कि, दिव्यांगों की जागरूकता राजनीतिक, वित्तीय और सामाजिक-सांस्कृतिक जीवन के हर पहलू में विकलांग व्यक्तियों को लिया जाना शामिल है । इस दिन प्रत्येक वर्ष कुल मिलाकर एक खास मुद्दे पर ध्यान दिया जाता है| विश्व दिव्यांग दिवस के मुख्य विषय के रूप में विकलांग व्यक्तियों के सक्रिय, और समाज के जीवन और विकास में पूरी तरह से भाग लेने के लिए और उन्हें अन्य नागरिकों के बराबर पूरा अधिकार देने के लिए साथ ही मनुष्य के अधिकार के रूप में परिभाषित किया गया है जोकि “पूर्ण भागीदारी और समानता,” और सामाजिक-आर्थिक विकास के विकास से उत्पन्न लाभ में बराबर का हिस्सा आदि से सम्बंधित है ।
दिव्यांगों को साइकिल या व्हील चेयर इसलिए नही दी जाती कि उन्हें कोई सहारा दिया जा रहा है बल्कि इसलिए दी जाती है ताकि वे स्वावलंबी बन सके । समाज को अपनी संकीर्ण मानसिकता को छोड़कर दिव्यांग बच्चों को सबल बनाना होगा, तभी हम विकसित हो सकते हैं ।
पिछले 116 सालों में हुए 24 ओलंपिक में भारत ने आज तक कुल नौ स्वर्ण पदक जीते हैं और दूसरी तरफ इस बार के ही पैरालिम्पिक्स में भारतीय खिलाडियों ने देश को दो स्वर्ण पदक दिलाए हैं. लेकिन विडम्बना देखिए कि पूरा देश इन नायक/नायिकाओं के नाम और शक्ल उस तरह से नहीं पहचानता जैसे ओलंपिक विजेताओं के! क्या यह महज इत्तेफाक है कि पैरालिम्पिक्स में स्वर्ण, रजत और कांस्य पदक विजेताओं की मीडिया में चर्चा, ओलंपिक पदक विजेताओं से कहीं कम है?
दिव्यांगों को समाज की मुख्य धारा में लाने और सम्मानित जीवन जीने में सहयोग देने के लिए सिर्फ बिल्डिंगों में उनके अनुकूल शौचालय बनाना भर काफी नहीं होगा. समाज, सरकार, कॉर्पोरेट और मीडिया, सभी को एकजुट होकर इस दिशा में पहल करनी होगी. मीडिया और विज्ञापन कंपनियां मिलकर दिव्यांगों को न सिर्फ समाज की मुख्य धारा से जोड़ने में बल्कि, उनको समाज के असली नायक/नायिका के रूप में स्थापित करने में भी बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं।
भारत जैसे देश में तो पैरालिंपियन्स की उपलब्धि और भी बड़ी हो जाती हैं क्योंकि, यहां तो सर्वअंग व्यक्तियों के लिए ही सुविधाओं के अभाव और राजनीति की अति के कारण खेलना बड़ी चुनौती है. ऐसे में विकलांगों का अपनी दैहिक चुनौतियों के पार जाकर, पारिवारिक, सामाजिक और राजनीतिक उपेक्षा को अनदेखा कर पूरी दुनिया में अपना स्थान बनाना मिसाल दिये जाने लायक काम है.
विकलांगों की सामाजिक प्रतिष्ठा को ध्यान में रखते हुए प्रधानमंत्री के सुझाव के बाद सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय ने विकलांग की जगह ‘दिव्यांग’ शब्द प्रयोग किए जाने की पहल की है. प्रधानमंत्री का कहना है कि ‘विकलांग व्यक्तियों में कोई अंग विशेष नहीं होता, लेकिन उनके बाकी अंगों में वह विशेषता होती है जो कि सामान्य व्यक्तियों के पास भी नहीं होती.’ उन्होंने यह भी कहा कि उनकी सरकार सभी सार्वजनिक बिल्डिंगों में रैंप और दिव्यांग व्यक्तियों के लिए खास तरह के शौचालय बनाने के लिए पहल करेगी ।
अनुज हनुमत
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