गुड़गाँव, हरियाणा : भारत सरकार द्वारा कुष्ठ रोग पर जागरूकता के लिए ”स्पर्श लेप्रोसी अवेयरनेस कैम्पेन“ शुरू किया जा रहा है। भारत सरकार स्वास्थ्य सेवा महानिदेशालय के उप महानिदेशक-लेप्रोसी, डॉ. अनिल कुमार तथा जॉन कुरियन जॉर्ज (भारत में आइएलईपी) ने आज इस अभियान की घोषणा की। यह अभियान राष्ट्रीय कुष्ठ रोग उन्मूलन कार्यक्रम (एनएलईपी) के अंतर्गत आरंभ किया गया है जिसकी शुरुआत देश से इस रोग को भगाने के लक्ष्य के साथ 1983 में हुई थी। हालाँकि, राष्ट्रीय स्तर पर कुष्ठ उन्मूलन का लक्ष्य दिसम्बर 2005 में हासिल कर लिया गया था, तो भी अभी भी देश में दुनिया के 57 कुष्ठ प्रभावित लोग मौजूद हैं।
भारत सरकार और भारत में आइएलईपी, विश्व स्वास्थ्य संगठन, एपीएएल जैसे इसके सहयोगियों द्वारा उठाये गये कुछ महत्वपूर्ण कदम निम्नलिखित हैं :
”स्पर्श लेप्रोसी अवेयरनेस कैम्पेन (एसएलएसी)“ आरंभ करने का भारत सरकार का फैसला एनएलईपी के अंतर्गत एक विशिष्ट पहल है। केन्द्रीय कुष्ठ विभाग (सीएलडी) और इसके सहयोगी यथा आइएलईपी, डब्लूएचओ, एपीएएल, स्थानीय एनजीओ और सरकारी मीडिया प्रकोष्ठ, स्थानीय आकाशवाणी एवं दूरदर्शन के विभिन्न केन्द्रों द्वारा 30 जनवरी को हर साल ‘कुष्ठरोग विरोधी दिवस“ के रूप में मनाया जाता है। इस दिन प्रिंट एवं अन्य संचार माध्यमों के द्वारा कुष्ठरोग जागरूकता संबंधी राष्ट्रव्यापी संदेश प्रसारित किए जाते हैं। इसके अलावा कुष्ठरोग उन्मूलन के लिए एक पखवाड़े तक आइईसी गतिविधियाँ चलाई जाती हैं। आगे से इस दिवस को ‘स्पर्श लेप्रोसी अवेयरनेस कैम्पेन’ के रूप में मनाने की योजना है जिसमें स्वास्थ्य विभाग/मंत्रालयों से संबंधित क्षेत्रों यानी पंचायती राज संस्थानों, ग्रामीणा विकास, शहरी विकास, नारी एवं बाल विकास तथा सामाजिक न्याय एवं सशक्तीकरण आदि के सहयोग एवं समन्वय से राष्ट्रव्यापी ग्राम सभाएँ आयोजित की जाएंगी।
इस अभियान में कुष्ठरोग के शुरुआती चरणों के निदान एवं उपचार संबंधी सेवा प्रदान करने में सामुदायिक सहभागिता पर जोर दिया गया है। इस दिशा में केन्द्रीकृत शीर्ष से नीचे की ओर सेवा प्रेरित दृष्टिकोण से विकेन्द्रीकृत समुदाय आधारित मागँ-प्रेरित दृष्टिकोण अपनाया गया है। इस पद्धति का उद्देश्य विभिन्न पीआरआइ और स्थानीय समुदायों को यह उत्तरदायित्व स्वीकार करने के लिए प्रेरित करना है कि वे कुष्ठरोग संबंधी कलंक और भेदभाग में कमी लाने और निदान एवं उपचार हेतु शीघ्र संपर्क करने के लिए लोगों को संवेदनशील बनायें तथा प्रेरित करें।
कुष्ठ जनित अपंगता के कारण कलंक और भेदभाव का कुष्ठरोगी पर बड़ा गहरा असर होता है और अपंगता के कारण उसकी अर्जन क्षमता तथा इसके परिणामस्वरूप सामाजिक-आर्थिक हैसियत कमजोर हो जाती है। सीएलडी और इसके सहयोगी आइएलईपी, डब्लूएचओ, एपीएएल ने ”अपंगता निवारण एवं चिकित्सीय पुनरुद्धार – डीपीएमआर“ के लिए 2007 में एक स्वीकृत योजना भी तैयार की थी जिसे 12वीं पंचवर्षीय योजना में जारी रखा गया था। अपंग लोगों को उचित सेवा देने और अपंगता निवारण के लिएए कतिपय उद्देश्य निर्धारित हैं। असल में सुझाव यह है कि एमडीटी के साथ कुष्ठरोग के शीघ्र सही उपचार से ही नहीं, बल्कि अभिक्रियाओं और तंत्रिकाशोथ (न्यूराइटिस) के शीघ्र एवं सही उपचार से भी अपंगता का निवारण होसकता है। भारत में अनेक प्रकार की विकलांगता पुनर्निर्माण शल्यक्रिया (रिकंस्ट्रक्टिव सर्जरी) द्वारा ठीक की जाती है।
कुष्ठ रोग के महामारी विज्ञान के अनुसार समाज में इस रोग के संक्रमण का सबसे बड़ा कारण अनुपचारित मामले हैं, यानी कुष्ठ के ऐसे मामले जो समाज में पता चले बिना बने रहते हैं। ऐसे मामलों से समाज में दूसरे लोगों में रोग के जीवाणुओं का संचारण होता है। इनकी शीघ्र पहचान होने से समाज में संक्रमण के स्रोत में कमी, रोग के तीव्र संचारण पर रोक, मामला संभालने की जटिलताओं में कमी और अपंगता में कमी लाई जा सकेगी।
मार्च 2016 तक महामारी संबंधी स्थिति
ऽ कुल 36 राज्यों/संघीय क्षेत्रों में से 34 राज्यों/संघीय क्षेत्रों में राज्य स्तरीय उन्मूलन का लक्ष्य पूरा।
ऽ छत्तीसगढ़ राज्य और संघीय क्षेत्र दादरा एवं नागर हवेली में उन्मूलन लक्ष्य हासिल करना बाकी।
ऽ दिल्ली, लक्षद्वीप, चंडीगढ़ और ओडिशा, इन चार राज्यों में जहाँ उन्मूलन का लक्ष्य जल्द हासिल हो गया था, व्याप्ति दर 1/10,000 जनसंख्या परिलक्षित हुई।
ऽ कुष्ठरोग के लगभग 1,27,236 नए मामलों का पता चला।
ऽ 31 मार्च 2016 तक 86,028 मामले दर्ज हैं।
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